मंत्रालय: 
महिला एवं बाल कल्याण

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) एक्ट, 2015 कहता है कि अदालत द्वारा एडॉप्शन के आदेश देने के बाद बच्चे के एडॉप्शन का काम पूरा हो जाता है। बिल में प्रावधान किया गया है कि अदालत की बजाय डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट एडॉप्शन के आदेश देगा।
     
  • बिल किसी अदालत में एडॉप्शन से संबंधित सभी लंबित मामलों को उस क्षेत्र के क्षेत्राधिकार वाले डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को ट्रांसफर करने का प्रयास करता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • वर्तमान में विभिन्न अदालतों में एडॉप्शन के 629 मामले लंबित हैं। एडॉप्शन की इस कार्यवाही में तेजी लाने के लिए बिल डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को यह अधिकार देता है कि वह एडॉप्शन के आदेश देगा। यहां विचार करने की बात यह है कि इतनी संख्या में मामले लंबित रहने के कारण क्या डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट पर दबाव बढ़ाना उचित है।
     
  • बच्चे का एडॉप्शन एक कानूनी प्रक्रिया है जोकि बच्चे और दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता के बीच एक स्थायी कानूनी संबंध की रचना करती है। इसलिए यह सवाल किया जा सकता है कि क्या यह उचित होगा कि एडॉप्शन के आदेश देने की शक्ति सिविल अदालत की बजाय, डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट में निहित की जाए।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) एक्ट, 2015 में उन बच्चों से संबंधित प्रावधान हैं जो कानून का उल्लंघन करते हैं और जिन्हें देखरेख एवं संरक्षण की जरूरत है।[1] इस एक्ट ने किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) एक्ट, 2000 का स्थान लिया था। विशेष रूप से यह एक्ट अनाथ, छोड़ दिए गए और सरेंडर किए गए बच्चों (माता-पिता ने जिनसे अपना कानूनी अधिकार छोड़ दिया है) के घरेलू और इंटर कंट्री एडॉप्शन की व्यापक प्रक्रिया का प्रावधान करता है। एडॉप्शन एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें कोई बच्चा अपने दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता का कानूनी बच्चा बन जाता है और इस प्रकार अपने बायोलॉजिकल माता-पिता से स्थायी रूप से अलग हो जाता है।

6 अगस्त, 2018 को किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन बिल, 2018 लोकसभा में पेश किया गया था। यह बिल एडॉप्शन की कार्यवाही में तेजी लाने के लिए डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एडॉप्शन के आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है।2  बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि देश की विभिन्न अदालतों में एडॉप्शन के आदेशों से संबंधित 629 मामले लंबित हैं।[2]

प्रमुख विशेषताएं

  • बिल किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) एक्ट, 2015 में संशोधन करता है।
     
  • 2015 के एक्ट के अंतर्गत एडॉप्शन: एक्ट के अंतर्गत भारत या विदेश में रहने वाले भावी दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता एक बार बच्चे को स्वीकार कर लेते हैं तो एडॉप्शन एजेंसी सिविल अदालत में एडॉप्शन के आदेश हासिल करने के लिए आवेदन देती है। अदालत अपने आदेश में कहती है कि बच्चा एडॉप्टिव माता-पिता का है।
     
  • अगर विदेश में रहने वाले किसी व्यक्ति को अपने किसी संबंधी के बच्चे को गोद लेना है, तो उसे अदालत से आदेश हासिल करना होता है और सेंट्रल एडॉप्शन रेगुलेशन अथॉरिटी (कारा) में नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट के लिए आवेदन करना होता है।
     
  • एक्ट में अपेक्षा की गई है कि अदालत निम्नलिखित को सुनिश्चित करेगी : (i) बच्चे के कल्याण के लिए एडॉप्शन किया जा रहा है, (ii) बच्चे की इच्छा का ध्यान रखा गया है, और (iii) एडॉप्शन के लिए किसी भी पक्ष ने कोई भुगतान प्राप्त नहीं किया है। इसके अतिरिक्त आवेदन जमा करने की तारीख से दो महीने की अवधि के अंदर अदालत को एडॉप्शन की कार्यवाही पूरी करनी होती है।
     
  • बिल अदालत की इन कार्यवाहियों को डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को ट्रांसफर करता है।
     
  • कार्यवाहियों का ट्रांसफर: बिल किसी अदालत में एडॉप्शन से संबंधित सभी लंबित मामलों को उस क्षेत्र के क्षेत्राधिकार वाले डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को ट्रांसफर करता है।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एडॉप्शन के आदेश देने का अधिकार प्रदान करना

किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) एक्ट, 2015 कहता है कि अदालत द्वारा एडॉप्शन के आदेश देने के बाद बच्चे के एडॉप्शन का काम पूरा हो जाता है। बिल कहता है कि डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट एडॉप्शन के आदेश देगा। इस संबंध में हम बिल के प्रावधानों से जुड़े कुछ मुद्दों की पड़ताल कर रहे हैं।

