मुख्‍य विशेषताएं  

  • ड्राफ्ट नियम उस प्रक्रिया को निर्दिष्ट करते हैं जिसके जरिए ट्रांसजेंडर व्यक्ति सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए आवेदन कर सकते हैं, और उन्हें सर्टिफिकेट जारी होने के तरीके के बारे में भी बताते हैं। 
     
  • सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी किसी व्यक्ति को ट्रांसजेंडर के रूप में मान्यता देता है और इसे जिला मेजिस्ट्रेट द्वारा जारी किया जाएगा। सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के आवेदन में एक एफिडेविट, आवेदन का फॉर्म और साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट शामिल होनी चाहिए। 
     
  • जिला मेजिस्ट्रेट सिर्फ ऐसे आवेदक को सर्टिफिकेट जारी कर सकता है जोकि आवेदन की तारीख से एक वर्ष के लिए उसके क्षेत्राधिकार में रह रहा हो। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • ड्राफ्ट नियमों में यह अपेक्षा की गई है कि आवेदन के साथ साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट होनी चाहिए। चूंकि लोगों के पास अपने जेंडर की पहचान खुद करने का अधिकार है, साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट का कारण अस्पष्ट है।
     
  • ड्राफ्ट नियम कहते हैं कि जिला मेजिस्ट्रेट सिर्फ ऐसे आवेदक को सर्टिफिकेट जारी कर सकता है, जोकि आवेदन की तारीख से एक वर्ष के लिए उसके क्षेत्राधिकार में रह रहा हो। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को समाज से बहिष्कृत किया जाता है, उन्हें बेघर बार होना पड़ता है और बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है। यह कहा जा सकता है कि इस कारण से ट्रांसजेंडर लोगों को आवेदन करने से पहले एक वर्ष के लिए लगातार किसी स्थान पर रहने का सबूत देना मुश्किल होगा।
     
  • एक्ट अधिकार देता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी उपायों को नियमों द्वारा निर्दिष्ट किया जाए। ड्राफ्ट नियम सरकारी विभागों से अपेक्षा करते हैं कि वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए मौजूदा योजनाओं और कल्याणकारी उपायों की समीक्षा करें। हालांकि ड्राफ्ट नियम कल्याणकारी उपायों का विवरण नहीं देते।

2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को मान्यता दी थी कि ट्रांसजेंडर लोगों को अपने जेंडर को पुरुष, स्त्री या थर्ड जेंडर के रूप में खुद पहचानने का अधिकार है।[1] इसके अतिरिक्त अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे ट्रांसजेंडर लोगों को कानूनी रूप से मान्यता दें, उनके खिलाफ सामाजिक लांछन और भेदभाव को खत्म करें और उनके लिए कल्याण योजनाएं चलाएं।

26 नवंबर, 2019 को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 2019 को पारित किया गया।[2]  एक्ट व्यक्तियों को अपने जेंडर की पहचान स्वयं करने की अनुमति देता है, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के आइडेंटिफिकेशन का प्रावधान करता है और उन्हें कुछ अधिकार और लाभ देने की बात करता है। एक्ट की अधिसूचना के बाद सरकार ने पब्लिक फीडबैक के लिए 16 अप्रैल, 2020 को एक्ट के ड्राफ्ट नियमों को सर्कुलेट किया। ड्राफ्ट नियम उस तरीके, प्रकार और प्रक्रिया को निर्दिष्ट करते हैं जिनके जरिए व्यक्तियों को ट्रांसजेंडर के रूप में मान्यता दी जा सकती है।

मुख्य विशेषताएं

तालिका 1 में ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 2019 में नियम निर्धारण की शक्तियों और ड्राफ्ट नियमों में उन प्रावधानों के विनिर्देशों के बीच तुलना की गई है।  

