मंत्रालय: 
सूचना एवं प्रसारण

ड्राफ्ट बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • कई प्रकार के ब्रॉडकास्टर और ब्रॉडकास्ट नेटवर्क ऑपरेटर इस ड्राफ्ट बिल के तहत रेगुलेट किए जाएंगे। यह रेगुलेशन उनके प्रकार पर निर्भर करेगा। टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क्स केंद्र सरकार के साथ पंजीकृत होंगे, जबकि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को एक निश्चित संख्या के सबस्क्राइबर्स होने पर इसकी सूचना देनी होगी।

  • ड्राफ्ट बिल न्यूज़ और करंट अफेयर्स प्रोग्राम्स (प्रिंट न्यूज़ को छोड़कर) के ब्रॉडकास्ट को रेगुलेट करने का भी प्रयास करता है। ऐसे प्रोग्राम्स को निर्दिष्ट प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड (संहिता) का पालन करना होगा। 

  • ड्राफ्ट बिल प्रोग्राम और विज्ञापन कोड का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक सेल्फ रेगुलेटरी संरचना का प्रावधान करता है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सेल्फ-रेगुलेशन, (ii) सेल्फ रेगुलेटरी संगठनों का गठन, और (iii) एक ब्रॉडकास्ट परामर्श परिषद की स्थापना।  

  • हर ब्रॉडकास्टर को एक आंतरिक कंटेंट मूल्यांकन समिति (सीईसी) भी बनानी होगी। सभी ब्रॉडकास्ट कंटेंट को सीईसी की तरफ से सर्टिफाई किया जाएगा।   

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • ड्राफ्ट बिल ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध ऑनलाइन कंटेंट को रेगुलेट करता है। हालांकि ऐसा कंटेंट इंटरनेट पर दूसरे तरीकों से भी एक्सेस किया जा सकता है, जिसे अलग तरीके से रेगुलेट किया जाता है।

  • प्रोग्राम कोड को बनाने के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं दिए गए हैं। इससे ब्रॉडकास्टर्स खुद की सेंसरशिप भी कर सकते हैं।

  • केंद्र सरकार के पास आदेश पारित करने की शक्ति होगी कि क्या कोई खास कंटेंट प्रोग्राम कोड का उल्लंघन करता है। यह सरकार की आलोचना करने वाली न्यूज़ या कंटेंट पर भी लागू होगा। इससे हितों का टकराव हो सकता है। ड्राफ्ट बिल केंद्र सरकार के आदेशों के खिलाफ कोई अपीलीय ट्रिब्यूनल का प्रावधान भी नहीं करता है।

  • ब्रॉडकास्ट न्यूज़ को रेगुलेट करने के लिए प्रस्तावित संरचना प्रिंट न्यूज़ की संरचना से काफी फर्क है। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या प्रसार के माध्यम के आधार पर उसी कंटेंट के लिए अलग संरचना प्रदान करना उपयुक्त है।

  • ड्राफ्ट बिल कुछ अपराधों के लिए आपराधिक दंड को फिर से प्रस्तावित करता है जिसे हाल ही में अपराध मुक्त किया गया था।

भाग क: ड्राफ्ट बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

ब्रॉडकास्टिंग में आम लोगों के व्यापक उपभोग के लिए कंटेंट का प्रसारण शामिल है। इसमें टेलीविजन या रेडियो जैसे माध्यमों पर ऑडियो, विजुअल या ऑडियो-विजुअल कंटेंट का ब्रॉडकास्ट शामिल है। बदलती तकनीक के साथ, ब्रॉडकास्ट क्षेत्र में भी बदलाव आया है और कंटेंट के प्रसारण के लिए नए माध्यमों का इस्तेमाल किया जा रहा है। उदाहरण के लिए टेलीविजन केबल से सैटेलाइट टेलीविजन और इंटरनेट प्रोटोकॉल टेलीविजन (आईपीटीवी) तक विकसित हुआ है। इंटरनेट से ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग भी की जा रही है। ब्रॉडकास्टिंग को पहले भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 के जरिए रेगुलेट किया जाता था।[1],[2] वर्तमान में ब्रॉडकास्टिंग के विभिन्न पहलुओं के लिए विभिन्न प्रकार के रेगुलेशंस हैं (तालिका 1)।

