अध्यादेश की मुख्य विशेषताएं
- वर्तमान में 400 करोड़ रुपए तक के वार्षिक टर्नओवर वाली घरेलू कंपनियां 25% की दर से इनकम टैक्स चुकाती हैं। अन्य घरेलू कंपनियों के लिए यह टैक्स दर 30% है। अध्यादेश घरेलू कंपनियों को 22% की दर से टैक्स चुकाने का विकल्प देता है, बशर्ते वे इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत कुछ कटौतियों का दावा न करें।
- इनमें निम्नलिखित के लिए प्रदत्त कटौतियां शामिल हैं: (i) स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स में स्थापित नई यूनिट्स, (ii) वैज्ञानिक अनुसंधान और कौशल विकास के प्रॉजेक्ट्स पर व्यय, (iii) अधिसूचित पिछड़े क्षेत्रों में नई मशीनरी/संयंत्र में निवेश करना, (iv) नई मशीनरी/संयंत्र का ह्रास, और (v) अध्याय VI-ए के अंतर्गत विभिन्न प्रावधान।
- अध्य़ादेश में यह प्रावधान है कि अगर नई घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां उपरिलिखित कटौतियों का दावा नहीं करतीं, तो वे 15% की दर से इनकम टैक्स चुकाने का विकल्प चुन सकती हैं।
- अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि नई दरों पर टैक्स चुकाने का विकल्प चुनने वाली कंपनियों पर न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स (मैट) के भुगतान से संबंधित प्रावधान लागू नहीं होंगे। अगर कटौतियों का दावा करने के बाद कंपनी की टैक्स लायबिलिटी एक निश्चित सीमा से कम होती है तो उस स्थिति में उसे जो न्यूनतम राशि टैक्स के रूप में चुकानी होती है, वह मैट कहलाती है।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
- 2017-18 में 8.4 लाख में 29% कंपनियों ने 25% से अधिक की दर पर टैक्स चुकाया। अध्यादेश इन कंपनियों को 25.17% की निम्न टैक्स दर का विकल्प देता है। उल्लेखनीय है कि 2017-18 में सभी कंपनियों द्वारा चुकाए कुल इनकम टैक्स में इन कंपनियों का हिस्सा 69% था।
- 2017-18 में कटौतियों के बाद मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की कंपनियों के लिए प्रभावी टैक्स दर 28% थी। अध्यादेश नई घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को जो 17.16% की वैधानिक टैक्स दर प्रदान करता है, यह उससे काफी अधिक है।
- वित्त मंत्रालय ने अध्यादेश के अंतर्गत नई टैक्स दरों और अन्य उपायों से राजस्व पर 1.45 लाख करोड़ रुपए के असर का अनुमान लगाया है। इसमें कुछ निवेशकों को कैपिटल गेन्स पर बढ़े हुए सरचार्ज से दी गई छूट शामिल है। इससे 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3% से बढ़कर 4% हो सकता है।
- अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि नई दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियों पर मैट के प्रावधान (आईटी एक्ट का सेक्शन 115जेबी) लागू नहीं होंगे। वह सेक्शन 115जेएए में संशोधन नहीं करता जोकि कंपनियों को मैट क्रेडिट को टैक्स चुकाने में इस्तेमाल करने की अनुमति देता है। अध्यादेश के बाद केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने यह सर्कुलर जारी किया कि नई दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियां मैट क्रेडिट का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं। प्रश्न यह है कि क्या एक सर्कुलर आईटी एक्ट में उपलब्ध मैट क्रेडिट की सुविधा को रद्द कर सकता है।
भाग क : अध्यादेश की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
