मंत्रालय: 
गृह मामले

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता (बीएनएस2) आईपीसी के अधिकांश अपराधों को बरकरार रखती है। इसमें सामुदायिक सेवा को सज़ा के रूप में जोड़ा गया है।

  • राजद्रोह अब अपराध नहीं है। इसके बजाय भारत की संप्रभुताएकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों को नया अपराध बताया गया है।

  • बीएनएस2 आतंकवाद को एक अपराध के रूप में जोड़ता है। इसे एक ऐसे कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है जिसका उद्देश्य देश की एकताअखंडता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालना या लोगों में आतंक पैदा करना है। 

  • संगठित अपराध को अपराध के रूप में जोड़ा गया है। इसमें अपराध सिंडिकेट की ओर से किए गए अपहरणजबरन वसूली और साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं। छोटे-मोटे संगठित अपराध भी अब अपराध हैं।

  • जातिभाषा या व्यक्तिगत विश्वास जैसे कुछ पहचान चिह्नों के आधार पर पांच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा हत्या सात साल से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक की सज़ा के साथ एक अपराध होगा।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • आपराधिक जिम्मेदारी की आयु सात वर्ष बरकरार रखी गई है। आरोपी की परिपक्वता के आधार पर इसे 12 साल तक बढ़ाया जा सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय समझौतों की सिफ़ारिशों का उल्लंघन हो सकता है।

  • बीएनएसमें बच्चे को 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। हालांकि कई अपराधों के लिएबच्चों के खिलाफ अपराध के लिए पीड़ित की आयु सीमा 18 वर्ष नहीं है। बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के लिए पीड़ित के नाबालिग होने की सीमा अलग-अलग है।

  • कई अपराध विशेष कानूनों के साथ ओवरलैप होते हैं। कई मामलों में अलग-अलग दंड का प्रावधान है या वे अलग-अलग प्रक्रियाएं पेश करते हैं। इससे रेगुलेशन की कई व्यवस्थाएंअनुपालन की अतिरिक्त लागत और कई आरोप लगाए जाने की आशंका हो सकती है।

  • बीएनएस2 राजद्रोह को अपराध की श्रेणी से हटाता है। भारत की संप्रभुताएकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले प्रावधान में राजद्रोह के पहलुओं को बरकरार रखा जा सकता है।

  • बीएनएस2 बलात्कार और यौन उत्पीड़न पर आईपीसी के प्रावधानों को बरकरार रखता है। इसमें जस्टिस वर्मा समिति (2013) के कुछ सुझावों को शामिल नहीं किया गया है, जैसे बलात्कार के अपराध को जेंडर न्यूट्रल बनाना और विवाह में बलात्कार को अपराध के रूप में शामिल करना।

  • बीएनएस2 में आईपीसी का सेक्शन 377 मौजूद नहीं, जिसके कुछ हिस्सों को सर्वोच्च न्यायालय ने हटा दिया था। बीएनएस2 से इस सेक्शन को हटाने से पुरुषों के साथ बलात्कार और पशुओं के साथ यौन संबंध अपराध की श्रेणी से हट जाएंगे।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी)1860 भारत में फौजदारी अपराधों पर प्रमुख कानून है। इसके तहत आने वाले अपराधों में निम्नलिखित को प्रभावित करने वाले अपराध शामिल हैं: (i) मानव शरीर जैसे हमला और हत्या, (ii) संपत्ति जैसे जबरन वसूली और चोरी, (iii) सार्वजनिक व्यवस्था जैसे गैरकानूनी सभा और दंगा, (iv) सार्वजनिक स्वास्थ्यसुरक्षाशालीनतानैतिकता और धर्म, (iv) मानहानिऔर (v) राज्य के विरुद्ध अपराध। पिछले कुछ वर्षों में नए अपराधों को जोड़नेमौजूदा अपराधों में संशोधन करने और सज़ा की मात्रा में बदलाव करने के लिए आईपीसी में संशोधन किए गए हैं।[1] न्यायालयों ने कुछ अपराधों जैसे समलैंगिक वयस्कों के बीच सहमति से इंटरकोर्सव्यभिचार और आत्महत्या के प्रयास को भी अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है।[2],[3],[4]  कई राज्यों ने भी यौन अपराधोंवेश्यावृत्ति के लिए नाबालिगों को बेचनेभोजन और दवाओं में मिलावट और धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के लिए अलग-अलग दंड देने हेतु आईपीसी में संशोधन किया है।[5],[6],[7],[8] कई विधि आयोगों की रिपोर्ट्स में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधोंखाद्य पदार्थों में मिलावटमृत्युदंड सहित विषयों पर आईपीसी में संशोधन का सुझाव दिया है।[9], [10]

