Census 2011 or the 15th National Census, a gigantic exercise to capture the socio-economic and cultural profile of India’s population, began on April 1, 2010.  India undertakes this exercise every 10 years through the Office of the Registrar General and Census Commissioner in the Ministry of Home Affairs.  The census documents details of a billion plus population on diverse subjects such as demography, literacy, fertility and mortality and provides primary data at village, town and ward level. The first census ever to take place in India was in 1872 and the last one was held in 2001.  The Census of India Act, 1948 lays down the rules and regulations pertaining to conduct of a census.  The Act makes it obligatory for the public to answer all the questions faithfully while guaranteeing the confidentiality of the information. The last census was held in 2001, which revealed that India’s population was about 1.03 billion.  Statistical data related to literacy rate, sex-ratio, urban-rural distribution, religious composition, SC/ST population and so on were captured by Census 2001. Features of Census 2011 Census process: India uses the canvasser method for collecting census data.  Under this method, the canvasser approaches every household and records the answer on the schedules himself after ascertaining the particulars from the head of the household or other knowledgeable persons in the household.  The full detail of the methodology is available here. National Population Register (NPR): It would be a register or database of residents of the country.  The government states that such a database would facilitate better targeting of the benefits and services under government schemes and programmes; improve planning and help strengthen the security of the country.  The register is being created under the provisions of the Citizenship Act and Rules. NPR process: Basic details such as name, date of birth and sex shall be gathered by visiting each household of a resident of the country. A database shall be created with addition of biometric information such as photograph, 10 fingerprints and probably Iris information for all persons aged 15 years and above.  The list shall be sent to the Unique Identity Authority of India (UIDAI) for de-duplication and issue of UID Numbers.  The cleaned database along with the UID Number would form the National Population Register. There was a controversy over whether Census 2011 should capture caste data.  Since India last collected caste data in 1931, proponents argued that up-to-date, reliable caste data was essential to target welfare schemes towards various backward castes. Opponents however contended that this would perpetuate the caste system.  The government finally decided not to include caste as one of the parameters in the 2011 census. Table 1: Schedule of Census 2011

Schedule State/UT
April 1 New Delhi (NDMC area), West Bengal, Assam,  Andaman & Nicobar Islands, Goa, Meghalaya, Bihar, Jharkhand
April 7 Kerala, Lakshadweep, Orissa, Himachal Pradesh, Sikkim
April 15 Karnataka, Arunachal Pradesh, Chandigarh
April 21 Gujarat, Dadra & Nagar Haveli, Daman & Diu
April 26 Tripura, Andhra Pradesh
May 1 Haryana, Chhattisgarh, Delhi, Punjab, Uttaranchal, Maharashtra
May 7 Madhya Pradesh
May 15 J & K, Manipur, Mizoram, Rajasthan, Uttar Pradesh
June 1 Tamil Nadu, Puducherry, Nagaland

2 अक्टूबर, 2021 को स्वच्छ भारत अभियान (एसबीएम) के सात साल पूरे हुए हैं। 2 अक्टूबर, 2019 को स्वच्छ भारत के लक्ष्य को पूरा करने के मकसद से इसे 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू किया गया था। इस अभियान का उद्देश्य देश को खुले में शौच से मुक्त करना, मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करना और वैज्ञानिक तरीके से ठोस कचरा प्रबंधन करना है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम स्वच्छ भारत अभियान के तहत सैनिटेशन कवरेज और इस योजना की प्रगति पर चर्चा कर रहे हैं।

पिछले दशकों में देशव्यापी सैनिटेशन कार्यक्रम

जनगणना के अनुसार, 1981 में भारत में ग्रामीण स्तर पर सैनिटेशन कवरेज सिर्फ 1% था।  

सैनिटेशन से संबंधित भारत का पहला देशव्यापी कार्यक्रम केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (सीआरएसपी) था। इसे ग्रामीण क्षेत्रों में सैनिटेशन की सुविधाएं प्रदान करने के उद्देश्य से 1986 में शुरू किया गया था। इसके बाद 1999 में सीआरएसपी को पुनर्गठित किया गया और फिर टोटल सैनिटेशन कैंपेन (टीएससी) के तौर पर शुरू किया गया। जबकि सीआरएसपी एक आपूर्ति संचालित, इंफ्रास्ट्रक्चर केंद्रित कार्यक्रम था जोकि सबसिडी पर आधारित था, टीएससी मांग आधारित, समुदाय के नेतृत्व वाला, परियोजना आधारित कार्यक्रम था जो जिले में एक इकाई के तौर पर संचालित किया जाता था। 

2001 में 22% ग्रामीण परिवारों को शौचालयों की सुविधा प्राप्त थी। 2011 में यह बढ़कर 32.7हो गया। 2012 में सैचुरेशन एप्रोच के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में सैनिटेशन कवरेज में तेजी लाने और व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों (आईएचएचएल) के लिए इनसेंटिव्स को बढ़ाने के माध्यम से टीएससी का निर्मल भारत अभियान (एनबीए) के तौर पर कायापलट किया गया।

