बिल की मुख्य विशेषताएं
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बिजली एक्ट, 2003 में एक ही क्षेत्र में कई वितरण कंपनियों को अपने नेटवर्क के जरिए बिजली आपूर्ति करने की अनुमति है। ड्राफ्ट बिल के तहत, राज्य बिजली रेगुलेटरी आयोगों (एसईआरसी) की निगरानी के अधीन, वितरण कंपनियों को अन्य वितरण कंपनियों के नेटवर्क का उपयोग करके बिजली आपूर्ति करने की अनुमति दी जाएगी।
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मैन्यूफैक्चरिंग इंटरप्राइजेज़, रेलवे और मेट्रो रेलवे द्वारा दी जाने वाली क्रॉस-सब्सिडी को पांच वर्षों के भीतर पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए।
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राज्य सरकार के परामर्श से एसईआरसी डिस्कॉम्स को इस दायित्व से छूट दे सकते हैं कि वे एक मेगावॉट से अधिक बिजली की मांग करने वाले उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करें।
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ड्राफ्ट बिल में केंद्रीय और राज्य बिजली मंत्रियों से मिलकर एक बिजली परिषद की स्थापना का प्रावधान है। यह परिषद केंद्र और राज्य सरकारों को नीतिगत उपायों पर सलाह देगी और बिजली क्षेत्र में सुधारों के कार्यान्वयन में समन्वय स्थापित करेगी।
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एक्ट के तहत अक्षय खरीद दायित्व (आरपीओ) के तहत कुछ संस्थाओं को अक्षय स्रोतों से न्यूनतम मात्रा में बिजली खरीदनी अनिवार्य है। ड्राफ्ट बिल में इसका दायरा बढ़ाकर गैर-जीवाश्म (नॉन-फॉसिल) स्रोतों को भी इसमें शामिल किया गया है। इसके अतिरिक्त, आरपीओ का अनुपालन न करने पर जुर्माने का भी प्रस्ताव है। यह जुर्माना अनुपालन न करने पर खरीदी गई बिजली की प्रत्येक इकाई पर 35 पैसे से 45 पैसे के बीच होगा।
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केंद्र और राज्य सरकारें क्रमशः एसईआरसी और केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग (सीईआरसी) के सदस्यों को हटाने की कार्यवाही शुरू करने के लिए संदर्भ दे सकेंगी। वर्तमान में प्रत्येक सरकार केवल अपने द्वारा नियुक्त व्यक्तियों के लिए ही ऐसा कर सकती है।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
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हालांकि ड्राफ्ट बिल में कई आपूर्तिकर्ताओं को साझा वितरण नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति है, फिर भी इसमें कई प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं। ये प्रश्न मौजूदा पीपीए (बिजली खरीद समझौता) के निपटान, नेटवर्क के विस्तार और रखरखाव की जिम्मेदारी के आवंटन, रेगुलेटरी एसेट्स और क्रॉस सबसिडी के बंटवारे, उपभोक्ताओं के लिए डिस्कॉम्स के बीच स्विच करने की व्यवस्था और एटीएंडसी घाटे के वितरण से संबंधित हैं।
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आपूर्ति संबंधी प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए पहले के बिल्स में यह प्रावधान था कि डिस्कॉम्स को शुल्क तय करने की स्वायत्तता दी जाए। ड़्राफ्ट बिल के अनुसार, रेगुलेटरी आयोग ही शुल्क तय करेंगे।
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आरपीओ का अनुपालन न करने पर जुर्माना अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्रों के बाजार मूल्य (30 पैसे-40 पैसे प्रति यूनिट) के लगभग बराबर निर्धारित किया गया है। यह मूल्य सीमा के रूप में कार्य कर सकता है और बाजार तंत्र को विकृत कर सकता है।
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केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा एक-दूसरे के द्वारा नियुक्त रेगुलेटरी आयोगों के सदस्यों को हटाने के लिए संदर्भ देने की शक्ति एक सरकार द्वारा दूसरी सरकार के क्षेत्र में हस्तक्षेप के समान हो सकती है।
भाग क: बिल्स की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