आईपीसी के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) को 11 अगस्त को पेश किया गया था। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी ने इस बिल की समीक्षा की।[11] भारतीय न्याय (दूसरी) संहिता, 2023 (बीएनएस2) को 12 दिसंबर, 2023 को पेश किया गया और इसके पहले बीएनएस को वापस ले लिया गया था। इसमें स्टैंडिंग कमिटी के कुछ सुझावों को शामिल किया गया है।

मुख्य विशेषताएं 

बीएनएस2 के मुख्य बदलावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • शरीर के खिलाफ अपराधआईपीसी हत्याआत्महत्या के लिए उकसानाहमला करना और गंभीर चोट पहुंचाना जैसे कृत्यों को अपराध मानता है। बीएनएस2 ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। इसमें संगठित अपराधआतंकवाद और कुछ आधारों पर किसी समूह द्वारा हत्या या गंभीर चोट जैसे नए अपराध जोड़े गए हैं।

  • महिलाओं के खिलाफ यौन अपराधआईपीसी बलात्कारताक-झांकपीछा करना और किसी महिला के शील को भंग करने जैसे कृत्यों को अपराध मानता है। बीएनएस2 ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। यह सामूहिक बलात्कार के मामले में पीड़िता को वयस्क के रूप में वर्गीकृत करने की सीमा को 16 से बढ़ाकर 18 वर्ष करता है। यह किसी महिला के साथ धोखे से या झूठे वादे करके यौन संबंध बनाने को भी अपराध मानता है।

  • राजद्रोह: बीएनएस2 राजद्रोह के अपराध को हटाता है। इसके बजाय यह निम्न को दंडित करता है: (i) फूट, सशस्त्र विद्रोह, या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करना या उत्तेजित करने का प्रयास करना, (ii) अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना या (iii) भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना। इन अपराधों में शब्दों या संकेतों का आदान-प्रदान, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का उपयोग शामिल हो सकता है।

  • आतंकवाद: आतंकवाद में वह कृत्य शामिल है जिसका उद्देश्य निम्नलिखित है: (i) देश की एकताअखंडतासुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालनाया (ii) भारत में लोगों या लोगों के किसी भी वर्ग में आतंक पैदा करना। आतंकवाद का प्रयास करने या आतंकवाद करने के लिए सज़ा में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मौत या आजीवन कारावासऔर जुर्मानाअगर इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती हैया (ii) पांच साल से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माना

  • संगठित अपराध: संगठित अपराध में अपहरण, जबरन वसूली, कॉन्ट्रैक्ट पर हत्या, जमीन पर कब्जा, वित्तीय घोटाले और अपराध सिंडिकेट की ओर से किए गए साइबर अपराध जैसे अपराध शामिल हैं। संगठित अपराध करने या उसका प्रयास करने पर निम्नलिखित दंड दिया जाएगा: (i) अगर इसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मौत या आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए का जुर्माना या (ii) पांच साल से लेकर आजीवन कारावास और कम से कम पांच लाख रुपए का जुर्माना।

  • मॉब लिंचिंग: बीएनएस2 निर्दिष्ट आधारों पर पांच या अधिक लोगों द्वारा की गई हत्या या गंभीर चोट को अपराध के रूप में जोड़ता है। इन आधारों में नस्ल, जाति, लिंग, भाषा या व्यक्तिगत विश्वास शामिल हैं। ऐसी हत्या के लिए सज़ा कम से कम सात साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास या मौत तक है।

