मंत्रालय: 
ऊर्जा

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • प्रस्तुत बिल ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 में संशोधन करता है ताकि केंद्र सरकार को कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना निर्दिष्ट करने की शक्ति दी जा सके। 
  • निर्दिष्ट उपभोक्ताओं से यह अपेक्षा की जा सकती है कि वे अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों का एक हिस्सा नॉन-फॉसिल स्रोतों से हासिल करें।
  • भवनों के लिए ऊर्जा संरक्षण संहिता उन कार्यालयों और आवासीय भवनों पर भी लागू होगी जिनका कनेक्टेड लोड 100 किलोवॉट या उससे अधिक है। 
  • ऊर्जा खपत के मानक वाहनों और जहाजों के लिए निर्दिष्ट किए जा सकते हैं।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग का उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन को कम करना और इस प्रकार जलवायु परिवर्तन से निपटना है। प्रश्न यह है कि क्या इस योजना को रेगुलेट करने के लिए ऊर्जा मंत्रालय उपयुक्त है। इसके अतिरिक्त एक प्रश्न यह भी है कि क्या एक्ट में ही कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग के मार्केट रेगुलेटर का प्रावधान होना चाहिए।
  • एक ही गतिविधि अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा बचत और कार्बन ट्रेडिंग सर्टिफिकेट्स के अंतर्गत पात्र हो सकती है। बिल में यह निर्दिष्ट नहीं है कि क्या ये सर्टिफिकेट्स इंटरचेंजेबल होंगे।
  • निर्दिष्ट उपभोक्ताओं को कुछ नॉन-फॉसिल ऊर्जा उपयोग बाध्यताओं को पूरा करना होगा। किसी क्षेत्र में डिस्कॉम्स के बीच सीमित प्रतिस्पर्धा को देखते हुए उपभोक्ताओं के पास एनर्जी मिक्स का विकल्प नहीं हो सकता।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 में ऊर्जा खपत के रेगुलेशनरेगुलेक दिया गया हैावधाहै कि वे तथा ऊर्जा दक्षता एवं ऊर्जा संरक्षण से संबंधित फ्रेमवर्क दिया गया है।[1] ऊर्जा दक्षता का अर्थ है, एक ही काम को करने के लिए कम ऊर्जा की खपत। एक्ट के तहत ऊर्जा दक्षता ब्यूरो बनाया गया है जोकि ऊर्जा खपत के रेगुलेशंस और मानकों के बारे में सुझाव देता है। ये रेगुलेशंस और मानक उपकरणों, वाहनों, औद्योगिक एवं कमर्शियल इस्टैबलिशमेंट्स और भवनों पर लागू होते हैं। ऊर्जा संरक्षण और दक्षता से जुड़े प्रयासों से जलवायु परिवर्तनों को कम करने में मदद मिलती है। इन मोर्चों पर प्रयास करने से ऊर्जा की जरूरत कम होती है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम होता है। भारत जैसे देश अपनी ऊर्जा संबंधी जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर करते हैं, इसलिए उनकी ऊर्जा सुरक्षा पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।[2] ब्यूरो के अनुमानों के अनुसार, ऊर्जा दक्ष कार्यक्रमों की मदद से भारत ने 2019-20 में 28 मिलियन टन तेल के बराबर ऊर्जा की बचत की है (इतनी ऊर्जा से एक वर्ष में 20 वॉट के 180 करोड़ एलईडी बल्ब 24X7 जल सकते हैं)।[3]

