मंत्रालय: 
आवास और शहरी मामलों

 

बिल की मुख्‍य विशेषताएं

  • मॉडल एक्ट में मकान मालिक और किरायेदार से यह अपेक्षित है कि वे एक लिखित एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करें। इस एग्रीमेंट में किराया, किरायेदारी की अवधि और दूसरी संबंधित शर्तें निर्दिष्ट होंगी। आवासीय परिसर के लिए सिक्योरिटी डिपॉजिट की सीमा दो महीने का किराया और गैर आवासीय परिसर के लिए छह महीने का किराया है। 
  • मॉडल एक्ट के अंतर्गत किरायेदार की बेदखली की शर्तों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) जिस किराये पर सहमति बनी थी, उसे देने से इनकार करना, (ii) दो महीने से अधिक समय तक किराया न देना, (iii) लिखित सहमति के बिना परिसर के किसी हिस्से या पूरे परिसर पर कब्जा कर लेना, और (iv) लिखित नोटिस के बावजूद परिसर का दुरुपयोग करना।
  • मॉडल एक्ट तीन स्तरीय अर्ध न्यायिक विवाद निर्णयन तंत्र बनाता है जिसमें निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) किराया प्राधिकरण, (ii) किराया न्यायालय, और (iii) किराया ट्रिब्यूनल। मॉडल एक्ट के अंतर्गत प्रावधानों से संबंधित मामले किसी भी सिविल अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आएंगे।
  • जिला कलेक्टर राज्य सरकार की मंजूरी से किराया प्राधिकरण और किराया न्यायालय की स्थापना कर सकता है। राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र की सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले उच्च न्यायालय की सलाह से किराया ट्रिब्यूनल की स्थापना कर सकती है। 

प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

  • मॉडल एक्ट रेंटल हाउसिंग क्षेत्र की जिन मुख्य समस्याओं को लक्षित है, संभवतः उन्हें सुलझा न पाए। विशेषज्ञों ने उपलब्धता, वहनीयता जैसी समस्याओं को हल करने के लिए कई सुधारों का सुझाव दिया है और यह भी कहा है कि रेंटल हाउसिंग बाजार को औपचारिक बनाए जाने की जरूरत है। 
  • मॉडल एक्ट बताता है कि किन सूक्ष्म विवरणों को रेंट एग्रीमेंट में शामिल किया जाना चाहिए, जैसे ढांचागत मरम्मत और नियमित रखरखाव की जिम्मेदारी किसकी है, अधिकतम सिक्योरिटी डिपॉजिट कितना होना चाहिए। यह अस्पष्ट है कि केंद्रीय कानून में ऐसे विवरणों की क्या जरूरत है जिन्हें एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करते समय कॉन्ट्रैक्ट करने वाले पक्ष आपस में तय कर सकते हैं। 
  • रेंट एग्रीमेंट के रजिस्ट्रेशन के लिए आधार नंबर जमा कराने की जरूरत होती है। इस रजिस्ट्रेशन के लिए आधार नंबर देने की अनिवार्यता सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उल्लंघन हो सकता है। इसके अतिरिक्त प्राधिकरण को पब्लिक पोर्टल पर एग्रीमेंट के विवरणों (और उनकी पुष्टि करने वाले डॉक्यूमेंट्स) को अपलोड करना होगा। यह कॉन्ट्रैक्ट करने वाले पक्षों की निजता (प्राइवेसी) के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।   
  • मॉडल एक्ट में यह निर्दिष्ट नहीं है कि न्यायिक निकायों द्वारा कुछ विवादों के निवारण की समयावधि क्या होगी। इनमें अनिवार्य सेवाओं को रोकना, किराये में संशोधन और प्रॉपर्टी मैनेजरों द्वारा किए गए उल्लंघनों से संबंधित विवाद शामिल हैं।

 

भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं

संदर्भ

रेंटल हाउसिंग का रेगुलेशन राज्यों द्वारा किया जाता है क्योंकि भूमि, भूमि सुधार और किराये पर नियंत्रण संविधान की राज्य सूची के दायरे में आते हैं।[i] आजादी के बाद राज्यों ने किराया नियंत्रण कानूनों के जरिए रेंटल हाउसिंग को रेगुलेट किया। इन कानूनों में किराये की राशि की सीमा निर्दिष्ट थी और किरायेदार की बेदखली की शर्तें लगाई गई थीं ताकि मकान मालिक मनमाना किराया न वसूल सकें और यह सुनिश्चित हो कि लोगों को सुरक्षित और स्थायी आवास मिलेगा। 2015 में ड्राफ्ट आवासीय नीति में कहा गया था कि इन कानूनों के चलते लोगों को किराये से कम आय प्राप्त हुई और मकान मालिक रेंटल प्रॉपर्टीज़ में निवेश करने को हतोत्साहित हुए।[ii]  इससे किरायेदारों के प्रति व्यवस्थाओं में असंतुलन आया, यानी उन्हें मकान मालिकों से अधिक अधिकार मिले, किरायेदारों को बेदखल करना मुश्किल हुआ। मुकदमेबाजी बढ़ी और रेगुलेटरी व्यवस्था में मकान मालिकों का भरोसा कम हुआ।2,[iii] इससे रेंटल मांग को दूसरी रेंटल व्यवस्थाओं जैसे लीव एंड लाइसेंस एग्रीमेंट्स से पूरा किया गया।2

2005 में जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के अंतर्गत केंद्रीय स्तर पर सबसे पहले टेनेंसी कानूनों में सुधारों के सुझाव दिए गए।[iv]  जेएनएनयूआरएम में यह अनिवार्य किया गया कि अगर मिशन के अंतर्गत सहायता हासिल करनी है तो इसके लिए किराया नियंत्रण कानूनों को निरस्त करना होगा। मॉडल रेंट लेजिसलेशन, 1992 की तर्ज पर रेंटल हाउसिंग को रेगुलेट करने के लिए राज्य कानून बना सकते हैं। हालांकि 2020 तक 20 राज्यों में किराया नियंत्रण कानून लागू थे।[v],[vi],[vii],[viii],[ix],[x],[xi],[xii]  दूसरी तरफ मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे कुछ राज्यों ने अपने किराया नियंत्रण कानूनों को रद्द कर दिया है।[xiii],[xiv],[xv]  

भारत में रेंटल हाउसिंग यानी किराये पर घर लेना मुख्य रूप से शहरी व्यवस्था है। 2013 तक ग्रामीण क्षेत्रों में 95% लोग अपने खुद के घरों में रहते थे।[xvi]  विश्व स्तर पर शहरी क्षेत्रों में किराये के आवासों की मांग शहरी क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्या की वृद्धि के अनुपात में है। हालांकि भारत में यह प्रवृत्ति कुछ अलग है, जिसके लिए मकानों के स्वामित्व की नीति को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और इसी के कारण किराए से कम आय प्राप्त हुई।2 1951 और 2011 के बीच भारत में शहरी जनसंख्या छह गुना बढ़ी और 2011 तक यह संख्या कुल आबादी का 31% है।2 हालांकि शहरों में किराये के मकान में रहने वाले लोगों का हिस्सा 1961 और 2011 के बीच 58% से घटकर 27% हो गया।2  

शहरी क्षेत्रों में आवास की काफी कमी भी है। 2012 में शहरी आवासीय इकाइयों में लगभग 1.9 करोड़ इकाइयों की कमी अनुमानित थी।[xvii]  उल्लेखनीय है कि 2021 में शहरी जनसंख्या में 43.7 करोड़ की वृद्धि अनुमानित है।2 ड्राफ्ट राष्ट्रीय शहरी किराया आवास नीति, 2015 में कहा गया था कि शहरी क्षेत्रों में आवास की कमी मकानों के स्वामित्व से हल नहीं होगी, और उसमें रेंटल हाउसिंग को बढ़ावा देने का सुझाव दिया गया था। नीति में यह सुझाव भी दिया गया था कि मौजूदा किराया नियंत्रण कानूनों को रद्द किया जाए और ड्राफ्ट मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2015 के आधार पर नए किराया फ्रेमवर्क को अपनाया जाए।2  अब तक तमिलनाडु ने 2015 मॉडल एक्ट के आधार पर टेनेंसी को रेगुलेट करने के लिए कानून लागू किया है।[xviii]  आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय ने अक्टूबर 2020 में सार्वजनिक टिप्पणियों के लिए मॉडल एक्ट का एक दूसरा प्रारूप जारी किया था। 

केंद्रीय कैबिनेट ने 2 जून, 2021 को मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 को मंजूरी दी जिसे राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा लागू किया जाएगा। यह एक्ट निम्नलिखित का प्रयास करता है: (i) विवाद निवारण के लिए त्वरित निर्णयन तंत्र को स्थापित करना, (ii) परिसरों के किराये को रेगुलेट करना, और (iii) मकान मालिकों और किरायेदारों के हितों की रक्षा करना।  

