बिल की मुख्य विशेषताएं
- संहिता 10 और उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स, तथा खानों एवं डॉक्स पर कार्यरत कर्मचारियों की स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी स्थितियों को रेगुलेट करती है।
- संहिता सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियों से संबंधित 13 श्रम कानूनों को रद्द करती है और उनका स्थान लेती है। इन कानूनों में निम्नलिखित शामिल हैं: फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948, खदान एक्ट, 1952, डॉक्स वर्कर्स एक्ट, 1986, अनुबंध श्रमिक एक्ट, 1970 और अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक एक्ट, 1979।
- संहिता के दायरे में आने वाले इस्टैबलिशमेंट्स को पंजीकरण अधिकारी से पंजीकरण कराना होगा जिनकी नियुक्ति केंद्र या राज्य सरकार द्वारा की जाएगी।
- केंद्र या राज्य सरकारें नियमों के जरिए भिन्न-भिन्न प्रकार के इस्टैबलिशमेंट्स और श्रमिकों के लिए कल्याणकारी सुविधाओं, कार्य स्थितियों और कार्य के घंटों को निर्दिष्ट करेंगी।
- संहिता राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर व्यवसायगत सुरक्षा बोर्ड का गठन करती है। ये बोर्ड संहिता के अंतर्गत मानदंड, नियम और रेगुलेशंस बनाने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देंगे।
- संहिता कुछ विशेष इस्टैबलिशमेंट्स जैसे कारखानों, खदानों, डॉक वर्कर्स और निर्माण कर्मचारियों के लिए विशेष प्रावधान करती है। इनमें लाइसेंस, सुरक्षा संबंधी रेगुलेशंस और नियोक्ताओं के कर्तव्यों पर विशेष प्रावधान शामिल हैं।
प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
- श्रम संबंधी दूसरे राष्ट्रीय आयोग (2002) ने सुझाव दिया था कि मौजूदा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा कानूनों को एक किया जाए और उन्हें सरल बनाया जाए। हालांकि संहिता में विभिन्न श्रेणियों के कर्मचारियों, उदाहरण के लिए वर्किंग जर्नलिस्ट्स और सेल्स प्रमोशन कर्मचारियों के लिए विशेष प्रावधान बरकरार हैं। इन प्रावधानों को बरकरार रखने का तर्क अस्पष्ट है।
- संहिता के दायरे में न्यूनतम 10 और उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स आते हैं। यह कहा जा सकता है कि श्रम कानूनों की एप्लिकेबिलिटी की आकार आधारित सीमा तय करने से छोटे इस्टैबलिशमेंट्स के लिए अनुपालन का बोझ कम होता है। दूसरी ओर यह भी कहा जा सकता है कि व्यवसायगत स्वास्थ्य और सुरक्षा कानूनों में सभी श्रमिक आने चाहिए ताकि उनके बुनियादी अधिकारों की रक्षा हो।
- संहिता सिविल अदालतों द्वारा मामलों की सुनवाई पर प्रतिबंध लगाती है। इसलिए संहिता के अंतर्गत पीड़ित व्यक्ति के पास सिर्फ यह न्यायिक रास्ता बचता है कि वह संबंधित उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करे। कहा जा सकता है कि चूंकि संहिता के अंतर्गत सिविल अदालतें मामलों की सुनवाई नहीं कर सकतीं, इसलिए संहिता लोगों को निचली अदालत में जाने के अवसर से वंचित करती है।
भाग क : बिल की मुख्य विशेषताएं
संदर्भ
