मंत्रालय: 
संचार एवं इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी

नियम और रेगुलेशन की समीक्षा   

आईटी नियम, 2021 में संशोधन 

नियमों की मुख्य विशेषताएं  

2022 के अधिसूचित संशोधन

  • इंटरमीडियरीज़ को नियमों और रेगुलेशंस, गोपनीयता नीति और यूज़र एग्रीमेंट का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए और यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर करने से रोकने के लिए उपयुक्त प्रयास करने चाहिए। उन्हें यूज़र्स के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान भी करना चाहिए।  

  • केंद्र सरकार शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई के लिए एक या एक से अधिक शिकायत अपीलीय समिति की स्थापना करेगी।

2023 के ड्राफ्ट संशोधन 

  • ड्राफ्ट संशोधनों में झूठी/फेक इनफॉरमेशन को प्रतिबंधित करने से संबंधित प्रस्ताव हैं और यह ऑनलाइन गेमिंग को भी रेगुलेट करते हैं।

  • इंटरमीडियरीज़ को ऐसी कोई भी इनफॉरमेशन को अपने प्लेटफॉर्म से हटाना होगा, जिसे प्रेस सूचना ब्यूरो की फैक्ट-चेक यूनिट या केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत किसी एजेंसी ने झूठा या फेक बताया हो ताकि ऐसे कंटेंट की लायबिलिटी से बचा जा सके।

  • ऑनलाइन गेम एक ऐसा गेम है जिसे डिपॉजिट के साथ और जीत हासिल करने की उम्मीद के साथ इंटरनेट पर खेला जाता है। ऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरी को कुछ अतिरिक्त ड्यू डेलिजेंस सुनिश्चित करने होंगे, जैसे रैंडम नंबर जनरेटर और नो-बोट सर्टिफिकेट को प्रदर्शित करना।

  • रजिस्टर्ड गेम्स के कंटेट को रेगुलेट करने के लिए सेल्फ-रेगुलेटिंग बॉडीज़ (एसआरबीज़) को भी शक्तियां दी जानी चाहिए। एसआरबीज़ को गेम्स को टेस्ट, वैरिफाई और रजिस्टर करने के लिए ऐसा फ्रेमवर्क बनाना चाहिए जिससे देश की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा सुरक्षित रहे।

मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

2022 के अधिसूचित संशोधन

  • संशोधन इंटरमीडियरीज़ की भूमिका को व्यापक और उन्हें अपने विवेक से कंटेंट को रेगुलेट करने में समर्थ बना सकते हैं जिससे यूज़र्स की बोलने की स्वतंत्रता पर असर हो सकता है।

  • इंटरमीडियरी वह उपयुक्त एंटिटी नहीं हो सकती है जो इस बीच में संतुलन कायम कर सके कि किस कंटेट को प्रतिबंधित किया जाए और बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार भी सुनिश्चित हो।

2023 के ड्राफ्ट संशोधन

  • ड्राफ्ट संशोधन में कंटेंट के झूठा या फेक होने के आधार पर उसे रेगुलेट करने का प्रावधान है जोकि अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है। किसी जानकारी का झूठा होना, वाणी पर प्रतिबंध का संवैधानिक आधार नहीं है।

  • सुरक्षात्मक उपाय के बिना किसी कार्यकारी निकाय को किसी कंटेंट को हटाने का अधिकार देना उचित नहीं हो सकता। इससे ऐसे उदाहरण देखने को मिल सकते हैं जिसमें सरकार की आलोचना, जोकि लोकतंत्र का आधार है, को पर्याप्त चेक्स और बैलेंस के बिना हटा दिया जाए।

  • केंद्र सरकार के पास गेमिंग को रेगुलेट करने का क्षेत्राधिकार नहीं हो सकता। उसमें ऑनलाइन गेमिंग के सिर्फ उस पहलू को रेगुलेट करने की क्षमता हो सकती है जो संचार का हिस्सा है, क्योंकि वही संघीय सूची में आता है।