मुख्य विशेषताएं 

टेनेंसी की शर्तें, बेदखली और सब-लेटिंग 

  • टेनेंसी एग्रीमेंट: मॉडल एक्ट कहता है कि किसी परिसर को किराए पर देने के लिए मकान मालिक और किरायेदार के बीच लिखित एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर होने चाहिए। एग्रीमेंट में निम्नलिखित निर्दिष्ट होना चाहिए: (i) देय किराया, (ii) किरायेदारी की समय अवधि, (iii) किराये में संशोधन की शर्तें और अवधि, (iv) एडवांस में चुकाया जाने वाला सिक्योरिटी डिपॉजिट, (v) परिसर में मकान मालिक के प्रवेश के उपयुक्त कारण, और (vi) परिसर के रखरखाव की जिम्मेदारियां। एग्रीमेंट की तारीख से दो महीने के भीतर किराया प्राधिकरण को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए। यह आवासीय, कमर्शियल और शिक्षण के उद्देश्य से इस्तेमाल होने वाले सभी परिसरों पर लागू होगा।
  • सिक्योरिटी डिपॉजिट: सिक्योरिटी डिपॉजिट निम्नलिखित से अधिक नहीं हो सकता: (i) आवासीय परिसर के लिए दो महीने का किराया, और (ii) गैर आवासीय परिसर के लिए छह महीने का किराया। किरायेदार के परिसर को खाली करने पर कब्जा लेते समय मकान मालिक बकाया कटौतियों के बाद सिक्योरिटी डिपॉजिट लौटा देगा।  
  • किरायेदारी की अवधि: किरायेदार मकान मालिक से इस बात का अनुरोध कर सकता है कि वह टेनेंसी की अवधि को रीन्यू कर दे या उसे बढ़ा दे। किरायेदार बढ़ा हुआ किराया चुकाने के लिए जिम्मेदार होगा, अगर (i) टेनेंसी की अवधि खत्म हो गई है और उसे रीन्यू नहीं किया गया है, या (ii) अगर किरायेदार टेनेंसी के खत्म होने के बाद परिसर को खाली नहीं करता। अगर किरायेदार टेनेंसी के आखिर में या आदेश द्वारा टेनेंसी को समाप्त करने पर परिसर को खाली नहीं करता तो उसे निम्नलिखित प्रकार से किराया चुकाना होगा: (i) पहले दो महीने के लिए दोगुना मासिक किराया, और (ii) परिसर पर उसका कब्जा रहने तक हर महीने चार गुना मासिक किराया।
  • बेदखली: किरायेदार को बेदखल करने के लिए मकान मालिक को इस संबंध में किराया प्राधिकरण में आवेदन करना होगा। प्राधिकरण कुछ आधार पर बेदखली के आदेश जारी कर सकता है, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) सहमत किराया चुकाने से इनकार करना, (ii) दो महीने से अधिक समय तक किराया न चुकाना, (iii) मकान मालिक की लिखित सहमति के बिना परिसर के कुछ हिस्से या पूरे परिसर पर कब्जा जमाना, (iv) परिसर का दुरुपयोग न करने के लिखित नोटिस के बावजूद परिसर का दुरुपयोग करना, और (v) लिखित नोटिस के बिना किरायेदार द्वारा ढांचागत परिवर्तन करना।
  • सब-लेटिंग: मॉडल एक्ट के अंतर्गत सब-लेटिंग (किरायेदार का मकान को किसी और को किराये पर देना) प्रतिबंधित है, जब तक कि इस संबंध में सहायक समझौता न किया गया हो। मकान मालिक और किरायेदार को इस तरह के समझौते को लागू करने के दो महीने के भीतर सब-टेनेंसी के बारे में किराया प्राधिकरण को संयुक्त रूप से इसकी जानकारी देनी होगी।

विवाद अधिनिर्णयन तंत्र

  • मॉडल एक्ट में विवादों पर निर्णय लेने के लिए तीन स्तरीय अर्ध न्यायिक तंत्र की स्थापना का प्रस्ताव है (तालिका 1)। किराया प्राधिकरण और किराया अदालतों की नियुक्ति जिला कलेक्टर द्वारा राज्य सरकार की मंजूरी से की जाएगी। राज्य सरकार अपने क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय के परामर्श से किराया ट्रिब्यूनल की स्थापना कर सकती है। मॉडल एक्ट के अंतर्गत प्रावधानों से संबंधित मामले किसी भी सिविल अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आएंगे।

तालिका 1मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2020 के अंतर्गत प्रस्तावित अर्ध न्यायिक निकायों के कार्य

