मंत्रालय: 
संचार

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • ड्राफ्ट बिल भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885, भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट, 1933, और टेलीग्राफ वायर (गैरकानूनी कब्जा) एक्ट, 1950 का स्थान लेने का प्रयास करता है
  • टेलीकॉम नेटवर्क ऑपरेट करना और टेलीकॉम सेवाएं प्रदान करना लाइसेंसशुदा गतिविधियां होंगी। टेलीकॉम सेवाओं में ब्रॉडकास्टिंग, ओटीटी, एम2एम और डेटा संचार सेवाएं भी शामिल होंगी।

  • नीलामी के जरिए स्पेक्ट्रम का आबंटन किया जा सकता है। केंद्र सरकार प्रशासनिक प्रक्रिया या अन्य व्यवस्थाओं पर फैसला देगी। 

  • केंद्र सरकार दो या उससे अधिक लोगों के बीच संदेश या संदेशों की एक श्रेणी को इंटरसेप्ट या ब्लॉक कर सकती है अथवा उनकी निगरानी कर सकती है। यह कार्रवाई की जा सकती है, अगर यह सार्वजनिक आपात स्थिति, सार्वजनिक सुरक्षा के लिए, तथा राज्य, सार्वजनिक व्यवस्था के हित में और अपराध को रोकने के लिए जरूरी या उचित है। ऐसा होने पर दूरसंचार सेवाओं को निलंबित किया जा सकता है।

  • बिल दूरसंचार के बुनियादी ढांचे को बिछाने के लिए मार्गाधिकार (राइट ऑफ वे) के उपयोग हेतु व्यवस्था का प्रावधान करता है। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • सर्वोच्च न्यायालय ने संचार के इंटरसेप्शन की स्थिति में प्राइवेसी के अधिकार की रक्षा के लिए कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को अनिवार्य किया था। बिल में उन उपायों को शामिल नहीं किया गया है। बिल उच्च पद वाले अधिकारियों द्वारा आवर्ती समीक्षा और आदेश की शर्तों का भी उल्लंघन कर सकता है। 
  • बिल के कारण बड़े पैमाने पर निगरानी (मास सर्विलांस) हो सकती है। इससे प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। 

  • केंद्र सरकार के पास दूरसंचार नेटवर्क और सेवाओं के लिए लाइसेंस जारी करने की शक्ति होगी। नेटवर्क और सेवाओं के रेगुलेशन के उद्देश्य अलग-अलग हो सकते हैं। इससे सवाल उठता है कि क्या उन्हें समान रूप से रेगुलेट किया जाना चाहिए। 

  • बिल के अनुसार, दूरसंचार क्षेत्र में लाइसेंसिंग के मामलों में ट्राई की भूमिका खत्म हो सकती है। सवाल यह है कि क्या यह उपयुक्त है। 

  • कंपनियों के अपराधों के मामले में, बिल कर्मचारियों को संरक्षण प्रदान नहीं करता, अगर उन्हें जानकारी न हो या अगर उन्होंने ड्यू डेलिजेंस किया हो। यह डायरेक्टर, मैनेजर या दूसरे अधिकारियों को मिलीभगत या उपेक्षा के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराता है।

  • कुछ परिभाषाओं को दोबारा से देखे जाने की जरूरत है। उदाहरण के लिए मोबाइल फोन्स वायरलेस उपकरणों की परिभाषा में आते हैं। इसका अर्थ यह है कि मोबाइल फोन रखने के लिए भी पूर्व मंजूरी की जरूरत होगी।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारत के टेलीकॉम क्षेत्र को तीन कानूनों के जरिए रेगुलेट किया जाता है: (i) भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885, जिसमें टेलीग्राफ संबंधी गतिविधियों की लाइसेंसिंग और संचार के इंटरसेप्शन से संबंधित प्रावधान हैं, (ii) भारतीय वायलेस टेलीग्राफी एक्ट, 1933 जिसमें वायरलेस टेलीग्राफ उपकरणों को रखने से संबंधित रेगुलेशंस है, और (iii) टेलीग्राफ वायर (गैरकानूनी कब्जा) एक्ट, 1950 जिसमें टेलीग्राफ के तारों से संबंधित रेगुलेशंस हैं।[1],[2],[3] इसके अतिरिक्त ट्राई एक्ट, 1997 के तहत दूरसंचार रेगुलेटर के रूप में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) की स्थापना की गई है।[4]  लाइसेंस जारी करने की शक्ति केंद्र सरकार के पास है। 