तालिका 1: ब्रॉडकास्टिंग क्षेत्र का रेगुलेशन

ब्रॉडकास्टिंग सेवा

रेगुलेशन

टेलीविजन (कंटेंट)

केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1995[3]

ओटीटी सेवाएं और डिजिटल न्यूज़ (कंटेंट)

इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के तहत[4] इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरीज़ के दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021[5]*

रेडियो (कंटेंट)

रेडियो स्टेशनों के साथ अनुमति संबंधी समझौते[6]

ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट का कैरिएज (ओटीटी को छोड़कर)

भारतीय दूरसंचार रेगुलेटरी अथॉरिटी के माध्यम से: (i) टैरिफ आदेश, (ii) इंटरकनेक्शन रेगुलेशन, और (iii) सेवा गुणवत्ता का रेगुलेशन, भारतीय दूरसंचार रेगुलेटरी अथॉरिटी एक्ट, 1997 के तहत जारी।[7],[8]

टेलीविजन के लिए कंटेंट की अपलिंकिंग और डाउनलिकिंग

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अपलिंकिंग और डाउनलिंकिंग दिशानिर्देश[9]

नोट: *नियमों के विभिन्न हिस्सों पर मुंबई, केरल और मद्रास उच्च न्यायालयों द्वारा रोक लगा दी गई है।[10],[11],[12] 

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि एक सुव्यवस्थित और सामंजस्यपूर्ण प्रसारण नियामक ढांचे से नियमों में स्थिरता और स्पष्टता लाने में मदद मिलेगी।[13]  2020 में मंत्रालय ने 1995 के एक्ट में संशोधन प्रस्तावित किए।[14] ड्राफ्ट ब्रॉडकास्टिंग सेवा (रेगुलेशन) बिल, 2023 को सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए 10 नवंबर, 2023 को जारी किया गया।13 यह बिल केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1995 (सीटीएन एक्ट) का स्थान लेने का प्रयास करता है और ब्रॉडकास्टिंग क्षेत्र से जुड़े विभिन्न रेगुलेशंस को एक कानून में समाहित करता है। अप्रैल 2024 में भारतीय दूरसंचार रेगुलेटरी अथॉरिटी (ट्राई) ने राष्ट्रीय ब्रॉडकास्टिंग नीति के प्रतिपादन पर टिप्पणियों हेतु परामर्श पत्र जारी किया है।

मुख्य विशेषताएं 

  • ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं का पंजीकरण: ब्रॉडकास्टर्स और ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स को पंजीकरण करना होगा, प्रत्येक के लिए एक अलग पंजीकरण प्रक्रिया होगी। उदाहरण के लिए, केबल या सैटेलाइट ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क्स को पंजीकरण के लिए आवेदन करना होगा। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को एक निश्चित संख्या के सबस्क्राइबर्स होने पर केंद्र सरकार को इसकी सूचना देनी होगी।

  • न्यूज़ और करंट अफेयर्स प्रोग्राम्स का रेगुलेशन: न्यूज़ और करंट अफेयर्स प्रोग्राम्स को निर्धारित प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड का अनुपालन करना आवश्यक होगा। ऐसे कार्यक्रमों को नए या उल्लेखनीय ऑडियो, विजुअल या ऑडियो-विजुअल कार्यक्रमों या लाइव कार्यक्रमों के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें मुख्य रूप से सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक या सांस्कृतिक प्रकृति की हाल की घटनाओं का विश्लेषण शामिल है।