इंटरमीडियरीज़ ऐसी एंटिटीज़ होती हैं जोकि दूसरे लोगों की तरफ से डेटा स्टोर या ट्रांसमिट करती हैं, और इसमें टेलीकॉम और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स, ऑनलाइन मार्केटप्लेस, सर्च इंजन और सोशल मीडिया साइट्स शामिल हैं।[1]  इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम) में निर्दिष्ट किया गया है कि अगर इंटरमीडियीज़ को थर्ड-पार्टी इनफॉरमेशन की लायबिलिटी से छूट चाहिए तो उसे कुछ ड्यू डेलिजेंस करना होगा। यह न्यूज़ और करंट अफेयर्स के ऑनलाइन पब्लिशर्स के कंटेट और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल कंटेंट को रेगुलेट करने के लिए एक फ्रेमवर्क भी प्रदान करते हैं। 2022 के संशोधनों में इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षित है कि वे यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर करने से रोकने के लिए उपयुक्त प्रयास करें और शिकायत निवारण तंत्र में संशोधन करें।

दिसंबर 2022 में भारत सरकार (कार्य आबंटन) नियम, 1961 को संशोधित किया गया ताकि ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित मामलों को इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के दायरे में लाया जा सके।[2]  इसके बाद 2 जनवरी, 2023 को आईटी नियमों में ड्राफ्ट संशोधनों को जारी किया गया।[3],[4] 2023 के ड्राफ्ट संशोधनों में फेक इनफॉरमेशन और ऑनलाइन गेम्स को रेगुलेट करने के प्रावधान जोड़े गए हैं। मंत्रालय का कहना है कि प्रस्तावित संशोधन यूज़र्स को ऑनलाइन गेम्स खेलने के कारण होने वाले नुकसान से बचाना चाहते हैं।[5]

मुख्य विशेषताएं

2022 के संशोधन

  • इंटरमीडियरीज़ के दायित्वआईटी नियमों में इंटरमीडियरीज़ से अपेक्षित है कि वे नियम और रेगुलेशंस, गोपनीयता नीति और अपनी सेवाओं के एक्सेस या यूसेज के लिए यूज़र एग्रीमेंट्स को पब्लिश करें। संशोधनों में कहा गया कि ये विवरण अंग्रेजी या संविधान की आठवीं अनुसूची में निर्दिष्ट किसी भाषा में उपलब्ध कराए जाने चाहिए। आईटी नियमों के तहत यूज़र्स को ऐसे कंटेट को क्रिएट, अपलोड या शेयर करने से मनाही है जो भारत की एकता या सार्वजनिक व्यवस्था को खतरा हो, पोर्नोग्राफिक हो, कॉपीराइट या पेटेंट का उल्लंघन करता हो या जिसमें सॉफ्टवेयर वायरस हो। इंटरमीडियरीज़ को अपने यूज़र्स को इन प्रतिबंधों के बारे में सूचना देनी चाहिए। संशोधन इसमें निम्नलिखित जोड़ते हैं: (i) नियमों और रेगुलेशंस, गोपनीयता नीति और यूज़र एग्रीमेंट का अनुपालन सुनिश्चित करना, (ii) यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर करने से रोकने के लिए उपयुक्त प्रयास करना, और (iii) अनुच्छेद 14, 19 और 21 सहित भारत के संविधान के तहत नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करना। 

  • शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की व्यवस्था: आईटी नियमों में इंटरमीडियरीज़ से अपेक्षित है कि वे नियमों के उल्लंघनों से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए शिकायत अधिकारी को निर्दिष्ट करेंगे। संशोधनों में जोड़ा गया है कि केंद्र सरकार एक शिकायत अपीलीय समिति को नियुक्त करेगी जोकि शिकायत अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील की सुनवाई करेगी। शिकायत अधिकारी के फैसले के 30 दिनों के भीतर यह अपील की जानी चाहिए और उस पर 30 दिनों के भीतर फैसला हो जाना चाहिए। इंटरमीडियरी समिति के आदेश को संकलित करेगा और उसकी रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी।

  • प्रतिबंधित कंटेट को तुरंत हटानाआईटी नियमों के तहत इंटरमीडियरीज़ को 24 घंटे के भीतर नियमों के उल्लंघन के संबंध में शिकायतों को स्वीकार करना और 15 दिनों के भीतर शिकायतों को निपटाना होगा। संशोधन में जोड़ा गया है कि निर्दिष्ट प्रतिबंधित कंटेट को हटाने से संबंधित शिकायत को 72 घंटों के भीतर निपटाया जाना चाहिए।