1885 का एक्ट टेलीग्राफ सेवाओं को रेगुलेट करने का प्रयास करता था जिसमें तारों या रेडियो तरंगों पर सांकेतिक कोड से संदेश भेजना शामिल था। इसे टेलीग्राम कहते हैं (भारत में 2013 में टेलीग्राफ सेवाएं बंद कर दी गईं)।[5] संचार तकनीक तब से काफी विकसित हुई है। उसने टेक्स्ट, वॉयस, इमेज और वीडियो इनफॉरमेशन के रियल टाइम ट्रांसमिशन को सुविधाजनक बनाया है। इससे कई प्रकार की सेवाएं, जैसे वॉयस कॉलिंग, एसएमएस, रेडियो ब्रॉडकास्टिंग, टेलीविजन तथा मैसेजिंग और वीडियो कॉलिंग के लिए इंटरनेट आधारित संचार सेवाएं प्राप्त हुई हैं। इसके बावजूद दूरसंचार सेवाओं के रेगुलेशन के लिए 1885 के कानून का ही इस्तेमाल होता रहा है।

दूसरा महत्वपूर्ण विकास यह हुआ है कि विभिन्न तकनीकों में समान प्रकार की सेवाएं प्रदान करने की क्षमता है। उदाहरण के लिए केबल टेलीविजन नेटवर्क को इंटरनेट सेवाएं प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इंटरनेट को पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग का एक्सेस प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। दूरसंचार विभाग ने गौर किया कि टेलीग्राफ के दौर के बाद से दूरसंचार की प्रकृति, उसके उपयोग और तकनीक में व्यापक बदलाव हुआ है। इसलिए दूरसंचार क्षेत्र के कानूनी और रेगुलेटरी ढांचे को पुनर्गठित करने की जरूरत है।5

इस संबंध में 2001 में लोकसभा में कम्यूनिकशन कनवर्जेंस बिल पेश किया गया।[6] यह बिल तीन टेलीग्राफ कानूनों, ट्राई एक्ट और केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1995 का स्थान लेने का प्रयास करता था। सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने इस बिल की समीक्षा की।13वीं लोकसभा के भंग होने के साथ बिल लैप्स हो गया। सितंबर 2022 में सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए दूरसंचार विभाग ने ड्राफ्ट भारतीय दूरसंचार बिल, 2022 को जारी किया।[7]  यह बिल दूरसंचार क्षेत्र को रेगुलेटरी संरचना प्रदान करने के लिए तीनों टेलीग्राफ कानूनों का स्थान लेने का प्रयास करता है। यह ट्राई के कुछ कामों को खत्म करने के लिए ट्राई एक्ट में संशोधन का भी प्रयास करता है।

मुख्य विशेषताएं  

  • दूरसंचार संबंधी गतिविधियों का रेगुलेशन: केंद्र सरकार के पास दूरसंचार का बुनियादी ढांचा बिछाने, दूरसंचार नेटवर्क को परिचालित करने और दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने का एकमात्र अधिकार होगा। वह अन्य लोगों को इन गतिविधियों को करने की अनुमति दे सकती है लेकिन इसके लिए उन्हें निम्नलिखित हासिल करना होगा: (i) दूरसंचार के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने हेतु पंजीकरण, और (ii) दूरसंचार नेटवर्क और सेवाओं के लिए लाइसेंस। दूरसंचार सेवाओं को ऐसी सेवाओं के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे दूरसंचार नेटवर्क के जरिए प्रदान किया जाता है और इसमें निम्नलिखित शामिल होता है: (i) दूरसंचार नेटवर्क के जरिए दी जाने वाली संचार सेवाएं जैसे वॉयस कॉलिंग और एसएमएस, (ii) इंटरनेट और ब्रॉडबैंड सेवाएं, (ii) इंटरनेट-आधारित संचार सेवाएं, (iii) ओवर-द-टॉप (ओटीटी) संचार सेवाएं, (iv) एफएम रेडियो और डायरेक्ट-टू-होम टेलीविजन जैसी प्रसारण सेवाएं, (v) डेटा संचार सेवाएं, (vi) इंटरपर्सनल संचार सेवाएं, (vii) मशीन-टू-मशीन संचार सेवाएं, और (viii) उपग्रह संचार सेवाएं। अगर केंद्र सरकार को जनहित में आवश्यक लगता है तो वह लाइसेंस या पंजीकरण की शर्त से छूट दे सकती है। 

  • स्पेक्ट्रम देना: निम्नलिखित के जरिए वायरलेस दूरसंचार के लिए स्पेक्ट्रम दिया जा सकता है: (i) नीलामी, (ii) जनहित में, या जरूरत पड़ने पर, जैसा कि अनुसूची में निर्दिष्ट है, सरकारी कामकाज या उद्देश्यों के लिए प्रशासनिक प्रक्रिया, और (iii) किसी अन्य तरीका से, जोकि निर्दिष्ट किया जा सकता है। स्पेक्ट्रम के अधिक प्रभावी उपयोग के लिए केंद्र सरकार फ्रीक्वेंसी की रेंज को रीपर्पज और रीअसाइन कर सकती है। केंद्र सरकार स्पेक्ट्रम की शेयरिंग, ट्रेडिंग, लीज़िंग और उसे सरेंडर करने की अनुमति भी दे सकती है। 