कोप-26 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने निम्नलिखित प्रतिबद्धताएं जताई थीं जोकि ऊर्जा दक्षता के प्रयासों के लिए उपयुक्त हो सकते हैं: (i) 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को एक बिलियन टन तक कम करना, और (ii) 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन गहनता को 2005 के स्तर की तुलना में 45% कम करना।[4]  कार्बन गहनता का अर्थ होता है, जीडीपी की हर यूनिट कितना कार्बन उत्सर्जित करती है। इसके अतिरिक्त भारत ने 2030 तक 500 GW की नॉन-फॉसिल ऊर्जा क्षमता हासिल करने और ऊर्जा की अपनी 50% जरूरत को अक्षय ऊर्जा से पूरा करने का लक्ष्य रखा है।इसके मद्देनजर ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) बिल, 2022 को अगस्त 2020 में लोकसभा में पेश किया गया।[5] उसे लोकसभा में पारित कर दिया गया है और राज्यसभा में यह फिलहाल लंबित है। बिल निम्नलिखित के लिए 2001 के एक्ट में संशोधन का प्रयास करता है: (i) कोप-26 के लक्ष्यों को आसान बनाना, और (ii) नॉन-फॉसिल स्रोतों के अनिवार्य उपयोग और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग जैसी अवधारणाओं को शुरू करना, ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था का तेजी से डीकार्बनाइजेशन सुनिश्चित किया जा सके।

मुख्य विशेषताएं

  • कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग: बिल केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम को निर्दिष्ट करे। कार्बन क्रेडिट का अर्थ है, कार्बन उत्सर्जन की एक निर्दिष्ट मात्रा का व्यापार योग्य परमिट। केंद्र सरकार या कोई अधिकृत एजेंसी इस योजना के अंतर्गत पंजीकृत और उसका अनुपालन करने वाली संस्थाओं को कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट्स जारी कर सकती है। संस्थाएं सर्टिफिकेट का व्यापार करने के लिए अधिकृत होंगी। कोई अन्य व्यक्ति भी स्वेच्छा से कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट खरीद सकता है।
  • ऊर्जा के नॉन-फॉसिल स्रोतों के इस्तेमाल की बाध्यता: एक्ट केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह ऊर्जा की खपत के मानकों को निर्दिष्ट करे। बिल इसमें यह जोड़ता है कि सरकार किसी निर्दिष्ट उपभोक्ता से यह अपेक्षा कर सकती है कि वह ऊर्जा की खपत का एक न्यूनतम हिस्सा नॉन-फॉसिल स्रोत से प्राप्त करे। अलग-अलग नॉन-फॉसिल स्रोतों और उपभोक्ताओं की श्रेणियों के लिए खपत की अलग-अलग सीमाएं निर्दिष्ट की जा सकती हैं। निर्दिष्ट उपभोक्ताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उद्योग जैसे खनन, स्टील, सीमेंट, टेक्सटाइल, रसायन और पेट्रोरसायन, (ii) रेलवे सहित परिवहन क्षेत्र, और (iii) व्यावसायिक इमारतें, जैसा कि अनुसूची में निर्दिष्ट है। नॉन-फॉसिल स्रोतों से ऊर्जा खपत की बाध्यता पूरी न करने की स्थिति में 10 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा होगी। इसके अतिरिक्त भी जुर्माना लगेगा। इसके लिए यह देखा जाएगा कि निर्धारित मानदंड से कितने अधिक यूनिट ऊर्जा की खपत की गई। उतने ही यूनिट तेल की जो कीमत होगी, उसका दोगुना जुर्माना वसूला जाएगा।
  • इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण संहिता: एक्ट केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह इमारतों के लिए ऊर्जा संरक्षण संहिता निर्दिष्ट करे। संहिता क्षेत्रफल के लिहाज से ऊर्जा खपत के मानदंड निर्दिष्ट करती है। बिल इसमें संशोधन करके ‘ऊर्जा संरक्षण और टिकाऊ भवन संहिता’ का प्रावधान करता है। यह नई संहिता ऊर्जा दक्षता एवं संरक्षण, अक्षय ऊर्जा के उपयोग, और हरित भवनों की अन्य जरूरतों से संबंधित नियमों का प्रावधान करेगी। एक्ट के अंतर्गत ऊर्जा संरक्षण संहिता निम्न इमारतों पर लागू होती है: (i) संहिता की अधिसूचना के बाद निर्मित, और (ii) 100 किलोवॉट (kW) के न्यूनतम कनेक्टेड लोड या 120 किलो वोल्ट एंपियर (kVA) के कॉन्ट्रैक्ट लोड वाली। बिल के अंतर्गत नई ऊर्जा संरक्षण और टिकाऊ भवन संहिता उपरिलिखित मानदंडों को पूरा करने वाली कार्यालयी और आवासीय इमारतों पर लागू होगी। बिल राज्य सरकारों को इस लोड की सीमाओं को कम करने का अधिकार देता है।
  • वाहनों और जलयानों (वेसेल्स) के लिए मानदंड: एक्ट के अंतर्गत ऊर्जा उपभोग के मानदंड ऐसे उपकरणों और घरेलू उपयोग के उपकरणों के लिए निर्दिष्ट किए जा सकते हैं जोकि ऊर्जा की खपत, उसे उत्पादित, ट्रांसमिट या सप्लाई करते हैं। बिल वाहनों (जैसा मोटर वाहन एक्ट, 1988 में स्पष्ट है) और जलयानों (जहाज और नावों सहित) को शामिल करने के लिए इसके दायरे को बढ़ाता है। मानदंडों का पालन न करने की स्थिति में 10 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा है। जलयानों के मामले में अनुपालन न करने की स्थिति में अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा। निर्धारित मानदंड से जितने यूनिट अधिक ऊर्जा की खपत की गई होगी, उतने ही यूनिट तेल की कीमत का दोगुना जुर्माना वसूला जाएगा। ईंधन खपत के नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहन निर्माताओं को बेचे गए प्रत्येक वाहन पर 50,000 रुपए तक का जुर्माना चुकाना होगा।
  • बीईई की गवर्निग काउंसिल का संयोजन: एक्ट में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) के गठन का प्रावधान है। ब्यूरो की एक गवर्निंग काउंसिल होती है जिसमें 20 से 26 सदस्य होते हैं। इन सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) छह विभागों के सचिव, (ii) रेगुलेटरी अथॉरिटीज़ जैसे केंद्रीय बिजली अथॉरिटी और भारतीय मानक ब्यूरो के प्रतिनिधि, और (iii) उद्योग जगत और उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकतम चार सदस्य। इसके स्थान पर बिल सदस्यों की संख्या 31 से 37 के बीच करता है। यह सचिवों की संख्या बढ़ाकर 12 करता है। इसके अतिरिक्त उद्योग जगत और उपभोक्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों की अधिकतम संख्या सात करता है।