2023 के ड्राफ्ट संशोधन

  • ऑनलाइन गेम्स: ऑनलाइन गेम एक ऐसे गेम के रूप में परिभाषित है जोकि इंटरनेट पर पेश किया जाता है, और अगर यूज़र जीत हासिल करने की उम्मीद के साथ डिपॉजिट करता है तो उसे एक्सेसबल हो जाता है। डिपॉजिट नकदी या वस्तु के रूप में किया जा सकता है। जीत का अर्थ, नकद या वस्तु के रूप में दिया जाने वाला पुरस्कार है जिसे खेल के नियमों और खिलाड़ी के प्रदर्शन के आधार पर वितरित किया जाता या वितरित किया जाना है। केंद्र सरकार किसी अन्य खेल को ऑनलाइन गेम के रूप में अधिसूचित कर सकती है। 

  • ऑनलाइन गेम्स और फेक न्यूज़ के लिए इंटरमीडियरी का दायित्व: सभी इंटरमीडियरीज़ को यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त प्रयास करने चाहिए कि यूज़र्स किसी गैरकानूनी ऑनलाइन गेम को होस्ट न करे या ऐसी कोई इनफॉरमेशन को पब्लिश न करे जिसे प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट-चेक यूनिट या केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत किसी एजेंसी ने झूठा या फेक बताया हो।

  • ऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरीज़: ऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरी एक ऐसी इंटरमीडियरी होती है जोकि कम से कम एक ऑनलाइन गेम की पेशकश करती है। किसी ऑनलाइन गेम को होस्ट, पब्लिश करने या उसका विज्ञापन करने के लिए इंटरमीडियरी को यह पुष्टि करनी चाहिए कि वह गेम सेल्फ-रेगुलेटरी बॉडी में रजिस्टर्ड है। इन इंटरमीडियरीज़ के अतिरिक्त दायित्वों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अपने गेम्स को सेल्फ रेगुलेटरी बॉडी के साथ रजिस्टर करना, (ii) रैंडम नंबर जनरेशन सर्टिफिकेट और नो-बोट सर्टिफिकेट हासिल और प्रदर्शित करना, (iii) यूज़र रजिस्ट्रेशन के लिए नो-योर-कस्टमर (केवाईसी) प्रक्रिया, वित्तीय नुकसान के जोखिम और गेम के साथ जुड़े एडिक्शन (व्यसन) और यूज़र्स की धनराशि को सुरक्षित रखने के बारे में यूज़र्स को बताना, और (iv) खाता संबंधी संबंधों के लिए आरबीआई की प्रक्रियाओं के अनुसार यूज़र्स की पहचान की पुष्टि करना। इन इंटरमीडियरीज़ का फिजिकल पता भारत में होना चाहिए।

  • शिकायत निवारणऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरीज़ को नियमों के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों को दूर करने के लिए एक व्यवस्था तैयार होगी और उसे पब्लिश करना होगा। अगर कोई व्यक्ति इंटरमीडियरी के शिकायत निवारण के स्तर से असंतुष्ट है, तो वह उस मामले को सेल्फ-रेगुलेटरी बॉडी (एसआरबी) के पास ले जा सकता है। एसआरबी में एक शिकायत निवारण व्यवस्था होनी चाहिए। अगर मामला इस स्तर पर भी नहीं सुलझता तो उसे शिकायत अपीलीय समिति के पास ले जाया जा सकता है। समिति को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। 

मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

2022 के संशोधन 

संशोधन इंटरमीडियरी की भूमिका को बढ़ा सकते हैं    

सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 के तहत एक इंटरमीडियरी थर्ड-पार्टी इनफॉरमेशन के लिए लायबल नहीं है, जोकि वह होल्ड या ट्रांसमिट करता है।[6] हालांकि इस छूट का दावा करने के लिए उसे इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया की आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम) के तहत कुछ ड्यू डेलिजेंस को पूरा करना होगा।[7] इन शर्तों में सर्विस एग्रीमेंट्स में कंटेंट की उन श्रेणियों को निर्दिष्ट करना शामिल है जिन्हें यूज़र्स अपलोड या शेयर नहीं कर सकते, और सरकारी या अदालती आदेश आने पर कंटेंट को हटाना शामिल है। प्रतिबंधित कंटेंट में ऐसा कंटेंट शामिल है जो अश्लील हैबच्चे के लिए हानिकारक है, सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करता है, और जिसमें खुद को किसी दूसरे व्यक्ति के तौर पेश किया जाता है। संशोधन में जोड़ा गया है कि इंटरमीडियरीज़ को यूज़र्स को प्रतिबंधित कंटेंट को क्रिएट, अपलोड या शेयर करने से रोकने के लिए उपयुक्त प्रयास करना चाहिए। इसके लिए इंटरमीडियरीज़ को यह तय करने के लिए अपने विवेक का इस्तेमाल करना होगा कि कौन से कंटेंट पर प्रतिबंध है और अपने प्लेटफॉर्म पर उस कंटेंट को होस्ट करने से रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। इससे जुड़े दो मुद्दे हैं। 

