मंत्रालय: 
महिला एवं बाल कल्याण

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु को 21 वर्ष करने के लिए बाल विवाह निषेध एक्ट, 2006 में संशोधन करता है। इसके अतिरिक्त किसी कानून, रूढ़ि या प्रथा से विरोध होने की स्थिति में यह एक्ट ही लागू होगा। 
     
  • 2006 के एक्ट के अंतर्गत, अगर किसी व्यक्ति का विवाह न्यूनतम आयु से कम आयु में हुआ है तो वह वयस्क होने के बाद दो वर्षों के भीतर (यानी 20 वर्ष का पूरा होने से पहले) विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए आवेदन कर सकता है। बिल इस अवधि को दो वर्ष से पांच वर्ष करता है (यानी 23 वर्ष का पूरा होने से पहले)।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • विवाह की न्यूनतम आयु को 21 वर्ष किया जा रहा है जो वयस्कता की न्यूनतम आयु (18 वर्ष) से अधिक है। सर्वोच्च न्यायालय यह कह चुका है कि वयस्कों के बीच विवाह एक मौलिक अधिकार है। यहां प्रश्न उठता है कि 18 और 21 वर्ष के बीच के लोगों को शादी पर रोक लगाना, क्या उनके विवाह करने के अधिकार पर उचित प्रतिबंध है।
     
  • 20-24 वर्ष की करीब एक चौथाई महिलाओं का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में कर दिया जाता है, इसके बावजूद कि 1978 से विवाह की न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है। मौजूदा कानून की सीमित सफलता से यह प्रश्न उठता है कि न्यूनतम आयु बढ़ाने से क्या बाल विवाह के मामलों को कम किया जा सकेगा।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-20 (एनएफएचएस-5) के अनुसार, 20 और 24 वर्ष की 23% महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाता है।[1] इन आंकड़ों में पिछले कुछ वर्षों में गिरावट आई है, जोकि एनएफएचएस-3 (2005-06) में 47से गिरकर एनएफएचएस-4 (2015-16) में 27और हाल के सर्वे में 23हो गए हैं।[2],[3] 1929 में भारत में बाल विवाह निरोध एक्ट, 1929 के जरिए बाल विवाह की प्रथा को पहली बार कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया। 1929 के एक्ट के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु की लड़कियों और 18 वर्ष से कम आयु के लड़कों के विवाह पर प्रतिबंध था। इस एक्ट को 1978 में संशोधित किया गया जिसके तहत लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 18 वर्ष और लड़कों की 21 वर्ष किया गया। 1929 के एक्ट का स्थान लेने वाले बाल विवाह निषेध एक्ट, 2006 में न्यूनतम आयु की सीमा वही थी। बाल विवाह निषेध (संशोधन) बिल, 2021 महिलाओं की विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रयास करता है। इस बिल को 21 दिसंबर, 2021 को शिक्षा, महिला, बाल, युवा और खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी को भेज दिया गया। 

जून 2020 में केंद्र सरकार ने एक टास्क फोर्स बनाई (चेयरपर्सन: सुश्री जया जेटली)। यह टास्क फोर्स निम्नलिखित के संदर्भ में विवाह और मातृत्व के बीच संबंधों की जांच करने के लिए बनाई गई थी: (i) गर्भावस्था, प्रसव और उसके बाद माता और बच्चे का स्वास्थ्य, मेडिकल वेल-बीइंग और पोषण की स्थिति, (ii) मुख्य मानदंड जैसे शिशु मृत्यु दर (आईएमआर), मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर), कुल प्रजनन दर (टीएफआर), जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी), बाल लिंगानुपात (सीएसआर), और (iii) इस संबंध में स्वास्थ्य एवं पोषण से जुड़े दूसरे प्रासंगिक बिंदु।[4] टास्क फोर्स को महिलाओं में उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के उपाय भी सुझाने थे। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, कमिटी ने दिसंबर 2020 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें महिलाओं के विवाह की आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करने का सुझाव दिया गया था।[5] हालांकि टास्क फोर्स की रिपोर्ट सार्वजनिक मंच पर उपलब्ध नहीं है। 

मुख्य विशेषताएं 

  • महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाना: बाल विवाह निषेध एक्ट, 2006 में प्रावधान है कि पुरुषों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। बिल महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करता है। इसमें निर्दिष्ट है कि किसी कानून, रूढ़ि या प्रथा से विरोध होने की स्थिति में यह एक्ट ही लागू होगा।
     