  • संचार का इंटरसेप्शनकेंद्र सरकार कुछ आधार पर दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच संदेशों की एक श्रेणी को इंटरसेप्ट कर सकती है, उनकी निगरानी कर सकती है और उन्हें ब्लॉक कर सकती है। सार्वजनिक सुरक्षा के हित में या सार्वजनिक आपात स्थिति में यह कार्रवाई आवश्यक या उचित होनी चाहिए। यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा, अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था के हित में या अपराध को रोकने वाली होनी चाहिए। इन्हीं आधार पर दूरसंचार सेवाओं को निलंबित किया जा सकता है।

  • अस्थायी कब्जा और मानदंकेंद्र सरकार किसी सार्वजनिक आपात स्थिति या सार्वजनिक सुरक्षा की स्थिति में दूरसंचार के किसी बुनियादी ढांचे, नेटवर्क या सेवाओं को अस्थायी रूप से अपने कब्जे में ले सकती है। वह दूरसंचार उपकरणों, बुनियादी ढांचे, नेटवर्क और सेवाओं के लिए मानदंड भी निर्दिष्ट कर सकती है। 

  • यूजर्स की पहचान और उनकी सुरक्षादूरसंचार सेवा के लाइसेंसी को पहचान के एक निर्धारित सत्यापन योग्य तरीके के जरिए सेवा का लाभ उठाने वाले व्यक्ति की पहचान करनी होगी। यूजर दूरसंचार सेवा का लाभ उठाने के लिए कोई झूठा विवरण नहीं दे सकते, जानकारी नहीं छिपा सकते या दूसरे व्यक्ति का रूप नहीं धर सकते। ऐसा करने पर एक वर्ष तक की कैद हो सकती है या 50,000 रुपए तक का जुर्माना चुकाना पड़ सकता है, या सेवाएं निलंबित हो सकती हैं, या इनमें से कई सजाएं एक साथ भुगतनी पड़ सकती हैं। केंद्र सरकार अवांछित संचार से यूजर्स को सुरक्षा देने के लिए निम्नलिखित उपायों को निर्दिष्ट कर सकती हैं, जैसे: (i) कुछ विशेष वर्ग के संदेशों को हासिल करने के लिए यूजर्स की सहमति का जरूरी होना, (ii) ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ का रजिस्टर तैयार करना और उसे रखना, और (iii) अवांछित संदेशों की सूचना देना। 

  • राइट ऑफ वे: सार्वजनिक तथा निजी स्वामित्व वाली संपत्ति में दूरसंचार के बुनियादी ढांचे को बिछाने के लिए अनुमति हासिल करने की व्यवस्था बिल में दी गई है। जो संस्था बुनियादी ढांचा बिछा रही है, वह उस संस्था को आवेदन दे सकती है, जो उस संपत्ति की स्वामी है, उसे नियंत्रित या उसका प्रबंधन करती है। बुनियादी ढांचे की सुविधा सभी को (नॉन एक्सक्लूसिव) और बिना किसी भेदभाव के (नॉन-डिस्क्रिमिनेटरी) प्रदान की जाएगी। अनुमति शीघ्र और एक निर्दिष्ट समय सीमा के भीतर प्रदान की जानी चाहिए। निजी संस्थाओं की स्थिति में अनुरोध करने वाली संस्था, और अनुमति देने वाली संस्था बुनियादी ढांचा बिछाने के लिए कोई एग्रीमेंट कर सकती हैं। केंद्र सरकार निजी संपत्ति में बुनियादी ढांचे का लाभ उठाने और उसे बिछाने के लिए रूपरेखा बना सकती है। 

  • ट्राई के कामकाजवर्तमान मेंट्राई एक्ट के तहत केंद्र सरकार को निम्नलिखित मामलों में ट्राई से सुझाव मांगने पड़ते हैं: (i) एक नए सर्विस प्रोवाइडर को लाने की जरूरत और उसकी टाइमिंगऔर (ii) सर्विस प्रोवाइडर के लाइसेंस के नियम और शर्तें। बिल इस जरूरत को खत्म करता है। 

  • दूरसंचार विकास फंडटेलीग्राफ एक्ट के तहत दूरसंचार सेवा से वंचित ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में सेवा प्रदान करने के लिए सार्वभौमिक सेवा बाध्यता फंड की स्थापना की गई थी। बिल इस फंड को दूरसंचार विकास फंड का नया नाम देता है। वह कहता है कि इस फंड का इस्तेमाल निम्नलिखित के लिए भी किया जा सकता है: (i) नई दूरसंचार सेवाओं, तकनीक और उत्पादों के अनुसंधान और विकास के लिए, और (ii) दूरसंचार में कौशल विकास और प्रशिक्षण को सहयोग देने के लिए।

