सरकारी धनराशि की निगरानी : राज्य बजट की समीक्षा कैसे करें

सरकारी वित्त पर राज्य विधानमंडल की नजर

नागरिकों के प्रतिनिधियों के रूप में राज्य विधानमंडल के सदस्यों (एमएलए) की तीन मुख्य भूमिकाएं होती हैं। वे राज्य में बनने वाले कानूनों पर चर्चा करते हैं और उन्हें पारित करते हैं। वे सुशासन सुनिश्चित करने के लिए सरकार के कामकाज पर नजर रखते हैं। वे बजट के जरिए सार्वजनिक संसाधनों के प्रभावी आवंटन को सुनिश्चित करते हैं। नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार के उद्देश्य से इस सरकारी धन को शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, ग्रामीण विकास, सामाजिक कल्याण, पुलिस और इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च किया जाता है।

विधायक यह जांच करते हैं कि यह धन कहां से जमा किया जा रहा है, इसे किस प्रकार खर्च करने की योजना है और क्या इस व्यय से अपेक्षित परिणाम हासिल होंगे। विधायक दो चरणों पर सरकार को इस खर्च के लिए जवाबदेह ठहरा सकते हैं। पहला, प्रत्येक वर्ष के शुरू होने से पहले वे बजट की समीक्षा करते हैं और उसे मंजूर करते हैं जिसमें व्यय संबंधी प्राथमिकताओं, कराधान के प्रस्तावों और आगामी वित्तीय वर्ष में उधारियों का उल्लेख होता है। दूसरा, वे मंजूर किए गए व्यय की ऑडिट रिपोर्ट्स की जांच करते हैं ताकि यह देखा जा सके कि आवंटनों को प्रभावी और उपयुक्त तरीके से इस्तेमाल किया गया।

इस प्राइमर में उन प्रणालियों को स्पष्ट किया गया है जिनके जरिए विधायक सरकार के वित्तीय प्रस्तावों की निगरानी कर सकते हैं। प्राइमर में उन पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट किया गया है जोकि बजट दस्तावेजों में राज्य सरकार की आय और व्यय तथा दोनों के अधिशेष या घाटे का खुलासा करने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त प्राइमर में बजट में पेश किए जाने वाले विभिन्न दस्तावेजों के विवरणों को प्रस्तुत किया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि इनसे क्या जानकारी हासिल की जा सकती हैं

 

राज्य के बजट के जरिए निगरानी

राज्य विधानमंडल दो प्रकार से सरकारी धनराशि पर नजर रखता है: (क) राज्य बजट के जरिए सरकारी व्यय और कराधान प्रस्तावों की जांच और उन्हें मंजूरी, और (ख) विभिन्न कार्यों के लिए आवंटित धनराशि के उपयोग की समीक्षा करना।

विधानसभा में बजट पेश होने के बाद क्या होता है?

बजट पेश होने के बाद सदन में उस पर सामान्य चर्चा होती है। इस चरण में चर्चा बजट और राज्य सरकार के प्रस्तावों की सामान्य जांच परख तक सीमित होती है। चर्चा के अंत में वित्त मंत्री जवाब देते हैं। इस चरण पर मतदान नहीं होता।

आम चर्चा के बाद कुछ राज्यों में विभागों के व्यय के विस्तृत अनुमान, जिन्हें अनुदान मांगे कहा जाता है, को राज्य विधानमंडल की स्थायी समितियों के पास भेजा जाता है। स्थायी समितियों का एक कार्य विभागों को आवंटित धनराशि की छानबीन करना है। स्थायी समितियां निम्नलिखित की छानबीन करती हैं: (i) विभागों के अंतर्गत विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के लिए आवंटित राशि और (ii) विभाग को आवंटित राशि के उपयोग की प्रवृत्ति। अपनी जांच के आधार पर समितियां सदन को अपनी रिपोर्ट सौंपती हैं। समितियों के सुझाव के जरिए विधायकों को विभागों के प्रस्तावित व्यय के प्रभावों को समझने में मदद मिलती है। वे इन्हें मंजूर करने से पहले पूर्ण भिज्ञ होकर बहस में हिस्सा ले सकते हैं।

राज्य बजट की तैयारी

राज्य सरकार के वित्त विभाग के बजट सर्कुलर के प्रकाशित होने के साथ बजट की तैयारी शुरू हो जाती है। आम तौर पर यह सर्कुलर बजट पेश होने के करीब 3 से 6 महीने पहले प्रकाशित होता है। इसमें वह समय सीमा दी जाती है जिस दौरान विभिन्न विभागों को प्राप्तियों और व्यय का अनुमान वित्त विभाग को देना होता है। कुछ मामलों में राज्य सरकारें प्रस्तावों को अंतिम रूप देने से पहले सार्वजनिक परामर्श भी करती हैं।

 

बजट पर सामान्य चर्चा ख़त्म होने के बाद क्या होता है?