बिजली संविधान की समवर्ती सूची में आने वाला विषय है।[1] संसद और राज्य विधानसभाएं, दोनों इस विषय पर कानून बना सकती हैं। संसद द्वारा पारित बिजली एक्ट, 2003 वह मुख्य कानून है जो बिजली क्षेत्र को रेगुलेट करता है।[2] यह एक्ट इस क्षेत्र को उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण जैसे उपक्षेत्रों में बांटता है। बिजली क्षेत्र में उत्पादन, ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का इस्तेमाल करके, बिजली उत्पादित करने की प्रक्रिया को कहा जाता है। ट्रांसमिशन की प्रक्रिया में उत्पादन संयंत्रों से हाई वोल्टेज बिजली को ट्रांसमिशन ग्रिड के जरिए वितरण सब-स्टेशनों में पहुंचाया जाता है। वितरण का अर्थ है, वितरण नेटवर्क के जरिए सब-स्टेशनों से बिजली को व्यक्तिगत उपभोक्ताओं तक ट्रांसफर करना। उत्पादन एक गैर लाइसेंसशुदा गतिविधि है, जबकि ट्रांसमिशन और वितरण के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है।2
बिजली क्षेत्र में एक चुनौती लगातार बनी हुई है। वह है, वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का खराब वित्तीय प्रदर्शन।[3],[4] 2018-19 और 2023-24 के बीच सभी डिस्कॉम्स का कुल संचयी घाटा 3.4 लाख करोड़ रुपए था।[5] अधिकांश राज्यों में बिजली वितरण एक स्थानीय मोनोपॉली बिजनेस है यानी एक ही कंपनी, आमतौर पर राज्य सरकार के स्वामित्व वाली इकाई, एक निश्चित क्षेत्र में सभी उपभोक्ताओं को सेवा प्रदान करती है।4 निजी क्षेत्र की डिस्कॉम्स दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे कुछ शहरों में बिजली की आपूर्ति करती हैं।4 डिस्कॉम्स को वित्तीय घाटे से उबारने के लिए समय-समय पर सरकारी सहायता की जरूरत पड़ती रही है।3 इस घाटे के कुछ मुख्य कारण हैं, शुल्क का कम होना और उच्च तकनीकी और वाणिज्यिक घाटा (जिसमें बिजली चोरी की समस्या भी शामिल है)।3,4
कई सालों से 2003 के एक्ट में विभिन्न संशोधनों पर विचार किया गया है। 2014 में एक बिल पेश किया गया था जिसमें वितरण नेटवर्क और आपूर्ति व्यवसायों के लिए अलग-अलग लाइसेंस का प्रावधान था।[6] ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने इसकी समीक्षा की, लेकिन 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह बिल निरस्त हो गया।[7] एक्ट में संशोधन के ड्राफ्ट 2018 और 2020 में भी जनता की प्रतिक्रिया के लिए जारी किए गए थे।[8],[9] जहां 2018 के ड्राफ्ट में 2014 के बिल के समान वितरण संरचना का प्रावधान था, वहीं 2020 के ड्राफ्ट बिल में वितरण लाइसेंसधारियों की ओर से बिजली वितरण के लिए उप-लाइसेंसधारियों का प्रावधान किया गया था। 2022 में एक बिल लोकसभा में पेश किया गया और बाद में इसे ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी को भेज दिया गया।[10] इस बिल में एक निश्चित क्षेत्र में वितरण कंपनियों के बीच नेटवर्क साझा करने का प्रावधान था। 17वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह बिल निरस्त हो गया। इन बिल्स का उद्देश्य शुल्क और क्रॉस-सबसिडी को सुव्यवस्थित करना भी था। क्रॉस-सबसिडी उस व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें एक उपभोक्ता वर्ग दूसरे उपभोक्ता वर्ग के उपभोग पर सबसिडी देता है। कई राज्यों में क्रॉस-सबसिडी का स्तर आपूर्ति की औसत लागत के ±20% (प्लस माइनस 20 प्रतिशत) की सीमा में रखने के दीर्घकालिक नीतिगत लक्ष्य से अधिक है।3
अक्टूबर 2025 में ड्राफ्ट बिजली (संशोधन) बिल, 2025 को जनता की प्रतिक्रिया के लिए जारी किया गया।
मुख्य विशेषताएं
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एक ही क्षेत्र में वितरण कंपनियों के बीच नेटवर्क को साझा करना: एक्ट में कई डिस्कॉम्स को एक ही क्षेत्र में अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करके बिजली आपूर्ति और वितरण करने की अनुमति है। ड्राफ्ट बिल के तहत, एक डिस्कॉम राज्य बिजली रेगुलेटरी आयोगों (एसईआरसी) की निगरानी के अधीन, किसी दूसरे डिस्कॉम के नेटवर्क का उपयोग करके बिजली की आपूर्ति कर सकती है। इसके अलावा, हरेक डिस्कॉम को: (i) एसईआरसी द्वारा निर्धारित शुल्कों के भुगतान के अधीन, दूसरी डिस्कॉम्स को अपने नेटवर्क का ओपन और नॉन-डिसक्रिमिनेटरी एक्सेस देना होगा और (ii) रेगुलेटरी आयोग द्वारा निर्दिष्ट किसी भी तरह के डुप्लिकेशन से बचते हुए वितरण प्रणाली का विकास और रखरखाव करना होगा।
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लागत-अनुरूप शुल्क और कुछ संस्थाओं के लिए क्रॉस-सबसिडी को खत्म करना: एक्ट के तहत, बिजली के खुदरा शुल्क में धीरे-धीरे बिजली की आपूर्ति लागत को प्रतिबिंबित होना चाहिए और क्रॉस-सबसिडी को एक निर्दिष्ट तरीके से कम किया जाना चाहिए। इसके बजाय ड्राफ्ट बिल में यह प्रावधान है कि शुल्क बिजली की आपूर्ति लागत को प्रतिबिंबित करेगा। इसमें यह भी प्रावधान है कि मैन्यूफैक्चरिंग इंटरप्राइजेज़, रेलवे और मेट्रो रेलवे द्वारा दी जाने वाली क्रॉस-सब्सिडी को पांच वर्षों के भीतर पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए।
