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वित्त
  • लोकसभा में 14 सितंबर, 2020 को फैक्टरिंग रेगुलेशन (संशोधन) बिल, 2020 को पेश किया गया। यह बिल फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट, 2011 में संशोधन करता है और फैक्टरिंग बिजनेस करने वाली एंटिटीज़ के दायरे को बढ़ाता है।
  • फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट, 2011 के अंतर्गत फैक्टरिंग बिजनेस एक ऐसा बिजनेस होता है जिसमें एक एंटिटी (जिसे फैक्टर कहा जाता है) दूसरी एंटिटी (जिसे एसाइनर कहा जाता है) के रिसिवेबल्स को एक राशि के बदले हासिल करती है। रिसिवेबल्स वह कुल राशि होती है जोकि किसी वस्तु, सेवा या सुविधा के उपयोग के लिए ग्राहकों (जिन्हें ऋणी कहा जाता है) पर बकाया होती है या उनके द्वारा जिसका भुगतान बाकी होता है। फैक्टर बैंक, एक रजिस्टर्ड नॉन बैंकिंग फाइनांशियल कंपनी या कंपनी एक्ट के अंतर्गत रजिस्टर कंपनी हो सकती है। उल्लेखनीय है कि रिसिवेबल्स की सिक्योरिटी के बदले बैंक द्वारा ऋण सुविधा प्रदान करना फैक्टरिंग बिजनेस नहीं माना जाता।        
     
  • रिसिवेबल्स की परिभाषा में बदलाव: एक्ट कहता है कि रिसिवेबल्स (पूरा, उसका एक अंश या अविभाजित हित) ऐसी मौद्रिक रकम होती है जोकि कॉन्ट्रैक्ट के अंतर्गत किसी व्यक्ति का अधिकार होता है। यह अधिकार मौजूदा हो सकता है, भविष्य में उत्पन्न हो सकता है या किसी सेवा, सुविधा या अन्य के उपयोग से आकस्मिक रूप से उत्पन्न हो सकता है)। बिल इस परिभाषा में परिवर्तन करता है और कहता है कि रिसिवेबल्स का अर्थ ऐसा धन है जो किसी देनदार द्वारा टोल के लिए अथवा किसी सुविधा या सेवाओं के उपयोग के लिए किसी एसाइनर को चुकाया जाना है।
     
  • एसाइनमेंट की परिभाषा में बदलाव: एक्ट के अनुसार, फैक्टर के पक्ष में किसी एसाइनर के रिसिवेबल के अविभाजित हित का ट्रांसफर (एग्रीमेंट द्वारा) होना एसाइनमेंट कहलाता है। बिल इस परिभाषा में बदलाव करता है और यह जोड़ता है कि यह ट्रांसफर पूरा या (बकाया रिसिवेबल में अविभाजित हित) का एक हिस्सा हो सकता है। 
      
  • फैक्टरिंग बिजनेस की परिभाषा में बदलाव: एक्ट में फैक्टरिंग बिजनेस का अर्थ निम्नलिखित बिजनेस है: (i) एसाइनमेंट को मंजूर करके एसाइनर के रिसिवेबल्स को हासिल करना, या (ii) रिसिवेबल्स के सिक्योरिटी इंटरेस्ट को लोन्स या एडवांस के जरिए वित्त पोषित करना। बिल इसमें संशोधन करता है और फैक्टरिंग बिजनेस को एसाइनमेंट के जरिए एसाइनर के रिसिवेबल्स के अधिग्रहण के तौर पर परिभाषित करता है। इस अधिग्रहण का उद्देश्य रिसिवेबल्स का कलेक्शन या ऐसे एसाइनमेंट के बदले वित्त पोषण होना चाहिए।  
     
  • फैक्टर्स का रजिस्ट्रेशन: एक्ट के अंतर्गत भारतीय रिजर्व बैंक के साथ रजिस्टर किए बिना कोई कंपनी फैक्टरिंग बिजनेस नहीं कर सकती। अगर किसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) को फैक्टरिंग बिजनेस करना है तो (i) फैक्टरिंग बिजनेस में उसके वित्तीय एसेट्स और (ii) फैक्टरिंग बिजनेस से उसकी आय, दोनों को उसके ग्रॉस एसेट्स/शुद्ध आय के 50% से अधिक या आरबीआई द्वारा अधिसूचित सीमा से अधिक होना चाहिए। बिल में एनबीएफसी के लिए फैक्टरिंग बिजनेस की इस सीमा को हटा दिया गया है।
     
  • लेनदेन का रजिस्ट्रेशन: एक्ट के अंतर्गत फैक्टर्स को अपने पक्ष में रिसिवेबल्स के एसाइनमेंट के प्रत्येक विवरण को रजिस्टर करना होगा। इन विवरणों को 30 दिनों की अवधि के दौरान केंद्रीय रजिस्ट्री में रिकॉर्ड किया जाना चाहिए जोकि सिक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनांशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट (सरफेसी) एक्ट, 2002 के अंतर्गत गठित है। अगर वे ऐसा नहीं करते तो कंपनी और अनुपालन न करने वाले प्रत्येक अधिकारी को हर दिन पांच हजार रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है, जब तक डीफॉल्ट जारी रहता है। बिल 30 दिनों की इस अवधि को हटाता है। वह कहता है कि समय अवधि, रजिस्ट्रेशन के तरीके और देर से रजिस्ट्रेशन के भुगतान शुल्क को रेगुलेशन द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है।
     
  • इसके अतिरिक्त बिल में कहा गया है कि जहां ट्रेड रिसिवेबल्स को ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरईडीएस) के जरिए वित्त पोषित किया जाता है, वहां फैक्टर की ओर से लेनदेन के विवरणों को संबंधित टीआरईडीएस द्वारा केंद्रीय रजिस्ट्री में फाइल किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि टीआरईडीएस एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म होता है जोकि सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उपक्रमों के ट्रेड रिसिवेबल्स के वित्त पोषण को सुगम बनाता है।
     
  • आरबीआई रेगुलेशन बनाएगी: बिल आरबीआई को यह अधिकार देता है कि वे निम्नलिखित के संबंध में रेगुलेशन बनाए: (i) फैक्टर को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट देने का तरीका, (ii) टीआरईडीएस के जरिए होने वाले लेनदेन के लिए केंद्रीय रजिस्ट्री में लेनदेन के विवरण को फाइल करने का तरीका, और (iii) जरूरत होने पर कोई अन्य तरीका। 

 

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