राज्यों की वित्तीय स्थिति: 2023-24

जैसे-जैसे कोविड-19 का प्रभाव कम हुआ हैराज्यों की राजस्व प्राप्तियां महामारी-पूर्व स्तर पर वापस आ गई हैं। हालांकि जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में जीएसटी संग्रह जीएसटी-पूर्व स्तरों से कम बना हुआ है। जीएसटी राजस्व के स्तर को बढ़ाने के लिए टैक्स स्लैब को रैशनलाइज करना पड़ सकता है। जून 2022 में जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान बंद होने से कुछ राज्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। राज्यों में उच्च स्तर का प्रतिबद्ध व्यय और लगातार राजस्व घाटा बना हुआ है। नॉन-मेरिट सबसिडी में वृद्धिपेंशन सुधारों को उलटनाऔर राज्य के स्वामित्व वाली डिस्कॉम्स की खराब वित्तीय स्थिति राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए चुनौतियां पेश कर रही हैं।

इस रिपोर्ट में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों दिल्लीजम्मू एवं कश्मीर और पुद्दूचेरी के बजट दस्तावेजों और कैग एकाउंट्स के आधार पर उनकी वित्तीय स्थिति का विश्लेषण किया गया है। इस रिपोर्ट के रेखाचित्रों में राज्यों के लिए निम्नलिखित संक्षिप्त नामों का इस्तेमाल किया गया है।

राज्य

संक्षिप्त नाम

राज्य

संक्षिप्त नाम

राज्य

संक्षिप्त नाम

आंध्र प्रदेश

AP

जम्मू एवं कश्मीर

JK

पुददूचेरी

PY

अरुणाचल प्रदेश

AR

कर्नाटक

KA

राजस्थान 

RJ

असम

AS

केरल

KL

सिक्किम

SK

बिहार

BR

मेघालय

MG

तमिलनाडु

TN

छत्तीसगढ़

CG

महाराष्ट्र

MH

त्रिपुरा

TR

दिल्ली

DL

मध्य प्रदेश

MP

तेलंगाना

TS

गोवा

GA

मणिपुर

MN

उत्तराखंड

UK

गुजरात

GJ

मिजोरम

MZ

उत्तर प्रदेश

UP

हिमाचल प्रदेश

HP

नगालैंड

NL

पश्चिम बंगाल

WB

हरियाणा

HR

ओड़िशा

OD

 

 

झारखंड

JH

पंजाब

PB

 

 

 

विषयवस्तु

खंड

राज्य की वित्तीय स्थिति के विभिन्न पहलू

     अनुदान में कमी के बीच राज्यों का राजस्व घाटा

     अतिरिक्त राजस्व के लिए जीएसटी स्लैब्स का रैशनलाइजेशन

     सबसिडी पर व्यय

     बिजली वितरण कंपनियों का प्रदर्शन

     राज्यों का पूंजी परिव्यय

     बजटेतर उधारियों में गिरावट

राज्य वित्त की प्रवृत्तियां

    i.     प्राप्तियां

   ii.     व्यय

   iii. ऋण और घाटा

   iv. बजटीय अनुमानों की विश्वसनीयता

  v.  विभिन्न क्षेत्रों के परिव्यय की प्रवृत्तियां

अनुलग्नक

पारिभाषिक शब्द

राज्यों की वित्तीय स्थिति के विभिन्न पहलू

अनुदान में कमी के बीच राज्यों ने राजस्व घाटे का बजट बरकरार रखा है 

15वें वित्त आयोग ने 2021-22 और 2025-26 के बीच कुछ राज्यों के लिए राजस्व घाटा अनुदान का सुझाव दिया था। ये अनुदान इस प्रकार प्रदान किए गए ताकि धीरे धीरे बाद के वर्षों में ये कम होते जाएं। हालांकि कई राज्यों ने राजस्व घाटे का बजट बरकरार रखा है। चूंकि अनुदान कम हो रहे हैं, इसलिए राज्यों को राजस्व संतुलन बनाए रखने के लिए अपना राजस्व बढ़ाना होगा या व्यय कम करना होगा।

क्षतिपूर्ति के बाद की अवधि के लिए जीएसटी स्लैब को रैशनलाइज करने की जरूरत हो सकती है

राज्यों के लिए जीएसटी क्षतिपूर्ति जून 2022 में समाप्त हो गई लेकिन एसजीएसटी राजस्व जीएसटी पूर्व अवधि और गारंटीकृत राजस्व के स्तर, दोनों से कम बना हुआ है। जीएसटी के तहत राजस्व तटस्थता दर को बहाल करने के लिए 15वें वित्त आयोग ने कर स्लैब का विलय करने और छूट को कम करने का सुझाव दिया था। क्षतिपूर्ति के बाद की अवधि में जीएसटी स्लैब को रैशनलाइज करने से अतिरिक्त राजस्व मिल सकता है।

राज्य सबसिडी का महत्वपूर्ण हिस्सा बिजली क्षेत्र पर खर्च 

पिछले कई वर्षों में राज्यों ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का लगभग 8%-9% हिस्सा सबसिडी देने में खर्च किया है। इस सबसिडी का एक बड़ा हिस्सा सबसिडी वाली या मुफ्त बिजली उपलब्ध कराने में खर्च किया जाता है। कई राज्यों में नॉन-मेरिट गुड्स के लिए बढ़ती सबसिडी पर चिंता जताई गई है। ऐसी नॉन-मेरिट सबसिडी देने से पूंजीगत व्यय के लिए उपलब्ध वित्त पर दबाव पड़ता है। 

2021-22 में डिस्कॉम्स का घाटा कम हुआ लेकिन बढ़ते कर्ज राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं 

राज्य के स्वामित्व वाली डिस्कॉम्स की खराब वित्तीय स्थिति कई वर्षों से समस्या पैदा कर रही है। 2021-22 में इन डिस्कॉम्स का वित्तीय घाटा कम हुआ है। राज्यों द्वारा डिस्कॉम्स को जारी की गई अधिक सबसिडी के कारण ऐसा हो सकता है। इन सुधारों के बावजूद कई डिस्कॉम्स पर काफी ऋण हैं जो राज्यों के लिए आकस्मिक देनदारियां हैं और उनकी वित्तीय स्थिति के लिए जोखिम पैदा करते हैं।

राज्यों को पूंजी परिव्यय के लिए अधिक केंद्रीय सहायता मिलती हैहालांकि खर्च समान स्तर पर है

2020-21 से केंद्र राज्यों को पूंजी परिव्यय के लिए ऋण प्रदान करता है। इसका उद्देश्य राज्यों का पूंजी निवेश बढ़ाने में मदद देना है। 2022-23 में इन ऋणों की मात्रा में काफी वृद्धि हुई। हालांकि इन ऋणों के बावजूद पूंजीगत परिव्यय पर सभी राज्यों ने समान स्तर से खर्च किया। 2022-23 में कई राज्यों का पूंजी परिव्यय और जीएसडीपी अनुपात 2021-22 की तुलना में घटने का अनुमान है।

उधारी सीमा में शामिल करने पर राज्यों की बजटेतर उधारी कम होने का अनुमान है

बजटेतर उधारियां सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं द्वारा ली जाती हैंलेकिन ऐसे ऋणों का ब्याज और मूलधन सरकारी बजट से चुकाया जाता है। इसके कारण ऋण और घाटे को कम करके दिखाया जाता है। 2022 में केंद्र सरकार ने अपनी शुद्ध उधारी सीमा तय करते समय राज्यों की बजटेतर उधारियों को शामिल करने का निर्णय लिया। इसके बाद 2021-22 की तुलना में 2022-23 में राज्यों द्वारा बजटेतर उधारियों में 70% से अधिक की कमी आने का अनुमान है।

अनुदान में कमी के बीच राज्यों ने राजस्व घाटे का बजट बरकरार रखा है

राजस्व घाटे का तात्पर्य यह है कि किसी राज्य की राजस्व प्राप्तियां उसके राजस्व व्यय को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इस कमी को दूर करने के लिए उधार की जरूरत है। राजस्व व्यय में वेतनपेंशनसबसिडी और ब्याज भुगतान जैसी वस्तुओं पर खर्च शामिल होता हैजिससे परिसंपत्ति का निर्माण नहीं होता। राज्यों द्वारा आवर्ती राजस्व घाटा पूंजी परिव्यय (परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए खर्च) करने की गुंजाइश कम कर देता हैक्योंकि एफआरबीएम कानूनों ने एक वर्ष में उधार लेने की सीमा तय कर दी है (आगे देखें)। वित्त आयोगों ने लगातार कहा है कि राज्यों को राजस्व घाटे को खत्म करना चाहिए।[1],[2]  एफआरबीएम कानूनों के तहत कई राज्यों में राजस्व घाटे को खत्म करने की भी आवश्यकता है। 2016-17 के बाद से राज्यों ने कुल मिलाकर राजस्व घाटा दर्ज किया है।

रेखाचित्र 1राज्यों का कुल राजस्व घाटा (जीडीपी के % के रूप में)
 

नोट: नकारात्मक राजस्व घाटा अधिशेष को दर्शाता है।
स्रोत: आरबीआई; राज्य बजट दस्तावेज़
एमओएसपीआई; पीआरएस।