भारत में कंपनियां अपनी आय पर इनकम टैक्स एक्ट, 1961 (आईटी एक्ट) के अंतर्गत टैक्स चुकाती हैं। इस एक्ट के अंतर्गत 400 करोड़ तक के वार्षिक टर्नओवर वाली घरेलू कंपनियों (यानी भारत में निगमित कंपनियां) को 25% की दर से इनकम टैक्स चुकाना होता है।[1] दूसरी कंपनियों के लिए यह टैक्स दर 30% है।1 इसके अतिरिक्त कंपनियों को इनकम टैक्स पर सरचार्ज और हेल्थ एवं एजुकेशन सेस भी देना होता है। सरचार्ज और सेस को जोड़कर, घरेलू कंपनियों के लिए वैधानिक टैक्स दर 26% से 35% के बीच होती है (देखें तालिका 1)। |
तालिका 1: सरचार्ज और सेस सहित टैक्स दर
Sources: The Finance (No. 2) Act, 2019; PRS. |
2009 में आईटी एक्ट और दूसरे कर कानूनों को एक करने और उन्हें सरल बनाने तथा न्यूनतम छूटों के साथ एक प्रभावी एवं समतामूलक कर प्रणाली बनाने के लिए प्रत्यक्ष कर संहिता का ड्राफ्ट जारी किया गया।[2] इस संहिता ने सभी घरेलू कंपनियों के लिए 25% की यूनिफॉर्म टैक्स दर का प्रस्ताव रखा।2 परिणामस्वरूप 2010 में प्रत्यक्ष कर संहिता को पेश किया गया जोकि घरेलू कंपनियों के लिए 30% की टैक्स दर प्रस्तावित करती थी।[3] 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ यह संहिता लैप्स हो गई।
2015-16 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि अन्य बड़ी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में उच्च बेसिक कॉरपोरेट टैक्स दर (30%) घरेलू उद्योग को गैर प्रतिस्पर्धी बनाती है।[4] दूसरी ओर अत्यधिक छूट देने के कारण सरकार को निम्न दर (23%) पर राजस्व की प्राप्ति होती है।4 वित्त मंत्री ने चार वर्ष की अवधि के लिए टैक्स दर को 30% से 25% करने और रैशनलाइजेशन तथा विभिन्न छूटों एवं इन्सेंटिव्स को खत्म करने का प्रस्ताव रखा।4 नवंबर 2017 में वित्त मंत्रालय ने विभिन्न देशों की प्रत्यक्ष कर प्रणालियों और बेहतर कार्य पद्धतियों के मद्देनजर एक टास्क फोर्स बनाई जोकि आईटी एक्ट की समीक्षा और नए प्रत्यक्ष कर कानून का ड्राफ्ट तैयार करेगी।[5] टास्क फोर्स ने अगस्त 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी।
टैक्सेशन कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2019 को 20 सितंबर, 2019 को जारी किया गया। यह आईटी एक्ट और फाइनांस (संख्या 2) एक्ट, 2019 में संशोधन करता है।[6] वृद्धि को बढ़ावा देने तथा मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने के लिए अध्यादेश घरेलू कंपनियों को टैक्स की निम्न दरों का विकल्प प्रदान करता है।[7]
प्रमुख विशेषताएं
घरेलू कंपनियों के लिए इनकम टैक्स की नई दरों का विकल्प
- वर्तमान में 400 करोड़ रुपए तक के वार्षिक टर्नओवर वाली घरेलू कंपनियां 25% की दर से इनकम टैक्स चुकाती हैं। अन्य घरेलू कंपनियों के लिए यह टैक्स दर 30% है। अध्यादेश घरेलू कंपनियों को 22% की दर से टैक्स चुकाने का विकल्प देता है, बशर्ते वे इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत कुछ कटौतियों का दावा न करें। इनमें निम्नलिखित के लिए प्रदत्त कटौतियां शामिल हैं: (i) स्पेशल इकोनॉमिक जोन्स (सेज) के अंतर्गत स्थापित नई यूनिट्स, (ii) अधिसूचित पिछड़े क्षेत्रों में नए संयंत्र या मशीनरी में निवेश करना, (iii) वैज्ञानिक अनुसंधान, कृषि विस्तारीकरण और कौशल विकास के प्रॉजेक्ट्स पर व्यय, (iv) नए संयंत्र या मशीनरी का ह्रास (कुछ मामलों में), और (v) इनकम टैक्स एक्ट में अध्याय VI-ए के अंतर्गत विभिन्न प्रावधान।