सामान्य तौर पर विधानसभाएं कुछ अनुदान मांगों पर विस्तृत चर्चा करती है। यह फैसला कार्य मंत्रणा समिति द्वारा किया जाता है कि किस विभाग को चर्चा के लिए चुना जाए। चर्चा के बाद मतदान होता है। जिन मांगों पर चर्चा नहीं होती और अंतिम दिन मतदान होता है, वे गिलोटिन हो जाती हैं, यानी एक साथ पारित हो जाती हैं।

अनुदान मांगों पर मतदान के दौरान विधायक कटौती प्रस्ताव के जरिए अपनी नामंजूरी व्यक्त कर सकते हैं। अगर कटौती प्रस्ताव प्राप्त हो जाता है तो इसका अर्थ यह है कि सरकार में विश्वास खत्म हो गया है और कैबिनेट से त्यागपत्र देने की अपेक्षा की जाती है। विधायक विभाग के लिए अनुदान की राशि में निम्नलिखित कटौतियों के लिए कटौती प्रस्ताव रख सकते हैं: (i) विभाग की नीतियों से नामंजूरी जताते हुए एक रुपए कम करने की, (ii) एक विशिष्ट राशि की कटौती की (मितव्ययता कटौती), या (iii) विशिष्ट शिकायत दर्ज कराने के लिए 100 रुपए की टोकन राशि की।

बजटीय प्रक्रिया के अंतिम चरण क्या हैं?

अनुदान मांग मंजूर करने के पश्चात उन्हें विनियोग विधेयक में समेकित कर दिया जाता है। विधेयक स्वीकृत व्यय के लिए राज्य के समेकित कोष से धन निकासी का प्रयास करता है जिसमें राज्य सरकार की सभी प्राप्तियां और उधारियां शामिल होती हैं।

विनियोग विधेयक के पारित होने के बाद वित्त विधेयक पर भी विचार किया जाता है और उसे पारित किया जाता है। इस विधेयक में कर दरों में परिवर्तनों और विभिन्न संस्थाओं पर कर लगाने से संबंधित विवरण होते हैं।

अगर सरकार वर्ष के दौरान अतिरिक्त धन खर्च करना चाहती है तो क्या होता है?

वर्ष के दौरान अगर सरकार को धन खर्च करने की जरूरत पड़ती है जिसे विधानमंडल द्वारा मंजूर नहीं किया गया है या उसे अतिरिक्त व्यय करना होता है तो वह अनुपूरक अनुदान मांग प्रस्तावित कर सकती है। सामान्य रूप से अनुपूरक अनुदान मांगों को प्रत्येक विधानसभा सत्र में पारित किया जाता है

बजट पारित होने के बाद निगरानी

बजट पारित होने के बाद विधानमंडल की निगरानी इसलिए जरूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसके द्वारा मंजूर राशि को उपयुक्त तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। वित्तीय समितियां सरकार के व्यय पर विधायी नियंत्रण की छानबीन करती हैं और सदन में रिपोर्ट पेश करती हैं।

लोक लेखा समिति

वित्तीय वर्ष के समाप्त होने के बाद नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) राज्य सरकार के आय और व्यय के लेखे को ऑडिट करता है और सदन में अपनी रिपोर्ट पेश करता है। चूंकि सदन के लिए इन सभी रिपोर्ट्स पर चर्चा करना मुश्किल है और इसमें काफी समय लगता है, इसलिए लोक लेखा समिति (पीएसी) को कैग की रिपोर्ट्स के निष्कर्षों की जांच करने का कार्य सौंपा गया है। पीएसी इस बात की छानबीन करती है कि क्या सरकार उस उद्देश्य के लिए धन खर्च कर रही है जिसके लिए विधानसभा ने व्यय को मंजूर किया है।

