मंत्रालय: 
विधि एवं न्याय

1993 में पारित 73वें और 74वें संशोधन ने संविधान में पंचायतों और नगर पालिकाओं को शामिल किया और इन निकायों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित कीं।[1],[2]  संविधान अनुसूचित जातियों (अजा) और अनुसूचित जनजातियों (अजजा) के लिए भी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है जोकि कुल आबादी में उनकी संख्या के अनुपात में होता है।[3],[4]  संविधान लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान नहीं करता। संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने विधायिकाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने का विरोध किया था।[5]  

17वीं लोकसभा के कुल सदस्यों में 15% महिलाएं हैं जबकि राज्य विधानसभाओं में महिलाएं कुल सदस्यों का औसतन 9% हैं। महिलाओं की स्थिति पर 2015 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य विधानसभाओं और संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व निराशाजनक बना हुआ है।[6] रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक दलों में निर्णय लेने वाले पदों पर महिलाओं की उपस्थिति न के बराबर है। रिपोर्ट में स्थानीय निकायोंराज्य विधानसभाओंसंसदमंत्रिस्तरीय स्तरों और सरकार के निर्णय लेने वाले सभी निकायों में महिलाओं के लिए कम से कम 50% सीटें आरक्षित करने का सुझाव दिया गया है।6  राष्ट्रीय महिला सशक्तीकरण नीति (2001) में कहा गया था कि उच्च स्तरीय विधायी निकायों में आरक्षण पर विचार किया जाए।[7]  

संविधान में संशोधन करके, संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने वाले बिल 199619981999 और 2008 में पेश किए गए।[8] पहले तीन बिल संबंधित लोकसभाओं के भंग होने के साथ लैप्स हो गए। 2008 का बिल राज्यसभा में पेश और पारित किया गयालेकिन 15वीं लोकसभा के भंग होने के साथ ही वह भी लैप्स हो गया। संसद की एक संयुक्त समिति ने 1996 के बिल की समीक्षा की, जबकि 2008 के बिल की समीक्षा कार्मिकलोक शिकायतकानून और न्याय संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने की। दोनों कमिटियों ने महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के प्रस्ताव पर सहमति जताई। इन कमिटियों ने कुछ सुझाव भी दिए, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं(i) उचित समय पर अन्य पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षण पर विचार किया जाए, (ii) 15 वर्ष की अवधि के लिए आरक्षण दिया जाए और उसके बाद उसकी समीक्षा की जाएऔर (iii) राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की प्रक्रियाओं पर काम किया जाए।8,[9]  

19 सितंबर, 2023 को संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) बिल, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया। बिल में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए कुल सीटों में से एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।

बिल की मुख्य विशेषताएं

  • महिलाओं के लिए आरक्षण: बिल, यथासंभव, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में महिलाओं के लिए सभी सीटों में से एक-तिहाई सीटें आरक्षित करता है। यह लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा।

  • आरक्षण की शुरुआतबिल के लागू होने के बाद होने वाली जनगणना के प्रकाशन के बाद आरक्षण प्रभावी होगा। जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए परिसीमन किया जाएगा। आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिए प्रदान किया जाएगा। हालांकि यह उस तारीख तक जारी रहेगा, जिसका निर्धारण संसद के किसी कानून द्वारा किया जाता है। 

  • सीटों का रोटेशनहर परिसीमन के बाद महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाएगा, जैसा कि संसद के कानून द्वारा निर्धारित किया जाए। 

विचारणीय मुद्दे

विधायिका में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण के मुद्दे की समीक्षा तीन नजरियों से की जा सकती है: (i) क्या महिला आरक्षण की नीति, महिला सशक्तीकरण के एक प्रभावी साधन के तौर पर काम कर सकती है, (ii) क्या विधायिका में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के अन्य वैकल्पिक तरीके व्यावहारिक हैंऔर (iii) क्या बिल में आरक्षण के लिए प्रस्तावित पद्धति में कोई समस्या है। 2008 के बिल पर हमने एक ब्रीफ छापा था। इस खंड में हमारा विश्लेषण काफी हद तक उस ब्रीफ पर आधारित है।[10]

