जन्म और मृत्यु पंजीकरण एक्ट, 1969 जन्म और मृत्यु के रेगुलेशन और पंजीकरण का प्रावधान करता है। जन्म और मृत्यु का पंजीकरण समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है, जो संसद और राज्य विधानसभाओं, दोनों को इस विषय पर कानून बनाने की शक्ति देता है।[1] 2019 तक जन्म के पंजीकरण का राष्ट्रीय स्तर 93% था और मृत्यु पंजीकरण का 92% था।[2] विधि आयोग (2018) ने जन्म और मृत्यु पंजीकरण एक्ट, 1969 में विवाह पंजीकरण को शामिल करने का सुझाव दिया था।[3]
जन्म और मृत्यु पंजीकरण (संशोधन) बिल, 2023, 1969 के एक्ट में संशोधन का प्रयास करता है। इस बिल को 26 जुलाई, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया।
बिल की मुख्य विशेषताएं
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जन्म और मृत्यु का डेटाबेस: एक्ट भारत के रजिस्ट्रार-जनरल की नियुक्ति का प्रावधान करता है जो जन्म और मृत्यु के पंजीकरण के लिए सामान्य निर्देश जारी कर सकता है। बिल में कहा गया है कि रजिस्ट्रार जनरल पंजीकृत जन्म और मृत्यु का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाएगा। मुख्य रजिस्ट्रार (राज्यों द्वारा नियुक्त) और रजिस्ट्रार (प्रत्येक स्थानीय क्षेत्र क्षेत्राधिकार के लिए राज्यों द्वारा नियुक्त) पंजीकृत जन्म और मृत्यु के डेटा को राष्ट्रीय डेटाबेस के साथ शेयर करने के लिए बाध्य होंगे। मुख्य रजिस्ट्रार राज्य स्तर पर ऐसा ही डेटाबेस बनाएगा।
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इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणपत्र: एक्ट में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति: (i) रजिस्ट्रार से यह कह सकता है कि वह जन्म और मृत्यु रजिस्टर में किसी प्रविष्टि की तलाश करे, और (ii) रजिस्टर में जन्म या मृत्यु से संबंधित कोई उद्धरण प्राप्त कर सकता है। बिल इसमें संशोधन करके उद्धरण के बजाय जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र (इलेक्ट्रॉनिक या अन्य रूप से) प्राप्त करने का प्रावधान करता है।
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माता-पिता और सूचना देने वालों का आधार विवरण जरूरी: एक्ट में कुछ व्यक्तियों को रजिस्ट्रार को जन्म और मृत्यु की जानकारी देनी होती है। उदाहरण के लिए, जिस अस्पताल में बच्चा पैदा हुआ है, उसके प्रभारी चिकित्सा अधिकारी को जन्म की जानकारी देनी होती है। बिल में कहा गया है कि, जन्म के मामलों में, निर्दिष्ट व्यक्तियों को माता-पिता और सूचना देने वाले, यदि उपलब्ध हो, का आधार नंबर भी प्रदान करना होगा। यह प्रावधान निम्नलिखित पर भी लागू होता है: (i) जेल में जन्म होने की स्थिति में, जेलर, और (ii) होटल या लॉज का प्रबंधक, अगर ऐसे स्थान पर जन्म हुआ है। इसके अलावा यह निर्दिष्ट व्यक्तियों की सूची का विस्तार करता है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) गैर-संस्थागत एडॉप्शन की स्थिति में एडॉप्टिव माता-पिता, (ii) सरोगेसी के माध्यम से जन्म की स्थिति में जैविक माता-पिता, और (iii) सिंगल पेरेंट या अविवाहित मां से जन्मे बच्चे की स्थिति में पेरेंट।
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कनेक्टिंग डेटाबेस: बिल में कहा गया है कि राष्ट्रीय डेटाबेस को ऐसे अधिकारियों को उपलब्ध कराया जा सकता है, जो दूसरे डेटाबेस तैयार या मेनटेन करते हैं। इन डेटाबेस में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जनसंख्या रजिस्टर, (ii) मतदाता सूची, (iii) राशन कार्ड, और (iv) अधिसूचित कोई अन्य राष्ट्रीय डेटाबेस। राष्ट्रीय डेटाबेस के उपयोग को केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। इसी प्रकार राज्य डेटाबेस को उन अधिकारियों को उपलब्ध कराया जा सकता है, जो राज्य के दूसरे डेटाबेस को तैयार या मेनटेन करते हैं। यह राज्य सरकार की मंजूरी के अधीन होगा।