भारत में श्रम संविधान की समवर्ती सूची में शामिल विषय है। इसलिए संसद और राज्य विधानसभाएं, दोनों श्रम को रेगुलेट करने से संबंधित कानून बना सकती हैं। वर्तमान में ऐसे लगभग 100 राज्य स्तरीय और 40 केंद्रीय कानून हैं जोकि श्रम के विभिन्न पहलुओं को रेगुलेट करते हैं, जैसे औद्योगिक विवाद को हल करना, कार्य स्थितियां, सामाजिक सुरक्षा और वेतन। [1] श्रम पर दूसरे राष्ट्रीय आयोग (2002) ने मौजूदा कानून को जटिल बताया था, और कहा था कि उनमें पुराने किस्म के प्रावधान तथा परस्पर विरोधी परिभाषाएं हैं। श्रम कानूनों के अनुपालन में सुधार करने और एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय आयोग ने सुझाव दिया था कि मौजूदा श्रम कानूनों को व्यापक समूहों में बांटा जाना चाहिए जैसे (i) औद्योगिक संबंध, (ii) वेतन, (iii) सामाजिक सुरक्षा, (iv) सुरक्षा, और (v) कल्याण और कार्य स्थितियां। [2]
स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्य स्थितियों के संबंध में आयोग ने कहा था कि श्रमिकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़े अनेक कानून मौजूद हैं। यह सुझाव दिया गया था कि इन कानूनों को दो संहिताओं में शामिल किया जाना चाहिए, एक कानून जो कार्यस्थल पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर स्थान पर लागू हो, और दूसरा कानून जिसमें कार्य स्थितियों के न्यूनतम मानदंड, कार्य के घंटे और अवकाश शामिल हों। यह सुझाव दिया गया था कि रेगुलेशंस या मैनुअल्स में क्षेत्र विशेष की जरूरतों (जैसे कारखानों या खदानों के लिए) को शामिल किया जा सकता है।2
श्रम और रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने 23 जुलाई, 2019 को लोकसभा में व्यवसायगत सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियां संहिता, 2019 पेश किया। इसके बाद 9 अक्टूबर, 2019 को संहिता को श्रम और रोजगार संबंधी स्टैंडिंग कमिटी को भेजा गया। संहिता 10 और उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स और सभी खदानों एवं डॉक्स के कर्मचारियों की स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी स्थितियों को रेगुलेट करती है। यह सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्य स्थितियों से संबंधित 13 मौजूदा श्रम कानूनों को सम्मिलित करती है और उनका स्थान लेती है।
प्रमुख विशेषताएं
संहिता स्वास्थ्य सुरक्षा और कार्य स्थितियों को रेगुलेट करने के लिए 13 कानूनों को सम्मिलित करती है। कारखाने, खदानें, डॉक वर्कर्स, भवन निर्माण एवं निर्माण श्रमिक, बागान श्रमिक, अनुबंध श्रमिक, अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक, वर्किंग जर्नलिस्ट, मोटर परिवहन श्रमिक, सेल्स प्रमोशन कर्मचारी और सिने कर्मचारी इन कानूनों के दायरे में आते हैं। लेजिसलेटिव ब्रीफ के अनुलग्नक में इस संहिता की तुलना विभिन्न कानूनी प्रावधानों से की गई है।
कवरेज, लाइसेंस और पंजीकरण
- कवरेज: संहिता न्यूनतम 10 श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स, और सभी खदानों एवं डॉक्स पर लागू होती है। यह अप्रेंटिसेस पर लागू नहीं होती। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी स्थितियों से जुड़े संहिता के कुछ प्रावधान सभी कर्मचारियों पर लागू होते हैं। कर्मचारियों में श्रमिकों और प्रबंधकीय, प्रशासनिक, या सुपरवाइजरी पदों पर कार्यरत सभी लोग (जिनका मासिक वेतन कम से कम 15,000 रुपए है) शामिल हैं।
- लाइसेंस और पंजीकरण: संहिता के अंतर्गत इस्टैबलिशमेंट्स से अपेक्षा की जाती है कि वह (संहिता के लागू होने के) 60 दिनों के अंदर पंजीकरण अधिकारियों से अपना पंजीकरण कराएं। इन अधिकारियों को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। इसके अतिरिक्त कारखानों और खदानों जैसे कुछ इस्टैबलिशमेंट्स और बीड़ी एवं सिगार वर्कर्स को हायर करने वाले इस्टैबलिशमेंट्स को काम करने के लिए अतिरिक्त लाइसेंस लेना पड़ सकता है।