पहला, सर्वोच्च न्यायालय (2015) ने श्रेया सिंघल बनाम भारतीय संघ मामले में कहा है कि आईटी एक्ट, 2000 के तहत इंटरमीडियरीज़ किसी कंटेंट को तभी डिसेबल कर सकता है, जब उसे अदालत या संबंधित सरकार या उसकी एजेंसी की तरफ से कोई आदेश मिलता है।[8]  इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षा करना कि वे अपने दिमाग से तय करें कि कौन सा कंटेंट प्रतिबंधित है, उनकी भूमिका को व्यापक बनाता है। वह यूज़र-जेनरेटेड कंटेंट के फेसिलिटेटर से अपने प्लेटफॉर्म पर कंटेंट को रेगुलेट करने वाला बन जाएगा।  

दूसरा, इंटरमीडियरीज़ से यह भी अपेक्षित है कि वे यूज़र के बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19) का सम्मान करे। इसका अर्थ यह है कि उसे इन दो बातों के बीच संतुलन कायम करना होगा कि किस कंटेट को हटाया जाना चाहिए और क्या ऐसा करने से यूज़र के बोलने के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाले कंटेट को हटाने का फैसला लेने के लिए इंटरमीडियरीज़ सबसे उपयुक्त एंटिटी नहीं हो सकते क्योंकि इन मुद्दों पर फैसला लेने के लिए न्यायिक क्षमता जरूरी है और आम तौर पर इन्हें अदालतों द्वारा तय किया जाता है।

2023 के ड्राफ्ट संशोधन

नियम एक्ट के तहत सौंपी गई शक्तियों से परे जा सकते हैं

आईटी एक्ट इंटरमीडियरीज़ को सेफ-हार्बर मॉडल प्रदान करता है। एक्ट के तहत केंद्र सरकार निम्नलिखित को निर्दिष्ट करने वाले नियम बना सकती है: (i) जनता को इनफॉरमेशन को एक्सेस करने से रोकने के लिए सुरक्षात्मक उपाय या प्रक्रियाएंऔर (ii) थर्ड-पार्टी इनफॉरमेशन की लायबिलिटी से छूट हेतु इंटरमीडियरीज़ के लिए दिशानिर्देश।[9]  ड्राफ्ट संशोधन निम्नलिखित करते हैं: (i) कंटेंट को प्रतिबंधित करने के लिए झूठी इनफॉरमेशन का एक नया आधार बनाते हैं, (ii) ऑनलाइन गेम्स की परिभाषा जोड़ते हैं, (iiiऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरी नाम की एक नई श्रेणी बनाते हैं, (iv)  सेल्फ-रेगुलेटिंग बॉडी बनाने का प्रावधान, जो ऐसे ऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरीज़ को रजिस्टर करेगी, और (iv) उनके कंटेंट को रेगुलेट करने के लिए फ्रेमवर्क बनाना। 

निम्नलिखित को जोड़कर, नियम एक्ट के दायरे से परे जा सकते हैं: (i) इंटरमीडियरी संरक्षण के लिए झूठी इनफॉरमेशन का नया सिद्धांत (जोकि मौजूदा कानून का उल्लंघन नहीं करता), (ii) इंटरमीडियरीज़ की नई श्रेणी (ऑनलाइन गेमिंग), और (iii) ऑनलाइन गतिविधियों के नए समूह को रेगुलेट करना। एक्ट झूठी इनफॉरमेशन के रेगुलेशन का प्रावधान नहीं करता, न ही वह कार्यपालिका को ऑनलाइन गेमिंग को रेगुलेट करने की शक्ति प्रदान करता है। इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि नियम पेरेंट एक्ट के दायरे, प्रावधानों या सिद्धांतों में बदलाव नहीं कर सकते।[10],[11],[12]

