- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने 24 जुलाई, 2019 को राज्यसभा में इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) बिल, 2019 को पेश किया। बिल इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 में संशोधन करता है। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों के बीच इनसॉल्वेंसी को रिज़ॉल्व करने के लिए एक समयबद्ध प्रक्रिया प्रदान करती है। इनसॉल्वेंसी वह स्थिति है, जब व्यक्ति या कंपनियां अपना बकाया ऋण नहीं चुका पाते।
- संहिता के अंतर्गत फाइनांशियल क्रेडिटर इनसॉल्वेंसी के रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया की शुरुआत करने के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) में आवेदन कर सकता है। एनसीएलटी को 14 दिनों के अंदर डीफॉल्ट का पता लगाना होगा। इसके बाद फाइनांशियल क्रेडिटर्स वाली कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) का गठन किया जाएगा ताकि इनसॉल्वेंसी के रेज़ोल्यूशन से संबंधित फैसले लिए जा सकें। सीओसी यह तय कर सकती है कि रेज़ोल्यूशन प्लान तैयार करके देनदार के ऋण को पुनर्गठित किया जाए या उसकी परिसंपत्तियों को लिक्विडेट कर दिया जाए।
- सीओसी एक रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल को नियुक्त करेगी जोकि सीओसी को रेज़ोल्यूशन प्लान देगी। सीओसी को रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूर करना होगा और रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया को 180 दिनों के भीतर पूरा होना चाहिए। इस अवधि को 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है, अगर एनसीएलटी इसे मंजूर कर दे।
- अगर सीओसी रेज़ोल्यूशन प्लान को नामंजूर कर देती है तो देनदार को लिक्विडेशन का विकल्प अपनाना होगा। देनदार के लिक्विडेशन की स्थिति में संहिता परिसंपत्तियों के वितरण के लिए वरीयता का क्रम बताती है। इसमें फाइनांशियल क्रेडिटर्स को ऑपरेशनल क्रेडिटर्स (जैसे सप्लायर्स) के मुकाबले वरीयता दी गई है। 2018 के संशोधन में घर खरीदारों को, जोकि डेवलपर को अग्रिम राशि चुकाते हैं, फाइनांशियल क्रेडिटर माना गया था। उनका प्रतिनिधित्व एनसीएलटी द्वारा नियुक्त इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल करेगा।
- बिल तीन मुद्दों को संबोधित करता है। पहला, वह समय सीमा से संबंधित प्रावधानों को मजबूत करता है। दूसरा, वह किसी रेज़ोल्यूशन प्लान में ऑपरेशनल क्रेडिटर्स के न्यूनतम पेआउट को स्पष्ट करता है। तीसरा, बिल यह विनिर्दिष्ट करता है कि फाइनांशियल क्रेडिटर्स (जैसे घर खरीदार) के समूह का प्रतिनिधि किस तरीके से वोट करेगा।
- रेज़ोल्यूशन प्लान: संहिता के अनुसार रेज़ोल्यूशन प्लान में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि ऑपरेशनल क्रेडिटर्स को लिक्विडेशन की स्थिति में प्राप्त होने वाली राशि से अधिक राशि प्राप्त हो। बिल इसमें संशोधन करता है और प्रावधान करता है कि ऑपरेशनल क्रेडिटर्स को (i) लिक्विडेशन के अंतर्गत प्राप्त होने वाली राशि, तथा (ii) रेज़ोल्यूशन प्लान के अंतर्गत प्राप्त होने वाली राशि, अगर वह राशि वरीयता क्रम के अनुसार (लिक्विडेशन के समय) वितरित की गई है, के बीच से अधिक राशि चुकाई जाए। उदाहरण के लिए अगर डीफॉल्ट 1,000 करोड़ रुपए का है और रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल 800 करोड़ रुपए रिकवर कर पाता है तो ऑपरेशनल क्रेडिटर को कम से कम उतनी राशि मिलनी चाहिए जितनी उसे लिक्विडेशन की प्रक्रिया से हासिल होती।
- इसके अतिरिक्त बिल कहता है कि यह प्रावधान इनसॉल्वेंसी की उन सभी प्रक्रियाओं पर भी लागू होगा: (i) जिन्हें राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) द्वारा मंजूर या नामंजूर नहीं किया गया है, (ii) जिनकी अपील राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल या सर्वोच्च न्यायालय में की गई है, और (iii) जिन मामलों में एनसीएलटी के फैसले के खिलाफ किसी अदालत में कानूनी कार्यवाही शुरू की गई है।
- रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया की शुरुआत: संहिता के अनुसार एनसीएलटी को रेज़ोल्यूशन का आवेदन प्राप्त होने के 14 दिनों के अंदर यह निर्धारित करना होगा कि डीफॉल्ट किया गया था। अपने निष्कर्षों के आधार पर एनसीएलटी आवेदन को मंजूर या नामंजूर कर सकता है। बिल कहता है कि अगर एनसीएलटी को डीफॉल्ट होने का पता नहीं चलता और वह 14 दिनों के अंदर आदेश जारी नहीं करता तो उसे लिखित में इसके कारण बताने होंगे।
- रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया की समय सीमा: संहिता कहती है कि इनसॉल्वेंसी प्रक्रिया को 180 दिनों में पूरा होना चाहिए जिसे 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। बिल कहता है कि रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया को 330 दिनों में पूरा होना चाहिए। इसमें रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया की बढ़ी हुई अवधि और कानूनी कार्यवाही में लगने वाला समय भी शामिल होगा। बिल के लागू होने पर, अगर कोई मामला 330 दिनों तक लंबित है, तो बिल के अनुसार, उसे 90 दिनों में निपटाया जाना चाहिए।
- फाइनांशियल क्रेडिटर्स के प्रतिनिधि: संहिता विनिर्दिष्ट करती है कि कुछ मामलों में, जैसे जब एक निर्दिष्ट संख्या से अधिक क्रेडिटर्स का ऋण बकाया है तो फाइनांशियल क्रेडिटर्स का अधिकृत प्रतिनिधि कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स में उनका प्रतिनिधित्व करेगा। ये प्रतिनिधि फाइनांशियल क्रेडिटर्स के निर्देशानुसार उनकी ओर से वोट करेंगे। बिल कहता है कि ये प्रतिनिधि लेनदारों के बहुमत से लिए गए निर्णय के आधार पर वोट करेंगे।
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