कर्मचारियों और नियोक्ताओं के अधिकार और कर्तव्य
- नियोक्ताओं के कर्तव्य: कर्तव्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एक ऐसा कार्यस्थल प्रदान करना, जोकि उन जोखिमों से मुक्त हो जिनसे चोट लगने या बीमार होने की आशंका हो, (ii) अधिसूचित इस्टैबलिशमेंट्स में कर्मचारियों की मुफ्त सालाना स्वास्थ्य जांच करना, (iii) कर्मचारियों को नियुक्ति पत्र देना, और (iv) कार्यस्थल पर दुर्घटना में किसी कर्मचारी की मौत या उसे गंभीर शारीरिक चोट लगने की स्थिति में संबंधित अधिकारियों को सूचित करना। कारखानों, खदानों, डॉक्स, बागान और भवन निर्माण एवं निर्माण क्षेत्र के नियोक्ताओं के निर्दिष्ट कर्तव्यों में जोखिम मुक्त कार्य परिवेश का प्रावधान, और सुरक्षा संबंधी प्रोटोकॉल्स पर कर्मचारियों को निर्देश देना शामिल है।
- सलाहकारों के कर्तव्य: मैन्यूफैक्चरर्स, आयातकों, डिजाइनर्स और सप्लायर्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके द्वारा बनाई या किसी इस्टैबलिशमेंट्स में इस्तेमाल के लिए दी गई वस्तुएं सुरक्षित हैं और उन्होंने उनकी उचित हैंडलिंग के संबंध में पूरी जानकारी प्रदान की है। इसके अतिरिक्त इंजीनियर्स और डिजाइनर्स को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके डिजाइन सुरक्षित तरीके से बन सकते हैं और मेनटेन किए जा सकते हैं।
- कर्मचारियों के अधिकार और कर्तव्य: कर्तव्यों में अपने स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का ध्यान रखना, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी मानदंडों का अनुपालन करना, और इंस्पेक्टर को असुरक्षित कार्य स्थितियों के बारे में जानकारी देना शामिल है। कर्मचारियों के कुछ अधिकार भी हैं जिनमें नियोक्ता से सुरक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी मानदंडों की सूचना हासिल करने का अधिकार शामिल है।
काम के घंटे और अवकाश
- काम के घंटे: केंद्र या राज्य सकार द्वारा अलग-अलग इस्टैबलिशमेंट्स और कर्मचारियों के लिए काम के घंटों को अधिसूचित किया जाएगा। ओवरटाइम काम के लिए श्रमिकों को दुगुनी दिहाड़ी चुकाई जानी चाहिए। इसके लिए श्रमिक से पूर्व सहमति ली जानी चाहिए। महिला श्रमिक शाम 7 बजे के बाद और सुबह 6 बजे से पहले काम कर सकती हैं, अगर उनकी सहमति हो और अगर सरकार द्वारा मंजूर हो। जर्नलिस्ट चार हफ्तों में 144 घंटे से ज्यादा काम नहीं कर सकते।
- अवकाश: श्रमिकों से एक हफ्ते में छह दिन से ज्यादा काम करने की अपेक्षा नहीं की जाती। इसके अतिरिक्त उन्हें हर साल प्रत्येक 20 दिन के काम पर एक दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए।
काम करने की स्थितियां और कल्याणकारी सुविधाएं
- काम करने की स्थितियां: केंद्र सरकार काम करने की स्थितियों को अधिसूचित करेगी। इन स्थितियों में हाइजिनिक वातावरण, पीने का साफ पानी, और शौचालय शामिल हैं।
- कल्याणकारी सुविधाएं: कल्याणकारी सुविधाओं, जैसे कैंटीन, फर्स्ट एड बॉक्स और क्रेश, को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित मानकों के अनुसार प्रदान किया जाएगा। कारखानों, खदानों, डॉक्स और भवन निर्माण एवं निर्माण के लिए अतिरिक्त सुविधाएं निर्दिष्ट की जा सकती हैं, जैसे वेल्फेयर अधिकारी और अस्थायी आवास।
