बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • बिल बच्चों की परिभाषा में सौतेले बच्चे, दत्तक (जिन्हें गोद लिया गया है) बच्चे, बहू-दामाद और नाबालिग बच्चों के लीगल गार्जियन को भी शामिल करता है।
     
  • एक्ट के अंतर्गत भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बच्चों को इस बात का निर्देश दे सकता है कि वे अपने माता-पिता को अधिकतम 10,000 प्रति माह की भरण-पोषण राशि चुकाएं। बिल इस राशि की अधिकतम सीमा को हटाता है।
     
  • एक्ट में वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह प्रावधान है कि वे भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ अपील कर सकते हैं। बिल बच्चों और संबंधियों को ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ अपील करने की अनुमति देता है। 
     
  • बिल में प्रावधान है कि अगर बच्चे या संबंधी भरण-पोषण के आदेश का पालन नहीं करते तो ट्रिब्यूनल देय राशि की वसूली के लिए वॉरंट जारी कर सकता है। यह जुर्माना न भरने पर एक महीने तक की, या जब तक भुगतान नहीं किया जाता, तब तक की सजा हो सकती है। 
     
  • बिल में वरिष्ठ नागरिकों के लिए निजी केयर होम्स, और होम केयर सेवा प्रदान करने वाले संस्थानों के रेगुलेशन का प्रावधान है।

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • एक्ट के अंतर्गत भरण-पोषण ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की जाएगी। ट्रिब्यूनल तय करेगी कि वरिष्ठ नागरिकों को बच्चों और संबंधियों द्वारा भरण-पोषण के लिए कितनी राशि चुकाई जाए। बिल कहता है कि निम्नलिखित के आधार पर भरण-पोषण की राशि की गणना की जाएगी: (i) माता-पिता या वरिष्ठ नागरिक का जीवन स्तर और आय, और (ii) बच्चों की आय। संभव है कि प्रशासनिक अधिकारियों के पास भरण-पोषण की देय राशि को निर्धारित करने की विशेषज्ञता न हो।  
     
  • राज्य सरकारों को बिल को लागू करने के लिए जरूरी धनराशि दी जानी चाहिए। बिल को लागू करने में भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बनाना और निजी केयर होम्स को रेगुलेट करना शामिल है। अगर राज्य के पास पर्याप्त धनराशि नहीं होगी तो बिल को लागू करने में समस्याएं आ सकती हैं। 
     
  • होम केयर सेवाओं की परिभाषा एक्ट या बिल में नहीं दी गई है। उल्लेखनीय है कि होम केयर सेवाओं में बहुत सारे काम आते हैं, जैसे खाना पकाना औऱ साफ सफाई से लेकर आईवी ड्रिप्स देना तक। यह अस्पष्ट है कि किन गतिविधियों को होम केयर सेवाओं में वर्गीकृत और रेगुलेट किया जाएगा।

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या में 60 वर्ष से अधिक आयु के नागरिकों का हिस्सा 8.6% है और 2050 तक यह दर 21% होने का अनुमान है।[1]   वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सुरक्षा, कल्याण और संरक्षण देने के लिए माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण एक्ट, 2007 को लागू किया गया था। इस एक्ट में बच्चों से यह अपेक्षा की गई है कि वे अपने माता-पिता को मेनटेनेंस (भरण-पोषण या गुजारा भत्ता) दें और सरकार से यह अपेक्षा की गई है कि वह ओल्ड एज होम्स बनाए और वरिष्ठ नागरिकों को मेडिकल सहायता सुनिश्चित करे। एक्ट भरण-पोषण को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और अपीलीय ट्रिब्यूनल का गठन करता है।  

एक्ट के अंतर्गत कई मामले दर्ज किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक्ट की विस्तृत जांच की और केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि वह एक्ट के कुछ प्रावधानों की फिर से समीक्षा करे जोकि अस्पष्ट हैं। अदालत ने एक्ट की व्याख्या इस तरह की थी कि कोई भी पक्ष प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है और उसने कानूनी प्रतिनिधित्व पर लगे प्रतिबंध को हटाया था।[2]  बिल 2007 के एक्ट में संशोधन करता है ताकि बच्चों, संबंधियों और माता-पिता की परिभाषा को विस्तार दिया जा सके तथा बच्चों और संबंधियों द्वारा माता-पिता को दी जाने वाली भरण-पोषण राशि की अधिकतम सीमा को खत्म किया जा सके। साथ ही बिल माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के लिए केयर होम्स और दूसरे कल्याणकारी उपायों का प्रावधान करता है। 

मुख्य विशेषताएं 

तालिका 1 में बिल में प्रस्तावित संशोधनों का उल्लेख है।

तालिका 1: एक्ट और बिल के बीच अंतर

प्रावधान

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण एक्ट, 2007 

माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) बिल, 2019 में प्रस्तावित संशोधन

