विधेयक की मुख्य विशेषताएँ
- यह विधेयक भारतीय नागरिकों को विशेष पहचान संख्याएँ (जिसे ‘आधार’ कहते है) जारी करने के लिए भारत का राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण (एनआईएआई) स्थापित करता है।
- भारत में रह रहे प्रत्येक व्यक्ति को सम्बंधित भौगोलिक एवं बायोमीट्रिक जानकारी जमा करवाने के बाद एक आधार संख्या प्राप्त करने का अधिकार है। वंश, धर्म, जाति, भाषा, आय अथवा स्वास्थ्य से सम्बंधित कोई जानकारी एकत्रित नहीं की जाएगी।
- एकत्रित जानकारी को केंद्रीय पहचान डेटा रिपोजिटरी में संग्रहित किया जाएगा। इसका उपयोग प्रमाणीकरण सेवाओं को प्रदान करने के लिए किया जाएगा।
- संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के ओहदे वाले अधिकृत अधिकारी द्वारा निर्देश दिए जाने पर सिवाय नागरिक की सहमति; न्यायालय के आदेश; अथवा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए, डेटा साझा करना मना है।
- इस विधेयक द्वारा पहचान समीक्षा समिति की स्थापना भी की गई है जो आधार संख्याओं के उपयोग के पैटर्न पर निगरानी रखेगी।
प्रमुख मुद्दे एवं विश्लेषण
- इस विधेयक में किसी व्यक्ति के लिए एनआईएआई में नामांकन अनिवार्य नहीं है। हालाँकि, यह किसी सेवा प्रदाता को सेवाओं का लाभ उठाने के लिए एक अनिवार्य ज़रूरत के रूप में आधार मांगने से रोकता भी नहीं है।
- एनआईएआई द्वारा एकत्रित जानकारी आधार धारकों की पूर्व लिखित सहमति के साथ सार्वजनिक लाभ एवं सेवा प्रदान करने वाली एजेंसियों से साझा की जा सकती है। इस जानकारी के दुरूपयोग को रोकने के लिए किए गए सुरक्षा उपाय अपर्याप्त हो सकते हैं।
- इस विधेयक में एनआईएआई के लिए अधिकृत अधिकारी द्वारा निर्देश दिए जाने की स्थिति में, राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में पहचान की जानकारी प्रकट करना अनिवार्य है। प्राइवसी के संरक्षण के लिए सुरक्षा उपाय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा टेलीफोन टैपिंग पर दिए गए दिशानिर्देशों से भिन्न हैं।
- इस विधेयक में कहा गया है कि कोई भी न्यायालय एनआईएआई द्वारा शिकायत किये जाने के सिवाय, किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा। एनआईएआई के किसी सदस्य द्वारा किये गए अपराध की स्थिति में हित का टकराव हो सकता है।
- रिकॉर्ड की जाने वाली भौगोलिक एवं बायोमीट्रिक जानकारी के विवरण को रेग्युलेशन के ऊपर छोड़ दिया गया है। यह एनआईएआई को संसद से पूर्व अनुमति के बिना अतिरिक्त जानकारी एकत्र करने का अधिकार देता है।
भाग अ: विधेयक की मुख्य विशेषताएँ
संदर्भ
वर्तमान में, केन्द्र एवं राज्य सरकारें भारत में विशेष उद्देश्यों के लिए भिन्न पहचान दस्तावेज़ जारी करती हैं। इन दस्तावेज़ों को व्यक्तियों (पासपोर्ट, वोटर कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस), अथवा घरों के लिए (राशन कार्ड, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना कार्ड) जारी किया जा सकता है।[1]