  • कंटेंट का मूल्यांकन: प्रत्येक ब्रॉडकास्टर या ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर को कम से कम एक आंतरिक कंटेंट मूल्यांकन समिति (सीईसी) का गठन करना होगा। सीईसी में महिला, बाल कल्याण और अनुसूचित जाति जैसे विभिन्न सामाजिक समूहों के प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होंगे। सीईसी से सर्टिफिकेशन के बाद ही कार्यक्रम प्रसारित किए जाएंगे। ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स जो प्लेटफॉर्म सेवाएं (ग्राहकों के लिए विशेष रूप से प्रसारित कार्यक्रम) प्रदान नहीं करते हैं, उन्हें सीईसी बनाने की आवश्यकता नहीं होगी।

  • सेल्फ रेगुलेशन: ड्राफ्ट बिल प्रोग्राम और विज्ञापन कोड के अनुपालन के लिए सेल्फ-रेगुलेटरी संरचना का प्रावधान करता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा। प्लेटफॉर्म सेवाएं न देने वाले ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स को रेगुलेटरी संरचना से छूट होगी। इस संरचना का पहला स्तर, ब्रॉडकास्टर्स और ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स का सेल्फ-रेगुलेशन है। इसके लिए ब्रॉडकास्टर/ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर को शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी। दूसरा स्तर सेल्फ रेगुलेटरी संगठन (एसआरओ) हैं जिससे ब्रॉडकास्टर/ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर संबंधित होंगे। एसआरओ उन सभी शिकायतों का निवारण करेंगे, जिन्हें ब्रॉडकास्टर/ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर ने हल नहीं किया और प्रोग्राम और विज्ञापन कोड के पालन के लिए दिशानिर्देश और परामर्श जारी करेंगे।

  • ब्रॉडकास्ट परामर्श परिषद: ब्रॉडकास्ट परामर्श परिषद (बीएसी) रेगुलेशन का तीसरा स्तर है। यह निम्नलिखित शिकायतों की सुनवाई करेगी: (i) एसआरओ के फैसलों के खिलाफ अपील से उत्पन्न, या (ii) केंद्र सरकार द्वारा संदर्भित। केंद्र सरकार बीएसी की सिफारिशों के आधार पर कार्रवाई करेगी। बीएसी में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) मीडिया, ब्रॉडकास्टिंग और अन्य संबंधित क्षेत्रों में कम से कम 25 वर्षों का अनुभव वाला एक अध्यक्ष, (ii) केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न मंत्रालयों से नामित पांच अधिकारी, और (iii) विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव प्राप्त पांच प्रतिष्ठित व्यक्ति, जिन्हें केंद्र द्वारा नामित किया जाएगा। 

  • अपराध और दंड: ड्राफ्ट बिल विभिन्न अपराध और दंड भी निर्दिष्ट करता है। उदाहरण के लिए वैध पंजीकरण के बिना ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क चलाने पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना या दो साल तक की कैद या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं। दोबारा अपराध करने पर 50 लाख रुपए तक जुर्माना या पांच साल तक की कैद या दोनों भुगतने पड़ेंगे। पंजीकृत इकाइयों पर दंड उनके आकार के आधार पर लगाया जाएगा, जोकि उनके टर्नओवर और निवेश के आधार पर निर्धारित किया जाएगा।

भाग ख: मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

ड्राफ्ट बिल का उद्देश्य

1995 सीटीएन एक्ट का उद्देश्य सार्वजनिक हितों की रक्षा करना और राष्ट्रीय हित के खिलाफ कंटेंट के प्रसारण को रोकना था।[15]  सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अनुसार, एक बड़ी चिंता यह है कि विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित होने वाले कंटेंट के साथ अलग-अलग तरह का आचरण किया जाता है।15 ड्राफ्ट बिल ब्रॉडकास्टर्स और ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स को रेगुलेट करके, ब्रॉडकास्टिंग के सभी मौजूदा रूपों को रेगुलेट करने का प्रयास करता है। इनमें रेडियो, केबल टेलीविजन के साथ-साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाला कंटेंट भी शामिल है। हालांकि इंटरनेट की प्रकृति के कारण, इंटरनेट पर कंटेंट को बहुत आसानी से कई तरीकों से एक्सेस किया जा सकता है, जोकि ड्राफ्ट बिल के दायरे से बाहर हो सकता है। इससे यह सवाल उठता है कि ऐसे कंटेंट को कैसे रेगुलेट किया जाएगा। इंटरनेट पर कंटेंट को एक्सेस करने में आसानी, और ऐसे कंटेट को विभिन्न तरीकों से उपलब्ध कराने की तकनीक में तेज प्रगति, ऐसे रेगुलेशन की व्यावहारिकता पर भी सवाल खड़ा करती है।