भाग ख : प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग का रेगुलेशन

बिल केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि वह कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना को निर्दिष्ट करे। कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग ऐसा व्यापार योग्य परमिट होता है जोकि धारक को एक निश्चित मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड या दूसरी ग्रीनहाउस गैसें जैसे मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जित करने की अनुमति देता है। यह किसी गतिविधि में उत्सर्जन को कम करके, या अवशोषण के लिए कार्बन सिंक तैयार करके (जैसे पेड़ लगाकर) अर्जित किया जा सकता है। ऐसी कोई भी संस्था कार्बन क्रेडिट्स खरीद सकती है जोकि अपने लिए निर्दिष्ट की गई मात्रा से अधिक उत्सर्जन करती है। कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना और इस प्रकार जलवायु परिवर्तन से निपटना है। हम बिल के प्रावधानों से जुड़े कुछ मुद्दों पर यहां चर्चा कर रहे हैं। 

प्रश्न यह है कि कौन सा मंत्रालय कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना को रेगुलेट करने के लिए उपयुक्त है

एक्ट के अनुसार, ऊर्जा मंत्रालय योजना के रेगुलेशन का नोडल मंत्रालय होगा और इसी मंत्रालय के तहत गठित ऊर्जा दक्षता ब्यूरो कार्यान्वयन एजेंसी होगा। भारत सरकार (कार्य आबंटन) नियम, 1961 के अनुसार, ऊर्जा मंत्रालय निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार है: (i) ऊर्जा क्षेत्र की सामान्य नीति और ऊर्जा नीति एवं समन्वय से संबंधित मामले, और (ii) बिजली क्षेत्र से संबंधित ऊर्जा संरक्षण और ऊर्जा दक्षता।[6] भारत में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी भूमिका है (2016 में लगभग 75%)।[7] हालांकि कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग का दायरा ऊर्जा क्षेत्र से बड़ा हो सकता है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कृषि (14%) और औद्योगिक प्रक्रियाओं (8%) का भी बड़ा हिस्सा है (देखें तालिका 1)।इसके अतिरिक्त भूमि उपयोग, भूमि उपयोग में बदलाव और वन क्षेत्र, वह मुख्य क्षेत्र है जो नेट कार्बन सिंक प्रदान करता है, यानी ग्रीनहाउस गैसों का अवशोषण करता है।7 2016 में इस क्षेत्र ने शुद्ध आधार पर अन्य क्षेत्रों द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों का लगभग 11% अवशोषण किया था।7