परिभाषाएं

बच्चे

  • बच्चों में नाबालिगों को छोड़कर बच्चे, नाती-नातिन, पोते-पोती शामिल हैं। 
  • सौतेले बच्चे, गोद लिए बच्चे, बहू दामाद और नाबालिग बच्चों के लीगल गार्जियन शामिल हैं।

संबंधी

  • संबंधियों में संतानरहित वरिष्ठ नागरिकों के कानूनी वारिस शामिल हैं जिनका उनकी संपत्ति पर कब्जा है या जिन्हें उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति मिलेगी। इसमें नाबालिग बच्चे शामिल नहीं हैं।
  • इस परिभाषा में नाबालिगों को शामिल किया गया है। उनका प्रतिनिधित्व उनके लीगल गार्जियन द्वारा किया जाएगा। 

माता-पिता

  • माता-पिता में बायोलॉजिकल, दत्तक और सौतेले माता-पिता शामिल हैं। 
  • इसमें सास-ससुर और दादा-दादी, नाना-नानी को शामिल किया गया है। 

वरिष्ठ नागरिक 

  • भरण-पोषण में खाना, कपड़ा, आवास, मेडिकल सहायता और इलाज शामिल है।
  • इस परिभाषा में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की स्वास्थ्य देखभाल, और सुरक्षा का प्रावधान शामिल किया गया है ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें। 

कल्याण

  • कल्याण में खाना, स्वास्थ्य देखभाल और वरिष्ठ नागरिकों के लिए दूसरी जरूरी सुविधाएं शामिल हैं। 
  • इस परिभाषा को व्यापक बनाता है और इसमें आवास, कपड़ा और सुरक्षा तथा वरिष्ठ नागरिकों या माता-पिता के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी सुविधाओं के प्रावधान को शामिल करता है। 

भरण-पोषण के आदेश

भरण-पोषण की राशि

  • राज्यों द्वारा भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बनाया जा सकता हैं जोकि यह तय करेंगे कि वरिष्ठ नागरिकों को बच्चों और संबंधियों द्वारा हर महीने भरण-पोषण की कितनी राशि चुकाई जाएगी। यह राशि हर महीने 10,000 रुपए से अधिक नहीं हो सकती। 
  • बच्चों और संबंधियों को ट्रिब्यूनल के आदेश के 30 दिनों के भीतर भरण-पोषण की राशि चुकानी होगी। 
  • बिल भरण-पोषण की अधिकतम सीमा हटाता है। ट्रिब्यूनल को भरण-पोषण की राशि निर्धारित करते समय निम्नलिखित पर विचार करना होगा: (i) माता-पिता या वरिष्ठ नागरिक का जीवन स्तर और आय, और (ii) बच्चों की आय। 
  •  दिनों की संख्या को कम करके 15 दिन करता है। 

भरण-पोषण अधिकारी

  • ट्रिब्यूनल की कार्यवाही के दौरान भरण-पोषण अधिकारी द्वारा माता-पिता या वरिष्ठ नागरिकों का प्रतिनिधित्व किया जा सकता है। 
  • भरण-पोषण अधिकारी (i) भरण-पोषण राशि चुकाने के आदेशों के अनुपालन को सुनिश्चित करेगा, और (ii) माता-पिता या वरिष्ठ नागरिकों के लिए लियेज़न (संपर्क अधिकारी) के तौर पर कार्य करेगा।

अपील

  • वरिष्ठ नागरिक या माता-पिता ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं।  
  • बच्चे और संबंधी भी ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ अपील सकते हैं। 

अपराध और सजा

वरिष्ठ नागरिक या माता पिता का परित्याग (उन्हें छोड़ देना) 

  • तीन महीने तक की सजा या 5,000 रुपए तक का जुर्माना या दोनों। 
  • तीन से छह महीने तक की सजा, या 10,000 रुपए तक का जुर्माना, या दोनों।

वरिष्ठ नागरिक का उत्पीड़न

  • कोई प्रावधान नहीं।
  • तीन से छह महीने तक की सजा, या 10,000 रुपए तक का जुर्माना, या दोनों।

वरिष्ठ नागरिकों का संरक्षण और कल्याण

केयर होम्स 

  • राज्य सरकार को हर जिले में कम से कम एक ओल्ड एज होम बनाना होगा जिसमें 150 वरिष्ठ नागरिक को रखने की क्षमता हो।
  • वरिष्ठ नागरिकों के लिए केयर होम्स सरकार या निजी संगठनों द्वारा स्थापित किए जा सकते हैं। इन होम्स को राज्य सरकार द्वारा स्थापित रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी में रजिस्टर होना चाहिए। केंद्र सरकार इन होम्स के लिए न्यूनतम मानदंडों को निर्धारित करेगी, जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर और मेडिकल सुविधाएं।  