ड्राफ्ट बिल, अपने तहत रेगुलेट होने वाले प्लेटफॉर्म्स पर कुछ बाध्यताएं लगाता है। उदाहरण के लिए ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर सबस्क्राइबर्स/दर्शकों की एक निश्चित संख्या पार हो जाती है तो उसे केंद्र सरकार को इसकी सूचना देनी होगी। इन इकाइयों के कंटेंट ब्रॉडकास्ट को प्रोग्राम और विज्ञापन कोड का पालन करना होगा, जिसे केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएग। हालांकि वही कंटेंट अन्य इंटरमीडियरी प्लेटफार्म्स या वेबसाइट्स पर भी उपलब्ध हो सकता है (जिन्हें प्रोग्राम कोड का पालन न करना पड़ता हो)। जबकि इंटरमीडियरीज़ को इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 (आईटी एक्ट) के तहत रेगुलेट किया जाता है, लेकिन ऐसे ऑनलाइन कंटेंट को रेगुलेट करने का तरीका अलग-अलग होगा।इससे सभी टीवी कार्यक्रमों को एक तरह से रेगुलेट करने का उद्देश्य पूरा नहीं पाएगा।

किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अपलोड होने से पहले वह कंटेट जांच के अधीन होगा; हालांकि कंटेंट प्रॉड्यूसर इसे वीडियो होस्टिंग वेबसाइट या इंटरमीडियरी पर अपलोड कर सकता है। ऐसा इंटरमीडियरी सिर्फ तभी कार्रवाई कर सकता है, जब कंटेंट की जानकारी दी जाती है।एक इंटरमीडियरी को एक सेफ हार्बर के जरिए संरक्षित किया जाता है, जबकि ओटीटी को सेल्फ रेगुलेशन करना पड़ता है, भले ही दोनों प्लेटफार्म्स पर कंटेंट एक जैसा हो।[16]  आईटी एक्ट, 2000 के तहत इंटरमीडियरीज़ को कई तरह की जिम्मेदारियों से छूट प्राप्त है, अगर उनकी जिम्मेदारी किसी सिस्टम को एक्सेस देने तक सीमित है, जिस सिस्टम पर तीसरा पक्ष सूचना को ट्रांसमिट या होस्ट कर सकता है। इसे ही सेफ हार्बर कहा जाता है। इस प्रकार ऐसा कंटेंट हो सकता है, जिसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने पर अनुमति नहीं दी जा सकती या उसे संपादन की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन उसे एक इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित किया जा सकता है।

अन्य न्यायक्षेत्रों में इंटरनेट पर कंटेट के प्रसारण को रेगुलेट करने के प्रयास किए गए हैं। उदाहरण के लिए, सार्वजनिक प्रसारण के प्रकारों, ऑन-डिमांड प्रोग्रामिंग और रेडियो को रेगुलेट करने के लिए एक बिल नवंबर 2023 में यूनाइटेड किंगडम की संसद में पेश किया गया था और हाउस ऑफ कॉमन्स ने इसे पारित किया था।[17],[18]  बिल एक कोड बनाकर वीडियो-ऑन-डिमांड सेवाओं (ओटीटी प्लेटफार्मों सहित) को रेगुलेट करने का प्रयास करता है जो उन्हें टेलीविजन प्रसारण के लिए लागू संपादकीय मानकों के अधीन करेगा।[19] 