अप्रैल 2000 में, राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली की समीक्षा एवं कारगिल समीक्षा समिति के सुझावों पर विचार करने के लिए मंत्रियों के समूह को स्थापित किया गया। 2001 में सौंपी गई, “राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में सुधार” पर रिपोर्ट में सुझाव दिया कि सीमांत जिलों से आरंभ करते हुए, एक बहु-उद्देशीय राष्ट्रीय पहचान कार्ड (एमएनआईसी) जारी किया जाना चाहिये।[2] उसका उद्देश्य भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करना था।[3] 2003 में, केन्द्रीय सरकार को प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य रूप से रजिस्टर करने एवं उन्हें पहचान कार्ड जारी करने[4] की अनुमति देने के लिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया। मार्च 2006 में, सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा “गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए विशेष आईडी” नामक एक अन्य योजना की स्वीकृति प्रदान की गई। इन दोनों योजनाओं को आपस में मिलाने का निर्णय लिया गया जिसके लिए दिसंबर 2006 में मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) (श्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में) की स्थापना की गई।[5]
नवंबर 2008 में, ईजीओएम ने कुछ निश्चित निर्णयों की स्वीकृति प्रदान की: (i) प्रारंभ में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) को एक कार्यकारी ऑथोरिटी के रूप में अधिसूचित किया जाएगा (बाद में वैधानिक ऑथोरिटी का गठन किया जाएगा); (ii) मतदाता सूचियों से एक आरंभिक डेटाबेस तैयार किया जाएगा; (iii) यूआईडीएआई स्वयं निर्णय लेगी कि डेटाबेस का निर्माण कैसे किया जाए; एवं (iv) योजना आयोग पांच वर्ष के लिए इसे समर्थन देगा।[6] 28 जनवरी, 2009 को योजना आयोग द्वारा यूआईडीएआई की अधिसूचना दी गई एवं श्री नंदन नीलकानी को चेयरमैन के रूप में नियुक्त किया गया।5
इस विधेयक द्वारा राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण (पहले यूआईडीएआई) को वैधानिक ऑथोरिटी के रूप में स्थापित करने एवं उसके कार्यों को निर्दिष्ट करने का प्रयास किया गया है। यह भारत के प्रत्येक नागरिक को एक विशिष्ट पहचान संख्या प्राप्त करने का अधिकार भी देता है।
मुख्य विशेषताएँ
- भारत का राष्ट्रीय पहचान प्राधिकरण (एनआईएआई) भारत के नागरिकों एवं किसी भी अन्य श्रेणी के लोगों के लिए जिन्हें निर्दिष्ट किया जा सकता हो, विशिष्ट पहचान संख्याएँ (‘आधार’ संख्याएँ) जारी करेगा। एनआईएआई में एक चेयरपर्सन एवं दो अंशकालिक सदस्य होंगे।
आधार संख्याएँ
- भारत के प्रत्येक निवासी को (नागरिकता को देखे बिना) भौगोलिक एवं बायोमीट्रिक जानकारी जमा करने के पश्चात एक आधार संख्या प्राप्त करने का अधिकार होगा। भौगोलिक जानकारी में नाम, आयु, लिंग एवं पते जैसे विषय शामिल होंगे। बायोमीट्रिक जानकारी में व्यक्ति की कुछ जैविक विशेषताएँ शामिल होंगी। वंश, धर्म, जाति, भाषा, आय अथवा स्वास्थ्य से सम्बंधित जानकारी का एकत्रण विशेष रूप से निषिद्ध है।
- व्यक्ति द्वारा प्रदान की गई जानकारी की पुष्टि के पश्चात आधार संख्या जारी की जाएगी। प्रमाणीकरण के अधीन रहते हुए, यह पहचान के प्रमाण के रूप में कार्य करेगी। हालाँकि, इसे नागरिकता अथवा डोमिसाइल के प्रमाण के रूप में समझा नहीं जाना चाहिए। आधार संख्या धारक को उसकी बायोमीट्रिक एवं भौगोलिक जानकारी अपडेट करने की ज़रूरत हो सकती है।
- आधार संख्या क्रम रहित संख्या होगी एवं वह किसी व्यक्ति की कोई जानकारी धारण नहीं करेगी। एक व्यक्ति को जारी की गई वह आधार संख्या किसी अन्य व्यक्ति को दोबारा जारी नहीं की जाएगी।
आधार संख्याओं को जारी करने एवं प्रमाणीकरण की प्रक्रिया
