बिल की मुख्य विशेषताएं
- संहिता चार मौजूदा कानूनों का स्थान लेती है: (i) वेतन भुगतान एक्ट, 1936, (ii) न्यूनतम वेतन एक्ट, 1948, (iii) बोनस भुगतान एक्ट, 1965, और (iv) समान पारिश्रमिक एक्ट, 1976।
- केंद्र सरकार कुछ रोजगारों, जिनमें रेलवे और खनन शामिल हैं, के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करेगी। राज्य सरकारें सभी अन्य रोजगारों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करेंगी।
- संहिता प्रावधान करती है कि राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। राज्य राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से कम न्यूनतम वेतन नहीं निर्धारित कर सकते। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार देश के विभिन्न राज्यों या क्षेत्रों के लिए अलग राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है।
- हर पांच वर्ष के अंतराल में केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा न्यूनतम वेतन में संशोधन किया जाना चाहिए।
- ओवरटाइम की दर कर्मचारी के वेतन की सामान्य दर से कम से कम दो गुना होगी।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
- केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है। इसके अतिरिक्त वह विभिन्न राज्यों या क्षेत्रों के लिए अलग राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है। इस संबंध में दो प्रश्न उठते हैं: (i) राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन का औचित्य (रैशनल), और (ii) यह कि केंद्र सरकार को एक राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन तय करना चाहिए या भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन तय करने चाहिए।
- राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन, राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से कम न हों। अगर राज्यों द्वारा निर्धारित किए गए मौजूदा न्यूनतम वेतन, राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से अधिक हैं तो राज्य न्यूनतम वेतन को कम नहीं कर सकते। अगर राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन कम हुआ तो इससे राज्यों की न्यूनतम वेतन कम करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
- न्यूनतम वेतन में संशोधन की समय अवधि पांच वर्ष तय की जाएगी। वर्तमान में राज्य सरकारों के पास न्यूनतम वेतन में संशोधन करने की फ्लेक्सिबिलिटी है, जब तक कि वह पांच वर्ष से अधिक न हो। यह अस्पष्ट है कि इस फ्लेक्सिबिलिटी को क्यों हटाया गया और संशोधन के लिए पांच वर्ष की समय अवधि क्यों तय की गई।
- समान पारिश्रमिक एक्ट, 1976 के अंतर्गत वेतन भुगतान और कर्मचारियों की भर्ती में लिंग के आधार पर भेदभाव करने से नियोक्ताओं को प्रतिबंधित किया गया है। प्रस्तावित संहिता वेतन संबंधी मामलों में लिंग भेदभाव को तो प्रतिबंधित करती है, लेकिन इसमें भर्ती के दौरान भेदभाव से संबंधित प्रावधान शामिल नहीं किए गए हैं।
भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
भारत में श्रम को समवर्ती सूची में शामिल किया गया है जिसका अर्थ यह है कि इस विषय पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं।[1] वर्तमान में श्रम के विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करने के लिए 40 से अधिक राज्य स्तरीय और केंद्रीय कानून हैं। इन पहलुओं में औद्योगिक विवाद का समाधान, कारखानों में कार्य करने की स्थितियां, वेतन और बोनस भुगतान शामिल हैं। श्रम संबंधी दूसरे राष्ट्रीय आयोग (2002) ने सुझाव दिया था कि मौजूदा श्रम कानूनों का अनुपालन करना सरल हो, इसके लिए इन कानूनों को व्यापक समूहों में वर्गीकृत कर दिया जाना चाहिए जैसे (i) औद्योगिक संबंध, (ii) वेतन, (iii) सामाजिक सुरक्षा, (iv) सेफ्टी, और (v) कल्याण एवं कार्य करने की स्थितियां।[2],[3] इससे उन विभिन्न कानूनों के कवरेज में एकरूपता भी आएगी, जो इस समय लागू हैं।2
