- सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्री थावरचंद गहलौत ने 3 अगस्त, 2018 को लोकसभा में अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां (अत्याचार का निवारण) संशोधन बिल, 2018 पेश किया। बिल अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां (अत्याचार का निवारण) एक्ट, 1989 में संशोधन का प्रयास करता है। एक्ट अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के खिलाफ किए जाने वाले अपराधों को प्रतिबंधित करता है और ऐसे अपराधों की स्थिति में ट्रायल के लिए विशेष अदालतों की स्थापना करता है। साथ ही पीड़ितों के पुनर्वास का भी प्रावधान करता है।
- 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि एक्ट के अंतर्गत निर्दिष्ट अपराध के आरोपी को गिरफ्तार करने से पहले वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) की मंजूरी लेनी होगी। इसके अतिरिक्त पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) यह पता लगाने के लिए शुरुआती जांच कर सकता है कि क्या एक्ट के अंतर्गत प्रत्यक्ष दृष्टया मामला (प्राइमा फेसिया केस) बनता है।
- बिल कहता है कि आरोपी की गिरफ्तारी के लिए जांच अधिकारी को किसी अथॉरिटी की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी। इसके अतिरिक्त बिल में प्रावधान है कि एक्ट के अंतर्गत आरोपित किसी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज करने के लिए शुरुआती जांच की जरूरत नहीं होगी।
- एक्ट में प्रावधान है कि एक्ट के अंतर्गत निर्दिष्ट अपराध के आरोपी व्यक्ति अग्रिम जमानत की पेशकश नहीं कर सकते। बिल स्पष्ट करने का प्रयास करता है कि अदालत के फैसलों या आदेशों के बावजूद यह प्रावधान लागू होगा।
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