प्रोग्राम कोड की परिभाषा

ड्राफ्ट बिल में प्रावधान है कि ब्रॉडकास्टिंग सेवा के तौर पर ट्रांसमिट होने वाले किसी भी कार्यक्रम को प्रोग्राम कोड के अनुरूप होना चाहिए। इस कोड को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा। यह कोड विभिन्न प्रकार की ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं, जैसे लीनियर, ऑन-डिमांड और रेडियो ब्रॉडकास्टिंग से अलग हो सकती है। हालांकि ड्राफ्ट बिल में प्रोग्राम कोड बनाने के लिए कोई मार्गदर्शन नहीं दिया गया है। इससे कई तरह के मुद्दे उठ सकते हैं, जिनका उल्लेख यहां किया जा रहा है। 

प्रोग्राम कोड को निर्धारित करने वाले सिद्धांतों को निर्दिष्ट नहीं किया गया

प्रोग्राम कोड का उल्लंघन करने पर निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं, जैसे: (i) कार्यक्रम को हटाना या उसमें संशोधन, (ii) परामर्श, फटकार या चेतावनी के साथ अनुपालन, (iii) चैनल को कुछ घंटों या दिनों के लिए ऑफ-एयर करना, और/या (iv) मौद्रिक दंड लगाना। यह कहा जा सकता है कि मूल कानून में प्रोग्राम कोड को परिभाषित करने वाले कुछ मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए। इससे संसद यह तय कर सकती है कि किन आधार पर किसी कार्यक्रम को सेंसर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यूके के प्रोग्राम और विज्ञापन कोड के लिए मानक उद्देश्य कम्यूनिकेशन एक्ट, 2003 में दिए गए हैं।[20] 

सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 में ऐसी फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में निर्दिष्ट प्रतिबंधित आधार के तहत आती हैं।[21] सर्वोच्च न्यायालय (1995) ने कहा था कि ब्रॉडकास्टिंग संचार का एक साधन है और इसलिए भाषण और अभिव्यक्ति का माध्यम है।[22]  इसे सिर्फ अनुच्छेद 19 (2) में निर्दिष्ट आधार पर प्रतिबंधित किया जा सकता है, जिसमें राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, मानहानि या किसी अपराध के लिए उकसाना शामिल है।[23]

सीटीएन एक्ट, 1995 प्रोग्राम कोड के संबंध में कोई मार्गदर्शन नहीं देता। वर्तमान प्रोग्राम कोड के तहत निर्दिष्ट प्रतिबंधों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सुरुचि या शालीनता को ठेस पहुंचाना, और (ii) झूठी और विचारोत्तेजक टिप्पणियां और आधा सच।[24]  कुछ प्रतिबंध जैसे झूठी और विचारोत्तेजक टिप्पणियां और आधा सच, अनुच्छेद 19 (2) के अनुरूप नहीं हो सकता है।

प्रोग्राम कोड को परिभाषित न करने से ब्रॉडकास्टर्स सेल्फ-सेंसरशिप कर सकते हैं

कंटेट को रेगुलेट करने के स्पष्ट मानकों के अभाव में ब्रॉडकास्टर्स सेल्फ-सेंसरशिप कर सकते हैं। इसका भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ‘चिलिंग इफेक्ट’ हो सकता है। मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा था कि अगर लेखक, संपादक या प्रकाशक को मौजूदा प्रोग्राम कोड का पालन करना होगा तो वह किसी व्यक्ति के सार्वजनिक जीवन को देखते हुए उसकी आलोचना नहीं कर पाएगा।10

केंद्र सरकार द्वारा कंटेंट का रेगुलेशन

ड्राफ्ट बिल तीन स्तरीय रेगुलेटरी व्यवस्था बनाता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि ब्रॉडकास्टर्स प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड का पालन कर रहे हैं। पहले स्तर में व्यक्तिगत ब्रॉडकास्टर्स और ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स का सेल्फ-रेगुलेशन आता है। दूसरे में ब्रॉडकास्टर्स और ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स के लिए सेल्फ-रेगुलेटरी संगठन (एसआरओज़) शामिल है। तीसरे स्तर में ब्रॉडकास्ट परामर्श परिषद (बीएसी) शामिल हैं जोकि कोड के उल्लंघन की शिकायतों की सुनवाई करेगी, जोकि एसआईओ के खिलाफ अपील से उत्पन्न होती हैं। कोड का पालन न करने पर बीएसी के सुझाव के आधार पर केंद्र सरकार द्वारा जुर्माना लगाया जाएगा।  

