स्टेट लेजिसलेटिव ब्रीफ |
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राजस्थान |
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राजस्थान कारागार बिल, 2023 |
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मुख्य विशेषताएं
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प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
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राजस्थान कारागार बिल, 2023 को 15 मार्च, 2023 को विधानसभा में पेश किया गया था। यह बिल राजस्थान कैदी एक्ट, 1960 और राज्य में कारागार एक्ट, 1894 के एप्लिकेशन को निरस्त करता है। बिल जेलों की स्थापना और रेगुलेशन तथा कैदियों की निगरानी का प्रावधान करता है। |
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भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
जेलें आपराधिक न्याय प्रणाली का एक प्रमुख हिस्सा हैं।[1] जहां वे कानून और व्यवस्था बनाए रखने में मदद करती हैं, वहीं उनसे कैदियों के सुधार और पुनर्वास को सुनिश्चित करने की भी अपेक्षा की जाती है।[2] भारत के संविधान के तहत, 'जेल' राज्य सूची के अंतर्गत आती हैं।[3] कारागार एक्ट, 1894 कैदियों के अधिकारों और जेलों का प्रशासन और रेगुलेशन प्रदान करने वाला प्राथमिक कानून रहा है।[4] इस कानून के प्रावधानों के पूरक के तौर पर राज्यों के पास अपने खुद के कानून हैं। राजस्थान कारागार एक्ट, 1960 कैदियों की हिरासत और प्रबंधन का प्रावधान करता है।[5]
पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न विशेषज्ञों और समितियों ने भारत में जेलों के कामकाज की जांच की है और कई मुद्दों पर प्रकाश डाला है, जैसे जेलों में भीड़, स्वास्थ्य और स्वच्छता की उपेक्षा, अपर्याप्त कपड़े और भोजन, और यातना तथा दुर्व्यवहार।[6],[7] 1996 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक नया अखिल भारतीय जेल मैनुअल बनाने का निर्देश दिया था, जो इन समस्याओं को हल करे।6 अदालत ने संबंधित अधिकारियों को कारागार एक्ट, 1894 को बदलने हेतु एक नया जेल कानून बनाने पर विचार करने को कहा था। अदालतों ने भी कैदियों के अधिकारों का कई बार उल्लेख किया है। सर्वोच्च न्यायालय (1979) ने माना है कि कारावास की सीमाओं में रहते हुए, कैदियों के पास मौलिक अधिकार हैं।[8]
गृह मंत्रालय ने कई जेल सुधार किए हैं। उसने मॉडल जेल मैनुअल, 2016 जारी किया था जो जेलों और कैदियों के प्रबंधन के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। मार्च 2023 तक 18 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने मैनुअल को अपनाया है।[9] मंत्रालय जेलों के आधुनिकीकरण पर परियोजना भी लागू करता है जिसमें जेल के बुनियादी ढांचे को आधुनिक बनाने और कौशल एवं पुनर्वास जैसे सुधारात्मक प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया गया है।9 एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, मई 2023 में गृह मंत्रालय ने मॉडल जेल एक्ट, 2023 को अंतिम रूप दिया है जो जेल एक्ट, 1894 का स्थान लेगा।[10] मंत्रालय ने कहा कि 1894 का एक्ट मुख्य रूप से अपराधियों को हिरासत में रखने और जेलों में अनुशासन और व्यवस्था लागू करने पर केंद्रित है। यह कैदियों के सुधार और पुनर्वास का प्रावधान नहीं करता है। 2023 का मॉडल एक्ट जेलों की स्थापना और प्रबंधन का प्रावधान करता है। यह कैदियों के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और उसके बाद की देखभाल और पुनर्वास सेवाओं जैसे कल्याण कार्यक्रम का भी प्रावधान करता है। 31 दिसंबर 2021 तक राजस्थान की जेलों में 22,938 कैदी थे।[11] यहां जेलों की संख्या सबसे अधिक (144) थी। इसके अलावा खुली जेलों की संख्या भी देश के बाकी राज्यों की तुलना में सबसे अधिक (39) थी।11 राज्य में प्रति कर्मचारी 6 कैदी थे जो राष्ट्रीय औसत 8 से कम है।11
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
आचरण के आधार पर पत्र लिखने के अधिकार को प्रतिबंधित करना उचित नहीं हो सकता है
