मंत्रालय: 
ऊर्जा

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिजली एक्ट, 2003 में एक ही क्षेत्र में एक से अधिक वितरण लाइसेंसियों (डिस्कॉम) को काम करने की अनुमति दी गई है। बिजली आपूर्ति करने के लिए उनके पास अपना नेटवर्क होना जरूरी है। बिल इस शर्त को हटाता है। 

  • जिस डिस्कॉम के पास अपना नेटवर्क होगा, उसे दूसरे डिस्कॉम्स को अपने नेटवर्क का ओपन और भेदभाव रहित एक्सेस देना होगा। 

  • मौजूदा बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) की बिजली और संबंधित लागतों को क्षेत्र के सभी डिस्कॉम्स के साथ साझा किया जाएगा।  

  • अगर किसी क्षेत्र में एक से अधिक डिस्कॉम हैं तो रीटेल आपूर्ति के लिए फ्लोर और सीलिंग टैरिफ का निर्धारण राज्य आयोग द्वारा किया जाएगा। 

  • राज्य सरकार एक क्रॉस-सबसिडी बैलेसिंग फंड बनाएगी। इस फंड में डिस्कॉम्स के पास क्रॉस-सबसिडी से आने वाले किसी भी सरप्लस को जमा किया जाएगा। अगर उसी क्षेत्र या किसी अन्य क्षेत्र में किसी डिस्कॉम को कोई घाटा होता है तो उसकी भरपाई उस फंड से की जाएगी। 

  • बिल पेमेंट सिक्योरिटी मैकेनिज्म का प्रावधान करता है जिससे उत्पादन कंपनियों का समय पर भुगतान सुनिश्चित हो।

  • बिल केंद्रीय और राज्य आयोगों के चेयरपर्सन्स और अन्य सदस्यों की क्वालिफिकेशन में संशोधन करता है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • मौजूदा पीपीए को क्षेत्र के सभी डिस्कॉम्स के साथ साझा किया जाएगा। कुल लागत में बिजली खरीद का हिस्सा 70%-80% होता है और अनेक राज्यों में अधिकतर मौजूदा मांग दीर्घकालीन पीपीए से बंधी हुई है। इसलिए शुरुआत में, लागत प्रभावी लाभ और प्रतिस्पर्धा की गुंजाइश सीमित हो सकती है। 

  • नेटवर्क के स्वामित्व वाले डिस्कॉम्स को आपूर्ति व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा करनी होगी। इससे नेटवर्क का बंटवारा करने में हितों का टकराव हो सकता है और नेटवर्क में निवेश पर उसका प्रतिकूल असर पड़ सकता है। 

  • पीपीए के बंटवारे को निर्धारित करने के लिए राज्य आयोगों को सशक्त करने से बिजली खरीद की संविदा आधारित व्यवस्था के नियमों और शर्तों पर बातचीत की निजी पक्षों की स्वतंत्रता पर असर हो सकता है।   

  • बिल के तहत केंद्रीय और राज्य आयोगों के चेयरपर्सन्स के लिए बिजली क्षेत्र में अनुभव जरूरी नहीं है। प्रश्न यह है कि क्या यह उपयुक्त है।

  • एसईआरसी के लिए चयन समिति में केंद्र सरकार के नामित व्यक्ति की जरूरत स्पष्ट नहीं है। समिति में कोई विशेषज्ञ सदस्य नहीं होगा।

  • बिल में प्रावधान है कि एसईआरसी या सीईआरसी सदस्यों को उनके कार्यों से संबंधित कुछ आधारों पर हटाया जा सकता है। प्रश्न उठता है कि आयोग के निर्णय के लिए एक सदस्य को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता हैक्योंकि निर्णय सामूहिक रूप से लिए जाते हैं।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

बिजली एक्ट, 2003 एक केंद्रीय कानून है जो बिजली क्षेत्र को रेगुलेट करता है।[1]  यह बिजली क्षेत्र को तीन उप-खंडों में बांटता है: (i) उत्पादन, (ii) ट्रांसमिशन, और (iii) वितरण। ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का इस्तेमाल करके, बिजली उत्पादित करने की प्रक्रिया बिजली उत्पादन कहलाती है। ट्रांसमिशन का अर्थ है, उत्पादन संयंत्र से हाई वोल्टेज बिजली को ट्रांसमिशन ग्रिड के जरिए वितरण उपकेंद्रों तक पहुंचाना। वितरण का अर्थ है, उपकेंद्रों से बिजली को वितरण नेटवर्क के जरिए व्यक्तिगत उपभोक्ताओं तक हस्तांतरित करना।  