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कुछ उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति के दायित्व से छूट: डिस्कॉम्स का यह दायित्व है कि वे सभी श्रेणियों के उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करें। इसमें वे उपभोक्ता भी शामिल हैं जिन्हें उत्पादक से सीधे बिजली प्राप्त करने की अनुमति है (जिन्हें ओपन एक्सेस कहा जाता है)। एक्ट के अनुसार, ये वे उपभोक्ता हैं जिनकी बिजली की अधिकतम मांग एक मेगावाट से अधिक है। ड्राफ्ट बिल में राज्य सरकार के परामर्श से एसईआरसी को यह अनुमति दी गई है कि वे ऐसे उपभोक्ताओं के लिए वितरण कंपनी को इस दायित्व से छूट दे सकते हैं।
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बिजली परिषद की स्थापना: ड्राफ्ट बिल में बिजली परिषद की स्थापना का प्रस्ताव है। केंद्रीय बिजली मंत्री इस परिषद के अध्यक्ष होंगे। राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के बिजली मंत्री इस परिषद के सदस्य होंगे। केंद्रीय बिजली सचिव परिषद के संयोजक होंगे। परिषद केंद्र और राज्य सरकारों को निम्नलिखित मामलों के संबंध में सलाह देगी: (i) बिजली क्षेत्र में नीतिगत उपाय, (ii) सुधारों पर आम सहमति बनाने में सहायता करना, और (iii) ऐसे सुधारों के कार्यान्वयन में समन्वय करना।
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अक्षय खरीद दायित्व का अनुपालन न करने पर दंड: एक्ट के तहत एसईआरसी को यह अधिकार प्राप्त है कि वे डिस्कॉम को अक्षय स्रोतों से एक निश्चित प्रतिशत बिजली खरीदने के लिए बाध्य कर सकते हैं, जिसे अक्षय खरीद दायित्व (आरपीओ) के रूप में जाना जाता है। ड्राफ्ट बिल में इसे संशोधित किया गया है और इसे गैर-जीवाश्म स्रोतों से बिजली खरीदने का दायित्व बना दिया गया है। इसके अतिरिक्त, आरपीओ के तहत एसईआरसी द्वारा अनिवार्य बिजली का प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्रतिशत से कम नहीं होगा। ड्राफ्ट बिल में आरपीओ का पालन न करने पर दंड का भी प्रावधान है। यह दंड अनुपालन न करने पर खरीदी गई बिजली की प्रत्येक इकाई पर 35 पैसे से 45 पैसे के बीच होगा।
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रेगुलेटरी आयोग के सदस्यों को हटाने के लिए शक्तियों का विस्तार: एक्ट के अनुसार, बिजली अपीलीय ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष द्वारा जांच किए बिना रेगुलेटरी आयोग के किसी भी सदस्य को हटाया नहीं जा सकता। इस जांच को शुरू करने का अनुरोध केंद्र सरकार द्वारा सीईआरसी सदस्यों के लिए या राज्य सरकार द्वारा एसईआरसी सदस्यों के लिए किया जा सकता है। ड्राफ्ट बिल में यह भी जोड़ा गया है कि केंद्र सरकार एसईआरसी सदस्यों को हटाने का अनुरोध भी कर सकती है, और राज्य सरकार भी सीईआरसी सदस्यों को हटाने का अनुरोध कर सकती है।
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रेगुलेटरी आयोगों के सदस्यों को हटाने के लिए अतिरिक्त आधार: एक्ट में रेगुलेटरी आयोगों के सदस्यों को हटाने के लिए निम्नलिखित आधार निर्दिष्ट किए गए हैं: (i) इनसॉल्वेंसी (ऋण चुकाने में असमर्थता), (ii) बेईमानी से जुड़े अपराधों के लिए दोषसिद्धि, (iii) शारीरिक या मानसिक अक्षमता, (iv) पूर्वाग्रहपूर्ण वित्तीय हित, यानी ऐसे वित्तीय हित जो सदस्य की निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं, (v) पद का दुरुपयोग, और (vi) सिद्ध दुर्व्यवहार। ड्राफ्ट बिल में दो अतिरिक्त आधार जोड़े गए हैं: (i) 2003 के एक्ट और संबंधित नियमों या रेगुलेशंस का जानबूझकर उल्लंघन और (ii) कर्तव्यों को निभाने में घोर लापरवाही।
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इलेक्ट्रिक लाइन अथॉरिटी की स्थापना: ड्राफ्ट बिल में इलेक्ट्रिक लाइन अथॉरिटी की स्थापना की गई है। इस अथॉरिटी की वही शक्तियां होंगी, जो निरस्त टेलीग्राफ एक्ट, 1885 के तहत स्थापित टेलीग्राफ अथॉरिटी की थीं।[11] अथॉरिटी किसी संपत्ति पर इलेक्ट्रिक लाइन यानी बिजली की तारें लगा सकती है, उसका रखरखाव और मरम्मत कर सकती है या उसे हटा सकती है, जोकि मुआवजे के भुगतान के अधीन है। राज्य सरकारें इस मुआवजे के निर्धारण के तरीके को निर्दिष्ट करेंगी।
