- स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री हर्ष वर्धन ने 22 जुलाई, 2019 को लोकसभा में राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2019 पेश किया। बिल भारतीय मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 को निरस्त करने और ऐसी मेडिकल शिक्षा प्रणाली प्रदान करने का प्रयास करता है, जो निम्नलिखित सुनिश्चित करती हों : (i) पर्याप्त और उच्च क्वालिटी वाले मेडिकल प्रोफेशनल्स की उपलब्धता, (ii) मेडिकल प्रोफेशनल्स द्वारा नवीनतम मेडिकल अनुसंधानों का उपयोग, (iii) मेडिकल संस्थानों का नियत समय पर आकलन और (iv) एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली। बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं :
- राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन का गठन: बिल राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन (एनएमसी) का गठन करता है। बिल के पारित होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारों को राज्य स्तर पर राज्य मेडिकल काउंसिलों का गठन करना होगा। एनएमसी में 25 सदस्य होंगे जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। एक सर्च कमिटी केंद्र सरकार को चेयरपर्सन और पार्ट टाइम सदस्यों के पदों के लिए नामों का सुझाव देगी। सर्च कमिटी में सात सदस्य होंगे, जिनमें कैबिनेट सचिव और केंद्र सरकार द्वारा नामित पांच विशेषज्ञ शामिल होंगे (इनमें से तीन मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञ होंगे)।
- एनएमसी के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) चेयरपर्सन, (ii) अंडर-ग्रैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड, पोस्ट-गैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड के प्रेज़िडेंट, (iii) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक, (v) भारतीय मेडिकल रिसर्च काउंसिल के महानिदेशक, और (vi) पांच सदस्य (पार्ट टाइम), जिन्हें बिल के अंतर्गत निर्धारित क्षेत्रों से पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर्स द्वारा स्वयं में से दो वर्षों के लिए चुना जाएगा।
- राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन के कार्य: एनएमसी के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) मेडिकल संस्थानों और मेडिकल प्रोफेशनल्स को रेगुलेट करने के लिए नीतियां बनाना, (ii) स्वास्थ्य सेवा से संबंधित मानव संसाधनों और इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत का आकलन करना, (iii) यह सुनिश्चित करना कि राज्य मेडिकल काउंसिल बिल में दिए गए रेगुलेशनों का पालन कर रही हैं अथवा नहीं, (iv) बिल के अंतर्गत रेगुलेट होने वाले प्राइवेट मेडिकल संस्थानों और मानद (डीम्ड) विश्वविद्यालयों की अधिकतम 50% सीटों की फीस तय करने के लिए दिशानिर्देश बनाना।
- मेडिकल एडवाइजरी काउंसिल: बिल के अंतर्गत केंद्र सरकार एक मेडिकल एडवाइजरी काउंसिल का गठन करेगी। काउंसिल वह मुख्य प्लेटफॉर्म होगा, जिसके जरिए राज्य/केंद्र शासित प्रदेश एनएमसी से संबंधित अपने विचार और चिंताओं को साझा कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त काउंसिल एनएमसी को इस संबंध में सलाह देगी कि किस प्रकार सभी लोगों को समान रूप से मेडिकल शिक्षा प्राप्त हो सके।
- स्वायत्त (ऑटोनॉमस) बोर्ड्स: बिल एनएमसी की निगरानी में स्वायत्त बोर्ड्स का गठन करता है। प्रत्येक स्वायत्त बोर्ड में प्रेज़िडेंट और चार सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। ये बोर्ड हैं : (i) अंडर-ग्रैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (यूजीएमईबी) और पोस्ट-गैजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (पीजीएमईबी): ये बोर्ड क्रमशः अंडर-ग्रैजुएट और पोस्ट-ग्रैजुएट स्तरों पर मेडिकल क्वालिफिकेशन के मानक, पाठ्यक्रम, दिशानिर्देश निर्धारित करने और उन्हें मान्यता देने के लिए जिम्मेदार होंगे, (ii) मेडिकल एसेसमेंट और रेटिंग बोर्ड (एमएआरबी): एमएआरबी के पास उन मेडिकल संस्थानों से मौद्रिक जुर्माना वसूलने की शक्ति होगी जो यूजीएमईबी और पीजीएमईबी द्वारा निर्धारित किए गए न्यूनतम मानकों का पालन करने में असफल रहते हैं। एमएआरबी नए मेडिकल कॉलेजों को स्थापित करने, पोस्ट-ग्रैजुएट पाठ्यक्रमों को शुरू करने या सीटों की संख्या बढ़ाने की अनुमति भी प्रदान करेगा, और (iii) एथिक्स और मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड: यह बोर्ड सभी लाइसेंसी मेडिकल प्रैक्टीशनर्स का राष्ट्रीय रजिस्टर मेनटेन करेगा, और प्रोफेशनल आचरण को रेगुलेट करेगा। जिन लोगों का नाम इस रजिस्टर में दर्ज होगा, उन्हें ही मेडिसिन प्रैक्टिस करने की अनुमति दी जाएगी। बोर्ड सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिए अलग से एक राष्ट्रीय रजिस्टर मेनटेन करेगा।
- सामुदायिक स्वास्थ्य प्रदाता: बिल के अंतर्गत एनएमसी आधुनिक चिकित्सा से जुड़े कुछ मध्य स्तरीय प्रैक्टीशनर्स को प्रैक्टिस के लिए सीमित संख्या में लाइसेंस दे सकता है। ये प्रैक्टीशनर्स प्राथमिक और रोकथामकारी स्वास्थ्य सेवा में विनिर्दिष्ट दवाओं का नुस्खा दे सकते हैं। बाकी सभी स्थितियों में ये प्रैक्टीशनर्स पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर्स की निगरानी में ही दवा का नुस्खा दे सकते हैं।
- प्रवेश परीक्षाएं: बिल द्वारा रेगुलेट किए जाने वाले सभी मेडिकल संस्थानों में अंडर-ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट सुपर-स्पैशियलिटी मेडिकल शिक्षा में प्रवेश के लिए यूनिफॉर्म नेशनल एलिजिबिलिटी कम इंट्रेंस टेस्ट (नीट) होगा। इन सभी मेडिकल संस्थानों में प्रवेश के लिए कॉमन काउंसिलिंग का तरीका एनएमसी द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाएगा।
- बिल के अंतर्गत मेडिकल संस्थानों से ग्रैजुएट होने वाले विद्यार्थियों को प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस हासिल करने हेतु राष्ट्रीय एक्जिट टेस्ट नामक परीक्षा देनी होगी। मेडिकल संस्थानों में पोस्ट-ग्रैजुएट कोर्सों में प्रवेश हासिल करने के लिए यह परीक्षा आधार का काम भी करेगी।
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