भारतीय ऊर्जा क्षेत्र में यह बात बार-बार दोहराई जाती है कि वितरण इकाइयों (डिस्कॉम्स) की वित्तीय स्थिति बहुत खराब है।[2],[3] 2017-18 और 2020-21 के बीच सभी डिस्कॉम्स का संचयी घाटा लगभग तीन लाख करोड़ रुपए था।3  अधिकतर राज्यों में बिजली वितरण एक स्थानीय एकाधिकार वाला कारोबार है, जहां किसी क्षेत्र में एक अकेली सरकारी स्वामित्व वाली वितरण इकाई बिजली दे रही होती है।डिस्कॉम्स को लगातार वित्तीय घाटा हो रहा है, और उसे इन हालात से उबारने के लिए समय-समय पर सरकारी मदद की जरूरत होती है।2  इन घाटों के कारणों में उच्च स्तरीय तकनीकी एवं वाणिज्यिक घाटे (2020-21 तक 22%) और निम्न स्तरीय शुल्क निर्धारण शामिल हैं।2,3  तकनीकी एवं वाणिज्यिक घाटों में बिजली हस्तांतरण में होने वाले घाटे और चोरी के कारण होने वाले नुकसान शामिल हैं।

उपरोक्त समस्याओं को दूर करने के लिए कई बार 2003 के एक्ट में संशोधनों पर विचार किया गया, मुख्य रूप से वितरण कारोबार को पुनर्गठित करने और शुल्क को युक्तिसंगत बनाने के लिए। 2014 में लोकसभा में 2003 के एक्ट में संशोधन के लिए एक बिल पेश किया गया।[4] बिल जो बदलाव करना चाहता था, उनमें से एक यह था कि वह वितरण नेटवर्क और आपूर्ति कारोबार के लिए अलग-अलग लाइसेंस जारी करने का प्रस्ताव रखता था। इसे ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी को समीक्षा के लिए भेजा गया, हालांकि 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ बिल लैप्स हो गया।[5]  इसके बाद 2018 और 2020 में ऊर्जा मंत्रालय ने 2003 के एक्ट में ड्राफ्ट संशोधनों को सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए जारी किया।[6],[7] जबकि 2018 के ड्राफ्ट बिल में 2014 के बिल की तरह वितरण कारोबार को अलग करने का प्रावधान था, 2020 के ड्राफ्ट बिल में ऐसा प्रावधान नहीं था। इसकी बजाय उसमें वितरण लाइसेंसी की तरफ से बिजली वितरण के लिए उप-लाइसेंसी की नियुक्ति का प्रावधान था। इन बिल्स में पेमेंट सिक्योरिटी मैकेनिज्म को अनिवार्य करने, सबसिडी के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण और शुल्क एवं क्रॉस-सबसिडी के युक्तिकरण से संबंधित प्रस्ताव भी था। क्रॉस-सबसिडी का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उपभोक्ताओं की एक श्रेणी, उपभोक्ताओं की दूसरी श्रेणी की खपत को सबसिडाइज करती है। दीर्घकालीन नीतिगत लक्ष्य यह है कि क्रॉस-सबसिडी को आपूर्ति के औसत स्तर के ±20% के दायरे के भीतर रखा जाए लेकिन उसका स्तर इस दायरे से अधिक हो जाता है।2

बिजली (संशोधन) बिल, 2022 को अगस्त 2022 को लोकसभा में पेश किया गया था।[8]  इसे विस्तृत समीक्षा के लिए ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी के पास भेजा गया है।

मुख्य विशेषताएं

  • एक क्षेत्र में कई डिस्कॉम्सएक्ट में प्रावधान है कि एक ही क्षेत्र में आपूर्ति के लिए कई वितरण लाइसेंसी (डिस्कॉम्स) होंगे। एक्ट में यह अपेक्षित है कि डिस्कॉम्स अपने नेटवर्क के जरिए बिजली का वितरण करेंगे। बिल इस शर्त को हटाता है। इसमें यह जोड़ा गया है कि डिस्कॉम को कुछ शुल्क चुकाने पर उसी क्षेत्र में काम करने वाले दूसरे नेटवर्क्स को भेदभाव रहित (नॉन-डिस्क्रिमिनेटरी) ओपन एक्सेस प्रदान करना होगा। केंद्र सरकार आपूर्ति के क्षेत्र के निर्धारण के लिए मानदंड निर्दिष्ट कर सकती है।

  • बिजली खरीद और शुल्कएक ही क्षेत्र के लिए कई लाइसेंस देने पर, मौजूदा डिस्कॉम्स के मौजूदा बिजली खरीद समझौतों (पावर पर्चेज एग्रीमेंट्स) (पीपीए) के अनुसार बिजली और उससे संबंधित लागत को सभी डिस्कॉम्स के बीच शेयर किया जाएगा। बिजली की अतिरिक्त जरूरत को पूरा करने के लिए डिस्कॉम अतिरिक्त पीपीए कर सकता है, अगर उसने मौजूदा समझौतों की बाध्यताओं को पूरा कर लिया है। अतिरिक्त बिजली की ऐसी जरूरत को दूसरे डिस्कॉम्स के साथ बांटने की जरूरत नहीं है। एक्ट के तहत आपूर्ति के क्षेत्र में कई डिस्कॉम्स होने की स्थिति में, एसईआरसी को शुल्क की अधिकतम सीमा निर्दिष्ट करनी होगी। बिल इसमें यह जोड़ता है कि एसईआरसी ऐसे मामलों में न्यूनतम शुल्क की सीमा भी निर्दिष्ट करेगा।