- अध्यादेश नई घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों को 15% की दर से इनकम टैक्स चुकाने का विकल्प देता है, बशर्ते उन्होंने कुछ कटौतियों (जैसा कि ऊपर निर्दिष्ट किया गया है) का दावा नहीं किया हो। ये नई कंपनियां 30 सितंबर, 2019 के बाद स्थापित और रजिस्टर होनी चाहिए और इन्हें 1 अप्रैल, 2023 से पहले मैन्यूफैक्चरिंग शुरू करनी चाहिए। नई मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों में निम्नलिखित कंपनियां शामिल नहीं होंगी: (i) मौजूदा व्यापार के विभाजन या पुनर्निर्माण से बनी कंपनियां, (ii) मैन्यूफैक्चरिंग या उत्पादन के अलावा दूसरे व्यापार में संलग्न, और (iii) भारत में पहले इस्तेमाल होने वाले संयंत्र या मशीनरी का प्रयोग करने वाली कंपनियां (कुछ विशिष्ट शर्तों को छोड़कर)।
नई टैक्स दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियों के लिए प्रावधान
- नई कंपनी वित्तीय वर्ष 2019-20 (यानी आकलन वर्ष 2020-21) या भविष्य में किसी दूसरे वित्तीय वर्ष में नई टैक्स दरों का विकल्प चुन सकती है। एक बार कंपनी ने इस विकल्प को चुन लिया तो आगे के वर्षों में वही विकल्प लागू होगा।
- घरेलू कंपनियां एक से 10 करोड़ की आय पर 7% और 10 करोड़ से अधिक की आय पर 12% सरचार्ज देती हैं। नई दरों को चुनने वाली कंपनियों को 10% सरचार्ज देना होगा।
न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स
- अगर कटौतियों का दावा करने के बाद कंपनी की टैक्स लायबिलिटी एक निश्चित सीमा से कम होती है तो उस स्थिति में उसे जो न्यूनतम राशि टैक्स के रूप में चुकानी होती है, वह न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स (मैट) कहलाती है। यह सीमा कंपनी के लाभ के कुछ प्रतिशत (जोकि कुछ समायोजनों के अधीन है) के आधार पर कैलकुलेट की जाती है (यानी मैट की दर)। अध्यादेश वित्तीय वर्ष 2019-20 से मैट की दर को 18.5% से घटाकर 15% करता है।
- अध्यादेश विनिर्दिष्ट करता है कि नई दरों पर टैक्स चुकाने का विकल्प चुनने वाली घरेलू कंपनियों पर मैट लागू नहीं होगा।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
घरेलू कंपनियों को निम्न दर पर टैक्स विकल्प देने का असर
अध्यादेश में प्रावधान है कि घरेलू कंपनियां 22% की टैक्स दर और नई घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां 15% की टैक्स दर का विकल्प चुन सकती हैं, बशर्ते उन्होंने कुछ कटौतियों का दावा नहीं किया हो। सरचार्ज और सेस शामिल करने के बाद कंपनियों को क्रमशः 25.17% और 17.16% की दर पर टैक्स भुगतान करना होगा। अध्यादेश से पहले घरेलू कंपनियों के लिए वैधानिक टैक्स दर 26% से 35% के बीच थी (तालिका 1)। हालांकि वे आईटी एक्ट के अंतर्गत कटौतियों का दावा करके अपने लिए प्रभावी टैक्स दरों को कम कर सकती थीं। इस खंड में हम उन प्रभावी दरों की जांच करेंगे जिन पर कंपनियां टैक्स चुकाती हैं (कटौतियों के दावे के बाद) ताकि यह समझा जा सके कि कितनी कंपनियां नई टैक्स दरों का विकल्प चुन सकती हैं और निम्न टैक्स दरों का संभावित वित्तीय प्रभाव क्या होगा।