  • बाल विवाह को अमान्य घोषित करने वाली याचिका दायर करने की समय अवधि: 2006 के एक्ट के अंतर्गत निर्दिष्ट न्यूनतम आयु से पहले अगर किसी व्यक्ति की शादी हो जाती है तो वह अपनी शादी को अमान्य घोषित करने के लिए आवेदन कर सकता है। याचिका वयस्क होने के दो वर्ष के भीतर दायर की जानी चाहिए (यानी 20 वर्ष का पूरा होने से पहले)। बिल इस समय अवधि को पांच वर्ष करता है (यानी 23 वर्ष का पूरा होने से पहले)। 

भाग ख : प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

वयस्क होने और विवाह की अनुमति के लिए भिन्न-भिन्न आयु

बिल में विवाह के लिए महिलाओं की न्यूनतम आयु बढ़ाकर 21 वर्ष की गई है जोकि पुरुषों की न्यूनतम वैवाहिक आयु के बराबर है। हालांकि वयस्कता एक्ट, 1875 के अंतर्गत वयस्कता हासिल करने की आयु 18 वर्ष है। इस अंतर से 18 से 21 वर्ष की आयु के बीच के व्यक्तियों के अधिकारों और जिम्मेदारियों से संबंधित कई नतीजे हो सकते हैं। 

18 और 21 वर्ष की आयु के बीच शादियों पर प्रतिबंध

विवाह की न्यूनतम आयु और सर्वोच्च न्यायालय के कई फैसलों के बीच विसंगतियां हैं। 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि विवाह का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन के अधिकार का अंग है।[6] उसने कहा था कि कोई भी अधिकार सिर्फ ऐसे कानून के जरिए छीना जा सकता है जोकि बहुत हद तक और प्रक्रियात्मक रूप से निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित हो।6 2018 के ही एक अन्य मामले में अदालत ने कहा था कि जब दो वयस्क लोग आपसी सहमति से एक दूसरे को जीवन साथी चुनते हैं, तो वह उनकी पसंद की अभिव्यक्ति होती है और यह संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत मान्य है।[7] बिल 21 वर्ष से पहले विवाह करने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाता है। प्रश्न यह है कि क्या 18 से 21 वर्ष के बीच के लोगों पर लगा यह प्रतिबंध, अदालतों द्वारा स्पष्ट किए गए उचित प्रतिबंधों के मानदंडों पर खरा उतरता है। सामान्य तौर पर, कानून द्वारा दिए गए मूलभूत अधिकारों पर कोई भी प्रतिबंध लगाने के लिए, तीन मानदंडों की जरूरत होती है- सार्वजनिक उद्देश्य, प्रतिबंध का उस उद्देश्य के साथ संबंधित होना, और उस उद्देश्य को हासिल करने के लिए कम दखल देने वाले तरीके का मौजूद न होना।[8]  

2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता, 1860 के सेक्शन 377 को पढ़ते हुए फैसला दिया था कि परस्पर सहमत वयस्कों के के बीच सम्मति से किया गया सेक्स संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के अंतर्गत मौलिक अधिकार है।[9]  अगर यह बिल पारित हो जाता है तो यौन संबंध बनाना वैध हो जाएगा लेकिन 18 से 21 वर्ष के बीच लोगों के लिए विवाह करना अवैध होगा। उल्लेखनीय है कि पुरुषों की मौजूदा स्थिति यही है।

बाल विवाह को अमान्य करना

2006 के एक्ट में इस बात की अनुमति है कि अगर किसी व्यक्ति का विवाह न्यूनतम आयु से पहले हो जाता है तो वह विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए आवेदन कर सकता है। बिल महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाकर 21 वर्ष करता है। इसका मतलब यह है कि अगर किसी व्यक्ति का विवाह 18 से 21 वर्ष के बीच हुआ है तो वह विवाह को अमान्य घोषित करने के लिए आवेदन कर सकता है। 

हालांकि भारत में वयस्क व्यक्तियों को अपने स्वयं के फैसले लेने के लिए योग्य माना जाता है और अधिकांश कानूनों के अंतर्गत अपने कार्यों के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाता है (कुछ निर्दिष्ट मामलों को छोड़कर जैसे कि कमजोर दिमाग के व्यक्ति)। इनमें दीवानी कानून (जैसे भारतीय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872) और फौजदारी कानून (जैसे किशोर न्याय एक्ट, 2015) दोनों शामिल हैं। ऐसे में 18 से 21 वर्ष के बीच के शादीशुदा लोगों को शादी को अमान्य घोषित करने का आवेदन करने की अनुमति देना इस सिद्धांत के साथ असंगत है।

     तालिका 1भारत में विभिन्न कार्यों के लिए न्यूनतम आयु[10]

कार्य

न्यूनतम आयु

वोट देना

18

ड्राइविंग लाइसेंस 

18

कॉन्ट्रैक्ट साइन करना 

18

आपराधिक दायित्व 

18; जघन्य अपराध करने पर 16-18 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चला जा सकता है