  • क्रॉस-सबसिडी बैलेंसिंग फंडबिल कहता है कि एक ही क्षेत्र के लिए कई लाइसेंस देने की स्थिति में, राज्य सरकार क्रॉस-सबसिडी बैलेंसिंग फंड बनाएगी। क्रॉस-सबसिडी का अर्थ एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें उपभोक्ताओं की एक श्रेणी, उपभोक्ताओं की दूसरी श्रेणी की खपत को सबसिडाइज करती है। क्रॉस-सबसिडी के कारण वितरण लाइसेंसी के पास आने वाले किसी भी सरप्लस को इस फंड में जमा किया जाएगा। इस फंड का इस्तेमाल उसी क्षेत्र या किसी अन्य क्षेत्र में दूसरे डिस्कॉम्स के लिए क्रॉस-सबसिडी के घाटे को पूरा करने के लिए किया जाएगा।

  • कई राज्यों में वितरण हेतु लाइसेंस: बिल के अनुसार, सीआईआरसी एक से अधिक राज्य में बिजली वितरण के लिए लाइसेंस देगा।

  • पेमेंट सिक्योरिटीबिल में प्रावधान है कि अगर डिस्कॉम पर्याप्त पेमेंट सिक्योरिटी नहीं देता तो बिजली शेड्यूल या डिस्पैच नहीं की जाएगी। केंद्र सरकार पेमेंट सिक्योरिटी से संबंधित नियमों को निर्दिष्ट कर सकती है।

  • आपूर्ति की लागत को कवर करनाएक्ट में प्रावधान है कि शुल्क को धीरे-धीरे आपूर्ति की लागत के करीब लाया जाए। बिल कहता है कि शुल्क में आपूर्ति की लागत कवर होनी चाहिए।

  • अनुबंधों का प्रवर्तनबिल सीईआरसी और एसईआरसी को यह अधिकार देता है कि वे अनुबंधों के पालन से संबंधित विवादों पर न्यायिक फैसला दें। ये अनुबंध बिजली की बिक्री, खरीद या ट्रांसमिशन से संबंधित हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त आयोगों के पास सिविल अदालत की शक्तियां होंगी।

  • अक्षय ऊर्जा खरीद बाध्यता: एक्ट एसईआरसीज़ को यह अधिकार देता है कि वे डिस्कॉम्स के लिए अक्षय ऊर्जा खरीद बाध्याएं (रीन्यूएबल पर्चेज़ ऑब्लिगेशंस) (आरपीओ) निर्दिष्ट कर सकते हैं। आरपीओ का अर्थ यह होता है कि बिजली का एक निश्चित प्रतिशत अक्षय ऊर्जा स्रोतों से खरीदना अनिवार्य होगा। बिल कहता है कि यह आरपीओ केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट न्यूनतम प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए। आरपीओ का पालन न करने की स्थिति में जुर्माना चुकाना होगा। जितनी कम बिजली खरीदी जाएगी, उस पर 25 पैसे से 50 पैसे प्रति किलोवॉट के हिसाब से जुर्माना लगेगा।

  • आयोग और एपीटीईएल का संयोजनबिल सीईआरसीज़ में सदस्यों की संख्या (चेयरपर्सन सहित) को तीन से चार करता है। इसके अतिरिक्त सीईआरसी और एसईआरसीज़, दोनों में कम से कम एक सदस्य कानून की पृष्ठभूमि वाला होना चाहिए। बिल चेयरपर्सन और सदस्यों, दोनों की क्वालिफिकेशंस में भी संशोधन करता है।

तालिका 1सीईआरसी और एसईआरसी के चेयरपर्सन्स की क्वालिफिकेशंस में बदलाव 

बिजली एक्ट, 2003 

बिजली (संशोधन) बिल, 2022

केंद्रीय बिजली रेगुलेटरी आयोग (सीआईआरसी) 

ऐसा व्यक्ति: (i) जिसके पास इंजीनियरिंग (बिजली के उत्पादन, ट्रांसमिशन या वितरण में विशेषज्ञता के साथ), कानून, अर्थशास्त्र, वित्त या प्रबंधन का पर्याप्त ज्ञान या अनुभव हो, या (ii) जो सर्वोच्च न्यायालय का जज या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो।

ऐसा व्यक्ति (i) जो वितरण, ट्रांसमिशन या उत्पादन कंपनी के साथ काम करने वाले संगठन का प्रमुख हो या कभी प्रमुख रहा हो, या (ii) जो केंद्र सरकार का सेक्रेटरी या उसके बराबर पद पर है, या उस पद पर रहा हो। बिजली क्षेत्र में कम से कम दो वर्षों के अनुभव वाले उम्मीदारों को वरीयता दी जाएगी।      