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

संचार का इंटरसेप्शन

केंद्र सरकार कुछ आधार पर दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच संदेशों की एक श्रेणी को इंटरसेप्ट कर सकती है, उनकी निगरानी कर सकती है और उन्हें ब्लॉक कर सकती है। सार्वजनिक सुरक्षा के हित में या सार्वजनिक आपात स्थिति में यह कार्रवाई आवश्यक या उचित होनी चाहिए। यह कार्रवाई राष्ट्रीय सुरक्षा, अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था के हित में होनी चाहिए या अपराध को रोकने वाली होनी चाहिए। इन्हीं आधार पर दूरसंचार सेवाओं को निलंबित (यानी इंटरनेट शटडाउन) किया जा सकता है। बिल में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य किए गए कुछ सुरक्षा उपायों को शामिल नहीं किया गया है। वर्तमान में भारतीय टेलीग्राफ एक्ट, 1885 के तहत नियमों के जरिए उपरिलिखित सुरक्षा उपाय दिए गए हैं।[8].[9]  बिल न तो इन सुरक्षा उपायों को निर्दिष्ट करता है और न ही नियम बनाने के लिए विशिष्ट शक्तियां प्रदान करता है। बिल में प्रावधान है कि 1885 के एक्ट के तहत बनाए गए नियम लागू रहेंगे। हम यहां इन प्रावधानों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।

बिल सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनिवार्य किए गए सुरक्षात्मक उपायों का उल्लंघन कर सकता है

पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1996) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि कम्यूनिकेशन के इंटरसेप्शन के अधिकार को रेगुलेट करने के लिए एक उचित और निष्पक्ष प्रक्रिया के अभाव में संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के अंग के रूप में प्राइवेसी का अधिकार) के तहत नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं है।10  उसने दूरसंचार के इंटरसेप्शन, निगरानी या ब्लॉक करने की स्थिति में विभिन्न प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को अनिवार्य किया था।[10]  ये हैं: (i) आवश्यकता को स्थापित करना- यह उद्देश्य अन्य माध्यमों से पूरा नहीं किया जा सकता है(ii) उद्देश्य की सीमा- इंटरसेप्टेड सामग्री का उपयोग उस न्यूनतम समय तक सीमित होना चाहिए जो उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक हो, (iii) समय सीमा- प्रारंभिक आदेश केवल दो महीने के लिए वैध होगा, एक बार में अधिकतम छह महीने का एक्सटेंशनऔर (iv) उच्च पदों वाले अधिकारियों (गृह सचिव) द्वारा आदेश जारी करना और अनिवार्य समीक्षा (कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा)।

इसी प्रकार अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) मामले में इंटरनेट सेवाओं के निलंबन के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा इंटरनेट पर व्यापार एवं कारोबार करने की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) तथा 19 (1) (जी) के तहत संरक्षित है।[11]  इस अधिकार पर प्रतिबंध अनुपातिकता की शर्तों पर खरे उतरने चाहिए। उसने कहा था कि निलंबन के आदेश केवल अस्थायी हो सकते हैं और उनकी आवर्ती समीक्षा की जानी चाहिए। सभी आदेश प्रकाशित किए जाने चाहिए ताकि प्रभावित लोग उन्हें चुनौती दे सकें। निलंबन के आदेश में मैटीरियल तथ्यों का उल्लेख होना चाहिए ताकि उसकी न्यायिक समीक्षा की जा सके।

मौजूदा प्रारूप में बिल के तहत प्रावधान निम्नलिखित सुरक्षा उपायों में से कुछ का उल्लंघन भी कर सकते हैं।

आदेशों की वैधताबिल में प्रावधान है कि उपरोक्त खंड के तहत कोई आदेश तब तक प्रभावी रह सकता है, जब तक कोई सार्वजनिक आपात स्थिति या सार्वजनिक सुरक्षा में रुकावट मौजूद है। यह सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले का उल्लंघन कर सकता जिसमें अदालत ने कहा था कि कार्रवाई की आवर्ती समीक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक सीमित समय सीमा दी जानी चाहिए।

आदेश कौन जारी कर सकता है: केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से अधिकृत कोई भी अधिकारी इंटरसेप्शन, निगरानी या ब्लॉकिंग के आदेश जारी कर सकता है। इसलिए केंद्र सरकार या राज्य सरकार के गृह सचिव से निचले स्तर का अधिकारी भी आदेश जारी कर सकता है।

क्या प्रक्रियागत सुरक्षा उपाय एक्ट में ही प्रदान किए जाने चाहिए

ऊपर दिए गए सुरक्षात्मक उपाय सरकारी कार्रवाइयों से सुरक्षा प्रदान करते हैं, इसलिए सवाल यह है कि क्या इन्हें किसी अधीनस्थ कानून के बजाय एक्ट में ही निर्दिष्ट किया जाना चाहिए। आपराधिक कृत्यों के खिलाफ जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के उल्लंघन की स्थिति में, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के जरिए प्रदान किए गए हैं।[12]

सवाल यह है कि क्या इंटरसेप्शन के लिए स्वतंत्र निगरानी तंत्र होना जरूरी है

बिल इंटरसेप्शन के आदेश के लिए किसी भी निगरानी तंत्र का प्रावधान नहीं करता है। पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष रूप से सरकारी अधिकारियों की एक समिति के माध्यम से निरीक्षण अनिवार्य किया है। सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका की अध्यक्षता में एक निरीक्षण तंत्र स्वयं, कार्यपालिका के कार्यों के विरुद्ध एक उपयुक्त सुरक्षा हो सकता है। ऐसी व्यवस्था शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध है।