इस संबंध में 10 अगस्त, 2017 को लोकसभा में वेतन संहिता, 2017 को पेश किया गया। संहिता उन सभी रोजगारों में वेतन और बोनस भुगतान को रेगुलेट करने का प्रयास करती है जहां उद्योग, व्यापार, बिजनेस चलाए जाते हैं या मैन्यूफैक्चरिंग की जाती है। इस संहिता में (i) वेतन भुगतान एक्ट, 1936, (ii) न्यूनतम वेतन एक्ट, 1948, (iii) बोनस भुगतान एक्ट, 1965, और (iv) समान पारिश्रमिक एक्ट, 1976 समाहित किए गए हैं।
प्रमुख विशेषताएं
- कवरेज : संहिता के प्रावधान सभी कर्मचारियों पर लागू होंगे।
न्यूनतम वेतन
- केंद्र सरकार खनन, रेलवे और बंदरगाह इत्यादि रोजगारों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करेगी, जबकि राज्य सरकारें अन्य रोजगारों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करेंगी। केंद्र या राज्य सरकारें उन कारकों को निर्धारित कर सकती हैं जिनके आधार पर विभिन्न प्रकार के श्रम के लिए न्यूनतम वेतन तय किए जाएंगे। इनमें जरूरी दक्षता, सौंपे गए काम की कठिनाई और भौगोलिक स्थिति शामिल है।
- राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन : संहिता में प्रावधान है कि राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है। केंद्र सरकार देश के विभिन्न राज्यों या क्षेत्रों के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है।
- राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन, केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से कम नहीं होगा। अगर राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मौजूदा न्यूनतम वेतन, राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से अधिक है तो राज्य सरकारें न्यूनतम वेतन को कम नहीं कर सकतीं।
अन्य प्रावधान
- वेतन भुगतान के तरीके: संहिता सिक्कों, करंसी नोट, चेक एवं इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वेतन के भुगतान की अनुमति देती है या कर्मचारियों के बैंक खाते में भी वेतन जमा किया जा सकता है। केंद्र या राज्य सरकारें अधिसूचना के जरिए उन रोजगार के प्रकारों को निर्दिष्ट कर सकती हैं जिनमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से वेतन चुकाया जाए या बैंक खातों में जमा किया जाए।
- बोनस: जिन कर्मचारियों का वेतन केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित निश्चित मासिक राशि से अधिक नहीं है, वे अपने वार्षिक वेतन का 8.33% न्यूनतम बोनस के रूप में हासिल करने के लिए अधिकृत हैं। बोनस कर्मचारी के वार्षिक वेतन की 20% राशि से अधिक नहीं हो सकता। यह मौजूदा प्रावधानों के समान है।
- सलाहकार बोर्ड: केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः केंद्रीय सलाहकार बोर्ड और राज्य सलाहकार बोर्ड का गठन करेंगी। बोर्ड में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) नियोक्ता (इंप्लॉयर्स), (ii) नियोक्ताओं के बराबर की संख्या में कर्मचारी, और (iii) स्वतंत्र व्यक्ति (जो बोर्ड के कुल सदस्यों के एक तिहाई से अधिक नहीं होने चाहिए)। बोर्ड न्यूनतम वेतन के निर्धारण एवं संशोधन और महिलाओं के लिए रोजगार अवसरों को बढ़ाने इत्यादि मुद्दों पर केंद्र या राज्य सरकारों को सलाह देगा।
निम्नलिखित तालिका में संहिता के प्रावधानों की तुलना मौजूदा वेतन कानूनों से की गई है।
तालिका 1: प्रस्तावित संहिता और मौजूदा वेतन कानूनों के बीच तुलना
प्रावधान |
मौजूदा कानून |
वेतन संहिता, 2017 |
कवरेज |
· न्यूनतम वेतन एक्ट: न्यूनतम वेतन उन अनुसूचित रोजगारों के लिए निर्धारित किया जाता है जहां 1,000 से अधिक कर्मचारी कार्य करते हैं। · वेतन भुगतान एक्ट: उन कर्मचारियों पर लागू होता है जिनका वेतन 24,000 प्रति माह से अधिक नहीं होता। · बोनस भुगतान एक्ट: 20 और 20 से अधिक व्यक्तियों वाले रोजगारों पर लागू होता है और उन कर्मचारियों पर लागू होता है जिनका वेतन 21,000 प्रति माह से अधिक नहीं होता। |