तालिका 1: एक्ट और ड्राफ्ट नियमों के प्रावधानों के बीच तुलना

प्रावधान 

एक्ट के अंतर्गत नियम निर्धारण की शक्तियां

ड्राफ्ट नियमों में विनिर्देश

  • आइडेंटिटी के सर्टिफिकेट के लिए आवेदन
  • वह तरीका और प्रकार जिसके जरिए सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए जिला मेजिस्ट्रेट को आवेदन किया जाएगा। 
  • कोई अन्य दस्तावेज जिनकी जरूरत हो सकती है।
  • आवेदन में सरकारी अस्पताल में काम करने वाले साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट, आवेदन का फॉर्म और एफिडेविट शामिल होंगे।  
  • सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी को जारी करना 
  • वह प्रक्रिया, प्रकार, तरीका और समय अवधि जिसके भीतर जिला मेजिस्ट्रेट को सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी जारी करना होगा। 
  • सर्टिफिकेट को 60 दिनों के भीतर जारी करना होगा। जिला मेजिस्ट्रेट को एक ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी कार्ड भी जारी करना होगा। 
  • जिला मेजिस्ट्रेट सिर्फ ऐसे आवेदक को सर्टिफिकेट जारी कर सकता है जोकि आवेदन की तारीख से एक वर्ष के लिए उसके क्षेत्राधिकार में रह रहा हो।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति के जेंडर और नाम (अगर जरूरत हो) को इस आशय के आवेदन के 15 दिनों के भीतर सर्टिफिकेट के अनुसार सभी आधिकारिक दस्तावेजों में बदलना होगा।
  • संशोधित सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए आवेदन
  • वह तरीका और प्रकार जिसके जरिए किसी व्यक्ति को सेक्स रीएसाइनमेंट सर्जरी करवाने के बाद संशोधित सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए जिला मेजिस्ट्रेट को आवेदन करना होगा।
  • आवेदन में एप्लिकेशन फॉर्म और उस संस्थान के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट या चीफ मेडिकल ऑफिसर द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट शामिल होना चाहिए जहां सर्जरी कराई गई थी।
  • संशोधित सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी को जारी करना
  • वह प्रक्रिया, प्रकार, तरीका और समय अवधि जिसके भीतर जिला मेजिस्ट्रेट को संशोधित सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी जारी करना होगा।
  • संशोधित सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी को आवेदन प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर जारी करना होगा जिसमें उस व्यक्ति के महिला या पुरुष जेंडर का संकेत होगा। 
  • संशोधित पहचान पत्र भी जारी किया जाएगा।
  • कल्याणकारी उपाय
  • ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए कल्याणकारी उपाय और कल्याणकारी योजनाओं तक उनकी पहुंच को आसान बनाना।
  • संबंधित सरकार को निम्नलिखित करना होगा: (i) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल करने के लिए मौजूदा कल्याणकारी उपायों और योजनाओं की समीक्षा, (ii) यह सुनिश्चित करना कि कल्याणकारी योजनाएं, कार्यक्रम और अधीनस्थ विधान ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति गैर भेदभावकारी हैं, (iii) ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति भेदभाव को प्रतिबंधित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाना, और (iv) ट्रांसजेंडर लोगों को उपलब्ध लाभों के विषय में शिक्षित करना। 
  • सुविधाएं 
  • वे सुविधाएं जो इस्टैबलिशमेंट्स को ट्रांसजेंडर लोगों को प्रदान करनी चाहिए। 
  • संबंधित सरकार को नियमों के अधिसूचित होने के दो वर्ष के भीतर ट्रांसजेंडर लोगों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए जैसे पुनर्वास केंद्र, एचआईवी सर्विलांस केंद्र, अस्पतालों में अलग वॉर्ड और इस्टैबलिशमेंट्स में अलग वॉशरूम।
  • नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स 
  • नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स के अतिरिक्त कार्य।
  • सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस, नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन्स के सचिवालय के तौर पर काम करेगा। केंद्र सरकार नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेंस को इस कार्य के लिए सहायतानुदान देगी।
  • अन्य मामला जो विनिर्दिष्ट किया जा सकता है 
  • अन्य मामला जो विनिर्दिष्ट किया जा सकता है
  • अगर सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी का आवेदन रद्द हो जाता है तो आवेदन रद्द होने की तारीख से एक महीने के भीतर इस फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है। यह अपील संबंधित सरकार द्वारा निर्दिष्ट अपीलीय अथॉरिटी को निर्देशित की जाएगी। 
  • अगर सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए आवेदन इस उद्देश्य से किया जाता है कि गलत तरीके से ट्रांसजेंडर का दर्जा हासिल कर लिया जाए तो आवेदक को सजा भुगतनी पड़ सकती है।

Sources: Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019, Draft Transgender Persons (Protection of Rights) Rules, 2020; PRS.

