स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ
झारखंड

 

झारखंड चिकित्सा सेवा कर्मी, चिकित्सा सेवा संस्थान (हिंसा और संपत्ति नुकसान का निवारण) बिल, 2023

मुख्य विशेषताएं

  • बिल चिकित्सा सेवा कर्मियों के खिलाफ या उनके द्वारा हिंसाऔर चिकित्सा सेवा संस्थानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर प्रतिबंध लगाता है। 
  • हिंसा का कोई भी कृत्य कारावास और जुर्माने के साथ दंडनीय होगा। अपराधी चिकित्सा संस्थानों की संपत्ति को हुए नुकसान के लिए मुआवजे का भुगतान करने हेतु भी उत्तरदायी हो सकते हैं।
  • दुर्व्यवहार या गलत व्यवहार की शिकायतों की जांच कम से कम दो स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति में की जाएगी। 

प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण

  • एक अलग कानून की आवश्यकता स्पष्ट नहीं है क्योंकि भारतीय दंड संहिता, 1860 सभी प्रकार की हिंसा से संबंधित है, और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग एक्ट, 2019 डॉक्टरों के आचरण से संबंधित है। 
  • गलत इलाज की जांच करने वाली जांच समिति में किसी चिकित्सा विशेषज्ञ की मौजूदगी अनिवार्य नहीं है।
  • कुछ सुरक्षा उपायों को स्थापित करने का अनुपालन छोटे चिकित्सा संस्थानों के लिए कठिन हो सकता है।
  • संपत्ति के नुकसान का आकलन करने वाली तकनीकी समिति सिर्फ सरकारी संस्थानों के ऐसे नुकसान का आकलन करेगी।  

झारखंड चिकित्सा सेवा कर्मी, चिकित्सा सेवा संस्थान (हिंसा और संपत्ति नुकसान का निवारण) बिल, 2023 को झारखंड विधानसभा में 22 मार्च, 2023 को पेश किया गया था। बिल चिकित्सा कर्मियों के खिलाफ हिंसा और चिकित्सा संस्थानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर प्रतिबंध लगाता है।

     

भाग क: बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में हिंसा के लिए निम्नलिखित कारणों को जिम्मेदार ठहराया है: (i) संकटग्रस्त लोगों के साथ काम करना, (ii) स्वास्थ्य सुविधाओं की कमीऔर (iii) अपर्याप्त संसाधनों और अनुपयुक्त उपकरणों के साथ काम करना।[1] भारतीय चिकित्सा संगठन (आईएमए) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के आधार पर कर्नाटक कानून आयोग (2018) ने कहा था कि देश भर में 75% से अधिक डॉक्टरों को किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ा है।[2] भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 व्यक्तियों के खिलाफ कुछ अपराधों को दंडित करती है जैसे: (i) जीवन को खतरे में डालने वाली चोट या गंभीर चोट पहुंचानाऔर (ii) हमला।[3]  कोविड-19 महामारी के दौरानचिकित्सा सेवा कर्मियों को महामारी के दौरान हिंसा से बचाने के लिए महामारी रोग एक्ट, 1897 में संशोधन किया गया था।[4] 2017 में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक ड्राफ्ट बिल सर्कुलेट किया था। सभी राज्यों में चिकित्सा सेवा कर्मियों और संस्थानों को हिंसा से बचाने के लिए आईएमए ने यह बिल तैयार किया था।[5] बिल में राज्य सरकारों से अनुरोध किया गया था कि वे या तो चिकित्सा सेवा कर्मियों की सुरक्षा के लिए मौजूदा कानूनों को कड़ाई से लागू करें या फिर ड्राफ्ट के अनुसार कानून बनाएं।5 

असमकेरलमध्य प्रदेश और ओड़िशा सहित कई राज्यों ने मेडिकल प्रोफेशनल्स के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए कानून पारित किए हैं।[6],[7],[8],[9] अधिकांश राज्य कानून पंजीकृत डॉक्टरोंनर्सोंमेडिकल और नर्सिंग स्टूडेंट्स और पैरामेडिकल स्टाफ को शामिल करने के लिए चिकित्सा सेवा कर्मियों को परिभाषित करते हैं। गुजरातगोवा और मध्य प्रदेश सहित कुछ राज्य चिकित्सा सहायता स्टाफ जैसे आयादाई और वार्ड बॉय को सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये सभी कानून मुख्य रूप से चिकित्सा सेवा कर्मियों के खिलाफ हिंसा के कृत्यों और चिकित्सा सेवा संस्थानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर रोक लगाते हैं। इन कानूनों में हिंसा को इस प्रकार परिभाषित किया गया है: (i) चिकित्सा सेवा कर्मियों को नुकसानचोट या धमकी, (ii) मेडिकल प्रोफेशनल्स को उनके कर्तव्यों को पूरा करने से रोकनाऔर (iii) चिकित्सा सेवा संस्थानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना। संबंधित राज्य कानूनों के बारे में अधिक जानकारी के लिए अनुलग्नक की तालिका 1 देखें।