ग्रामीण सैनिटेशन की तुलना में कुछ कार्यक्रम शहरी सैनिटेशन की कमियों को दूर करने के लिए चलाए गए। अस्सी के दशक में एकीकृत निम्न लागत वाली सैनिटेशन योजना परिवारों को निम्न लागत पर शौचालय बनाने के लिए सबसिडी देती थी। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्लम विकास परियोजना और उसके रिप्लेसमेंट कार्यक्रम वाल्मीकि अंबेडकर आवास योजना को 2001 में शुरू किया गया था। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य झुग्गी-झोपड़ी इलाकों में सामुदायिक शौचालय बनाना था। 2008 में मानव मल और संबंधित सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों का प्रबंधन करने के लिए राष्ट्रीय शहरी सैनिटेशन नीति (एनयूएसपी) की घोषणा की गई

2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की गई। इसके दो घटकों स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) क्रमशः ग्रामीण और शहरी सैनिटेशन पर केंद्रित हैं। इस अभियान के ग्रामीण घटक को पेयजल एवं सैनिटेशन विभाग तथा शहरी घटक को आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है। 2015 में नीति आयोग के अंतर्गत स्वच्छ भारत अभियान पर मुख्यमंत्रियों के उपसमूह ने पाया कि एसबीएम और पहले के कार्यक्रमों के बीच कुछ अंतर था। अंतर यह था कि नया कार्यक्रम सैनिटेशन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में सहयोग हेतु अधिक भागीदारों को आकर्षित करने का प्रयास करता है।

स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण (एसबीएम-ग्रामीण) 

मुख्यमंत्रियों के उपसमूह (2015) ने कहा था कि भारत के 25 करोड़ में से आधे परिवारों को उन जगहों के निकट शौचालय उपलब्ध नहीं, जहां वे रहते हैं। उल्लेखनीय है कि 2015-19 की अवधि के दौरान पेयजल एवं सैनिटेशन विभाग ने एसबीएम-ग्रामीण पर अपने व्यय का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया (देखें रेखाचित्र 1)। 

रेखाचित्र 1: 2014-22 के दौरान स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण पर व्यय 

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नोट: 2020-221 के आंकड़े संशोधित और 2021-22 के बजट अनुमान हैं। 2019-20 से पहले का व्यय पूर्ववर्ती पेयजल एवं सैनिटेशन मंत्रालय का था। 
स्रोत: केंद्रीय बजट 2014-15 से 2021-22; पीआरएस

स्वच्छ भारत-ग्रामीण के व्यय में 2015-16 (2,841 करोड़ रुपए) से 2017-18 (16,888 करोड़ रुपए) के बीच लगातार बढ़ोतरी हुई, और फिर बाद के वर्षों में गिरावट। इसके अलावा 2015-18 के दौरान योजना का व्यय बजटीय राशि से 10से अधिक बढ़ गया। हालांकि 2018-19 से हर साल आबंटित राशि से कुछ कम उपयोग हुआ है।

पेयजल एवं सैनिटेशन विभाग के अनुसार, 2014-15 में 43.79% ग्रामीण परिवारों को शौचालय उपलब्ध था, जोकि 2019-20 में बढ़कर 100हो गया (देखें रेखाचित्र 2)।

हालांकि 15वें वित्त आयोग (2020) ने कहा था कि शौचालयों की उपलब्धता के बावजूद खुले में शौच की प्रथा चालू है और इस बात पर जोर दिया कि लोग शौचालयों का उपयोग करते रहें, इस आदत को बरकरार रखने की जरूरत है। ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने 2018 में ऐसा ही मामला उठाया था और कहा था कि "यहां तक कि 100% घरेलू शौचालय वाले गांवों को भी खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित नहीं किया जा सकता है, जब तक कि सभी निवासी उनका उपयोग करना शुरू न कर दें"। स्टैंडिंग कमिटी ने शौचालयों के निर्माण की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े किए थे और गौर किया था कि सरकार नॉन फंक्शनल शौचालयों को भी गिन रही है जिससे बढ़े हुए आंकड़े मिल रहे हैं।

रेखाचित्र 2: ग्रामीण परिवारों के लिए शौचालयों का कवरेज

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स्रोत: एसबीएम (ग्रामीण) का डैशबोर्डजल शक्ति मंत्रालय; पीआरएस

15वें वित्त आयोग ने यह भी कहा है कि योजना गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों और गरीबी रेखा से ऊपर के चुनींदा परिवारों को लैट्रिन बनाने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देती है। उसने कहा कि बीपीएल परिवारों को खोजने में गलतियां की जा रही हैं, जिससे बहुत से इसमें शामिल नहीं हो पाते। आयोग ने सुझाव दिया था कि 100% ओडीएफ दर्जा हासिल करने के लिए योजना का सार्वभौमीकरण किया जाए। 