झूठी इनफॉरमेशन को हटाना 

आईटी एक्ट सेफ-हार्बर मॉडल के जरिए इंटरमीडियरीज़ को रेगुलेट करता है। इसके तहत उन्हें किसी भी गैरकानूनी यूज़र-जेनरेटेड कंटेंट की लायबिलिटी से संरक्षण मिलता है, अगर वे कुछ दायित्वों को पूरा करते हैं। आईटी नियम सेफ हार्बर का दावा करने के लिए इंटरमीडियरीज़ के दायित्वों को निर्दिष्ट करते हैं। ड्राफ्ट संशोधन इसमें जोड़ते हैं कि सेफ हार्बर का दावा करने के लिए इंटरमीडियरीज़ को उस कंटेट को हटाना होगा जिसे प्रेस सूचना ब्यूरो की फैक्ट-चेक यूनिट या कोई अन्य सरकारी एजेंसी ने झूठा बताया हो। इससे निम्नलिखित प्रश्न उठते हैं। 

झूठी इनफॉरमेशन को हटाने से मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है

झूठा होने के कारण किसी ऑनलाइन कंटेंट को हटाने से निम्नलिखित प्रभावित हो सकते हैं: (i) नागरिकों की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, और (ii) पत्रकारों का अपने पेशेवर अभ्यास का अधिकार। अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्राप्त है।[13] अनुच्छेद 19 (2) में प्रावधान है कि इस अधिकार को सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकताअदालत की अवमाननामानहानिया किसी अपराध के लिए उकसाने के आधार पर प्रतिबंधित किया जा सकता है।[14]  झूठी इनफॉरमेशन अपने आप में वाणी को प्रतिबंधित करने का संवैधानिक आधार नहीं है। इसलिए एक व्यक्ति को बोलने का अधिकार है, जोकि झूठ हो सकता है, जब तक कि वह इन मानदंडों को पूरा न करे। 2015 में आईटी एक्ट में संशोधनों की जांच करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्शन 66 ए को निरस्त कर दिया था, चूंकि वह अनुच्छेद 19 (2) के उल्लिखित आधारों से इतर स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाता था। सेक्शन 66ए ऐसी इनफॉरमेशन को शेयर करने पर प्रतिबंध लगाता था जोकि झूठी/आपत्तिजनक है, और तकलीफ, खतरे, अपमान या चोट का कारण बनती है।8  

ड्राफ्ट संशोधनों के अनुसार, न्यूज आर्टिकल्स, जिसे झूठा बताया जाता है (पीआईबी या किसी केंद्रीय अधिकृत एजेंसी द्वारा) को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से हटाया जा सकता है। यह पत्रकार के अपने पेशे का अभ्यास करने के अधिकार का हनन कर सकता है। पत्रकार समाचार और विचारों को प्रसारित करने के लिए इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं और ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर समाचारों को प्रसारित करना उनके पेशे का अभिन्न अंग हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि इंटरनेट के माध्यम से पेशेवर स्वतंत्रता भी अनुच्छेद 19 (1) के तहत संवैधानिक रूप से सुरक्षित है, जोकि जनहित में उपयुक्त प्रतिबंधों के अधीन है।[15] ये प्रतिबंध प्रेस की स्वतंत्रता का भी उल्लंघन कर सकते हैं जोकि अनुच्छेद 19 (1) (क) में बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षित हैं।15,[16]  

नुकसान न पहुंचा सकने वाली झूठी इनफॉरमेशन के लिए इंटरमीडियरी को संरक्षण

इंटरमीडियरी की लायबिलिटी तभी पैदा होती है (और उन्हें सेफ हार्बर की जरूरत होती है) जब उनके प्लेटफॉर्म पर कोई अपराध किया जाता है। हालांकि, चूंकि सिर्फ झूठी इनफॉरमेशन पोस्ट करना अपराध नहीं है, ऐसे मामलों में इंटरमीडियरी को संरक्षण की जरूरत नहीं हो सकती। झूठी इनफॉरमेशन के फैलने से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए फिलहाल उसे रेगुलेट किया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 मानहानि, यानी किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचने के इरादे से उसके बारे में गलत बयान देने, को दंडित करती है।[17] आईपीसी के सेक्शन 171 जी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने के इरादे से किसी उम्मीदवार के व्यक्तिगत चरित्र के संबंध में दिए गए झूठे बयान देने पर दंड का प्रावधान करती है।[18] उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 2019 किसी उत्पाद, उसके उपयोग या गारंटी के बारे में झूठे दावे करने वाले भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाता है।[19]