चुनाव लड़ना 

लोकसभा: 25; 
राज्यसभा: 30;
राष्ट्रपति: 35

  स्रोतएंडनोट 9 में सूचीबद्ध; पीआरएस।

2006 के एक्ट को लागू करने की चुनौतियां

1978 से महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष रही है। हालांकि एनएफएचएस-5 (2019-20) के अनुसार, कम उम्र में शादी का प्रचलन बहुत अधिक है। 20 और 24 वर्ष के बीच की 23औरतों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जाती है। इसी तरह ऐसी शादियों का पता कम ही मिल पाता है। जैसे, 2020 में इस कानून के तहत सिर्फ 785 मामले दर्ज किए गए।[11]  इससे पता चलता है कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादियों को रोकने में पूरी सफलता नहीं मिली है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि न्यूनतम आयु बढ़ाने से क्या बाल विवाह को कम करने पर महत्वपूर्ण असर होगा।

यूनिसेफ के अनुसार, हालांकि कई देशों और संस्कृतियों में बाल विवाह की परंपरा की जड़ें अलग-अलग हैं। गरीबी, शिक्षा के अवसरों का अभाव और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुंच इस परंपरा को बरकरार रखते हैं।[12]  मार्च 2020 में महिला एवं बाल विकास मंत्री ने लोकसभा में बताया था कि सामाजिक रीति-रिवाजों, परंपराओं, निरक्षरता, गरीबी, समाज में महिलाओं के दोयम दर्जे और जागरूकता की कमी की वजह से बाल विवाह की प्रथा बरकरार है।[13] मंत्री ने कहा था कि इन मुद्दों को सिर्फ विधायी हस्तक्षेप के जरिए सुलझाया नही जा सकता।13

बिल के उद्देश्य और कारण  

बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन (एसओआर) के अनुसार, विवाह की न्यूनतम आयु को बढ़ाने से कई उद्देश्यों को हासिल किया जा सकता है जैसे मातृत्व और शिशु मृत्यु दर (एमएमआर और आईएमआर), पोषण स्तरों, जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी), महिला श्रम बल भागीदारी और जेंडर समानता में सुधार होगा और इससे महिलाओं का सशक्तीकरण होगा।   

स्वास्थ्य संकेतक 

एमएमआर और आईएमआर पर डेटा से पता चलता है कि देश में दोनों संकेतकों में सुधार हो रहा है। 2016-18 में प्रति लाख जीवित बच्चों के जन्म पर राष्ट्रीय एमएमआर 113 था जिसमें 1990 के एमएमआर (556) से 80की गिरावट है।[14]  आईएमआर में 69% की गिरावट है जोकि 2019-20 में 1,000 जन्मे बच्चों पर 35 है और यह आंकड़ा 1990 में 114 था।1  मार्च 2021 में महिला एवं बाल विकास मंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि इस बात का कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है कि बाल विवाह आईएमआर और एमएमआर का मुख्य कारण है।[15]  ऐसे अनेक कारण हैं जो मातृत्व को प्रभावित करते हैं जैसे स्वास्थ्य, पोषण और स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव। ये आईएमआर और एमएमआर में योगदान दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, अनेक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि एनीमिया यानी खून की कमी एमएमआर की उच्च दर के मुख्य कारणों में से एक है।[16],[17] हाल के एनएफएचएस-5 (2019-20) के अनुसार, 15 से 49 वर्ष के बीच की 57% महिलाओं में खून की कमी है।1  

श्रम बल भागीदारी दर (एलएफपीआर) 

एलएफपीआर जनसंख्या के उस प्रतिशत को स्पष्ट करता है जो कार्यरत हैं या काम की तलाश कर रहे हैं। वार्षिक पीरिऑडिक लेबर फोर्स सर्वे 2019-20 के अनुसार, 15-59 वर्ष के बीच की महिलाओं का एलएफपीआर 32.3थी (पुरुषों के 81.2% से बहुत कम)।[18] अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार, एलएफपीआर को प्रभावित करने वाले कई आर्थिक और सामाजिक कारण हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) शिक्षा की प्राप्ति, (ii) प्रजनन दर और विवाह की आयु (iii) आर्थिक प्रभाव, (iv) सामाजिक मानदंड, और (v) शहरीकरण। इसके अतिरिक्त आईएलओ ने कहा है कि भारत में निम्न एलएफपीआर के कारणों में अधिकतर रोजगार अवसरों का अभाव, पारिवारिक आय में बढ़ोतरी का प्रभाव, श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी का सही आकलन न होना और सेकेंडरी स्कूलिंग में दाखिले का बढ़ना शामिल हैं।[19],[20]