मुख्य विशेषताएं

  • चिकित्सा कर्मियों और संस्थानों से हिंसा पर प्रतिबंध: बिल चिकित्सा सेवाओं से जुड़े किसी भी व्यक्ति द्वारा या उसके खिलाफ हिंसा या चिकित्सा सेवा संस्थानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर प्रतिबंध लगाता है। यह किसी भी व्यक्ति को चिकित्सा सेवाओं में रुकावट पैदा करने से भी रोकता है। चिकित्सा सेवा की परिभाषा में चिकित्सा देखभाल के प्रावधानों के अलावा प्रसव पूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल, किसी भी बीमारी, चोट और विकलांगता की देखभाल शामिल है। हिंसक कृत्यों में चिकित्सा सेवाओं से जुड़े लोगों को नुकसान पहुंचाना, चोट पहुंचाना या उनके जीवन को जोखिम में डालना शामिल है। चिकित्सा सेवा कर्मियों में पंजीकृत चिकित्सक, पैरामेडिकल कर्मी, तथा चिकित्सा और नर्सिंग स्टूडेंट्स शामिल हैं।

  • सजा और क्षतिपूर्ति: हिंसा करने वाले या चिकित्सा सेवा संस्थान की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले किसी भी व्यक्ति को दो वर्ष तक की कैद और 50,000 रुपए तक का जुर्माना भुगतना होगा। इसके अलावा वह व्यक्ति चिकित्सा सेवा संस्थान की संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हो सकता है।

  • सुरक्षा उपायचिकित्सा सेवा संस्थानों को संस्था और उसके कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कुछ उपाय लागू करने होंगे। इनमें सीसीटीवी कैमरे लगानाकेंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष और परिसर में रेगुलेटेड एंट्री शामिल हैं। इन संस्थानों में चिकित्सा सेवा कर्मियों और संस्थानों के साथ हिंसा को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों को प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिए। चिकित्सा में लापरवाही पर निगरानी के लिए उपायुक्त को कम से कम अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी स्तर के एक डॉक्टर की नियुक्ति करनी होगी।

  • चिकित्सा कर्मियों के लिए नैतिक दिशानिर्देश: चिकित्सा सेवाएं प्रदान करने वाले व्यक्तियों और संस्थानों को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा निर्धारित चिकित्सा संबंधी नैतिकता का पालन करना होगा। अन्य शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मरीजों या उनके तीमारदारों को दिए जा रहे उपचार के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करना, (ii) चिकित्सा बिलों के भुगतान की प्रतीक्षा किए बिना मरीजों के शवों को सौंपना, और (iii) विभिन्न चिकित्सा सुविधाओं और उनके अनुमानित खर्चों को प्रदर्शित करना।

  • शिकायत निवारणडॉक्टरों या चिकित्सा सेवा संस्थानों द्वारा दुर्व्यवहार या गलत उपचार की शिकायतों के लिए, जिले के उपायुक्त एक जांच का गठन करेंगे। जांच कम से कम उपमंडल अधिकारी रैंक के अधिकारी द्वारा की जाएगी। जांच कम से कम दो स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति में की जानी चाहिए। गठन के 15 दिन के अंदर जांच रिपोर्ट जमा करनी होगी जांच रिपोर्ट के आधार पर उपायुक्त उचित निर्णय लेंगे।

भाग खप्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

बिल की आवश्यकता

बिल डॉक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मियों द्वारा और उनके खिलाफ हिंसा पर रोक लगाता है। यह चिकित्सा सेवा संस्थानों की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर भी जुर्माना लगाता है। यह दुर्व्यवहार और गलत इलाज की शिकायतों की जांच के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। यह डॉक्टरों और चिकित्सा सेवा संस्थानों के लिए कुछ नैतिक अनुपालन का भी प्रावधान करता है। इन प्रावधानों के साथ एक विशेष कानून बनाने की आवश्यकता स्पष्ट नहीं हैक्योंकि ये पहले से ही विभिन्न मौजूदा कानूनों के अंतर्गत आते हैं। इसके अलावायह भी स्पष्ट नहीं है कि चिकित्सा सेवा कर्मियों द्वारा हिंसा को दंडित करने के लिए एक विशेष कानून की आवश्यकता क्यों है। हम यहां बता रहे हैं कि कैसे यह मौजूदा कानूनी ढांचे के साथ ओवरलैप होता है। 

