मंत्रालय: 
श्रम एवं रोजगार
  •  लोकसभा में 19 सितंबर, 2020 को औद्योगिक संबंध संहिता, 2020 को पेश किया गया। यह संहिता तीन श्रम कानूनों (i) औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947, (ii) ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 और (iii) औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1946 का स्थान लेती है।

  • ट्रेड यूनियन्स: संहिता के अंतर्गत, ट्रेड यूनियन के सात या उससे अधिक सदस्य उसे रजिस्टर करने का आवेदन कर सकते हैं। कम से कम 10% सदस्यों वाली या 100 श्रमिकों वाली (इनमें से जो भी कम हो) ट्रेड यूनियन्स रजिस्टर की जाएंगी। केंद्र और राज्य सरकार ट्रेड यूनियन या ट्रेड यूनियन्स के परिसंघ को क्रमशः केंद्रीय या राज्य ट्रेड यूनियन्स के रूप में मान्यता दे सकती है।

  • नेगोशिएटिंग यूनियन्स: संहिता किसी औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट, जिनमें रजिस्टर्ड ट्रेड यूनियन्स हैं, में नियोक्ता से बातचीत करने के लिए नेगोशिएटिंग यूनियन का प्रावधान करती है। अगर किसी औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट में सिर्फ एक ट्रेड यूनियन है तो नियोक्ता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस ट्रेड यूनियन को श्रमिकों की एकमात्र नेगोशिएटिंग यूनियन के रूप में मान्यता देगा। अगर कई ट्रेड यूनियन्स हैं तो जिस ट्रेड यूनियन को इस्टैबलिशमेंट के मस्टर रोल में दर्ज कम से कम 75% श्रमिकों का समर्थन हासिल होगा, उसी ट्रेड यूनियन को नेगोशिएटिंग यूनियन के रूप में मान्यता दी जाएगी।

  • अनुचित श्रम व्यवहार: संहिता नियोक्ताओं, श्रमिकों और ट्रेड यूनियन्स को अनुसूची में सूचीबद्ध अनुचित व्यवहार करने से प्रतिबंधित करती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) श्रमिकों को ट्रेड यूनियन्स बनाने से रोकना, (ii) श्रमिकों के लिए नियोक्ता द्वारा प्रायोजित ट्रेड यूनियन बनाना, (iiiश्रमिकों को ट्रेड यूनियन्स में शामिल होने के लिए जबदस्ती करना, (iv) नियोक्ता की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, और (v) किसी श्रमिक को काम करने से रोकना। अगर कोई व्यक्ति अनुचित श्रम व्यवहार करता है तो उसे दस हजार रुपए से लेकर दो लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।

  • स्थायी आदेश: कम से कम 300 श्रमिकों वाले सभी औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्स को कुछ मामलों पर स्थायी आदेश तैयार करने चाहिए। ये मामले निम्नलिखित से संबंधित हैं: (iश्रमिकों का वर्गीकरण, (ii) काम के घंटों, छुट्टी, वेतन के दिन और वेतन की दरों के बारे में श्रमिकों को जानकारी देने का तरीका, (iii) रोजगार की समाप्ति, (iv) दुर्व्यवहार के लिए सस्पेंशन, और (v) श्रमिकों के लिए शिकायत निवारण प्रणाली। केंद्र सरकार ऐसे मामलों पर मॉडल स्थायी आदेश तैयार करेगी जिसके आधार पर औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्स से अपने स्थायी आदेश तैयार करने की अपेक्षा की जाएगी।

  • परिवर्तन संबंधी नोटिस: नियोक्ता कुछ मामलों में तब तक सेवा शर्तों में परिवर्तन नहीं कर सकते, जब तक कि वे प्रभावित होने वाले श्रमिकों को प्रस्तावित परिवर्तनों की सूचना नहीं दे देते और वे नोटिस देने के 21 दिन से पहले ये परिवर्तन नहीं कर सकते। इन मामलों में वेतन, अंशदान, भत्ते, काम के घंटे और अवकाश शामिल हैं।  