राज्य बिजली रेगुलेटरी आयोग (एसईआरसी) 

ऐसा व्यक्ति: (i) जिसके पास इंजीनियरिंग, वित्त, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, कानून या प्रबंधन का पर्याप्त ज्ञान हो, या (ii) जो उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो या रहा हो।

ऐसा व्यक्ति (i) वितरण, ट्रांसमिशन या उत्पादन कंपनी के साथ काम करने वाले संगठन का प्रमुख हो या कभी प्रमुख रहा हो, या (ii) जो राज्य सरकार का प्रिंसिपल सेक्रेटरी या उसके बराबर पद पर है, या उस पद पर रहा हो। बिजली क्षेत्र में कम से कम दो वर्षों के अनुभव वाले उम्मीदारों को वरीयता दी जाएगी।

स्रोतबिजली एक्ट, 2003; बिजली (संशोधन) बिल, 2022पीआरएस।

  • एक्ट के अंतर्गत बिजली अपीलीय ट्रिब्यूनल (एपीटीईएल) में चेयरपर्सन और तीन अन्य सदस्य होते हैं। इसके स्थान पर बिल में प्रावधान है कि एपीटीईएल में तीन या उससे अधिक सदस्य होंगे, जैसा कि केंद्र सरकार निर्दिष्ट करे।

  • एसईआरसीज़ के लिए चयन समिति: एक्ट के तहत केंद्रीय बिजली अथॉरिटी का चेयरपर्सन या सीईआरसी का चेयरपर्सन, उस चयन समिति के सदस्यों में से एक होगा, जो एसईआरसीज़ में नियुक्तियों का सुझाव देगा। बिल के तहत, इस व्यक्ति के स्थान पर, केंद्र सरकार चयन समिति के सदस्य को नामित करेगी। यह नामित व्यक्ति केंद्र सरकार के एडिशनल सेक्रेटरी के पद से नीचे का अधिकारी नहीं होना चाहिए।

 

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम्स होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ती है 

वितरण खंड में प्रतिस्पर्धा

बिजली क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, बिजली एक्ट, 2003 का मुख्य उद्देश्य है। इसके तहत कई डिस्कॉम्स का प्रावधान है जोकि एक ही इलाके में 'अपने खुद के नेटवर्क के जरिए बिजली की आपूर्ति करके आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे। हालांकि अगर हर डिस्कॉम को अपने नेटवर्क के लिए निवेश करना होगा, तो इससे नेटवर्क का रेप्लिकेशन होगा, और अंतिम उपभोक्ताओं की लागत में वृद्धि होगी, क्योंकि पूंजीगत निवेश की लागत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आगे बढ़ाई जाएगी।[9],[10],[11]  

वितरण कारोबार को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है(i)- वायर- फिजिकल नेटवर्क, जो हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन सिस्टम से बिजली को खपत बिंदु तक लाता है, और (ii) आपूर्ति- उत्पादकों से बिजली खरीदने और उसे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने, बिलिंग और कलेक्शन का कारोबार। इन दो व्यवसायों की प्रकृति अलग-अलग समझी जाती है। वायर बिजनेस एक नेचुरल मोनोपली है क्योंकि उसमें अधिक पूंजीगत लागत लगती है, जबकि आपूर्ति का व्यवसाय प्रतिस्पर्धी मल्टीप्लेयर मार्केट है।9  आपूर्ति में प्रतिस्पर्धा से कार्यकुशलता में सुधार आने और जिम्मेदारियों के स्पष्ट बंटवारे से नुकसान में कमी आने की उम्मीद होती है, यानी वायर कंपनी के मामले में नेटवर्क में सुधार होता है, और आपूर्ति कंपनी के मामले में बिजली खरीद और उपभोक्ता इंटरफेस में कार्यकुशलता आती है।9 इसके अतिरिक्त उपभोक्ताओं के पास आपूर्तिकर्ताओं के बीच अदला-बदली करने का विकल्प होगा जिससे बेहतर आपूर्ति, कम शुल्क और बेहतर उपभोक्ता सेवा के लिए दबाव पड़ेगा।9  

रेगुलेटर्स के फोरम (2013) ने रीटेल आपूर्ति व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा की कुछ मुख्य पूर्व शर्तों का उल्लेख किया था: (i) कई कंपनियों की मौजूदगी में थोक बिजली बाजार का विकास और प्रभावशाली कंपनियां से दूर रहना, (ii) लागत को प्रदर्शित करने वाला शुल्क, (iii) हितों के टकराव को दूर करने के लिए वायर और आपूर्ति खंड का विशिष्ट स्वामित्व, (iv) मौजूदा वितरण और वित्तीय घाटे को दूर करने की योजना, (v) एडवांस्ड मीटरिंग सहित आपूर्ति की उपयुक्त अवसंरचना, और (vi) आपूर्तिकर्ताओं की आसान अदला-बदली।9