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जन्म प्रमाणपत्र का उपयोग: बिल में यह अपेक्षित है कि बिल के प्रभाव में आने पर या उसके बाद पैदा हुए व्यक्तियों के जन्म की तारीख और स्थान को साबित करने के लिए जन्म और प्रमाणपत्र का उपयोग किया जाएगा। इस जानकारी का उपयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए किया जाएगा: (i) किसी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश, (ii) मतदाता सूची तैयार करना, (iii) सरकारी पद पर नियुक्ति, और (iv) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कोई अन्य उद्देश्य।
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अपील की प्रक्रिया: रजिस्ट्रार या जिला रजिस्ट्रार की किसी कार्रवाई या आदेश से पीड़ित कोई भी व्यक्ति क्रमशः जिला रजिस्ट्रार या मुख्य रजिस्ट्रार के पास अपील कर सकता है। यह अपील कार्रवाई या आदेश प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर की जानी चाहिए। जिला रजिस्ट्रार या मुख्य रजिस्ट्रार को अपील की तारीख से 90 दिनों के भीतर अपना निर्णय देना होगा।
विचारणीय मुद्दे
बिल संविधान का उल्लंघन कर सकता है
जन्म प्रमाणपत्र का उपयोग
बिल में कुछ उद्देश्यों के लिए व्यक्तियों के जन्म प्रमाणपत्र की आवश्यकता बताई गई है। यह प्रावधान इस बिल के लागू होने के बाद जन्मे व्यक्तियों पर लागू होगा। इन उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) किसी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश, (ii) मतदाता सूची तैयार करना, (iii) सरकारी पद पर नियुक्ति, (iv) विवाह का पंजीकरण, और (v) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कोई अन्य उद्देश्य। इनमें से कुछ उद्देश्य संवैधानिक अधिकार हैं जो नागरिकों के पास हैं, और उन्हें जन्म प्रमाणपत्र के साथ सशर्त बनाना, उन अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
स्कूल में प्रवेश: जन्म प्रमाणपत्र के बिना किसी बच्चे को स्कूल में प्रवेश से वंचित करना अनुच्छेद 21ए के तहत शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। शिक्षा का अधिकार एक्ट, 2009 के तहत, प्रारंभिक शिक्षा में प्रवेश के लिए, बच्चे की उम्र उसके जन्मप्रमाण पत्र या किसी अन्य दस्तावेज़, जिसे निर्दिष्ट किया जा सकता है, के आधार पर निर्धारित की जाती है।[4] एक्ट में यह प्रावधान भी है कि आयु का प्रमाण न होने पर किसी भी बच्चे को स्कूल में प्रवेश से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। बिल ऐसी कोई छूट प्रदान नहीं करता है। इसका तात्पर्य यह है कि अगर किसी बच्चे का जन्म पंजीकृत नहीं किया गया है, तो उसे जीवन भर शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से वंचित किया जा सकता है।
वोट देने का अधिकार: अनुच्छेद 326 गारंटी देता है कि 18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार है। इस अधिकार में कटौती की जा सकती है, अगर कोई व्यक्ति कुछ अयोग्यताओं के अधीन है, जैसे वह नॉन-रेसिडेंस है, उसका मस्तिष्क अस्वस्थ है, वह अपराधी, भ्रष्ट है या गैरकानूनी आचरण करता है। जन्म प्रमाणपत्र (आयु प्रमाण के लिए) न होना, उल्लिखित अयोग्यता के अंतर्गत नहीं आता है।
जन्म के रिकॉर्ड को आधार से लिंक करना
बिल माता-पिता और जन्म की सूचना देने वाले व्यक्ति (सूचनादाता) के आधार विवरण को बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र से जोड़ता है। सूचनादाताओं में निम्न शामिल हैं: (i) नर्सिंग होम के प्रभारी डॉक्टर, (ii) जेल में बच्चे के जन्म की स्थिति में जेलर, (iii) होटल, लॉजिंग हाउस, या धर्मशाला का प्रबंधक, अगर ऐसे स्थान पर जन्म हुआ है, और (iv) परित्यक्त नवजात शिशु के मामले में संबंधित पुलिस स्टेशन का एसएचओ। इससे दो मुद्दे उठते हैं:
