Elections to the 14th Legislative Assembly of Karnataka are scheduled to be held on May 5, 2013. Of the 224 assembly constituencies that will go into polls, 36 are reserved for Scheduled Castes and 15 for Scheduled Tribes. Voting will take place in 50,446 polling stations across Karnataka [1.  Election Commission India]. In this blog, we analyse electoral trends between 1989 and 2008 and the performance of the current Karnataka Assembly.

Figure 1: Electoral trends since 1989, source: Election Commission of India, PRS.

 

In the last elections, held in 2008, the Bharatiya Janata Party (BJP) formed the government, winning 110 of the 226 seats in the Assembly. The BJP has steadily increased its seat share since 1989: it won four seats in 1989, 44 in 1999 and 79 in 2004. The Indian National Congress (INC) had a 179 seat majority in 1989 (79% of the assembly) which fell to 34 seats in 1994. The INC subsequently increased their tally from 65 seats in 2004 to 80 seats in 2008. However, the INC continued to have the highest share of votes polled (except in 1994) even as its share of seats decreased. The 1990s also saw the emergence of the Janata Dal (S) who won the 1994 elections with 115 seats. Janata Dal’s emergence is part of a broader theme of increased participation by regional parties in Karnataka. In 1989, 20 parties contested the elections, seven of which were national parties but in 2008, 30 parties contested, of which only five were national parties. Performance of the current Assembly As we approach the end of the term of the current Assembly, a brief look at its work from 2008 to 2013:

  • During its five-year-term, the Assembly sat for a total of 144 days, an average of 31 days each year. In comparison, the Lok Sabha in its current term sat for an average of 68 days per year. Among states, the Kerala Assembly sat for an average of 50 days, Haryana for 13 days and Rajasthan for 24 days, each year. Figure 2: Days of sitting - Karnataka assembly, source: RTI, PRS.

     

  •  Members of the Karnataka Assembly recorded an average attendance of 81 per cent for the whole term, broadly in line with the Lok Sabha attendance of 77 per cent. Nearly one in five members registered more than 90 per cent attendance. In comparison, members of the 11th Himachal Pradesh Assembly recorded an attendance of 95 per cent, while the attendance of the 12th Gujarat Assembly stood at 83 per cent.
  • Some of the significant Bills passed by the 14th Karnataka Assembly include the Karnataka Guarantee of Services to Citizens Bill and the Karnataka Ground Water (Regulation and Control of Development and Management) Bill.  In 2012, the Assembly also passed the Karnataka Prevention of Cow Slaughter and Preservation Bill.

1 जून, 2020 को आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों (एमएसएमईज़) की परिभाषा में संशोधन को मंजूरी दी।[1] इस ब्लॉग में हम एमएसएमईज़ की परिभाषा में कैबिनेट द्वारा मंजूर परिवर्तनों पर चर्चा कर रहे हैं और एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के लिए इस्तेमाल होने वाले कुछ मानदंडों की समीक्षा कर रहे हैं।  

वर्तमान में एमएसएमईज़ को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास एक्ट, 2006 के अंतर्गत परिभाषित किया जाता है।[2] यह एक्ट उन्हें निम्नलिखित के आधार पर सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों में वर्गीकृत करता है: (i) माल की मैन्यूफैक्चरिंग या उत्पादन में संलग्न उद्यमों द्वारा प्लांट और मशीनरी में निवेश, और (ii) सेवाएं प्रदान करने वाले उद्यमों द्वारा उपकरणों में निवेश। कैबिनेट की मंजूरी के बाद निवेश सीमा को बढ़ाया गया है और उद्यमों के वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमई के वर्गीकरण के अतिरिक्त मानदंड के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा (तालिका 1)। 

एमएसएमईज़ की परिभाषा में संशोधन के पूर्व प्रयास

केंद्र सरकार ने दो बार पहले भी एमएसएमईज़ की परिभाषा में संशोधन के प्रयास किए हैं। इससे पहले सरकार ने एमएसएमई विकास (संशोधन) बिल, 2015 को पेश किया था जिसमें एमएसएमईज़ की मैन्यूफैक्चरिंग और सेवाओं के लिए निवेश की सीमा को बढ़ाने का प्रस्ताव था।[3] 2018 में इस बिल को वापस ले लिया गया और दूसरा बिल पेश किया गया। एमएसएमई विकास (संशोधन) बिल, 2018 नामक इस बिल में निम्नलिखित प्रस्तावित था: (i) एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के लिए निवेश के बजाय वार्षिक टर्नओवर को मानदंड के रूप में इस्तेमाल करना, (iiमैन्यूफैक्चरिंग और सेवाओं के बीच के अंतर को समाप्त करना, और (iii) केंद्र सरकार को अधिसूचना के जरिए टर्नओवर की सीमा में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करना।[4] 16वीं लोकसभा भंग होने के साथ 2018 का बिल लैप्स हो गया। 