हाल के सभी वित्त आयोगों ने राजस्व घाटे को खत्म करने के लिए राज्यों को अनुदान देने का सुझाव दिया है।[3]  ये अनुदान राज्यों की किसी भी राजस्व आवश्यकता को पूरा करने के लिए दिए जाते हैं जो केंद्रीय करों के हस्तांतरण के लिए लेखांकन के बाद बच जाती है।3  हस्तांतरण के बाद किसी राज्य का राजस्व घाटा बताता है कि असंतुलन (राजस्व स्रोतों और व्यय आवश्यकताओं के बीच का अंतर) कायम है और उसे दुरुस्त किए जाने की जरूरत है।[4]  हस्तांतरणों के पैटर्न में कोई बदलाव होता है तो इन अनुदानों की मदद से उन बदलाव के प्रभावों को दूर किया जा सकता है।3  15वें वित्त आयोग ने 2021-22 और 2025-26 के बीच की अवधि के लिए 17 राज्यों को 2.95 लाख करोड़ रुपए के राजस्व घाटा अनुदान का सुझाव दिया था।3  कुल अनुदान में से लगभग 87% हिस्सा पहले तीन वर्षों के लिए प्रदान किया गया। चूंकि अगले दो वर्षों में अनुदान काफी कम हो जाएगाइसलिए राज्यों को राजस्व संतुलन बनाए रखने के लिए अपने राजस्व के स्रोतों को बढ़ाना होगा या व्यय में कटौती करनी होगी। उदाहरण के लिए केरल को 2023-24 में राजस्व घाटा अनुदान के रूप में 4,749 करोड़ रुपए मिले और उसे 2024-25 में कोई अनुदान नहीं मिलेगा।

2023-24 में 11 राज्यों ने राजस्व घाटे का बजट रखा है। इन 11 राज्यों में से आंध्र प्रदेशहिमाचल प्रदेशकेरलपंजाब और पश्चिम बंगाल ने 2023-24 में राजस्व घाटा अनुदान के हिसाब-किताब के बाद राजस्व घाटे का बजट रखा है। अगर अनुदान नहीं दिया जाता तो 2023-24 में छह और राज्य राजस्व घाटे में होते। इनमें असमनगालैंड और उत्तराखंड शामिल हैं।

केस स्टडीजीएसडीपी की तुलना में कम प्राप्तियों के कारण कुछ राज्यों में लगातार राजस्व घाटा बना हुआ है 

2015-16 से सात राज्यों ने लगातार राजस्व घाटा दर्ज किया है। ये राज्य हैं आंध्र प्रदेशहरियाणाकेरलपंजाबराजस्थानतमिलनाडु और पश्चिम बंगाल। अन्य राज्यों के साथ तुलना करने पर पता चलता है कि इन सात राज्यों में औसतन जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में कम राजस्व था (रेखाचित्र 2)। राज्यों का राजस्व उनके स्वयं के राजस्व और केंद्रीय हस्तांतरण का एक संयोजन है। पश्चिम बंगाल को छोड़करइन राज्यों में जीएसडीपी में स्वयं राजस्व (कर और गैर-कर) का अनुपात राष्ट्रीय औसत के करीब था, जोकि जीएसडीपी का 7.3% है। हालांकि हरियाणा, केरल, पंजाब और तमिलनाडु के लिए जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में केंद्रीय हस्तांतरण, राष्ट्रीय औसत से कम था। राज्यों को केंद्रीय हस्तांतरण ज्यादातर उनकी प्रति व्यक्ति आय के स्तर से विपरीत रूप से संबंधित होते हैं। हरियाणाकेरल और तमिलनाडु की प्रति व्यक्ति जीएसडीपी भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी से काफी अधिक है। इस अवधि के दौरान राजस्थान की राजस्व प्राप्तियां जीएसडीपी का 14.5% थींजो अन्य राज्यों के औसत से अधिक थी। हालांकि उसका राजस्व व्यय भी जीएसडीपी का 17.3% था जोकि बाकी राज्यों के मुकाबले काफी अधिक था।

रेखाचित्र 2: 2015-16 और 2021-22 के बीच राज्यों की राजस्व प्राप्तियां और व्यय (जीएसडीपी का %)

स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआईएमओएसपीआई; पीआरएस।

 

क्षतिपूर्ति के बाद की अवधि के लिए जीएसटी स्लैब को रैशनलाइज करने की जरूरत हो सकती है

2021-22 और 2022-23 में राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में सुधार देखा गया। इन दो वित्तीय वर्षों में नॉमिनल जीडीपी में उच्च वृद्धि के कारण ऐसा हुआ थाजो 2020-21 में 1.4% संकुचित हो गई थी। यह बहाली वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के माध्यम से राज्यों द्वारा एकत्र किए गए राजस्व में भी दिखाई दी। जीएसटी को जुलाई 2017 में लागू किया गया था और इसमें केंद्र और राज्य, दोनों स्तरों के कई कर शामिल थे।[5]  राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) राज्यों के स्वयं कर राजस्व का 40% से अधिक हैलेकिन एसजीएसटी और जीएसडीपी अनुपात जीएसटी पूर्व स्तरों से कम बना हुआ है। एसजीएसटी राजस्व केंद्र द्वारा पांच वर्षों के लिए गारंटीकृत स्तर से भी कम है।    

रेखाचित्र 3जीएसटी से पहले और बाद की अवधि में राज्यों का कर और जीएसडीपी अनुपात (% में)
  

नोट: चार्ट में अरुणाचल प्रदेश, गुजरात और हरियाणा को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि जीएसटी से पहले का राजस्व उपलब्ध नहीं है और जम्मू एवं कश्मीर को 2019 में दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था। इसमें 2017-18 को शामिल नहीं किया गया है क्योंकि जीएसटी को वर्ष के कुछ भाग के लिए पेश किया गया था।
स्रोत: कैग, राज्य बजट दस्तावेज़
एमओएसपीआई; पीआरएस।

रेखाचित्र में जीएसटी के लागू होने से पहले और बाद में 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा एकत्र किए गए राजस्व की तुलना की गई है। जीएसटी से पहले की अवधि मेंजीएसटी के तहत शामिल किए गए करों से राज्यों का राजस्व जीएसडीपी का लगभग 3% था। 2018-19 मेंजो जीएसटी के कार्यान्वयन का पहला पूर्ण वर्ष थायह अनुपात 2.7% से कम था। बाद के वर्षों मेंराज्यों का जीएसटी राजस्व 3% के स्तर से कम रहा है। जुलाई 2017 और जून 2022 के बीचराज्यों को 14% की वार्षिक जीएसटी राजस्व वृद्धि की गारंटी दी गई थी। जो राज्य इस गारंटीकृत विकास दर से पीछे रह गएउन्हें जून 2022 के अंत तक क्षतिपूर्ति दी गई। राज्यों का जीएसटी राजस्व गारंटीकृत राजस्व के स्तर से लगातार कम रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि राज्यों की कुल जीएसडीपी 2018-19 और 2022-23 के बीच 9.6% की चक्रवृद्धि दर से बढ़ी हैजो 14% की गारंटीकृत वृद्धि दर से कम है।

अधिकांश राज्यों की क्षतिपूर्ति की जरूरतें 2018-19 की तुलना में 2021-22 में अधिक थीं (विवरण के लिए अनुलग्नक में तालिका देखें)। हालांकि जून 2022 के बाद पुद्दूचेरीपंजाबदिल्लीहिमाचल प्रदेशगोवा और उत्तराखंड जैसे राज्य, जो जीएसटी क्षतिपूर्ति पर अधिक निर्भर थेउन पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका है।[6] उल्लेखनीय है कि पुद्दूचेरीपंजाब और हिमाचल प्रदेश ने 2023-24 में राजस्व घाटे का बजट रखा है। जीएसटी परिषद (2021) ने कहा था कि जुलाई 2022 से राज्यों के संसाधनों में कमी देखने को मिलेगी।[7] उसने कहा था कि जीएसटी के तहत राजस्व संग्रह बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता थी।7 आरबीआई के अनुसारजीएसटी क्षतिपूर्ति के अभाव में राज्यों को अपना राजस्व बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्हें कर अनुपालन बढ़ाना होगा, लीकेज को रोकना होगा और कर आधार का विस्तार करना होगा।6

15वें वित्त आयोग ने कहा था कि कई कर दर कटौतियों के कारण जीएसटी की राजस्व तटस्थता लागू नहीं हुई।[8] 15%-15.5% की अनुमानित राजस्व तटस्थ दर के मुकाबले, 2019 में भारित औसत जीएसटी दर 11.6% थी।[9],[10] राजस्व तटस्थ दर को बहाल करने के लिए 15वें वित्त आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए थे: (i) 12% और 18% कर के स्लैब को एक किया जाए, (ii) मेरिट दरस्टैंडर्ड दर और डीमेरिट दर की तीन-दर संरचना के साथ काम किया जाएऔर (iii) छूट को कम किया जाए।8  जीएसटी परिषद (2021) ने विचार-विमर्श के बाद कहा था कि 5% कर स्लैब वस्तुओं और सेवाओं का एक महत्वपूर्ण आधार है। यह अनुमान लगाया गया है कि 5% कर स्लैब में एक प्रतिशत अंक की वृद्धि से 50,000 करोड़ रुपए (2021-22 जीडीपी का 0.2%) से अधिक का अतिरिक्त जीएसटी राजस्व आ सकता है।7  उसने जीएसटी के तहत छूटों को रैशनलाइज करने और इनवर्टेड शुल्क संरचना (तैयार उत्पादों की तुलना में इनपुट पर अधिक कर दर) को दुरुस्त करने पर भी रजामंदी जताई थी। अपनी 47वीं बैठक में जीएसटी परिषद (2022) ने इनवर्टेंड शुल्क संरचना को दुरुस्त करने और छूट को कम करने के लिए कई कर दरों में बदलाव का सुझाव दिया।[11]  हालांकि जीएसटी दर संरचना में बदलावजैसा कि 15वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था या जिस पर जीएसटी परिषद ने विचार-विमर्श किया गया था, को अब तक अपनाया नहीं गया है।