बिल किसी क्षेत्र में एक से अधिक डिस्कॉम्स की बिजली आपूर्ति का प्रावधान करता है, जिसमें प्रत्येक के लिए अलग नेटवर्क के स्वामित्व की जरूरत नहीं। जब एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम्स काम करेंगे, तो बिल निम्नलिखित का प्रावधान करता है: (i) वितरण नेटवर्ट का भेदभाव रहित ओपन एक्सेस, (ii) डिस्कॉम्स के बीच मौजूदा बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) की शेयरिंग, (iii) रीटेल आपूर्ति के लिए सिर्फ सीलिंग और फ्लोर टैरिफ का निर्धारण, और (iv) क्रॉस-सबसिडी बैलेंसिंग फंड का गठन। हम यहां इन प्रावधानों से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।

लागत प्रभावी लाभ की गुंजाइश शुरुआत में कम, जिससे प्रतिस्पर्धा की गुंजाइश कम हो सकती है

बिल उपभोक्ताओं के विकल्पों को बढ़ावा देने और प्रतिस्पर्धा के जरिए कार्यकुशलता लाने का प्रयास करता है। इसमें प्रावधान है कि मौजूदा पीपीए और संबंधित लागत को एक क्षेत्र में काम करने वाले डिस्कॉम्स के बीच साझा किया जाएगा। डिस्कॉम्स की कुल लागत संरचना में बिजली खरीद की लागत 70%-80% के बीच होती है।पीपीए आम तौर पर 20-30 वर्षों वाले दीर्घकालीन समझौते होते हैं। इससे प्रतिस्पर्धा की गुंजाइश पर सवाल खड़े होते हैं।  

कई राज्यों में दीर्घावधि के पीपीए के तहत जो क्षमता संबद्ध होती है, वह मौजूदा मांग से ज्यादा होती है।2  नीति आयोग की अध्ययन रिपोर्ट (2021) में कहा गया था कि डिस्कॉम्स ने बिजली की मांग के गलत अनुमानों के आधार पर महंगे और दीर्घावधि के तापीय पीपीए किए हैं।[12]  बिजली उत्पादित न होने की स्थिति में भी डिस्कॉम्स निर्धारित लागत का वहन करते हैं।12  चूंकि मौजूदा पीपीए को साझा किया जाना है, बिजली खरीद की लागत भी डिस्कॉम्स के बीच बंटने की उम्मीद है। इसका अर्थ यह है कि नए लाइसेंसियों के पास लागत संरचना के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से को कार्यकुशल बनाने की सीमित गुंजाइश होगी। यह स्थिति धीरे-धीरे बदलेगी जब समय के साथ मांग बढ़ेगी और दीर्घावधि का पीपीए समाप्त होने के करीब होगा। रेगुलेटर्स के फोरम (2013) ने कहा था कि वितरण खंड में प्रतिस्पर्धा की पूर्व शर्त थोक बिजली बाजार विकसित करना है।नेटवर्क संबंधी सुधार डिस्कॉम के नियंत्रण से बाहर की बात है क्योंकि वह सिर्फ आपूर्ति व्यवसाय में है, चूंकि सभी प्रतिस्पर्धी डिस्कॉम्स एक ही नेटवर्क का इस्तेमाल करेंगे। ये सुधार सभी प्रतिस्पर्धी डिस्कॉम्स के हिस्से में आएंगे। मूल्य निर्धारण तंत्र में नए प्रयोग भी एसईआरसी द्वारा निर्धारित फ्लोर और सीलिंग शुल्क से बाधित हो सकते हैं। अगर प्रस्तावित मूल्य में बहुत अधिक फर्क नहीं है तो उपभोक्ताओं को अदला-बदली आकर्षक नहीं लगेगी। इससे निकट भविष्य में इस प्रस्तावित मॉडल के प्रति नई कंपनियों के आकर्षित होने की संभावनाओं पर सवाल उठ उठता है। 

तालिका 22019-20 में वितरण इकाइयों की लागत संरचना (Rs/ kWh)

लागत की मद

सरकारी क्षेत्र

निजी क्षेत्र

बिजली की लागत

4.70

5.17

कर्मचारी की लागत 

0.51

0.49

ब्याज लागत 

0.41

0.57

ह्रास

0.21

0.30

अन्य लागत

0.26

0.47

कुल

6.09

6.99

स्रोतबिजली इकाइयों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट 2020-21, बिजली वित्त निगमपीआरएस।

तालिका 32019-20 में वितरण इकाइयों की राजस्व संरचना  (in Rs/kWh)