- इस प्रक्रिया में तीन मुख्य चरण होते हैं। पहला, प्रत्येक व्यक्ति के लिए जानकारी एकत्रित एवं सत्यापित की जायेगी जिसके पश्चात एक आधार संख्या का आवंटन किया जाएगा। दूसरा, एकत्रित जानकारी को केन्द्रीय पहचान डेटा रिपोजिटरी नामक डेटाबेस में संग्रहित किया जाएगा। अंत में, इस रिपोजिटरी का उपयोग प्रमाणीकरण सेवाओं को प्रदान करने के लिए किया जाएगा।
- एनआईएआई आधार संख्याओं को जारी करने के उद्देश्य हेतु भौगोलिक एवं बायोमीट्रिक जानकारी एकत्र करने के लिए रजिस्ट्रारों एवं नामांकन एजेंसियों की नियुक्ति करेगी। कुछ निश्चित समूहों जैसे कि महिलाओं, बच्चों, प्रवासी श्रमिकों एवं बिना स्थायी पते वाले अन्य व्यक्तियों को आधार संख्या जारी करते समय विशेष उपाय किये जाएँगे।
- सेवा प्रदाता (जैसे कि बैंक, फेयरप्राइस शॉप आदि) पहचान के प्रमाण के रूप में ग्राहक से उसकी आधार संख्या एवं बायोमीट्रिक्स प्रदान करने के लिए कह सकते हैं। वह सेवा प्रदाता इस जानकारी को ऑनलाइन प्रमाणीकरण के लिए इलेक्ट्रॉनिक चैनल के माध्यम द्वारा एनआईएआई को जमा कराएगा। प्रदान की गई जानकारी की सत्यता के पुष्टिकरण के पश्चात, एनआईएआई, सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रतिक्रिया के साथ किसी प्रकार की भौगोलिक अथवा बायोमीट्रिक जानकारी दिए बिना प्रश्न का उत्तर देगा।
- एनआईएआई निवासियों, रजिस्ट्रारों, नामांकन एजेंसियों एवं सेवा प्रदाताओं की शिकायतों के निवारण के लिए शिकायत निवारण तंत्र का गठन करेगा।
जानकारी का प्रकटन
- एनआईएआई जानकारी की सुरक्षा एवं गोपनीयता का उत्तरदायी होगा। जानकारी की हानि अथवा अनधिकृत प्रयोग के विरुद्ध सुरक्षा के लिए उसे उपाय करने की ज़रूरत है।
- एनआईएआई अथवा अन्य कोई एजेंसी जो केन्द्रीय पहचान डेटा रिपोजिटरी को रखती हो उसके लिए उस रिपोजिटरी में संग्रहित किसी जानकारी को प्रकट करने की मनाही है।
- इस नियम के चार अपवाद हैं। पहला, आधार संख्या धारक एनआईएआई को उसकी स्वयं की पहचान की जानकारी प्रदान करने हेतु अनुरोध कर सकता है। वह अपनी आधार संख्या के प्रमाणीकरण के अनुरोध पर जानकारी के लिए भी पूछ सकता है। दूसरा, एनआईएआई आधार संख्या धारकों की लिखित सहमति के आधार पर, सार्वजनिक लाभ एवं सेवाएं प्रदान करने वाली एजेंसियों के साथ उनकी जानकारी को साझा कर सकता है। तीसरा, एनआईएआई न्यायालय के आदेशानुसार जानकारी प्रकट कर सकता है। अंत में, केन्द्रीय सरकार में संयुक्त सचिव अथवा उससे ऊपर के ओहदे वाले अधिकृत अधिकारी द्वारा निर्देश दिए जाने की स्थिति में, राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में जानकारी प्रकट की जा सकती है।
पहचान समीक्षा समिति
- केंद्रीय सरकार देश भर में आधार संख्याओं के उपयोग की सीमा एवं पैटर्न के विश्लेषण के लिए एक पहचान समीक्षा समिति का गठन कर सकती है। वह समिति वार्षिक रूप से एक रिपोर्ट तैयार करेगी एवं केन्द्रीय सरकार को अपने सुझाव देगी। उस रिपोर्ट को संसद के सामने पेश किया जाएगा।
- वह समिति एक चेयरपर्सन एवं दो सदस्यों से युक्त होगी जिनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री एवं लोक सभा में विपक्ष के नेता की सलाह पर की जाएगी।
अपराध एवं दंड
- इस विधेयक में जानकारी का अनाधिकृत एकत्रण, प्रतिरूपण, बायोमीट्रिक जानकारी से छेड़छाड़, एवं अनाधिकृत प्रयोग अथवा डेटा रिपोजिटरी को क्षति जैसे कई अपराधों को सूचीबद्ध किया है। इसके लिए तीन वर्ष के कारावास एवं 10,000 रुपये जुर्माने (प्रतिरूपण के लिए) से 1 करोड़ रुपये जुर्माने (डेटा रिपोजिटरी के अनाधिकृत प्रयोग के लिए) तक का दंड होता है। दंड की व्यवस्था भारत से बाहर किये गए जुर्म के लिए भी है।