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कैप्टिव उत्पादन के लिए मानदंड: यह एक्ट किसी व्यक्ति को कैप्टिव उत्पादन संयंत्र (यानी उपभोक्ताओं द्वारा अपने उपयोग के लिए स्थापित उत्पादन इकाई) का निर्माण, रखरखाव या संचालन करने की अनुमति देता है। ड्राफ्ट बिल केंद्र और राज्य सरकारों, दोनों को कैप्टिव उत्पादन के लिए पात्रता मानदंड निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
ख: मुख्य मुद्दे और विश्लेषण
साझा वितरण प्रणाली को पेश करना
बिजली एक्ट, 2003 के मुख्य उद्देश्यों में से एक है, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना। इसके लिए एक्ट एक ही क्षेत्र में कई वितरण लाइसेंसधारियों को काम करने की अनुमति देता है। एक्ट के तहत प्रत्येक वितरण लाइसेंसधारी को अपना खुद का नेटवर्क इस्तेमाल करके, बिजली आपूर्ति करनी होती है। हालांकि इस प्रावधान से नेटवर्क इंफ्रास्ट्रक्चर का डुप्लिकेशन हो सकता है जिससे उपभोक्ताओं की लागत बढ़ सकती है।[12],[13],[14] इसके मद्देनजर ड्राफ्ट बिल में यह प्रावधान किया गया है कि एक डिस्कॉम साझा वितरण प्रणाली, यानी दूसरे डिस्कॉम के नेटवर्क का इस्तेमाल करके, बिजली आपूर्ति कर सकती है। यह रेगुलेटरी आयोग द्वारा निर्दिष्ट संरचना के अनुरूप होगा। इसके लिए यह भी जरूरी है कि हरेक डिस्कॉम दूसरे डिस्कॉम्स को अपने नेटवर्क का नॉन-डिसक्रिमिनेटरी ओपन एक्सेस दे। एसईआरसी द्वारा निर्धारित शुल्क के भुगतान के बाद ऐसा किया जाएगा। इसके अतिरिक्त डिस्कॉम का यह भी कर्तव्य होगा कि वह जितना जरूरी हो, नेटवर्क का विकास और उसका रखरखाव करे और डुप्लिकेशन से बचे, जैसा रेगुलेटरी आयोग द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा। हम इन परिवर्तनों से संबंधित मुद्दों पर यहां चर्चा कर रहे हैं।
ड्राफ्ट बिल आपूर्ति में प्रतिस्पर्धा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर स्पष्टता प्रदान नहीं करता
ड्राफ्ट बिल आपूर्ति में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने का प्रयास करता है। यह उम्मीद की जा रही है कि उपभोक्ताओं को विकल्प मिलेंगे और कार्यकुशलता बढ़ेगी। इसके लिए ड्राफ्ट बिल हरेक मौजूदा डिस्कॉम से उम्मीद करता है कि वह अपने वायर नेटवर्क को नए डिस्कॉम्स के साथ साझा करे। इसके लिए उन्हें एक शुल्क चुकाना होगा, जिसका निर्धारण एसईआरसी करेगा। नेटवर्क को साझा करने और ग्राहकों के संभावित स्थानांतरण से कई समस्याएं उठ सकती हैं। पहले के बिल्स ने इनमें से कुछ समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया था।
मौजूदा पीपीए की व्यवस्था
डिस्कॉम्स मुख्य रूप से दीर्घकालिक बिजली खरीद समझौतों (पीपीएज़) के जरिए उत्पादन कंपनियों से बिजली खरीदते हैं।[15] इन समझौतों में दो प्रकार की लागत शामिल होती है: (i) निश्चित लागत (क्षमता लागत) जिसका भुगतान तब भी करना पड़ता है, जब बिजली का उपयोग नहीं किया जाता है और (ii) परिवर्तनीय लागत (ऊर्जा लागत), जिसका भुगतान वास्तव में उत्पादित बिजली के लिए किया जाता है।[16] प्रस्तावित संशोधनों के तहत, एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम्स को एक ही नेटवर्क का इस्तेमाल करके उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करने की अनुमति दी जाएगी। इससे उपभोक्ताओं का मौजूदा डिस्कॉम से नए डिस्कॉम में स्थानांतरण हो सकता है। हालांकि मौजूदा डिस्कॉम को अनुबंधित क्षमता के लिए मौजूदा पीपीए के तहत निर्धारित शुल्क चुकाना ही होगा। ड्राफ्ट बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन लागतों का वितरण डिस्कॉम्स और उपभोक्ताओं के बीच कैसे किया जाएगा। इन लागतों को साझा करने के लिए एक स्पष्ट तंत्र के अभाव में मौजूदा डिस्कॉम प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो सकती है। बिजली (संशोधन) बिल, 2022 में यह निर्दिष्ट किया गया था कि मौजूदा पीपीए को एक क्षेत्र में कार्यरत सभी डिस्कॉम्स के बीच साझा किया जाएगा।10 बिजली (संशोधन) बिल, 2014 और 2018 के ड्राफ्ट बिल में मौजूदा पीपीए को एक इंटरमीडियरी कंपनी में पूल करने का प्रावधान था।6,8
नेटवर्क वृद्धि की जिम्मेदारी