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के आवेदन के लिए साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट की जरूरत 

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 2019 कहता है कि जिस व्यक्ति को ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में मान्यता मिली है, उसे अपने जेंडर की पहचान को ‘सेल्फ परसीव’ करने का अधिकार है, यानी वह अपने जेंडर की पहचान स्वयं कर सकता है।2 ट्रांसजेंडर के रूप में मान्यता मिलने पर व्यक्ति सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए आवेदन कर सकता है जिसे जिला मेजिस्ट्रेट जारी करेगा। यह सर्टिफिकेट उसकी ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में पहचान का सबूत होगा और उसे एक्ट के अंतर्गत अधिकार और लाभ मिलेंगे। ड्राफ्ट नियम उस तरीके, प्रकार और प्रक्रिया को निर्दिष्ट करते हैं जिनके जरिए सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया जा सकता है, और जिनके अंतर्गत सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। ड्राफ्ट नियम के अनुसार, आवेदन करने हेतु आवेदकों को निम्नलिखित प्रदान करना होगा (i) एप्लिकेशन फॉर्म, (ii) एफिडेविट जिसमें उन्हें ट्रांसजेंडर होने की घोषणा करनी होगी, और (iii) सरकारी अस्पताल के साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट। इन दस्तावेजों के आधार पर जिला मेजिस्ट्रेट सत्यापित कर सकता है कि आवेदक ट्रांसजेंडर है। इससे तीन मुद्दे उठते हैं।

साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट का कारण अस्पष्ट है

एक्ट निर्दिष्ट करता है कि लोगों को अपने जेंडर की पहचान स्वयं करने का अधिकार है।2  इसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति के जेंडर की पहचान उसके अपने अतिरिक्त, किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा नहीं की जा सकती। सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी किसी व्यक्ति की खुद की पहचान को राज्य द्वारा मान्यता देना है। यह अस्पष्ट है कि सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के आवेदन में साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट को ड्राफ्ट नियमों में जरूरी क्यों बनाया गया है। उल्लेखनीय है कि एक्ट में दर्ज प्रक्रिया के अनुसार, सर्टिफिकेट जारी करते हुए जिला मेजिस्ट्रेट को व्यक्ति के जेंडर का ‘मूल्यांकन’ करने की जरूरत नहीं है। उसका काम सिर्फ सर्टिफिकेट जारी करना है। चूंकि सर्टिफिकेट जारी करने के लिए मूल्यांकन करने की जरूरत नहीं है, इसलिए यह अस्पष्ट है कि आवेदन प्रक्रिया में साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट क्यों जरूरी है।

उल्लेखनीय है कि जब बिल संसद में पेश किया गया था तो सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2016) ने उसकी समीक्षा की थी। कमिटी ने कहा था कि अगर सर्टिफिकेशन के लिए बने पैनल में मेडिकल प्रोफेशनल्स मौजूद होंगे तो इस बात की आशंका होगी कि मेडिकल, बायोलॉजिकल या मनोवैज्ञानिक आधार पर आवेदक के जेंडर की पहचान की जाएगी।[3] कमिटी ने कहा था कि इससे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खुद के जेंडर की पहचान करने के अधिकार का उल्लंघन होगा, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2014) मामले में कहा था।1  

साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट की विषयवस्तु स्पष्ट नहीं

ड्राफ्ट नियमों में साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट की विषयवस्तु स्पष्ट नहीं की गई है जिसे सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए आवेदन करते समय जमा करना है। अगर व्यक्ति आवेदन के साथ जमा किए गए एफिडेविट में ट्रांसजेंडर के तौर पर खुद को घोषित कर सकता है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि साइकोलॉजिस्ट की रिपोर्ट में क्या अतिरिक्त जानकारी प्रदान की जाएगी।

क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट्स की कमी

ड्राफ्ट नियमों में यह अपेक्षा की गई है कि रिपोर्ट सरकारी अस्पताल के साइकोल़ॉजिस्ट की होनी चाहिए। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार, 2019 तक सरकारी और निजी अस्पतालों में 898 साइकोलॉजिस्ट काम कर रहे हैं, जबकि 20,250 क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट्स की मांग है।[4] उल्लेखनीय है कि 2011 की जनगणना में ऐसे लोगों की संख्या 4,87,803 (कुल जनसंख्या का 0.04%) है जो खुद को ‘पुरुष’ या ‘स्त्री’ के बजाय ‘अन्य’ के तौर पर पहचानते हैं।[5]  यह कहा जा सकता है कि देश में साइकोलॉजिस्ट्स की कमी के कारण ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए आवेदन करते समय साइकोलॉजिस्ट्स की रिपोर्ट हासिल करना मुश्किल होगा। 