तालिका 1: एमएसएमईज़ को परिभाषित करने के मानदंड के बीच तुलना

2006 एक्ट

2015 बिल

2018 बिल

कैबिनेट 
 (जून 2020)

मानदंड

निवेश

निवेश

टर्नओवर

निवेश और टर्नओवर

प्रकार

मैन्यूफैक्चरिंग

सेवा

मैन्यूफैक्चरिंग

सेवा

दोनों

दोनों

सूक्ष्म

 

25 लाख रुपए तक

10 लाख रुपए तक

50 लाख रुपए तक

20 लाख रुपए तक

करोड़ रुपए तक 

निवेश: करोड़ रुपए तक
 टर्नओवर: करोड़ रुपए तक

लघु

25 लाख रुपए से 5 करोड़ रुपए 

10 लाख रुपए से 2 करोड़ रुपए 

50 लाख रुपए से 

10 करोड़ रुपए

20 लाख रुपए से  5 करोड़ रुपए 

करोड़ रुपए से 75 करोड़ रुपए 

निवेश: करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए 
 टर्नओवर: करोड़ रुपए से 50 करोड़ रुपए 

मध्यम

करोड़ रुपए से 

10 करोड़ रुपए

करोड़ रुपए से 5 करोड़ रुपए

10 करोड़ रुपए से 30 करोड़ रुपए

करोड़ रुपए से 15 करोड़ रुपए

75 करोड़ रुपए से  250 करोड़ रुपए

निवेश: 10 करोड़ रुपए से 50 करोड़ रुपए
 टर्नओवर: 50 करोड़ रुपए से 250 करोड़ रुपए

SourcesMSME Development 2006 Act, MSME Development Amendment Bills 2015 and 2018, PIB update on cabinet approval; PRS.

विश्व स्तर पर एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के मानदंड

हालांकि भारत में अब निवेश और वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमईज़ के वर्गीकरण के मानदंड के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा, विश्व के अनेक देश व्यापक स्तर पर कर्मचारियों की संख्या को मानदंड के रूप में प्रयोग करते हैं। एमएसएमईज़ पर भारतीय रिजर्व बैंक की एक्सपर्ट कमिटी (2019) ने अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम के एक अध्ययन का हवाला दिया था जिसे 2014 में किया गया था। इस अध्ययन में 155 देशों के विभिन्न संस्थानों की 267 परिभाषाओं का विश्लेषण किया गया था।[5],[6]  अध्ययन के अनुसार, अनेक देश एमएसएमईज़ को वर्गीकृत करने के लिए कई मानदंडों का एक साथ इस्तेमाल करते हैं। 92परिभाषाओं में कर्मचारियों की संख्या को कई मानदंडों में से एक के तौर पर इस्तेमाल किया गया था। जिन अन्य मानदंडों को इस्तेमाल किया गया था, वे थे: (i) टर्नओवर (49%)और (ii) एसेट्स का मूल्य (36%)। 11परिभाषाओं में वैकल्पिक मानदंडों का इस्तेमाल किया गया था, जैसे: (i) लोन की मात्रा, (ii) वर्षों का अनुभव, और (iii) प्रारंभिक निवेश। 

रेखाचित्र 1आईएफसी रिपोर्ट (2014) के अनुसार, विश्व में एमएसएमई के वर्गीकरण के विभिन्न मानदंड

image

SourcesMSME Country Indicators 2014; International Finance Corporation; Report of the Expert Committee on Micro, Small, and Medium Enterprises, Reserve Bank of India; PRS.

तालिका 2: एमएसएमईज़ को परिभाषित करने के लिए विभिन्न देशों के मानदंड

देश

कर्मचारियों की संख्या

पूंजीl/परिसंपत्तियां

टर्नओवर/बिक्री

बांग्लादेश

ü

ü

 

ब्राजील

ü

 

 

चीन

ü

ü

ü

यूरोपीय संघ

ü

ü

ü

जापान

ü

ü

 

मलयेशिया

ü

 

ü

युनाइडेट किंगडम

ü

ü

ü

युनाइटेड स्टेट्स

ü

 

ü

SourcesReport of the Expert Committee on Micro, Small, and Medium Enterprises (2019), Reserve Bank of India; PRS.