2003 के एक्ट के तहत वितरण लाइसेंसधारी को बिजली आपूर्ति करने के लिए अपना खुद का नेटवर्क तैयार करना होगा, और यह उसकी जिम्मेदारी होगी कि वह वितरण प्रणाली को विकसित करे। ड्राफ्ट बिल में डिस्कॉम को इस बात की अनुमति दी गई है कि वह दूसरे डिस्कॉम्स के नेटवर्क का इस्तेमाल करके, बिजली आपूर्ति कर सकती है। इसी के साथ बिल में यह कहा गया है कि सभी डिस्कॉम्स की यह जिम्मेदारी है कि वह नेटवर्क विकसित करे, जैसी जरूरत हो, और डुप्लिकेशन से बचे, जैसा कि कि रेगुलेटरी आयोग द्वारा निर्दिष्ट किया जाए। यह अस्पष्ट है कि किसी क्षेत्र में नेटवर्क विस्तार की जिम्मेदारी को कैसे साझा किया जाएगा। चूंकि नेटवर्क विस्तार पूंजी गहन होता है, इसलिए यह अस्पष्ट है कि जोखिम और लागत का वहन कौन करेगा। इससे नेटवर्क निवेश पर अनिश्चितता कायम हो सकती है।
रेगुलेटरी एसेट्स का आवंटन
शुल्क कम निर्धारित होने के कारण कुछ वितरण कंपनियों के पास रेगुलेटरी एसेट्स बन गए हैं।4 रेगुलेटरी एसेट्स यानी नियामक परिसंपत्तियां ऐसी अमूर्त परिसंपत्तियां होती हैं, जिसे रेगुलेटरी आयोग तब दर्ज करता है, जब कोई डिस्कॉम चालू वर्ष के शुल्कों के जरिए अपनी लागत की पूरी वसूली नहीं कर पाती।[17] लागत और शुल्क के बीच के इस अंतर को उस वर्ष के शुल्क में शामिल नहीं किया जाता, बल्कि डिस्कॉम भविष्य के शुल्कों के जरिए उपभोक्ताओं से उसकी वसूली कर सकती है।17 ड्राफ्ट बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि जब कोई अन्य वितरण कंपनी बाजार में प्रवेश करेगी तो नियामक परिसंपत्तियों का क्या होगा। इस ड्राफ्ट बिल में उपभोक्ताओं को एक की बजाय दूसरी डिस्कॉम में स्विच करने की अनुमति है। यह स्पष्ट नहीं है कि इन नियामक परिसंपत्तियों की वसूली का भार उस क्षेत्र के सभी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा या केवल उस वितरण कंपनी के शेष उपभोक्ताओं पर, जिसके पास नियामक परिसंपत्ति है।
उपभोक्ता मिश्रण में परिवर्तन और क्रॉस-सबसिडी का संतुलन
वर्तमान में कुछ उपभोक्ता वर्ग दूसरे उपभोक्ता वर्ग की खपत को क्रॉस-सबसिडी करते हैं।2,[18] ड्राफ्ट बिल में क्रॉस-सबसिडी के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है, लेकिन इसमें क्रॉस-सबसिडी को धीरे-धीरे कम करने की जरूरत दर्शाई गई है। जब एक ही क्षेत्र में कई वितरण कंपनियां साझा नेटवर्क का उपयोग करेंगी, तो प्रत्येक वितरण कंपनी के उपभोक्ता आधार में बदलाव हो सकता है। बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एक ही क्षेत्र में कार्यरत कई लाइसेंसधारियों के बीच क्रॉस-सबसिडी का बंटवारा कैसे होगा। बिजली (संशोधन) बिल, 2022 में क्रॉस-सबसिडी संतुलन कोष स्थापित करने का प्रस्ताव था।10 क्रॉस-सबसिडी के कारण वितरण लाइसेंसधारी के पास बचे किसी भी अधिशेष को इस कोष में जमा किया जाना था। इस कोष का उपयोग उसी क्षेत्र या किसी अन्य क्षेत्र में अन्य वितरण कंपनियों के लिए क्रॉस-सबसिडी में घाटे की भरपाई के लिए किया जाना था। ड्राफ्ट बिल में इस समस्या के समाधान के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।
उपभोक्ताओं को स्विच करना
एक ही क्षेत्र में कई वितरण लाइसेंसधारियों को बढ़ावा देने का मूल कारण उपभोक्ताओं को आपूर्तिकर्ताओं का विकल्प प्रदान करना है। उपभोक्ताओं को विकल्प मिलने से प्रतिस्पर्धा बढ़ने की उम्मीद है और आपूर्ति लाइसेंसधारी भी सस्ते शुल्क और बेहतर सेवा गुणवत्ता प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित होंगे ताकि वे ग्राहकों को आकर्षित कर सकें और उन्हें बहाल रख सकें। इससे आपूर्तिकर्ता भी परिचालन दक्षता में सुधार करने और बेहतर बिजली खरीद समझौतों पर बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं। साथ ही उपभोक्ताओं तक भी ये लाभ पहुंच सकते हैं। हालांकि प्रतिस्पर्धा के लिए यह जरूरी है कि उपभोक्ता एक की बजाय दूसरे आपूर्ति लाइसेंसधारी का विकल्प आसानी से चुन सकें। इसके लिए एक ऐसी संरचना की जरूरत है जो इस स्विचिंग यानी स्थानांतरण के दौरान बिजली की सुचारू और निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करे। ड्राफ्ट बिल में स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया गया है कि: (i) स्विचिंग कैसे काम करेगी और (ii) एक आपूर्तिकर्ता से दूसरे आपूर्तिकर्ता में स्थानांतरण के दौरान क्या होगा। ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी, जिसने 2014 के बिल की समीक्षा की थी, ने सुझाव दिया था कि बिल में आपूर्ति लाइसेंसधारियों के बीच उपभोक्ताओं की स्विचिंग के संबंध में कुछ विवरण शामिल होने चाहिए।7 इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उपभोक्ता को आपूर्ति लाइसेंसधारी को चुनने का विकल्प देने की व्यवस्था, (ii) उपभोक्ता की पसंद के आधार पर एक आपूर्तिकर्ता से दूसरे आपूर्तिकर्ता में स्थानांतरण, और (iii) इस तरह के चयन और स्थानांतरण में शामिल लागत। 2025 के ड्राफ्ट बिल में ऐसे उपायों का उल्लेख नहीं है।