- संहिता में तीन अनुसूचियां शामिल हैं जिनमें निम्नलिखित की सूचियां हैं: (i) 29 बीमारियां, जिनके बारे में नियोक्ता को अधिकारियों को सूचित करना होगा, अगर वे किसी श्रमिक को हो जाती हैं, (ii) 78 सुरक्षा संबंधी मामले, जिन्हें सरकार रेगुलेट कर सकती है, और (iii) 29 उद्योग, जिनकी प्रक्रियाएं जोखिमपरक हैं। इस सूची को केंद्र सरकार द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
संबंधित अथॉरिटी
- इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर: इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर के कर्तव्यों में दुर्घटनाओं की जांच करना, और निरीक्षण करना शामिल है। उनके पास कारखानों, खदानों, डॉक्स और भवन निर्माण एवं निर्माण श्रमिकों के संबंध में अतिरिक्त शक्तियां हैं जिनमें निम्न शामिल हैं: (i) इस्टैबलिशमेंट के विभिन्न हिस्सों में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या में कटौती, और (ii) खतरनाक स्थितियों में काम पर प्रतिबंध।
- सलाहकार निकाय: केंद्र और राज्य सरकार राष्ट्रीय और राज्य स्तरों पर व्यवसायगत सुरक्षा और स्वास्थ्य सलाहकार बोर्ड का गठन करेगी। ये बोर्ड संहिता के अंतर्गत मानदंड, नियम और रेगुलेशंस बनाने हेतु केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देंगे।
- सुरक्षा कमिटी: संबंधित सरकार कुछ इस्टैबलिशमेंट्स में और कुछ विशेष वर्ग के श्रमिकों के लिए सुरक्षा कमिटियों का गठन कर सकती है। कमिटी में नियोक्ता और श्रमिकों के प्रतिनिधि होंगे। नियोक्ताओं के प्रतिनिधियों की संख्या कर्मचारियों के प्रतिनिधियों से ज्यादा नहीं हो सकती। ये कमिटियां नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच संपर्क स्थापित करने का काम करेंगी।
अपराध और सजा
- संहिता के अंतर्गत ऐसे अपराध (जिसमें किसी कर्मचारी की मृत्यु हो जाए) करने पर दो वर्ष तक के कारावास की सजा भुगतनी पड़ सकती है या पांच लाख रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है, अथवा दोनों सजाएं भुगतनी पड़ सकती हैं। इसके अतिरिक्त अदालत यह निर्देश भी दे सकती है कि पीड़ित के उत्तराधिकारियों को जुर्माने की कम से कम आधी राशि मुआवजे के तौर पर दी जाए। जिन उल्लंघनों में सजा विनिर्दिष्ट नहीं की गई है, उनमें नियोक्ता को दो से तीन लाख रुपए के बीच का जुर्माना भरना पड़ेगा। अगर कर्मचारी संहिता के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे 10,000 रुपए तक का जुर्माना भरना पड़ेगा। पहली बार अपराध करने पर, जिस पर कारावास की सजा नहीं होगी, अधिकतम जुर्माने के 50% पर निपटारा किया जा सकता है।
भाग ख: प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण
कुछ विशेष प्रावधानों का तर्क अस्पष्ट है
संहिता श्रमिकों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और कार्य स्थितियों को रेगुलेट करने वाले 13 कानूनों का स्थान लेती है। राष्ट्रीय श्रम आयोग, 2002 ने इन कानूनों को सम्मिलित करने और उन्हें सरल बनाने का सुझाव दिया था।2 इसके अतिरिक्त संहिता के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि यह 13 कानूनों के प्रावधानों को सरल बनाने और मिश्रित करने का प्रयास करती है। [3] हालांकि संहिता मौजूदा कानूनों को सम्मिलित करती है, लेकिन वह उनके प्रावधानों को सरल नहीं बनाती। हम इसे स्पष्ट कर रहे हैं।