एडॉप्शन के आदेश से संबंधित शक्ति को डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को ट्रांसफर करने की जरूरत

बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि काम के अधिक दबाव के कारण अदालतें निश्चित समयावधि में एडॉप्शन से संबंधित आदेश नहीं दे पा रहीं।2  इसलिए एडॉप्शन की कार्यवाहियों में तेजी लाने के लिए बिल डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को ऐसे आदेश देने की शक्ति देता है।2  पिछले तीन वर्षों (मार्च 2018 तक) में लगभग 11,000 बच्चों को गोद लिया गया है जिसका अर्थ है कि हर महीने औसत 300 एडॉप्शंस किए गए हैं।[3] 20 जुलाई, 2018 तक विभिन्न अदालतों में एडॉप्शन से संबंधित 629 मामले लंबित हैं।2  इससे यह सवाल उठता है कि क्या अदालत की शक्ति डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को हस्तांतरित करने के लिए यह संख्या पर्याप्त है। यह कहा जा सकता है कि डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एडॉप्शन से संबंधित अधिकार देने से मामले और अधिक लंबित हो सकते हैं, क्योंकि उसके पास पहले ही कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं, जैसे कानून व्यवस्था को बहाल रखना, भू और राजस्व प्रशासन, आपदा प्रबंधन, सामान्य प्रशासन और जिले में अनेक सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करना (उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट द्वारा 23 विभागों की 75 कमिटियों की अध्यक्षता की जाती है)।[4]

डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एडॉप्शन से संबंधित अधिकार प्रदान करने का औचित्य

एक्ट के अंतर्गत अदालत द्वारा एडॉप्शन के आदेश देने के बाद बच्चे के एडॉप्शन का काम पूरा हो जाता है। परिणामस्वरूप बच्चा दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता का वैध बच्चा हो जाता है और बायोलॉजिकल बच्चे को मिलने वाले सभी अधिकार, विशेषाधिकार और जिम्मेदारियां उसे मिल जाती हैं। बिल इस प्रावधान में संशोधन करता है और डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एडॉप्शन के आदेश देने का अधिकार देता है। इससे सवाल किया जा सकता है कि क्या यह उचित होगा कि एडॉप्शन के आदेश देने की शक्ति सिविल अदालत की बजाय, डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट में निहित की जाए।

बच्चे का एडॉप्शन एक कानूनी प्रक्रिया है जोकि बच्चे और दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता के बीच एक स्थायी कानूनी संबंध की रचना करती है। इसके लिए अदालत को उसके सामने रखे गए दस्तावेजों की समीक्षा करनी होती है। यह बच्चे तथा एडॉप्टिव माता-पिता की जांच करने के लिए भी जरूरी है और इससे यह सुनिश्चित होता है कि एडॉप्शन के लिए सभी जरूरी कार्यवाहियां की गई हैं। साथ ही यह भी पक्का होता है कि एडॉप्शन बच्चे के कल्याण के लिए किया गया है और बच्चे की इच्छा को ध्यान में रखा गया है। यह कहा जा सकता है कि यह निर्धारित करने के लिए न्यायिक प्रशिक्षण और क्षमता की जरूरत होती है कि क्या एडॉप्शन बच्चे के हित में है। यह भी कि डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है जिसका दायित्व सरकारी कामकाज करना होता है। इसलिए संभव है कि उसके पास एडॉप्शन के आदेश देने की क्षमता न हो। इसके अतिरिक्त डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट में ऐसी मुख्य न्यायिक शक्ति निहित करने से कार्यकारिणी और न्यायपालिका के बीच सेपरेशन ऑफ पावर्स (अधिकारों के पृथक्करण) जैसे मामले उठ सकते हैं।

उल्लेखनीय है कि जब से किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) एक्ट, 2000 लागू हुआ है, तब से एडॉप्शन के आदेश देने की शक्ति अदालत में निहित है। इसी प्रकार युनाइटेड किंगडम, जर्मनी, फ्रांस और युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के कई स्टेट्स में अदालतें ही एडॉप्शन के आदेश देती हैं।[5]

 

[1]. The Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015.

[2]. The Statement of Objects and Reasons of the Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Amendment Bill, 2018.

[3]. Lok Sabha Unstarred Question No. 3665, Adoption of Children, Ministry of Women and Child Development, answered on March 16, 2018.

[4]. ‘District collector: superman or stopgap solution?, Rashmi Sharma (Former IAS officer), Mint, October 2, 2018, https://www.livemint.com/Opinion/wUF3NfRYLUCdwXeW4S4qRM/Opinion--District-collector-superman-or-stopgap-solution.html.

[5]. United States of America (governed by state specific laws): The Family Code, California, Division 13; The Revised Code of Washington Title 26, Chapter 33; United Kingdom: The Adoption and Children Act, 2002; Germany: The German Civil Code, 1900; France: The Napoleonic Code, 1804.

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