कार्य आबंटन नियमों के अंतर्गत पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय निम्नलिखित के रेगुलेशन के लिए जिम्मेदार है: (i) ‘जलवायु परिवर्तन और संबंधित मामले’ (ii) पर्यावरणीय नियम, और (iii) वानिकी।यूएसए, यूके और स्विट्जरलैंड जैसे अधिकार क्षेत्रों में पर्यावरण मंत्रालय या पर्यावरण रेगुलेटर इस बिल में प्रस्तावित योजना के समान योजनाओं को लागू करते हैं (जिन्हें एमिशन ट्रेडिंग या कैप-एंड-ट्रेड योजनाएं कहा जाता है।[8],[9],[10]

तालिका 1: 2016 में भारत के विभिन्न क्षेत्रों का कुल उत्सर्जन (मिलियन टन CO2 समतुल्य में)

क्षेत्र

राशि

% हिस्सा

ऊर्जा

2,129

75%

  इसमें

   

     ऊर्जा उद्योग

1,207

43%

     मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग और निर्माण

398

14%

    परिवहन

274

10%

कृषि

408

14%

औद्योगिक प्रक्रियाएं और उत्पाद उपयोग

226

8%

कचरा

75

3%

कुल

2,839

100%

भूमि उपयोग, भूमि उपयोग में बदलाव और वानिकी

-308

 

शुद्ध योग

2,531

 

स्रोत: तालिका 2.35, भारत का कुल उत्सर्जन 2011-2016, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की तीसरी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट 2021, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय; पीआरएस।

यह स्पष्ट नहीं है कि कार्बन क्रेडिट मार्केट को कौन रेगुलेट करेगा

आम तौर पर संबंधित क्षेत्र के रेगुलेटर ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म्स को रेगुलेट करते हैं। उदाहरण के लिए शेयर और कमोडिटी ट्रेडिंग को सिक्योरिटीज़ एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) द्वारा रेगुलेट किया जाता है।[11] बिजली की ट्रेडिंग को केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग (सीईआरसी) के जरिए रेगुलेट किया जाता है।[12]  ट्रेडिंग के लिए रेगुलेटिंग एंटिटीज़ को संबंधित एक्ट्स में निर्दिष्ट किया जाता है। बिल में यह स्पष्ट नहीं है कि इन कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट्स को कैसे ट्रेड किया जाएगा या कौन इस ट्रेडिंग को रेगुलेट करेगा। प्रश्न यह है कि अगर कोई रेगुलेटर होना चाहिए, तो क्या उसे एक्ट में ही निर्दिष्ट होना चाहिए। 

उल्लेखनीय है कि ऊर्जा संरक्षण एक्ट ऊर्जा बचत सर्टिफिकेट्स का प्रावधान करता है।[13] एक्ट इन सर्टिफिकेट्स की ट्रेडिंग के लिए रेगुलेटर को निर्दिष्ट नहीं करता। ये सर्टिफिकेट्स पावर एक्सचेंज में ट्रेड किए जाते हैं जिनका रेगुलेशन सीईआरसी द्वारा किया जाता है।[14],[15]

एक ही गतिविधि अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा बचत और कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना के अंतर्गत पात्र हो सकती है