संहिता में सामान्य प्रावधान हैं जो सभी इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होते हैं। इनमें पंजीकरण, रिटर्न फाइल करने और नियोक्ताओं के कर्तव्यों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं। हालांकि इनमें वे अतिरिक्त प्रावधान भी शामिल हैं जोकि विशिष्ट प्रकार के श्रमिकों, जैसे कारखानों और खदानों में काम करने वाले श्रमिकों पर लागू होते हैं। ये ऑडियो-विजुअल वर्कर्स, पत्रकारों, सेल्स प्रमोशन कर्मचारियों, अनुबंध श्रमिकों और निर्माण श्रमिकों पर भी लागू होते हैं। यह कहा जा सकता है कि कारखानों और खदानों जैसे जोखिमपरक इस्टैबलिशमेंट्स की कुछ श्रेणियों के लिए स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी विशेष प्रावधानों की जरूरत होती है। यह जरूरी हो सकता है कि केवल लाइसेंसशुदा इस्टैबलिशमेंट्स को कारखानों और खदानों को चलाने की अनुमति दी जाए। इसी प्रकार अतिसंवेदनशील श्रमिकों की विशेष श्रेणियों, जैसे अनुबंध श्रमिकों और प्रवासी श्रमिकों के लिए विशेष प्रावधानों की जरूरत हो सकती है। हालांकि अन्य कर्मचारियों के लिए विशेष प्रावधान अनिवार्य करने का तर्क अस्पष्ट है।
उदाहरण के लिए संहिता में यह अपेक्षा की गई है कि जिसे बहरेपन या चक्कर आने की शिकायत है, उसे उस निर्माण कार्य में नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए जिसमें दुर्घटना का खतरा हो। प्रश्न यह है कि ऐसा सुरक्षा संबंधी प्रावधान सभी श्रमिकों के लिए क्यों नहीं है। इसी प्रकार संहिता ऑडियो-विजुअल कर्मचारियों के लिए रोजगार अनुबंध के पंजीकरण का प्रावधान करती है। इस पर यह सवाल उठता है कि इस श्रेणी के लिए विशेष उपाय क्यों किया गया है।
इसके अतिरिक्त संहिता सेल्स प्रमोशन कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त अवकाश निर्दिष्ट करती है। वह यह भी निर्दिष्ट करती है कि वर्किंग जर्नलिस्ट्स से चार हफ्तों में 144 घंटों से ज्यादा काम नहीं करवाया जा सकता (यानी औसत 36 घंटे प्रति हफ्ते)। संहिता के अंतर्गत आने वाले सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम अवकाश और अधिकतम कार्य के घंटों को नियमों द्वारा निर्दिष्ट किया गया है। लेकिन वर्किंग जर्नलिस्ट्स और सेल्स प्रमोशन कर्मचारियों तथा अन्य श्रमिकों के बीच कार्य की स्थितियों को लेकर अलग-अलग किस्म के प्रावधानों का तर्क अस्पष्ट है।
उल्लेखनीय है कि संहिता सरकार को क्षेत्र विशेष प्रावधानों को अधिसूचित करने की शक्ति प्रदान करती है।
तालिका 1 में संहिता के सभी श्रमिकों पर लागू होने वाले सामान्य प्रावधानों और विशेष श्रेणी के श्रमिकों एवं इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होने वाले विशेष प्रावधानों का उल्लेख है।
तालिका 1: संहिता में सामान्य और विशेष प्रावधानों के बीच तुलना
विशेषताएं |
सामान्य प्रावधान |
विशेष प्रावधान |
नियोक्ताओं के कर्तव्य |
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कार्य स्थितियां और कल्याणकारी सुविधाएं |
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खतरनाक कार्य |
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निरीक्षण |
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लाइसेंस और पंजीकरण |
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काम के घंटे |
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अवकाश |
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विकलांगता |
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आयु |
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Sources: Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2019; PRS.