होम केयर सेवाएं

  • कोई प्रावधान नहीं।
  • होम केयर सेवाएं प्रदान करने वाले संस्थानों की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) कर्मचारियों को प्रशिक्षित और सर्टिफाइड होना चाहिए, और (ii) संस्थानों को राज्य सरकार द्वारा स्थापित रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी में रजिस्टर होना चाहिए।

स्वास्थ्य सेवा

  • सुविधाओं का प्रावधान करता है, जैसे सरकारी अस्पतालों में वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग कतार और बेड्स। 
  • निजी सहित सभी अस्पतालों में वरिष्ठ नागरिकों को ये सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। 

पुलिस संरक्षण

  • कोई प्रावधान नहीं।
  • हर पुलिस स्टेशन में कम से एक अधिकारी होना चाहिए (उसे असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर और उससे ऊंचे रैंक का अधिकारी होना चाहिए) जोकि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों से संबंधित मुद्दों का निपटारा करेगा। राज्य सरकार को हर जिले में वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक विशेष पुलिस यूनिट बनानी होगी। इस यूनिट का प्रमुख पुलिस अधिकारी डेप्युटी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस और उससे ऊंचे रैंक का अधिकारी होना चाहिए।

Sources: Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007; Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens (Amendment) Bill, 2019; PRS.

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

भरण-पोषण की मासिक देय राशि की अधिकतम सीमा को हटाना

एक्ट राज्य सरकारों को भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बनाने की अनुमति देता है ताकि बच्चों द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को मासिक देय राशि का निर्धारण किया जा सके। एक प्रशासनिक अधिकारी इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता करेगा। यह राशि 10,000 रुपए प्रति माह से अधिक नहीं हो सकती। बिल इस भरण-पोषण की राशि की अधिकतम सीमा को हटाता है और ट्रिब्यूनल को निम्नलिखित आधार पर इसे तय करने की अनुमति देता है: (i) वरिष्ठ नागरिकों का जीवन स्तर और उनकी आय, और (ii) बच्चों की आय। यह कहा जा सकता है कि भरण-पोषण की मासिक राशि की अधिकतम सीमा तय करने के लिए न्यायिक विशेषज्ञता चाहिए। संभव है ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता करने वाले प्रशासनिक अधिकारी के पास यह विशेषज्ञता न हो। उल्लेखनीय है कि तलाक के बाद पत्नी/पति के लिए भरण-पोषण राशि को तय करने की ऐसी ही प्रक्रिया में अध्यक्षता न्यायिक अधिकारी द्वारा ही की जाती है।

इसके अतिरिक्त एक्ट में कहा गया है कि बच्चों को वरिष्ठ नागरिकों को इतना भरण-पोषण देना होगा कि वे ‘सामान्य जीवन’ जी सकें। बिल में इसमें संशोधन किया गया है और कहा गया है कि बच्चे वरिष्ठ नागरिकों को इतना भरण-पोषण देने के लिए बाध्य हैं जिससे वे गरिमा के साथ अपना जीवन जी सकें। हालांकि बिल में ‘गरिमापूर्ण जिंदगी’ को स्पष्ट नहीं किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने मानव गरिमा के साथ जीवन जीने के अधिकार की परिभाषा देते हुए कहा था कि इसमें पर्याप्त पोषण, कपड़ा, आश्रय और पढ़ना लिखना एवं खुद को विविध तरीके से अभिव्यक्त करना, दूसरे लोगों से स्वतंत्रता से मिलना-जुलना शामिल है।[3]  यह कहा जा सकता है कि ‘गरिमापूर्ण जीवन’ में क्या-क्या आता है, इसे तय करने के लिए न्यायिक प्रशिक्षण और क्षमता होनी चाहिए। संभव है कि वह प्रशासनिक अधिकारियों में मौजूद न हो।  

भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ अपीलीय ट्रिब्यूनल में अपील दायर की जा सकती है जिसकी अध्यक्षता भी प्रशासनिक अधिकारी द्वारा की जाएगी। इसलिए एक्ट के अंतर्गत न्यायिक अपील का कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकार अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेश से पीड़ित व्यक्ति के पास केवल एक उपाय मौजूद है, वह यह कि वह संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय में रिट दायर कर सकता है।

लीगल प्रैक्टीशनर्स ट्रिब्यूनल की प्रक्रिया में पक्षों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते

एक्ट कहता है कि ट्रिब्यूनल या अपीलीय ट्रिब्यूनल में लीगल प्रैक्टीशनर किसी भी पक्ष का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। हालांकि लीगल प्रतिनिधि पर प्रतिबंध से कानूनी प्रक्रिया में तेजी आ सकती है और उससे जुड़े पक्षों के खर्चों में कमी आ सकती है, लेकिन बिल का यह प्रावधान एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के सेक्शन 30 का उल्लंघन भी करता है। इस सेक्शन में कहा गया है कि सभी एडवोकेट्स को निम्नलिखित में प्रैक्टिस करने का अधिकार है: (i) सर्वोच्च न्यायालय सहित सभी अदालतें, (ii) ट्रिब्यूनल या सबूत लेने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत किसी व्यक्ति के सामने, और (iii) किसी ऐसी अन्य अथॉरिटी या व्यक्ति के सामने जिसके सामने वह वकील प्रैक्टिस करने के लिए अधिकृत है।[4]

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने परमजीत कुमार सरोया बनाम भारत संघ के मामले में कहा था कि एडवोकेट्स एक्ट, 1961 का यह सेक्शन 2007 के एक्ट के संसद में पारित होने के बाद लागू हुआ था। इसलिए एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के प्रावधान लागू रहेंगे और भरण-पोषण या अपीलीय ट्रिब्यूनल में लीगल प्रैक्टीशनर्स द्वारा सहायता पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।2

संबंधी की परिभाषा अस्पष्ट है

बिल ‘संबंधी’ को निस्संतान (चाइल्डलेस) वरिष्ठ नागरिक के कानूनी वारिस के रूप में परिभाषित करता है। हालांकि वरिष्ठ नागरिक अपनी वसीयत को किसी भी समय बदल सकते हैं। इसलिए इस पर अंतिम फैसला नहीं हो सकता कि लीगल वारिस कौन होगा और किसे वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण करना चाहिए। 

होम केयर सेवाओं की परिभाषा तय नहीं

बिल में ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को होम केयर सेवाएं प्रदान करने वाले संस्थानों के लिए शर्तें निर्धारित की गई हैं जिन्हें शारीरिक या मानसिक बीमारियों के कारण अपनी रोजमर्रा के काम करने में समस्याएं आती हैं। इन शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रशिक्षित और सर्टिफाइड सहायक या केयरगिवर्स को नौकरी पर रखना, और (ii) राज्य सरकार द्वारा स्थापित रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी में रजिस्टर करना। हालांकि बिल यह स्पष्ट नही करता कि होम केयर सेवाओं में क्या शामिल होगा। उदाहरण के लिए यह अस्पष्ट है कि क्या होम केयर सेवाओं में मेडिकल सेवाएं जैसे फिजियोथेरेपी और आईवी ड्रिप्स देना, या खाना पकाना और साफ-सफाई जैसी सेवाओं शामिल होंगी। 

इसके अतिरिक्त बिल में यह अपेक्षा की गई है कि होम केयर सेवाएं प्रदान करने वाले संस्थान प्रशिक्षित और सर्टिफाइड सहायकों या केयरगिवर्स को नौकरी पर रखेंगे। हालांकि बिल में यह स्पष्ट नहीं किया गया है या उसके लिए कोई नियम नहीं बनाए गए हैं कि सहायकों और केयरगिवर्स को ऐसी सेवाएं देने से पहले किन सर्टिफिकेशंस और प्रशिक्षणों को हासिल करना चाहिए।  

राज्यों पर वित्तीय असर

राज्य सरकारों को बिल के अंतर्गत विभिन्न प्रावधानों को लागू करना होगा और उसके लिए खर्च भी करना होगा। इन प्रावधानों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) केयर होम्स बनाना, (ii) वरिष्ठ नागरिकों के लिए सुलभ सार्वजनिक सुविधाएं तैयार करना, और (iii) निजी केयर होम्स और होम केयर सेवाओं को रेगुलेट करना। बिल के वित्तीय ज्ञापन (फाइनांशियल मेमोरेंडम) में कहा गया है कि इन प्रावधानों को लागू करने के लिए भारत के समेकित कोष से कोई धनराशि नहीं दी जाएगी।[5]  उल्लेखनीय है कि अगर राज्य विधानमंडल जरूरी राशि आबंटित नहीं करतीं या उनके पास पर्याप्त धनराशि नहीं होती तो बिल के कार्यान्वयन पर असर हो सकता है। 

 

[1] National Policy for Senior Citizens, Ministry of Social Justice and Empowerment, March 2011. 

[2] Paramjit Kumar Saroya v. Union of India and another, [AIR 2014 P&H 121].

[3] Francis Coralie Mullin v. Administrator, Union Territory of Delhi and Ors. [(1981) 1 SCC 608].

[4] Advocates Act, 1961. 

[5] Financial Memorandum, Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens (Amendment) Bill, 2019.

 

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