रिपोर्ट्स की जांच करते समय पीएसी कैग के अधिकारियों, विभिन्न मंत्रालयों और विशेषज्ञों से बातचीत करती है। सरकार पीएसी की प्रत्येक रिपोर्ट पर जवाब देती है और बताती है कि उसने किस सुझाव को मंजूर किया और किसे नामंजूर। इन प्रतिक्रियाओं के आधार पर पीएसी एक्शन टेकन रिपोर्ट तैयार करती है और उन्हें विधानमंडल में पेश करती है

सरकारी वित्त को समझना

बजट के अंग के रूप में वित्त मंत्री द्वारा आगामी वर्ष में राज्य सरकार के वार्षिक वित्तीय विवरण को पेश किया जाता है। इस विवरण में उस राशि के अनुमानों का उल्लेख होता है जिसे सरकार विभिन्न मंत्रालयों पर खर्च करने वाली है और यह भी कि विभिन्न स्रोतों, जैसे करों की वसूली और गैर कर स्रोतों से किस प्रकार उस धनराशि को अर्जित किया जाएगा। बजट में सरकार की उधारियों और उसके समूचे ऋण के अनुमानों का भी जिक्र होता है। इसके अतिरिक्त विवरण में यह लेखा भी होता है कि पिछले वर्ष विधानसभा को दिए गए अनुमानों की तुलना में सरकार ने कितना धन अर्जित या खर्च किया है।

इस खंड में मुख्य अवधारणाओं और पारिभाषिक शब्दों को सरल शब्दों में प्रस्तुत करने के लिए राज्य सरकार के वित्त का विवरण पेश किया गया है।

सरकार अपने व्यय को किस प्रकार वित्त पोषित करती है?

सरकार की प्राप्तियों से इस बात का संकेत मिलता है कि सरकार के पास अपने व्यय को वित्त पोषित करने के लिए क्या संसाधन उपलब्ध हैं। ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: (i) राज्य की अपनी प्राप्तियां, (ii) केंद्र सरकार से प्राप्तियां, और (iii) उधारियां।

राज्य सरकार अन्य स्रोतों के अतिरिक्त विभिन्न विभागों द्वारा लगाए जाने वाले करों, शुल्क और जुर्माने, राज्य उपक्रमों के लाभ में हिस्सेदारी से धन अर्जित करती है। राज्यों को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी और योजनाओं एवं अन्य कार्यों के लिए सहायतानुदान के रूप मे केंद्र सरकार से धनराशि प्राप्त होती है। राज्य की व्यय संबंधी जरूरतों की तुलना में इन दो प्रकार की प्राप्तियों के कम होने पर उधारियों की जरूरत पड़ती है।

प्राप्तियों को व्यापक स्तर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- राजस्व और पूंजीगत प्राप्तियां। सरकार की राजस्व प्राप्तियों में राज्य के अपने कर, गैर कर प्राप्तियां, केंद्रीय करों में राज्य का हिस्सा और केंद्र के सहायतानुदान शामिल होते हैं। पहले दोनों राज्य की अपनी प्राप्तियां होते हैं, जबकि बाद के दोनों राज्यों को केंद्रीय हस्तांतरण में शामिल होते हैं।

राज्य को करों और राज्य जीएसटी, बिक्री कर या वैट, राज्य उत्पाद शुल्क, भू-राजस्व और स्टाम्प ड्यूटी और पंजीकरण फीस जैसे शुल्कों से प्राप्तियां होती हैं। राज्य सरकार को करों के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से भी प्राप्तियां होती हैं। गैर कर प्राप्तियों में राज्य द्वारा दिए गए ऋणों पर अर्जित ब्याज, फीस और जुर्माना, राज्य उपक्रमों से लाभांश और खनन गतिविधियों से प्राप्त रॉयल्टी शामिल है।

राज्य सरकार को केंद्रीय करों में राज्य के हिस्से के रूप में कर प्राप्तियां होती हैं (जिन्हें केंद्रीय करों का हस्तांरण भी कहते हैं)। इन आय कर, निगम कर, केंद्रीय जीएसटी, कस्टम्स और केंद्रीय उत्पादन शुल्क जैसे करों से ये प्राप्तियां होती हैं। केंद्रीय करों से राज्यों को धनराशि का हस्तांतरण वित्त आयोग के सुझावों के आधार पर होता है।