राजस्व की मद

सरकारी क्षेत्र

निजी क्षेत्र

कामकाज से राजस्व

4.24

6.79

शुल्क सबसिडी 

1.01

0.35

रेगुलेटरी आय

0.08

0.31

उदय के तहत राजस्व अनुदान

0.13

0.00

अन्य आय और राजस्व अनुदान

0.34

0.10

कुल

5.80

7.56

स्रोतबिजली इकाइयों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट 2020-21, बिजली वित्त निगमपीआरएस।

अगर नेटवर्क के स्वामित्व वाले डिस्कॉम आपूर्ति व्यवसाय में प्रतिस्पर्धा करेंगे तो इससे हितों का टकराव होगा

बिल में एक ऐसी स्थिति का प्रावधान भी है जब डिस्कॉम को बिजली आपूर्ति के लिए अपने नेटवर्क की जरूरत नहीं होगी। इस डिस्कॉम को कुछ शुल्क चुकाने पर दूसरे डिस्कॉम के नेटवर्क का एक्सेस दिया जाएगा। जिस डिस्कॉम के पास नेटवर्क का स्वामित्व होगा, वह आपूर्ति व्यवसाय में भाग लेना जारी रखेगा। इस प्रकार अगर नेटवर्क के स्वामित्व वाले डिस्कॉम को अपने नेटवर्क का एक्सेस देना पड़ेगा तो हितों का टकराव हो सकता है क्योंकि उसे आपूर्ति व्यवसाय का नुकसान हो सकता है। बिल रेगुलेटर को इस बात का अधिकार देता है कि अगर नेटवर्क का स्वामित्व रखने वाला डिस्कॉम दूसरे डिस्कॉम्स को एक्सेस न दे तो उस पर अर्थदंड लगाया जा सकता है। सवाल यह है कि क्या इस समस्या को हल करने का यह उचित तरीका है।   

रेगुलेटर्स के फोरम (2013) ने कहा था कि अगर बाजार संरचना में एक ही कंपनी वायर और आपूर्ति व्यवसाय संभालती है तो हितों का टकराव रीटेल आपूर्ति में प्रतिस्पर्धा शुरू करने की गुंजाइश सीमित करता है।9  उसने सुझाव दिया था कि रीटेल प्रतिस्पर्धा के लिए वायर और आपूर्ति की स्वामित्व अलग-अलग होना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि जब एक ही संस्था वायर की स्वामी होती है और आपूर्ति करती है तो वायर से प्राप्त होने वाले रिटर्न को आपूर्ति व्यवसाय में क्रॉस-सबसिडाइज किया जा सकता है, जिससे नेटवर्क में निवेश और परिणामस्वरूप कार्यकुशलता में सुधार बाधित होते हैं। इससे पहले के बिल्स (2014 का बिल और 2018 का ड्राफ्ट बिल) में इन समस्याओं को दूर करने के लिए वायर और आपूर्ति व्यवसाय को पूरी तरह अलग करने का प्रयास भी किया गया था।[13],[14]  वास्तव में, 2003 के एक्ट में इस क्षेत्र को उत्पादन, ट्रांसमिशन और वितरण के उपक्षेत्रों में बांटने के तमाम कारणों से एक कारण इस संभावित टकराव से बचना भी था।

बड़े उपभोक्ताओं के लिए ओपन एक्सेस के मामले में, यह गौर किया गया है कि डिस्कॉम्स ने परिचालनगत अवरोध पैदा किए हैं, जैसे: (i)  अपर्याप्त नेटवर्क क्षमता या भीड़ का हवाला देते हुए इनकार करना, (ii) लगातार ड्रॉअल के न्यूनतम घंटों, एडवांस्ड शेड्यूलिंग और पीक या ऑफ-पीक घंटों के दौरान बिजली की मात्रा पर कड़ी शर्तें, और (iii) नेटवर्क ब्रेकडाउन के मामले में रखरखाव के अनुरोधों में विलंब।रेगुलेटर्स क्रॉस-सबसिडी के स्तर के संरक्षण हेतु ओपन एक्सेस के लिए उच्च सरचार्ज लगाते हैं।[15] ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, ऐसी व्यवस्था में डिस्कॉम्स उच्च भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं को गंवा सकते हैं जिससे उनके राजस्व की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर होगा। ओपन एक्सेस से उपभोक्ता स्थानीय क्षेत्र में काम करने वाले डिस्कॉम के नेटवर्क का इस्तेमाल करके, उत्पादक से बिजली की सीधी आपूर्ति कर सकते हैं। 

क्या पीपीए की शेयरिंग की व्यवस्था को निर्धारित करने के लिए एसईआरसी को अधिकार देना उचित है

बिल निर्दिष्ट करता है कि मौजूदा डिस्कॉम के मौजूदा बिजली खरीद समझौते (पीपीए) को केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट नियमों और एसईआरसी द्वारा निर्दिष्ट व्यवस्थाओं के अनुसार नए लाइसेंसधारियों के साथ साझा किया जाएगा। एसईआरसी समय-समय पर ऐसी व्यवस्थाओं की समीक्षा कर सकता है। सवाल यह है कि क्या एसईआरसी को लाइसेंसधारी के प्रवेश या निकास और बाजार हिस्सेदारी में बदलाव जैसी बदलती बाजार स्थितियों के साथ पीपीए साझा करने की व्यवस्था निर्धारित करने का अधिकार देना उचित है।