- इस विधेयक में कहा गया है कि कोई भी न्यायलय एनआईएआई द्वारा की गई शिकायत के सिवाय किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेंगे।
भाग ब: प्रमुख मुद्दे एवं विश्लेषण
इस विधेयक का लक्ष्य भारत के निवासियों को विशिष्ट पहचान संख्या जारी करना एवं व्यक्तियों को पहचानने की विश्वसनीय विधि प्रदान करना है। यूआईडीएआई स्ट्रेटजी ओवरव्यू[7] में कहा गया है कि पहचान लाभ एवं सेवाओं के उपयोग में सुविधा प्रदान करेगी, विशेषकर असुरक्षित समूह जैसे कि बेघर लोग, प्रवासी श्रमिक आदि। बायोमीट्रिक आधारित पहचान जारी करने से पहचान में धोखाधड़ी एवं किसी और के लिए (घोस्ट) लाभ लेने वालों की समस्याओं में कमी की आने की है।
हालाँकि, कोई भी डेटाबेस जिसमें कि व्यक्तिगत जानकारी संग्रहित की जाती है उसका विभिन्न एजेंसियों (सार्वजनिक एवं निजी दोनों) द्वारा दुरुपयोग होने का खतरा होता है, जिससे एक व्यक्ति की प्राइवसी प्रभावित हो सकती है। यूके नेशनल आइडेंटिटी कार्ड योजना को 2011 में बंद कर दिया गया था। उस योजना को बंद करने के लिए योजना के कार्यान्वयन की लागत एवं नागरिक अधिकारों का उल्लंघन जैसे कुछ मुख्य कारणों का हवाला दिया गया था।[8] 2005 में यूएस द्वारा पारित रियल आईडी एक्ट का विरोध कई राज्यों द्वारा प्राइवसी एवं डेटा की सुरक्षा को खतरे के आधार पर किया जा रहा है।[9]
नीचे हम सुरक्षा के उन उपायों की चर्चा करेंगे जो इस विधेयक में आधार धारकों को उनकी प्राइवसी पर आक्रमण से बचाने के लिए बनाए गए हैं।
नामांकन – स्वैछिक अथवा अनिवार्य
इस विधेयक में एक व्यक्ति के लिए आधार संख्या प्राप्त करना अनिवार्य नहीं है। हालाँकि, यह किसी सेवा प्रदाता को सेवाओं का उपयोग करने के लिए अनिवार्य ज़रूरत के रूप में आधार संख्या निर्धारित करने से भी नहीं रोकता है। यह यूएस से भिन्न है जहाँ सरकारी एजेंसियां उन व्यक्तियों को लाभ से वंचित नहीं रख सकती हैं जिनके पास अपना सोशल सेक्युरिटी नंबर नहीं हो अथवा जो उसे प्रकट करने से इंकार कर दें, जबतक कि कानून द्वारा विशेष रूप से आवश्यक नहीं हो।[10]
हालाँकि, यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि ‘घोस्ट’ लाभार्थियों (सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे कार्यक्रमों में) को हटाने में आधार की सफलता अनिवार्य नामांकन पर निर्भर करती है। यदि नामांकन अनिवार्य नहीं हो, तब दोनों प्रमाणीकरण प्रणालियों (पहचान कार्ड आधारित एवं आधार आधारित) को एकसाथ रहना होगा। ऐसे परिदृश्य में, ‘घोस्ट’ लाभार्थी एवं एक से अधिक कार्ड वाले लोग आधार प्रणाली से बाहर रहने का विकल्प लेंगे।
जानकारी की गोपनीयता एवं प्राइवसी को कायम रखने के लिए सुरक्षा उपाय
यदि प्राइवसी को कायम रखने के उपाय अपर्याप्त हों तो एकत्रित जानकारी का दुरुपयोग हो सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार[11] के अंश के रूप में प्राइवसी को शामिल किया है। भारत में प्राइवसी से सम्बंधित मामलों के संचालन के लिए विशेष कानून नहीं हैं। सरकार ने एक उपयुक्त क़ानून के मसौदे के लिए एक समिति का गठन किया है।[12]
यहाँ हम जाँच कर रहे हैं यदि इस विधेयक में सुरक्षा के पर्याप्त उपाय शामिल हैं यदि जानकारी को (क) सार्वजनिक लाभ एवं सेवाओं के वितरण में शामिल एजेंसियों के साथ साझा किया जाए; (ख) ख़ुफ़िया अथवा कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए प्रकट की जाए; एवं (ग) डेटा माइनिंग के माध्यम से व्यवहार के पैटर्न की पहचान के लिए उपयोग जाए।