राज्य सबसिडी का महत्वपूर्ण हिस्सा बिजली क्षेत्र पर खर्च

राज्य बिजली आपूर्तिसार्वजनिक वितरण प्रणालीशिक्षास्वास्थ्य और परिवहन जैसी विभिन्न वस्तुओं पर सबसिडी देते हैं। 2022-23 में राज्यों द्वारा अपनी राजस्व प्राप्तियों का 9% सबसिडी पर खर्च करने का अनुमान है। 2016-17 के बाद सेराज्यों ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का कम से कम 8% सबसिडी पर खर्च किया है (रेखाचित्र देखें)। सबसिडी वाली वस्तुओं को मोटे तौर पर मेरिट और नॉन-मेरिट वाली वस्तुओं में वर्गीकृत किया जा सकता है।[12]  किसी व्यक्ति द्वारा कुछ वस्तुओं और सेवाओं (जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य) के उपभोग से समाज को व्यापक लाभ हो सकते हैं।12 इन मेरिट वाली वस्तुओं की सबसिडी को सामाजिक रूप से वांछनीय माना जा सकता है।12  नॉन-मेरिट वाली वस्तुओं के लिए सबसिडी देने से उतना सामाजिक लाभ प्राप्त नहीं हो सकता। आरबीआई (2022) ने कहा था कि नॉन-मेरिटी सबसिडी पर बढ़ता व्यय पूंजीगत व्यय की गुंजाइश को सीमित कर सकता है।[13]

रेखाचित्र 4कुल मिलाकर राज्यों द्वारा सबसिडी पर होने वाला व्यय 

नोट: 2020-21 तक का डेटा 28 राज्यों (अरुणाचलजम्मू-कश्मीर और नगालैंड अनुपलब्ध है) से संबंधित है। पुद्दूचेरी का डेटा 2021-22 और 2022-23 के लिए उपलब्ध नहीं था जबकि गोवा और सिक्किम का डेटा 2022-23 के लिए उपलब्ध नहीं था।
स्रोतः कैग; राज्य बजट दस्तावेज़
; पीआरएस।

राज्यों की सबसिडी व्यय का एक बड़ा हिस्सा कृषिघरेलू और औद्योगिक उपयोग जैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए मुफ्त या सबसिडी वाली बिजली प्रदान करने में जाता है। उदाहरण के लिएराजस्थान का 97% और पंजाब और बिहार का 80% कुल सबसिडी व्यय 2021-22 में बिजली को सबसिडाइज करने में चला गया। बेशक, बिजली पर सबसिडी देने से बिजली ज्यादा किफायती बन सकती हैलेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का कहना है कि ऐसी सबसिडी का अधिकांश लाभ उच्च आय वाले परिवारों को मिल सकता है।[14]  कृषि में सबसिडी वाली बिजली भी एक महत्वपूर्ण इनपुट है। इससे पहले कई बार यह सुझाव दिया गया है कि कृषि इनपुट सबसिडी देने की बजाय किसानों को सीधे धनराशि हस्तांतरित की जाए।[15],[16] राजस्थानआंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों ने कृषि और गैर-कृषि उपयोग के लिए फीडरों को अलग करके बिजली सबसिडी में लीकेज को कम किया है।[17]

रेखाचित्र 5कुल सबसिडी के प्रतिशत के रूप में बिजली सबसिडी (2021-22)

नोट: इसमें किसानों और उद्योगों के लिए सबसिडी वाली/मुफ्त बिजली जैसी योजनाएं शामिल हैं जिन्हें बिजली सबसिडी के रूप में दर्ज नहीं किया गया था।
स्रोत: संबंधित राज्यों के वित्त खाते 2021-22, कैग
; पीआरएस।

केस स्टडीपंजाब का सबसिडी व्यय

पंजाब में राजस्व प्राप्तियों के हिस्से के रूप में सबसिडी व्यय काफी अधिक रहा है। 2017-18 और 2021-22 के बीच पंजाब ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का 17% सबसिडी पर खर्च किया। अन्य राज्यों ने औसतन 8% खर्च किया। 2021-22 में पंजाब की कुल सबसिडी में बिजली सबसिडी का हिस्सा 80% था। राज्य सरकार ने बार-बार बढ़ते सबसिडी व्यय पर चिंता जताई है।[18],[19]  उल्लेखनीय है कि राज्य में उच्च राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटे के साथ-साथ उच्च बकाया ऋण भी है। पंजाब का अनुमान है कि 2023-24 में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 5% होगाजो केंद्र सरकार द्वारा अनुमत 3% की सीमा से अधिक है। बिजली क्षेत्र में सुधार करने पर जीएसडीपी के 0.5% की अतिरिक्त छूट उपलब्ध है। 15वें वित्त आयोग ने कहा था कि किसानों को मुफ्त बिजली आपूर्ति के कारण 2017 में पंजाब में देश का दूसरा सबसे अधिक भूजल रिसाव हुआ था। आने वाले वक्त में राज्य में सिंचाई के लिए अनुमानित भूजल उपलब्धता नकारात्मक दर्ज की गई।[20]  उसने सुझाव दिया था कि पंजाब को किसानों को मुफ्त बिजली के प्रावधान को रैशनलाइज करना चाहिए।20 इससे जल सतह और मृदा उर्वरकता बहाल रखने में भी मदद मिलेगी।     

रेखाचित्र 6राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में सबसिडी व्यय

 

 नोट: 2018-19 में किसानों को दी जाने वाली ऋण राहत अन्य सबसिडी का सबसे बड़ा हिस्सा है।
स्रोत: संबंधित वर्षों के लिए वित्त खाते, कैग
; पीआरएस।
 

2021-22 में डिस्कॉम का घाटा कम हुआ लेकिन बढ़ते कर्ज राज्य की वित्तीय स्थिति के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं 

अधिकतर बिजली वितरण कंपनियां राज्य स्वामित्व वाली हैं। डिस्कॉम्स की खराब वित्तीय स्थिति कई सालों से समस्या बनी हुई है और उन्हें मजबूत करके ही राज्यों के वित्त पर पड़ने वाले जोखिम को कम किया जा सकता है।[21],[22] 2019-20 और 2021-22 के बीच डिस्कॉम का संचयी वित्तीय घाटा 22% कम हो गया। यह 2019-20 में 35,049 करोड़ रुपए से घटकर 2021-22 में 21,112 करोड़ रुपए हो गया। राज्य सरकार से सबसिडी की वास्तविक प्राप्ति के अनुसार यह नुकसान का संकेत है। 

बिजली की बिक्री से राजस्व में सुधारप्राप्त सबसिडी की राशि और राजस्व अनुदान और अन्य आय (जैसे विलंबित भुगतान शुल्क और गैर-परिचालन आय) में वृद्धि के कारण वित्तीय घाटा आंशिक रूप से कम हो गया।

रेखाचित्र 7डिस्कॉम का वित्तीय घाटा (करोड़ रुपए में)
  

नोट: रेखाचित्र में जम्मू और कश्मीर (2021-22 के लिए डेटा अनुपलब्ध) और ओड़िशा (जिसके डिस्कॉम का 2020-21 में निजीकरण किया गया था) को शामिल नहीं किया गया है। घाटे/मुनाफे में नियामक आय और उदय अनुदान शामिल हैं।
स्रोत: विद्युत वित्त निगम; पीआरएस। 

राज्य डिस्कॉम्स ने 2021-22 में अपने अन्य वित्तीय मापदंडों में भी सुधार दर्ज किया। राज्य के स्वामित्व वाली डिस्कॉम द्वारा भुगतान जमा करने की क्षमता 2019-20 में 92% से बढ़कर 2021-22 में 97% हो गईजबकि इसी अवधि में कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (एटीएंडसी) घाटा 21% से कम होकर 17% हो गया।[23] एटीएंडसी घाटे में ट्रांसमिशन के दौरान बिजली की हानि और गलत मीटरिंग और बिजली चोरी के कारण वाणिज्यिक नुकसान शामिल होते हैं। 2019-20 की तुलना में 2021-22 में 15 राज्यों के लिए आपूर्ति की प्रति यूनिट लागत और प्राप्त प्रति यूनिट राजस्व (एसीएस-एआरआर अंतर) के बीच का अंतर कम हो गया। कई नीतियों के कारण राज्य के स्वामित्व वाली डिस्कॉम के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। संशोधित वितरण क्षेत्र योजना (आरडीएसएस) का लक्ष्य अखिल भारतीय एटीएंडसी घाटे को 12% -15% तक कम करना और 2024-25 तक एसीएस-एआरआर अंतर को खत्म करना है।[24]  केंद्र सरकार उन राज्यों को अतिरिक्त उधार लेने की छूट भी देती है जो एटीएंडसी घाटे और एसीएस-एआरआर अंतर को कम करने सहित बिजली क्षेत्र में सुधार कर रहे हैं।[25]   