विभिन्न कमिटियों के सुझाव

निम्नलिखित तालिका में बताया गया है कि विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कमिटियों और समझौतों (कन्वेंशंस) ने विवाह की आयु के संबंध में क्या सुझाव दिए हैं। 

तालिका 2विवाह की न्यूनतम आयु पर विभिन्न कमिटियों और समझौतों के सुझाव

कमिटी/समझौते

अनुशंसित आयु

तर्क/निष्कर्ष

यूनिसेफ (2020)

पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए 18 

  • एक व्यक्ति 18 की आयु में शादी करने के लिए भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रूप से परिपक्व होता है।12

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौता (2016)

पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए 18

  • इसे वयस्कता की आयु के बराबर होना चाहिए।[21]

संसद की स्टैंडिंग कमिटी (2004 के बिल की समीक्षा करते हुए, जोकि बाद में 2006 का एक्ट बना) 

पुरुषों के लिए 21 और महिलाओं के लिए 18

  • देश में सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से दो अलग-अलग उम्र स्वीकार की जाती है, हालांकि यह पाया गया कि अलग-अलग कानूनों में बच्चे की परस्पर विरोधी परिभाषा से भ्रम, अस्पष्टता और संशय पैदा हो सकता है।[22]

भारतीय विधि आयोग

पुरुषों और महिलाओं, दोनों के लिए 18

  • लड़के और लड़कियों, दोनों के लिए उम्र अलग-अलग हो, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है (2008)[23] 
  • वयस्क होने पर सभी नागरिकों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार दिया गया है, विवाह की वैध आयु को भी उसी तरह मान्यता मिलनी चाहिए (2018)[24] 

स्रोत: संयुक्त राष्ट्र; कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी; भारतीय विधि आयोग की रिपोर्ट्स; पीआरएस। 

हिंदू विवाहों को नामंजूर और रद्द करने के लिए अलग-अलग आयु

हिंदू विवाह एक्ट, 1955 में हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानून को संहिताबद्ध किया गया है। इसके अंतर्गत अगर किसी महिला का विवाह 15 वर्ष की उम्र से पहले हो गया है और 18 वर्ष की होने से पहले वह शादी को नामंजूर करती है तो वह तलाक के लिए याचिका दायर कर सकती है। बिल 1955 के एक्ट में संशोधन करके उस अधिकतम आयु को बढ़ाकर 21 करता है, जब तक पत्नी अपनी शादी को नामंजूर कर सकती है। हालांकि बिल बाल विवाह निषेध एक्ट, 2006 में भी संशोधन करता है और 23 वर्ष की आयु तक शादी को अमान्य कराने की अनुमति देता है। उल्लेखनीय है कि अमान्य का मतलब होता है, शादी पूरी तरह से निरस्त हुई, यानी वह कभी वैध नहीं थी और यह शादी को नामंजूर करने के लिए तलाक लेने से एकदम अलग है।

 

[1]National Family Health Survey – 5 (2019-21), Ministry of Health and Family Welfare. 

[2]National Health Family Survey – 3 (2005-06), Ministry of Health and Family Survey. 

[3]National Family Health Survey – 4, (2015-16), Ministry of Health and Family Survey. 

[4]. Task Force set up to examine matters pertaining to age of motherhood, imperatives of lowering MMR, improvement of nutritional levels and related issues, Ministry of Women and Child Development, Press Information Bureau, June 6, 2020.

[8]Justice K. S. Puttaswamy Vs. Union of India, Supreme Court, Writ Petition (Civil) 494 of 2012, August 24, 2017.

[11]Crime in India 2020, National Crime Records Bureau, Ministry of Home Affairs, September 2021. 

[12]Child Marriage and the Law 2020, UNICEF, November 2020.

[13]Lok Sabha Unstarred Question No. 4526, Ministry of Women and Child Development, March 20, 2020. 

[14]. Maternal Mortality Rate (MMR), Ministry of Health and Family Welfare, Press Information Bureau, February 12, 2021. 

[15]Lok Sabha Unstarred Question No. 2870, Ministry of Women and Child Development, March 12, 2021. 

[18]Annual PLFS 2019-20, July 2019-July 2020, Ministry of Statistics and Programme Implementation. 

[19]Women’s labour force participation in India: Why is it so low?, International Labour Organisation, 2014. 

[20]The paradox of low female labour force participation, International Labour Organisation, March 9, 2017. 

[21]General comment No. 20 (2016) on the implementation of the rights of the child during adolescence, United Nations Convention of Rights of the Child, December 6, 2016. 

[22]Report on the Prevention of Child Marriage Bill, 2004, Standing Committee on Personnel, Public Grievances, Law and Justice, November 29, 2005. 

[24]Consultation Paper on Reforms of Family Law, Law Commission of India, August 31, 2018. 

 

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