सार्वजनिक लाभ एवं सेवाओं के वितरण में शामिल एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करना
यह विधेयक एनआईएआई को आधार संख्या धारक की लिखित अनुमति के आधार पर, सार्वजनिक लाभ एवं सार्वजनिक सेवाओं के वितरण में शामिल एजेंसियों के साथ जानकारी साझा करने की अनुमति देता है। हालाँकि, इसमें यह नहीं बताया गया है यदि सहमति एक अथवा व्यक्ति द्वारा नई सेवा का उपयोग करने की प्रत्येक घटना पर ली जाएगी। केवल एक बार सहमति लेने से दुरुपयोग हो सकता है एवं इसका प्रभाव व्यक्ति की प्राइवसी पर पड़ सकता है।
ख़ुफ़िया अथवा कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए जानकारी का प्रकटन
इस विधेयक में एनआईएआई द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में जानकारी (व्यक्तियों की पहचान की जानकारी सहित) का प्रकटन अनिवार्य है। ऐसा केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव या उसके ऊपर के ओहदे वाले एक अधिकृत अधिकारी के निर्देश पर किया जाएगा।
1996 में, सर्वोच्च न्यायालय ने राय दी कि राज्य “किसी सार्वजनिक इमरजेंसी की घटना अथवा सार्वजनिक सुरक्षा के हित में केवल” टेलीफ़ोन टैप कर सकता है यदि (क) ऐसा करने का अधिकार केन्द्र अथवा राज्य सरकार के गृह सचिव द्वारा दिया जाए; एवं (ख) ऐसा अधिकतम छः महीने की अवधि के लिए किया जा सकता है। टेलीफ़ोन टैपिंग के प्रत्येक आदेश की जाँच जारी करने की तिथि से दो माह की अवधि के भीतर एक अलग समीक्षा समिति द्वारा भी की जाएगी।[13]
इस विधेयक में प्राइवसी के संरक्षण के लिए सुरक्षा उपाय फोन टैपिंग के लिए तय उपायों से भिन्न हैं। पहला, यह विधेयक सार्वजनिक इमरजेंसी अथवा सार्वजनिक सुरक्षा के बजाय ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के हित में साझा करने की अनुमति देता है। दूसरा, इस आदेश को संयुक्त सचिव के ओहदे वाले अधिकारी द्वारा जारी किया जा सकता है। तीसरा, प्रमाणीकरण डेटा एकत्र करने के लिए समय अवधि की कोई सीमा नहीं है। चौथा, समीक्षा के लिए कोई तंत्र नहीं है।
व्यक्तियों को प्रोफाइल करने की सम्भावना
यह विधेयक ख़ुफ़िया एजेंसियों को व्यव्हार के पैटर्न की पहचान के मामले में विभिन्न डेटासेट्स (जैसे कि टेलीफ़ोन रिकॉर्ड, हवाई यात्रा के रिकॉर्ड आदि) में कंप्यूटर प्रोग्राम चलाते समय लिंक(कुंजी) के रूप में यूआईडी के उपयोग से विशेषकर नहीं रोकता है। पैटर्न की पहचान के लिए ऐसी तकनीकों का उपयोग संभावित अवैध गतिविधियों का पता लगाने जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए लिया जा सकता है।[14] हालाँकि, इसके कारण उन व्यक्तियों का उत्पीड़न भी हो सकता है जिन्हें संभावित खतरे के रूप में गलत रूप से पहचाना जाए।[15] दुरूपयोग के खिलाफ़ सुरक्षा उपाय के रूप में, यूएस ने एक कानून पेश किया (परंतु पारित नहीं किया) जिसमें डेटा माइनिंग के कार्य में लगी हुई प्रत्येक एजेंसी को ऐसी सभी गतिविधियों पर कांग्रेस को एक वार्षिक रिपोर्ट सौंपना आवश्यक था।[16]
जानकारी की हानि अथवा अनधिकृत प्रकटन के लिए मुआवज़ा