प्राधिकरण

अध्यक्षता

कार्य

किराया प्राधिकरण 

जिला कलेक्टर 

  • टेनेंसी से संबंधित डॉक्यूमेंट्स सौंपने, जैसा कि निर्दिष्ट हो, के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाना 
  • टेनेंसी एग्रीमेंट करने वाले पक्षों को यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर देना, और विवरण मिलने के एक हफ्ते के भीतर एग्रीमेंटस के विवरणों को अपलोड करना
  • किराये के संशोधन से संबंधित विवादों का निवारण करना और ऐसे मामलों में संशोधित दरों को निर्धारित करना
  • मकान मालिक के किराया स्वीकार न करने, या अगर किरायेदार यह तय न कर पाए कि किराया किसे देना है, उन स्थितियों में दो महीने तक का किराया लेना, ऐसे मामलों की जांच करना कि किराया किसे देय है 
  • एक्ट का उल्लंघन करने या मकान मालिक के निर्देश का उल्लंघन करने पर प्रॉपर्टी मैनेजर को हटाना या उस पर जुर्माना लगाना  
  • अनिवार्य सेवाओं की सप्लाई को बहाल करने और मुआवजा देने से संबंधित अंतरिम आदेश जारी करना

किराया अदालत 

अतिरिक्त कलेक्टर या अतिरिक्त जिला मेजिस्ट्रेट

  • किराया प्राधिकरण के आदेशों के खिलाफ अपील पर निर्णय लेना
  • परिसरों को खाली करने और कब्जे की रिकवरी के आदेश 

किराया ट्रिब्यूनल

जिला जज या अतिरिक्त जिला जज

  • किराया अदालत के आदेशों के खिलाफ अपील पर निर्णय लेना
  • मॉडल एक्ट में ऐसे मामलों की जांच की प्रक्रिया और किराया अदालतों एवं किराया ट्रिब्यूनल्स के न्यायिक आचरण को निर्दिष्ट किया गया है। इसमें तीन प्राधिकरणों द्वारा कुछ मामलों पर निर्णय लेने की समय अवधि भी निर्दिष्ट की गई है (तालिका 2)।

तालिका 2मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2020 के अंतर्गत मामलों पर निर्णय लेने की समय अवधि

समय अवधि

मामलों के प्रकार

आवेदन करने के बाद 30 दिन 

  • मकान मालिक की लिखित सहमति के बिना परिसर के कुछ हिस्से या पूरे परिसर पर कब्जा 
  • परिसर का दुरुपयोग न करने के लिखित नोटिस के बावजूद परिसर का दुरुपयोग करना

आवेदन करने के बाद 60 दिन

  • किराया अदालत और किराया ट्रिब्यूनल में अपील

आवेदन करने के बाद 90 दिन

  • सहमत किराया चुकाने से इनकार करना 
  • दो महीने या उससे अधिक समय तक लगातार किराया न चुकाना
  • जरूरी मरम्मत, निर्माण, पुनर्निर्माण या तोड़फोड़ 
  • जमीन के उपयोग में परिवर्तन के मामले 
  • लिखित नोटिस के बावजूद परिसर खाली न करना, जहां मकान मालिक को कब्जा न मिलने पर गंभीर नुकसान हो सकता हो 
  • मकान मालिक की मृत्यु और उसके कानूनी वारिस के लिए परिसर की जरूरत का प्रामाणिक होना 

 

 

भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्‍लेषण

मॉडल एक्ट का उद्देश्य 

ड्राफ्ट मॉडल एक्ट, 2020 पर बैकग्राउंड नोट में उन समस्याओं को प्रस्तुत किया गया था जिन्हें मॉडल एक्ट हल करेगा।[xix]  इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मकान मालिकों और किरायेदारों के हितों और अधिकारों में संतुलन बनाना, (ii) पर्याप्त और किफायदी रेंटल हाउसिंग स्टॉक तैयार करना, (iii) रेंटल हाउसिंग बाजार को औपचारिक बनाना, (iv) क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ावा देना, और (v) किराये के लिए खाली परिसरों को अनलॉक करना। यह कहा जा सकता है कि मॉडल एक्ट इन उद्देश्यों को पूरी तरह हासिल नहीं कर सकता। दूसरी तरफ मॉडल एक्ट रेंटल एग्रीमेंट के सूक्ष्म विवरणों को भी पेश करता है जोकि किसी कानून में होना जरूरी नहीं है।

मॉडल एक्ट रेंटल हाउसिंग बाजार की चुनौतियों को हल नहीं कर पाएगा

मॉडल एक्ट रेंटल हाउसिंग के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का प्रस्ताव रखता है। जबकि विशेषज्ञों ने कहा है कि हाउसिंग बाजार में सुधार के लिए विधायी फ्रेमवर्क में परिवर्तन की जरूरत है, इसके लिए दूसरी कई समस्याओं को हल करना भी जरूरी है।2,3,[xx]  इसमें निम्न शामिल हैं:

  • रेंटल हाउसिंग योजना की कमी: ड्राफ्ट राष्ट्रीय रेंटल हाउसिंग नीति (2015) में कहा गया था कि एक व्यापक नीति बनाई जानी चाहिए ताकि केंद्र और राज्य सरकारों की भूमिका निर्दिष्ट की जा सके। इससे रेंटल हाउसिंग सतत तरीके से बढ़ेगा और समावेशी बनेगा।2 ऐसी नीति आपूर्ति बढ़ाने और मांग को रेगुलेट करने के संबंध में सरकार का मार्गदर्शन करेगी। हालांकि इस ड्राफ्ट नीति को अब तक लागू नहीं किया गया है। मॉडल टेनेंसी एक्ट, 2021 उस ड्राफ्ट नीति के अंतर्गत प्रस्तावित सुधारों में से एक है। दूसरे सुधारों में वहनीयता बढ़ाना, आश्रय केंद्रों को बढ़ावा देना, मार्केट आधारित रेंटल हाउसिंग को प्रोत्साहित करना और वित्तीय साधनों के जरिए निवेश को आसान बनाना शामिल है।2
  • वहनीयता: शहरों में आवास की 96% कमी आर्थिक रूप से कमजोर (ईडब्ल्यूएस) और निम्न आय वर्ग (एलआईजी) श्रेणियों में है।17  ड्राफ्ट राष्ट्रीय शहरी रेंटल हाउसिंग नीति, 2015 में कहा गया था कि मौजूदा सरकारी पहल, सबसिडी और सुधार मकानों के स्वामित्व को किफायती बनाने पर केंद्रित हैं। हालांकि ईडब्ल्यूएस और एलआईजी श्रेणी के लोगों के पास प्रयोग के लिए उपलब्ध आय कम होती है या आय अनियमित होती है, इसलिए वे लोग सरकारी सबसिडी और इनसेंटिव के बावजूद अपना खुद का मकान नहीं खरीद सकते। ड्राफ्ट नीति यह भी कहती है कि वहनीयता की समस्या को हल करने के लिए सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के प्रयास पर्याप्त नहीं होंगे और वह इसके लिए कई प्रकार की पहल के विषय में बताती है, जैसे: (i) किरायेदारों और मकान के मालिकों के लिए कर छूट और सबसिडी जैस इनसेंटिव्स का प्रावधान, (ii) सार्वजनिक-निजी पार्टनरशिप और आवासीय रेंटल मैनेजमेंट कंपनियों को बढ़ावा देना, और (iii) ईडब्ल्यूएस और एलआईजी सेक्टर्स में वित्त की उपलब्धता बढ़ाना।2
  • रेंटल हाउसिंग मार्केट का अनौपचारिक होना: एनएसएसओ (2008-09) में यह अनुमान लगाया गया था कि सिर्फ 5% मकानों को औपचारिक एग्रीमेंट्स के जरिए किराये पर दिया जाता है।16 ड्राफ्ट राष्ट्रीय रेंटल हाउसिंग नीति, 2015 में इस बात को मान्यता दी गई थी कि मौजूदा किराया नियंत्रण कानून ने रेंटल हाउसिंग को आर्थिक रूप से अनाकर्षक बनाया है और बाजार में अनौपचारीकरण बढ़ा है। इसके अलावा समझौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं होता।2 हालांकि ड्राफ्ट नीति कहती है कि अनौपचारिक समझौतों का चलन कम हो, इसके लिए दूसरे उपाय किए जाने की जरूरत है। इनमें लेनदेन की लागत को कम करने के लिए आईटी एनेबल्ड प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल, एक निश्चित समय में रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया का सरलीकरण और संपत्तियों के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा शामिल है।2 
  • खाली मकान: राष्ट्रीय शहरीकरण आयोग (1988) में कहा गया था कि शहरी क्षेत्रों में काफी बड़ी संख्या में खाली मकान हैं। आयोग ने सुझाव दिया था कि मकान मालिकों को मकान खाली रखने से रोकने के लिए उपाय किए जाने चाहिए।[xxi] 2011 की जनगणना के अनुसार शहरी क्षेत्रों में 1.1 करोड़ मकान खाली हैं।16  ड्राफ्ट राष्ट्रीय रेंटल हाउसिंग नीति (2015) में कहा गया था कि इसका कारण किराये से कम आय होना, मकान मालिकों में जब्ती का डर और इनसेंटिव की कमी हो सकता है।2  