मौजूदा पीपीए को बचाने के दो उद्देश्य हो सकते हैं: (i) उत्पादकों के पूर्वानुमान और स्थिरता, और (ii) डिस्कॉम को फंसे/अप्रयुक्त पीपीए के साथ नहीं छोड़ना जिसके लिए वह निश्चित लागत का भुगतान करने के लिए बाध्य है। हालांकि बिजली खरीद की संविदा आधारित व्यवस्था के नियमों और शर्तों पर बातचीत करने की निजी पक्षों की स्वतंत्रता पर बिल असर डाल सकता है। इस मुद्दे से निपटने के लिए 2014 और 2018 के ड्राफ्ट बिल में प्रावधान था कि सभी मौजूदा पीपीए को एक इंटरमीडिएट कंपनी में पूल कर दिया जाए जोकि उपभोक्ताओं की स्विचिंग के आधार पर रीटेल सप्लाई कंपनियों को बिजली का आबंटन करेगी।[16],[17],[18]

रेगुलेटरी आयोग

बिल सीईआरसी और एसईआरसी के सदस्यों के क्वालिफिकेशन तथा एसईआरसी की चयन समिति के संयोजन में संशोधन करता है। वह सदस्यों को हटाने के लिए कुछ अतिरिक्त आधारों को भी जोड़ता है। 

रेगुलेटरी आयोग के चेयरपर्सन का क्षेत्र में अनुभव होना जरूरी नहीं

बिल एक ऐसे परिदृश्य का प्रावधान करता है जिसमें किसी ऐसे व्यक्ति को सीईआरसी और एसईआरसी का चेयरपर्सन नियुक्त कर दिया जाए जिसके पास बिजली क्षेत्र का कोई अनुभव न हो। सवाल यह है कि क्या रेगुलेटरी आयोगों के चेयरपर्सन्स के लिए संबंधित क्षेत्र में किसी स्तर की विशेषज्ञता जरूरी होनी चाहिए जिन आयोगों से उस विषय के विशेषज्ञ के तौर पर काम करने की उम्मीद की जाती है। चेयरपर्सन के पास सीईआरसी और एसईआरसी के निर्णयों में कास्टिंग वोट होता है। इन आयोगों के मुख्य कार्यों में लाइसेंसिंग, शुल्क निर्धारण और तकनीकी एवं प्रदर्शन आधारित मानकों को निर्दिष्ट करना शामिल है। 

बिल के अनुसार, निम्नलिखित व्यक्ति सीईआरसी या एसईआरसी के चेयरपर्सन्स नियुक्त किए जा सकते हैं: (i) वितरण, ट्रांसमिशन या उत्पादन कंपनी के साथ काम करने वाले संगठन का प्रमुख या (ii) केंद्र सरकार या संबंधित राज्य सरकार का सेक्रेटरी। बिल में निर्दिष्ट है कि बिजली क्षेत्र में कम से कम दो वर्षों के अनुभव वाले उम्मीदारों को वरीयता दी जाएगी। इस प्रकार क्षेत्र में अनुभव का एक न्यूनतम स्तर होना अनिवार्य नहीं है। इसके विपरीत सेबी एक्ट, 1992 में निर्दिष्ट किया गया है कि सेबी का चेयरपर्सन: (i) सिक्योरिटी बाजार से संबंधित समस्याओं से निपटने में क्षमतावान होना चाहिएया (ii) उसे कानूनवित्तअर्थशास्त्रअकाउंटेंसी या प्रशासन का विशेष ज्ञान या अनुभव होना चाहिए, जो केंद्र सरकार की राय में बोर्ड के लिए उपयोगी होगा।[19]  इसी प्रकार ट्राई एक्ट, 1997 में यह अपेक्षित है कि चेयरपर्सन के पास टेलीकॉम, उद्योग, वित्त, एकाउंटेंसी, कानून, प्रबंधन या उपभोक्ता मामलों में विशेष ज्ञान और पेशेवर अनुभव हो।[20]  इन कानूनों में पद के लिहाज से क्वालिफिकेशन निर्दिष्ट नहीं है, बल्कि उस विषय से संबंधित विशेषज्ञता निर्दिष्ट की गई है।   

राज्य स्तर पर रेगुलेटर को चुनने के लिए केंद्र सरकार के नामित व्यक्ति की जरूरत क्यों है, यह स्पष्ट नहीं है