कार्यपालिका का कंटेंट को हटाना

सेफ हार्बर का दावा करने के लिए इंटरमीडियरी को पीआईबी या किसी केंद्रीय अधिकृत एजेंसी द्वारा चिन्हित सूचना को हटाना होगा। किसी कंटेंट को हटवाने के लिए किसी कार्यकारी निकाय को अधिकार देना उचित नहीं हो सकता है। उदाहरण के लिए ऐसा कंटेंट हो सकता है जो सरकार के लिए आलोचनात्मक हो, तो किसी सरकारी निकाय को उसे हटवाने का निर्देश देने के लिए अधिकृत करने से हितों का टकराव हो सकता है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन हो सकता है। 

ऐसे उदाहरण हो सकते हैं जब कार्यपालिका कंटेंट को हटाने के निर्देश दे सकती है। आईटी एक्ट का सेक्शन 69ए केंद्र सरकार को किसी इनफॉरमेशन को ब्लॉक करने का अधिकार देता है, अगर वह राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या इनसे संबंधित अपराधों को रोकने जैसे कुछ उद्देश्यों के लिए जरूरी है। इस सेक्शन के तहत बनाए गए नियम आईटी मंत्रालय के सचिव को अधिकार देते हैं कि वह संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों की एक समिति की सिफारिश पर एक्सेस को ब्लॉक कर सकता है।[20],[21]  ब्लॉकिंग के आदेश से पहले इनफॉरमेशन के ओरिजिनेटर को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने सेक्शन 69ए की वैधता को बरकरार रखा था क्योंकि उसमें कार्यपालिका को कंटेंट को ब्लॉक करने की अनुमति देने का आधार उच्च है।8 

अदालतों ने फैसला दिया है कि सिर्फ उच्च स्तरीय कार्यकारी प्राधिकरण ही मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकता है। आधार एक्ट2016 के तहत एक संयुक्त सचिव को राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में व्यक्तिगत जानकारी (बायोमेट्रिक डेटा या आधार संख्या) प्रकट करने का अधिकार दिया गया था।[22] सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रावधान को रद्द कर दिया और कहा कि यह बेहतर होगा कि एक न्यायिक अधिकारी के साथ, एक उच्च पदस्थ अधिकारी को व्यक्तियों की इनफॉरमेशन के खुलासे का अधिकार दिया जाए।[23]  नतीजतनएक सचिव स्तर के अधिकारी को अधिकार प्रदान करने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया था।

इसके अतिरिक्त आईटी नियमों के तहत कोई यूज़र कंटेंट हटाने के खिलाफ शिकायत के लिए केंद्रीय स्तर पर नियुक्त शिकायत अपीलीय समिति से संपर्क कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि कार्यपालिका यह निर्धारित करती है कि किस कंटेंट को हटाना है और कंटेंट हटाने के खिलाफ शिकायतों का हल भी करती है। चूंकि ऐसे कंटेंट को हटाने से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है, इसलिए कार्यपालिका के लिए ऐसी शिकायतों को हल करना उचित नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि अगर कोई व्यक्ति अपीलीय समिति के फैसलों से संतुष्ट नहीं है तो वह अदालत जा सकता है। 

झूठी इनफॉरमेशन को रेगुलेट करने के अंतरराष्ट्रीय अनुभव 

यूरोपीय संघ स्वैच्छिक सेल्फ-रेगुलेटरी व्यवस्था से झूठी/फेक इनफॉरमेशन के मुद्दे से निपटता है। 2022 के कोड ऑफ प्रैक्टिस ऑन डिसइनफॉरमेशन पर इंटरमीडियरीज़ ने हस्ताक्षर किए हैं, और उसमें ऑनलाइन डिसइनफॉरमेशन (दुष्प्रचार) से निपटने के लिए कई प्रतिबद्धताओं को निर्दिष्ट किया गया है।[24] इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) डिसइनफॉरमेशन के प्रसार को वित्त पोषित न करना, (ii) राजनीतिक विज्ञापन में पारदर्शिता सुनिश्चित करनाऔर (iii) फैक्ट-चेकर्स के साथ सहयोग बढ़ाना। यूरोपीय डेमोक्रेसी ऐक्शन प्लान डिसइनफॉरमेशन को ऐसी गलत सूचना के रूप में चिन्हित करता है जिसे नुकसान पहुंचाने के इरादे से शेयर किया जाता हैऔर इससे सार्वजनिक नुकसान हो सकता है।[25]   