कुछ मामलों में जब किसी व्यक्ति को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की जानकारी होती हैतो वह अदालतों के समक्ष इस उल्लंघन को चुनौती दे सकता है। इनमें निम्न का उल्लंघन शामिल हो सकता है: (i) अवैध गिरफ्तारी के माध्यम से जीवन और स्वतंत्रता का अधिकारया (ii) यूजर जनरेटेड कंटेंट को ब्लॉक करकेया इंटरनेट के निलंबन के माध्यम से बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार। हालांकि कम्यूनिकेशन के इंटरसेप्शन या निगरानी के मामलों में, इन आदेशों की प्रकृति के लिहाज से, प्रभावित व्यक्ति को कभी भी इसकी जानकारी नहीं हो सकती है। इसलिए वह ऐसे आदेशों को अदालत में चुनौती नहीं दे सकता कि उनकी अवैधता की संभावना है। इस प्रकार यह तर्क दिया जा सकता है कि ऐसे मामलों में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय और भी सख्त होने चाहिए। 

पीयूसीएल के फैसले में इस प्रश्न पर चर्चा की गई थी कि क्या इंटरसेप्शन के लिए न्यायिक निरीक्षण आवश्यक हो सकता है।10 यह तर्क दिया गया था कि सिर्फ पूर्व न्यायिक जांच से ही मनमानी या अनुचित कार्रवाई की आशंका दूर हो सकती है।10 अदालत ने कहा था कि कानून के जरिए न्यायिक जांच का प्रावधान करना होगा।10  सिर्फ कार्यकारी निरीक्षण की सिफारिश करते हुए अदालत ने यूनाइटेड किंगडम के कम्यूनिकेशन एक्ट1985 का उल्लेख किया था।10  यूनाइटेड किंगडम में 1985 के एक्ट की जगह एक नया कानून लाया गया है जिसके लिए ऐसे कार्यों के लिए न्यायिक आयुक्त के अनुमोदन की जरूरत होती है।[13]  इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया में मुख्य कानून के तहत न्यायिक मंजूरी की आवश्यकता होती है।[14]  

बिल बड़े पैमाने पर निगरानी को सक्षम कर सकता है, ऐसे उपाय प्राइवेसी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर सकते हैं

बिल में प्रावधान है कि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग से या किसी विशेष विषय से संबंधित कोई संदेश या संदेशों का समूह इंटरसेप्शन, निगरानी या उसे ब्लॉक करने के अधीन हो सकता है। से आधार पर उन सभी कम्यूनिकेशन को इंटरसेप्ट करने या उनकी निगरानी करने का आदेश दिया जा सकता है जहां किसी विशेष शब्द या शब्दों के समूह का उपयोग किया जाता है। ऐसे आदेश के लिए सभी यूजर्स के सभी संचार की निगरानी की आवश्यकता होगी। इससे सभी यूजर्स के कम्यूनिकेशन की प्राइवेसी का स्तर कम हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय (2017) ने माना है कि प्राइवेसी के अधिकार का कोई भी उल्लंघन ऐसे हस्तक्षेप की आवश्यकता के अनुपात में होना चाहिए।[15]  अपराधों को उकसावे से रोकने के लिए ऐसी निगरानी की आवश्यकता हो सकती है। कुछ संदेशों का पता लगाने के लिए, जो जांच के लिए जरूरी हो सकते हैं, एक दूरसंचार नेटवर्क के सभी यूजर्स के कम्यूनिकेशन की प्राइवेसी के स्तर को कम करना पड़ सकता है। इसलिए प्रश्न यह है कि क्या ऐसी कार्रवाई को उद्देश्य के अनुपात में माना जा सकता है।

दूरसंचार नेटवर्क और सेवाओं के लिए लाइसेंसिंग

बिल दूरसंचार नेटवर्क के परिचालन और दूरसंचार सेवाओं की लाइसेंसशुदा गतिविधियों का प्रावधान करता है। हम यहां इन प्रावधानों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। 

सवाल यह है कि क्या नेटवर्क और सर्विस लेयर्स को एक तरह से रेगुलेट किया जाना चाहिए

बिल में प्रावधान है कि केंद्र सरकार के पास दूरसंचार नेटवर्क स्थापित करने और दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने का विशेषाधिकार होगा। केंद्र सरकार निजी व्यक्तियों को इन गतिविधियों के लिए लाइसेंस जारी कर सकती है। तकनीकी रूप से इन सभी को तारों या विद्युत चुंबकीय तरंगों का उपयोग करके लंबी दूरी पर सूचना के प्रसारण की गतिविधि में शामिल किया जा सकता है। हालांकि नेटवर्क और सेवाओं के रेगुलेशन का उद्देश्य भिन्न हो सकता है। यहां यह सवाल किया जा सकता है कि क्या उन्हें एक ही तरह से रेगुलेट किया जाना चाहिए।