एमएसएमई की परिभाषा के मानदंडों का मूल्यांकन

निवेश: 2006 का एक्ट एमएसएमईज़ को वर्गीकृत करने के लिए प्लांट, मशीनरी और उपकरणों में निवेश का इस्तेमाल करता है। निवेश के मानदंड के साथ कुछ समस्याएं हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • निवेश के मानदंड के लिए फिजिकल वैरिफिकेशन की जरूरत होती है और इसके साथ अन्य खर्चे जुड़े हुए होते हैं।[7]
  • महंगाई के कारण निवेश की सीमा को समय-समय संशोधित करना पड़ सकता है। उद्योग संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2018) ने कहा था कि 2006 में एक्ट के अंतर्गत स्थापित सीमाएं महंगाई के कारण अप्रासंगिक हो गई हैं।7
  • छोटे पैमाने पर कामकाज करने और अपनी अनौपचारिक प्रकृति के कारण कंपनियां खातों का उचित लेखा-जोखा नहीं रखतीं और इसलिए उन्हें मौजूदा परिभाषा के अंतर्गत एमएसएमई के रूप में वर्गीकृत करना मुश्किल होता है।5
  • निवेश आधारित वर्गीकरण से मिलने वाले लाभ के कारण प्रमोटर निवेश को बढ़ाते नहीं क्योंकि इससे उन्हें सूक्ष्म या लघु की श्रेणी से संबंधित लाभ मिलते रहते हैं।7

टर्नओवर: 2018 का बिल निवेश के मानदंड को पूरी तरह से हटाकर, वार्षिक टर्नओवर को एमएसएमईज़ के वर्गीकरण का एकमात्र मानदंड बनाने का प्रयास करता था। स्टैंडिंग कमिटी ने बिल के इस प्रस्ताव को मंजूर किया था कि निवेश के स्थान पर वार्षिक टर्नओवर के मानदंड का इस्तेमाल किया जाए।7  यह कहा गया था कि इससे निवेश के आधार पर वर्गीकरण की कुछ कमियों को दूर किया जा सकता है। हालांकि टर्नओवर आधारित मानदंड के लिए वैरिफिकेशन की भी जरूरत पड़ेगी, कमिटी ने कहा कि जीएसटी नेटवर्क (जीएसटीएन) डेटा इस काम के लिए विश्वसनीय स्रोत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, यह भी कहा गया था कि:7

  • टर्नओवर को वर्गीकरण के मानदंड के रूप में इस्तेमाल करने से कॉरपोरेट्स एमएसएमईज़ को दिए जाने वाले लाभों का दुरुपयोग कर सकते हैं। जैसे यह आशंका है कि कोई बहुराष्ट्रीय कंपनी बड़े टर्नओवर के साथ अधिक मात्रा में उत्पाद बनाए और फिर उसे जीएसटीएन के अंतर्गत सूक्ष्म या लघु उद्यमों के रूप मे पंजीकृत विभिन्न सबसिडियरी कंपनियों के जरिए मार्केट करे।
  • कुछ उद्यमों का टर्नओवर कारोबार के आधार पर बदल सकता है, जिससे एक वर्ष के दौरान उद्यम के वर्गीकरण में बदलाव हो सकता है। 
  • कमिटी ने कहा था कि टर्नओवर की सीमाओं में व्यापक अंतराल है। जैसे 6 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाला उद्यम और 75 करोड़ रुपए के टर्नओवर वाला उद्यम (जैसा 2018 के बिल में प्रस्तावित है), दोनों को लघु उद्यम के तौर पर वर्गीकृत किया जाएगा, जोकि बेतुका प्रतीत होता है। 

एक्सपर्ट कमिटी (आरबीआई) ने भी निवेश के स्थान पर वार्षिक टर्नओवर को वर्गीकरण के मानदंड के रूप में इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था।5  यह कहा गया था कि टर्नओवर आधारित परिभाषा पारदर्शी, प्रगतिशील है और उसे जीएसटीएन के जरिए लागू करना आसान है। उसने सुझाव भी दिया था कि एमएसएमईज़ की परिभाषा में परिवर्तन की शक्ति कार्यकारिणी को दी जानी चाहिए क्योंकि इससे बदलते आर्थिक परिदृश्यों में बदलाव करने में मदद मिलेगी। 