कई इंटरमीडियरीज़ स्वैच्छिक फैक्ट-चेकिंग के जरिए झूठी या भ्रामक इनफॉरमेशन को पहले से रेगुलेट कर रहे हैं। सोशल मीडिया इंटरमीडियरीज़ कुछ ‘कम्युनिटी स्टैंडर्ड्स’ बनाते हैं जिनका पालन यूज़र्स को करना होता है, अगर वे सेवा का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए ट्विटर के यूज़र्स 'कम्युनिटी नोट्सफीचर के माध्यम से संभावित रूप से भ्रामक पोस्ट पर संदर्भ प्रदान कर सकते हैं। कॉन्ट्रिब्यूटर्स किसी भी ट्वीट पर नोट्स छोड़ सकते हैं और अगर विभिन्न नजरियों वाले बहुत से कॉन्ट्रिब्यूटर्स ने उस नोट को हेल्पफुल रेट किया हैतो नोट सार्वजनिक रूप से एक ट्वीट पर दिखाया जाएगा। ये ट्वीट हटाए नहीं जाते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में 2020 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान ट्विटर ने अपनी सिविक इंटीग्रिटी पॉलिसी को अपडेट कियाजिसके तहत मतदान केंद्रोंचुनाव में धांधलीमतपत्र से छेड़छाड़ के बारे में झूठे दावोंया संबंधों को गलत तरीके से पेश करने वाले ट्वीट्स को लेबल किया जाता था।[26]  ऐसे कंटेंट को प्रतिबंधित करना है या भ्रामक के तौर पर फ्लैग करना है, यह ट्विटर की नीति के उल्लंघन की गंभीरता के आधार तय किया जाता है।26 इसी तरहइंस्टाग्राम ने कोविड और उसके वैक्सीनेशन के बारे में झूठे दावों को प्रतिबंधित कियाताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रोग के प्रसार और वैक्सीन के प्रभाव के बारे में गलत जानकारी न फैले।[27]  उसने कोविड से संबंधित सभी कंटेंट को फ्लैग भी किया और यह डिस्क्लेमर भी दिया गया कि सिर्फ सत्यापित मेडिकल रिसर्च पर विश्वास करें।

ऑनलाइन गेमिंग का रेगुलेशन

ऑनसाइन गेमिंग को रेगुलेट करने के लिए केंद्र का क्षेत्राधिकार 

केंद्र सरकार ने आईटी एक्ट, 2000 के तहत नियम बनाने की शक्तियों के जरिए ऑनलाइन गेमिंग को रेगुलेट करने का प्रयास किया है।9 जबकि गेम्स संविधान की सातवीं अनुसूची की किसी भी सूची में शामिल नहीं हैं, खेल (प्रविष्टि 33) और दांव और जुआ (प्रविष्टि 34) राज्य सूची के विषय हैं।[28] संचार (प्रविष्टि 31) केंद्रीय सूची में शामिल है। ऑनलाइन गेम्स को इंटरनेट पर संचार के उपकरण के जरिए खेला जाता है। किसी विषय से संबंधित विधायी सक्षमता को निर्धारित करने के लिए अदालतें आम तौर पर सार और तत्व के सिद्धांत (डॉक्टरीन ऑफ पिथ एंड सब्सटांस) का इस्तेमाल करती हैं।[29] यानी, वे कानून के केंद्रीय उद्देश्य को चिन्हित करती हैं और देखती हैं कि यह किस सूची के दायरे में आता है।

इस सिद्धांत के आधार पर हम देखते हैं कि केंद्र के पास ऑनलाइन गेमिंग के केवल उन पहलुओं को रेगुलेट करने की योग्यता है जो संचार के अनुरूप हैं। हालांकि 2018 में विधि आयोग ने कहा था कि संसद के पास ऑनलाइन दांव और जुए पर कानून बनाने की योग्यता है, क्योंकि वह संचार मीडिया पर खेला जाता है (जैसे टेलीफोन, वायरलेस या ब्रॉडकास्टिंग)।[30] ड्राफ्ट संशोधनों में सेल्फ-रेगुलेटरी बॉडीज़ (एसआरबीज़) के लिए प्रावधान है जोकि गेम्स को सत्यापित करने और उनके कंटेंट को रेगुलेट करने के लिए जिम्मेदार होंगी। वे उन सिद्धांतों की रूपरेखा भी प्रस्तुत करते हैं जिनके माध्यम से एसआरबी ऑनलाइन गेम के कंटेंट को रेगुलेट करते हैं। सवाल यह है कि क्या ऐसी जरूरत गेमिंग के संचार वाले पहलू को रेगुलेट करने और केंद्र की विधायी योग्यता से परे जाती है। इसके अतिरिक्त नियमों के जरिए ऐसे रेगुलेशंस को बनाना, शक्तियां सौंपने यानी डेलिगेशन की अनुमत सीमा से अधिक हो सकता है।