नेटवर्क का रेगुलेशनदूरसंचार नेटवर्क के निर्माण में स्पेक्ट्रम और भूमि जैसे सीमित प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग किया जाता है। स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करने वाली विभिन्न संस्थाओं को पारस्परिक रूप से एक्सक्लूसिव फ्रीक्वेंसी बैंड्स का इस्तेमाल करना पड़ता है जिसके लिए केंद्रीय समन्वय की जरूरत होती है। एक दूरसंचार नेटवर्क को एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक अवसंरचना माना जाता है। इसके अलावा नेटवर्क बिजनेस को एक प्राकृतिक एकाधिकार (नेचुरल मोनोपॉली) माना जा सकता है और नेटवर्क डुप्लिकेशन से आर्थिक अक्षमता आ सकती है। उच्च पूंजीगत निवेश के कारण इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा न होने की आशंका होती है, जिससे उपभोक्ता के हित पर नकारात्मक असर हो सकता है। इस लिहाज से नेटवर्क के मामले में लाइसेंसिंग की जरूरत को उचित ठहराया जा सकता है।

सेवाओं का रेगुलेशन: परंपरागत रूप से वॉयस कॉलिंग एवं एसएमएस जैसी सेवाओं और नेटवर्क के प्रोवाइडर एक ही होते हैं। हालांकि इंटरनेट और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ने से अन्य संस्थाएं भी ऐसी ही सेवाएं प्रदान करने लगी हैं। ट्राई (2006) का कहना था कि ऐसी संभावना है कि भविष्य में दूरसंचार कंपनियां प्योर एक्सेस प्रोवाइडर बन जाएं, और सेवाएं अन्य द्वारा प्रदान की जाएं।[16]  वर्तमान में कई कंपनियां दूरसंचार सेवाएं प्रदान कर रही हैं। निम्नलिखित उद्देश्यों से सेवाओं का रेगुलेशन किया जाता है: (i) एक्सेस पर नियंत्रण- कौन इन सेवाओं का इस्तेमाल कर सकता है, (ii) कंटेंट का रेगुलेशन- प्रसारित कंटेंट सामुदायिक और संवैधानिक मानकों पर खरा उतरता हो, और (iii) कानून प्रवर्तन के उद्देश्य से कंटेंट का इंटरसेप्शन।[17],[18]  हालांकि संचार के प्रकार के आधार पर रेगुलेटरी मानकों में अंतर हो सकता है। उदाहरण के लिए सार्वजनिक प्रसारण और वन-टू-वन कम्य़ूनिकेशन के कंटेंट के लिए मानक अलग-अलग हो सकते हैं। सार्वजनिक रूप से प्रसारित होने वाले कंटेंट की पहले स्क्रीनिंग की जा सकती है, जैसे कि फिल्मों के मामले में होता है। लेकिन निजी तौर पर आदान-प्रदान की गई सूचना पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है।

प्रस्तावित रेगुलेशन मौजूदा मानकों की तुलना में अधिक सख्त हो सकता है जहां: (i) इंटरनेट आधारित सेवाओं जैसे ईमेल और मैसेजिंग ऐप के लिए लाइसेंस या पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है (सूचना प्रौद्योगिकी एक्ट, 2000 के तहत रेगुलेटेड), (ii) केबल टेलीविजन प्रसारण सेवाओं के लिए सिर्फ पंजीकरण की आवश्यकता है (केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (रेगुलेशन) एक्ट, 1995 के तहत रेगुलेटेड)।17,18  ट्राई (2020) ने कहा था कि युनाइडेट किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे कई क्षेत्राधिकारों में लाइसेंसिंग व्यवस्था को ऐसे विकसित किया गया है जो नेटवर्क और सर्विस लेयर्स के बीच अंतर करती है।[19] सर्विस लेयर अधिकतर लाइट टच रेगुलेशन के अधीन है।19 इससे पहले ट्राई ने यह सुझाव दिया था कि ओटीटी-संचार सेवाओं को दूरसंचार सेवाओं की तरह रेगुलेट नहीं किया जाना चाहिए।[20]  इसी तरह उसने मशीन-टू-मशीन संचार के लिए लाइट-टच रेगुलेशन का सुझाव दिया था।20,[21]  

इंटरनेट आधारित सेवाओं के सख्त अनुपालन का प्रभाव

गैर लाइसेंसशुदा सेवाओं के एक्सेस पर प्रतिबंधइंटरनेट के जरिए कोई संस्था दुनिया के किसी भी हिस्से में सेवाएं प्रदान कर सकती है। संस्था की सेवाओं को उसी देश में होस्ट या तैनात करने की आवश्यकता नहीं है जहां सेवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। संस्था के लिए उसी देश में भौतिक रूप से उपस्थित रहने की भी जरूरत नहीं है। इंटरनेट की यह प्रकृति यूजर्स को विभिन्न प्रकार के विकल्प उपलब्ध कराती है। मान लीजिए कि इंटरनेट आधारित संचार सेवाएं लाइसेंस के अधीन हैं। संभव है कि भारत में अनुपालन की लागत में वृद्धि के कारण अन्य देशों की कुछ कंपनियां अपने कामकाज के लिए लाइसेंस लेने की इच्छुक न हों। लाइसेंस-आधारित व्यवस्था में इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर को मामलों के आधार पर उन सभी की सेवाओं को अवरुद्ध करना होगा, जिनके पास लाइसेंस नहीं है। हालांकि इन प्रतिबंधों को वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क सेवाओं (वीपीएन) का उपयोग करके बायपास भी किया जा सकता है।