इस समय भारत के ऊर्जा क्षेत्र में दो मुख्य ट्रेडिंग योजनाएं काम कर रही हैं: (i) अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए बिजली एक्ट, 2003 के अंतर्गत अक्षय ऊर्जा सर्टिफिकेट्स, और (ii) ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 के अंतर्गत ऊर्जा बचत सर्टिफिकेट्स।15,[16] बिल कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए व्यापार योग्य कार्बन क्रेडिट सर्टिफिकेट्स इसमें जोड़ता है। यही गतिविधि इन योजनाओं में अलग से कवर होती हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई बिजली उत्पादन कंपनी अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करती है तो उसे अक्षय ऊर्जा सर्टिफिकेट मिलता है। संभव है कि अक्षय ऊर्जा उत्पादित करते समय उसने कार्बन उत्सर्जन कम किया हो, तो इस प्रकार वह कार्बन क्रेडिट हासिल करने की भी पात्र होगी। इसी प्रकार ऊर्जा की बचत के सभी उपाय, कार्बन उत्सर्जन में कटौती के उपाय साबित हो सकते हैं- चूंकि वे आवश्यक ऊर्जा उत्पादन की मात्रा कम करते हैं और इस प्रकार कार्बन उत्सर्जन को कम करते हैं। बिल यह निर्दिष्ट नहीं करता कि ये सर्टिफिकेट्स इंटरचेंजेबल होंगे या नहीं।

नॉन-फॉसिल स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने की बाध्यता और इस दिशा में समस्याएं

बिल कहता है कि सरकार कुछ निर्दिष्ट उपभोक्ताओं से यह अपेक्षा कर सकती है कि वे ऊर्जा की खपत का एक न्यूनतम हिस्सा नॉन-फॉसिल स्रोतों से पूरा करें। विभिन्न नॉन-फॉसिल स्रोतों और उपभोक्ताओं की श्रेणियों के लिए खपत की अलग-अलग सीमाएं निर्दिष्ट की जा सकती है। निर्दिष्ट उपभोक्ताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उद्योग जैसे खनन, स्टील, सीमेंट, टेक्सटाइल, रसायन और पेट्रोरसायन, (ii) रेलवे सहित परिवहन क्षेत्र, और (iii) व्यावसायिक इमारतें, जैसा कि अनुसूची में निर्दिष्ट है। बाध्यता पूरी न करने की स्थिति में 10 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा होगी। बिजली उपभोक्ताओं की विभिन्न श्रेणियों में इस्तेमाल होने वाली ऊर्जा का एक प्रमुख प्रकार है। वर्तमान में अधिकतर उपभोक्ताओं के पास विशिष्ट स्रोत से उत्पादित होने वाली बिजली को खरीदने का विकल्प नहीं हो सकता। उपभोक्ता के लिए बिजली की जरूरत पूरा करने के संभावित स्रोत निम्नलिखित हो सकते हैं: (i) बिजली वितरण कंपनी (डिस्कॉम) की सप्लाई, (ii) उत्पादक से सीधा खरीद, या (iii) कैप्टिव उत्पादन (अपने आप उत्पादन करना)।

डिस्कॉम की आपूर्ति में एनर्जी मिक्स का विकल्प: आम तौर पर कमर्शियल इस्टैबलिशमेंट्स जैसे दिल्ली का कोई होटल, अपने इलाके के डिस्कॉम से बिजली खरीदेगा। बिल के अंतर्गत उस पर यह बाध्यता लगाई जा सकती है कि वह नॉन-फॉसिल स्रोत से बिजली खरीदे। किसी इलाके में बिजली सप्लाई में मोनोपोली होती है, यानी इलाके में सभी उपभोक्ताओं को बिजली सप्लाई करने वाला सिर्फ एक डिस्कॉम होता है। इसलिए यह होटल के नियंत्रण में नहीं है या उसके पास इसका विकल्प नहीं है कि वह खरीदी जाने वाली बिजली में मिश्रण कर सके, चूंकि बिजली वितरण कंपनी बिजली मिश्रण यानी एनर्जी मिक्स के संबंध में फैसला करती है।