एक्ट के अंतर्गत एसईआरसी में नियुक्तियों पर सुझाव देने के लिए चयन समिति में निम्नलिखित सदस्य होंगे: (i) राज्य सरकार का चीफ सेक्रेटरी, (ii) उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, औऱ (iii) सीईआरसी या सीईए का चेयरपर्सन। बिल सीईआरसी/सीईए के चेयरपर्सन की जगह केंद्र सरकार के नामित व्यक्ति को नियुक्त करता है जो एडिशनल सेक्रेटरी या उससे उच्च पद का अधिकारी होगा। यहां केंद्र सरकार के प्रतिनिधि की जरूरत पर सवाल उठता है। 

बिजली एक्ट, 2003 के अंतर्गत राज्य के अंदरूनी मामलों पर एसईआरसी का स्वतंत्र क्षेत्राधिकार है। जबकि सीईए या सीईआरसी के चेयरपर्सन के पास विषय संबंधी विशेषज्ञता हो सकती है, केंद्र सरकार के प्रतिनिधि की नियुक्ति का उद्देश्य स्पष्ट नहीं है। प्रस्तावित संशोधन ऐसी स्थिति पैदा कर सकते हैं जब रेगुलेटर के सदस्यों को नियुक्त करने के लिए चयन समिति में कोई विशेषज्ञ न हो। वह रेगुलेटर, जिससे विशेषज्ञ निकाय के तौर पर काम करने की उम्मीद की जाती है। 

सदस्यों को हटाने वाले अतिरिक्त क्लॉज इस्तेमाल करने लायक नहीं हो सकते हैं

बिल में प्रावधान है कि एसईआरसी या सीईआरसी के सदस्यों को हटाया जा सकता है, अगर सदस्य ने: (i) एक्ट के प्रावधानों का जानबूझकर उल्लंघन किया है या उन्हें अनदेखा किया है, या (ii) खुद को या आयोग को सौंपे गए एक या एक से अधिक कामों को करने में घोर लापरवाही की है। एक्ट में प्रावधान है कि आयोग में उपस्थित और वोटिंग करने वाले सदस्यों के बहुमत से फैसले लिए जाएंगे।[21]  इस प्रकार यह माना जा सकता है कि आयोगों की कार्रवाई सामूहिक है। इससे यह सवाल उठता है कि उपरोक्त आधार पर किसी एक सदस्य को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

ड्राफ्टिंग की समस्या 

केंद्र सरकार की नियम बनाने की शक्तियां निर्दिष्ट नहीं हैं

एक ही क्षेत्र में कई डिस्कॉम से संबंधित विभिन्न प्रावधानों मेंबिल कहता है कि प्रावधान "इस एक्ट के प्रावधानों और केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार" लागू होंगे। हालांकि कुछ मामलों में एक्ट में न तो निर्दिष्ट नियम बनाने की शक्ति का उल्लेख है, न ही बिल इसके लिए प्रावधान करता है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सेक्शन 42, जो वितरण लाइसेंसी के कर्तव्यों और ओपन एक्सेस से संबंधित है, (ii) सेक्शन 60 और 60ए जोकि बाजार प्रभुत्वपीपीए के प्रबंधन और क्रॉस-सब्सिडी बैलेंसिंग फंड से संबंधित हैऔर (iv) सेक्शन 62, जो रीटेल शुल्क निर्धारण से संबंधित है। 

 

[3]Report on Performance of Power Utilities 2020-21, Power Finance Corporation, September 2022.

[4]The Electricity (Amendment) Bill, 2014, as introduced in Lok Sabha.

[5]4th Report: The Electricity (Amendment) Bill, 2014, Standing Committee on Energy, May 2015. 

[6]Draft Amendments to the Electricity Act, 2003, Ministry of Power, September 2018.

[7]The Draft Electricity (Amendment) Bill, 2020, Ministry of Power, June 2020.

[8]The Electricity (Amendment) Bill, 2022 as introduced in Lok Sabha. 

[9]. “Introducing Competition in Retail Electricity Supply in India”, Forum of Regulators, July 2013. 

[11]Appeal No 246 of 2012, Tata Power Company Limited vs Maharashtra Electricity Regulatory Commission, Appellate Tribunal for Electricity, November 28, 2014. 

[12]Turning Around the Power Distribution Sector, NITI Aayog, August 2021. 

[13]. Clause 9, The Electricity (Amendment) Bill, 2014 as introduced in Lok Sabha, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2014/Electricity_(A)_bill,_2014.pdf

[14]. Amendment to Section 14, Draft Amendments to the Electricity Act, 2003, Ministry of Power, September 2018, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/1970/Draft%20Electricity%20Bill%202018.pdf

[15]. 26th Report: Review of Power Tariff Policy, Standing Committee on Energy, August 2022, http://164.100.47.193/lsscommittee/Energy/17_Energy_26.pdf

[17]. Clause 2 (xvi), Clause 30, Clause 55, The Electricity (Amendment) Bill, 2014.

[18]. Amendments to Section 62, Section 131, Draft Amendments to the Electricity Act, 2003, Ministry of Power, September 2018.

[21]. Section 92 (3), The Electricity Act, 2003.

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