आम तौर पर जिन प्रोफेशनल्स को सर्टिफिकेट्स जारी करने का कानूनी अधिकार होता है, वे वैधानिक निकायों द्वारा लाइसेंस प्राप्त और रेगुलेटेड होते हैं। उदाहरण के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया प्रैक्टिसिंग डॉक्टर्स को रेगुलेट करती है, और ऐसे ही निकाय डेंटिस्ट्स, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और आर्किटेक्ट्स को रेगुलेट करते हैं।[6] साइकोलॉजिस्ट्स किसी वैधानिक निकाय से सर्टिफाइड या रेगुलेट नहीं होते। इसलिए सरकारी अस्पतालों में विसंगति हो सकती है कि कौन सा व्यक्ति सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी हासिल करने के उद्देश्य से रिपोर्ट देने के लिए योग्य है।

आवेदन करने के एक वर्ष पहले से आवेदक को क्षेत्र का निवासी होना चाहिए

ड्राफ्ट नियम कहते हैं कि जिला मेजिस्ट्रेट सिर्फ ऐसे आवेदक को सर्टिफिकेट जारी कर सकता है, जोकि आवेदन की तारीख से एक वर्ष पहले से उसके क्षेत्राधिकार में रह रहा हो। यह कहा जा सकता है कि इस प्रावधान से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी का आवेदन करते समय दबाव बढ़ जाएगा।

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों से संबंधित मुद्दों पर गठित एक्सपर्ट कमिटी (2014) ने कहा था कि ट्रांसजेंडर लोगों को परिवार से बहिष्कृत किया जाता है, उन्हें बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है, वे बेघर बार कर दिए जाते हैं।[7]   इसलिए उनके लिए यह मुश्किल हो सकता है कि वे आवेदन करने से पहले लगातार एक वर्ष की अवधि के दौरान किसी स्थान पर रहने का सबूत दे पाएं।

दूसरे कई लाइसेंस और सर्टिफिकेट्स के लिए एक वर्ष के निवास की शर्त नहीं लागू होती। सिविल मैरिज के नोटिस में यह अपेक्षा की जाती है कि विवाह करने वाला कम से कम एक पक्ष उस क्षेत्र में न्यूनतम 30 दिन से रह रहा हो।[8]  इसके अतिरिक्त ड्राइविंग लाइसेंस के लिए सड़क परिवहन संगठन में आवेदन करने वाले किसी व्यक्ति को उस क्षेत्र में निवास करने की कोई न्यूनतम समय अवधि नहीं बतानी पड़ती।[9] 

कुछ डेटा के जमा करने और उसे साझा करने का उद्देश्य निर्दिष्ट नहीं है 

सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए एप्लिकेशन फॉर्म में आवेदक को कुछ जानकारियां भी देनी होंगी, जैसे शैक्षिक योग्यता, स्कूल या कॉलेज का नाम, वे किसके साथ रहते हैं और उनकी आय का स्रोत क्या है। यह अस्पष्ट है कि ट्रांसजेंडर के रूप में किसी व्यक्ति के सर्टिफिकेशन के लिए यह जानकारी क्यों जरूरी है। 

इसके अतिरिक्त एप्लिकेशन फॉर्म में यह भी कहा गया है कि आवेदक द्वारा प्रदान की गई जानकारी को गोपनीय रखा जाएगा और उसे सिर्फ केंद्र या राज्य की सुरक्षा एजेंसियों के साथ साझा किया जा सकता है। इसमें यह नहीं बताया गया है कि इस जानकारी को साझा करने का उद्देश्य क्या है। उन सुरक्षा एजेंसियों को भी चिन्हित नहीं किया गया है जिनके साथ जानकारी साझा की जा सकती है। 

झूठा आवेदन करने पर सजा

ड्राफ्ट नियम में आवेदक से यह अपेक्षा की गई है कि वह अपने आवेदन के साथ ट्रांसजेंडर व्यक्ति की अपनी पहचान को घोषित करने के लिए एफिडेविट जमा कराए। हालांकि ड्राफ्ट नियम में ऐसे व्यक्तियों के लिए सजा भी निर्दिष्ट की गई है जो ट्रांसजेंडर व्यक्ति का झूठा दर्जा हासिल करने के उद्देश्य से सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए आवेदन करते हैं। चूंकि लोगों के पास अपने जेंडर की पहचान करने का अधिकार है, यह अस्पष्ट है कि किस आधार पर अथॉरिटीज़ यह तय करेंगी कि कोई व्यक्ति झूठा आवेदन कर रहा है। उल्लेखनीय है कि एक्ट में सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी के लिए झूठा आवेदन करने के लिए सजा निर्दिष्ट नहीं की गई है।2  

