- गृह मामलों के मंत्री राजनाथ सिंह ने 15 मार्च, 2016 को राज्यसभा में सिख गुरुद्वारा (संशोधन) बिल, 2016 पेश किया। इसे 16 मार्च, 2016 को सदन द्वारा पारित कर दिया गया। बिल सिख गुरुद्वारा एक्ट, 1925 में संशोधन का प्रयास करता है।
- एक्ट चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में सिख गुरुद्वारों के एडमिनिस्ट्रेशन को रेगुलेट करता है। एक्ट ने सिख गुरुद्वारों के एडमिनिस्ट्रेशन और प्रबंधन के लिए सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (एसजीपीसी) को स्थापित और प्रत्येक गुरुद्वारे के प्रबंधन के लिए कमिटियों को गठित किया था। यह एसजीपीसी और अन्य कमिटियों की शक्तियों को निर्धारित करता है और उनके चुनावों को रेगुलेट करता है।
- एसजीपीसी और प्रबंधन कमिटियों के चुनाव : एक्ट कहता है कि प्रत्येक सिख जिसकी आयु 21 वर्ष से अधिक है और जोकि वोटर के रूप में पंजीकृत है, एसजीपीसी और प्रबंधन कमिटियों के चुनावों में वोट देने के योग्य है। हालांकि जो भी व्यक्ति अपनी दाढ़ी या बाल ट्रिम या शेव करता है, इन चुनावों में वोट देने के योग्य नहीं है। एक्ट सहजधारी सिखों को अपवाद मानता है जो अपनी दाढ़ी या बाल ट्रिम या शेव करते हैं, और उन्हें वोट देने की अनुमति देता है। बिल इस अपवाद को हटाता है और सहजधारी सिखों को वोटिंग के अयोग्य ठहराता है, अगर वे अपनी दाढ़ी या बाल ट्रिम या शेव करते हैं।
- इस एक्ट के अंतर्गत सहजधारी सिख वे व्यक्ति हैं जो : (i) सिख रिवाजों के अनुसार सेरेमनीज़ करते हैं, (ii) तंबाकू या हलाल मीट नहीं खाते, (iii) धार्मिक गुनाह करने के कारण धर्म से बहिष्कृत नहीं किए गए हैं, और (iv) मूल मंत्र (सिख धर्म ग्रंथ का एक लोकप्रिय छंद) का पाठ कर सकते हैं।
- पूर्व प्रभाव से लागू: बिल 8 अक्टूबर, 2003 से लागू माना जाएगा। बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार, यह 8 अक्टूबर, 2003 की उस सरकारी अधिसूचना के मद्देनजर है जोकि सहजधारी सिखों को एसजीपीसी और प्रबंधन कमिटियों के चुनावों में वोट देने के अयोग्य ठहराने का प्रयास करती है। हालांकि पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2011 में इस अधिसूचना को अवैध घोषित कर दिया था। न्यायालय ने कहा था कि अगर सहजधारी सिखों को वोटिंग के अयोग्य ठहराना है तो विधायिका को कानून में संशोधन करना चाहिए।
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