कुछ श्रमिक संहिता के अंतर्गत नहीं आते
संहिता 10 या उससे अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होती है। पर 10 से कम श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स इसके दायरे में नहीं आते। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या छोटे इस्टैबलिशमेंट्स के श्रमिकों को स्वास्थ्य और सुरक्षा कानूनों के अंतर्गत आना चाहिए।
यह कहा जा सकता है कि कर्मचारियों के आधार पर श्रम कानूनों का एप्लिकेशन इसलिए किया जाता है ताकि छोटे उद्योगों पर उनके अनुपालन का बोझ कम किया जा सके और उनके आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके। [4], [5] छोटे इस्टैबलिशमेंट्स के विकास को बढ़ावा देने के लिए कुछ राज्यों ने अपने श्रम कानूनों में संशोधन किए हैं ताकि उनकी एप्लिकेशन की सीमा को बढ़ाया जा सके। उदाहरण के लिए राजस्थान ने फैक्ट्री एक्ट, 1948 की एप्लिकेबिलिटी की सीमा को 10 श्रमिक से 20 श्रमिक (अगर कारखाने में बिजली का इस्तेमाल किया जाता है) और 20 श्रमिक से 40 श्रमिक (अगर कारखाने में बिजली का इस्तेमाल नहीं किया जाता) किया है। उल्लेखनीय है कि फैक्ट्रीज़ (संशोधन) बिल, 2014 में भी ऐसे ही संशोधन प्रस्तावित थे जोकि 16वीं लोकसभा के भंग होने के साथ लैप्स हो गया।
दूसरी तरफ एक और तर्क दिया जाता है। अगर कर्मचारियों की संख्या की सीमा को कम किया जाता है तो इस्टैबलिशमेंट्स इस बात के लिए प्रोत्साहित होंगे कि उनका आकार छोटा ही रहे। इससे वे नियमों का पालन करने से बच सकते हैं।4,5 यह तर्क भी दिया जाता है कि स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संबंधी कानून में सभी इस्टैबलिशमेंट्स के श्रमिक आने चाहिए, ताकि असुरक्षित कार्य प्रक्रियाओं के खिलाफ श्रमिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा हो।2,4 इस संबंध में एनसीएल ने तीन कानूनों का सुझाव दिया था- पहला, जिसमें सभी इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू होने वाले व्यापक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा रेगुलेशंस शामिल हों, और बाकी के दो कानूनों में कार्य स्थितियां और कल्याण संबंधी सुविधाएं शामिल हों: पहला बड़े इस्टैबलिशमेंट (20 श्रमिकों से ज्यादा को नौकरियों पर रखने वाले) और दूसरा छोटे इस्टैबलिशमेंट (20 या उससे कम श्रमिकों को नौकरियों पर रखने वाले) पर लागू हो। तीसरे कानून में एनसीएल ने कार्य स्थितियों पर कम कठोर प्रावधान निर्दिष्ट किए जैसे कल्याणकारी सुविधाएं, ताकि छोटे इस्टैबलिशमेंट्स पर अनुपालन के बोझ को कम किया जा सके।
उल्लेखनीय है कि अधिकतर देश छोटे उद्यमों को श्रम कानूनों से पूरी तरह छूट नहीं देते। अंतरराष्ट्रीय श्रम कानून (2005) का कहना है कि केवल 10% सदस्य देश लघु और मध्यम दर्जे के उपक्रमों को श्रम कानूनों से पूरी तरह से छूट देते हैं। [6] अधिकतर देशों ने श्रम कानूनों का एक मिश्रित दृष्टिकोण अपनाया है। उदाहरण के लिए युनाइटेड स्टेट्स, युनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका और फिलीपींस के स्वास्थ्य और सुरक्षा कानून सभी श्रमिकों (यूएस और यूके में घरेलू मददगारों को छोड़कर) को सार्वभौमिक कवरेज प्रदान करते हैं।7 हालांकि इन कानूनों के अंतर्गत कुछ बाध्यताएं निर्धारित सीमा से अधिक कर्मचारियों वाले उद्यमों पर ही लागू होती हैं। उदाहरण के लिए यूएस में कार्य संबंधी दुर्घटनाओं के लिए रिकॉर्ड कीपिंग की बाध्यताएं सिर्फ उन इस्टैबलिशमेंट्स पर ही लागू होती हैं जहां कम से कम 10 कर्मचारी काम करते हों। दक्षिण अफ्रीका में केवल 20 या उससे अधिक श्रमिकों वाले उद्यमों को स्वास्थ्य एवं सुरक्षा प्रतिनिधि नामित करना पड़ता है। [7]