प्राइवेसी का अधिकार: 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने उचित प्रतिबंधों के अधीन, प्राइवेसी के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी थी।[5] अगर चार शर्तें पूरी होती हैं तो इस अधिकार पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है: (i) प्रतिबंध की अनुमति देने वाला कोई कानून है, (ii) प्रतिबंध एक सार्वजनिक उद्देश्य को पूरा करता है, (iii) कानून का ऐसे उद्देश्य के साथ तर्कसंगत संबंध है, और (iv) कानून आनुपातिक है, यानी, यह सार्वजनिक उद्देश्य को प्राप्त करने का सबसे कम दखल देने वाला तरीका है। बिल का यह प्रावधान सूचनादाता के प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है। उदाहरण के लिए, अस्पताल में पैदा हुए किसी भी बच्चे के साथ एक चिकित्सा अधिकारी का आधार संलग्न करना, या किसी एसएचओ के क्षेत्राधिकार में सभी परित्यक्त बच्चों के लिए उसका आधार संलग्न करना, इन अधिकारियों के प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है।
आधार निर्णय का उल्लंघन: यह प्रावधान आधार निर्णय (पुट्टास्वामी 2018) में निर्धारित सिद्धांतों का भी उल्लंघन कर सकता है।[6] इस फैसले में कहा गया था कि आधार एक्ट, 2016 को मनी बिल के रूप में पारित किया गया था और उन प्रावधानों को पढ़ा गया था जो सरकारी लाभों और सेवाओं के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए आधार को लिंक करने की अनुमति देते थे। इस तर्क का उपयोग करते हुए इस फैसले ने बैंक खातों और मोबाइल फोन कनेक्शन के लिए आधार की जरूरत को खत्म कर दिया था। यही तर्क आधार को जन्म प्रमाणपत्र से जोड़ने पर भी लागू हो सकता है। 2016 में दिल्ली (विवाह का अनिवार्य पंजीकरण) कार्यकारी आदेश, 2014 के तहत विवाह पंजीकरण के एक मामले के दौरान, केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा था कि आधार पर 2015 के सर्वोच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के आधार पर विवाह पंजीकरण के लिए आधार अनिवार्य नहीं था।[7]
सभी डेटाबेस को लिंक करना
बिल में कहा गया है कि जन्म और मृत्यु के राष्ट्रीय डेटाबेस को ऐसे अधिकारियों को उपलब्ध कराया जा सकता है, जो दूसरे डेटाबेस (जैसे मतदाता सूची और राशन कार्ड) को मेनटेन करते हैं। इसी प्रकार राज्य डेटाबेस को उन अधिकारियों को उपलब्ध कराया जा सकता है, जो राज्य के दूसरे डेटाबेस को तैयार या मेनटेन करते हैं। ये शेयरिंग क्रमशः केंद्र और राज्य सरकार की मंजूरी के अधीन है। हालांकि बिल के तहत डेटाबेस में इस तरह के लिंकेज के लिए उस व्यक्ति की सहमति की आवश्यकता नहीं है जिसका डेटा लिंक किया जा रहा है। यह किसी व्यक्ति के प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।5
पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2019 (जिसे वापस ले लिया गया है) और ड्राफ्ट डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2022 (इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा प्रकाशित), दोनों में डेटा को प्रोसेस करने से पहले व्यक्तियों की सूचित सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। अगर सेवाएं और लाभ प्रदान करने के लिए यह प्रोसेसिंग जरूरी है तो सरकार को सहमति के बिना डेटा प्रोसेस करने की अनुमति दी गई है।[8],[9] हालांकि किसी भी बिल में यह नहीं बताया गया है कि अगर डेटा सरकारी डेटाबेस में शेयर किया जाता है तो क्या यह छूट लागू होगी। भारत के लिए डेटा प्रोटेक्शन फ्रेमवर्क का सुझाव देने वाली श्रीकृष्ण कमिटी ने सलाह दी थी कि अगर पर्सनल डेटा किसी निर्दिष्ट उद्देश्य के लिए जमा किया जाता है, तो उसे किसी अन्य उद्देश्य के लिए प्रोसेस नहीं किया जाना चाहिए।
जन्म प्रमाणपत्र उम्र का एकमात्र निर्णायक प्रमाण बन सकता है
बिल कई मामलों में जन्म प्रमाणपत्र के उपयोग को अनिवार्य बनाता है, जिससे ऐसे सभी मामलों में किसी व्यक्ति की उम्र और जन्म स्थान निर्धारित करने के लिए इसे प्रभावी रूप से एकमात्र निर्णायक प्रमाण के रूप में स्थापित किया जा सके। जन्म प्रमाणपत्र न होने का मतलब यह होगा कि कोई व्यक्ति वोट नहीं दे सकता, या स्कूल में दाखिले, शादी या सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकता। अगर किसी व्यक्ति के पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है तो बिल उसकी आयु निर्धारित करने के लिए किसी अन्य साधन का प्रावधान नहीं करता है। एक और परिणाम यह हो सकता है कि इससे जन्म प्रमाणपत्र जारी करने वाले अधिकारी को किसी व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करने की महत्वपूर्ण शक्तियां मिल जाती हैं। इससे जानबूझकर गलत व्यवहार को बढ़ावा मिल सकता है जिससे भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिल सकता है।