दूसरे प्रकार के केंद्रीय हस्तांतरण सहायतानुदान होते हैं। केंद्रीय अनुदानों की प्रकृति टाइड होती है यानी वे विशिष्ट योजनाओं और व्यय के क्षेत्रों से जुड़े होते हैं जिनके आधार पर राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों को इन योजनाओं के लिए राशि वितरित करते हैं। ऐसी योजनाओं में स्वच्छ भारत अभियान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, आयुष्मान भारत आदि शामिल हैं जोकि केंद्र सरकार द्वारा भी वित्त पोषित हैं। सहायतानुदानों में वित्त आयोग द्वारा स्थानीय निकायों और पंचायतों को दिए जाने वाले अनुदान शामिल हैं।

कुछ प्राप्तियां सरकार की परिसंपत्तियों या देनदारियों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए सरकार की उधारियां उसकी देनदारियों को बढ़ाती है, जबकि राज्यों द्वारा दिए गए ऋण की रिकवरी से सरकार की परिसंपत्तियों में इजाफा होता है। ऐसी प्राप्तियों को पूंजीगत प्राप्तियां कहते हैं।

वित्त आयोग

केंद्र सरकार देश में कुछ करों की वसूली से धनराशि जमा करती है। इनमें आय कर, निगम कर, केंद्रीय जीएसटी, कस्टम्स और केंद्रीय उत्पाद शुल्क शामिल हैं। इस धनराशि के कुछ हिस्से को राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है, जोकि वित्त आयोग के सुझाए गए मानदंड पर आधारित होता है। वित्त आयोग एक ऐसी संवैधानिक संस्था है जिसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा हर पांच वर्ष बाद गठित किया जाता है। यह राजस्व घाटा अनुदान, आपदा प्रबंधन अनुदान और स्थानीय निकायों को अनुदान जैसे अनुदानों के संबंध में सुझाव देता है।

15वें वित्त आयोग को 2020-21 और 2021-26 की अवधियों के लिए क्रमशः दो रिपोर्ट्स सौंपनी थीं। 2020-26 की अवधि के लिए उसने केंद्रीय करों के अविभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 41% करने का सुझाव दिया। केंद्र सरकार के सेस और सरचार्ज तथा टैक्स कलेक्शन का कुछ हिस्सा इस विभाज्य पूल में शामिल नहीं होता। 14वें वित्त आयोग ने 2015-20 की अवधि के लिए जितने हिस्से का सुझाव दिया था, यह उससे 1% कम था। हाल ही गठित जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के राजस्व से यह समायोजन किया गया है।

 

सरकार अपना धन कैसे खर्च करती है?

राज्य सरकार योजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने के लिए अपना धन खर्च करती है, स्थानीय सरकारों को सबसिडी और अनुदान प्रदान करती है, जो ऋण लिया है उस पर ब्याज का भुगतान करती है और वेतन और पेंशन सहित प्रशासनिक व्यय करती है। इन मदों पर किया गया व्यय राजस्व व्यय के अंतर्गत आता है।

इसके अतिरिक्त सरकार पूंजी निवेश पर भी खर्च करती है। इस व्यय को पूंजीगत व्यय के तहत वर्गीकृत किया जाता है, जो परिसंपत्तियों के सृजन या देनदारियों को कम करने में खर्च किया जाता है। इसमें सड़क और अस्पताल जैसे बुनियादी ढांचे बनाने और उधार की अदायगी पर खर्च शामिल होगा।

शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि या परिवहन जैसे विभागों के व्यय में राजस्व और पूंजीगत घटक दोनों शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिए शिक्षा के क्षेत्र में, स्कूल की इमारत के निर्माण पर धन खर्च करना एक पूंजीगत व्यय है क्योंकि यह परिसंपत्ति का निर्माण करता है। जबकि, स्कूल के शिक्षकों के वेतन के भुगतान जैसे नियमित व्यय राजस्व व्यय के रूप में वर्गीकृत किए जाते हैं।

अगर कुल व्यय, कुल प्राप्तियों से अधिक हो?