स्वेच्छा से चोट पहुंचाने और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 के तहत दंड दिया जाता है। स्वेच्छा से चोट पहुंचाने पर एक साल तक की कैद, 1,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।3  गंभीर चोट पहुंचाने पर अधिकतम सात साल कारावास और जुर्माने की सजा हो सकती है।3  कम से कम पचास रुपए की हानि या क्षति करने वाली किसी भी शरारत के लिए दो साल तक की कैदजुर्माना या दोनों से दंडित किया जाता है।3  बिल चिकित्सा सेवा कर्मियों के खिलाफ हिंसा के साथ-साथ संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर भी कम से कम दो साल की कैद और 50,000 रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान करता है। 

मेडिकल प्रोफेशनल्स के पेशेवर आचरण को रेगुलेट करने के लिएराष्ट्रीय चिकित्सा आयोग एक्ट, 2019 एक नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण बोर्ड का प्रावधान करता है।[10]  बोर्ड यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि चिकित्सा सेवा से जुड़े व्यक्ति संबंधित राज्य चिकित्सा परिषदों के माध्यम से पेशेवर और नैतिक आचार संहिता का अनुपालन करें। मरीज और उनके रिश्तेदार चिकित्सकों के कदाचार और लापरवाही की शिकायत झारखंड राज्य चिकित्सा परिषद से कर सकते हैं।[11]  आईपीसी किसी भी उतावलेपन या लापरवाही से किए गए कार्य के कारण हुई किसी व्यक्ति की मौत पर दो साल तक की कैदजुर्माना या दोनों से दंडित करती है।3  लापरवाही की न्यायशास्त्रीय अवधारणा (जुरस्प्रूडेन्शल कॉन्सेप्ट) नागरिक और आपराधिक कानून में भिन्न-भिन्न है।[12]  आपराधिक लापरवाही में काफी हद तक लापरवाही या घोर लापरवाही शामिल होती है।12  चिकित्सा लापरवाही के मामलों में नागरिक दायित्व उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 2019 (मेडिकल प्रैक्टीशनर की सेवा) के तहत कवर किया गया है।[13],[14] 

बिल के तहत डॉक्टरों और चिकित्सा सेवा संस्थानों के लिए कुछ नैतिक अनुपालन राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर (पेशेवर आचरण) रेगुलेशन, 2023 के अंतर्गत आते हैं।[15]  इनमें रोगियों या तीमारदारों को दिए जा रहे उपचार के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करना शामिल है। बिल के तहत चिकित्सा सेवा संस्थानों को अपने अनुमानित खर्चों के साथ अपने परिसर में उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं को प्रदर्शित करना होगा। उल्लेखनीय है कि कि क्लिनिकल इस्टेब्लिशमेंट नियम, 2012 के तहत ऐसा ही एक प्रावधान मौजूद है।[16]

गलत इलाज की जांच

गलत उपचार की जांच में चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल नहीं 

बिल जिला उपायुक्त को डॉक्टरों या चिकित्सा सेवा संस्थानों द्वारा दुर्व्यवहार या गलत इलाज की शिकायतों की जांच शुरू करने का अधिकार देता है। जांच न्यूनतम दो स्वतंत्र गवाहों की उपस्थिति में कम से कम उप-विभागीय अधिकारी रैंक के अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए। बिल गवाहों की योग्यता निर्दिष्ट नहीं करता है। गलत उपचार के मामलों की जांच करते समय किए गए उपचार की जांच के लिए एक योग्य मेडिकल प्रैक्टीशनर की मौजूदगी जरूरी हो सकती है।

चिकित्सकीय लापरवाही की शिकायत की प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तावित पद्धति से भिन्न है

बिल के तहत प्रस्तावित जांच पद्धति सर्वोच्च न्यायालय के उन दिशानिर्देशों (2005) से भिन्न है जो उसने आपराधिक लापरवाही के अपराधों में डॉक्टरों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए जारी किए थे।12 न्यायालय के दिशानिर्देशों के अनुसारचिकित्सीय लापरवाही के लिए शिकायत दर्ज करने से पहलेशिकायतकर्ता को प्रारंभिक साक्ष्य देना होगा कि डॉक्टर की हरकतें लापरवाह थीं। इसे किसी दूसरे सक्षम डॉक्टर की विश्वसनीय राय के रूप में होना चाहिए जो आरोपों का पक्षधर हो। जांच अधिकारी कोऐसे मामले में आगे बढ़ने से पहले एक स्वतंत्र चिकित्सा राय भी लेनी चाहिएबेहतर हो कि सरकारी सेवा में लगे किसी डॉक्टर से।12 