केंद्र सरकार के कंटेंट के रेगुलेशन से हितों का टकराव हो सकता है

ड्राफ्ट बिल के अनुसार, केंद्र सरकार के पास यह आदेश देने का अधिकार है कि क्या कोई खास कंटेंट प्रोग्राम कोड का उल्लंघन करता है। यह सरकार की आलोचना करने वाले कंटेंट या न्यूज़ पर भी लागू होगा। इसलिए इसमें हितों का टकराव हो सकता है।

फिल्म और न्यूज़ जैसी दूसरी प्रोग्रामिंग को वर्तमान में वैधानिक निकायों द्वारा रेगुलेट किया जाता है। सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 के तहत फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा फिल्मों का प्रमाणन किया जाता है।[25] एक्ट ने मूल रूप से केंद्र सरकार को प्रमाणपत्रों से जुड़ी अपीलों पर निर्णय लेने की शक्तियां दीं। सर्वोच्च न्यायालय (1970) ने कहा था कि ऐसे मामलों में एक अर्ध-न्यायिक निकाय एक सरकारी सचिव की तुलना में अधिक आत्मविश्वास पैदा करेगा।[26] 1952 के एक्ट को 1981 में एक अपीलीय ट्रिब्यूनल (बाद में 2021 में उच्च न्यायालय में तब्दील) के प्रावधान के लिए संशोधित किया गया था।[27],[28] 

प्रेस परिषद एक्ट, 1978 के तहत भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना की गई है जोकि पत्रकारीय आचरण को रेगुलेट करने के साथ-साथ समाचार पत्रों और न्यूज़ एजेंसियों की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है।[29] यूनाइटेड किंगडम में ऑफकॉम, जो एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है, ब्रॉडकास्ट कंटेंट को रेगुलेट करता है।[30] 

ड्राफ्ट बिल में केंद्र सरकार के आदेशों के खिलाफ अपील के लिए कोई व्यवस्था नहीं दी गई है

बीएसी सेल्फ रेगुलेटरी संगठनों के फैसलों के खिलाफ अपील और केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए मामलों की सुनवाई करेगी। हालांकि इसके पास सिर्फ सुझाव देने की शक्तियां होंगी। इन सुझावों के आधार पर केंद्र सरकार फैसला लेगी। ड्राफ्ट बिल में यह निर्दिष्ट नहीं है कि क्या बीएसी के सुझाव केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी होंगे। इसके अलावा ड्राफ्ट बिल में केंद्र सरकार के फैसलों के खिलाफ अपील करने की कोई व्यवस्था नहीं दी गई है। केंद्र सरकार की शक्तियों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रोग्राम या विज्ञापन को हटाना या संशोधित करना, और/या (ii) चैनल को निर्दिष्ट घंटों या दिनों के लिए ऑफ-एयर करने का निर्देश देना।

दूसरे रेगुलेटर्स के मामले में रेगुलेटर के आदेश के खिलाफ अपील की व्यवस्था कानून में निर्दिष्ट की गई है। उदाहरण के लिए सेबी एक्ट, 1992 के तहत सिक्योरिटी अपीलीय ट्रिब्यूनल का गठन किया गया है जोकि अपीलों पर निर्णय लेगा।[31] टेलीकम्यूनिकेशंस एक्ट, 2023 में अपराध की प्रकृति के आधार पर टेलीकॉम विवाद निवारण और अपीलीय ट्रिब्यूनल या सिविल अदालतों के सामने अपील दायर करने का प्रावधान है।[32] 

