- मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश, 2018 को 19 सितंबर, 2018 को जारी किया गया। उल्लेखनीय है कि मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2018 को लोकसभा में 28 दिसंबर, 2017 को पेश और पास किया गया और यह बिल वर्तमान में राज्यसभा में लंबित है।
- अध्यादेश तलाक कहने को, जिसमें लिखित और इलेक्ट्रॉनिक दोनों रूप शामिल हैं, कानूनी रूप से अमान्य और गैरकानूनी बनाता है। बिल के अनुसार तलाक से अभिप्राय है, तलाक-ए-बिद्दत या किसी भी दूसरी तरह का तलाक, जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को इंस्टेंट या इररिवोकेबल (जिसे पलटा न जा सके) तलाक दे देता है। तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम पर्सनल कानूनों के अंतर्गत ऐसी प्रथा है जिसमें मुस्लिम पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को एक सिटिंग में तीन बार ‘तलाक’ कहने से इंस्टेंट या इररिवोकेबल तलाक हो जाता है।
- अपराध और दंड: बिल तलाक कहने को संज्ञेय अपराध बनाता है जिसके परिणामस्वरूप तीन साल की कैद और जुर्माने की सजा हो सकता है (एक संज्ञेय अपराध ऐसा अपराध होता है जिसमें पुलिस अधिकारी बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार कर सकता है)। अपराध संज्ञेय होगा, अगर अपराध से संबंधित सूचना: (i) विवाहित महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है), या (ii) उससे रक्त या वैवाहिक संबंध से जुड़े किसी व्यक्ति ने दी हो।
- अध्यादेश में प्रावधान है कि मेजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है। महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है) की सुनवाई के बाद या अगर मेजिस्ट्रेट इस बात से संतुष्ट है कि जमानत देने के पर्याप्त आधार हैं, तभी आरोपी को जमानत दी जा सकती है।
- महिला (जिसे तीन तलाक कहा गया है) के अनुरोध पर मेजिस्ट्रेट द्वारा अपराध को शमनीय माना जा सकता है। शमनीय या कम्पाउंडिंग का अर्थ वह प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्ष कानूनी कार्यवाहियों को रोकने और विवाद को निपटाने के लिए सहमत हो जाते हैं। कम्पाउंडिंग के नियम और शर्तों को मेजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
- भत्ता: जिस मुस्लिम महिला को तलाक दिया गया है, वह अपने पति से अपने और खुद पर निर्भर बच्चों के लिए गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अधिकृत है। भत्ते की राशि मेजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित की जाएगी।
- अवयस्क बच्चों की कस्टडी: जिस मुस्लिम महिला को इस प्रकार तलाक दिया गया है, वह अपने अवयस्क बच्चों की कस्टडी हासिल करने के लिए अधिकृत है। कस्टडी का निर्धारण मेजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा।
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