अगर सरकार का व्यय, उसकी कुल प्राप्तियों से अधिक होता है, तो सरकार इस अंतर को उधारियों के जरिए वित्त पोषित करती है। इस अंतराल को राजकोषीय घाटा कहा जाता है और यह उस वर्ष के लिए अपेक्षित उधारियों के बराबर होता है। अगर प्राप्तियां व्यय से अधिक होती हैं तो राजकोषीय अधिशेष होता है।

उच्च राजकोषीय घाटे से सरकार की उधारी में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप, सरकार को बाद के वर्षों में इन उधारिंयों पर ब्याज भुगतान के रूप में अतिरिक्त व्यय का वहन करना पड़ता है। यह ब्याज भुगतान प्रतिबद्ध व्यय का रूप होता है, जिसे वहन करना सरकार के लिए बाध्यकारी होता है।

राजस्व घाटा तब होता है जब राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है। किसी वर्ष में राजस्व घाटा उस वर्ष सरकार की उधारियों की ओर संकेत देता है जोकि उसे अपने राजस्व खर्च को पूरा करने के लिए लेना पड़ता है, जैसे प्रशासनिक खर्च, या वेतन या ब्याज का भुगतान। इन उधारियों से परिसंपत्तियों के सृजन में कोई योगदान नहीं होता।

 

 

एफआरबीएम एक्ट्स में राजकोषीय लक्ष्य

2003 में संसद ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (एफआरबीएम एक्ट) पारित किया, जिसमें केंद्र सरकार के घाटे और बकाया देनदारियों की सीमा निर्धारित थी। बाद के वर्षों में कई राज्यों ने केंद्रीय एफआरबीएम एक्ट की तर्ज पर अपने एफआरबीएम एक्ट्स पारित किए। एफआरबीएम एक्ट्स का उद्देश्य वित्तीय नीति में बुद्धिमानी पूर्ण ऋण प्रबंधन और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। केंद्र और राज्य सरकारें इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए अपने घाटे और देनदारियों को कम करने हेतु अपने संबंधित कानूनों के तहत लक्ष्य निर्धारित करती हैं।

15वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि राज्यों के राजकोषीय घाटे (जीएसडीपी के % के रूप में) को 2021-22 में 4% पर, 2022-23 में 3.5% पर और 2023-26 में 3% पर निर्धारित किया जाए। उसने सुझाव दिया कि अगर राज्य बिजली क्षेत्र के सुधार करते हैं तो 2021-22 औप 2024-25 के बीच की अवधि के लिए 0.5% की अतिरिक्त वार्षिक उधारी की अनुमति दी जाए। उसने यह सुझाव भी दिया था कि राज्य किसी भी अप्रयुक्त वित्तीय राशि को आने वाले वर्षों में इस्तेमाल कर सकते हैं।  

बकाया ऋण

सरकार प्राप्तियों और व्यय के बीच के अंतर (राजकोषीय घाटा) को कम करने के लिए सालों-साल जो उधार लेती है, उससे उस पर ऋण बढ़ता जाता है। यह पिछली सरकारों द्वारा उधार ली गई राशि है और वर्तमान में राज्य द्वारा चुकाने योग्य है। अधिक उधारी लेने पर बकाया ऋण बढ़ता जाता है या सरकार द्वारा भुगतान करने पर बकाया ऋण में गिरावट आती है।

केंद्र सरकार द्वारा पारित एफआरबीएम एक्ट, 2003 र्निदिष्ट करता है कि सरकार के बकाया ऋण (केंद्र और राज्य का संयुक्त) को 2024-25 तक जीडीपी के 60% पर लाया जाए। इसमें राज्य सरकार के बकाया ऋण को जीडीपी के 20% पर लाने का लक्ष्य भी शामिल है।

उच्च ऋण का अर्थ यह है कि सरकार पर ऋण को चुकाने की अधिक बड़ी बाध्यता है। इससे ब्याज भी उच्च स्तरीय होता है, चूंकि पूरे बकाया ऋण पर ब्याज चुकाना होता है

बजट दस्तावेजों को कैसे संयोजित किया जाता है?

इस खंड में विधानमंडल में पेश होने वाले बजट दस्तावेजों और उनमें उल्लिखित जानकारियों का विवरण प्रस्तुत किया गया है। इससे पाठकों को इन दस्तावेजों को नैविगेट करने तथा अपेक्षित जानकारियां हासिल करने के संबंध में भी पता चलेगा। हालांकि बजट में 10 से अधिक दस्तावेज होते हैं, लेकिन उन्हें चार मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है (देखें अगले पृष्ठ पर तालिका 1)।