ओपन एक्सेस में दिक्कतें: जून 2022 में बिजली नियमों में संशोधनों को अधिसूचित किया गया था। इसमे 100 kW के न्यूनतम लोड वाले उपभोक्ताओं को अपने पसंद के उत्पादक से हरित ऊर्जा प्राप्त करने की अनुमति दी गई है (जिसे ओपन एक्सेस कहा जाता है)।[17] पहले यह सीमा 1 MW थी। नियमों के अनुसार, हरित ऊर्जा में अक्षय ऊर्जा जैसे सौर, पवन और हाइड्रो, तथा ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया शामिल हैं। हालांकि ऊर्जा मंत्रालय ने ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) को सूचना दी थी कि अधिकतर राज्यों में उपभोक्ताओं के लिए ओपन एक्सेस असल में संभव ही नहीं है क्योंकि रेगुलेटरी आयोगों ने ओपन एक्सेस के लिए उच्च शुल्क निर्धारित किए हैं।[18]

नई तकनीकों पर बाध्यता का असर: बिल के अंतर्गत यह प्रयास किया गया है कि नॉन-फॉसिल ऊर्जा उपयोग की बाध्यता के जरिए इन नए स्रोतों की मांग और उन्हें अपनाने को बढ़ावा दिया जाए। नॉन-फॉसिल स्रोतों को बिल, एक्ट या बिजली एक्ट, 2003 में निर्दिष्ट नहीं किया गया है। बिल में ऊर्जा को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल) या गैर जीवाश्म (नॉन-फॉसिल) स्रोतों या अक्षय स्रोतों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को कोई भी प्रकार। इस प्रकार वह नॉन-फॉसिल स्रोतों और अक्षय स्रोतों (जिसमें सौर, पवन और हाइड्रो जैसे स्रोत शामिल होंगे) के बीच अंतर करता है। बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार, नॉन-फॉसिल स्रोतों में बायोमास, ग्रीन हाइड्रोजन, ग्रीन अमोनिया और इथेनॉल शामिल हैं।  

इनमें से कुछ स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन बहुत व्यापक नहीं हो सकता, जिन तक उपभोक्ताओं की पहुंच हो। उदाहरण के लिए भारत की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता में बायोमास का हिस्सा अगस्त 2022 में 2.5% था।[19]  ग्रीन हाइड्रोजन और ग्रीन अमोनिया जैसे तकनीकें अभी शुरुआती चरण में हैं।3  वर्तमान में उनसे सस्ती दर पर ऊर्जा उत्पादन करना व्यावहारिक नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त ऊर्जा औद्योगिक गतिविधियों का मुख्य इनपुट है और ऐसी बाध्यता से उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।

बिजली एक्ट, 2003 में अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अलग दृष्टिकोण पेश किया गया है। इसमें डिस्कॉम्स, जोकि उत्पादकों से थोक में खरीद करते हैं और अंतिम उपयोगकर्ता को सप्लाई करते हैं, के लिए यह अनिवार्य है कि वे अक्षय स्रोतों से एक निश्चित मात्रा में बिजली की खरीद करें।


[2]. Energy Statistics India 2022, Ministry of Statistics and Programme Implementation.

[3]. One Tonne of Oil Equivalent Energy means the amount of energy released from burning one tonne of crude oil.  One Million Tonne of Oil Equivalent Energy is equal to 11.63 billion kWh (Units).

Draft National Electricity Plan, Central Electricity Authority, September 2022.

[4]. “India’s Stand at COP-26”, Press Information Bureau, Ministry of Environment, Forest, and Climate Change, February 3, 2022.

[8]. Website of Environment Protection Agency, USA, as accessed on September 23, 2022.

[9]. Section 9, The Greenhouse Gas Emissions Trading Scheme Order 2020, United Kingdom; Guidance - Participating in the UK ETS, Website of Government of United Kingdom as accessed on September 23, 2022.

[10]. “Measures CO2 Act”, Website of Federal Office for Environment, Switzerland, as accessed on September 23, 2022.

[12]. Section 66, Electricity Act, 2003.

[15]. PAT Scheme, Website of Bureau of Energy Efficiency as accessed on August 4, 2022.

[17]. G.S.R. 418 (E), The Gazette of India, Ministry of New and Renewable Energy, June 3, 2022.

[18]. 26th Report: Review of Power Tariff Policy, Standing Committee on Energy, August 2022.

[19]. Monthly Report on Installed Capacity-August 2022, Central Electricity Authority.

 

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