सिविल अदालत नहीं कर सकती संहिता के अंतर्गत मामलों की सुनवाई
सिविल अदालतों को संहिता के अंतर्गत मामलों की सुनवाई करने से रोक है। कुछ मामलों में संहिता में प्रशासनिक अपीलीय अथॉरिटी को अधिसूचित करने का प्रावधान है। उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति अथॉरिटी के आदेश के कारण पीड़ित हुआ है, जैसे कारखानों के मामले में इंस्पेक्टर-कम-फेसिलिटेटर के आदेश के कारण, या वह ठेकेदार का लाइसेंस रद्द होने के कारण पीड़ित हुआ है। हालांकि संहिता विवादों की सुनवाई के लिए ज्यूडीशियल मैकेनिज्म नहीं प्रदान करती।
मौजूदा 13 स्वास्थ्य एवं सुरक्षा कानूनों के अंतर्गत श्रमिकों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले दावे, जैसे वेतन, कार्य के घंटे और अवकाश, की सुनवाई श्रम अदालतों और औद्योगिक ट्रिब्यूनलों द्वारा की जाती है। हालांकि संहिता सिविल अदालतों के क्षेत्राधिकार पर रोक लगाती है और यह स्पष्ट नहीं करती कि क्या ऐसे विवादों की सुनवाई इन श्रम अदालतों और ट्रिब्यूनलों द्वारा की जाएगी।
इसके अतिरिक्त दूसरे स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी विवाद हो सकते हैं। जैसे कोई नियोक्ता इंस्पेक्टर के ऐसे किसी आदेश को चुनौती दे सकता है, जिसमें कार्यस्थल पर सुरक्षा संबंधी उल्लंघनों का उल्लेख किया गया हो। ऐसी स्थिति में नियोक्ता इंस्पेक्टर के आदेश के खिलाफ राहत पाने के लिए सिविल अदालत में मामला दायर कर सकता। यह अपील उच्च न्यायालय में, और अंततः सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जा सकती है। हालांकि संहिता सिविल अदालतों में सुनवाई पर रोक लगाती है। परिणामस्वरूप इंस्पेक्टर के आदेश और अधिसूचित प्रशासनिक अपीलीय अथॉरिटी के कारण पीड़ित नियोक्ता उसे सिविल अदालत में चुनौती नहीं दे सकते। उनके पास सिर्फ एक उपाय बचता है, वह यह कि वे संबंधित उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर करें। यह तर्क दिया जा सकता है कि संहिता के अंतर्गत सिविल अदालतों पर मामलों की सुनवाई संबंधी रोक लगाने से पीड़ित व्यक्ति को यह मौका नहीं मिलेगा कि वह कुछ विषयों को निचली अदालत में चुनौती दे सके।
संहिता के अंतर्गत वेतन स्पष्ट नहीं
संहिता ओवरटाइम काम और अवकाश की गणना से संबंधित प्रावधानों में ‘वेतन’ को स्पष्ट करती है। हालांकि वह इस टर्म को स्पष्ट नहीं करती। विभिन्न कानूनों में ‘वेतन’ की अलग-अलग परिभाषाएं हैं। उदाहरण के लिए कोड ऑन वेजेज़, 2019 में ‘वेतन’ में मूलभूत वेतन, महंगाई भत्ता (डियरनेस अलाउंस) और प्रतिधारण भत्ता (रीटेनिंग अलाउंस) शामिल है, जबकि ग्रैच्युटी भुगतान एक्ट, 1972 में वेतन की परिभाषा में प्रतिधारण भत्ता शामिल नहीं। यह भी स्पष्ट नहीं है कि संहिता में ‘वेतन’ की कौन सी परिभाषा लागू होगी। इससे ओवरटाइम वेतन और उपार्जित अवकाश (अर्न्ड लीव) की गणना करने के लिए भ्रम पैदा होगा।
अनेक मामलों को सरकार द्वारा अधिसूचित करने के लिए छोड़ा गया
