केंद्र सरकार का वित्त (2019-20 से 2024-25)
इस नोट में 2019-20 से 2024-25 के दौरान केंद्र सरकार के वित्त के कुछ रुझानों को दर्शाया गया है। 2019-20 और 2020-21 के शुरुआती वर्ष आर्थिक मंदी और कोविड-19 महामारी से प्रभावित थे। 2020-21 में देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने से केंद्र सरकार के वित्त पर असर पड़ा। कर संग्रह में गिरावट आई, जबकि राजकोषीय और राजस्व घाटा कई वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। हालांकि केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे में कुछ वृद्धि पिछले वर्षों के बकाया सबसिडी के भुगतान के कारण हुई थी।
महामारी के बाद की अवधि में केंद्र सरकार ने पूंजीगत परिव्यय पर बजटीय व्यय को काफी बढ़ाया है। वह राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए ब्याज मुक्त ऋण भी प्रदान कर रही है। जहां तक राजस्व की बात है, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में केंद्र सरकार का सकल कर राजस्व मोटे तौर पर समान रहा है। हालांकि वह अपने विनिवेश अनुमानों को पूरा करने में लगातार पिछड़ रही है। यह नोट मूल रूप से अंतरिम बजट के बाद फरवरी 2024 में प्रकाशित हुआ था। इसे 2024-25 के नए बजट अनुमानों को दर्शाने के लिए अपडेट किया गया है जिसे जुलाई 2024 में पेश किया गया।
उच्च बजटीय परिव्यय के बावजूद सार्वजनिक क्षेत्र का पूंजीगत व्यय निचले स्तर पर है
केंद्र सरकार रक्षा, रेलवे, सड़क और राजमार्ग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी परिव्यय करती है। पूंजी परिव्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण होता है और कार्यकुशलता को बढ़ावा देने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता बढ़ती है।[i] सार्वजनिक क्षेत्र के पूंजी परिव्यय के वित्तपोषण के दो व्यापक तरीके हैं: (i) केंद्र सरकार द्वारा प्रत्यक्ष बजटीय सहयोग के माध्यम से, या (ii) सार्वजनिक उद्यमों और विभागीय उपक्रमों द्वारा संसाधन जुटाना। सार्वजनिक उद्यम और विभागीय उपक्रम (जैसे रेल मंत्रालय के तहत भारतीय रेलवे) विभिन्न स्रोतों जैसे आंतरिक प्राप्तियों का उपयोग, बांड जारी करना और बाहरी वाणिज्यिक उधार के माध्यम से पूंजी निवेश के लिए संसाधन जुटा सकते हैं। इन्हें आंतरिक और अतिरिक्त बजटीय संसाधन (आईईबीआर) कहा जाता है।