आरक्षण का उद्देश्य

अगर राजनैतिक व्यवस्था में विभिन्न समूहों का आनुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं होता, तो नीति निर्माण को प्रभावित करने की उनकी क्षमता सीमित होती है।8  महिलाओं के साथ होने वाले सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर केंद्रित समझौते (कन्वेंशन) में प्रावधान है कि राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का उन्मूलन किया जाना चाहिए।[11] भले ही भारत ने उस कन्वेंशन पर दस्तखत किए हैं, लेकिन निर्णय लेने वाले निकायों में महिला प्रतिनिधित्व के मामले में भेदभाव जारी है।8 महिला सांसदों की संख्या पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15% हो गई हैलेकिन संख्या अब भी काफी कम है। पंचायतों में महिला आरक्षण के प्रभावों पर 2003 के एक अध्ययन से पता चलता है कि आरक्षण के तहत चुनी गई महिलाएं, महिला कल्याण के अधिक कार्य करती हैं।[12]  कार्मिकलोक शिकायतकानून और न्याय संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2009) ने कहा था कि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण ने उन्हें सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाया है।9 उसने यह भी कहा था कि इस बात की चिंता जताई गई थी कि स्थानीय निकायों में महिलाएं पुरुषों की प्रॉक्सी बनेंगी, यानी उनकी जगह पुरुष ही कार्य करेंगे। लेकिन यह चिंता भी निराधार साबित हुई। अंतर-संसदीय संघ (2022) ने कहा कि विधायी कोटा महिलाओं के प्रतिनिधित्व में एक निर्णायक कारक रहा है।[13]

आरक्षण की नीति का विरोध करने वालों का तर्क है कि महिलाओं के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र न केवल उनके दृष्टिकोण को संकीर्ण करेंगे, बल्कि उनकी गैर बराबर स्थिति को कायम रखेंगे। क्योंकि यह माना जाएगा कि वे योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहीं। उदाहरण के लिए संविधान सभा में रेणुका रे ने महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के खिलाफ तर्क दिया: “जब महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण होता हैतो सामान्य सीटों के लिए उन पर आम तौर पर विचार ही नहीं किया जाता, चाहे वे कितनी भी काबिल क्यों न हों। हमारा मानना है कि अगर सिर्फ क्षमता पर ध्यान दिया जाए तो महिलाओं को अधिक मौके मिलेंगे।5 विरोधियों का यह भी तर्क है कि आरक्षण से महिलाओं का राजनैतिक सशक्तीकरण नहीं होता, क्योंकि चुनावी सुधार के बड़े मुद्दों जैसे राजनीति का अपराधीकरणराजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र और काले धन के प्रभाव को रोकने के उपायों पर ध्यान नहीं दिया जाता है।[14]

प्रतिनिधित्व के अन्य तरीके

संसद में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटों के आरक्षण से आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं की पसंद सीमित हो जाएगी।14 कुछ विशेषज्ञों ने दो विकल्प सुझाए गए हैं: राजनीतिक दलों के भीतर उम्मीदवारों के लिए आरक्षण (जैसा कि कुछ देश करते हैंतालिका 1 देखें)और द्विसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र, जिसमें कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में दो उम्मीदवार होंगेजिनमें से एक महिला होगी (तालिका 2 देखें)। शुरुआत में भारत में बहु-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होते थे जिनमें एक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का सदस्य होता था। 1961 के एक कानून ने सभी निर्वाचन क्षेत्रों को एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में परिवर्तित कर दिया।[15]  तर्क यह था कि निर्वाचन क्षेत्र बहुत बड़े थे और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को लगता था कि एकल सदस्यीय आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में उन्हें अहमियत मिलेगी।[16]

तालिका 1: महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर विभिन्न देशों के आंकड़े (सितंबर 2023 तक)