· सभी कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन चुकाया जाएगा।
· वेतन के भुगतान से संबंधित प्रावधान सभी कर्मचारियों पर लागू होंगे।
· बोनस उन कर्मचारियों को मिलेगा, जिनका वेतन केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित मासिक राशि से अधिक नहीं होगा। |
न्यूनतम वेतन में संशोधन |
· न्यूनतम वेतन एक्ट: केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा हर पांच वर्ष में कम से कम एक बार न्यूनतम वेतन में संशोधन होना चाहिए। |
· आदेश देता है कि न्यूनतम वेतन में पांच वर्ष के अंतराल में संशोधन किया जाए। |
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन |
· कोई प्रावधान नहीं। |
· केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है और विभिन्न राज्यों एवं क्षेत्रों के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित कर सकती है। |
ओवरटाइम का वेतन |
· न्यूनतम वेतन एक्ट: संबंधित केंद्र या राज्य सरकारों को ओवरटाइम का वेतन निर्धारित करने की अनुमति देता है। |
· ओवरटाइम के वेतन को सामान्य वेतन के दो गुने पर निर्धारित करता है। |
लिंग संबंधी भेदभाव |
· समान पारिश्रमिक एक्ट: वेतन भुगतान में लिंग भेद को प्रतिबंधित करता है। · भर्ती, तबादले और पदोन्नति (प्रमोशन) में लिंग भेद को प्रतिबंधित करता है। |
· वेतन भुगतान में लिंग भेद को प्रतिबंधित करता है। · कोई प्रावधान नहीं। |
निरीक्षण |
· न्यूनतम वेतन एक्ट, वेतन भुगतान एक्ट, बोनस भुगतान एक्ट और समान पारिश्रमिक एक्ट: निरीक्षकों को निम्नलिखित कार्यों के लिए नियुक्त किया गया है (i) औचक जांच, और (ii) व्यक्तियों से छानबीन करना और उनसे जानकारी लेना, इत्यादि। |
· समन्वयक (फेसिलिटेटर) की नियुक्ति, जोकि निरीक्षण करेगा और संहिता के बेहतर अनुपालन के लिए नियोक्ताओं और कर्मचारियों को जानकारी प्रदान करेगा। · निरीक्षण योजना के आधार पर निरीक्षण किया जाएगा जिसमें वेब आधारित निरीक्षण शेड्यूल शामिल होगा। · निरीक्षण योजना केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा तय की जाएगी। |
दंड |
· न्यूनतम वेतन एक्ट: अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं (i) कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन से कम भुगतान करना, और (ii) हफ्ते में विश्राम (रेस्ट) के लिए एक दिन नहीं देना। दंड में 500 रुपए तक का जुर्माना और छह महीने तक का कारावास शामिल है। · वेतन भुगतान एक्ट: अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं (i) निर्दिष्ट समय अवधि में वेतन का भुगतान न करना, और (ii) वेतन से अनाधिकृत कटौतियां करना। दंड में 7,500 रुपए तक का जुर्माना शामिल है। · बोनस भुगतान एक्ट: अगर कोई व्यक्ति या कंपनी एक्ट के प्रावधानों का अनुपालन न करे तो उन्हें छह महीने तक के कारावास या 1,000 रुपए तक के जुर्माने का दंड भुगतना पड़ सकता है। · समान पारिश्रमिक एक्ट: अपराधों में निम्नलिखित शामिल हैं (i) कर्मचारियों से संबंधित डॉक्यूमेंट्स न रखना, और (ii) भर्ती में महिलाओं के साथ भेदभाव करना। दंड में 20,000 रुपए तक जुर्माना या एक वर्ष तक का कारावास शामिल है। |
· जो नियोक्ता संहिता के अंतर्गत देय राशि से कम राशि का भुगतान करते हैं, उन्हें 50,000 रुपए का जुर्माना भरना होगा। अगर पांच वर्ष के भीतर नियोक्ता इस अपराध को दोहराने का दोषी पाया जाता है तो उसे तीन महीने तक का कारावास या एक लाख रुपए तक का जुर्माना, या दोनों भुगतना पड़ सकता है। · संहिता के अन्य प्रावधानों का अनुपालन न करने पर नियोक्ताओं को 20,000 रुपए तक जुर्माना भरना होगा। अगर पांच वर्ष के भीतर नियोक्ता इस अपराध को दोहराने का दोषी पाया जाता है तो उसे एक महीने तक का कारावास या 40,000 रुपए तक का जुर्माना, या दोनों भुगतना पड़ सकता है। |
Sources: The Minimum Wages Act, 1948; The Payment of Wages Act, 1936; The Payment of Bonus Act, 1965; The Equal Remuneration Act, 1976; PRS.
