मंत्रालय: 
वित्त
  • प्रतिभूति बाजार संहिता, 2025 को 18 दिसंबर, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया। इसका उद्देश्य निम्नलिखित कानूनों को निरस्त करके उनके स्थान पर नए कानून लाना है: (i) प्रतिभूति अनुबंध (रेगुलेशन) एक्ट, 1956, (ii) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) एक्ट, 1992, और (iii) डिपॉजिटरी एक्ट, 1996। 1956 का एक्ट प्रतिभूतियों के लेनदेन और स्टॉक एक्सचेंजों के संचालन को रेगुलेट करता है। 1996 का एक्ट उन डिपॉजिटरी को रेगुलेट करता है जो प्रतिभूतियों को डीमेटरियलाइज्ड या इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखते हैं और उनके हस्तांतरण को आसान बनाते हैं। 1992 के एक्ट में निम्नलिखित की स्थापना की गई है: (i) प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करने और प्रतिभूति बाजार को बढ़ावा देने एवं रेगुलेट करने के लिए रेगुलेटर के रूप में सेबी, और (ii) सेबी के खिलाफ अपीलों की सुनवाई के लिए प्रतिभूति अपीलीय ट्रिब्यूनल। बिल इन कानूनों के प्रावधानों को एक ही संहिता में समेकित करने का प्रयास करता है। इसमें अधिकांश प्रावधानों को बरकरार रखा गया है। प्रमुख परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सेबी की संरचना: वर्तमान में सेबी में नौ सदस्य होते हैं: (i) अध्यक्ष, (ii) वित्त एवं कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के दो अधिकारी, (iii) आरबीआई का एक अधिकारी, और (iv) केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त पांच अन्य सदस्य, जिनमें से कम से कम तीन पूर्णकालिक सदस्य होने चाहिए। बिल के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अन्य सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 11 कर दी गई है, जिनमें से कम से कम पांच पूर्णकालिक सदस्य होने चाहिए।

  • बोर्ड के सदस्यों का हितों का टकराव: सेबी कानून के तहत सेबी के किसी सदस्य के लिए, जो किसी कंपनी का निदेशक है, किसी भी मामले में अपने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष वित्तीय हित का खुलासा करना अनिवार्य है। उसे ऐसे मामलों पर विचार-विमर्श या निर्णय लेने में भाग नहीं लेना चाहिए। बिल में इस प्रावधान का विस्तार किया गया है। इसके तहत किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हित, जिसे नियमों द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है, वाले सभी सदस्यों को शामिल किया गया है। इसमें परिवार के किसी सदस्य के हित भी शामिल हैं। इसमें यह भी जोड़ा गया है कि केंद्र सरकार ऐसे किसी सदस्य को हटा सकती है जिसने ऐसा कोई वित्तीय या अन्य हित अर्जित किया हो जिससे उसके कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका हो।

  • जांच और एडजुडिकेशन: वर्तमान में सेबी किसी भी व्यक्ति को जांच या एडजुडिकेटिंग अधिकारी के रूप में नियुक्त कर सकता है। बिल में इसके बजाय सेबी को अपने अध्यक्ष, पूर्णकालिक सदस्यों और पदाधिकारियों में से जांच या एडजुडिकेटिंग अधिकारी नियुक्त करने का अधिकार दिया गया है। बिल में यह भी कहा गया है कि एडजुडिकेटिंग अधिकारी के पास (i) मामले के निरीक्षण या जांच को अधिकृत करने या उसमें भाग लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए, और (ii) जांच के अधीन किसी संस्था के निपटान आवेदन पर विचार करने का अधिकार नहीं होना चाहिए।

  • निरीक्षण या जांच शुरू करने की समय सीमा: बिल के अनुसार, सेबी उल्लंघन की तारीख से आठ वर्ष बाद किसी भी प्रकार का निरीक्षण या जांच करने का आदेश नहीं दे सकता। वर्तमान में ऐसी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। बिल में यह प्रावधान है कि प्रतिभूति बाजार पर व्यापक प्रभाव डालने वाले मामलों या जांच एजेंसियों द्वारा भेजे गए मामलों में यह समय सीमा लागू नहीं होगी।

  • पंजीकरण की आवश्यकता: बिल में विभिन्न संस्थाओं के लिए पंजीकरण की आवश्यकता को बरकरार रखा गया है। स्टॉक ब्रोकर, परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियां और निवेश सलाहकार जैसे मध्यस्थों को निवेश गतिविधि या व्यवसाय करने के लिए सेबी के साथ पंजीकरण कराना होगा। इस बिल में स्टॉक एक्सचेंज, डिपॉजिटरी और क्लियरिंग कॉरपोरेशन सहित मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर इंस्टीट्यूशंस (एमआईआईज़) का सेबी के साथ पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। बिल सेबी को निवेशकों के विशिष्ट वर्गों के पंजीकरण की आवश्यकता का अधिकार देता है। साथ ही बिल सेबी को मध्यस्थों या निवेशकों के पंजीकरण की शक्तियां एमआईआईज़ को सौंपने का अधिकार भी देता है। एमआईआईज़ बाजार दुरुपयोग को कम करने और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए उपनियम भी बना सकते हैं।

  • शिकायत निवारण और ओम्बड्सपर्सन: बिल में विशेष रूप से सेबी को निवेशक शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और सेवा प्रदाताओं को भी शिकायत निवारण तंत्र गठित करने का निर्देश देने का अधिकार दिया गया है। साथ ही सेबी को शिकायतों के निवारण के लिए ओम्बड्सपर्सन नियुक्त करने का भी अधिकार दिया गया है।

  • अपराध और दंड: वर्तमान में तीनों कानूनों के तहत, कानून, नियमों या रेगुलेशंस का उल्लंघन करने पर दंड के अतिरिक्त कारावास, जुर्माना या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। बिल इन प्रावधानों को हटाता है और इसके स्थान पर केवल निर्दिष्ट उल्लंघनों के लिए मौद्रिक दंड का प्रावधान करता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पंजीकरण न कराना, (ii) झूठे बयान देना, (iii) रिकॉर्ड न रखना, और (iv) सेवा प्रदाताओं द्वारा कुछ चूक। इसमें कुछ अपराधों के लिए कारावास का प्रावधान बरकरार रखा गया है, जैसे: (i) एडजुडिकेटिंग अधिकारियों के निर्दिष्ट आदेशों या जांच अधिकारियों के निर्देशों का पालन न करना और (ii) बाजार दुरुपयोग। बिल बाजार दुरुपयोग को ऐसी गतिविधियों के रूप में परिभाषित करता है जिनमें इनसाइडर ट्रेडिंग, निवेशकों को धोखा देना, गैर सार्वजनिक जानकारी रखते हुए प्रतिभूतियों में लेनदेन करना या प्रतिभूतियों के बाजार मूल्यों में हेरफेर करने के लिए शक्ति का दुरुपयोग करना शामिल है।

 

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