  • सर्वोच्च न्यायालय का फैसलाबीएनएस2 सर्वोच्च न्यायालय के कुछ फैसलों के अनुरूप है। इनमें व्यभिचार को अपराध के तौर नहीं शामिल किया गया है और आजीवन कारावास की सज़ा पाए व्यक्ति द्वारा हत्या या हत्या के प्रयास के लिए दंड के रूप में आजीवन कारावास (मृत्युदंड के अतिरिक्त) को शामिल किया गया है।

मुख्य मुद्दे और विश्लेषण

अपराधों के लिए आयु संबंधी निर्देश

आपराधिक उत्तरदायित्व की न्यूनतम आयु कई अन्य न्यायक्षेत्रों की तुलना में अधिक है

आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र उस न्यूनतम उम्र को कहा जाता है, जब से किसी बच्चे पर मुकदमा चलाया जा सकता है और किसी अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है। किशोरों के व्यवहार को प्रभावित करने वाली न्यूरोबायोलॉजिकल प्रक्रियाओं की समझ जब विकसित हुई तब यह सवाल खड़े हुए कि बच्चों को उनके कार्यों के लिए किस हद तक जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।[12]  आईपीसी के तहत सात साल से कम उम्र के बच्चे द्वारा किया गया कोई भी काम अपराध नहीं माना जाता है। अगर यह पाया जाता है कि बच्चे ने अपने आचरण की प्रकृति और परिणामों को समझने की क्षमता हासिल नहीं की हैतो आपराधिक जिम्मेदारी की आयु बढ़कर 12 वर्ष हो जाती है। बीएनएस2 ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। 2007 में संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समिति ने विभिन्न देशों से कहा था कि वे आपराधिक जिम्मेदारी की आयु 12 वर्ष से अधिक करें।[13]  

आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। उदाहरण के लिएजर्मनी में आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र 14 वर्ष हैजबकि इंग्लैंड और वेल्स में यह 10 वर्ष है।[14],[15] स्कॉटलैंड में आपराधिक जिम्मेदारी की उम्र 12 वर्ष है।[16]  

बच्चों के विरुद्ध समान अपराधों के लिए पीड़ित की आयु सीमा भिन्न-भिन्न है

बीएनएस2 बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में उच्च दंड का प्रावधान करता है। ज्यादातर मामलों मेंइसमें प्रावधान है कि 18 वर्ष से कम उम्र के पीड़ित के साथ बच्चे जैसा व्यवहार किया जाएगा। महिलाओं और बच्चों से बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के लिए सज़ा अलग-अलग है। हालांकि बलात्कार के विभिन्न अपराधों के लिए पीड़िता के नाबालिग होने की सीमा और परिणामस्वरूप दंड अलग-अलग होता है। सामूहिक बलात्कार के लिएदंड इस आधार पर भिन्न होता है कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से अधिक है या कम। हालांकि बलात्कार के लिए सज़ा इस आधार पर अलग-अलग होती है कि पीड़िता की उम्र 12 साल से कम है, 12 से 16 साल के बीच है या उससे अधिक है। यह यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण एक्ट, 2012 के साथ असंगत हैजो 18 वर्ष से कम उम्र के सभी व्यक्तियों को नाबालिगों के रूप में वर्गीकृत करता है।

इसके अतिरिक्त बीएनएस2 के तहतबच्चों के खिलाफ कुछ अपराधों के लिए पीड़ित की आयु सीमा 18 वर्ष नहीं है। जैसे माता-पिता से चोरी करने के इरादे से बच्चे का अपहरण केवल 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर लागू होता है। यानी 11 साल के बच्चे के अपहरण की सज़ा एक वयस्क के अपहरण के समान ही है। इसके अलावाबीएनएस2 ने किसी विदेशी महिला को दूसरे देश से आयात करने के अपराध के लिए आईपीसी से 21 वर्ष की आयु बरकरार रखी है। हालांकि लड़कों के लिएइसमें 18 वर्ष की आयु सीमा जोड़ी गई है। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने बच्चे को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित करने का सुझाव दिया है।Error! Bookmark not defined. 