देश

निर्वाचित महिलाओं का 

संसद में कोटा

राजनैतिक दलों में कोटा

स्वीडन

46%

नहीं

हां

नार्वे

46%

नहीं

हां

दक्षिण अफ्रीका

45%

नहीं

हां

ऑस्ट्रेलिया

38%

नहीं

हां

फ्रांस

38%

नहीं

हां

जर्मनी

35%

नहीं

हां

यूके हाउस ऑफ कॉमन्स

35%

नहीं

हां

कनाडा

31%

नहीं

हां

यूएस हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स

29%

नहीं

नहीं

यूएस सीनेट

25%

नहीं

नहीं

बांग्लादेश

21%

हां

नहीं

ब्राजील

18%

नहीं

हां

जापान

10%

नहीं

नहीं

नोट: कई देशों में महिलाओं के लिए कोटा अनिवार्य करने वाला कोई कानून नहीं है, लेकिन कुछ राजनीतिक दल महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करते हैं। स्रोत: अंतर-संसदीय संघ; पीआरएस।

तालिका 2: राजनीतिक दलों और द्विसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण का लाभ और हानि[17]

 

लाभ

हानि

राजनैतिक दल

  • मतदाताओं को अधिक लोकतांत्रिक विकल्प प्रदान करता है
  • स्थानीय राजनीतिक और सामाजिक कारकों के आधार पर पार्टियों को उम्मीदवारों और निर्वाचन क्षेत्रों को चुनने में अधिक फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है
  • उन क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं को नामांकित कर सकते हैं, जहां इसका चुनावी लाभ होगा
  • संसद में महिलाओं की संख्या में फ्लेक्सिबिलिटी आती है 
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बड़ी संख्या में महिलाएं निर्वाचित होंगी
  • राजनीतिक दल महिला उम्मीदवारों को उन निर्वाचन क्षेत्रों से खड़ा कर सकते हैं, जहां उनकी स्थिति कमजोर है
  • अगर समायोजन के चलते एक कद्दावर पुरुष उम्मीदवार की जगह किसी निर्वाचन क्षेत्र से एक महिला को खड़ा किया जाता है तो असंतोष पैदा हो सकता है

द्विसदस्यीय निर्वाचण क्षेत्र

  • मतदाताओं के लिए लोकतांत्रिक विकल्प को कम नहीं करता
  • पुरुष उम्मीदवारों के साथ कोई भेदभाव नहीं करता
  • सदस्यों के लिए उन निर्वाचन क्षेत्रों को विकसित करना आसान हो सकता है जिनकी औसत आबादी लगभग 2.5 मिलियन है
  • मौजूदा सदस्यों को अपना राजनीतिक आधार साझा करना पड़ सकता है
  • महिलाएं गौण या सहायक बन सकती हैं
  • 33% महिलाओं के मानदंड को पूरा करने के लिए आधी सीटों को द्विसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र होना चाहिए। नतीजतन कुल सांसदों की संख्या में 50% की वृद्धि हो जाएगी जिससे संसद में विचार-विमर्श और अधिक कठिन हो सकता है।

स्रोत: एंडनोट्स 14 और 17 के स्रोतों के आधार पर पीआरएस द्वारा संकलित।

निर्वाचन क्षेत्रों का रोटेशन

बिल में कहा गया है कि हर परिसीमन के बाद रोटेशन के आधार पर आरक्षित सीटों का रोटेशन किया जाएगा। इसका अर्थ यह है कि लगभग हर 10 साल में रोटेशन होगा क्योंकि 2026 के बाद हर जनगणना के बाद परिसीमन अनिवार्य है।[18]  आरक्षित सीटों के रोटेशन से सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए काम करने के प्रति कम प्रोत्साहित होंगे क्योंकि वे उस निर्वाचन क्षेत्र से दोबारा चुनाव लड़ने के लिए अपात्र हो सकते हैं।[19] पंचायती राज मंत्रालय के एक अध्ययन में सुझाव दिया गया था कि पंचायती स्तर पर निर्वाचन क्षेत्रों के रोटेशन को रोक दिया जाना चाहिए क्योंकि लगभग 85महिलाएं पहली बार चुनी गई थीं और सिर्फ 15महिलाएं दोबारा चुनी गईं क्योंकि जिन सीटों से वे निर्वाचित हुई थीं, वे गैर आरक्षित हो गईं।

2008 और 2023 के बिल्स के बीच मुख्य परिवर्तन

निम्नलिखित तालिका में राज्यसभा द्वारा पारित 2008 के बिल और 2023 में पेश किए गए बिल के बीच कुछ महत्वपूर्ण बदलावों को दर्शाया गया है।