तालिका 2 में वित्तीय वर्ष 2017-18 में इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने वाली 8.4 लाख कंपनियों के लिए प्रभावी टैक्स दरों के आंकड़े दिए गए हैं। ये दरें वास्तविक टैक्स दरें हैं जिन पर 2017-18 में कंपनियों ने टैक्स चुकाया है। इनमें से 29% कंपनियों ने 25% से अधिक की दर पर टैक्स चुकाया। अध्यादेश इन कंपनियों को 25.17% की निम्न टैक्स दर का विकल्प देता है। उल्लेखनीय है कि 2017-18 में सभी कंपनियों द्वारा चुकाए कुल इनकम टैक्स में इन कंपनियों का हिस्सा 69% था। उदाहरण के लिए 2017-18 में कटौतियों के बाद मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की कंपनियों के लिए प्रभावी टैक्स दर 28% थी। अध्यादेश में नई घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों के लिए 17.16% की वैधानिक टैक्स दर से यह काफी अधिक है।[8] |
तालिका 1: कटौतियों के बाद प्रभावी टैक्स दर (2017-18)
Note: Effective tax rate is calculated as tax paid after deductions divided by profit before tax. Data is for both domestic and foreign companies. Sources: Statement of Revenue Impact of Tax Incentives, Receipt Budget, Union Budget 2019-20; PRS. |
हमने बीएसई100 कंपनियों द्वारा पिछली तिमाही (2019-20 की दूसरी तिमाही) की जमा फाइलिंग्स का विश्लेषण किया ताकि यह जानकारी प्राप्त हो कि कितनी कंपनियां अध्यादेश के अंतर्गत नई टैक्स दरों का विकल्प चुन रही हैं। अब तक जिन 99 कंपनियों ने अपनी फाइलिंग्स जमा की हैं, उनमें से 47 कंपनियों ने वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए नई टैक्स दरों का विकल्प चुना है।[9] दूसरी 52 कंपनियों ने 2019-20 के लिए नई टैक्स दरों के विकल्प के विषय में स्पष्ट संकेत नहीं दिए हैं।
कंपनियों द्वारा निम्न टैक्स दरों को चुनने के कारण जिस वित्तीय प्रभाव की आशंका है, वह निम्न पर निर्भर होगा: (i) इन विकल्पों को चुनने वाली कंपनियों की संख्या कितनी है, और (ii) उनकी नई और पुरानी प्रभावी टैक्स दरों के बीच क्या फर्क है। वित्त मंत्रालय ने अध्यादेश के अंतर्गत नई टैक्स दरों और अन्य उपायों से राजस्व पर 1.45 लाख करोड़ रुपए के असर का अनुमान लगाया है। इसमें कुछ निवेशकों को कैपिटल गेन्स पर बढ़े हुए सरचार्ज से दी गई छूट शामिल है।7 यह 2019-20 में सरकार के 5.2% राजस्व अनुमान के बराबर है। अगर दूसरे मानदंड वही रहते हैं तो इससे 2019-20 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3% से बढ़कर 4% हो सकता है।
इनकम टैक्स एक्ट के अंतर्गत कटौतियां
अध्यादेश आईटी एक्ट के अंतर्गत कुछ कटौतियों को निर्दिष्ट करता है। नई टैक्स दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियां उनका दावा नहीं कर सकतीं। तालिका 3 में प्रदर्शित किया गया है कि आईटी एक्ट के अंतर्गत मुख्य कटौतियों का राजस्व पर कितना असर हुआ है (यानी कटौतियों की अनुमति देकर सरकार ने जो राजस्व छोड़ा है)। 2017-18 में राजस्व पर इन कटौतियों का 1.2 लाख करोड़ रुपए का असर हुआ। तालिका 3 में यह भी प्रदर्शित किया गया है कि नई टैक्स दरों के साथ किन कटौतियों का दावा किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि अध्यादेश त्वरित ह्रास, सेज इकाइयों के निर्यात लाभ, और वैज्ञानिक अनुसंधान पर व्यय के अंतर्गत केवल कुछ घटकों को अधिसूचित करता है जिनका दावा नई टैक्स दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियां नहीं कर सकतीं। इन विशिष्ट घटकों के लिए राजस्व के असर के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इन कटौतियां का लाभ उठाने वाली कंपनियां (जिन कटौतियों पर नई दरों के साथ दावा नहीं किया जा सकता) तय कर सकती हैं कि क्या कुछ समय के लिए वे मौजूदा प्रणाली को जारी रख सकती हैं। कंपनियां ऐसा कर सकती हैं, अगर कटौतियों से मिलने वाला लाभ निम्न टैक्स दरों से अधिक हो। उल्लेखनीय है कि कंपनियां 2019-20 या किसी अन्य वर्ष में नई दरों को चुन सकती हैं।