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन तय करने का औचित्य
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन के लाभ और हानियां
चूंकि श्रम को समवर्ती सूची में शामिल किया गया है इसलिए इस विषय पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं।1 वर्तमान में राज्य सरकारें अपने संबंधित राज्यों में न्यूनतम वेतन निर्धारित करती हैं। संहिता केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन प्रस्तावित करती है। इससे यह प्रश्न उठता है कि केंद्र सरकार या राज्य सरकार, किसे न्यूनतम वेतन निर्धारित करना चाहिए।
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन के पक्ष में एक तर्क यह है कि इससे देश में समान जीवन स्तर सुनिश्चित होगा। वर्तमान में विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन में अंतर है।[4] यह अंतर इसलिए है क्योंकि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें अपने दायरे में आने वाले रोजगारों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित, संशोधित और लागू करती हैं।4राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को प्रस्तावित करने से इन अंतरों को कम करने में मदद मिल सकती है और देश भर के सभी कर्मचारियों को बुनियादी जीवन स्तर प्रदान किया जा सकता है।
दूसरी ओर यह कहा जा सकता है कि अगर केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित करती है तो न्यूनतम वेतन को समायोजित (एडजस्ट) करने की राज्य सरकारों की क्षमता पर असर पड़ सकता है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में कॉस्ट ऑफ लिविंग, जैसे जरूरी वस्तुओं और हाउसिंग की कीमत अलग-अलग है, इसलिए यह समायोजन जरूरी हो सकता है। उल्लेखनीय है कि संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन के निर्धारण में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सलाह-मशविरा किया जाएगा।
केंद्र सरकार को भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारत करने की अनुमति देने का औचित्य
संहिता केंद्र सरकार को विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित करने की अनुमति देती है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या केंद्र सरकार को एक राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित करना चाहिए या भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित करने चाहिए।
विभिन्न एक्सपर्ट समूहों, जैसे दूसरे राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) और श्रम कानूनों पर वर्किंग ग्रुप (2011) ने सुझाव दिया था कि पूरे देश के लिए एक राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को प्रस्तावित किया जाए। एकल (सिंगल) वेतन का तर्क यह था कि इससे विभिन्न राज्यों और उद्योगों के न्यूनतम वेतन में एकरूपता आएगी।2 दूसरी ओर इससे न्यूनतम वेतन के कानून को लागू करना और उसका अनुपालन सरल होगा।3उल्लेखनीय है कि जिन देशों में न्यूनतम वेतन लागू है, जैसे युनाइडेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका और युनाइडेट किंगडम, वहां इसकी दर केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है (यूएसए का राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन अंतरराज्यीय वाणिज्य और व्यापार में संलग्न कुछ कर्मचारियों पर ही लागू होता है)।[5]
हालांकि उपभोग और कीमतों में व्यापक क्षेत्रीय भिन्नताओं को देखते हुए पहले राष्ट्रीय श्रम आयोग (1969) ने यह संदेह जाहिर किया था कि एकल राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन व्यावहारिक नहीं होगा।2 यह कहा जा सकता है कि इन क्षेत्रीय भिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार को भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित करने का विकल्प दिया गया है।
अगर राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन घटाया जाता है तो राज्य न्यूनतम वेतन कम नहीं कर सकते