छोटे चिकित्सा संस्थानों के लिए अनुपालन की शर्तें बहुत अधिक हो सकती हैं

बिल में सभी चिकित्सा सेवा संस्थानों को अपनी सुरक्षा और अपने यहां काम करने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए कुछ उपाय करने होंगे। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सीसीटीवी कैमरे लगाना, (ii) सुरक्षा टीमों की तैनाती, (iii) निगरानी के लिए एक केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष स्थापित करनाऔर (iv) उनके परिसरों तक पहुंच प्रतिबंधित करना। इनमें से कुछ उपायों का अनुपालन करनाजैसे सुरक्षा टीमों को तैनात करना और केंद्रीकृत नियंत्रण कक्ष स्थापित करनानिजी नर्सिंग होम या क्लिनिकल लेबोरेट्रीज़ जैसे छोटे चिकित्सा संस्थानों के लिए कठिन हो सकता है। इससे ऐसे संस्थानों के लिए अनुपालन की लागत भी बढ़ सकती है जिसका भार चिकित्सा सेवाओं की उच्च लागत के रूप में रोगियों पर डाला जा सकता है।

तकनीकी समिति सिर्फ सरकारी संस्थानों को होने वाले नुकसान का आकलन करेगी

बिल के तहतअदालतें अपराधी को चिकित्सा सेवा संस्थान को क्षति पर लागत मूल्य के अनुसार मुआवजा देने का आदेश पारित कर सकती हैं। सरकारी संस्थानों के लिएसंपत्ति को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए उपायुक्त एक तकनीकी समिति का गठन करेंगे। समिति में संबंधित सरकारी इंजीनियरडॉक्टर और चिकित्सा उपकरणों के विशेषज्ञ शामिल होंगे। निजी चिकित्सा सेवा संस्थानों की संपत्ति को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए ऐसी कोई रूपरेखा प्रदान नहीं की गई है।

अनुलग्नक 

तालिका 1चिकित्सा कर्मियों और संस्थानों के साथ होने वाली हिंसा को रोकने के लिए विभिन्न राज्यों में कानून

राज्य

निजी चिकित्सा संस्थानों का समावेश

जुर्माना/दंड

संपत्ति के नुकसान के लिए मुआवजा

लापरवाही के मामलों की जांच का अधिकार

लापरवाही पर चिकित्सा प्राधिकरणों में चिकित्सा विशेषज्ञ

झारखंड बिल

हां

2 साल तक की कैद और 50,000 रुपए तक का जुर्माना

हां

हां

नहीं

आंध्र प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल 6,[i],[ii]

हां

3 साल तक की कैद और 50,000 रुपए तक का जुर्माना

हां

नहीं

-

बिहार[iii]

हां

3 साल की कैद और 50,000 रुपए तक जुर्माना और/या आईपीसी के तहत कार्रवाई

हां

हां

हां

छत्तीसगढ़[iv]

हां

3 साल तक की कैद

हां

हां

हां

महाराष्ट्र, त्रिपुरा[v],[vi]

हां

3 साल तक की कैद और 50,000 रुपए तक का जुर्माना

हां

हां

हां

दिल्ली[vii]

हां

3 साल तक की कैद, 10,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों

हां

नहीं

-

गोवा[viii]

हां

3 साल तक की कैद, 50,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों

हां

हां

हां

हरियाणा[ix]

हां

3 वर्ष की कैद

हां

नहीं

-

कर्नाटक[x]

हां

50,000 रुपए तक के जुर्माने के साथ 3 साल की कैद

हां

नहीं

-

केरल7

हां

3 साल तक की कैद और 50,000 रुपए तक का जुर्माना

हां

नहीं

-

मध्य प्रदेश8

हां

3 महीने तक की कैद, 10,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों

नहीं

नहीं

-

ओड़िशा9

नहीं

3 साल तक की कैद और 50,000 रुपए तक का जुर्माना

हां

नहीं

-

तमिलनाडु[xi]

हां

10 साल तक की कैद और जुर्माना

हां

नहीं

-

उत्तर प्रदेश[xii]

हां

3 साल तक की कैद, 50,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों

हां

नहीं

-

 

[xii]. The Uttar Pradesh Medicare Service Persons and Medicare Service Institutions (Prevention of Violence and Damage to Property) Act, 2013.

 

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