- वायुयान वस्तुओं में हित संरक्षण बिल, 2025 को 10 फरवरी, 2025 को राज्यसभा में पेश किया गया। यह बिल भारत में लागू होने वाले निम्नलिखित अंतरराष्ट्रीय समझौतों को कानूनी प्रभाव देने का प्रयास करता है: (i) मोबाइल उपकरणों में अंतरराष्ट्रीय हितों से संबंधित कन्वेंशन (2001 के केपटाउन कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है), और (ii) विमान उपकरणों के विशिष्ट मामलों में मोबाइल उपकरणों में अंतरराष्ट्रीय हितों से संबंधित कन्वेंशन का प्रोटोकॉल। भारत ने 2008 में इन्हें स्वीकार किया था।
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कन्वेंशन और प्रोटोकॉल का उद्देश्य विमान, हेलीकॉप्टर और इंजन जैसे हाई-वैल्यू एसेट्स के अधिकार सुरक्षित करने में एकरूपता लाना है। उनका उद्देश्य निम्न में वित्तीय चूक की स्थिति में लेनदारों के लिए पूर्वानुमान सुनिश्चित करना है: (i) लीज़-एक निर्दिष्ट अवधि के लिए उपयोग, (ii) सशर्त खरीद-कुछ नियमों और शर्तों के पूरा होने पर स्वामित्व का हस्तांतरण, या (iii) सुरक्षा समझौता (सिक्योरिटी एग्रीमेंट)- उधार लेने के लिए कोलेक्ट्रल के रूप में रखे गए एसेट्स।
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रजिस्ट्री अथॉरिटी: बिल कन्वेंशन के उद्देश्यों के लिए नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को रजिस्ट्री अथॉरिटी बनाता है। रजिस्ट्री अथॉरिटी विमानों का पंजीकरण करने और उसे रद्द करने के लिए जिम्मेदार है। बिल डीजीसीए को अधिकार देता है कि वह कन्वेंशन को लागू करने के लिए निर्देश जारी कर सकता है।
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देनदारों के दायित्व: देनदारों को बकाये का रिकॉर्ड डीजीसीए को जमा करना होगा। देनदार वह व्यक्ति होता है जिसने किसी एविएशन एसेट को लीज़ या सशर्त खरीद समझौते के तहत लिया है, या सुरक्षा समझौते के तहत एसेट को गिरवी रखा है।
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चूक की स्थिति में उपाय: देनदार की चूक की स्थिति में कन्वेंशन लेनदार को कुछ उपाय सुझाता है। लेनदार वह व्यक्ति होता है जिसने लीज़ या सशर्त खरीद समझौते के तहत एविएशन एसेट दिया है या सुरक्षा समझौते के तहत एसेट को उधार दिया है। एक उपाय यह है कि दो कैलेंडर महीनों के भीतर या पारस्परिक रूप से सहमत अवधि, जो भी पहले हो, के भीतर एसेट का कब्ज़ा वापस ले लिया जाए। बिल में कहा गया है कि कोई भी उपाय करने से पहले लेनदार को चूक की जानकारी डीजीसीए को देनी होगी।
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सरकारी एजेंसियों द्वारा एसेट्स को डिटेन करना: अगर किसी एसेट से संबंधित सेवाओं का बकाया भुगतान नहीं किया जाता है तो निम्नलिखित को एसेट को डिटेन करने का अधिकार होगा: (i) केंद्र सरकार, (ii) भारत में सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने वाली कोई अन्य इकाई, या (iii) एक अंतर-सरकारी संगठन, जिसका भारत एक सदस्य है।
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अधिक महत्वपूर्ण प्रभाव: बिल और किसी अन्य कानून के बीच असंगति होने की स्थिति में, बिल के प्रावधान लागू रहेंगे।
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उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार: कन्वेंशन के तहत कोई भी दावा उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकार में आएगा।
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नियम बनाने की शक्ति: बिल केंद्र सरकार को कन्वेंशन और प्रोटोकॉल के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बनाने का अधिकार देता है। यह केंद्र सरकार को निम्नलिखित पर नियम बनाने की शक्तियां भी देता है: (i) डीजीसीए कन्वेंशन को लागू करने के लिए जिस तरीके से निर्देश जारी करेगा, और (ii) देनदार और लेनदार अपने संबंधित दायित्वों को जिस तरीके से पूरा करेंगे।
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