इस विधेयक में आधार का उपयोग करने से सम्बंधित जानकारी रखने वाले सभी लोगों को उसे सुरक्षित एवं गोपनीय रखना अनिवार्य है। इसमें जानकारी के अनधिकृत उपयोग अथवा जानबूझकर प्रकटन के लिए दंड निर्धारित हैं। हालाँकि, इसमें किसी भी लापरवाही के लिए कोई दंड नहीं है जो जानकारी की हानि का कारण बन सकती है। साथ ही, इसमें किसी व्यक्ति की निजी जानकारी के दुरूपयोग के मामले में मुआवज़े का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। यह सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 से भिन्न है, जिसमें कहा गया है कि ‘संवेदनशील निजी डेटा’ के संदर्भ में यदि कोई कंपनी ‘उचित सुरक्षा अभ्यासों एवं पद्धतियों के कार्यान्वयन एवं उन्हें कायम रखने में लापरवाह हो’ उस डेटा को सँभालने वाली कंपनी रु5 करोड़ तक के मुआवज़े के भुगतान के लिए उत्तरदायी होगी।
हितों में टकराव
इस विधेयक में कहा गया है कि, एनआईएआई द्वारा शिकायत किये जाने के सिवाय, कोई भी न्यायालय उस अधिनियम के तहत दंडनीय किसी अपराध का संज्ञान नहीं लेगा। ऐसे प्रावधान को सामान्यतः यह सुनिश्चित करने के लिए शामिल किया जाता है कि नियामक निकाय आपराधिक आरोप दायर करने से पहले सभी शिकायतों को जान ले।
हालाँकि, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड अथवा भारतीय रिज़र्व बैंक जैसे नियामकों के विपरीत, एनआईएआई की भूमिका कार्यान्वयन करने की भी होती है एवं उसके सदस्यों एवं कर्मचारियों का कर्तव्य डेटा की सुरक्षा होता है। ऐसे में यदि एनआईएआई के एक कर्मचारी द्वारा अपराध हो जाए तो इसके कारण हित के टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है।
प्रत्यायोजित कानून के तहत विवेकाधीन अधिकार
रिकॉर्ड की जाने वाली भौगोलिक एवं बायोमीट्रिक जानकारी का रेग्युलेशन
भौगोलिक जानकारी: इस विधेयक में एनआईएआई को उस भौगोलिक जानकारी को बताने का अधिकार देता है जिसे रिकॉर्ड किया गया हो। एनआईएआई पर केवल एक प्रतिबंध लगाया गया है कि वह व्यक्ति के वंश, धर्म, जाति, भाषा, आय अथवा स्वास्थ्य से सम्बंधित जानकारी को रिकॉर्ड नहीं करेगा। इस परिभाषा को ध्यान में रखते हुए रेग्युलेशन, एनआईएआई को संसद से बिना किसी पूर्व अनुमति, अतिरिक्त व्यक्तिगत जानकारी एकत्रित करने का अधिकार प्रदान करता है।
यहाँ उल्लेख किया जा सकता है कि वर्तमान में उपयोग में आ रहे नामांकन फॉर्म में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) रसीद संख्या, मोबाइल नंबर, बैंक खता संख्या आदि जैसी जानकारियों को एकत्रित करने के लिए फील्ड्स हैं।[17] हालाँकि ऐसे फील्ड्स पर ‘वैकल्पिक’ का लेबल लगा हुआ है, यह अस्पष्ट है कि क्यों इस अतिरिक्त जानकारी को रिकॉर्ड किया जा रहा है।
बायोमीट्रिक जानकारी: बायोमीट्रिक जानकारी की परिभाषा को रेग्युलेशन में बताया गया है। वर्तमान में, यूआईडीएआई प्रत्येक निवासी की बायोमीट्रिक जानकारी के रूप में 10 अंगुलियों के निशान, आइरिस स्कैन एवं फोटोग्राफ ले रहा है।[18] हालाँकि, यह विधेयक अन्य बायोमीट्रिक जानकारी जैसे कि डीएनए को एकत्रित करने का प्रतिबंध नहीं लगता है।
प्रमाणीकरण जानकारी का संग्रहण
एनआईएआई को प्रमाणीकरण के लिए प्रत्येक अनुरोध एवं उसके बारे में प्रतिक्रिया की जानकारियों को कायम रखने की ज़रूरत है। इस विधेयक में एनआईएआई द्वारा प्रमाणीकरण डेटा को संग्रहित करने की अधिकतम अवधि के बारे में नहीं बताया गया है। इसे रेग्युलेशन के ऊपर छोड़ दिया गया है। प्रमाणीकरण डेटा एक आधार संख्या धारक के उपयोग के पैटर्न की पूरी पहचान प्रदान करता है। लंबी अवधि के दौरान रिकॉर्ड किये गए डेटा का दुरुपयोग एक व्यक्ति के व्यव्हार की प्रोफाइलिंग जैसी गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।
