मंत्रालय: 
स्वास्थ्य
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल बिल, 2013 राज्यसभा में 19 अगस्त, 2013 को पेश किया गया। यह मानसिक स्वास्थ्य एक्ट, 1987 का स्थान लेगा।
     
  • बिल के उद्देश्य और कारण के कथन के अनुसार सरकार विकलांगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कनवेंशन, 2007 का अनुमोदन करती है। अपेक्षा की जाती है कि देश के कानून इस कनवेंशन के प्रावधानों के अनुरूप होंगे। मौजूदा कानून के तहत मानसिक रोगियों के अधिकारों का समुचित संरक्षण नहीं हो रहा। साथ ही स्वास्थ्य संबंधी देखभाल तक उनकी पहुंच भी नहीं बढ़ रही। इसलिए यह नया बिल पेश किया गया। बिल की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं :
     
  • मानसिक रोगियों के अधिकारः प्रत्येक व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित और वित्त पोषित सेवाओं से उपचार और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पाने का अधिकार है। इस अधिकार में उचित दर पर, गुणवत्तापूर्ण सेवाएं आसानी से उपलब्ध होना शामिल है। मानसिक रोगियों के उपचार में समानता, अमानवीय और अपमानजनक तरीके से उपचार से संरक्षण मिलना, निशुल्क कानूनी सेवा, अपने चिकित्सा रिकॉर्ड तक आसानी से पहुंच और देखभाल के प्रावधान में खामियों के बारे में शिकायत करने का अधिकार है।
     
  • अग्रिम निर्देशः एक मानसिक रोगी को यह अग्रिम निर्देश देने का अधिकार है कि किसी मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या के दौरान वह किस तरह से उपचार चाहता है और उसका मनोनीत प्रतिनिधि कौन होगा। यह अग्रिम निर्देश किसी चिकित्सक से सर्टिफाई या स्वास्थ्य बोर्ड से पंजीकृत होना चाहिए। यदि कोई पेशेवर मानसिक स्वास्थ्यकर्मी/संबंधी/देखभाल करने वाला उपचार के दौरान निर्देशों का पालन नहीं करना चाहता है तो मानसिक स्वास्थ्य बोर्ड को अग्रिम निर्देश की समीक्षा करने/बदलने/रद्द करने के लिए आवेदन कर सकता है।
     
  • केंद्रीय और राज्य मानसिक स्वास्थ्य अथॉरिटीः ये ऐसे प्रशासनिक निकाय हैं जो (क) सभी मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को पंजीकृत करने, उनका विवरण रखने और निरीक्षण करने, (ख) इन प्रतिष्ठानों के लिए गुणवत्ता और सेवा प्रावधान नियम बनाने, (ग) मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों का विवरण रखने, (घ) कानून लागू करने वाले अधिकारियों और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों को कानूनी प्रावधानों का प्रशिक्षण देने (ड.) सेवा प्रावधान में खामी की शिकायतें दर्ज करने और (च) मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर सरकार को परामर्श देने का दायित्व निभाते हैं।
     
  • मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानः प्रत्येक मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान को केंद्र या राज्य मानसिक स्वास्थ्य अथॉरिटी में पंजीकृत होना चाहिए। इसके लिए बिल में दिए गए विभिन्न मानदंड पूरे करने होंगे।
     
  • बिल मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों को भर्ती करने, उनका उपचार करने और उपचार के बाद उन्हें डिस्चार्ज करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया भी स्पष्ट करता है। मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती होने का निर्णय जहां तक संभव हो, मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति का ही होना चाहिए, केवल उस स्थिति को छोड़कर जब वह स्वतंत्र निर्णय लेने में असमर्थ हो या कोई ऐसी परिस्थिति हो जिसमें किसी और के हवाले से रोगी को भर्ती करना अनिवार्य हो जाए।
     
  • मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा आयोग और बोर्डः मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा आयोग एक अर्ध न्यायिक निकाय होगा जो अग्रिम निर्देश देने की प्रक्रिया और उपयोग की समय-समय पर समीक्षा करेगा और मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के अधिकारों के संरक्षण पर सरकार को परामर्श देगा। आयोग राज्य सरकार की सहमति से राज्य के जिलों में मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड का गठन करेगा।
     
  • इस बोर्ड को अग्रिम निर्देश (क) दर्ज करने/समीक्षा करने/बदलने/रद्द करने, (ख) मनोनीत प्रतिनिधि नियुक्त करने, (ग) देखभाल और सेवाओं में खामी संबंधी शिकायतों से निपटने, (घ) मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठान के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी या मनोविज्ञानी के निर्णय के खिलाफ मानसिक रोग ग्रस्त व्यक्ति/उसके मनोनीत प्रतिनिधि/किसी अन्य संबद्ध व्यक्ति से आवेदन लेने और उस पर फैसला देने का अधिकार होगा।
     
  • आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से अलग करना और बिजली के झटके की उपचार पद्धति निषिद्ध करनाः आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति को उस वक्त मानसिक रूप से ग्रस्त माना जाएगा और भारतीय दंड संहिता के तहत दंडित नहीं किया जाएगा। उपचार के लिए बिजली के झटकों की अनुमति केवल मांसपेशियों को तनावमुक्त करने वाले उपचार और एनेसथीसिया के साथ ही होगी। ये उपचार पद्धति नाबालिगों के लिए प्रतिबंधित है।

 

यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।