तालिका 3: आईटी एक्ट के अंतर्गत कंपनियों के लिए मुख्य कटौतियां और 2017-18 में उनका राजस्व प्रभाव
जिन कटौतियां का दावा नहीं किया जा सकता |
राजस्व पर असर |
जिन कटौतियां का दावा नहीं किया जा सकता |
राजस्व पर असर |
त्वरित मूल्य ह्रास |
58,326 करोड़ रु.* |
धर्मार्थ ट्रस्ट्स और संस्थानों को चंदा |
1,860 करोड़ रु. |
सेज इकाइयों के निर्यात लाभ |
20,918 करोड़ रु.* |
नए कर्मचारियों का रोजगार |
738 करोड़ रु. |
बिजली क्षेत्र के उपक्रमों के लाभ |
13,157 करोड़ रु. |
राजनैतिक दलों में योगदान |
133 करोड़ रु. |
वैज्ञानिक अनुसंधान पर व्यय |
6,832 करोड़ रु.* |
|
|
सिक्किम में स्थापित उपक्रमों के लाभ |
2,321 करोड़ रु. |
|
|
उत्तराखंड में स्थापित उपक्रमों के लाभ |
1,798 करोड़ रु. |
|
|
अन्य अनेक कटौतियां |
13,986 करोड़ रु. |
|
|
Note: * Certain deductions under these categories can be claimed with the new rates. Data not available separately for these components. Sources: Statement of Revenue Impact of Tax Incentives, Receipt Budget, Union Budget 2019-20; PRS.
नई टैक्स दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियों द्वारा मैट क्रेडिट का उपयोग
अगर आईटी एक्ट के अंतर्गत कटौतियों का दावा करने के बाद कंपनी की टैक्स लायबिलिटी एक निश्चित सीमा से कम होती है तो उस स्थिति में उसे जो न्यूनतम राशि टैक्स के रूप में चुकानी होती है, वह न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स (मैट) कहलाती है। अपनी सामान्य टैक्स लायबिलिटी (एक्ट के दूसरे प्रावधानों के अनुसार) से अधिक मैट चुकाने वाली कंपनी को मैट क्रेडिट मिलता है, जोकि उसके द्वारा चुकाए जाने वाले अतिरिक्त टैक्स की राशि के बराबर होता है। कंपनी इस क्रेडिट को भविष्य में टैक्स चुकाने के लिए इस्तेमाल कर सकती है (15 वर्ष की अवधि के भीतर)। उदाहरण के लिए 100 करोड़ रुपए का लाभ कमाने वाली कंपनी को 15 करोड़ रुपए का न्यूनतम टैक्स चुकाना है (यह मानते हुए कि मैट की दर 15% है)। अगर कटौतियों का दावा करने के बाद उसकी टैक्स लायबिलिटी 10 करोड़ रुपए है (मैट से कम) तो उसे 15 करोड़ रुपए का मैट चुकाना होगा और वह 5 करोड़ रुपए का मैट क्रेडिट भविष्य में टैक्स चुकाने में इस्तेमाल कर सकती है।
अध्यादेश निर्दिष्ट करता है कि मैट प्रावधान (आईटी एक्ट का सेक्शन 115जेबी) नई टैक्स दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियों पर लागू नहीं होंगे। इसका अर्थ यह है कि ऐसी कंपनियों से मैट द्वारा निर्धारित टैक्स की न्यूनतम राशि चुकाने की अपेक्षा नहीं की जाती। हालांकि अध्यादेश आईटी एक्ट के सेक्शन 115जेएए में संशोधन नहीं करता जोकि कंपनियों को उपलब्ध मैट क्रेडिट को टैक्स चुकाने में इस्तेमाल करने की अनुमति देता है। अध्यादेश के बाद केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने सर्कुलर जारी किया कि नई दरों का विकल्प चुनने वाली कंपनियां मैट क्रेडिट का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं, चूंकि ऐसी कंपनियों पर मैट लागू नहीं होता।[10] उसने यह भी कहा कि ऐसी कोई समय सीमा नहीं दी गई है जिसमें कोई कंपनी नई दरों का विकल्प चुन सकती है, इसलिए अगर कंपनी चाहे तो मैट क्रेडिट का इस्तेमाल करने के बाद यह विकल्प चुन सकती है। प्रश्न यह है कि क्या एक सर्कुलर आईटी एक्ट में उपलब्ध मैट क्रेडिट की सुविधा को रद्द कर सकता है।