मार्च 2020 में पेयजल एवं सैनिटेशन मंत्रालय ने एसबीएम-ग्रामीण के चरण दो की शुरुआत की जोकि ओडीएफ प्लस पर केंद्रित होगा और 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय से 2020-21 से 2024-25 के बीच लागू किया जाएगा। ओडीएफ प्लस में ओडीएफ दर्जे को बरकरार रखना, तथा ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन शामिल हैं। विशेष रूप से यह देश की प्रत्येक ग्राम पंचायत में ठोस एवं तरल कचरे के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करेगा।

स्वच्छ भारत मिशन- शहरी (एसबीएम-शहरी) 

एसबीएम-शहरी का उद्देश्य देश के शहरों को खुले में शौच से मुक्त करना और देश के 4000+ शहरों में म्यूनिसिपल ठोस कचरे का 100वैज्ञानिक प्रबंधन हासिल करना है। इनमें से एक लक्ष्य यह था कि 2 अक्टूबर, 2019 तक 66 लाख व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (आईएचएचएलज़) बनाए जाएं। हालांकि 2019 में इस लक्ष्य को कम करके 59 लाख किया गया। इस लक्ष्य को 2020 तक हासिल करना था (देखें तालिका 1)। 

तालिका 130 दिसंबर, 2020 तक स्वच्छ भारत मिशन- शहरी की प्रगति

लक्ष्य

मूल लक्ष्य 

संशोधित लक्ष्य (2019 में संशोधित)  

वास्तविक निर्माण

व्यक्तिगत घरेलू लैट्रिन

66,42,000

58,99,637

62,60,606

सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालय

5,08,000

5,07,587

6,15,864

 स्रोत: स्वच्छ भारत मिशन शहरी- डैशबोर्ड; पीआरएस 

रेखाचित्र 3: 2014-22 के दौरान स्वच्छ भारत मिशन-शहरी पर व्यय (करोड़ रुपए में)

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नोट: 2020-221 के आंकड़े संशोधित और 2021-22 के बजट अनुमान हैं। 

स्रोत: केंद्रीय बजट 2014-15 से 2021-22; पीआरएस

 

शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने 2020 की शुरुआत में यह जानकारी दी कि पूर्वी दिल्ली सहित कई क्षेत्रों में योजना के तहत बनाए गए शौचालय बहुत खराब क्वालिटी के हैं, और उनकी उचित देखभाल भी नहीं की जाती। इसके अतिरिक्त खुले में शौच से मुक्त 4,320 शहरों में से सिर्फ 1,276 में पानी, देखरेख और साफ-सफाई वाले शौचालय हैं। इसके अतिरिक्त उसने सितंबर 2020 में यह भी कहा कि कार्यक्रम के उचित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्यों/यूटीज़ में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए असमान धन वितरण को दुरुस्त किए जाने की जरूरत है। 

शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने स्रोत पर कचरे को अलग-अलग करने और कचरा प्रोसेसिंग के लक्ष्यों को हासिल करने की धीमी गति पर भी चिंता जताई थी। 2020-21 के दौरान एसबीएम-शहरी के अंतर्गत इनके लिए निर्धारित लक्ष्य क्रमशः 78% और 68% थे। इसके अतिरिक्त कचरे को घर-घर जाकर जमा करने से संबंधित दूसरे लक्ष्य भी पूरा नहीं हुए हैं (देखें तालिका 2)।

तालिका 2: 30 दिसंबर, 2020 तक स्वच्छ भारत मिशन-शहरी की प्रगति 

लक्ष्य

लक्ष्य 

मार्च 2020 तक प्रगति

दिसंबर 2020 तक प्रगति

घर-घर कचरा एकत्रण (वॉर्ड में)

86,284

81,535 (96%)

83,435 (97%)

स्रोत पर कचरे को अलग-अलग करना (वॉर्ड में) 

86,284

64,730 (75%)

67,367 (78%)

कचरे की प्रोसेसिंग (में) 

100%

65%

68%

 स्रोत: शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021); पीआरएस 

फरवरी 2021 में वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि शहरी स्वच्छ भारत मिशन 2.0 को शुरू किया जाएगा। शहरी स्वच्छ भारत मिशन 2.0 निम्नलिखित पर केंद्रित होगा(i) कीचड़ का प्रबंधन(ii) अपशिष्ट जल उपचार, (iii) कचरे को स्रोत पर ही अलग-अलग करना, (iv) सिंगल-यूज़ प्लास्टिक को कम करना, और (v) निर्माण, ध्वंस के कारण होने वाले वायु प्रदूषण को रोकना, और डंप साइट्स का बायो-रेमिडिएशन। 1 अक्टूबर, 2021 को प्रधानमंत्री ने एसबीएम-शहरी 2.0 को शुरू किया जिसका उद्देश्य हमारे सभी शहरों को गारबेज फ्री बनाना है।