राज्य डिस्कॉम्स के वित्तीय प्रदर्शन में कुछ सुधार 2021-22 में राज्यों को अधिक सबसिडी भुगतान के कारण हो सकता है। डिस्कॉम्स को जो सबसिडी मिलती है, उस राशि को एटीएंडसी घाटे और एसीएस-एआरआर अंतर जैसे मापदंडों की गणना में शामिल किया जाता है। 2017-18 और 2020-21 के बीच राज्य डिस्कॉम्स को कुल मिलाकर सबसिडी बिल का केवल 90% प्राप्त हुआ। 2021-22 में डिस्कॉम्स को राज्य सरकारों से 1.54 लाख करोड़ रुपए की सबसिडी मिलीजो उस वर्ष के लिए मांगी गई सबसिडी से 10% अधिक थी। आरडीएसएस के तहत वित्तीय सहायता हासिल करने की शर्तों के कारण 2021-22 में राज्यों को अधिक सबसिडी का भुगतान हुआ होगा। इस योजना के तहत प्रीपेड स्मार्ट मीटर लगाने और वितरण इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करने के लिए मदद मिलेगी।[26]  योजना के तहत धन प्राप्त करने के लिए डिस्कॉम्स की एक पात्रता यह है कि वे समय पर सबसिडी का भुगतान करें।26

रेखाचित्र 8: 31 मार्च, 2022 तक राज्य के स्वामित्व वाले डिस्कॉम का बकाया ऋण (जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में)

नोट: 2021-22 के लिए जम्मू और कश्मीर का डेटा उपलब्ध नहीं है। ओड़िशा के डिस्कॉम का 2020-21 में निजीकरण कर दिया गया था और इसलिए इसे यहां नहीं दिखाया गया है।
स्रोत: विद्युत वित्त निगम; पीआरएस।

जबकि वित्तीय मापदंडों में सुधार हुआ हैडिस्कॉम्स का उच्च ऋण और राज्यों द्वारा दी गई गारंटी उनकी वित्तीय स्थिति के लिए जोखिम पैदा कर रही हैक्योंकि यह राज्य के लिए एक आकस्मिक देनदारी है। मार्च 2022 तक डिस्कॉम्स पर करीब छह लाख करोड़ रुपए का कर्ज बकाया हैयानी जीडीपी का 2.5%। तमिलनाडु (जीएसडीपी का 7.4%), राजस्थान (5.4%), झारखंड (4.7%) और मेघालय (4.7%) जैसे राज्यों में डिस्कॉम्स का कर्ज काफी अधिक है। राज्य डिस्कॉम्स द्वारा लिए गए ऋण के लिए गारंटी भी प्रदान करते हैं। 2021-22 तक 22 राज्यों ने बिजली क्षेत्र में चार लाख करोड़ रुपए के ऋण की गारंटी दी हैजो जीडीपी का लगभग 1.7% है।

राज्यों को पूंजी परिव्यय के लिए अधिक केंद्रीय सहायता मिलती हैहालांकि खर्च समान स्तर पर है

राज्य सरकारें परिवहनबिजलीसिंचाई और कृषि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी परिव्यय करती हैं। 2011-12 और 2022-23 के बीच राज्यों द्वारा पूंजी परिव्यय जीडीपी के 2% से 2.6% के बीच रहा है (रेखाचित्र देखें)। आर्थिक मंदी और कोविड-19 महामारी के कारण 2019-20 और 2020-21 में राज्यों द्वारा पूंजी परिव्यय में कमी आई। तब से यह 2022-23 में जीडीपी के 2.2% तक पहुंच गया है। केंद्र सरकार 2020-21 से राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए 50-वर्षीय ब्याज मुक्त ऋण प्रदान कर रही है (विवरण के लिए अनुलग्नक में तालिका देखें)।[27]  2022-23 में केंद्र ने राज्यों को पूंजीगत व्यय के लिए ऋण के रूप में 81,195 करोड़ रुपए जारी किए।27  इन ऋणों का उद्देश्य राज्यों को अपना पूंजी निवेश बढ़ाने में मदद करना था।[28]  हालांकि इन ऋणों के बावजूद राज्यों द्वारा कुल पूंजी परिव्यय उस सीमा के भीतर होने का अनुमान है जो 2011-12 के बाद से देखा गया है।

रेखाचित्र 9राज्यों का पूंजी परिव्यय (जीडीपी के % के रूप में)

नोट: उदय योजना के कारण 2015-16 और 2016-17 में पूंजीगत परिव्यय अधिक था। 2022-23 के लिए दिल्लीगोवा और पुद्दुचेरी के आंकड़े संशोधित अनुमान के अनुसार हैं; अन्य राज्यों के आंकड़े कैग के अनुसार हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई
कैगएमओएसपीआई; पीआरएस।

पूंजीगत परिव्यय में सड़कोंपुलों और सिंचाई नहरों जैसी परिसंपत्तियों के निर्माण पर होने वाला व्यय शामिल है। इस तरह के निवेश से अर्थव्यवस्था की उत्पादक क्षमता बढ़ती हैऔर दक्षता को बढ़ावा मिलता है।6 आरबीआई ने कहा था कि पूंजीगत व्यय का मध्यावधि के मुकाबले दीर्घावधि के विकास पर अधिक प्रभाव पड़ता है।6 आरबीआई ने प्रयोगसिद्ध साक्ष्य का भी हवाला दिया जो संकेत देते हैं कि केंद्र के पूंजी परिव्यय की तुलना में राज्यों के पूंजी परिव्यय का अधिक गुणक प्रभाव (मल्टीप्लायर इफेक्ट) पड़ता है।6

चूंकि राज्यों की पूंजी प्राप्तियां नगण्य हैंइसलिए पूंजी परिव्यय को उधार से वित्त पोषित करना पड़ता है। यह देखते हुए कि एफआरबीएम कानून उधार को सीमित करता हैपूंजी परिव्यय की गुंजाइश राजस्व संतुलन पर निर्भर करती है। 2021-22 में आंध्र प्रदेश और केरल जैसे राज्योंजिनमें लगातार राजस्व घाटा रहा हैने अपनी जीएसडीपी का लगभग 1.5% पूंजी परिव्यय पर खर्च किया। असमबिहारमध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश ने 2021-22 में पूंजीगत परिव्यय पर अपनी जीएसडीपी का 3.5% से अधिक खर्च किया। उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों ने अपनी जीएसडीपी का बड़ा हिस्सा पूंजी परिव्यय पर खर्च किया। ऐसा उनके राजस्व में केंद्रीय हस्तांतरण की अपेक्षाकृत अधिक हिस्सेदारी के कारण हो सकता है

2021-22 की तुलना में 2022-23 में कम से कम 13 राज्यों की जीएसडीपी में पूंजी परिव्यय के अनुपात में कमी आने का अनुमान है। यह तब है, जब राज्यों को 2022-23 में पूंजी परिव्यय के लिए ब्याज मुक्त ऋण मिल रहा हैजो उनकी राजकोषीय घाटे की सीमा में नहीं गिना जाता। इसका एक कारण यह है कि महामारी के दौरान राज्यों को दी गई अतिरिक्त उधारी की गुंजाइश धीरे-धीरे ख़त्म की जा रही है और कुछ राज्य राजस्व घाटे को कम करने में सक्षम नहीं हो पाए हैं। परिणामस्वरूप राजकोषीय घाटे के माध्यम से वित्त पोषित पूंजी परिव्यय कम हो गया है।

रेखाचित्र 10: 2021-22 में राज्यों का पूंजी परिव्यय (जीएसडीपी का %)

नोट: अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मणिपुर के लिए बार्स पैमाने पर नहीं हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; एमओएसपीआई
राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग; पीआरएस।
 

उधारी सीमा में शामिल करने पर राज्यों की बजटेतर उधारी कम होने का अनुमान है

बजटेतर उधार के मायने, ऐसे उधार होते हैं जो सीधे सरकार द्वारा नहीं लिए जाते हैं, लेकिन उसमें मूलधन और ब्याज सरकारी बजट से चुकाए जाते हैं। इस तरह की उधारी आम तौर पर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों जैसी सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं द्वारा ली जाती है। चूंकि उधार स्वयं सरकारी बजट दस्तावेजों का हिस्सा नहीं होते हैंइसलिए वे विधायी निगरानी से बाहर रहते हैं। 15वें वित्त आयोग ने कहा था कि बड़ी मात्रा में बजटेतर व्यय ऋण और घाटे की गणना में शामिल नहीं है।[29]  जब राज्य ऐसी उधारी का सहारा लेते हैंतो वे शुद्ध उधार सीमा को दरकिनार कर देते हैं क्योंकि ये ऋण राज्य के बजट से बाहर होते हैं।[30]  

मार्च 2022 में केंद्र सरकार ने फैसला किया कि शुद्ध उधार की सीमा तय करते समय राज्य सरकारों की बजटेतर उधारी को उसमें शामिल किया जाए।30 संविधान के अनुच्छेद 293(3) के तहतराज्यों को उधार लेने के लिए केंद्र सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती है, अगर उनके पास केंद्र से कोई बकाया ऋण है।[31] 2021-22 में राज्यों की बजटेतर उधारी को 2022-23 से 2025-26 के बीच उनकी शुद्ध उधार सीमा के साथ समायोजित किया जाएगा।[32]   इसके मद्देनजर राज्यों की बजटेतर उधारी में 2022-23 में तेजी से कमी आने का अनुमान है। 2021-22 में 15 राज्यों ने बजटेतर उधार के माध्यम से 66,640 करोड़ रुपए जुटाए।[33]  2022-23 में 14 राज्यों द्वारा जुटाए गए बजटेतर उधार के घटकर 18,499 करोड़ रुपए होने का अनुमान है।

रेखाचित्र 11वित्तीय वर्ष में ली गई उधारियों के प्रतिशत के रूप में बजटेतर उधारियां

नोट: 2022-23 के आंकड़े अनुमान हैं।
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 528, वित्त मंत्रालय
राज्यसभाराज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस।
 

15वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया था कि राज्यों को बजटेतर उधारी का सहारा नहीं लेना चाहिए। उसने कहा था कि ऐसी परंपरा राजकोषीय पारदर्शिता के मानदंडों के खिलाफ हैं और राजकोषीय स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। यह भी कहा गया था कि ऐसे दायित्वों को कर और गैर-कर राजस्व के नियमित प्रवाह से नहीं चुकाया जाना चाहिए।29 इसके बजाय अतिरिक्त संसाधन जुटाए जाने चाहिएजिसमें परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण शामिल है।   

केस स्टडीऋण और घाटे पर बजटेतर उधार का प्रभाव

बजटेतर उधार से राजकोषीय घाटे का स्तर कम हो जाता है। अधिकांश बजटेतर उधार कुछ राज्यों द्वारा ही लिए गए हैं (रेखाचित्र 11 देखें)। 2021-22 में राज्यों के बजटेतर उधार में से आधे से अधिक हिस्सा तेलंगाना का थाउसके बाद केरल (21%) और आंध्र प्रदेश (9%) का स्थान आता है।33 अगर इन उधारों को राज्य के उधार में शामिल किया जातातो 2021-22 में उनका राजकोषीय घाटा, दर्ज आंकड़ों (रेखाचित्र 12) से अधिक होता। 2021-22 में केंद्र सरकार ने जीएसडीपी के 4.5% की राजकोषीय घाटे की सीमा तय की थी (जिसमें से 0.5% कुछ बिजली क्षेत्र के सुधारों को शुरू करने पर उपलब्ध था)।

इसी तरह बजटेतर उधार के हिसाब से राज्यों का बकाया कर्ज भी अधिक होगा। उदाहरण के लिए 2020-21 में तेलंगाना की बकाया देनदारियां उसके जीएसडीपी का 28% थीं। अगर 97,940 करोड़ रुपए की बजटेतर उधारी को शामिल किया जाता तो यह जीएसडीपी का 38% होता।[34]       एफआरबीएम समीक्षा समिति (2017) ने सुझाव दिया था कि राज्यों को अपने बकाया ऋण को जीडीपी के 20% पर सीमित करना चाहिए।[35]       

रेखाचित्र 12: 2021-22 में महत्वपूर्ण बजटेतर उधार वाले राज्यों का राजकोषीय घाटा (जीएसडीपी के % के रूप में)

स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 528, वित्त मंत्रालयराज्यसभाराज्य बजट दस्तावेज़एमओएसपीआई; पीआरएस।

राज्य वित्त की प्रवृतियां

इस खंड में 2023-24 के बजट अनुमानों के आधार पर राज्यों के वित्त की प्रवृत्तियों पर चर्चा की गई है।

अधिकांश राज्यों के लिए राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत स्वयं कर राजस्वकेंद्रीय अनुदान में गिरावट का अनुमान 

राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में निम्नलिखित शामिल होते हैं: (i) स्वयं का राजस्वऔर (ii) केंद्र सरकार से हस्तांतरण। स्वयं के राजस्व में राज्य सरकारों द्वारा कर और गैर-कर स्रोतों से अर्जित राजस्व शामिल है। केंद्रीय हस्तांतरण में वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित केंद्रीय करों का हस्तांतरण और सहायता अनुदान शामिल है। केंद्र द्वारा दिए गए सहायता अनुदान में वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित अनुदानकेंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए अनुदान और जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान जैसे अन्य अनुदान शामिल हैं। 2023-24 में कुल मिलाकर राज्यों को अपनी राजस्व प्राप्तियों का 57% स्वयं कर और गैर-कर स्रोतों से जुटाने का अनुमान हैजबकि 43% केंद्रीय करों के हस्तांतरण और केंद्र के अनुदान से प्राप्त होने का अनुमान है।

रेखाचित्र 13: राजस्व प्राप्तियों की संरचना (2023-24रेखाचित्र % में हैं)


नोट: दिल्ली, जम्मू एवं कश्मीर और पुद्दूचेरी केंद्रीय करों के हस्तांतरण को प्राप्त करने के पात्र नहीं हैं क्योंकि वे केंद्र शासित प्रदेश हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस। 

अधिकांश राज्यों के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत स्वयं कर राजस्व होने का अनुमान है। अनुमान है कि दिल्लीगुजरातहरियाणाकर्नाटककेरलमहाराष्ट्रपंजाबतमिलनाडु और तेलंगाना अपनी राजस्व प्राप्तियों का 50% से अधिक स्वयं कर राजस्व के माध्यम से जुटाएंगे। 2023-24 में गैर-कर स्रोतों से राजस्व राज्यों की राजस्व प्राप्तियों का केवल 8% होने का अनुमान है। हालांकि कुछ खनिज समृद्ध राज्यों जैसे छत्तीसगढ़झारखंड और ओड़िशा के लिए गैर-कर राजस्व काफी अधिक होने का अनुमान है जिसका कारण खनन रॉयल्टी से होने वाली प्राप्तियां हैं। गोवा और पुद्दूचेरी में गैर-कर राजस्व में बिजली वितरण से प्राप्त राजस्व शामिल है क्योंकि यह एक विभागीय कार्य है। यह दूसरे राज्यों से अलग है, जहां डिस्कॉम यह काम करते हैं। 

कुछ राज्य अपनी राजस्व प्राप्तियों के लिए केंद्रीय हस्तांतरणों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। अनुमान है कि बिहारजम्मू और कश्मीर और उत्तर-पूर्वी राज्य अपने राजस्व का 60% से अधिक केंद्र के हस्तांतरण और अनुदान से जुटाएंगे। केंद्रीय हस्तांतरण में हस्तांतरण का हिस्सा अरुणाचल प्रदेशबिहारमिजोरम और सिक्किम के लिए अधिक हैजबकि अनुदान का हिस्सा असमजम्मू एवं कश्मीरमणिपुरनगालैंड और त्रिपुरा के लिए अधिक है।

केंद्रीय करों से किया जाने वाला हस्तांतरण अनटाइड होता है और राज्य इसे अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार खर्च कर सकते हैं। लेकिन अनुदान टाइड और अनटाइड, दोनों हो सकते हैं। टाइड अनुदान का मतलब है, कि उन्हें किसी खास योजना पर ही खर्च किया जा सकता है, जैसे केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए दिया जाने वाला अनुदान। इसके अलावा अनुदान अनटाइड हो सकते हैं, जैसे राजस्व घाटा अनुदान। केंद्र यह निर्धारित करने के लिए शर्तें रख सकता है कि कौन से राज्य टाइड अनुदान प्राप्त करने के पात्र हैं और इस तरह के अनुदान को किस तरीके से खर्च किया जा सकता है। 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना में 2023-24 में केंद्र से अनुदान कुल मिलाकर 8% कम होने का अनुमान है। यह जून 2022 के बाद जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान को बंद करने और कुछ राज्यों के लिए राजस्व घाटा अनुदान में कमी (15वें वित्त आयोग के सुझावों के अनुरूप) के कारण है।

केंद्रीय करों के हस्तांतरण की रफ्तार

केंद्र सरकार वित्त आयोग के सुझावों के आधार पर राज्यों को कर हस्तांतरित करती है। यह हस्तांतरण मासिक किस्तों के माध्यम से किया जाता है। पिछले दो वर्षों में कुल धनराशि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा वित्तीय वर्ष के उत्तरार्ध में हस्तांतरित किया गया था। 2021-22 में केंद्र ने चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) के दौरान 50% धनराशि हस्तांतरित की। 2022-23 में यह आंकड़ा 36% था। 2023-24 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में केंद्र ने राज्यों को आवंटित कुल धनराशि का 23% हस्तांतरित कर दिया है। यह 2021-22 और 2022-23 की तुलना में काफी अधिक है। केंद्रीय करों का अग्रिम हस्तांतरण करने से राज्य वित्तीय वर्ष के अंत में अधिक से अधिक खर्च करने से बच सकते हैं। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी सामान्य वित्तीय नियम2017 के अनुसारवित्तीय वर्ष के अंतिम महीनों में अधिक खर्च करने को ब्रीच ऑफ प्रॉपरायटी माना जाता है, यानी सामाजिक रूप से उचित आचरण के विरुद्ध काम करना।[36] किसी वित्तीय वर्ष में राज्यों द्वारा असमान तरीके से खर्च करने का एक कारण, प्राप्तियों का पैटर्न भी हो सकता है। केंद्रीय करों के फ्रंटलोडिंग हस्तांतरण से राज्यों को वर्ष के दौरान बेहतर तरीके से व्यय की योजना बनाने में मदद मिल सकती है। 

रेखाचित्र 14: केंद्रीय करों का त्रैमासिक हस्तांतरण (प्रतिशत में)
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स्रोत: लेखा महानियंत्रक; केंद्रीय बजट दस्तावेज़; पीआरएस।

राज्य का स्वयं कर राजस्व 2023-24 में जीएसडीपी का लगभग 7% होने का अनुमान है

2023-24 में राज्यों ने कुल मिलाकर जीएसडीपी अनुपात पर स्वयं कर 7% होने का अनुमान लगाया है। यह अनुपात किसी राज्य की आर्थिक गतिविधि से राजस्व जुटाने की क्षमता को दर्शाता है। जीएसडीपी अनुपात में स्वयं कर की उच्च दर बताती है कि राज्य में आर्थिक गतिविधियों से कर प्राप्त करने की क्षमता अच्छी है। अधिकतर राज्यों ने बजट में स्वयं-कर और जीएसडीपी अनुपात को 6%-8% के बीच रखा है। कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे मिजोरमनगालैंड और सिक्किम के लिएस्वयं कर और जीएसडीपी अनुपात 3%-4.2% के बीच है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश ने अपने स्वयं कर-जीएसडीपी अनुपात का बजट 10.2% रखा हैजो 2021-22 के वास्तविक आंकड़ों (7.9%) से काफी अधिक है।