बीएनएस2 और विशेष कानूनों के बीच ओवरलैप 

अन्य विशेष कानूनों के साथ अपराधों का दोहराव 

जब आईपीसी लागू किया गया थातो इसमें सभी फौजदारी अपराधों को शामिल किया गया था। समय के साथविशिष्ट विषयों और संबंधित अपराधों के समाधान के लिए विशेष कानून बनाए गए हैं। इनमें से कुछ अपराधों को बीएनएस2 से हटा दिया गया है। जैसे वज़न और माप से संबंधित अपराधों को लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट, 2009 में शामिल किया गया था और बीएनएस2 से हटा दिया गया है। हालांकि कई अपराध बरकरार रखे गए हैं (कुछ उदाहरणों के लिए नीचे तालिका देखें)। बीएनएस2 संगठित अपराध और आतंकवाद जैसे कुछ नए अपराध भी जोड़ता है जो पहले से ही विशेष कानूनों के अंतर्गत आते हैं। कानूनों में इस तरह के ओवरलैप के कारण अतिरिक्त अनुपालन का बोझ और लागत हो सकती है। इससे एक ही अपराध के लिए अलग-अलग दंड प्रदान करने वाले कई कानून भी बन सकते हैं। ऐसे अपराधों को हटाने से दोहरावसंभावित विसंगतियां और कई रेगुलेटरी व्यवस्थाएं दूर हो सकती हैं।

तालिका 1आईपीसीबीएनएस2 और विशेष कानूनों के बीच ओवरलैप के उदाहरण 

बीएनएस2

विशेष कानून

बिक्री के लिए खाद्य या पेय पदार्थ में मिलावट

6 महीने तक की कैद, 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों।

असंज्ञेयजमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 272, 273; बीएनएस2 क्लॉज 274, 275)

खाद्य सुरक्षा और सुरक्षा एक्ट, 2006असुरक्षित भोजन के निर्माण, भंडारण, बिक्री के लिए आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए तक का जुर्माना। क्षति के अनुपात में सज़ा (सेक्शन 59) 

दवाओं में मिलावट और मिलावटी दवाओं की बिक्री

मिलावट करने पर एक साल तक की कैद, 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

मिलावटी दवाओं की बिक्री पर 6 महीने तक की कैद, 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

असंज्ञेयजमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 274, 275; बीएनएस2 क्लॉज 276, 277)

ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट1940: मिलावटी दवाओं के सेवन से मौत या गंभीर चोट लगने पर 10 साल से लेकर आजीवन कारावास और कम से कम 10 लाख रुपए या जब्त की गई दवाओं के मूल्य का तीन गुना, जो भी अधिक हो, का जुर्माना हो सकता है। अन्य मामलों में, जुर्माना 3-5 साल की कैद और कम से कम 1 लाख रुपए या जब्त की गई दवाओं के मूल्य का तीन गुना, जो भी अधिक हो, जुर्माना है। (सेक्शन 27) 

गैरकानूनी अनिवार्य श्रम

एक साल तक की कैदजुर्माना या दोनों। संज्ञेयजमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 374; बीएनएस2 क्लॉज 146)

बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) एक्ट1976: 3 वर्ष तक कारावास और 2,000 रुपए तक जुर्माना। (सेक्शन 161718)     

बच्चे को छोड़ना

12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को छोड़ने वाले माता-पिता या अभिभावक को 7 साल तक की कैदजुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है। संज्ञेयजमानत योग्य। (आईपीसी सेक्शन 317; बीएनएस2 क्लॉज 93) 

किशोर न्याय एक्ट2015: किसी बच्चे को परित्याग करने या परित्याग के लिए खरीदने पर 3 साल तक की कैद, 1 लाख रुपए तक का जुर्माना या दोनों की सज़ा हो सकती है। अपने नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण बच्चे को छोड़ने वाले जैविक माता-पिता को छूट है। (सेक्शन 75) 