भिन्न धाराओं की अधिसूचना के लिए भिन्न तिथियाँ
इस विधेयक की कुछ धाराएँ एनआईएआई को डेटा एकत्र करने एवं उसे कायम रखने का अधिकार प्रदान करती हैं। कुछ अन्य धाराएँ दुरुपयोग के खिलाफ़ सुरक्षा के उपाय प्रदान करती हैं। इस विधेयक में एक व्यापक प्रावधान है जो कि केन्द्र सरकार को भिन्न तिथियों पर भिन्न धाराओं की अधिसूचना देने की अनुमति देता है।
परिशिष्ट 1: यूआईडी के संभावित अनुप्रयोग
नीचे हम लाभ एवं सेवा हेतु सुविधाओं के उपयोग में आधार संख्या के कुछ संभावित अनुप्रयोग बता रहे हैं।
तालिका 1: यूआईडी के संभावित लाभ
अनुप्रयोग |
संभावित लाभ |
टिप्पणियां |
पहचान का प्रमाण |
आधार संख्या प्रवासियों, बेघर लोगों आदि सहित प्रत्येक निवासी के लिए पहचान का प्रमाण प्रदान करती है। वह संख्या प्रत्येक व्यक्ति के लिए विशिष्ट है एवं व्यक्ति की बायोमीट्रिक जानकारी उससे जुड़ी हुई होती है। इससे विभिन्न सेवाओं के प्रयोग की सुविधा हो सकती है, जिनके लिए पहचान के प्रमाण की ज़रूरत होती है। |
वर्तमान में, पहचान के प्रमाण के रूप में पैन कार्ड, वोटर कार्ड, राशन कार्ड आदि के रूप में विभिन्न पहचान कार्ड स्वीकार किये जाते हैं। लगभग 82% व्यस्क जनसंख्या के पास वोटर कार्ड है, 74% जनसंख्या के पास राशन कार्ड है एवं 38% जनसंख्या के पास राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना कार्ड है। |
सार्वजनिक वितरण प्रणाली |
आधार संख्या डुप्लिकेट कार्ड एवं अस्तित्वहीन व्यक्तियों (सभी कार्ड्स का अनुमानित लगभग 17%) के लिए कार्ड को समाप्त कर सकती है। यह सुनिश्चित कर के कि माल का वितरण बायोमीट्रिक्स के सत्यापन के पश्चात किया जाएगा इससे फेयर प्राइस शॉप्स की ओर लोगों का झुकाव भी कम हो पाएगा। |
यूआईडी द्वारा गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों (बीपीएल) को लक्ष्य बना कर त्रुटियों का संबोधन नहीं किया जा सकता है। कुछ अनुमान बताते हैं कि लगभग 61% योग्य जनसंख्या बीपीएल सूची से बाहर है जबकि 25% गैर-गरीब घर बीपीएल सूची में शामिल हैं। |
वित्तीय समावेशन |
आरबीआई ने बैंक खाता खोलने के लिए आधार को पहचान का पर्याप्त प्रमाण घोषित किया है। यह दूरस्थ इलाकों में व्यवसाय संवादाताओं के साथ प्रमाणीकरण की सुविधा भी दे सकती है। |
वर्तमान में, 41% व्यस्क जनसंख्या के पास बैंक खाता नहीं है। |
राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 |
नरेगा के डुप्लिकेट एवं नकली लाभार्थियों की पहचान करना संभव होगा। |
यूआईडी नरेगा की अन्य समस्याओं को संबोधित नहीं कर सकता है जैसे कि कार्य का गलत माप, भुगतान में देरी आदि। |
Sources: “Envisioning a role for Aadhaar in the Public Distribution System,” Working Paper, UIDAI, 2010; Performance Evaluation of Targeted Public Distribution System, Planning Commission, March 2005; “Management of Food Grains,” 73rd Report of the Public Accounts Committee, 2007-08, “Report of the Expert Group to Advise the Ministry of Rural Development on the Methodology for Conducting the Below Poverty Line Census for the 11th Five Year Plan,” Chairperson: Shri N.C. Saxena, August 2009; Discussion Paper on Aadhaar based Financial Inclusion, Report of the Working Group to Review the Business Correspondent Model, RBI, August 2009, Know Your Customer Guidelines, RBI, 2004; UID and NREGA, Working Paper; Lok Sabha Unstarred Question No. 2357, Dec 3, 2009; Lok Sabha Unstarred Question no. 4135 Answered on Dec 15, 2009; Public Distribution System and Other Sources of Household Consumption, 2004-05, NSSO Report (see http://mospi.nic.in/press_note_510-Final.htm), Lok Sabha Unstarred Question no. 2838 Answered on March 14, 2011. |