मॉडल एक्ट रेंटल एग्रीमेंट के सूक्ष्म विवरण देता है  

ड्राफ्ट मॉडल एक्ट, 2020 पर बैकग्राउंड नोट में कहा गया था कि यह किरायेदार-मकान मालिक के संबंधों में संतुलन लाने का प्रयास करता है।19  2021 का मॉडल एक्ट दोनों पक्षों के अधिकारों और कर्तव्यों का प्रावधान करता है, रजिस्टर्ड एग्रीमेंट के प्रयोग को अनिवार्य करता है और कुछ प्रावधानों को वैधानिक आधार देता है। यह निम्नलिखित के विवरण प्रदान करता है: (i) जब मकान मालिक किरायेदार को बेदखल कर दे, (ii) मकान मालिक की मृत्यु की स्थिति में वारिस, और (iii) किरायेदार और मकान मालिक के लिए उपलब्ध कानूनी उपाय, अगर उनमें से कोई भी एग्रीमेंट का उल्लंघन करता है। 

हालांकि 2021 का मॉडल एक्ट रेंटल एग्रीमेंट के सूक्ष्म विवरणों को भी पेश करता है। जैसे: (i) मकान मालिक को ढांचागत मरम्मत और दीवारों एवं दरवाजों की पुताई कराना होगा, (ii) किरायेदार नाली की सफाई, गीजर की मरम्मत, किचन फिक्सचर्स की मरम्मत कराएगा, और (iii) सिक्योरिटी डिपॉजिट की अधिकतम राशि। आम तौर पर ऐसे विवरण रेंट एग्रीमेंट्स में स्पष्ट किए जाते हैं जैसा कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे मौजूदा राज्य कानूनों में देखा गया है।5,6,12  किसी मॉडल केंद्रीय कानून में ऐसे विवरण होना जरूरी नहीं होता। कानून में ऐसे विवरण देने से कॉन्ट्रैक्ट करने वाले पक्ष अपनी खास जरूरत के हिसाब से एग्रीमेंट में बदलाव नहीं कर पाएंगे। 

हालांकि मॉडल एक्ट रेंटल हाउसिंग और एग्रीमेंट्स को रेगुलेट करने के अलावा राज्यों को सिर्फ फ्रेमवर्क बनाने का सुझाव दे रहा है। चूंकि हाउसिंग भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत राज्य सूची में आता है, मॉडल एक्ट का प्रभाव राज्यों द्वारा उसे अपनाने पर निर्भर करता है। अब तक राज्यों ने मॉडल एक्ट के पहले के प्रारूपों को नहीं अपनाया है।

किराया प्राधिकरण में एग्रीमेंट्स के रजिस्ट्रेशन के लिए आधार नंबर होना जरूरी

 

क्लॉज4, 40; 

पहली अनुसूची

 एग्रीमेंट को रजिस्टर करने के लिए आधार की अनिवार्यता से पुट्टास्वामी फैसले का उल्लंघन हो सकता है

 

मॉडल एक्ट में सभी मकान मालिकों और किरायेदारों से यह अपेक्षा की गई है कि वे एग्रीमेंट की तारीख से दो महीने के भीतर किराया प्राधिकरण को रेंटल एग्रीमेंट की सूचना दे देंगे। एग्रीमेंट की सूचना एक्ट की अनुसूची में निर्दिष्ट फॉर्म के साथ दी जानी चाहिए। निर्दिष्ट फॉर्म में दिया गया है कि किरायेदार और मकान मालिक, दोनों को अपना आधार नंबर देना होगा और फॉर्म के साथ कार्ड की सेल्फ अटेस्टेड कॉपी लगानी होगी। यह 2018 के सर्वोच्च न्यायालय के पुट्टास्वामी फैसले का उल्लंघन हो सकता है।[xxii] अपने फैसले में न्यायालय ने कहा था कि आधार कार्ड या नंबर को केवल भारत के समेकित कोष से मिलने वाली सबसिडी, लाभ या सेवा के लिए अनिवार्य किया जा सकता है। इस सिद्धांत के आधार पर न्यायालय ने बैंक खातों को आधार नंबर से अनिवार्य रूप से जोड़ने पर रोक लगा दी थी। चूंकि टेनेंसी एग्रीमेंट को रजिस्टर करने से राज्य से कोई लाभ या सेवाएं नहीं मिलती हैं जिनके लिए भारत के समेकित कोष से खर्च किया जाना है, इसलिए टेनेंसी के रजिस्ट्रेशन के लिए आधार नंबर को अनिवार्य बनाना इस फैसले का उल्लंघन हो सकता है। 

टेनेंसी एग्रीमेंट्स के विवरण को अपलोड करने से निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है