तालिका 3: 2008 के बिल और 2023 में पेश किए गए बिल के बीच मुख्य परिवर्तन

 

2008 में पेश बिल, जिसे राज्यसभा में पारित किया गया

2023 में पेश किया गया बिल

लोकसभा में आरक्षण

प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में एक तिहाई लोकसभा सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी

महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी

सीटों का रोटेशन

संसद के प्रत्येक आम चुनाव/विधान सभा चुनाव के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन किया जाएगा

हर परिसीमन के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन किया जाएगा 

स्रोत: संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) बिल, 2008; संविधान (एक सौ अट्ठाईसवां संशोधन) बिल, 2023; पीआरएस।

 

 

[5] Friday, 18th July 1947, Constituent Assembly Debates (Proceedings) – Volume IV, as accessed on September 19, 2023, https://loksabha.nic.in/writereaddata/cadebatefiles/vol4.html

[6] Executive Summary, Report of the Status of Women in India, Ministry for Women and Child Development, https://wcd.nic.in/sites/default/files/Executive%20Summary_HLC_0.pdf

[7] National Policy for the Empowerment of Women (2001), Ministry of Women and Child Development, as accessed on September 19, 2023, https://wcd.nic.in/womendevelopment/national-policy-women-empowerment

[8] Reservation of Seats for Women in Legislative Bodies: Perspectives, Rajya Sabha Secretariat, July 2008, http://164.100.213.102/RSCMSNew/UploadedFiles/ElectronicPublications/reserv_women_pers2008.pdf.  

[9] 36th Report: The Constitution (One Hundred and Eighth Amendment) Bill, 2008, Standing Committee on Personnel, Public Grievances, Law and Justice, December 2009, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2008/scr_Women_Reservation_Bill_2009.pdf

[10] Legislative Brief, The Constitution (One Hundred and Eighth Amendment) Bill, 2008, PRS Legislative Research, September 23, 2008, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2008/bill184_20080923184_Legislative_Brief____Womens_reservation_Bill_final.pdf

[11] Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women, United Nations, December 18, 1979, https://www.ohchr.org/en/instruments-mechanisms/instruments/convention-elimination-all-forms-discrimination-against-women

[12] The Impact of Reservation in the Panchayati Raj: Evidence from a Nationwide Randomised Experiment, Raghabendra Chattopadhyay and Esther Duflo, November 2003.

[13] Women in Parliament in 2022, Inter-Parliamentary Union. 

[14] “Enhancing Women’s Representation in Legislatures: An Alternative to the Government Bill for Women’s Representation,” Forum for Democratic Reforms – Dr Jayaprakash Narayan, Dhirubhai Sheth, Yogendra Yadav, Madhu Kishwar, Manushi, Issue 116, https://ekcenter.fdrindia.org/sites/default/files/AdvocacyPapers/Enhancing%20Women%27s%20Representation%20in%20Legislatures%20-%20to%20update.pdf

[15] The Two-Member Constituencies (Abolition) Act, 1961, https://www.indiacode.nic.in/repealed-act/repealed_act_documents/A1961-1.pdf

[16] India’s Living Constitution: Ideas, Practices, Controversies, ed. by Zoya Hasan, E. Sridharan, R. Sudarshan, Anthem Press, 2005.

[17] “Do a double take on women’s quota,” Rami Chhabra, Indian Express, Aug 8, 2003; “Women’s Reservation: Another Approach,” Mukesh Dalal, Manushi, Issue no. 120; “Alternative as Dilution,” Brinda Karat, Outlook, May 17, 2003; “Role of Women in Legislature,” Report of Joint Session by National Commission for Women and Parliamentary Committee on the Empowerment of Women, Aug 21, 2003; and Reservation of Seats for Women in Legislative Bodies: Perspectives, Occasional Paper Series, Rajya Sabha Secretariat, July 2008.

[19] “Dual-Member Constituencies: Resolving Deadlock on Women’s Reservation,” Medha Nanivadekar, Economic and Political Weekly, October 25, 2003.

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्रअलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।