नोट्स
[1]. वित्त क्षेत्र में सुधारों पर समिति की रिपोर्ट, योजना आयोग, भारत सरकार, 2009
[2]. “राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में सुधार पर “मंत्रियों के समूह” की रिपोर्ट,” प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो, 23 मई, 2001
[3]. “एमएचए की संसदीय सलाहकार समिति बहु-उद्देशीय राष्ट्रीय पहचान कार्ड परियोजना की चर्चा करती है,” प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो, 21 अगस्त, 2003
[4]. नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2003 का अनुभाग 12
[5]. भारतीय पहचान प्राधिकरण, योजना आयोग, भारत सरकार (http://uidai.gov.in देखें)
[6]. “सरकार सभी निवासियों के लिए विशिष्ट पहचान (यूआईडी) संख्या जारी करने की स्वीकृति देती है,” पीआईबी, 10 नवंबर, 2008
[7]. “यूआईडीएआई स्ट्रेटजी ओवरव्यू”, यूआईडीएआई, योजना आयोग, भारत सरकार, अप्रैल 2010
[8]. आइडेंटिटी डॉक्यूमेंट्स एक्ट, 2010 ने आईडी कार्ड निरस्त कर दिया; “पहचान कार्ड योजना को ‘100 दिनों भीतर बंद कर दिया जाएगा,’ बीबीसी न्यूज़, 27 मई, 2010; 9 जुलाई, 2010 को आइडेंटिटी डॉक्यूमेंट्स बिल पर हाउस ऑफ़ कॉमंस की बहस (http://www.publications.parliament.uk/pa/cm201011/cmhansrd/cm100609/debtext/100609-0006.htm देखें).
[9]. रियल आईडी एक्ट, 2005 (http://thomas.loc.gov/cgi-bin/bdquery/z?d109:H.R.418: देखें)
[10]. निजता अधिनियम, 1974 का अनुभाग 7 (http://www.justice.gov/opcl/1974ssnu.htm देखें)
[11]. उदाहरण के लिए, खड़क सिंह बनाम यूपी राज्य, 1 SCR 332 (1964) एवं आर. राजगोपाल बनाम तमिलनाडु राज्य (1994) 6 SCC 632
[12]. “निजता पर कानून के लिए दृष्टिकोण पत्र,” 18 अक्टूबर, 2010, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, भारत सरकार
[13]. रिट याचिका (C) No. 256 of 1991, पीपल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) बनाम भारत सरकार (यूओआई)
[14]. “डेटा माइनिंग: संघीय प्रयास व्यापक उपयोग आवरित करते हैं,” यूएस जनरल अकाउंटिंग ऑफिस, मई 2004
[15]. आतंकवाद का सामना करते समय मानवीय अधिकारों एबं मौलिक स्वतंत्रता के प्रसार एवं संरक्षण पर विशेष प्रतिवेदक की रिपोर्ट, मार्टिन शेनिन, यूएन मानवाधिकार काउन्सिल, 28 दिसंबर, 2009
[16]. यूएस फेडरल एजेंसी डेटा माइनिंग रिपोर्टिंग एक्ट 2007 (10 जनवरी, 2007 को पेश किया गया) (http://thomas.loc.gov/cgi-bin/bdquery/z?d110:SN00236:@@@L&summ2=m& देखें)
[17]. यूआईडी का नामांकन फॉर्म (http://uidai.gov.in/images/FrontPageUpdates/ROB/D9%20Enrolment%20Form.JPG देखें)
[18]. यूआईडी एप्लीकेशंस के लिए बायोमीट्रिक डिज़ाइन स्टैंडर्ड्स, बायोमीट्रिक्स पर यूआईडीएआई समिति, दिसंबर 2009
यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेज़ी में तैयार की गयी थी। हिन्दी में इसका अनुवाद किया गया है। हिन्दी रूपान्तर में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेज़ी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।