रेखाचित्र 15: जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वयं कर (2023-24 बअ)  
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नोट: दिल्लीपुद्दूचेरी और त्रिपुरा को चार्ट में नहीं दिखाया गया है क्योंकि इन राज्यों के लिए 2023-24 जीएसडीपी अनुमान उपलब्ध नहीं हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस।

एसजीएसटी स्वयं कर राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है

2023-24 में राज्यों के स्वयं कर राजस्व के महत्वपूर्ण स्रोतों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) एसजीएसटी (स्वयं कर राजस्व का 43%), (ii) बिक्री कर/वैट (22%), (iii) उत्पाद शुल्क (13%), (iv) स्टांप शुल्क (12%), (v) वाहनों पर कर (5%), और (vi) बिजली पर कर और शुल्क (3%)। जीएसटी लागू होने के बाद से राज्यों का अपने राजस्व के सबसे महत्वपूर्ण स्रोत पर सीमित नियंत्रण है। जीएसटी के तहत कर दरों पर निर्णय जीएसटी परिषद के सुझावों के अनुसार लिया जाता हैजिसमें सभी राज्य और केंद्र शामिल हैं। बिक्री कर/वैट और उत्पाद शुल्क स्वयं कर राजस्व के अन्य दो सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं। बिक्री कर/वैट मुख्य रूप से पेट्रोलियम उत्पादों पर लगाया जाता है जबकि उत्पाद शुल्क मुख्य रूप से शराब पर लगाया जाता है। इन दोनों वस्तुओं को अभी तक जीएसटी के दायरे में नहीं लाया गया है। बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में उत्पाद शुल्क से लगभग शून्य राजस्व प्राप्त होता है क्योंकि इन राज्यों में शराबबंदी लागू है।

रेखाचित्र 16: 2023-24 में स्वयं कर राजस्व की संरचना (जीएसडीपी के % के रूप में) 

नोट: दिल्ली, पुद्दूचेरी और त्रिपुरा को चार्ट में नहीं दिखाया गया है क्योंकि इन राज्यों के लिए 2023-24 के जीएसडीपी अनुमान उपलब्ध नहीं हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस।

राजस्व बढ़ाने के उपाय

2023-24 में कई राज्यों ने राजस्व जुटाने के उपायों की घोषणा की। इनमें से कई शराब की बिक्री पर कर और शुल्क बढ़ाने से संबंधित हैं। उदाहरण के लिए कर्नाटक ने भारत में निर्मित शराब पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क में 20% की वृद्धि की घोषणा की।[37] इसमें बीयर पर उत्पाद शुल्क 175% से बढ़ाकर 185% करने का भी प्रस्ताव है। इसी तरह गोवा ने उच्च श्रेणी की विदेशी शराब पर उत्पाद शुल्क कम करते हुएभारत में निर्मित विदेशी शराब की अन्य श्रेणियों पर शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव रखा।[38] हिमाचल प्रदेश ने घोषणा की कि वह बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी पर जल उपकर लगाएगा।[39]     2023-24 में केरल ने फ्लैट और अपार्टमेंट के हस्तांतरण के लिए स्टांप शुल्क 5% से बढ़ाकर 7% करने का प्रस्ताव रखा।[40] 15वें वित्त आयोग ने कहा था कि राज्य और स्थानीय निकाय स्टांप शुल्क और पंजीकरण शुल्क और संपत्ति कर के जरिए अतिरिक्त राजस्व जुटा सकते हैं।8 मिजोरम ने राजस्व संसाधनों को बढ़ाने के उपाय सुझाने के लिए 2022 में एक रिसोर्स मोबिलाइजिंग कमिटी का गठन किया था।[41]     हिमाचल प्रदेश ने जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान बंद होने के बाद जीएसटी राजस्व वृद्धि परियोजना शुरू करने की घोषणा की है।39

स्वयं गैर-कर राजस्व जीएसडीपी का लगभग 1.2% होने का अनुमान है

2023-24 में कुल मिलाकर राज्यों ने अनुमान लगाया है कि उनका स्वयं गैर-कर राजस्व उनकी जीएसडीपी का लगभग 1.2% होगा। कुछ राज्यों ने स्वयं गैर-कर स्रोतों से अधिक राजस्व जुटाने की योजना बनाई है। छत्तीसगढ़झारखंड और ओड़िशा में गैर-कर राजस्व जीएसडीपी के 3% -6% के बीच रहने का अनुमान है। खनिजों से समृद्ध होने के कारण उनके गैर-कर राजस्व का 75% से अधिक हिस्सा अलौह खनन पर रॉयल्टी से अर्जित होने की उम्मीद है। ओड़िशा का गैर-कर राजस्व उसके अपने कर राजस्व के लगभग बराबर होने का अनुमान है। गोवा जैसे राज्यों मेंचूंकि बिजली वितरण एक विभागीय गतिविधि हैउपभोक्ताओं से एकत्र बिजली शुल्क समग्र सरकारी राजस्व का हिस्सा है। अन्य राज्यों में बिजली वितरण अलग-अलग डिस्कॉम्स द्वारा किया जाता है।

रेखाचित्र 17: स्वयं गैर-कर राजस्व जीएसडीपी के % के रूप में (2023-24बजट अनुमान के अनुसार)
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नोट: दिल्ली, पुद्दूचेरी और त्रिपुरा को चार्ट में नहीं दिखाया गया है क्योंकि इन राज्यों के लिए 2023-24 जीएसडीपी अनुमान उपलब्ध नहीं हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस।

कई राज्य शहरी स्थानीय निकाय अनुदान प्राप्त करने में पीछे हैं

15वें वित्त आयोग ने राज्यों को ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के लिए 3.58 लाख करोड़ रुपए का अनुदान देने का सुझाव दिया है।[42]  उसने 2021-22 और 2025-26 के बीच यूएलबी के लिए 1.21 लाख करोड़ रुपए के अनुदान का सुझाव दिया है। हालांकि कई राज्य 2021-22 और 2022-23 में अनुशंसित यूएलबी अनुदान की पूरी राशि का लाभ नहीं उठा पाए हैं। कुल मिलाकर राज्य 2021-22 और 2022-23 में क्रमशः यूएलबी अनुदान का केवल 73% और 66% ही प्राप्त कर सके। कुछ उत्तर-पूर्वी राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेशमेघालयमणिपुर और नगालैंड को 2021-22 में कोई यूएलबी अनुदान नहीं मिला। इसकी तुलना में राज्य 2021-22 में अनुशंसित ग्रामीण स्थानीय निकाय (आरएलबी) अनुदान का 90% और 2022-23 में आरएलबी अनुदान का 98% लाभ उठाने में सक्षम थे। राज्यों को कम यूएलबी अनुदान जारी करने का एक कारण ऐसे अनुदानों से जुड़ी शर्तों को पूरा करने में असमर्थता हो सकता है।

10वें वित्त आयोग के बाद से स्थानीय निकाय अनुदान के तहत राज्यों को वितरित राशि अनुशंसित राशि से कम रही है।42 15वें वित्त आयोग के अनुसार, इसकी वजह यह रही कि स्थानीय सरकारें अनुदान से जुड़ी शर्तों को पूरा नहीं पाईं।42 पर कई बार केंद्र सरकार द्वारा कुछ अतिरिक्त शर्तें भी निर्धारित की गईं।4215वें वित्त आयोग के सुझावों के अनुसार, जबकि आरएलबी अनुदान का 60% हिस्सा कुछ शर्तों को पूरा करने पर राज्यों को जारी किया जाना थायूएलबी के लिए ऐसे टाइड अनुदान का हिस्सा 73% से अधिक था। यूएलबी अनुदान प्राप्त करने के लिए जिन शर्तों को पूरा करना होता है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) यूएलबी के वार्षिक खातों की ऑनलाइन उपलब्धता, (ii) संपत्ति कर की न्यूनतम दर को अधिसूचित करना, (iii) संपत्ति कर संग्रह में वृद्धि हाल के पांच वर्षों में जीएसडीपी की साधारण औसत वृद्धि दर के कम से कम बराबर है, (iv) वायु गुणवत्ता में सुधारऔर (v) पेयजल आपूर्तिस्वच्छता और ठोस कचरा प्रबंधन के लिए कुछ प्रदर्शन मानकों को पूरा करना।42  

15वें वित्त आयोग ने कहा कि कई राज्यों ने समय पर राज्य वित्त आयोग (एसएफसी) का गठन नहीं किया है।42  एसएफसी राज्यों और उनके स्थानीय निकायों के बीच संसाधनों के वितरण का सुझाव देते हैं। 2024-25 और 2025-26 में स्थानीय निकाय अनुदान की पात्रता के लिए राज्यों को एसएफसी स्थापित करना होगाउनके सुझावों के आधार पर कार्य करना होगा और मार्च 2024 तक राज्य विधानमंडल के सामने उन सुझावों पर की गई कार्रवाई का व्याख्यात्मक ज्ञापन पेश करना होगा।42

रेखाचित्र 18: 2021-22 और 2022-23 में राज्यों को जारी अनुशंसित यूएलबी अनुदान का हिस्सा       image 