लापरवाही से गाड़ी चलाना

6 महीने तक की कैद, 1,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

संज्ञेयजमानत योग्यगैर कंपाउंडेबल। (आईपीसी सेक्शन 279; बीएनएस2 क्लॉज 281)  

मोटर वाहन एक्ट1988: पहले अपराध के लिए सज़ा: 6 महीने तक कारावास और/या 5,000 रुपए तक जुर्माना। तीन साल के भीतर अगला अपराध: 2 साल तक की कैद और/या 10,000 रुपए तक का जुर्माना। संज्ञेय, जमानत योग्य, कंपाउंडेबल। (सेक्शन 184) 

स्रोत: आईपीसी, बीएनएस2विभिन्न विशेष कानून; पीआरएस।

संगठित अपराध और आतंकवाद से संबंधित अपराधों को जोड़ना

वर्तमान में संगठित अपराध और आतंकवादी कृत्य आईपीसी के अंतर्गत शामिल नहीं हैं। आतंकवादी कृत्य गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) एक्ट, 1967 (यूएपीए) के अंतर्गत आते हैं। संगठित अपराध राज्य कानूनों जैसे महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण एक्ट, 1999 (मकोका) और कर्नाटकगुजरातउत्तर प्रदेशहरियाणा और राजस्थान द्वारा लागू समान कानूनों के अंतर्गत आता है।[17] बीएनएस2 में संगठित अपराध और आतंकवाद दोनों से संबंधित अपराध जोड़े गए हैं। बीएनएस2 में आतंकवाद से संबंधित प्रावधान यूएपीए से मिलते-जुलते हैं। संगठित अपराध को बीएनएस2 में एक अपराध के रूप में जोड़ने से वह अंतर दूर हो जाता है क्योंकि ये अपराध सभी राज्यों में हो सकते हैंजिनमें वे राज्य भी शामिल हैं जिन्होंने कोई विशेष कानून नहीं बनाया है। हालांकि इससे उन राज्यों में कानूनों का दोहराव भी पैदा होता है जहां पहले से ही ऐसे विशेष कानून हैं। 

भारतीय नागरिक सुरक्षा (दूसरी) संहिता, 2023 (बीएनएसएस2) और भारतीय साक्ष्य (दूसरा) बिल, 2023 (बीएसबी2) जो क्रमशः आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य एक्ट, 1872 की जगह लेते हैंइन अपराधों के लिए एक अलग आपराधिक प्रक्रिया प्रदान नहीं करते हैं। संगठित अपराध और आतंकवाद पर विशेष कानूनों में सामान्य आपराधिक प्रक्रिया से कई भिन्नताएं हैं। वे अभियुक्तों के लिए कुछ सुरक्षा उपाय हटाते हैंजैसे जमानत की शर्तें और पुलिस में कबूलनामे की स्वीकार्यता। यूएपीए के तहत मामलों की सुनवाई राष्ट्रीय जांच एजेंसी एक्ट, 2008 के तहत की जाती हैजो ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित करती है।[18]  बीएनएसएस2 के तहतआतंकवाद के मामलों की सुनवाई सत्र न्यायालयों में की जाएगी। इसके परिणामस्वरूप समान अपराधों के लिए अलग-अलग जांच और ट्रायल प्रक्रियाएं होंगी। गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने बीएनएसएस में संगठित अपराध के लिए विशेष आपराधिक प्रक्रियाएं प्रदान करने का सुझाव दिया है।

किसी गिरोह के सदस्य के अपराध के लिए दंड किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध से भिन्न

बीएनएस2 छोटे संगठित अपराध को एक अपराध के रूप में परिभाषित करता है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: वाहन चोरीजेबतराशीसार्वजनिक परीक्षा प्रश्नपत्र बेचनाइसी तरह का कोई अन्य आपराधिक कृत्य। छोटे संगठित अपराध तब कहलाएंगे, जब ऐसे अपराध किसी समूह या गिरोह के सदस्यों द्वारा किए जाएं। इस अपराध के लिए एक से सात साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। यह दंड किसी गिरोह के सदस्य द्वारा किए गए अपराध और किसी व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध के लिए अलग-अलग निर्धारित है। उदाहरण के लिएचोरी के लिए जुर्माना तीन साल तक की कैद हैजबकि अगर वही कार्य किसी गिरोह या समूह द्वारा किया जाता हैतो जुर्माना एक से सात साल की कैद के बीच है।   