संहिता केंद्र सरकार को राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन निर्धारित करने की अनुमति देती है। राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन इस राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से कम नहीं हो सकते। हालांकि अगर राज्य सरकार द्वारा निर्धारित मौजूदा न्यूनतम वेतन, राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन से अधिक हैं तो राज्य अपने न्यूनतम वेतन को कम नहीं कर सकते। अगर केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को घटाने का फैसला करती है तो राज्यों की अपने न्यूनतम वेतन को घटाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
अगर देश की आर्थिक स्थितियां बदलती हैं, जैसे अगर मूल्यों में लगातार गिरावट होती है, तो संभव है कि न्यूनतम वेतन को निचली दर पर संशोधित करने की जरूरत हो। इस स्थिति में केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को निचली दर पर संशोधित कर सकती है। लेकिन क्लॉज़ 9 (2) राज्यों को अपना न्यूनतम वेतन घटाने से प्रतिबंधित करता है।
उदाहरण के लिए बिहार में सीमेंट उद्योग के रोजगारों के लिए न्यूनतम वेतन 186 रुपए प्रति दिन है।4मान लीजिए कि केंद्र सरकार 200 रुपए का राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन प्रस्तावित करती है। इस स्थिति में बिहार की राज्य सरकार को अपने न्यूनतम वेतन को 200 रुपए के बराबर या उससे अधिक के स्तर पर संशोधित करना होगा। हालांकि अगर केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को बाद में 190 रुपए पर संशोधित करती है तो बिहार की राज्य सरकार अपने न्यूनतम वेतन को घटा नहीं सकती।
न्यूनतम वेतन को संशोधित करने की समय अवधि पांच वर्ष निर्धारित
वर्तमान में न्यूनतम वेतन एक्ट, 1948 राज्य सरकारों को यह तय करने की फ्लेक्सिबिलिटी देता है कि न्यूनतम वेतन को कब संशोधित किया जाए, जब तक कि यह पांच वर्षों से अधिक न हो।[6] संहिता कहती है कि राज्य सरकारों के लिए न्यूनतम वेतन में संशोधन करने की समय अवधि पांच वर्षों पर निर्धारित की जाएगी। यह अस्पष्ट है कि न्यूनतम वेतन को संशोधित करने की फ्लेक्सिबिलिटी क्यों हटाई गई है और इस संशोधन के लिए पांच वर्ष क्यों तय किए गए हैं। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को संशोधित करने के लिए कोई समय अवधि निर्दिष्ट नहीं की गई है।
यह तर्क दिया जा सकता है कि समय अवधि तय न होने से सरकारें क़ॉस्ट ऑफ लिविंग और दूसरी आर्थिक स्थितियों में होने वाले परिवर्तनों को देखते हुए न्यूनतम वेतन को एडजस्ट कर सकती हैं।[7] हालांकि यह गौर किया गया है कि जिन देशों में समय अवधि तय नहीं है, वहां कई बार न्यूनतम वेतन को लंबे समय तक एडजस्ट नहीं किया जाता, फिर एकाएक और बड़े एडजस्टमेंट्स किए जाते हैं।[8] अगर संशोधन नियत समय पर नहीं किए जाते तो व्यापार पर असर हो सकता है, चूंकि नियोक्ताओं को यह पता नहीं होता कि उन्हें श्रम लागत में कब एकाएक बढ़ोतरी का सामना करना पड़ेगा।8
भर्ती से जुड़े भेदभाव से संबंधित प्रावधान शामिल नहीं
वर्तमान में समान पारिश्रमिक एक्ट, 1976 के अंतर्गत नियोक्ताओं को कर्मचारियों की भर्ती और वेतन भुगतान में लिंग के आधार पर भेदभाव करने से प्रतिबंधित किया गया है।[9] इस संहिता में वेतन संबंधी तीन कानूनों के साथ 1976 के इस एक्ट को भी समाहित किया गया है। हालांकि संहिता के प्रावधान वेतन से संबंधित मामलों में लिंग भेद को प्रतिबंधित करते हैं, लेकिन इसमें भर्ती से संबंधित मामलों में भेदभाव को प्रतिबंधित करने के प्रावधानों को शामिल नहीं किया गया है।
परिशिष्ट
तालिका 2 में वेतन संहिता, 2017 के प्रावधानों की तुलना अन्य देशों के वेतन संबंधी कानूनों से की गई है।
तालिका 2: वेतन संबंधी अंतरराष्ट्रीय कानूनों के बीच तुलना
प्रावधान |
युनाइटेड किंगडम |
य़ुनाइटेड स्टेट्स |
जर्मनी |
ब्राजील |
भारत (प्रस्तावित संहिता 2017) |
संघीय संरचना |
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन |
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन राज्य का न्यूनतम वेतन |
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन |
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन राज्य का न्यूनतम वेतन |
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन केंद्र सरकार का न्यूनतम वेतन राज्य का न्यूनतम वेतन |
न्यूनतम वेतन का दायरा |
सभी कर्मचारी अपवादों में सशस्त्र बलों के सदस्य, क्षेत्रीय अधिकारी और स्वयंसेवी शामिल |
राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन अंतरराज्यीय वाणिज्य में संलग्न कर्मचारियों पर लागू विभिन्न राज्यों में अलग कवरेज |
सभी कर्मचारी |
औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारी |
सभी कर्मचारी अपवादों में सशस्त्र बलों के सदस्य शामिल |
न्यूनतम वेतन के प्रकार |
निम्नलिखित कर्मचारियों के लिए दो अलग-अलग राष्ट्रीय वेतन निर्धारित (i) 25 वर्ष से कम आयु के कर्मचारी, और (ii) 25 वर्ष से अधिक आयु के कर्मचारी |
एकल राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न न्यूनतम वेतन |
एकल राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन |
एकल राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न न्यूनतम वेतन |
एकल या भिन्न-भिन्न न्यूनतम वेतन राज्यों के लिए भिन्न-भिन्न न्यूनतम वेतन केंद्र सरकार के रोजगारों के लिए अलग न्यूनतम वेतन |
न्यूनतम वेतन निर्धारित करने का तरीका |
लो पे कमीशन (एलपीसी) के सुझावों के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित एलपीसी में नियोक्ता, कर्मचारी और शिक्षाविद शामिल |
राष्ट्रीय और राज्य विधायिकाओं द्वारा निर्धारित |
मिनिमम वेज कमीशन (एमडब्ल्यूसी) के सुझावों के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित एमडब्ल्यूसी में ट्रेड यूनियंस, नियोक्ताओं के प्रतिनिधि और शिक्षाविद शमिल |
केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित |
केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित |
न्यूनतम वेतन में संशोधन |
कोई प्रावधान नहीं |
कोई प्रावधान नहीं |
प्रत्येक दो वर्ष में संशोधित |
प्रत्येक वर्ष संशोधित |
प्रत्येक पांच वर्ष में संशोधित |
ओवरटाइम का वेतन |
रोजगार के कॉन्ट्रैक्ट में तय |
नियमित वेतन का 1.5 गुना |
रोजगार के कॉन्ट्रैक्ट में तय |
नियमित वेतन का 1.5 गुना |
नियमित वेतन का दोगुना |
Sources: United States: Fair Labor Standards Act, 1938; United Kingdom: National Minimum Wage Act, 1998; Germany: Minimum Wage Act, 2014; Brazil: Constitution of the Federative Republic of Brazil, 1988; Consolidation of Labor Laws, 1943; “Minimum Wages in Developing Countries: Helping or Hurting Workers?”, World Bank, December 2008; “The Impacts of the Minimum Wage on the Labour Market, Poverty and Fiscal Budget in Brazil”, Institute for Applied Economic Research, Federal Government of Brazil, January 2015; “Overtime: Information Sheet No. WT-2”, International Labour Organization, 2004; India: Code on Wages, 2017; PRS.
[1]. Entries 22, 23 and 24, List III, Constitution of India.
[2]. Report of the National Commission on Labour, Ministry of Labour and Employment, 2002, http://www.prsindia.org/uploads/media/1237548159/NLCII-report.pdf.
[3]. Report of the Working Group on Labour Laws and other regulations for the Twelfth five-year plan, Ministry of Labour and Employment, 2011, http://planningcommission.gov.in/aboutus/committee/wrkgrp12/wg_labour_laws.pdf.
[4]. Report on the Working of the Minimum Wages Act, 1948, Ministry of Labour and Employment, 2014, http://labourbureaunew.gov.in/UserContent/Report_MW_ACT_2014.pdf?pr_id=wElJPpAklLE%3d.
[5]. Section 206(a)(1), The Fair Labor Standards Act, 1938, https://www.dol.gov/whd/regs/statutes/FairLaborStandAct.pdf; Section 1(3), National Minimum Wage Act, 1998, http://www.legislation.gov.uk/ukpga/1998/39/pdfs/ukpga_19980039_en.pdf.
[6]. Section 3(1)(a) of the Minimum Wages Act, 1948.
[7]. C131- Minimum Wage Fixing Convention, International Labour Organization, 1970; R135, Minimum Wage Fixing Recommendation, International Labour Organization, 1970.
[8]. “How frequently should minimum wages be adjusted?”, Minimum Wage Policy Guide, International Labour Organization,
[9]. Section 5, Equal Remuneration Act, 1976.
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