संहिता विभिन्न कल्याणकारी सुविधाओं, स्वास्थ्य एवं सुरक्षा मानदंडों, तथा श्रमिकों के कार्य घंटों के लिए प्रावधान बनाती है। हालांकि वह मानदंड निर्दिष्ट नहीं करती, पर संबंधित सरकार को उन्हें अधिसूचित करने के लिए सशक्त करती है। इस संहिता में समाहित होने वाले एक्ट्स में इन मानदंडों को निर्दिष्ट किया गया है। उदाहरण के लिए कारखानों, खदानों, और बीड़ी मजदूरों के लिए बने कानून में कहा गया है कि हर दिन अधिकतम 9 घंटे और प्रति सप्ताह अधिकतम 48 घंटे की कार्यावधि होगी। प्रश्न यह है कि क्या संहिता में कार्य घंटों, सुरक्षा मानदंडों और कार्य स्थितियों (जैसे वॉशरूम्स और पेयजल) की न्यूनतम शर्तों को निर्दिष्ट होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि संहिता का एक प्रावधान मातृत्व लाभ एक्ट, 1961 (जिसे संहिता में शामिल नहीं किया गया) को ओवरलैप करता है। संहिता कहती है कि केंद्र सरकार 50 से अधिक श्रमिकों वाले इस्टैबलिशमेंट्स में क्रेश से संबंधित नियम बना सकती है, यानी यह अनिवार्य नहीं है। मातृतत्व लाभ एक्ट, 1961 इन इस्टैबलिशमेंट्स मे क्रेश के प्रावधान को अनिवार्य बनाता है।
अनुलग्नक: संहिता और उसमें शामिल होने वाले कानूनों के बीच तुलना
तालिका 2 में संहिता के प्रावधानों की तुलना उन 13 एक्ट्स से की गई है जिसे संहिता में शामिल करना प्रस्तावित है। ये 13 एक्ट्स हैं: फैक्ट्रीज़ एक्ट, 1948, खदान एक्ट, 1952, डॉक श्रमिक (सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कल्याण) एक्ट, 1986, भवन निर्माण और अन्य निर्माण श्रमिक (रोजगार और सेवा शर्तों का रेगुलेशन) एक्ट, 1996, बागान श्रमिक एक्ट, 1951, कॉन्ट्रैक्ट श्रमिक (रेगुलेशन और उन्मूलन) एक्ट, 1970, अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक (रोजगार और सेवा शर्तों का रेगुलेशन) एक्ट, 1979, वर्किंग जर्नलिस्ट और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें और विविध प्रावधान) एक्ट, 1955, वर्किंग जर्नलिस्ट (वेतन दरों का निर्धारण) एक्ट, 1958, मोटर परिवहन श्रमिक एक्ट, 1961, सेल्स प्रमोशन कर्मचारी (सेवा शर्त) एक्ट, 1976, बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) एक्ट, 1966 और सिने वर्कर्स एवं सिनेमा थियेटर वर्कर्स एक्ट, 1981।
तालिका 2: संहिता और मौजूदा कानूनों के बीच तुलना
विशेताएं |
मौजूदा कानून |
2019 की संहिता |
कवरेज और पंजीकरण |
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अथॉरिटीज़ |
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कर्तव्य |
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कार्य के घंटे और अवकाश |
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स्वास्थ्य एवं कल्याणकारी सुविधाएं |
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विशेष प्रावधान |
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|
अपराध और सजा |
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|
Sources: Respective 13 Acts; 2019 Code; PRS.
[1]. “ Suggested Labour Policy Reforms”, Federation of Indian Chambers of Commerce & Industry, 2014.
[2]. Report of the 2nd National Commission on Labour, Ministry of Labour and Employment, 2002.
[3]. Statement of Objects and Reasons, The Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2019.
[4]. “ Towards an optimal regulatory framework in India”, Implementation Group, Planning Commission, 12th Five Year Plan.
[5]. “ Reorienting policies for MSME growth”, Economic Survey 2018-19.
[6]. “ Labour and Labour-related Laws in Micro and Small and Enterprises: Innovative Regulatory Approaches”, International Labour Organisation, 2007.
[7]. LEGOSH, Occupational Safety and Health, Country Profiles, International Labour Organisation.
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।