सारांश से संबंधित दस्तावेज (समरी डॉक्यूमेंट्स): इन दस्तावेजों में बजट के मुख्य प्रावधानों का सारांश होता है जिसमें मुख्य नीतिगत घोषणाएं, कर प्रस्ताव, सरकार की प्राप्तियों और व्यय के कुल आंकड़े शामिल होते हैं। चूंकि वे सारांश संबंधी दस्तावेज होते हैं, उनमें विभाग या किसी कार्यक्रम की विशेष मदों के आवंटनों से संबंधित विशिष्ट आंकड़े मौजूद नहीं होते।

व्यय से संबंधित दस्तावेज (एक्सपेंडिचर डॉक्यूमेंट्स): इन दस्तावेजों में सरकार के व्यय से संबंधित जानकारियां होती हैं। इनके विवरण क्षेत्रों, विभागों और योजनाओं द्वारा प्रदान किए जाते हैं।

प्राप्तियों से संबंधित दस्तावेज (रेसीट्स डॉक्यूमेंट्स): इन दस्तावेजों में सरकार द्वारा कर प्राप्तियों, गैर कर प्राप्तियों, केंद्रीय हस्तांतरण, पूंजीगत प्राप्तियों और उधारियों के जरिए अर्जित धनराशि के संबंध में जानकारी होती है।

एफआरबीएम से संबंधित दस्तावेज (एफआरबीएम डॉक्यूमेंट्स): इन दस्तावेजों को राज्य के राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट (एफआरबीएम) के प्रावधानों के अंतर्गत पेश किया जाता है। इस एक्ट के अंतर्गत सरकार से सुदृढ़ आर्थिक नीतियों का अनुपालन और बजट घाटे की सीमा तय करने की अपेक्षा की जाती है।

बजट और अर्थव्यवस्था

बजट के साथ सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में वृद्धि का पूर्वानुमान भी पेश किया जाता है। जीएसडीपी किसी वित्तीय वर्ष में किसी राज्य में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं को संदर्भित करती है। यह राज्य के आर्थिक उत्पादन को प्रदर्शित करती है।

किसी राज्य की राजस्व जुटाने की क्षमता अर्थव्यवस्था की संरचना और आर्थिक विकास पर निर्भर करती है। इससे तय होता है कि किसी राज्य को कितना व्यय करना होगा और किसी कमी को पूरा करने के लिए कितना उधार लेना होगा। इसके अतिरिक्त बजट प्रावधान आर्थिक वृद्धि को भी प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, जब विकास की गति मंद हो तो सरकारें अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए करों में कटौती करने या अधिक खर्च करने का निर्णय ले सकती हैं।

तालिका 1बजट के दस्तावेज

श्रेणी

दस्तावेज

सारांश से संबंधित दस्तावेज

बजट भाषण: मुख्य व्यय और कर प्रस्तावों की झलक

बजट एक नजर में: सरकार द्वारा अर्जित कुल धनराशि (कर या उधारियों के जरिए) का संक्षिप्त विवरण, किस प्रकार उस धन को खर्च किया जाए और बजट घाटा/अधिशेष।

वार्षिक वित्तीय विवरण: बजट एक नजर में, के समान लेकिन संविधान के अनुच्छेद 202 के अंतर्गत प्रदत्त अनिवार्यताओं को प्रदर्शित करने के लिए अलग तरह से संयोजित किया जाता है।

व्यय से संबंधित दस्तावेज

अनुदान मांग/विनियोग विधेयक: संविधान के अंतर्गत अनिवार्य दो दस्तावेज, विधानसभा को भिन्न-भिन्न मंत्रालयों और योजनाओं को एक निश्चित धनराशि आवंटित करने को कहते हैं। विधानसभा इन दस्तावेजों को पारित करने के लिए मतदान करती है।

विनियोग विधेयक: संविधान के अंतर्गत विधानसभा द्वारा पारित करने की अपेक्षा, . यह राज्य सरकार को राज्य के समेकित कोष से धनराशि निकालने की अनुमति देता है।

प्राप्तियों से संबंधित दस्तावेज

प्राप्तियों के विस्तृत अनुमान: इस संबंध में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करता है कि सरकार किस प्रकार विभिन्न स्रोतों के जरिए धन की उगाही करती है।

वित्त विधेयक: विधानसभा में प्रस्तुत किया जाने वाला विधेयक (जिस पर मतदान किया जाता है) जिसमें राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित कर परिवर्तनों को प्रभावी बनाने वाले विभिन्न कानूनी संशोधन शामिल होते हैं।

