- मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश, 2020 को 5 जून, 2020 को जारी किया गया। यह अध्यादेश कृषि उत्पादों की बिक्री और खरीद के संबंध में किसानों को संरक्षण देने और उनके सशक्तीकरण हेतु फ्रेमवर्क प्रदान करता है। इस अध्यादेश के प्रावधान राज्यों के एपीएमसी एक्ट्स के प्रावधानों के होते हुए भी लागू रहेंगे।
- कृषि समझौता: अध्यादेश में प्रावधान है कि किसी कृषि उत्पाद के उत्पादन या पालन से पहले कृषि समझौता किया जाएगा, जिसका उद्देश्य यह है कि किसान अपने कृषि उत्पादों को स्पॉन्सर्स को आसानी से बेच सकें। स्पान्सर में व्यक्ति, पार्टनरशिप फर्म्स, कंपनियां, लिमिटेड लायबिलिटी ग्रुप्स और सोसाइटियां शामिल हैं। ये समझौते निम्नलिखित के बीच हो सकते हैं: (i) किसान और स्पान्सर, या (ii) किसान, स्पॉन्सर, और तीसरा पक्ष। तीसरे पक्ष में एग्रीगेटर भी शामिल हैं और कृषि समझौते में उनकी भूमिका और सेवाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख होगा। एग्रीगेटर वे होते हैं जो एग्रीगेशन से संबंधित सेवाएं प्रदान करने के लिए किसान और स्पॉन्सर के बीच बिचौलिये का काम करते हैं। राज्य सरकार कृषि समझौते की इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्री के लिए एक रजिस्ट्रेशन अथॉरिटी स्थापित कर सकती है।
- समझौते में कृषि उत्पाद की सप्लाई, गुणवत्ता, मानदंड और मूल्य से संबंधित नियमों और शर्तों तथा कृषि सेवाओं की सप्लाई से संबंधित नियमों का उल्लेख हो सकता है। ये नियम और शर्तें खेती और पालन की प्रक्रिया के दौरान, या डिलिवरी के समय निरीक्षण और सर्टिफिकेशन का विषय हो सकते हैं। कृषि समझौता केंद्र और राज्य सरकार की योजनाऔं के अंतर्गत या किसी वित्तीय सेवा प्रदाता के बीमा या ऋण उत्पादों से लिंक हो सकता है। इससे किसानों या स्पॉन्सर, या दोनों के लिए जोखिम कम होगा और ऋण प्राप्त होना सुनिश्चित होगा। अध्यादेश के अंतर्गत स्पॉन्सर कृषि समझौते की मदद से किसान की जमीन या परिसर का स्वामित्व हासिल नहीं कर सकता और न ही उसमें कोई स्थायी बदलाव कर सकता है।
- समझौते की अवधि: समझौते की अवधि एक फसल मौसम या पशु का एक प्रजनन चक्र होगा। अधिकतम अवधि पांच वर्ष होगी। पांच वर्ष के बाद उत्पादन चक्र के लिए, समझौते की अधिकतम अवधि को किसान और स्पॉन्सर आपस में तय करेंगे।
- मौजूदा कानूनों से छूट: कृषि समझौते के अंतर्गत कृषि उत्पाद को उन सभी राज्य कानूनों से छूट मिलेगी, जो कृषि उत्पाद की बिक्री और खरीद को रेगुलेट करते हैं। इन उत्पादों को अनिवार्य वस्तु एक्ट, 1955 के प्रावधानों से छूट मिलेगी और उन पर स्टॉक सीमा की कोई बाध्यता लागू नहीं होगी।
- क़ृषि उत्पाद का मूल्य निर्धारण: कृषि उत्पाद की खरीद का मूल्य समझौते में दर्ज होगा। मूल्य में बदलाव की स्थिति में समझौते में निम्नलिखित शामिल होना चाहिए: (i) ऐसे उत्पाद के लिए गारंटीशुदा मूल्य, और (ii) गारंटीशुदा मूल्य के अतिरिक्त राशि, जैसे बोनस या प्रीमियम का स्पष्ट संदर्भ। यह संदर्भ मौजूदा मूल्यों या दूसरे निर्धारित मूल्यों से संबंधित हो सकता है। गारंटीशुदा मूल्य सहित किसी अन्य मूल्य के निर्धारण के तरीके और अतिरिक्त राशि का उल्लेख भी कृषि समझैते में होगा।
- डिलिवरी और भुगतान: अध्यादेश में प्रावधान है कि स्पॉन्सर डिलिवरी को समय पर लेने से संबंधित सभी तैयारियों के जिम्मेदार होगा और निश्चित समय के अंदर डिलिवरी लेगा।
- बीज उत्पादन के मामले में स्पॉन्सर डिलिवरी के समय निश्चित राशि का कम से कम दो तिहाई हिस्सा चुकाएगा। शेष राशि डिलिवरी की तारीख से 30 दिनों के भीतर देय सर्टिफिकेशन के बाद चुकाई जा सकती है। दूसरे सभी मामलों में पूरी राशि डिलिवरी के समय चुकाई जानी चाहिए और बिक्री आय के विवरण वाली रसीद जारी की जानी चाहिए। राज्य सरकार भुगतान के तरीके को निर्दिष्ट करेगी।
- विवाद निपटारा: अध्यादेश में कहा गया है कि विवाद निपटारे के लिए कन्सीलिएशन बोर्ड और सुलह की प्रक्रिया हेतु कृषि समझौता प्रदान किया जाए। बोर्ड में समझौते के विभिन्न पक्षों का निष्पक्ष और संतुलित प्रतिनिधित्व होना चाहिए। सबसे पहले सभी विवादों को समाधान के लिए बोर्ड को संदर्भित किया जाना चाहिए। अगर तीस दिनों में बोर्ड विवाद का निपटारा नहीं कर पाता, तो पक्ष समाधान के लिए सब डिविजनल मेजिट्रेट से संपर्क कर सकते हैं। उनके पास यह अधिकार होगा कि मेजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ अपीलीय अथॉरिटी (कलेक्टर या एडिशनल कलेक्टड की अध्यक्षता वाली) में अपील कर सकें। मेजिस्ट्रेट और अपीलीय अथॉरिटी को आवेदन प्राप्त होने के तीस दिनों के भीतर विवाद का निपटारा करना होगा। मेजिस्ट्रेट या अपीलीय अथॉरिटी समझौते का उल्लंघन करने वाले पक्ष पर जुर्माना लगा सकते हैं। हालांकि किसी बकाये की वसूली के लिए किसान की खेती की जमीन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
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