महिलाओं के साथ अपराध

बीएनएस2 ने बलात्कार से संबंधित आईपीसी के प्रावधानों को बरकरार रखा है। इसमें महिलाओं के साथ अपराधों में सुधार पर न्यायमूर्ति वर्मा समिति (2013) और सर्वोच्च न्यायालय के कई सुझावों को शामिल नहीं किया गया है। इनमें से कुछ का उल्लेख हम नीचे कर रहे हैं। 

 तालिका 2महिलाओं से होने वाले अपराधों के संबंध में सुझाव

सुझाव

बीएनएस2 में शामिल है अथवा नहीं

बलात्कार (आईपीसी सेक्शन 375)- बलात्कार केवल योनिमुंह या गुदा में प्रवेश तक सीमित नहीं होना चाहिए। यौन प्रकृति के किसी भी गैर-सहमति प्रवेश को बलात्कार की परिभाषा में शामिल किया जाना चाहिए। वैवाहिक बलात्कार का अपवाद हटाया जाना चाहिए।9

नहीं। मूल प्रावधान क्लॉज 63 में बरकरार रखा गया है।

महिला के शील को भंग करने के लिए शब्दइशारा या कार्य (आईपीसी सेक्शन 509)- सेक्शन को निरस्त किया जाना चाहिए। 'छेड़छाड़का अपराध आईपीसी के सेक्शन 354 (सेक्शन 73) के तहत आरोपित किया जा सकता है। आईपीसी से 'महिलाओं के शीलशब्द हटाएं।9 

नहींमूल प्रावधान क्लॉज 79 में बरकरार रखा गया है।

महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग (आईपीसी सेक्शन 354बी)- जुर्माने को कम से कम पांच साल से लेकर 10 साल तक की कैद तक बढ़ाया जाना चाहिए।[19]

नहींजुर्माना कम से कम तीन साल से लेकर सात साल तक की कैद है (क्लॉज 76)

व्यभिचार (आईपीसी सेक्शन 497)- यह सेक्शन अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है। यह लैंगिक रूढ़िवादिता के आधार पर पुरुषों और महिलाओं के बीच अंतर पैदा करता हैऔर मनमाना है। व्यभिचार को अपराध नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।3  

हां। व्यभिचार को छोड़ दिया गया है। हालांकि बीएनएस2 ने आईपीसी के सेक्शन 498 (क्लॉज 84को बरकरार रखा है जो एक पुरुष को दूसरे पुरुष की पत्नी को लुभाने के लिए दंडित करता है ताकि वह किसी भी व्यक्ति के साथ संभोग कर सके।

स्रोत: एंडनोट्स देखें; पीआरएस

राजद्रोह के पहलुओं को बरकरार रखा गया है 

आईपीसी राजद्रोह को सरकार के प्रति घृणा, अवमानना, या उत्तेजक असंतोष लाने या लाने का प्रयास करने के रूप में परिभाषित करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान पीठ द्वारा समीक्षा किए जाने तक राजद्रोह के अपराध पर रोक लगा दी है।[20]  बीएनएस2 इस अपराध को हटाता है। इसके बजाय, यह एक प्रावधान जोड़ता है जो निम्नलिखित को दंडित करता है: (i) अलगाव, सशस्त्र विद्रोह, या विध्वंसक गतिविधियों के लिए उकसाना या उकसाने का प्रयास करना, (ii) अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को बढ़ावा देना, या (iii) भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालना। इन अपराधों में शब्दों या संकेतों का आदान-प्रदान, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों का उपयोग शामिल हो सकता है। यह तर्क दिया जा सकता है कि नया प्रावधान राजद्रोह के अपराध के कुछ पहलुओं को बरकरार रखता है और उन कृत्यों की सीमा को विस्तृत करता है जिन्हें भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरे के रूप में देखा जा सकता है। 'विध्वंसक गतिविधियां' जैसे शब्द भी परिभाषित नहीं हैं, और यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी गतिविधियां इस मानदंड को पूरा करेंगी।