  • कामबंदी और छंटनी: गैर मौसमी औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्स जैसे खदानों, कारखानों और बागान जहां 50 से लेकर 300 श्रमिक कार्य करते हैं, के नियोक्ताओं को (iकामबंदी के शिकार कर्मचारियों को मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 50चुकाना होगा, और (iiछंटनी के शिकार श्रमिकों को एक महीने का नोटिस या नोटिस की अवधि का वेतन देना होगा। कामबंदी कोयले, बिजली की कमी या मशीनरी के ब्रेकडाउन के कारण नियोक्ता द्वारा श्रमिक को रोजगार न दे पाने की असमर्थता को कहते हैं। छंटनी का अर्थ अनुशासानात्मक कार्रवाई के अतिरिक्त दूसरे कारणों से श्रमिक की सेवा समाप्ति है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को 50,000 रुपए से लेकर दो लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा। 

  • न्यूनतम 300 श्रमिकों वाले गैर मौसमी औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्े का 50 जहां देते और वे नोटिस देने के 21 दिन से पहले ये परिवर्तन नहीं कस को कामबंदी, छंटनी या बंद होने के लिए केंद्र या राज्य सरकार से पूर्व अनुमति लेनी होगी। केंद्र या राज्य सरकार इस सीमा को अधिसूचना के जरिए बढ़ा सकती है। इन इस्टैबलिशमेंट्स को कामबंदी के शिकार श्रमिकों को मूल वेतन और भत्ते का 50% भुगतान करना होगा। छंटनी की स्थिति में नियोक्ता को तीन महीने का नोटिस देना होगा या नोटिस की अवधि का वेतन देना होगा। इस प्रावधान का उल्लंघन करने पर नियोक्ता को एक लाख रुपए से लेकर दस लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।

  • छंटनी के एक वर्ष बाद अगर नियोक्ता लोगों को दोबारा काम पर रखता है तो उसे दूसरे लोगों की अपेक्षा छंटनी किए गए लोगों को वरीयता देनी होगी।

  • स्वैच्छिक मध्यस्थता: संहिता में इस बात की अनुमति दी गई है कि नियोक्ता और श्रमिक स्वेच्छा से औद्योगिक विवादों को मध्यस्थता के लिए भेज सकते हैं। विवाद से संबंधित पक्षों को विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजने से संबंधित एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर करने होंगे। विवाद की जांच के बाद मध्यस्थ सरकार को मध्यस्थता संबंधी फैसला सौंपेगा। औद्योगिक विवाद में रोजगार, गैर रोजगार और बर्खास्तगी, छंटनी, और श्रमिकों को नौकरी से हटाना जैसे विवाद शामिल हैं।

  • औद्योगिक विवाद का समाधान: केंद्र या राज्य सरकारें औद्योगिक विवादों में मध्यस्थता करने और समझौता कराने के लिए सुलह अधिकारियों को नियुक्त कर सकती हैं। ये अधिकारी विवाद की जांच करेंगे और सुलह की प्रक्रिया को विवाद के उचित और सौहार्दपूर्ण समाधान तक पहुंचाएंगे। अगर कोई समाधान नहीं निकलता तो विवाद का कोई भी पक्ष औद्योगिक ट्रिब्यूनल में आवेदन कर सकता है जिसका गठन संहिता के अंतर्गत किया जाएगा। केंद्र सरकार औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिए राष्ट्रीय औद्योगिक ट्रिब्यूनल बना सकती है, जोकि: (i) राष्ट्रीय महत्व के सवाल उठाएगी, या (ii) एक से अधिक राज्य में औद्योगिक इस्टैबलिशमेंट्स को प्रभावित कर सकती है। राष्ट्रीय औद्योगिक ट्रिब्यूनल में दो सदस्य शामिल होंगे- एक न्यायिक और एक प्रशासनिक जोकि एक निर्दिष्ट क्वालिफिकेशन प्राप्त व्यक्ति होगा। 

  • संहिता से छूट: 2020 के बिल में प्रावधान है कि केंद्र या राज्य सरकार जनहित में किसी नए इस्टैबलिशमेंट या नए इस्टैबलिशमेट्स की एक श्रेणी को संहिता के सभी या किसी एक प्रावधान से छूट दे सकती है।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।