मंत्रालय: 
विधि एवं न्याय
  • विधि और न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 28 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल, 2017 को पेश किया।
     
  • बिल तलाक कहने को, जिसमें लिखित और इलेक्ट्रॉनिक दोनों रूप शामिल हैं, कानूनी रूप से अमान्य और गैरकानूनी बनाता है। बिल के अनुसार तलाक से अभिप्राय है, तलाक-ए-बिद्दत या किसी भी दूसरी तरह का तलाक, जिसके परिणामस्वरूप मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को इंस्टेंट या इररिवोकेबल (जिसे पलटा न जा सके) तलाक दे देता है। तलाक-ए-बिद्दत मुस्लिम पर्सनल कानूनों के अंतर्गत ऐसी प्रथा है जिसमें मुस्लिम पुरुष द्वारा अपनी पत्नी को एक सिटिंग में तीन बार तलाक कहने से इंस्टेंट या इररिवोकेबल तलाक हो जाता है।
     
  • अपराध और दंड : बिल तलाक कहने को संज्ञेय और गैर जमानती अपराध बनाता है (एक संज्ञेय अपराध ऐसा अपराध होता है जिसमें पुलिस अधिकारी बिना वारंट के आरोपी को गिरफ्तार कर सकता है)। तलाक कहने वाले पति को तीन वर्षों तक के कारावास की सजा हो सकती है और उसे जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
     
  • भत्ता : उपर्युक्त तरीके से जिस मुस्लिम महिला को तलाक दिया गया है, वह अपने पति से अपने और खुद पर निर्भर बच्चों के लिए गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अधिकृत है। भत्ते की राशि प्रथम श्रेणी के मेजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित की जाएगी।
     
  • अवयस्क बच्चों की कस्टडी : उपर्युक्त तरीके से जिस मुस्लिम महिला को तलाक दिया गया है, वह अपने अवयस्क बच्चों की कस्टडी हासिल करने के लिए अधिकृत है। कस्टडी का निर्धारण मेजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा।

 

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