एटीएंडसी घाटे की व्यवस्था
ड्राफ्ट बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि साझा वितरण प्रणाली में वितरण संबंधी एटीएंडसी घाटे (कुल तकनीकी एवं वाणिज्यिक घाटे) का बंटवारा कैसे किया जाएगा। ड्राफ्ट बिल में रेगुलेटरी आयोग को भी यह कार्य नहीं सौंपा गया है। एटीएंडसी घाटा उस अनुपात को दर्शाता है जिसके लिए डिस्कॉम को कोई भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है, जबकि उसने उस बिजली को उत्पादन कंपनी से खरीदा और अपने नेटवर्क में ट्रांसमिट किया है। 2023-24 में भारत में एटीएंडसी घाटा 16% था।4 अगर ये घाटा मानक स्तर से अधिक है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि अतिरिक्त घाटे के वित्तीय भार को कौन वहन करेगा। एटीएंडसी घाटे के मानक स्तर से तात्पर्य उस स्तर से है जिसे रेगुलेटरी आयोग वितरण कंपनियों को वहन करने की अनुमति देता है। घाटे के संबंध में स्पष्टता की कमी लाइसेंसधारियों और रेगुलेटर्स के बीच विवादों को जन्म दे सकती है।
शुल्क तय करने की सीमित स्वतंत्रता
इससे पहले के बिल्स में, जो आपूर्ति में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने का प्रयास करते थे, डिस्कॉम्स को इस बात की कुछ स्वतंत्रता भी थी कि वे शुल्क तय कर सकें।6,8,10 उदाहरण के लिए बिजली (संशोधन) बिल, 2022 के तहत एक डिस्कॉम रेगुलेटरी आयोग द्वारा निर्धारित न्यूनतम और अधिकतम सीमा के अधीन शुल्क तय कर सकते थे।10 2018 में जारी ड्राफ्ट संशोधनों में आपूर्तिकर्ताओं को रेगुलेटरी आयोग द्वारा निर्धारित अधिकतम सीमा से कम शुल्क वसूलने की अनुमति थी।8 शुल्क निर्धारित करने में लचीलेपन से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल सकता है और कार्य कुशलता बढ़ सकती है। ड्राफ्ट बिल में ऐसे प्रावधान शामिल नहीं हैं। ड्राफ्ट बिल के तहत शुल्क संबंधित रेगुलेटरी आयोग द्वारा ही निर्धारित किए जाएंगे।
निश्चित जुर्माना, बाजार मूल्य के करीब, आरईसीज़ के लिए अधिकतम मूल्य सीमा के तौर पर काम कर सकता है
एक्ट एसईआरसीज़ को यह निर्देश देने का अधिकार देता है कि संस्थाओं (जैसे डिस्कॉम्स) द्वारा खरीदी जाने वाली बिजली के एक निश्चित प्रतिशत को अक्षय स्रोतों (जिसे अक्षय खरीद दायित्व (आरपीओ) के तौर पर जाना जाता है) से प्राप्त करें। ड्राफ्ट बिल इसमें परिवर्तन करके, यह अनिवार्य करता है कि बिजली खरीद गैर-जीवाश्म स्रोतों से की जाएगी। वह यह भी कहता है कि आरपीओ लक्ष्य पूरा न करने की स्थिति में एसईआरसी जुर्माना लगा सकते हैं। इसमें आगे स्पष्ट किया गया है कि चूक की स्थिति में जुर्माना 35 पैसे से 45 पैसे प्रति यूनिट के बीच होगा। ड्राफ्ट बिल के स्पष्टीकरण नोट में यह कहा गया है कि अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्रों (आरईसी) का बाजार मूल्य आमतौर पर 30 से 40 पैसे प्रति यूनिट के बीच रहता है। अनुपालन न करने पर लगाया गया एक निश्चित जुर्माना, जो अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्रों (आरईसी) के बाजार मूल्य के लगभग बराबर हो, आरईसी की कीमतों को उस जुर्माने के स्तर तक सीमित कर सकता है।
अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्र (आरईसी) अक्षय स्रोतों से उत्पादित एक मेगावाट-घंटे (MWh) बिजली का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यापार योग्य प्रमाणपत्र होते हैं।[19] संस्थाएं अक्षय ऊर्जा खरीदने के बजाय आरईसी खरीदकर अक्षय उत्पादन क्षमता (आरपीओ) को पूरा कर सकती हैं। वर्तमान में, आरईसी की कीमतें बिजली एक्सचेंजों पर व्यापार के माध्यम से निर्धारित की जाती हैं।[20] कीमतें मांग और आपूर्ति के आधार पर बदलती रहती हैं। हालांकि एक निश्चित जुर्माना इस बाजार तंत्र को बिगाड़ सकता है। अगर आरईसी की कीमत जुर्माने से अधिक है, तो संस्थाओं के लिए आरईसी खरीदने के बजाय जुर्माना अदा करना अधिक आकर्षक हो जाता है। इस प्रकार जुर्माना प्रभावी रूप से आरईसी के लिए अधिकतम मूल्य (मूल्य सीमा) के रूप में कार्य कर सकता है।
