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सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) बिल, 2024 को 5 फरवरी, 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था। बिल का उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के उपयोग को रोकना है। सार्वजनिक परीक्षाओं का अर्थ, बिल की अनुसूची के तहत निर्दिष्ट अधिकारियों द्वारा या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित परीक्षाएं हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) संघ लोक सेवा आयोग, (ii) कर्मचारी चयन आयोग, (iii) रेलवे भर्ती बोर्ड, (iv) राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी, (v) बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान, और (vi) केंद्र सरकार के विभाग और भर्ती के लिए उनके संलग्न कार्यालय।
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सार्वजनिक परीक्षाओं से संबंधित अपराध: बिल सार्वजनिक परीक्षाओं के संबंध में कई अपराधों को परिभाषित करता है। यह किसी भी अनुचित तरीके के इस्तेमाल की साजिश रचने या मिलीभगत करने पर रोक लगाता है। बिल के तहत अनुचित साधन में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी (आंसर की) तक अनाधिकृत पहुंच या उन्हें लीक करना, (ii) सार्वजनिक परीक्षा के दौरान उम्मीदवार की मदद करना, (iii) कंप्यूटर नेटवर्क या रिसोर्स के साथ छेड़छाड़, (iv) मेरिट लिस्ट या रैंक को शॉर्टलिस्ट करने या अंतिम रूप देने के लिए डॉक्यूमेंट्स के साथ छेड़छाड़ करना, और (v) फर्जी परीक्षा आयोजित करना, नकल करने या मौद्रिक लाभ के लिए फर्जी प्रवेश पत्र या ऑफर लेटर जारी करना। बिल निम्नलिखित पर भी रोक लगाता है: (i) समय से पहले परीक्षा से संबंधित गोपनीय जानकारी का खुलासा करना, और (ii) व्यवधान पैदा करने के लिए अनाधिकृत लोगों का परीक्षा केंद्रों में प्रवेश करना। उपरोक्त अपराधों के लिए तीन से पांच साल तक की कैद और 10 लाख रुपए तक का जुर्माना होगा।
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सेवा प्रदाताओं की जिम्मेदारियां: बिल के प्रावधानों के उल्लंघन की स्थिति में सेवा प्रदाताओं को पुलिस और संबंधित परीक्षा प्राधिकरण को सूचना देनी होगी। सेवा प्रदाता एक ऐसा संगठन होता है जो सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण को कंप्यूटर रिसोर्स या कोई अन्य सहायता प्रदान करता है। ऐसी घटनाओं की सूचना न देना अपराध होगा। अगर सेवा प्रदाता खुद कोई अपराध करता है, तो परीक्षा प्राधिकरण को इसकी सूचना पुलिस को देनी होगी। बिल सेवा प्रदाताओं को परीक्षा प्राधिकरण की अनुमति के बिना परीक्षा केंद्र स्थानांतरित करने से रोकता है। सेवा प्रदाता द्वारा किए गए अपराध पर एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा। ऐसे सेवा प्रदाता से जांच की आनुपातिक लागत भी वसूल की जाएगी। इसके अलावा, उन्हें चार साल तक सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने से भी रोक दिया जाएगा।
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अगर यह स्थापित हो जाता है कि सेवा प्रदाताओं से जुड़े अपराध किसी निदेशक, वरिष्ठ प्रबंधन, या सेवा प्रदाताओं के प्रभारी व्यक्तियों की सहमति या मिलीभगत से किए गए थे, तो ऐसे व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा। इन्हें तीन साल से लेकर 10 साल तक की कैद और एक करोड़ रुपए जुर्माने की सजा होगी।
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संगठित अपराध: बिल संगठित अपराधों के लिए बड़ी सज़ा निर्दिष्ट करता है। एक संगठित अपराध को ऐसे गैरकानूनी कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है जो व्यक्ति या व्यक्ति समूह द्वारा सार्वजनिक परीक्षाओं के संबंध में गलत लाभ हेतु साझा हित के साथ किया जाता है। संगठित अपराध करने वाले व्यक्तियों को पांच साल से 10 साल तक की सजा होगी और कम से कम एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। अगर किसी संस्था को संगठित अपराध करने का दोषी ठहराया जाता है, तो उसकी संपत्ति कुर्क और ज़ब्त कर ली जाएगी, और परीक्षा की आनुपातिक लागत भी उससे वसूल की जाएगी।
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पूछताछ और जांच: बिल के तहत सभी अपराध संज्ञेय, गैर-जमानती और गैर-शमनयोग्य यानी नॉन-कंपाउंडेबल होंगे। कोई भी कार्रवाई अपराध नहीं मानी जाएगी, अगर यह साबित हो जाए कि आरोपी ने सम्यक उद्यम (ड्यू डेलिजेंस) किया था। उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त की रैंक से कम रैंक वाले अधिकारी एक्ट के तहत अपराधों की जांच नहीं करेंगे। केंद्र सरकार जांच को किसी भी केंद्रीय जांच एजेंसी को हस्तांतरित कर सकती है।
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