अन्य देशों में कॉरपोरेट टैक्स दरें
निम्नलिखित तालिका में वर्ष 2018 के दौरान प्रमुख देशों में कॉरपोरेट टैक्स दरों के बीच तुलना की गई है।
तालिका 4: प्रमुख देशों में कॉरपोरेट टैक्स दरों के बीच तुलना (2018)
एशिया |
टैक्स दर (% में) |
यूरोप |
टैक्स दर (% में) |
अन्य देश |
टैक्स दर (% में) |
हांगकांग |
16.5 |
युनाइटेड किंगडम |
19 |
यूएसए |
25.8* |
सिंगापुर |
17 |
रूस |
20 |
कनाडा |
26.8* |
थाईलैंड |
20 |
स्विट्जरलैंड |
21.1* |
दक्षिण अफ्रीका |
28 |
वियतनाम |
20 |
स्पेन |
25 |
न्यूजीलैंड |
28 |
मलयेशिया |
24 |
नीदरलैंड्स |
25 |
ऑस्ट्रेलिया |
30 |
इंडोनेशिया |
25 |
इटली |
27.8* |
मैक्सिको |
30 |
चीन |
25 |
जर्मनी |
29.8* |
अर्जेंटीना |
30 |
दक्षिण कोरिया |
27.5* |
फ्रांस |
34.4 |
ब्राजील |
34 |
जापान |
29.7* |
|
|
|
|
भारत# |
35 |
|
|
|
|
Note: *Tax rate includes corporate tax rates levied by state governments in these countries. #In case of India, the tax rate reflects the highest applicable tax rate (including surcharge, cess). Including the dividend distribution tax, the tax rate would come out to be 48.3%. Sources: OECD Corporate Tax Statistics 2018; PRS.
[1]. The Finance (No. 2) Act, 2019, Ministry of Finance, August 1, 2019, http://egazette.nic.in/WriteReadData/2019/209695.pdf.
[2]. Discussion Paper, Direct Taxes Code, Ministry of Finance, August 2009, https://www.prsindia.org/sites/default/files/bill_files/Discussion_Paper.pdf.
[3]. The Direct Taxes Code, 2010, Ministry of Finance, August 30, 2010, http://164.100.47.4/BillsTexts/LSBillTexts/Asintroduced/DTC%20(110%20of%202010)%20To%20be.pdf.
[4]. Budget Speech, Union Budget 2015-16, February 28, 2015, https://www.indiabudget.gov.in/doc/bspeech/bs201516.pdf.
[5]. F. No. 370149/230/2017, Central Board of Direct Taxes, Ministry of Finance, May 22, 2018, https://www.incometaxindia.gov.in/Lists/Latest%20News/Attachments/249/Extension-time-Task-Force-drafting-New-Direct-Tax-Legislation-Scan-22-5-2018.pdf.
[6]. The Taxation Laws (Amendment) Ordinance, 2019, Ministry of Finance, September 20, 2019, http://www.egazette.nic.in/WriteReadData/2019/212631.pdf.
[7]. “Corporate tax rates slashed to 22% for domestic companies and 15% for new domestic manufacturing companies and other fiscal reliefs”, Press Information Bureau, Ministry of Finance, September 20, 2019.
[8]. Statement of Revenue Impact of Tax Incentives under the Central Tax System: Financial Years 2017-18 and 2018-19, Receipt Budget, Union Budget 2019-20, July 5, 2019, https://www.indiabudget.gov.in/doc/rec/annex7.pdf.
[9]. Q2 2019-20 filings submitted by the BSE100 companies.
[10]. F. No. 142/20/2019, Central Board of Direct Taxes, Ministry of Finance, October 2, 2019, https://www.incometaxindia.gov.in/news/circular_29_2019.pdf.
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