1962 में सर्वोच्च न्यायालय ने राजद्रोह को उन कृत्यों तक सीमित कर दिया था जो सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने या हिंसा भड़काने का इरादा या प्रवृत्ति रखते हैं।[21]  उल्लेखनीय है कि बीएनएस2 में राजद्रोह शब्द का उल्लेख नहीं है लेकिन इसके बावजूद बीएनएसएस2 में बीएनएस2 (सेक्शन 150, 195, 297) में 'राजद्रोह के मामलोंका संदर्भ मौजूद है।

एकांत कारावास मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है

आईपीसी उन अपराधों के लिए एकांत कारावास की अनुमति देता है जिनमें कठोर कारावास की सज़ा होती है। ऐसे अपराधों में आपराधिक साजिशयौन उत्पीड़नअपहरण या हत्या के लिए अपहरण शामिल हैं। बीएनएस2 ने इन प्रावधानों को बरकरार रखा है। जेल एक्ट1894जो एकांत कारावास की भी अनुमति देता हैकई राज्य कानूनों द्वारा अपनाया गया है।[22]  एकांत कारावास पर प्रावधान न्यायालय के फैसलों और विशेषज्ञों के सुझावों के के अनुरूप नहीं हैं।

सर्वोच्च न्यायालय (1979) ने कहा है कि कैदियों को एकांत कक्षों में धकेलने जैसे उपाय उन्हें अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित करते हैं।[23] 1971 में विधि आयोग ने आईपीसी से एकांत कारावास को हटाने का कहा था। यह कहा गया कि ऐसी कैद आधुनिक सोच के अनुरूप नहीं और इसे किसी भी आपराधिक अदालत द्वारा सज़ा के तौर पर नहीं दिया जाना चाहिए।[24] 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने विधि आयोग के सुझाव को मानते हुए कहा था कि एकांत कारावास सिर्फ असाधारण मामलों में दी जानी चाहिए।[25]   

सामुदायिक सेवा का दायरा अस्पष्ट है

बीएनएस2 दंड के रूप में सामुदायिक सेवा को शामिल करता है। यह इस सज़ा को निम्न अपराधों तक बढ़ाता है: (i) 5,000 रुपए से कम मूल्य की संपत्ति की चोरी, (ii) एक लोक सेवक को रोकने के इरादे से आत्महत्या का प्रयासऔर (iii) सार्वजनिक स्थल पर नशे में दिखना और परेशानी का कारण बनना। बीएनएस2 यह परिभाषित नहीं करता है कि सामुदायिक सेवा में क्या शामिल होगा और इसे कैसे लागू किया जाएगा। गृह मामलों से संबंधित कमिटी (2023) ने 'सामुदायिक सेवाकी अवधि और प्रकृति की परिभाषा देने का सुझाव दिया था।Error! Bookmark not defined. 

ड्राफ्टिंग से संबंधित मुद्दे  

बीएनएस2 में ड्राफ्टिंग से संबंधित कई मुद्दे हैं। हम यहां उनका उल्लेख कर रहे हैं:

तालिका 3छूटने वाले अपराधड्राफ्टिंग से संबंधित मुद्दे और पुराने ढंग के उदाहरण 

छूटने वाले अपराध

आईपीसी सेक्शन 375 और 377

सेक्शन 375 किसी महिला के साथ बलात्कार को अपराध के रूप में निर्दिष्ट करता है। सेक्शन 377 "किसी भी पुरुषमहिला या जानवर के खिलाफ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध संभोग" को अपराध निर्दिष्ट करता हैसर्वोच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से यौन संबंध को बाहर करने के लिए इसके कुछ हिस्सों को रद्द कर दिया था। इसका मतलब यह था कि किसी वयस्क पुरुष के साथ जबरन संबंध बनाना अपराध हैवैसे ही किसी जानवर के साथ संबंध बनाना भी अपराध है। बच्चों से बलात्कार चाहे उनका जेंडर कोई भी हो, पॉक्सो एक्ट2012 के तहत अपराध है।