कर्मचारियों की संख्या: स्टैंडिंग कमिटी का कहना था कि भारत जैसे श्रम गहन देश में रोजगार सृजन पर पूरा ध्यान देने की जरूरत है और एमएसएमई क्षेत्र इसके लिए उपयुक्त मंच है।7 यह सुझाव भी दिया गया था कि केंद्र सरकार को एमएसएमई क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की संख्या का आकलन करना चाहिए और एमएसएमई को वर्गीकृत करते समय मानदंड के रूप में रोजगार पर विचार करना चाहिए। हालांकि एक्सपर्ट कमिटी (आरबीआई) ने कहा था कि जबकि रोजगार आधारित परिभाषा कुछ देशों में पसंद की जाने वाली एक अतिरिक्त विशेषता है, इस परिभाषा को लागू करने में अनेक समस्याएं आएंगी।5  एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार, निम्नलिखित कारणों से रोजगार को मानदंड के रूप में इस्तेमाल करना कठिन है: (i) मौसम और काम की अनौपचारिक प्रकृति जैसे कारण, (ii) निवेश के मानदंड की ही तरह इसके लिए फिजिकल वैरिफिकेशन की जरूरत होगी और इसके साथ अन्य खर्चे जुड़े हुए होते हैं।7  

 

एमएसएमईज़ की संख्या

नेशनल सैंपल सर्वे (2015-16) के अनुसार, देश में लगभग 6.34 करोड़ एमएसएमईज़ हैं। सूक्ष्म उद्यम क्षेत्र में 6.3 करोड़ उद्यम हैं जोकि कुल एमएसएमईज़ की अनुमानित संख्या का 99% से अधिक है। लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र का हिस्सा कुल उद्यमों में क्रमशः 0.52% और 0.01% है। एमएसएमईज़ के वितरण को समझने का दूसरा डेटासेट उद्योग आधार है, जोकि यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) द्वारा एमएसएमई उद्यमों को यूनीक आइडेंटिटी के तौर पर दिया जाता है।[8]  उद्योग आधार पंजीकरण उद्यमों की स्वघोषणा के आधार पर दिया जाता है। सितंबर 2015 और जून 2020 के दौरान 98.6 लाख उद्यमों का पंजीकरण यूआईडीएआई के साथ किया गया है। इस डेटाबेस के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों का हिस्सा क्रमशः 87.7%, 11.8% और 0.5% है।

तालिका 3: देश में एमएसएमईज़ की संख्या (लाखों में) 

 

सूक्ष्म

लघु

मध्यम

कुल

% हिस्सा

ग्रामीण

324.09

0.78

0.01

324.88

51%

शहरी 

306.43

2.53

0.04

309.00

49%

कुल

630.52

3.31

0.05

633.88

 

Sources73rd Round, National Sample Survey, 2015-16, MOSPI; PRS

एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार

2015-16 में एमएसएमई क्षेत्र में लगभग 11.1 करोड़ लोग काम कर रहे थे। कृषि क्षेत्र के बाद इस क्षेत्र में सबसे अधिक लोग रोजगार प्राप्त हैं। रोजगार प्राप्त व्यक्तियों की सबसे बड़ी संख्या व्यापार गतिविधियों में लगी हुई है (35%), इसके बाद मैन्यूफैक्चरिंग में लगे व्यक्तियों (32%) की संख्या है। 

तालिका 4: एमएसएमईज़ में रोजगार (लाख में) (2015-16)

 

सूक्ष्म

लघु

मध्यम

कुल

% हिस्सा

ग्रामीण

489.3

7.9

0.6

497.8

45%

शहरी 

586.9

24.1

1.2

612.1

55%

कुल

1,076.2

32.0

1.8

1,109.9

 

