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  • जहाजरानी राज्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने 21 नवंबर, 2016 को नौवहन (क्षेत्राधिकार और समुद्रतटीय दावों का निपटान) बिल, 2016 को लोकसभा में पेश किया। बिल अदालतों के नौवहन संबंधी क्षेत्राधिकार में आने वाले सिविल मामलों, समुद्रतटीय दावों पर नौवहन की प्रक्रियाओं और जलयानों को हिरासत में लिए जाने पर मौजूदा कानूनों को सम्मिलित करता है। नौवहन से संबंधित कानून समुद्रीय जल में होने वाली दुर्घटनाओं या समुद्रीयजल में वाणिज्य से संबंधित अनुबंधों से जुड़े के मामलों को सुलझाते हैं। बिल नौवहन संबंधी न्यायलय अधिनियम (एक्ट), 1861, नौवहन विभाग के औपनिवेशिक न्यायालय अधिनियम (एक्ट), 1890 जैसे कानूनों को निरस्त करता है। बिल की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
     
  • नौवहन संबंधी क्षेत्राधिकार : बिल के तहत समुद्रतटीय दावों से संबंधित क्षेत्राधिकार संबद्ध उच्च न्यायालयों में निहित होंगे और अपने संबंधित क्षेत्राधिकार में आने वाले क्षेत्रीय सागरखंड तक उनका विस्तार होगा। केंद्र सरकार इन उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार को बढ़ा सकती है। वर्तमान में नौवहन का क्षेत्राधिकार बॉम्बे, कलकत्ता और मद्रास उच्च न्यायालयों में ही निहित है। बिल इसे कर्नाटक, गुजरात, ओड़िशा, केरल, हैदराबाद और केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य उच्च न्यायालय तक बढ़ाता है।
     
  • समुद्रतटीय दावे : उच्च न्यायालय निम्नलिखित स्थितियों से उत्पन्न होने वाले समुद्रतटीय दावों पर अपने क्षेत्राधिकार का उपयोग कर सकते हैं : (i) किसी जलयान के स्वामित्व से जुड़े विवाद, (ii) जलयान के मालिकों के बीच रोजगार या जलयान की आय से संबंधित किसी तरह का विवाद, (iii) जलयान का गिरवी होना, (iv) जलयान का निर्माण, मरम्मत या परिवर्तन, (v) जलयान की बिक्री से उत्पन्न विवाद, (vi) जलयान द्वारा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाना, इत्यादि। बिल में प्रयुक्त जलयान शब्द में ऐसे सभी प्रकार के जहाज, नाव या सेलिंग वेसल्स आते हैं जो मशीन के बिना या मशीन से चलते हैं।
     
  • विशिष्ट स्थितियों के तहत समुद्रतटीय दावों को निर्धारित करने के दौरान अदालतें विभिन्न पक्षकारों के बीच जलयान से संबंधित बकाया एकाउंट्स का निपटारा कर सकती हैं। वे जलयान या उसकी किसी हिस्सेदारी को बेचने का निर्देश भी दे सकती हैं। बिक्री के संबंध में अदालतें बिक्री की कार्यवाहियों के हक को निर्धारित कर सकती हैं।
     
  • समुद्रतटीय दावों को प्राथमिकता : नौवहन की कार्यवाहियों से संबंधित सभी दावों में पहली प्राथमिकता समुद्रतटीय दावों को दी जाएगी, इसके बाद जलयान का गिरवी होना और उसके बाद दूसरे दावों का निपटान किया जाएगा। समुद्रतटीय दावों में पहली प्राथमिकता जलयान पर काम करने वालों के वेतन संबंधी दावों को दी जाएगी। इसके बाद जलयान के कामकाज के कारण जान-माल को होने वाले नुकसान से संबंधित दावों की सुनवाई को प्राथमिकता दी जाएगी। अगर जलयान के स्वामित्व में फेरबदल होता है तो भी ऐसे दावों की सुनवाई जारी रहेगी।
     
  • किसी व्यक्ति के संबंध में क्षेत्राधिकार : अदालतें समुद्रतटीय दावों के संबंध में किसी व्यक्ति के खिलाफ अपने नौवहन क्षेत्राधिकार का उपयोग कर सकती हैं। लेकिन अदालतें कुछ मामलों में किसी एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायतों की सुनवाई नहीं करेंगी। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) भारत में जलयानों के बीच टक्कर से होने वाले नुकसान, या किसी की मृत्यु या व्यक्तिगत, क्षति या (ii) किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958 के टक्कर से संबंधित रेगुलेशनों का अनुपालन न करना जो भारत में नहीं रहता या भारत के बाहर कारोबार करता है। इसके अतिरिक्त अदालतें इस स्थिति में भी किसी व्यक्ति के खिलाफ सुनवाई नहीं करेंगी, अगर भारत के बाहर किसी अदालत में उस व्यक्ति के खिलाफ उसी घटना से संबंधित कोई मामला समाप्त हो चुका है।
     
  • जलयान को हिरासत में लेना : अदालतें अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले ऐसे जलयान को हिरासत में लेने का आदेश दे सकती हैं जिसके खिलाफ समुद्रतटीय दावे की कार्यवाही की जा रही है। ऐसा उस जलयान को सिक्योरिटी के रूप में रखने के लिए किया जा सकता है। ऐसा निम्नलिखित कारण होने पर किया जा सकता है, जैसे (i) अगर जलयान का मालिक दावे के लिए उत्तरदायी है, (ii) अगर दावा जलयान के गिरवी रहने की स्थिति से संबंधित है, और (iii) अगर दावा जलयान के स्वामित्व से संबंधित है, इत्यादि।
     
  • अपील : उच्च न्यायालय के किसी एक जज द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ उच्च न्यायलय की डिविजन बेंच के सामने अपील की जा सकती है। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय, किसी पक्ष द्वारा आवेदन करने पर किसी कार्यवाही को किसी भी चरण पर एक से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर सकता है। स्थानांतरण से पहले वह मामला कार्यवाही के जिस चरण पर होगा, दूसरा उच्च न्यायालय उसी चरण से उसकी कार्यवाही को आगे बढ़ाएगा।
     
  • आकलनकर्ता (एसेसर्स) : केंद्र सरकार नौवहन और समुद्रतटीय मामलों के क्वालिफाइड और अनुभवी आकलनकर्ताओं को नियुक्त करेगी। केंद्र सरकार उन आकलनकर्ताओं के कर्तव्यों और उनकी फीस को भी तय करेगी। सामान्य तौर पर आकलनकर्ता नौवहन कार्यवाहियों में दरों और दावों को निर्धारित करने में जजों को सहयोग करते हैं।

 

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