नोट: 2022-23 के लिए धनराशि जारी करने का समय 31 मार्च, 2023 को दोपहर 2 बजे आईएसटी तक है।
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 5155, वित्त मंत्रालय
लोकसभा; पीआरएस।

कुल व्यय में राजस्व व्यय का बड़ा भाग होगा

किसी सरकार के व्यय को निम्नलिखित में वर्गीकृत किया जा सकता है: (i) राजस्व व्ययऔर (ii) पूंजीगत व्यय। राजस्व व्यय आवर्ती प्रकृति का होता है और इसमें वेतनपेंशनब्याज भुगतान और सबसिडी पर व्यय शामिल होता है। पूंजीगत व्यय परिसंपत्ति सृजन या देनदारियों को कम करने किया जाता है। पूंजीगत व्यय में पूंजीगत परिव्यय शामिल होता है जिससे स्कूलोंअस्पतालों और सड़कों और पुलों जैसी परिसंपत्तियों का निर्माण होता है। इसमें ऋणों का पुनर्भुगतान (जो राज्य की देनदारियों को कम करता है)और सरकार द्वारा दिए गए ऋण और अग्रिम भी शामिल हैं। 2023-24 में राज्यों का राजस्व व्यय उनके कुल व्यय का 83% होने का अनुमान हैजबकि पूंजीगत परिव्यय 17% होने का अनुमान है (विश्लेषण के लिए व्यय से ऋण घटकों को बाहर रखा गया है)। 2020-21 से केंद्र सरकार राज्यों को पूंजी परिव्यय के लिए ब्याज मुक्त ऋण प्रदान कर रही है। 2023-24 में केंद्र ने राज्यों को पूंजीगत परिव्यय के लिए 1.3 लाख करोड़ रुपए प्रदान करने का बजट रखा हैजो 2022-23 में 81,195 करोड़ रुपए से अधिक है।

रेखाचित्र 19: 2023-24 में व्यय की संरचना (बजट अनुमान के अनुसार) 
 
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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस। 

राजस्व प्राप्तियों का 53% तीन मदों-ब्याजपेंशन और वेतन पर खर्च किया जाएगा

किसी राज्य के प्रतिबद्ध व्यय में आम तौर पर वेतनपेंशन और ब्याज भुगतान पर व्यय शामिल होता है। इन मदों पर व्यय को आमतौर पर अल्प से मध्यम अवधि में रैशनलाइज नहीं किया जा सकता है। अगर राज्य बजट का एक बड़ा हिस्सा प्रतिबद्ध व्यय पर खर्च होगा तो विकास संबंधी अन्य गतिविधियों के लिए खर्च की गुंजाइश कम होगी। 2023-24 में राज्यों ने कुल मिलाकर अपनी राजस्व प्राप्तियों का 53% प्रतिबद्ध व्यय मदों पर खर्च करने का बजट रखा है। इसमें राजस्व प्राप्तियों का 28% वेतन और मजदूरी पर, 13% पेंशन पर और 12% ब्याज भुगतान पर खर्च किया जाना है। अनुमान है कि हिमाचल प्रदेशकेरलनगालैंड और पंजाब अपनी राजस्व प्राप्तियों का कम से कम 70% प्रतिबद्ध व्यय पर खर्च करेंगे। दूसरी ओर बिहारझारखंड और ओड़िशा का व्यय सभी राज्यों के औसत से कम होने का अनुमान हैजिसका मुख्य कारण वेतन और मजदूरी पर कम व्यय है।

रेखाचित्र 20: 2023-24 में राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में प्रतिबद्ध व्यय
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नोट: चार्ट में शामिल नहीं किए गए राज्यों ने 2023-24 के लिए वेतन अनुमान प्रदान नहीं किए हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस।

पेंशन सुधारों को उलटना

केंद्र और राज्य सरकारें सेवाएं प्रदान करने के लिए बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं। सरकारें सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन लाभ प्रदान करती हैं। राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के कार्यान्वयन के साथ भारत में सरकारी पेंशन की संरचना बदल गई। यह योजना जनवरी 2004 से शामिल होने वाले सभी केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों (सशस्त्र बलों को छोड़कर) के लिए अनिवार्य कर दी गई थी। सभी राज्य सरकारें (पश्चिम बंगाल को छोड़कर) अलग-अलग समय पर नई संरचना में शामिल हुईं। एनपीएस ने पेंशन के सिद्धांत को एक परिभाषित लाभ योजना से एक परिभाषित अंशदान योजना में बदल दिया। एक परिभाषित लाभ योजना के तहतएक कर्मचारी एक परिभाषित लाभ फार्मूले के आधार पर पेंशन का हकदार होता हैजिसकी गणना वेतन के प्रतिशत के रूप में की जा सकती है। इसका भुगतान वर्ष के बजट से किया जाता है। एक परिभाषित अंशदान योजना में कर्मचारी और नियोक्ता उसकी सेवा की अवधि के दौरान योगदान करते हैं और सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ सेवानिवृत्ति के समय उसके खाते में शेष राशि पर निर्भर करते हैं। इस प्रकारपेंशन को उस कोष से वित्त पोषित किया जाता है जो रोजगार की अवधि के दौरान बनाया गया है।

छत्तीसगढ़हिमाचल प्रदेशझारखंडपंजाब और राजस्थान ने एनपीएस से हटने और परिभाषित-लाभ आधारित पुरानी पेंशन योजना को फिर से लागू करने का फैसला किया है।[43],[44],[45],[46],[47] सितंबर 2023 में आंध्र प्रदेश ने राज्य में गारंटीकृत पेंशन प्रणाली लागू करने के लिए एक बिल पारित किया।[48]  यह कर्मचारी द्वारा प्राप्त अंतिम मूल वेतन क 50% मासिक पेंशन की गारंटी देता है। अगर एनपीएस के तहत प्राप्त पेंशन गारंटीकृत राशि से कम हैतो राज्य सरकार उस कमी को पूरा करेगी।48 

यह देखते हुए कि राज्य सरकारों के वर्तमान सेवानिवृत्त कर्मचारी मुख्य रूप से पुरानी पेंशन योजना के लाभार्थी हैंअगर राज्य पुरानी पेंशन योजना को लागू करना चुनते हैं तो तत्काल वित्तीय तनाव महसूस नहीं होगा।[49] हालांकिजब एनपीएस के कार्यान्वयन के बाद शामिल हुए कर्मचारी 2034 से सेवानिवृत्त होने लगेंगेतो पुरानी पेंशन योजना में वापस आने की लागत अधिक दिखाई देगी।49 एनपीएस के तहत राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र ने राज्य सरकार और उसके कर्मचारियों द्वारा एनपीएस में भुगतान किए गए पेंशन योगदान की राशि से उनकी शुद्ध उधार सीमा को बढ़ाने का निर्णय लिया है।[50] अप्रैल 2023 में केंद्र सरकार ने एनपीएस के तहत सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन के मुद्दों पर विचार करने हेतु एक समिति का गठन किया।[51]  इस समिति के संदर्भ की शर्तें इस प्रकार हैं: (i) क्या सरकारी कर्मचारियों के लिए एनपीएस की मौजूदा रूपरेखा में किसी बदलाव की आवश्यकता है और (ii) राजकोषीय निहितार्थ और समग्र बजट पर उसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए सरकारी कर्मचारियों के पेंशन लाभों में सुधार के उपाय सुझाना।51

कुछ राज्यों ने महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाओं की घोषणा की 

2023-24 में मध्य प्रदेशकर्नाटक और तमिलनाडु ने कुछ पात्रता मानदंडों के अधीन महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाओं के कार्यान्वयन की घोषणा की (विवरण के लिए तालिका देखें)।[52],[53],[54] उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में ऐसे परिवारों की महिलाओं को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा जिनकी: (i) वार्षिक आय 2.5 लाख रुपए से अधिक है, (ii) परिवार का कोई सदस्य आयकर दाता हैया (iii) परिवार का कोई सदस्य सरकारी कर्मचारी है। हिमाचल प्रदेश ने एक कैबिनेट सब-कमिटी बनाई है जो महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजना को लागू करने के रोडमैप को अंतिम रूप देगी।[55] पश्चिम बंगाल 2021 से ऐसी योजना को लागू कर रहा है।[56]  नकद हस्तांतरण योजनाएं लाभार्थियों को उनकी पसंद के अनुसार धन खर्च करने की अधिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं। इसकी तुलना में सबसिडी या तो कवर किए गए लाभार्थियों के दायरे को सीमित करती है या उन उद्देश्यों को सीमित करती है जिनके लिए ऐसे हस्तांतरण का उपयोग किया जा सकता है।

महिलाओं को नकद हस्तांतरण से घरों में उनकी स्थिति में सुधार हो सकता है।[57]  हालांकि मौजूदा सबसिडी और लाभों को रैशनलाइज किए बिना इतने बड़े पैमाने पर नकद हस्तांतरण योजनाओं को लागू करने से राज्य सरकारों का राजस्व व्यय बढ़ सकता है। राज्यों द्वारा 2022-23 में अपनी राजस्व प्राप्तियों का 9% सबसिडी पर खर्च करने का अनुमान है (पेज 6 देखें)। उल्लेखनीय है कि जो पांच राज्य महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाएं लागू कर रहे हैं या घोषित कर चुके हैंउनमें से मध्य प्रदेश को छोड़करअन्य सभी राज्यों ने 2023-24 में राजस्व घाटे का बजट रखा है।

तालिका 1: महिलाओं के लिए नकद हस्तांतरण योजनाएं  

राज्य

योजना

लाभ

बअ 2023-24 (करोड़ रुपए)