बिल में प्रावधान है कि एक कैदी रिश्तेदारों और दोस्तों को पत्र लिख सकता है। बुरे आचरण पर अधीक्षक द्वारा पत्र लिखने की सुविधा वापस ली जा सकती है। अधीक्षक प्रत्येक पत्र की जांच करेंगे। वह कैदी से पत्र के उन हिस्सों को हटाने के लिए कह सकता है जिनमें जेल के बारे में गलत विवरण हैं। ये प्रावधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन कर सकते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि कैदियों के पास मौलिक अधिकार हैं, कुछ प्रतिबंध हैं जो उनके कैद में होने से उत्पन्न होते हैं।8 पत्र लिखने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के अभ्यास के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध केवल राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, अदालत की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के लिए उकसाने के आधार पर ही लगाए जा सकते हैं।[12] जेल में बुरा आचरण इस सूची में नहीं आएगा।
इसके अलावा अधीक्षक जेल के बारे में उन हिस्सों को भी हटा सकता है जिन्हें वह झूठा मानता है। यहां भी यही कहा जा सकता है कि झूठी जानकारी स्पीच (अभिव्यक्ति) को प्रतिबंधित करने का संवैधानिक आधार नहीं है। साथ ही अधीक्षक यह तय करने वाला तटस्थ अधिकारी नहीं हो सकता है कि जेल की स्थितियों के बारे में किसी भी जानकारी को बाहर संप्रेषित करने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं।
बिल सरकार द्वारा घोषित किये जाने वाले सक्षम प्राधिकारी को परिभाषित करता है। इस प्राधिकारी के पास किसी व्यक्ति की निवारक हिरासत, कानून के तहत नियम बनाने और आपातकालीन स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए आदेश जारी करने सहित शक्तियां हैं। बिल इस संबंध में कोई मार्गदर्शन प्रदान नहीं करता कि किस स्तर के अधिकारी को सक्षम प्राधिकारी बनाया जाए। सवाल यह है कि क्या ये प्रावधान कानून में प्रत्यायोजन (डेलिगेशन) के अनुमत स्तर से अधिक हैं।
शिकायत समिति एवं राज्य सलाहकार बोर्ड की संरचना
शिकायत निवारण समिति: बिल में कैदियों की शिकायतों के समाधान के लिए प्रत्येक जेल में एक शिकायत निवारण समिति की नियुक्ति का प्रावधान है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अध्यक्ष के रूप में अधीक्षक, (ii) जेलर, (iii) चिकित्सा अधिकारी, और (iv) कल्याण अधिकारी। अगर कोई कैदी समिति के फैसले से संतुष्ट नहीं है तो वह डीआईजी के पास अपील कर सकता है। समिति के सभी सदस्य जेल अधिकारी हैं और ऐसे अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें होने पर हितों का टकराव हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर जेलर द्वारा किसी कैदी के साथ दुर्व्यवहार किया गया है, तो वही जेलर शिकायत को दूर करने वाली समिति का हिस्सा होगा। यह भी कहा गया है, कैदी आईजी या जिला एवं सत्र न्यायाधीश (केवल वे लोग जो जेल प्रशासन प्रणाली का हिस्सा नहीं हैं) से भी शिकायत कर सकते हैं।
कैदियों के लिए राज्य सलाहकार बोर्ड: यह सरकार को जेलों के प्रबंधन, रिहाई के बाद पुनर्वास कार्यक्रमों और सरकार और गैर सरकारी संगठनों के साथ सुधारात्मक कार्यक्रमों से संबंधित कई मामलों पर सलाह देगा। बोर्ड में केवल सरकारी अधिकारी शामिल हैं जिनमें प्रभारी जेल मंत्री, जेल और पुलिस के महानिदेशक और विभिन्न विभागों के सचिव शामिल हैं। चूंकि बोर्ड जेल सुधारों से संबंधित मामलों पर सुझाव देगा, इसलिए यह तर्क दिया जा सकता है कि इसमें इस विशेष क्षेत्र के विशेषज्ञों और नागरिक समाज का प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
बिल के तहत प्रत्येक कैदी को जहां तक उचित और व्यावहारिक हो, यातना, शारीरिक और मौखिक हिंसा और स्टाफ के सदस्यों या कैदियों से उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार होगा। ये बुनियादी मानवाधिकार हैं और इन्हें उचित और व्यावहारिकता के अधीन रखना उचित नहीं हो सकता है।
बिल के तहत, कैदियों के छोटे-मोटे जेल अपराधों में खाने से इनकार करना या भूख हड़ताल पर जाना शामिल है। ऐसे अपराधों के लिए सजा में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: (i) औपचारिक चेतावनी, (ii) दस दिनों की अर्जित छूट को जब्त करना, (iii) एक महीने के विशेषाधिकारों की हानि। जेल में अनुशासन बनाए रखने के लिए भूख हड़ताल को दंडित किया जा सकता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय (1958) ने कहा था कि कैदी भोजन लेने से इनकार करें तो इससे अनुशासन प्रभावित होता है, और जेल ऐसी जगह नहीं है जहां भोजन या अन्य मामलों में विकल्प उपलब्ध हो।