आरपीओ के तहत अनुपालन न करने पर इस तरह का निश्चित जुर्माना कार्बन क्रेडिट बाजार में कीमतों को भी प्रभावित कर सकता है। ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 के तहत कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना के अनुसार देश में एक कार्बन क्रेडिट बाजार विकसित किया जा रहा है।[21] इस योजना के तहत, जो संस्था एक निश्चित सीमा से कम उत्सर्जन करती हैं, उन्हें कार्बन क्रेडिट मिलते हैं, जबकि जो लक्ष्य पूरा नहीं कर पातीं, उन्हें ये क्रेडिट खरीदने पड़ते हैं। यह व्यवस्था बिजली सहित अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर लागू होती है। आरपीओ के तहत एक निश्चित मौद्रिक जुर्माना कार्बन कटौती के लिए एक ‘संदर्भ मूल्य’ के रूप में भी कार्य कर सकता है।
अन्य कानूनों में ऐसे उल्लंघनों पर सजा देने के लिए एक अलग दृष्टिकोण अपनाया जाता है। ऊर्जा संरक्षण एक्ट, 2001 के तहत, निर्दिष्ट संस्थाओं को गैर-जीवाश्म स्रोतों से ऊर्जा खपत का न्यूनतम हिस्सा पूरा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है।[22] ऐसा न करने पर निर्धारित मानक से कम खपत की गई ऊर्जा के प्रत्येक ‘मीट्रिक टन तेल समतुल्य’ की कीमत के दोगुने तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।22 ‘मीट्रिक टन तेल समतुल्य’ ऊर्जा को मापने की एक अंतरराष्ट्रीय इकाई है। इसका अर्थ है, किसी विशेष ऊर्जा स्रोत से उतनी ही ऊर्जा प्राप्त करना, जितनी एक मीट्रिक टन कच्चे तेल को जलाने से मिलती है। इस प्रकार, जुर्माने की कोई निश्चित राशि नहीं है बल्कि यह ऊर्जा के बाजार-निर्धारित मूल्य से जुड़ा होता है।
रेगुलेटर को हटाने के लिए दूसरी सरकार द्वारा जांच शुरू करना
बिजली संविधान की समवर्ती सूची में आने वाला विषय है, यानी केंद्र और राज्य, दोनों इस विषय पर कानून बना सकते हैं।1 बिजली एक्ट, 2003 में दो स्तरीय रेगुलेटरी निकायों का प्रावधान है: (i) अंतरराज्यीय मामलों के लिए केंद्रीय स्तर पर सीईआरसी, और (ii) राज्यों के भीतर के मामलों के लिए राज्य स्तर पर एसईआरसी। सीईआरसी के सदस्यों को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया और हटाया जाता है, जबकि एसईआरसीज़ के सदस्यों को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त किया और हटाया जाता है। एक्ट में यह प्रावधान भी है कि बिजली अपीलीय ट्रिब्यूनल (एप्टेल) के चेयरपर्सन द्वारा जांच करने के बाद ही सीईआरसी या एसईआरसीज़ के किसी सदस्य को हटाया जा सकता। यह जांच संबंधित सरकार द्वारा संदर्भ दिए जाने के बाद शुरू की जा सकती है। बिल में निम्नलिखित की अनुमति है: (i) केंद्र सरकार सीईआरसी के सदस्यों के खिलाफ संदर्भ दे सकती है, और (ii) राज्य सरकारें सीईआरसी के सदस्यों के खिलाफ संदर्भ दे सकती है। बिल के स्पष्टीकरण नोट में कहा गया है कि बिजली रेगुलेशन में होने वाले दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए यह परिवर्तन आवश्यक है, जैसे कि जहां राज्य के भीतर के मामलों पर एसईआरसी सदस्य के फैसले, अंतरराज्यीय ट्रांसमिशन को प्रभावित कर सकते हैं।
संघवाद के सिद्धांत के अनुसार, दोनों सरकारों और उनके द्वारा नियुक्त रेगुलेटर्स को अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से कार्य करना चाहिए। बिल के तहत संदर्भ देने का अधिकार शक्तियों के इस विभाजन को धुंधला कर सकता है और एक सरकार द्वारा दूसरी सरकार के क्षेत्र में हस्तक्षेप के समान हो सकता है। यह भी तर्क दिया जा सकता है कि सदस्यों को हटाने का अंतिम अधिकार अभी भी उन्हें नियुक्त करने वाली संबंधित सरकारों के पास ही है। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या जांच शुरू करने का संदर्भ देना, रेगुलेटरी निकायों पर प्रभाव डालने या नियंत्रण रखने के एक माध्यम के समान है।
ड्राफ्ट बिल का नजरिया, ऐसे ही रेगुलेटरी या वैधानिक निकायों को गठित करने वाले अन्य कानूनों से भिन्न है। उदाहरण के लिए, जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) एक्ट, 1974 केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड्स की स्थापना करता है।[23] आपदा प्रबंधन एक्ट, 2005 राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों की स्थापना करता है।[24] इन कानूनों के तहत, सदस्यों को हटाने से संबंधित शक्तियां पूर्णतः सदस्यों की नियुक्ति करने वाली सरकार के पास ही होती हैं।
[1]. Entry No. 38, List III- Concurrent List, Seventh Schedule, Constitution of India, https://cdnbbsr.s3waas.gov.in/s380537a945c7aaa788ccfcdf1b99b5d8f/uploads/2024/07/20240716890312078.pdf.