बीएनएस2 में सेक्शन 377 नहीं है। यानी किसी वयस्क पुरुष का बलात्कार किसी भी कानून में अपराध नहीं होगान ही किसी पशु के साथ संभोग अपराध होगा। गृह मामलों से संबंधित कमिटी (2022) ने इस प्रावधान को फिर से लागू करने का सुझाव दिया है।  

पुराने ढंग के संदर्भ (जिन्हें आधुनिक जीवन के उदाहरणों से बदलने की जरूरत हो सकती है)

129

उदाहरण: (बी) जेड एक रथ पर सवार है। ए, जेड के घोड़ों को मारता हैऔर इस प्रकार उनकी गति तेज़ कर देता है। यहां ए ने जानवरों को अपनी गति बदलने के लिए प्रेरित करके जेड की गति में परिवर्तन किया है। इसलिए ए ने जेड पर बल प्रयोग किया है; और अगर ए ने जेड की सहमति के बिना यह इरादा रखते हुए या यह जानते हुए किया है कि वह जेड को घायल कर सकता हैडरा सकता है या परेशान कर सकता हैतो ए ने जेड पर आपराधिक बल का प्रयोग किया है।

अन्य उदाहरण पालकी (क्लॉज 127 में उदाहरण सी) और तोपों (क्लॉज 100 में उदाहरण डी) से संबंधित हैं।

स्रोत: बीएनएस2, आईपीसी; पीआरएस।

 

[1]. The Criminal Law (Amendment) Act, 2018, The Criminal Law (Amendment) Act, 1983, The Criminal Law (Amendment) Act, 2013.

[2]. WP (Criminal) No. 76 of 2016, Navtej Singh Johar & Ors vs. Union of India, Supreme Court, September 6, 2018. 

[3]. WP (Criminal) No. 194 of 2017, Joseph Shine vs. Union of India, Supreme Court, September 27, 2018. 

[4]. 1994 AIR 1844, R. Pathinam vs. Union of India, Supreme Court, April 26 1994. 

[5]. The Indian Penal Code (Tamil Nadu Amendment) Act, 2021. 

[6]. The Indian Penal Code (Andhra Pradesh Amendment) Act, 1991. 

[7]. Criminal Laws (Rajasthan Amendment) Bill, 2018  

[8]. Indian Penal Code (Punjab Amendment) Bill, 2018.  

[9]. Report of the Committee on Amendments to Criminal Law, 2013 (Verma Committee). 

[10]Report 264, Law Commission of India, 2017; Report 262, Law Commission of India, 2015.

[11]Report No. 246, The Bharatiya Nyaya Sanhita, Standing Committee on Home Affairs, Rajya Sabha, November 10, 2023

[12]. PostNote 588, Age of Criminal Responsibility, Parliamentary Office of Science and Technology, The United Kingdom, June 2018. 

[14]. Section 19, The German Criminal Code, 1998.

[15]. “Age of criminal responsibility”, The Government of the United Kingdom.

[16]. “If a young person gets in trouble with the police”, The Government of Scotland. 

[19]Report No. 167, The Criminal Law (Amendment) Bill, 2012, Standing Committee on Home Affairs, Rajya Sabha, March 4, 2013. 

[20]. Writ Petition (Civil) No. 682/2021, SG Vombatkere vs. Union of India, Supreme Court, September 12, 2021. 

[21]. 1962 AIR, Kedar Nath Singh vs. State of Bihar, Supreme Court, January 20, 1962. 

[22]. Section 29, Prisons Act, 1894. 

[23]. 1980 AIR 1579, Sunil Batra(II) vs. Delhi Administration, Supreme Court, December 20, 1979.

[24]Report No. 42, Law Commission of India, 1971. 

[25]. 1978 AIR 1675, Sunil Batra vs. Delhi Administration and Ors, Supreme Court, August 30, 1978.

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।