[13] हालांकि ऐसी हड़तालें जेल की स्थिति और प्रशासन से संबंधित मुद्दों पर विरोध जताने का एक तरीका भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए 2000 में तमिलनाडु के पलायमकोट्टई केंद्रीय जेल में कैदियों के अधिकारों, भोजन की गुणवत्ता और बुनियादी स्वच्छता से संबंधित मुद्दों के विरोध में कैदियों ने भूख हड़ताल की थी।[14] ऐसे उदाहरण भी हो सकते हैं जब कैदी धार्मिक प्रथाओं के अनुसार उपवास करते हैं। दिल्ली और केरल के जेल कानूनों के तहत, खाना खाने से इनकार करना एक जेल अपराध माना जाता है, जब तक कि यह धार्मिक आधार पर न हो।[15],[16]
बिल में प्रावधान है कि जेल में बंद किसी भी व्यक्ति को निर्धारित उचित प्रतिबंधों के अधीन संचार का अधिकार होगा। उन व्यक्तियों के लिए उचित प्रावधान किए जाएंगे जिनके साथ सिविल या गैर-दोषी आपराधिक कैदी संवाद करना चाहते हैं। हालांकि बिल सजायाफ्ता आपराधिक कैदियों के लिए ऐसी सुविधाओं का प्रावधान नहीं करता है। इसमें उन दोषी आपराधिक कैदियों के मामले में वकीलों से मुलाकात शामिल हो सकती है जिन्होंने अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की है। इस चूक के पीछे का तर्क स्पष्ट नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय (1979) ने माना था कि कैदियों को सुरक्षा मानदंडों (जैसे तलाशी और अनुशासन) के अधीन मुलाक़ात का अधिकार होना चाहिए।8
विभिन्न विशेषज्ञों और समितियों और मॉडल जेल मैनुअल, 2016 ने जेल सुधारों पर सुझाव दिए हैं। राजस्थान जेल बिल, 2023, इनमें से कुछ सुझावों के लिए प्रावधान नहीं करता है। हम नीचे उनकी चर्चा करते हैं।
2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों को अपनी सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश दिया था।[17] उसने कहा था कि सीसीटीवी कैमरे कैदियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने में मदद करेंगे और अधिकारियों को कैदियों के बीच अनुशासन बनाए रखने में मदद करेंगे। अदालत के निर्देश के बाद गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को सभी जेलों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का निर्देश दिया।[18] इसके अलावा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, मॉडल जेल एक्ट, 2023 जेल प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए तकनीक के उपयोग का प्रावधान करता है।
विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अनुसार विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जाना चाहिए, अगर उन्हें उनके कथित अपराध के लिए कारावास की अधिकतम अवधि की आधी अवधि तक जेल में रखा गया है (मौत की सजा वाले अपराधों को छोड़कर)।[19] 31 दिसंबर, 2021 तक भारत में 5.5 लाख कैदी थे, जिनमें से 4.3 लाख (77%) विचाराधीन कैदी थे।11 राजस्थान की जेलों में 22,938 कैदी थे, जिनमें से 17,954 (78%) विचाराधीन थे।11 जेलों में विचाराधीन कैदी भीड़ बढ़ा सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय जेलों में कैदियों की भीड़ के मुद्दे पर प्रकाश डाला था।6 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (2021) ने भी जेलों में कैदियों की भीड़ की समस्या का उल्लेख है।11 कैदियों की भीड़ का अर्थ यह है कि जेलों में स्वीकृत क्षमता से अधिक कैदी रह रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप साफ-सफाई का अभाव होता है, और कैदियों के लिए जगह कम होती है।11 31 दिसंबर, 2021 तक राजस्थान में अधिभोग (ऑक्यूपेंसी) दर 100 थी, जो 130 के अखिल भारतीय आंकड़े से कम है।11 अधिभोग दर उत्तराखंड (185), उत्तर प्रदेश (185) और दिल्ली (183) जैसे राज्यों में सबसे अधिक थी।
विचाराधीन कैदियों की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए 2013 में गृह मंत्रालय ने एक एडवाइजरी जारी कर सभी जिलों में विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति की स्थापना का निर्देश दिया था।[20] 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण को गृह मंत्रालय और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों के साथ विचाराधीन कैदी समीक्षा समितियां स्थापित करने का निर्देश दिया।[21]
