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वित्त
  • इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (संशोधन) अध्यादेश, 2021 को 4 अप्रैल, 2021 को जारी किया गया। इनसॉल्वेंसी वह स्थिति है, जब व्यक्ति या कंपनियां अपना बकाया ऋण नहीं चुका पाते।

  • संहिता कॉरपोरेट देनदारों की इनसॉल्वेंसी को हल करने के लिए एक समयबद्ध प्रक्रिया (330 दिनों में) प्रदान करती है जिसे कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (सीआईआरपी) कहते हैं। देनदार खुद या उसके लेनदार (क्रेडिटर्स) न्यूनतम एक लाख रुपए के डीफॉल्ट की स्थिति में सीआईआरपी शुरू करने का आवेदन कर सकते हैं। सीआईआरपी के अंतर्गत क्रेडिटर्स की कमिटी बनाई जाती है जोकि इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन के संबंध में फैसला लेती है। कमिटी एक रेज़ोल्यूशन प्लान पर विचार कर सकती है जिसमें आम तौर पर कंपनी के विलय, अधिग्रहण या पुनर्गठन के जरिए ऋण चुकाने का प्रावधान होता है। अगर रेज़ोल्यूशन प्लान को क्रेडिटर्स की कमिटी द्वारा एक निश्चित समय में मंजूर नहीं किया जाता तो कंपनी लिक्विडेट हो जाती है। सीआईआरपी के दौरान कंपनी के मामलों का प्रबंधन रेज़ोल्यूशन प्रोफेशनल (आरपी) द्वारा किया जाता है जोकि सीआईआरपी के लिए नियुक्त किया जाता है।
     

  • प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन: अध्यादेश सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमईज़) के लिए वैकल्पिक इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया को पेश करता है जिसे प्री-पैकेज्ड इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रक्रिया (पीआईआरपी) कहा गया है। सीआईआरपी की ही तरह पीआईआरपी भी देनदारों के जरिए ही शुरू की जा सकती है। देनदारों के पास एक बेस रेज़ोल्यूशन प्लान होना चाहिए। पीआईआरपी के दौरान कंपनी का प्रबंधन देनदारों के पास होगा।
     

  • डीफॉल्ट की न्यूनतम राशि: कम से कम एक लाख रुपए का डीफॉल्ट होने की स्थिति में पीआईआरपी शुरू करने के लिए आवेदन किया जा सकता है। केंद्र सरकार अधिसूचना के जरिए डीफॉल्ट की न्यूनतम राशि को बढ़ाकर एक करोड़ रुपए तक कर सकती है।
     

  • पीआईआरपी के लिए देनदारों की पात्रता: एमएसएमई विकास एक्ट, 2006 के अंतर्गत एमएसएमई के तौर पर वर्गीकृत कॉरपोरेट देनदार द्वारा डीफॉल्ट करने पर पीआईआरपी को शुरू किया जा सकता है। वर्तमान में 2006 के एक्ट के अंतर्गत 250 करोड़ रुपए के वार्षिक टर्नओवर वाले, और 50 करोड़ रुपए तक के मूल्य वाले संयंत्र और मशीनरी या उपकरणों में निवेश करने वाले उद्यम एमएसएमई के तौर पर वर्गीकृत होते हैं। पीआईआरपी शुरू करने के लिए कॉरपोरेट देनदार को खुद ही एड्जुडिकेटिंग अथॉरिटी (राष्ट्रीय कंपनी कानून ट्रिब्यूनल) में आवेदन करना होगा। अथॉरिटी को आवेदन मिलने के 14 दिनों के भीतर उसे मंजूर या रद्द करना होगा।
     

  • फाइनांशियल क्रेडिटर्स की मंजूरी: पीआईआरपी के आवेदन के लिए देनदारों को कम से कम 66% फाइनांशियल क्रेडिटर्स (क्रेडिटर्स पर बकाया ऋण के मूल्य में) की मंजूरी लेनी होगी जोकि देनदार से संबंधित पक्ष न हों। मंजूरी मांगने से पहले देनदार को क्रेडिटर्स को बेस रेज़ोल्यूशन प्लान देना होगा। देनदार को पीआईआरपी के आवेदन के साथ आरपी का नाम भी प्रस्तावित करना होगा। इस आरपी को कम से कम 66% फाइनांशियल क्रेडिटर्स की मंजूरी होनी चाहिए। 
     

  • पीआईआरपी के अंतर्गत कार्रवाई: देनदार को पीआईआरपी के शुरू होने के दो दिनों के भीतर आरपी को बेस रेज़ोल्यूशन प्लान देना होगा। पीआईआरपी के शुरू होने के सात दिनों के भीतर क्रेडिटर्स की कमिटी बनाई जाएगी जोकि बेस रेज़ोल्यूशन प्लान पर विचार करेगी। कमिटी देनदार को यह मौका दे सकती है कि वह इस योजना में संशोधन करे। आरपी दूसरे लोगों से भी रेज़ोल्यूशन प्लान्स मांग सकता है। निम्नलिखित स्थितियों में वैकल्पिक रेज़ोल्यूशन प्लान मांगे जा सकते हैः (i) अगर कमिटी बेस प्लान को मंजूरी नहीं देती, या (ii) वह ऑपरेशनल क्रेडिटर्स (वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित दावे) के ऋण को चुकाने में सक्षम नहीं।
     

  • रेज़ोल्यूशन प्लान को कमिटी द्वारा कम से कम 66% वोटिंग शेयर के वोट से मंजूर होना चाहिए। इस प्लान को पीआईआरपी की शुरुआत से 90 दिनों के भीतर कमिटी द्वारा मंजूर किया जाना चाहिए। कमिटी द्वारा मंजूर रेज़ोल्यूशन प्लान की जांच एड्जुडिकेटिंग अथॉरिटी करेगी। अगर कमिटी ने किसी रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूर नहीं किया तो आरपी पीआईआरपी को खत्म करने का आवेदन कर सकता है। अथॉरिटी को प्राप्ति के 30 दिनों के भीतर या तो प्लान को मंजूरी देनी होगी या पीआईआरपी को समाप्त करने का आदेश देना होगा। पीआईआरपी के समाप्त होने के बाद कॉरपोरेट देनदार का लिक्विडेशन हो जाएगा।
     

  • मोराटोरियम (मोहलत): पीआईआरपी के दौरान देनदार को मोराटोरियम यानी मोहलत मिलती है जिसके अंतर्गत उसके खिलाफ कुछ कार्रवाइयां नहीं की जाएंगी। इसमें मुकदमा दायर करना या उसे जारी रखना, अदालती आदेशों को अमल में लाना या संपत्ति की रिकवरी शामिल हैं।
     

  • पीआईआरपी के दौरान देनदार का प्रबंधन: पीआईआरपी के दौरान बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स या देनदार के पार्टनर्स देनदार के मामलों का प्रबंधन करते रहेंगे। हालांकि धोखाधड़ी या भारी कुप्रबंधन की स्थिति में देनदार का प्रबंधन आरपी को दिया जा सकता है।
     

  • सीआईआरपी की शुरुआत: पीआईआरपी की शुरुआत की तारीख से किसी भी समय, लेकिन रेज़ोल्यूशन प्लान की मंजूरी होने से पहले तक, क्रेडिटर्स की कमिटी पीआईआरपी को खत्म करने का फैसला कर सकती है और उसके स्थान पर देनदार के संबंध में सीआईआरपी को शुरू कर सकती है (कम से कम 66% वोटिंग शेयर के वोट के साथ)।

 

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