प्रसार के माध्यम के आधार पर न्यूज़ के लिए अलग-अलग संरचना

ड्राफ्ट बिल में ब्रॉडकास्ट न्यूज़ को रेगुलेट करने के लिए संरचना दी गई है जोकि प्रिंट न्यूज़ की संरचना से अलग है। सवाल यह है कि क्या एक ही कंटेंट को प्रसार के माध्यम के आधार पर अलग-अलग रेगुलेट किया जाना चाहिए। ड्राफ्ट बिल में ऑनलाइन पेपर, न्यूज़ पोर्टल्स या वेबसाइट्स के जरिए ब्रॉडकास्ट किए जाने वाले, और बिजनेस, प्रोफेशनल या कमर्शियल गतिविधि के तौर पर चलाए जाने वाले न्यूज़ और करंट अफेयर्स प्रोग्राम्स को रेगुलेट करने का प्रावधान है। न्यूज़ और करंट अफेयर्स की परिभाषा में नए या उल्लेखनीय ऑडियो, विजुअल या ऑडियो-विजुअल प्रोग्राम्स शामिल हैं। ड्राफ्ट बिल के दायरे में आने वाली समाचार इकाइयों को भी सीईसी स्थापित करना होगा, एसआरओ का हिस्सा बनना होगा और प्रोग्राम और विज्ञापन कोड का पालन करना होगा। समाचार पत्र और उनके रेप्लिका ई-पेपर ड्राफ्ट बिल के तहत ऐसे अनुपालन के अधीन नहीं होंगे।

समाचार पत्र और न्यूज़ एजेंसियों को प्रेस परिषद एक्ट, 1978 के तहत रेगुलेट किया जाता है।29  एक्ट प्रेस स्वतंत्रता को बरकरार रखने और पत्रकारीय आचरण को रेगुलेट करने के लिए भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना करता है।

ड्राफ्ट बिल में न्यूज़ प्रॉड्यूस करने वाली इकाई के आकार और उस इकाई पर लागू होने वाले रेगुलेशन के बीच कोई फर्क नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए अगर किसी एक व्यक्ति के वीडियोज़ को बहुत सारे व्यूज़ मिलते हैं या अगर उसके पास एक निश्चित मात्रा में सबस्क्राइबर्स हैं, तो वह रेगुलेशंस के अधीन हो सकता है, जैसे सीईसी बनाना और एसआरओ से संबद्ध होना।   

ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं को प्रतिबंधित करने के आधार बहुत व्यापक हो सकते हैं

ड्राफ्ट बिल केंद्र सरकार को अनुमति देता है कि वह 'सार्वजनिक हित' में ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं या ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स के संचालन पर प्रतिबंध लगा सकती है। ब्रॉडकास्टिंग सेवाओं पर प्रतिबंध लगाने में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाना शामिल हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय (1995) ने कहा है कि सूचना प्रसारित करने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है।22  यह अधिकार केवल संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत दिए गए प्रतिबंधों के अधीन है।22  इस प्रतिबंध में सार्वजनिक हित शामिल नहीं है। 

क्या सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को ब्रॉडकास्टर्स के तौर पर मान्यता करना उचित है