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए कल्याणकारी उपायों को निर्दिष्ट नहीं किया गया 

एक्ट के अनुसार, नियमों में यह निर्दिष्ट किया जाएगा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों और हितों की रक्षा करने के लिए क्या कल्याणकारी उपाय किए जाएं और कल्याण योजनाओं तक उनकी पहुंच को कैसे आसान बनाया जाए।2  ड्राफ्ट नियम कहते हैं कि संबंधित सरकार को निम्नलिखित करना होगा: (i) ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शामिल करने के लिए मौजूदा कल्याणकारी उपायों की समीक्षा, (ii) यह सुनिश्चित करना कि कल्याणकारी योजनाएं, कार्यक्रम और अधीनस्थ विधान ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति गैर भेदभावकारी हैं, (iii) ट्रांसजेंडर लोगों के प्रति भेदभाव को प्रतिबंधित करने के लिए पर्याप्त कदम उठाना, और (iv) ट्रांसजेंडर लोगों को उपलब्ध लाभों के विषय में शिक्षित करना। इनसे संबंधित विवरण ड्राफ्ट नियमों में निर्दिष्ट नहीं किए गए हैं।

ड्राफ्ट नियम यह भी कहते हैं कि संबंधित सरकार को नियमों के अधिसूचित होने के दो वर्ष के भीतर ट्रांसजेंडर लोगों के लिए इस्टैबलिशमेंट्स में अलग वॉशरूम प्रदान करने होंगे। एक्ट के अनुसार, इस्टैबलिशमेंट में केंद्रीय और राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित या नियंत्रित निकाय, और दूसरी कोई कंपनी, बॉडी कॉरपोरेट, संगठन या व्यक्तियों के निकाय, फर्म, सोसायटी, ट्रस्ट, एजेंसी या संस्थान शामिल हैं। चूंकि इस्टैबलिशमेंट की परिभाषा बहुत व्यापक है, यह कहा जा सकता है कि संबंधित सरकार के लिए यह व्यावहारिक नहीं होगा कि वह सभी निजी और सार्वजनिक इस्टैबलिशमेंट्स में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए अलग वॉशरूम प्रदान करे। 

सेक्स-रीएसाइनमेंट सर्जरी के बाद जेंडर के निर्धारण की प्रक्रिया अस्पष्ट है 

सेक्स-रीएसाइनमेंट सर्जरी करवाने वाले ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एक्ट में यह प्रावधान है कि वे संशोधित सर्टिफिकेट ऑफ आइडेंटिटी और स्वयं को पुरुष या महिला के रूप में चिन्हित करने के लिए आवेदन करें।2  ड्राफ्ट नियम यह निर्दिष्ट करते हैं कि सर्जरी करवाने वाला व्यक्ति किस तरीके से संशोधित सर्टिफिकेट के लिए आवेदन कर सकता है। इसमें एप्लिकेशन फॉर्म के साथ एक मेडिकल सर्टिफिकेट शामिल होना चाहिए। हालांकि संशोधित सर्टिफिकेट के लिए ड्राफ्ट नियम में जो एप्लिकेशन फॉर्म दिया गया है, उसमें व्यक्ति के पास अपने जेंडर के रूप में सिर्फ ‘ट्रांसजेंडर’ को चुनने का विकल्प है, ‘पुरुष’ या ‘स्त्री’ को चुनने का नहीं। यह ड्राफ्टिंग की गड़बड़ी लगती है क्योंकि ऐसे आवेदन के आधार पर जारी होने वाले संशोधित आइडेंटिटी कार्ड में व्यक्ति के जेंडर को ‘पुरुष’ या ‘स्त्री’ घोषित किया गया है। 

 

[1] National Legal Services Authority vs. Union of India [(2014) 5 SCC 438].

[3] Report no. 43, Standing Committee on Social Justice and Empowerment: The Transgender Persons (Protection of Rights) Bill, 2016, Lok Sabha, July 7, 2017.

[4] “Despite efforts huge gap remains between the requirements and availability of facilities in the mental healthcare sector, says NHRC Chairperson, Mr. Justice H.L. Dattu”, Press Information Bureau, Ministry of Home Affairs, August 7, 2019.

[5] Primary Census Abstract Data for Others (India & States/UTs), Census 2011.

[7] Report of  Expert Committee on the Issues relating to Transgender Persons, Ministry of Social Justice and Empowerment, January 27, 2014.

[9] Motor Vehicles Act, 1988

 

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