Sources73rd Round, National Sample Survey, 2015-16, MOSPI; PRS

एमएसएमईज़ की परिभाषा में परिवर्तन के प्रभाव

एमएसएमई की परिभाषा में परिवर्तन के कई नतीजे हो सकते हैं। जैसे लघु उद्यम के रूप में वर्गीकृत अनेक उद्यम, सूक्ष्म उद्यम के रूप में वर्गीकृत हो जाएंगे, और मध्यम उद्यम के रूप में वर्गीकृत उद्यम, लघु के रूप में। इसके अतिरिक्त अनेक उद्यम जो फिलहाल एमएसएमईज़ के रूप में वर्गीकृत नहीं हैं, नई परिभाषा के कारण एमएसएमई क्षेत्र के अंतर्गत आ जाएंगे। इन उद्यमों को एमएसएमई से संबंधित योजनाओं का भी लाभ मिलेगा। एमएसएमई मंत्रालय निम्नलिखित के लिए विभिन्न योजनाएं चलाता है: (i) एमएसएमई के लिए ऋण, (ii) टेक्नोलॉजी अपग्रेड और आधुनिकीकरण के लिए सहयोग, (iii) उद्यमशीलता और दक्षता विकास, और (iv) क्लस्टर वार उपाय ताकि एमएसएमई इकाइयों में क्षमता निर्माण और सशक्तीकरण को बढ़ावा दिया जा सके। जैसे सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड स्कीम के अंतर्गत सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को अधिकतम 75% तक क्रेडिट गारंटी कवर दिया जाता है।[9]  इसलिए नए सिरे से वर्गीकरण करने से एमएसएमई क्षेत्र के लिए बजटीय आबंटन में काफी बढ़ोतरी की जरूरत होगी। 

कोविड-19 के परिणामस्वरूप एमएसएमई से संबंधित अन्य घोषणाएं 

2017-18 में कुल मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट में एमएसएमई क्षेत्र का हिस्सा लगभग 33.4% था।[10]  इसी वर्ष देश के कुल निर्यात में एमएसएमई का हिस्सा लगभग 49था। 2015 और 2017 के दौरान जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान करीब 30था। कोविड-19 के परिणामस्वरूप देश भर में लॉकडाउन के कारण एमएसएमई सहित व्यापार जगत को काफी नुकसान हुआ। इस क्षेत्र को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए सरकार ने मई 2020 में अनेक उपायों की घोषणा की।[11]   इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i25 करोड़ रुपए तक के बकाये और 100 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले एमएसएमईज़ को कोलेट्रल मुक्त लोन, (iiस्ट्रेस्ड एमएसएमईज़ को 20,000 करोड़ रुपए अधीनस्थ ऋण के रूप में, और (iii) एमएसएमईज़ में 50,000 करोड़ रुपए का कैपिटल इनफ्यूजन। इन उपायों को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूर कर दिया है।[12]    

आत्मनिर्भर भारत अभियान की घोषणाओं पर अधिक विवरण के लिए कृपया यहां देखें। 

 

[1] “Cabinet approves Upward revision of MSME definition and modalitiesroad map for implementing remaining two Packages for MSMEs (a)Rs 20000 crore package for Distressed MSMEs and (bRs 50,000 crore equity infusion through Fund of Funds, Press Information Bureau, Cabinet Committee on Economic Affairs, June 1, 2020.

[2] The Micro, Small and Medium Enterprises Development Act, 2006, https://samadhaan.msme.gov.in/WriteReadData/DocumentFile/MSMED2006act.pdf.

[3] The Micro, Small and Medium Enterprises Development (AmendmentBill, 2015, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/MSME_bill%2C_2015_0.pdf.

[5] Report of the Expert Committee on Micro, Small and Medium Enterprises, The Reserve Bank of India, July 2019, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/PublicationReport/Pdfs/MSMES24062019465CF8CB30594AC29A7A010E8A2A034C.PDF.

[6] MSME Country Indicators 2014, International Finance Corporation, December 2014, https://www.smefinanceforum.org/sites/default/files/analysis%20note.pdf.

[7] 294th Report on Micro Small and Medium Enterprises Development (AmendmentBill 2018, Standing Committee on Industry, Rajya Sabha, December 2018, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/17/111/294_2019_3_15.pdf.

[8] Enterprises with Udyog Aadhaar Number, National Portal for Registration of Micro, Small & Medium Enterprises, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, https://udyogaadhaar.gov.in/UA/Reports/StateBasedReport_R3.aspx.

[9] Credit Guarantee Fund Scheme for Micro and Small Enterprises, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, http://www.dcmsme.gov.in/schemes/sccrguarn.htm.

[10] Annual Report 2018-19, Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises, https://msme.gov.in/sites/default/files/Annualrprt.pdf.

[11] "Finance Minister announce measures for relief and credit support related to businesses, especially MSMEs to support Indian Economys fight against COVID-19", Press Information Bureau, Ministry of Finance, May 13, 2020.

[12] "Cabinet approves additional funding of up to Rupees three lakh crore through introduction of Emergency Credit Line Guarantee Scheme (ECLGS)", Press Information Bureau, Ministry of Finance, May 20, 2020.