मॉडल एक्ट यह भी कहता है कि किराया प्राधिकरण में रजिस्टर करने पर दोनों पक्षों को यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर दिया जाएगा और रेंटल एग्रीमेंट (दूसरे डॉक्यूमेंट्स के साथ) के विवरणों को प्राधिकरण की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या दोनों पक्षों के व्यक्तिगत विवरण, जैसे पैन नंबर, आधार नंबर और एग्रीमेंट के साथ सौंपे गए अन्य डॉक्यूमेंट्स को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। अगर वे वेबसाइट पर साझा किए जाते हैं, तो वे संबंधित पक्षों के निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने मूलभूत अधिकारों के तौर पर निजता के अधिकार को शामिल किया था। इस अधिकार का हनन तभी हो सकता है, अगर तीन शर्तें पूरी होती हों: (i) ऐसा कोई कानून है, (ii) कानून सार्वजनिक उद्देश्य को प्राप्त करता हो, और (iii) सार्वजनिक उद्देश्य निजता के उल्लंघन के अनुपात में हो।[xxiii] किराये पर संपत्तियों की संख्या और उनके किराये से प्राप्त होने वाली आय जैसी सूचनाओं से नीतियां बनाने और रियल एस्टेट मार्केट के विकास को समझने में आसानी हो सकती है। हालांकि व्यक्तियों की व्यक्तिगत जानकारी को साझा करने से कोई सार्वजनिक उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता, और इससे उन लोगों के निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।

 

क्लॉज10, 19(2), 20

 कुछ विवादों को हल करने के लिए कोई समय सीमा निर्दिष्ट नहीं

 

2021 के मॉडल एक्ट की प्रस्तावना और 2020 के ड्राफ्ट मॉडल एक्ट के साथ बैकग्राउंड नोट में कहा गया है कि वह टेनेंसी एग्रीमेंट्स से जुड़े विवादों पर फैसला लेने वाले तंत्र को स्थापित करने का प्रयास करते हैं। मॉडल एक्ट किराये के भुगतान और बेदखली से संबंधित मामलों को हल करने के लिए समय अवधियां देता है। उदाहरण के लिए अगर मकान मालिक ने किरायेदार को संपत्ति का दुरुपयोग न करने का नोटिस दिया है और किरायेदार फिर भी उसका दुरुपयोग कर रहा है तो इस संबंध में किराया अदालत को किए गए आवेदन पर 30 दिनों के भीतर सुनवाई होनी चाहिए। हालांकि कई मामलों में समय अवधियां नहीं दी गई हैं। उदाहरण के लिए:  

  • अनिवार्य सेवाएंअगर मकान मालिक या प्रॉपर्टी मैनेजर किरायेदार के कब्जे वाले परिसर में अनिवार्य आपूर्तियों या सेवाओं को रोकता पाया जाता है तो किराया प्राधिकरण सेवाओं की बहाली के आदेश दे सकता है और जुर्माना लगा सकता है। मॉडल एक्ट प्रॉपर्टी मैनेजर को ऐसी कानूनी एंटिटी के रूप में स्पष्ट करता है जो मकान मालिक द्वारा इस बात के लिए अधिकृत होता है कि वह परिसर की देखभाल करे, जिसमें किराया लेना, नियमित निरीक्षण और रखरखाव करना शामिल है। जबकि किराया प्राधिकरण को इस मामले में एक महीने में जांच पूरी कर लेनी चाहिए, मॉडल एक्ट के अंतर्गत ऐसी कोई समय अवधि निर्दिष्ट नहीं की गई है जिसमें किराया प्राधिकरण को कोई मामला सुलझा लेना चाहिए।
  • किराये में संशोधन: किराया प्राधिकरण मकान मालिक या किरायेदार से आवेदन प्राप्त करने के बाद किराये में संशोधन कर सकता है। हालांकि मॉडल एक्ट उस समय अवधि को निर्दिष्ट नहीं करता, जिसमें किराया प्राधिकरण को किराये में संशोधन से संबंधित विवाद को हल करना होगा। 

प्रॉपर्टी मैनेजर द्वारा उल्लंघन: अगर प्रॉपर्टी मैनेजर अपने निर्दिष्ट कर्तव्यों या मकान मालिक के विशिष्ट निर्देशों का उल्लंघन करता है तो मकान मालिक या किरायेदार किराया प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं। किराया प्राधिकरण प्रॉपर्टी मैनेजर को हटा सकता है या किसी नुकसान की भरपाई के लिए जुर्माना लगा सकता है। हालांकि मॉडल एक्ट में वह समय अवधि निर्दिष्ट नहीं है जिसमें किराया प्राधिकरण को प्रॉपर्टी मैनेजर द्वारा उल्लंघन करने से संबंधित मामलों में निर्ण

 

[i]. The Constitution of India, https://www.india.gov.in/sites/upload_files/npi/files/coi_part_full.pdf.

