मंत्रालय: 
विधि एवं न्याय
  • विधि और न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 15 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में आर्बिट्रेशन और कंसीलिएशन (संशोधन) बिल, 2019 पेश किया। यह बिल आर्बिट्रेशन और कंसीलिएशन एक्ट, 1996 में संशोधन करता है। एक्ट में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन से संबंधित प्रावधान हैं और यह सुलह प्रक्रिया को संचालित करने से संबंधित कानून को स्पष्ट करता है। बिल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं :
     
  • भारतीय आर्बिट्रेशन परिषद: बिल आर्बिट्रेशन, मीडिएशन, कंसीलिएशन और विवाद निपटाने के दूसरे तरीकों को बढ़ावा देने के लिए एक स्वतंत्र संस्था भारतीय आर्बिट्रेशन परिषद (एसीआई) की स्थापना करने का प्रयास करता है। परिषद के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) आर्बिट्रल संस्थानों की ग्रेडिंग के लिए नीतियां बनाना और आर्बिट्रेटर्स को एक्रेडेट करने संबंधी फैसले लेना, (ii) विवाद निवारण के सभी वैकल्पिक मामलों में एक समान पेशेवर मानदंडों की स्थापना, संचालन और रखरखाव के लिए नीतियां बनाना, और (iii) भारत और विदेशों में आर्बिट्रेशन से संबंधित फैसलों की डिपोसिटरी (भंडार) का रखरखाव करना।
     
  • एसीआई की संरचना : एसीआई में एक चेयरपर्सन होगा, जोकि (i) या तो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश होगा, या (ii) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होगा, या (iii) उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होगा, या (iv) आर्बिट्रेशन की विशेष जानकारी रखने वाला विख्यात व्यक्ति होगा। इसके अतिरिक्त परिषद में आर्बिट्रेशन के क्षेत्र से संबंधित एक विख्यात व्यक्ति, आर्बिट्रेशन में अनुभव प्राप्त एक एकैडमीशियन और सरकार द्वारा नियुक्त सदस्य शामिल होंगे।
     
  • आर्बिट्रेटर्स की नियुक्ति : 1996 के एक्ट के अंतर्गत विभिन्न पक्ष आर्बिट्रेटर्स को नियुक्त करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। किसी नियुक्ति पर मतभेद होने पर वे पक्ष सर्वोच्च न्यायालय या संबंधित उच्च न्यायालय, या उस न्यायालय द्वारा नामित व्यक्ति या संस्थान से आर्बिट्रेटर की नियुक्ति का आग्रह कर सकते हैं।
     
  • बिल के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय आर्बिट्रलर संस्थानों को नामित कर सकते हैं। आर्बिट्रेटर्स की नियुक्ति के लिए विभिन्न पक्ष उनसे संपर्क कर सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय कमर्शियल आर्बिट्रेशन के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्थान नियुक्तियां करेगा। आर्बिट्रेशन के घरेलू मामलों में संबंधित उच्च न्यायालय द्वारा नामित संस्थानों द्वारा नियुक्तियां की जाएंगी। अगर कोई आर्बिट्रेशन संस्थान मौजूद न हों तो संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर्बिट्रेटर्स का एक पैनल बना सकते हैं जोकि आर्बिट्रेशन संस्थानों का काम करेंगे। आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के आवेदन का निपटारा 30 दिनों के अंदर कर दिया जाना चाहिए।
     
  • समय सीमा में राहत : 1996 के एक्ट के अंतर्गत आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सभी कार्यवाहियों पर 12 महीने के अंदर फैसला ले लें। बिल ने अंतरराष्ट्रीय कमर्शियल आर्बिट्रेशंस में इस समय सीमा को हटा दिया है। बिल यह भी कहता है कि ट्रिब्यूनलों को अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन के मामलों को 12 महीने के भीतर निपटाने का प्रयास करना चाहिए।
     
  • लिखित सबमिशन को पूरा करना : वर्तमान में किसी आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल के सामने लिखित सबमिशन फाइल करने की कोई समय सीमा नहीं है। बिल में अपेक्षा की गई है कि आर्बिट्रेशन की किसी कार्यवाही में लिखित दावे और दावे के बचाव की प्रक्रिया आर्बिट्रेटर की नियुक्ति के छह महीने के अंदर पूरी हो जानी चाहिए।
     
  • कार्यवाहियों की गोपनीयता : बिल में प्रावधान है कि कुछ स्थितियों में आर्बिट्रेशन से संबंधित फैसलों के विवरण को छोड़कर, आर्बिट्रेशन की कार्यवाहियों से जुड़े बाकी विवरणों को गोपनीय रखा जाएगा। आर्बिट्रेशन के किसी फैसले का खुलासा तब किया जाएगा, जब उसे लागू करने या उसके प्रवर्तन के लिए यह जरूरी होगा।
     
  • आर्बिट्रेशन और कंसीलिएशन एक्ट, 2015 की एप्लीकेबिलिटी: बिल स्पष्ट करता है कि 2015 का एक्ट केवल उन्हीं कार्यवाहियों में लागू होगा जोकि 23 अक्टूबर, 2015 को या उसके बाद शुरू हुई थीं।

 

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