डेटा रिटेंशन की शर्तवर्तमान में दूरसंचार सेवाएं डेटा रिटेंशन की शर्तों के अधीन हैं। लाइसेंस की शर्तों के तहत दूरसंचार के सर्विस प्रोवाइडर्स को कम से कम दो वर्षों के लिए दूरसंचार नेटवर्क पर संचार का विवरण स्टोर करना होता है।[22]  इनमें नेटवर्क पर मौजूद लोगों के बारे में जानकारी शामिल है कि वे किससे बात करते हैं, कितनी देर तक बात करते हैं और कहां से संपर्क करते हैं। ये बाध्यताएं डेटा प्रोटेक्शन और प्राइवेसी के उभरते सिद्धांतों के अनुकूल नहीं हो सकतीं।[23]  प्राइवेसी की रक्षा के लिए मान्यता प्राप्त मुख्य सिद्धांतों में से एक डेटा मिनिमाइजेशन हैयानी डेटा कलेक्शन को डेटा प्रोसेसिंग के विशिष्ट उद्देश्य की जरूरत तक ही सीमित रखना।[24],[25]  अगर डेटा स्टोरेज और उपलब्धता की जांच नहीं होगी तो उससे प्रोफाइलिंग का खतरा बढ़ेगा। अगर इंटरनेट-आधारित संचार सेवाओं पर ऐसी ही बाध्यताएं लागू की जाती हैं तो यह व्यक्तियों के निजी संदेशों के संचार के अधिक डेटा रिटेंशन की तरफ ले जाएगा।

दूरसंचार नेटवर्क और सेवाओं की लाइसेसिंग के मामले में ट्राई की भूमिका खत्म हो सकती है

वर्तमान मेंट्राई एक्ट के तहत केंद्र सरकार को निम्नलिखित मामलों में ट्राई से सुझाव मांगने पड़ते हैं: (i) एक नए सर्विस प्रोवाइडर को लाने की जरूरत और उसकी टाइमिंगऔर (ii) सर्विस प्रोवाइडर के लाइसेंस के नियम और शर्तें। बिल इस जरूरत को खत्म करता है। बिल के अनुसारलाइसेंस देने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। इस प्रकार प्रस्तावित संशोधनों के साथ, लाइसेंसिंग में ट्राई की भूमिका नहीं रहेगी। सवाल यह है कि क्या यह उचित है।

ट्राई एक्ट के लंबे टाइटिल में कहा गया है कि ट्राई को दूरसंचार सेवाओं को रेगुलेट करने के लिए स्थापित किया गया है।लाइसेंसिंग को उसके प्रमुख रेगुलेटरी कार्यों में से एक माना जा सकता है। प्रस्तावित संशोधनों के तहत लाइसेंसिंग की प्रक्रिया को ट्राई की विषय संबंधी विशेषज्ञता से फायदा नहीं हो सकता। ट्राई (संशोधन) एक्ट, 2000 के जरिए ट्राई को लाइसेंसिंग के मामले में सुझाव देने की शक्ति प्रदान की गई है।[26]  बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि निम्नलिखित के मद्देनजर इन शक्तियों को प्रदान किया जा रहा है: (i) सार्वजनिक और निजी ऑपरेटर्स को एक बराबर अवसर प्रदान करना, औऱ (ii) निवेशकों के आत्मविश्वास को बढ़ाना।[27] विभिन्न कानूनों में लाइसेंसिंग का काम क्षेत्र के रेगुलेटर को सौंपा गया है। उदाहरण के लिए बिजली एक्ट, 2003 के तहत ट्रांसमिशन और वितरण कंपनियों को लाइसेंस देने का काम केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग और राज्य बिजली रेगुलेटरी आयोग करते हैं।[28]  बैंकिंग और बीमा कंपनियों को क्रमशः आरबीआई और इरडाई लाइसेंस जारी करते हैं।[29],[30]  उल्लेखनीय है कि कम्यूनिकेशन कन्वर्जेंस बिल, 2001 में भारतीय संचार आयोग (जोकि ट्राई का स्थान लेता) को दूरसंचार के लिए लाइसेंस देने की शक्ति दी गई थी।6 