गेम के यूज़र्स के लिए केवाईसी सत्यापन करने की आवश्यकता अत्यधिक हो सकती है 

ड्राफ्ट संशोधनों में ऑनलाइन गेमिंग इंटरमीडियरीज़ से यह अपेक्षा की गई है कि वे यूज़र एकाउंट को रजिस्टर करने के लिए नो-योर-कस्टमर (केवाईसी) प्रक्रिया के बारे में सूचित करेंगे इसलिए गेमिंग इंटरमीडियरीज़ के पास केवाईसी प्रक्रिया होनी चाहिए। प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 के नियमों के तहत मनी लॉन्ड्रिंग या आतंकवाद की फाइनांसिंग को रोकने के लिए केवाईसी सत्यापन किया जाता है।[31],[32]  यह अस्पष्ट है कि ऑनलाइन गेम्स खेलने के लिए यूज़र की पहचान के लिए इतने उच्च स्तर की जरूरत है या नहीं। राइड-शेयरिंग ऐप्स जैसे सर्विस प्रोवाइडर्स, कंटेंट स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स या फिजिकल लॉटरी में भी वित्तीय लेनदेन होता है लेकिन उसमें उपभोक्ता की पहचान के लिए केवाईसी की जरूरत नहीं होती। इसके अतिरिक्त बैंकों या गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा केवाईसी सत्यापन की जरूरत होती है।[33] यह देखते हुए कि ऑनलाइन गेम में यूज़र्स धनराशि का हस्तांतरण करते हैं, उपभोक्ता की पहचान के लिए संबंधित बैंक की शर्त के तहत केवाईसी सत्यापन पहले ही कर लिया जाता है। 

 

[1]. Section 2 (1) (w), The Information Technology Act, 2000.

 

[3]Draft Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Amendment Rules, 2023, Ministry of Electronics and Information Technology, January 2, 2023.

[5]Notice for Public Consultation, Ministry of Electronics and Information Technology, January 2, 2023.

[8]Shreya Singhal vs Union of India, Writ Petition (Criminal) No. 167 Of 2012, Supreme Court of India, March 24, 2015.

[10]Agricultural Market Committee vs Shalimar Chemical Works Ltd, 1997 Supp (1) SCR 164, The Supreme Court of India, May 7, 1997.

[11]Kerala State Electricity Board vs Indian Aluminium Company, 1976 SCR (1) 552, The Supreme Court of India, September 1, 1975.

[12]State of Karnataka v Ganesh Kamath, 1983 SCR (2) 665, The Supreme Court of India, March 31, 1983.

[13]. Article 19 (1), The Constitution of India.

[14]. Article 19 (2), The Constitution of India

[15]Anuradha Bhasin vs Union of India, Writ Petition (Civil) No. 1031 of 2019 and 1164 of 2019, The Supreme Court of India, January 10, 2020.

[16]Express Newspaper (Private) Ltd. vs Union of India, The Supreme Court of India, January 8, 1958.  

[17]. Sections 499 and 500, Indian Penal Code, 1860.

[18]. Section 171(G), Indian Penal Code, 1860.

[23]Justice K.S. Puttaswamy vs Union of India and others, Writ Petition (Civil) No. 494 of 2012 and connected matters, The Supreme Court of India, September 26, 2018.

[24]The 2022 Code of Practice on Disinformation, June 16, 2022, as updated on July 4, 2022.

[26]Civic Integrity Policy, Twitter, October 2021, as accessed on January 26, 2023. 

[27]Community Guidelines, Instagram Help Centre, as accessed on January 24, 2023.

[28]. Seventh Schedule, The Constitution of India

[30]Report No. 276, Law Commission of India, Legal Framework: Gambling and Sports Betting Including in Cricket in India, July 5, 2018.

[33]Master Direction – Know your Customer (KYC) Direction 2016, Reserve Bank of India, as on May 10, 2021.

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