ड्राफ्ट बिल ब्रॉडकास्टर्स और ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स को अलग-अलग इकाइयों के तौर पर मान्यता देता है। ब्रॉडकास्टर्स प्रोग्रामिंग सेवाएं प्रदान करते हैं, जबकि ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर कार्यक्रमों के प्रसारण में शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए, एक टेलीविजन चैनल एक ब्रॉडकास्टर है जबकि एक केबल ऑपरेटर एक ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर है। इस प्रकार, यह इकाइयों के बीच इस आधार पर अंतर करता है कि वे कंटेंट तैयार कर रहे हैं या सिर्फ कंटेंट को कैरिएज दे रहे हैं। हालांकि रेडियो, ओटीटी और टेरेस्ट्रियल ब्रॉडकास्टिंग प्लेटफार्म्स के लिए ऐसा अंतर नहीं किया गया है। उन्हें ब्रॉडकास्टर्स के तौर पर परिभाषित किया गया है, भले ही वे कंटेंट प्रॉड्यूस कर रहे हों या सिर्फ ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स के तौर पर काम कर रहे हों। कुछ ओटीटी प्लेटफॉर्म ऐसे कंटेंट तक पहुंच प्रदान कर सकते हैं, जो लाइव और रिकॉर्डेड हों, और टेलीविजन चैनलों ने प्रॉड्यूस किए हों। उल्लेखनीय है कि कंटेंट प्रॉड्यूस न करने वाले या प्लेटफॉर्म सेवाएं प्रदान न करने वाले ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क ऑपरेटर्स को ड्राफ्ट बिल के तहत सीईसी बनाने जैसे अनुपालनों से छूट दी गई है। ऐसी छूट ओटीटी प्लेटफार्म्स को उपलब्ध नहीं होगी, भले ही वे सिर्फ दूसरे ब्रॉडकास्टर्स के प्रॉड्यूस कंटेंट को कैरिएज दे रहे हों। 

हाल ही में अपराध मुक्त किए गए अपराधों के लिए आपराधिक दंड को फिर से पेश किया जा रहा है  

ड्राफ्ट बिल के तहत कुछ अपराधों के लिए जुर्माना, कैद या दोनों भुगतने पड़ सकते हैं, जैसे पंजीकरण के बिना ब्रॉडकास्टिंग नेटवर्क्स को संचालित करना, गलतबयानी के जरिए पंजीकरण हासिल करना और गलत सूचना प्रस्तुत करना। पहले अपराध के लिए कैद की अवधि दो साल तक हो सकती है, जिसे बाद के अपराधों के लिए बढ़ाकर पांच साल तक किया जा सकता है। ड्राफ्ट बिल सीटीएन एक्ट, 1995 का स्थान लेता है। 1995 के जैसे अपराधों को जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) एक्ट, 2023 के जरिए अपराध मुक्त किया गया था। जन विश्वास एक्ट ने 1995 के एक्ट के तहत आपराधिक प्रावधानों को सलाह, निंदा, चेतावनी या मौद्रिक दंड से बदल दिया।[33] ड्राफ्ट बिल में उन अपराधों को फिर से शामिल किया गया है जिन्हें पहले अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था।

ड्राफ्टिंग की त्रुटि

क्लॉज 38(7)(बी) में क्लॉज 37(2)(डी), 37(3)(बी), और 37(3)(डी) के तहत प्रदान किए गए मुआवजे को संदर्भित किया गया है। हालांकि 37(2) और 37(3) में कोई सब-क्लॉज नहीं है, और वे मुआवजे का प्रावधान नहीं करते हैं।

 

[2]. AIR 1993 RAJ 197, Shiv Cable TV System vs The State of Rajasthan and Others, Rajasthan High Court, May 10, 1993.

[5]. The Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021, Ministry of Electronics and Information Technology, February 25, 2021.

[7]. Consultation Paper on Inputs for Formulation of National Broadcasting Policy - 2024, Telecom Regulatory Authority of India, April 2, 2024.

[9]. Policy Guidelines for Uplinking and Downlinking of Television Channels, Ministry of Information and Broadcasting, November 9, 2022.

[15]. Report No. 56: Regulation of Cable Television in India, Standing Committee on Communications and Information Technology, February 8, 2024. 

[17]. Media Bill, HL Bill 44, UK Parliament.

[18]. Bill Passage, UK Parliament, as accessed on April 3, 2024.

[19]. “What is the Media Bill and what does it mean for Ofcom?”, Ofcom, as accessed on April 4, 2024.

[23]. Article 19(2), The Constitution of India.

[26]. K. A. Abbas vs The Union of India and Another, Supreme Court of India, September 24, 1970.

[27]. Section 8, The Cinematograph (Amendment) Act, 1981.

[30]. Ofcom, as accessed on March 21, 2024. 

[33]. Serial No. 29, The Schedule, The Jan Vishwas (Amendment of Provisions), Act, 2023.

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