कंपनियों के अपराधों को अलग तरह से परिभाषित किया गया है

बिल कंपनियों के अपराधों से संबंधित प्रावधान करता है। उसमें कहा गया है कि अपराध के मामलों में, उन मामलों से जुड़े कामों के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को उत्तरदायी ठहराया जाएगा। हालांकि यह दूसरे एक्ट्स से दो मायनों में फर्क हैं जैसे बिजली एक्ट, 2003 और पर्यावरण संरक्षण एक्ट, 1986 जिनमें ऐसे अपराधों से संबंधित प्रावधान हैं।28,[31]  पहला, ये एक्ट्स संरक्षण प्रदान करते हैं, अगर कर्मचारी निम्नलिखित प्रदर्शित करता है कि: (i) अपराध के संबंध में उसे जानकारी नहीं थी, या (ii) उसने ड्यू डेलिजेंस किया था। दूसरा, ये एक्ट्स डायरेक्टर, मैनेजर या दूसरे अधिकारियों को मिलीभगत या उपेक्षा के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। बिल में ऐसा प्रावधान नहीं है।

ड्राफ्टिंग से संबंधित मुद्दे

ट्राई एक्ट और बिल के तहत दूरसंचार सेवाओं की परिभाषा एक जैसी नहीं

बिल और ट्राई एक्ट में दूरसंचार सेवाओं की परिभाषा अलग-अलग है। बिल के तहत इसकी परिभाषा व्यापक है और इसमें ब्रॉडकास्टिंग सेवाएं, मशीन-टू-मशीन संचार, इंटरनेट-आधारित संचार सेवाएं और ओटीटी संचार सेवाएं शामिल हैं। सवाल यह है कि क्या ट्राई इन अतिरिक्त सेवाओं को भी रेगुलेट करेगा। 

मोबाइल फोन रखने के लिए पूर्व अनुमति लेनी पड़ सकती है

बिल के अनुसार, वायरलेस उपकरण का अर्थ है,वायरलेस संचार में इस्तेमाल होने वाले या इस्तेमाल होने की क्षमता वाले दूरसंचार उपकरण, जिसमें ऐसे वायरलेस ट्रांसमिटर शामिल हैं, जोकि वायरलेस संचार की ब्रॉडकास्टिंग या एमिशन में सक्षम हैं। एंड-कस्टमर्स जिन मोबाइल फोन्स का इस्तेमाल करते हैं, वे भी इन मानकों पर खरे उतरते हैं, और उन्हें भी वायरलेस उपकरण के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। बिल में वायरलेस उपकरण रखने के लिए पूर्व मंजूरी अपेक्षित है। इससे सवाल उठता है कि क्या मोबाइल फोन रखने के लिए पूर्व मंजूरी की जरूरत होगी।

दूरसंचार का बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए क्या पंजीकरण या लाइसेंस की जरूरत है

बिल में प्रावधान है कि दूरसंचार नेटवर्क स्थापित करने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता होगी और दूरसंचार संबंधी बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए पंजीकरण की आवश्यकता होगी। हालांकि परिभाषा के अनुसार, दूरसंचार नेटवर्क केवल दूरसंचार का बुनियादी ढांचा शामिल हो सकता है। इससे यह सवाल उठता है कि दूरसंचार का बुनियादी ढांचा प्रदान करने के लिए लाइसेंस या पंजीकरण, इनमें से क्या लेना होगा। 

 

[5]. “Explanatory note to the Draft Indian Telecommunication Bill, 2022”, Department of Telecommunications, September 21, 2022.  

[6]Report of the Standing Committee on Information Technology on the Communication Convergence Bill, 2001. 

[7]Draft Indian Telecommunication Bill, 2022, Department of Telecommunications , September 21, 2022.

[8]. Rule 419A, The Indian Telegraph Rules, 1951, issued under the Indian Telegraph Act, 1885. 

[10]People’s Union for Civil Liberties (PUCL) vs Union of India, Supreme Court of India, December 18, 1996. 

[11]Anuradha Bhasin vs Union of India, W.P. (Civil) No. 1031 of 2019, Supreme Court of India, January 10, 2020. 

[13]. Part-2: Lawful Interception of Communications, Investigatory Powers Act, 2016, United Kingdom. 

[15]Justice K.S.Puttaswamy (Retd) vs Union of India, W.P.(Civil) No 494 of 2012, Supreme Court of India, August 24, 2017. 

[16]. “Consultation Paper on Issues pertaining to Next Generation Networks”, Telecom Regulatory Authority of India, January 12, 2006. 

[19]. “Consultation Paper on Enabling Unbundling of Different Layers Through Differential Licensing”, Telecom Regulatory Authority of India, August 20, 2020. 

[22]No. 20-271/2010 AS-I (Vol. III), Department of Telecommunications, December 21, 2021. 

[23]The Personal Data Protection Bill, 2019, as introduced in Lok Sabha introduced on December 11, 2019. 

[24]. Article 5, General Data Protection Regulation of European Union. 

[25]White Paper of the Committee of Experts on Data Protection Framework for India under the Chairmanship of Justice    B. N. Srikrishna, December 2017. 

[31]The Environment Protection Act, 1986.

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