जन्म प्रमाणपत्र की शर्त उन बच्चों के साथ भेदभाव कर सकती है जिन्हें देखभाल, सुरक्षा की जरूरत है
इस बिल के प्रभावी होने के बाद जन्म लेने वाले किसी भी बच्चे को कुछ उद्देश्यों के लिए अपनी उम्र और जन्म स्थान साबित करने के लिए जन्म प्रमाणपत्र की आवश्यकता होगी। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) किसी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश, (ii) मतदाता सूची तैयार करना, (iii) सरकारी पद पर नियुक्ति, और (iv) केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित कोई अन्य उद्देश्य। कुछ शर्तों के तहत विलंब से पंजीकरण की अनुमति है। पंजीकरण की अनुमति 30 दिनों के बाद, लेकिन एक वर्ष के भीतर, केवल जिला रजिस्ट्रार (या ऐसे किसी अधिकारी) की लिखित अनुमति के साथ शुल्क के भुगतान और खुद अटेस्ट किए गए दस्तावेज़ जमा करने पर दी जाएगी, जैसा कि निर्धारित है। जन्म के एक वर्ष के बाद पंजीकरण की अनुमति तब दी जाएगी, जब जन्म की सत्यता का सत्यापन किया जाए और शुल्क का भुगतान किया जाए। इसके बाद जिला मेजिस्ट्रेट के आदेश पर यह पंजीकरण होगा। ये प्रावधान देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले उन बच्चों के साथ भेदभाव कर सकते हैं जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है। जैसे, ऐसे उदाहरण हो सकते हैं जहां किसी बच्चे का जन्म पंजीकृत किया गया था लेकिन वह घर से भाग गया, या प्राकृतिक आपदा में उसने अपने माता-पिता को खो दिया। अगर ऐसा कोई बच्चा स्कूल में दाखिला लेना चाहता है, तो उसकी उम्र निर्धारित करना मुश्किल हो सकता है।
इसके अलावा यह किशोर न्याय एक्ट, 2015 के प्रावधानों का उल्लंघन हो सकता है जिसका उद्देश्य देखभाल और सुरक्षा की जरूरत वाले बच्चों के सामाजिक पुनर्एकीकरण और पुनर्वास को बढ़ावा देना है।[10] 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ऐसे मामलों में जहां बाल कल्याण समिति या किशोर न्याय बोर्ड इस बात को लेकर अनिश्चित है कि उसके सामने लाया गया व्यक्ति बच्चा है या नहीं, वह यह निर्धारित करने के लिए किशोर न्याय एक्ट, 2015 में सूचीबद्ध सबूत का उपयोग कर सकते हैं। इन सबूतो में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) स्कूल से प्राप्त जन्म प्रमाणपत्र या मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट, या इसके अभाव में, (ii) शहरी या ग्रामीण स्थानीय निकाय द्वारा दिया गया जन्म प्रमाणपत्र, या इसके अभाव में, (iii) बाल कल्याण समिति या किशोर न्याय बोर्ड के आदेश पर कराया गया चिकित्सा आयु निर्धारण परीक्षण। न्यायालय ने कहा था कि बाल कल्याण समिति या किशोर न्याय बोर्ड द्वारा दर्ज की गई आयु, उसके समक्ष किशोर न्याय एक्ट, 2015 के उद्देश्य के लिए लाए गए व्यक्ति की सही आयु होगी।[11] अगर किसी व्यक्ति के पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है तो बिल ऐसे किसी वैकल्पिक सबूत का प्रावधान नहीं करता है।
[1] Entry 30, List III, Seventh Schedule, The Constitution of India.
[2] Unstarred Question No. 1791, Rajya Sabha, Ministry of Home Affair, August 04, 2021.
[3] Report No. 270, Compulsory Registration of Marriage, The Law Commission, July 2017.
[5] Writ Petition (c) No. 494 of 2012, Justice K.S Puttaswamy v Union of India, Supreme Court, August 24, 2017.
[6] Writ Petition (c) No. 494 of 2012, Justice K.S Puttaswamy v Union of India, Supreme Court, September 26, 2018.
[7] CIC/SA/A/2015/001772, Central Information Commission, 2016.
[11] Criminal Appeal No. 1240 of 2021, Rishpal Singh Solanki v. State of Uttar Pradesh, Supreme Court, November 18, 2021.
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