मंत्रालय: 
मानव संसाधन विकास
  • मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 10 अप्रैल, 2017 को लोकसभा में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (सार्वजनिक-निजी भागीदारी) बिल, 2017 को पेश किया। बिल सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिए स्थापित किए गए 15 मौजूदा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थान घोषित करता है।
     
  • ‘सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी)’ की परिभाषा : केंद्र सरकार की एक योजना के तहत पीपीपी एक भागीदारी है जिसमें केंद्र, राज्य सरकार और इंटस्ट्री पार्टनरों के बीच सहभागिता के जरिए संस्थानों की स्थापना का प्रावधान है। इंडस्ट्री पार्टनर व्यक्ति, ट्रस्ट, कंपनियां या सोसायटी, कोई भी हो सकते हैं।
     
  • संस्थान की स्थापना : संस्थान की स्थापना हेतु राज्य सरकार सहभागिता के लिए कम से कम एक इंडस्ट्री पार्टनर की पहचान करेगी और केंद्र को प्रस्ताव भेजेगी। केंद्र निम्नलिखित आधार पर इस प्रस्ताव की जांच करेगा: (i) प्रस्तावित संस्थान की स्थापना के लिए पूंजीगत निवेश, जिसका वहन केंद्र, संबंधित राज्य सरकार और इंडस्ट्री पार्टनर करेंगे (जिसका अनुपात 50:35:15 का होगा), (ii) इंडस्ट्री पार्टनर की विशेषज्ञता और अनुभव, (iii) संस्थान को सहयोग देने में इंडस्ट्री पार्टनर की क्षमता, वित्तीय एवं अन्य संसाधनों का आकलन, और (iv) पर्याप्त फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर (पानी, बिजली, सड़क से कनेक्टिविटी, इत्यादि) और जमीन (50 से 100 एकड़) की उपलब्धता, जिसे राज्य सरकार द्वारा मुफ्त दिया जाएगा।
     
  • केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को रद्द कर सकती है या उसे संशोधन के साथ स्वीकार कर सकती है। मंजूरी मिलने के बाद केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार और इंडस्ट्री पार्टनर के साथ प्रस्तावित संस्थान की स्थापना के लिए मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर करेगी। एमओयू में पूंजी का निवेश प्रस्ताव और केंद्र, राज्य एवं इंडस्ट्री पार्टनरों की संस्थानों की स्वायत्तता को सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जैसे विवरण शामिल होंगे।
     
  • इंडस्ट्री पार्टनर की भूमिका : इंडस्ट्री पार्टनर के पास निम्नलिखित अधिकार होंगे : (i) इंडस्ट्री की जरूरत के मुताबिक प्रोग्राम्स को तैयार करना, (ii) संस्थानों के गवर्नेंस में सक्रिय रूप से भागीदारी करना, और (iii) संस्थानों में स्टार्टअप्स के लिए फंडिंग और मेन्टरिंग करना।
     
  • गवर्निंग बोर्ड का संयोजन : गवर्निंग बोर्ड संस्थान का मुख्य नीति निर्धारक और कार्यकारी निकाय होगा। प्रत्येक संस्थान के बोर्ड में 15 सदस्य होंगे। निम्नलिखित सदस्यों के माध्यम से बोर्ड का संयोजन किया जाएगा : (i) एक चेयरपर्सन जिसे केंद्र के सुझाव पर नामित किया जाएगा, (ii) केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकार, प्रत्येक द्वारा नामित एक-एक सदस्य, (iii) संस्थान का निदेशक, (iv) प्रत्येक इंडस्ट्री पार्टनर का एक प्रतिनिधि, और (v) दो फैकल्टी सदस्य।
     
  • सीनेट की शक्तियां और कार्य: सीनेट प्रत्येक संस्थान का मुख्य शैक्षिक निकाय होगा। इसकी शक्तियों और कार्यों में निम्नलिखित शामिल है: (i) अध्ययन पाठ्यक्रम के मानदंड और प्रक्रिया का विस्तृत विवरण देना, (ii) बोर्ड को सुझाव देना, शिक्षण पदों और अन्य शैक्षिक पदों का सृजन करना, और (iii) प्रोग्राम्स और अध्ययन पाठ्यक्रमों के व्यापक शैक्षिक कंटेंट का विस्तृत विवरण देना।
     
  • समन्वय मंच : समन्वय मंच सभी संस्थानों के समान हितों के मुद्दों पर विचार करेगा। इसके कार्यों में बिल की अनुसूची में किसी संस्थान को शामिल करने या उससे हटाने के संबंध में केंद्र को सुझाव देना शामिल है।
     
  • संस्थान के फंड्स : प्रत्येक संस्थान में एक फंड होगा जिसमें सरकार से प्राप्त होने वाले और दूसरे जरियों जैसे फीस, ग्रांट और चंदे से मिलने वाले फंड्स जमा होंगे।
     
  • इसके अतिरिक्त प्रत्येक संस्थान लंबे समय की सस्टेनेबिलिटी बनाए रखने के लिए एक कॉरपस फंड बनाएगा। इस फंड में संस्थान की शुद्ध आय के एक निश्चित हिस्से (आय कर एक्ट, 1961 के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित) और फंड के लिए विशेष रूप से किए गए चंदे को जमा किया जाएगा।
     
  • विवादों को हल करना : संस्थान और उसके किसी कर्मचारी के बीच कॉन्ट्रैक्ट को लेकर अगर कोई विवाद होता है तो ऐसे मामले को पंचाट न्यायाधिकरण (ट्रिब्यूनल) में भेजा जाएगा। इस न्यायाधिकरण के सदस्यों में संस्थान द्वारा नामित एक व्यक्ति, कर्मचारी द्वारा नामित एक व्यक्ति और विजिटर (राष्ट्रपति) द्वारा नियुक्त एक अंपायर शामिल होंगे।

 

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