2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि महिला कैदियों को अपने बच्चों को छह साल की उम्र तक जेल में अपने साथ रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।[22] उसके बाद बच्चे को सरोगेट (मां के विवेक के आधार पर) को सौंप दिया जाएगा या समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित संस्थान में भेज दिया जाएगा। जब भी संभव हो, बच्चे को उस कस्बे या शहर से बाहर स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिए जहां जेल स्थित है। मॉडल जेल मैनुअल, 2016, छह साल की उम्र तक के बच्चों को जेल के अंदर अपनी मां के साथ रहने का प्रावधान करता है, अगर कोई अन्य व्यवस्था नहीं की जा सकती है।1 इसके अलावा, जेल प्रशासन बच्चों के पालन-पोषण के लिए एक उपयुक्त वातावरण तैयार करेगा। केरल जेल और सुधार सेवा (प्रबंधन) एक्ट, 2010 में प्रत्येक महिला जेल में एक नर्सरी स्कूल और क्रेच का प्रावधान किया गया है।16
अपराधों का वर्गीकरण: बिल कैदियों द्वारा किए गए कुछ कृत्यों को छोटे और बड़े अपराधों के रूप में वर्गीकृत करता है। छोटे और बड़े अपराधों के लिए अलग-अलग सजा दी जाती हैं। बिल के अनुसार, "एक्ट के तहत कोई कृत्य या चूक या नियमों द्वारा घोषित जेल के किसी रेगुलेशन का जानबूझकर पालन न करना" छोटे के साथ-साथ एक बड़े अपराध के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
जेल में गंभीर अपराध: "गंभीर जेल अपराध" के मामलों में कुछ विवरण पनिशमेंट बुक में दर्ज किए जाएंगे, जैसे अपराध साबित करने वाले गवाह का नाम और कैदी का बचाव। बिल गंभीर जेल अपराधों को परिभाषित नहीं करता है बल्कि प्रमुख जेल अपराधों को परिभाषित करता है।
[1]. Model Prison Manual, 2016, Ministry of Home Affairs.
[2]. Implementation Of the Recommendations of All-India Committee on Jail Reform (1980-83), Volume I, Bureau of Police Research & Development Ministry of Home Affairs, 2003.
[3]. Item 4, List II-State List, Seventh Schedule, The Constitution of India.
[6]. Shri Rama Murthy v State of Karnataka, Supreme Court, December 23, 1996.
[8]. 1980 AIR 1579, Sunil Batra v Delhi Administration, Supreme Court, December 20, 1979.
[9]. Unstarred Question No. 1660, Rajya Sabha, Ministry of Home Affairs, March 15 2023.
[10]. “With the objective of holistically providing guidance and addressing the gaps in the existing Prisons Act, MHA under the able guidance of Home Minister Shri Amit Shah, finalises a comprehensive ‘Model Prisons Act, 2023’, which may serve as a guiding document for the States”, Press Information Bureau, Ministry of Home Affairs, May 12, 2023.
[11]. Prison Statistics India 2021, National Crime Records Bureau, Ministry of Home Affairs.
[12]. Articles 19(1)(a) and 19 (2), The Constitution of India.
[13]. AIR 1959 All 164, 1959 CriLJ 283, Lakshmi Narain vs The State, Allahabad High Court, August 28, 1958.
[14]. 2000 (4) CTC 1, Viduthalai Chiravasi Punar ... vs The State Of Tamil Nadu Rep By Its, , Madras High Court, June 20, 2000.
[17]. CRL.M.P. NO.16086 OF 1997 in CRL.M.P. NO.4201 OF 1997, Dilip K. Basu Versus State of West Bengal & Ors, the Supreme Court of India, July 24, 2015.
[18]. “Hon’ble Supreme Court direction for installation of CCTV Cameras in all prisons of the Country”, Ministry of Home Affairs, December 10, 2015.
[20]. “Use of Section 436A of the Cr.P.C to reduce overcrowding of prisons”, Ministry of Home Affairs, January 17, 2013.
[21]. Writ Petition (Civil) No (s).406/2013, Re-Inhuman Conditions In 1382 Prisons, Order, April 24, 2015.
[22]. Writ Petition (Civil) No. 559 of 1995, R.D Upadhyay v. State of Andhra Pradesh & Ors., Supreme Court, April 13, 2006.
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