[ii]. National Urban Rental Housing Policy (Draft), 2015, Ministry of Housing and Urban Poverty Alleviation, Government of India, http://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/National_Urban_Rental_Housing_Policy_Draft_2015.pdf.

[iii]. India: Promoting Inclusive Urban Development in Indian Cities, Asian Development Bank, 2013, https://www.adb.org/sites/default/files/project-document/81213/41609-012-tacr-03.pdf

[iv]. Report of the Comptroller and Auditor General of India on Performance Audit of the JNNURM, Comptroller and Auditor General of India, 2013, https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2012/Union_Performance_Commercial_Jawaharlal_Renewal_Mission_Ministry_Housing_and_Urban_poverty_15_2012.pdf

[v]. The Bombay Rents, Hotel and Lodging House Rates Control Act, 1947, Government of Gujarat, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/4655/1/rentshotelact.pdf

[vi]. The Karnataka Rent Act, 1999, Government of Karnataka, http://dpal.kar.nic.in/ao2001/(34%20of%202001)%20Rent%20Act%20(E).pdf

[vii]. The Kerala Building (Lease and Rent Control) Act, 1965, Government of Kerala, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/12340/1/2.pdf

[viii]. The Manipur Land Revenue and Land Reforms Act, 1960, Manipur, http://legislative.gov.in/sites/default/files/A1960-33.pdf

[ix]. The Mizoram Urban and Regional Development Act, 1990, Government of Mizoram, http://udpamizoram.nic.in/Documents/Acts%20and%20rules/Mizoram-Urban-and-Regional-Development-Act-1990.pdf

[x]. The Orissa House Rent Control Act, 1967, Government of Odisha, http://lawodisha.gov.in/files/acts/act_1764767553_1437987516.pdf

[xi]. The Telangana Buildings (Lease, Rent and Eviction) Control Act, 1960, Government of Telangana, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/8607/1/act_15_of_1960.pdf

[xii]. The West Bengal Premises Rent Control Act, 1950, Government of West Bengal, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/14533/1/xvii_of_1950.pdf

[xiii]. The Madhya Pradesh Parisar Kirayedari Vidheyak, 2010, Government of Madhya Pradesh, http://govtpressmp.nic.in/pdf/extra/2010-03-26-174.pdf

[xiv]. The Jharkhand Building (Lease, Rent and Eviction) Control Act, 2011, Government of Jharkhand, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/5362/1/jharkhand_building%28lease%2C_rent_%26_eviction%29_control_act_2011.pdf

[xv]. The Chattisgarh Rent Control Act, 2011, Government of Chattisgarh, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/12617/1/chhattisgarh_rent_control_act%2C_2011_%28no._19_of_2012%29_date_05-10-2012.pdf.  

[xvi]. State of Housing in India: A Housing Compendium, Ministry of Housing and Urban Poverty Alleviation, 2013, http://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/Housing_in_India_Compendium_English_Version2.pdf.

[xvii]. Report of the Technical Group on Urban Housing Shortage (TG-12) (2012-17), Ministry of Housing and Urban Poverty Alleviation, September 22, 2012, http://nbo.nic.in/pdf/urban-housing-shortage.pdf

[xviii]. The Tamil Nadu Regulation of Rights and Responsibilities of Landlords and Tenants Act 2017, Government of Tamil Nadu, https://www.tenancy.tn.gov.in/Home/AboutUs

[xix]. Background Note on Model Tenancy Act, Ministry of Housing and Urban Affairs, 2020, http://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/1%20Background%20Note%20on%20MTA%20(English).pdf.

[xx]. Urbanisation beyond Municipal Boundaries: Nurturing Metropolitan Economies and Connecting peri-urban areas in India, World Bank, 2013, https://openknowledge.worldbank.org/bitstream/handle/10986/13105/757340-PUB0EPI0001300pubdate02021013.pdf?sequence=1&isAllowed=y

[xxi]. Report of the National Commission on Urbanisation, 1988, Government of India, https://indianculture.gov.in/report-national-commission-urbanisation-1988-0

[xxii]Justice K.S. Puttaswamy Vs. Union of India, Supreme Court, Writ Petition (Civil) 494 of 2012, September 26, 2018.

[xxiii]. Justice K. S. Puttaswamy and Ors. vs Union of India and Ors, AIR 2017 SC 4161.

 

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