[2]. Electricity Act 2003, https://cercind.gov.in/Act-with-amendment.pdf.
[3]. Diagnostic Study of the Power Distribution Sector, NITI Aayog, April 2019, https://niti.gov.in/sites/default/files/2019-08/Final%20Report%20of%20the%20Research%20Study%20on%20Diagnostic%20Study%20for%20power%20Distribution_CRISIL_Mumbai.pdf.
[4]. Report on Performance of Power Utilities 2023-24, Power Finance Corporation, October 2025, http://www.pfcindia.co.in/ensite/DocumentRepository/ckfinder/files/Operations/Performance_Reports_of_State_Power_Utilities/Report%20on%20Perfromance%20of%20Power%20Utilities%202023-24(1).pdf.
[5]. Performance Report of Power Utilities, Power Finance Corporation, https://www.pfcindia.co.in/ensite/Home/VS/29.
[6]. The Electricity (Amendment) Bill, 2014, as introduced in Lok Sabha, December 2014, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2014/Electricity_(A)_bill,_2014.pdf.
[7]. 4th Report: The Electricity (Amendment) Bill, 2014, Standing Committee on Energy, May 2015, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2014/SC_report-Electricity_1.pdf.
[8]. The Draft Electricity (Amendment) Bill, 2018, Ministry of Power, September 2018, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/1970/Draft%20Electricity%20Bill%202018.pdf.
[9]. The Draft Electricity (Amendment) Bill, 2020, Ministry of Power, April 2020, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/1970/Draft_Electricity_Amendment_Bill_2020_for_comments.pdf.
[10]. The Electricity (Amendment) Bill, 2022, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2022/Electricity%20(A)%20Bill,%202022.pdf.
[11]. The Indian Telegraph Act, 1885, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/13115/1/indiantelegraphact_1885.pdf.
[12]. “Introducing Competition in Retail Electricity Supply in India”, Forum of Regulators, July 2013, https://www.forumofregulators.gov.in/Data/Reports/6_9_13.pdf.
[13]. “Roll out Plan for Introduction of Competition in Retail Sale of Electricity”, Forum of Regulators, July 2015, https://www.forumofregulators.gov.in/Data/study/Retail.pdf.
[14]. Appeal No 246 of 2012, Tata Power Company Limited vs Maharashtra Electricity Regulatory Commission, Appellate Tribunal for Electricity, November 28, 2014, https://aptel.gov.in/judgements/Judg2014/Appeal%20No.%20246%20of%202012%20&%20IA%20nos.%20401%20&%20402%20and%2071,245,%20439%20&%20442%20of%202013%20&%20IA%20no.%20139%20of%202014%20and%20Appeal%20No.%20229%20of%202012%20&%20IA%20no.%20368%20of%202012_28.11.2014.pdf.
[15]. “Turning Around the Power Distribution Sector: Learnings and Best Practices from Reforms”, NITI Aayog, August 2021, https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2021-08/Electricity-Distribution-Report_030821.pdf.
[16]. Central Electricity Regulatory Commission (Terms and Conditions of Tariff) Regulations, 2019, https://cercind.gov.in/2019/regulation/Tariff%20Regulations-2019.pdf.
[17]. Writ Petition 104 of 2014, Supreme Court of India, August 6, 2025, https://api.sci.gov.in/supremecourt/2015/14553/14553_2015_6_1501_62958_Judgement_06-Aug-2025.pdf.
[18]. The Draft Electricity (Amendment) Bill, 2025, https://powermin.gov.in/sites/default/files/webform/notices/Seeking_comments_on_Draft_Electricity_Amendment_Bill_2025.pdf.
[19]. Central Electricity Regulatory Commission (Terms and Conditions for recognition and issuance of Renewable Energy Certificate for Renewable Energy Generation) Regulations, 2010, https://cercind.gov.in/Regulations/Statement-of-Reasons_SOR_for-CERC_REC_regualtions_2010.pdf.
[20]. Central Electricity Regulatory Commission (Terms and Conditions for Renewable Energy Certificates for Renewable Energy Generation) Regulations, 2022, https://cercind.gov.in/regulations/REC-Regulations-2022.pdf.
[21]. “Carbon Pricing in India”, Press Information Bureau, June 23, 2025, https://www.pib.gov.in/PressNoteDetails.aspx?id=154721&NoteId=154721&ModuleId=3.
[22]. Section 26(3), The Energy Conservation Act 2001, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2003/1/A2001-52.pdf.
[23]. Section 3 and 4, Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/15429/1/the_water_%28prevention_and_control_of_pollution%29_act%2C_1974.pdf.
[24]. Section 3 and 14, Disaster Management Act, 2005, https://ndmindia.mha.gov.in/ndmi/images/The%20Disaster%20Management%20Act,%202005.pdf.
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