एफआरबीएम से संबंधित दस्तावेज

मैक्रो-इकोनॉमिक रूपरेखा: अर्थव्यवस्था की वृद्धि की संभावनाओं पर सरकार के मूल्यांकन को स्पष्ट करता है।

मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति : अगले तीन वर्षों के बजट घाटे की सीमा तथा कर और गैर कर प्राप्तियों के लक्ष्यों को निर्धारित करने वाला वक्तव्य।

राजकोषीय नीति से संबंधित रणनीति : सृदढ़ आर्थिक नीतियों के अनुपालन के सरकार के प्रयासों का खुलासा करने वाला वक्तव्य जिसमें एफआरबीएम एक्ट के अंतर्गत घाटे के लिए निर्धारित लक्ष्यों को पूरा न करने के कारणों को स्पष्ट किया जाता है (देखें उपरिलिखित मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति)।

जैसा कि तालिका में उल्लिखित है, संविधान के प्रावधानों अथवा एफआरबीएम एक्ट के अंतर्गत विधानसभा में कुछ दस्तावेजों को पेश करने (और कुछ मामलों में मतदान करने) की अपेक्षा की जाती है। इनमें वार्षिक वित्तीय विवरण, अनुदान मांगें, विनियोग और वित्त विधेयक, और एफआरबीएम दस्तावेज शामिल हैं।

जो जानकारी मुझे चाहिए, वह मुझे कैसे मिलेगी?

इस खंड में कुछ उदाहरणों की मदद से बताया गया है कि बजट दस्तावेजों के मुख्य मानकों के संबंध में जानकारी कैसे प्राप्त की जाए।

बजट अनुमान, संशोधित अनुमान और वास्तविक क्या होते हैं?

बजट दस्तावेजों में आपको चार कतार मिलेंगी।

 

बजट में सरकार आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अपने अनुमान प्रस्तुत करती है। बजट अनुमान में सरकार के अगले वर्ष की राशि अनुमानित होती है। उदाहरण के लिए फरवरी 2023 में प्रस्तुत किए गए बजट में वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए विभिन्न मदों के बजट अनुमान प्रदर्शित हैं।

वर्ष समाप्त होने पर वास्तविक आंकड़ों को कैग द्वारा ऑडिट किया जाता है। इसके बाद आगामी बजट में उन्हें विधानसभा में पेश किया जाता है। वास्तविक आंकड़े वर्ष के अंत में ऑडिट होने वाली अंतिम राशि का संकेत होते हैं और अनुमान से अधिक या कम हो सकते हैं। चूंकि वास्तविक आंकड़े वित्तीय वर्ष के समाप्त होने और अंतिम लेखा तैयार करने के बाद ही ऑडिट होते हैं, इसलिए बजट में पिछले वर्ष के वास्तविक आंकड़े प्रदर्शित किए जाते हैं। उदाहरण के लिए 2023-24 के बजट में 2021-22 के वास्तविक आंकड़े प्रदर्शित किए गए हैं।

सरकार के कुछ अनुमान वर्ष के दौरान बदल सकते हैं जोकि वास्तविक आंकड़ों में प्रदर्शित होते हैं। उदाहरण के लिए किसी वित्तीय वर्ष में कुछ विभागों को बजट अनुमान के अंतर्गत आवंटित राशि से अधिक राशि की जरूरत हो सकती है या किसी स्रोत से अर्जित होने वाली प्राप्तियों में परिवर्तन हो सकता है। इस प्रकार, आगामी वित्तीय वर्ष के लिए बजट अनुमानों के साथ, सरकार ऐसे संशोधनों को शामिल करने के बाद चालू वित्तीय वर्ष के लिए संशोधित अनुमान प्रस्तुत करती है।

बजट के दस्तावेजों में कुल व्यय, कुल प्राप्तियां, राजकोषीय घाटा और दूसरे बड़े आंकड़े कहां हैं?

बजट एक नजर में- को देखें। बजट एक नजर मेंमें बजट का सारांश होता है। इसमें बजट के मुख्य आंकड़े दिए जाते हैं जिन्हें पाठकों के लिए पढ़ना सरल होता है। इस दस्तावेज में राज्य प्राप्तियों और व्यय के मुख्य घटक प्रदर्शित किए जाते हैं। साथ ही राज्य सरकार के घाटों, जैसे राजकोषीय घाटा तथा राजस्व घाटा, का उल्लेख भी होता है।

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