% 2023-24 बजट

कर्नाटक

गृह लक्ष्मी

परिवार की महिला मुखिया को 2,000 रुपए प्रति माह दिए जाएंगे।

17,500

6%

मध्य प्रदेश

मुख्यमंत्री लाडली बहना योजना

पात्र परिवारों (अविवाहित महिलाओं को छोड़कर) की 23-60 वर्ष की आयु की महिलाओं को 1,000 रुपए प्रति माह दिए जाएंगे।

7,850

3%

तमिलनाडु

मगलिर उरीमाई थोगाई

पात्र परिवारों की महिला मुखिया को 1,000 रुपए प्रति माह दिए जाएंगे।

7,000

2%

पश्चिम बंगाल

लक्ष्मीर भंडार

पात्र अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवारों की 25-60 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए 1,000 रुपए प्रति माह।

अन्य पात्र परिवारों की 25-60 वर्ष की आयु की महिलाओं के लिए 500 रुपए प्रति माह।

12,000

4%

स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; संबंधित योजना की वेबसाइट्स और सूचनाएंपीआरएस।

11 राज्यों ने 2023-24 में राजस्व घाटे का अनुमान लगाया है

राजस्व घाटे का तात्पर्य यह है कि राज्य को राजस्व व्यय के वित्तपोषण के लिए उधार लेने की आवश्यकता होती है जिससे परिसंपत्तियों का निर्माण या देनदारियों में कमी नहीं होती है। राजस्व अधिशेष का उपयोग पूंजी परिव्यय या बकाया ऋण चुकाने के लिए किया जा सकता है। 2023-24 में 11 राज्यों ने बजट स्तर पर राजस्व घाटा होने का अनुमान लगाया है। 13वें वित्त आयोग ने कहा था कि राजस्व संतुलन बनाए रखना राज्यों के लिए दीर्घकालिक और स्थायी लक्ष्य होना चाहिए।[58]   जैसा कि ऊपर चर्चा की गई हैविभिन्न राज्यों के एफआरबीएम कानूनों के अनुसार भी उनका राजस्व घाटे को खत्म करना आवश्यक है। जिन राज्यों ने 2023-24 में अपेक्षाकृत अधिक राजस्व घाटे का बजट रखा है, उनमें पंजाब (जीएसडीपी का 3.5%), हिमाचल प्रदेश (2.2%), केरल (2.1%), पश्चिम बंगाल (1.8%), आंध्र प्रदेश (1.5%) और हरियाणा (1.5%) शामिल हैं। कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों में उच्च राजस्व अधिशेष उनकी राजस्व प्राप्तियों में केंद्रीय हस्तांतरण के बड़े हिस्से के कारण है। झारखंड और ओड़िशा जैसे खनिज समृद्ध राज्यों में भी काफी अधिक राजस्व अधिशेष है।

रेखाचित्र 21: 2023-24 में जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राज्यों का राजस्व संतुलन (बजट अनुमान के अनुसार)

नोट: दिल्ली, पुद्दूचेरी और त्रिपुरा को चार्ट में नहीं दिखाया गया है क्योंकि इन राज्यों के लिए 2023-24 के जीएसडीपी अनुमान उपलब्ध नहीं हैं। पुद्दूचेरी ने 2023-24 में राजस्व घाटे का बजट रखा है। अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और मणिपुर के लिए बार्स पैमाने पर नहीं हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस।

राजकोषीय परिषद

कई वित्त आयोगों ने एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद स्थापित करने का सुझाव दिया है।[59] आईएमएफ के अनुसारराजकोषीय परिषदें वैधानिक या कार्यकारी सार्वजनिक संस्थाएं हैं जिनका गठन सार्वजनिक वित्त में स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है।[60] ऐसी संस्थाएं राजकोषीय योजनाओं और प्रदर्शन का मूल्यांकन करती हैंव्यापक आर्थिक और बजटीय पूर्वानुमानों का मूल्यांकन करती हैं और राजकोषीय नियमों के कार्यान्वयन की निगरानी करती हैं।60 2021 तक 49 देशों में 51 राजकोषीय परिषदें थीं। 15वें वित्त आयोग ने सलाहकारी भूमिका वाली एक स्वतंत्र राजकोषीय परिषद के गठन का सुझाव दिया था।[61]  उसने कहा कि कई देशों में राजकोषीय परिषदें केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता को भी पूरा कर रही हैं। प्रस्तावित राजकोषीय परिषद के कुछ सांकेतिक कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बहुवर्षीय व्यापक-आर्थिक और राजकोषीय पूर्वानुमान प्रदान करना, (ii) राज्यों में राजकोषीय लक्ष्यों की उपयुक्तता और स्थिरता का आकलन करनाऔर (iii) दीर्घकालिक राजकोषीय स्थिरता का आकलन करना।61 अब तक भारत ने ऐसी परिषद बनाने के सुझाव पर कार्रवाई नहीं की है। केंद्र सरकार के अनुसारकैगराष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग और वित्त आयोग जैसी संस्थाएं राजकोषीय परिषद के लिए प्रस्तावित कुछ या सभी भूमिकाएं निभाती हैं।59    

2023-24 में राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.1% रहने का अनुमान है

राजकोषीय घाटा तब होता है जब सरकारी व्यय, प्राप्तियों से अधिक होता है। इस कमी को उधारियों के जरिए दूर किया जाता है। उच्च राजकोषीय घाटा एक वित्तीय वर्ष में अधिक उधार लेने की जरूरत का संकेत होता है। 2023-24 में राज्यों का कुल राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.1% होने के अनुमान है। 15वें वित्त आयोग के सुझावों के अनुसार, 2023-24 में राज्यों के राजकोषीय घाटे की सीमा जीएसडीपी के 3% निर्धारित की गई है। अगर राज्य बिजली क्षेत्र में कुछ सुधार करते हैं तो जीएसडीपी का 0.5% अतिरिक्त उधार लेने की अनुमति है। 10 राज्यों ने अनुमान लगाया है कि 2023-24 में उनका राजकोषीय घाटा उनकी जीएसडीपी के 3% से कम होगा। अपेक्षाकृत उच्च राजकोषीय घाटे वाले राज्यों में मणिपुरजम्मू और कश्मीरपंजाबहिमाचल प्रदेशसिक्किमगोवामध्य प्रदेश और राजस्थान शामिल हैं। 2021-22 और 2025-26 के बीचअगर कोई राज्य एक वर्ष में अनुमत राजकोषीय घाटे से कम उधार लेता हैतो वह अगले किसी भी वर्ष में उस सीमा तक, निर्धारित सीमा से अधिक उधार ले सकता है। जीएसटी क्षतिपूर्ति ऋण और केंद्र द्वारा पूंजी परिव्यय के लिए दिए गए ऋण भी राज्यों के राजकोषीय घाटे में शामिल नहीं हैं।

रेखाचित्र 22: बजट अनुमान के अनुसार 2023-24 में जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटा
 image 

नोट: दिल्ली, पुद्दूचेरी और त्रिपुरा को चार्ट में नहीं दिखाया गया है क्योंकि इन राज्यों के लिए 2023-24 के जीएसडीपी अनुमान उपलब्ध नहीं हैं। आंकड़े राज्यों द्वारा दी गई जानकारियों के अनुसार हैं।
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़;
 पीआरएस।

मार्च 2023 तक राज्यों की बकाया देनदारियां जीएसडीपी के 29.5% अनुमानित हैं

बकाया देनदारियां बताती हैं कि राज्य का संचित ऋण कितना है जो पहले के वर्षों में उधारियों के साथ जमा हुआ है। इसमें कुछ अन्य देनदारियां भी शामिल हैं जैसे सार्वजनिक खातों पर देनदारियां। उच्च बकाया देनदारियां आने वाले वर्षों में राज्य के लिए ऋण चुकाने के उच्च दायित्व का संकेत देती हैं। इससे राज्यों के लिए ब्याज भुगतान की बाध्यता भी बढ़ सकती है। राज्यों के एफआरबीएम कानून आमतौर पर जीएसडीपी के प्रतिशत के रूप में बकाया देनदारियों की सीमा निर्दिष्ट करते हैं। राज्यों की बकाया देनदारियां 2003-04 के अंत में जीएसडीपी के 31.8% से घटकर 2013-14 के अंत में जीएसडीपी के 22% पर आ गईं। हाल के वर्षों मेंराज्यों की बकाया देनदारियां बढ़ी हैंआंशिक रूप से व्यय के कारणजैसे कि कृषि ऋण को माफ करना और उदय योजना के तहत ऋण की जिम्मेदारी लेना। 2017 में एफआरबीएम समीक्षा समिति ने राज्यों की बकाया देनदारियों के लिए जीडीपी के 20% की सीमा का सुझाव दिया था।35 2020-21 में कोविड-19 महामारी के कारण राजस्व प्राप्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव के मद्देनजर राज्यों की राजकोषीय घाटे की सीमा जीएसडीपी के 5% तक बढ़ा दी गई थी। परिणामस्वरूप राज्यों की बकाया देनदारियां 2019-20 के अंत में जीएसडीपी के 26.7% से बढ़कर 2020-21 के अंत में 31.1% हो गईं। 2022-23 के अंत में राज्य सरकारों की बकाया देनदारियां जीएसडीपी के 29.5% होने का अनुमान है। 21 राज्यों में बकाया देनदारियां जीएसडीपी के 30% से अधिक हैं।

रेखाचित्र 23: मार्च 2023 तक बकाया देनदारियां (जीएसडीपी का %)
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नोट: डेटा बजट अनुमान के अनुसार है।
स्रोत: आरबीआई; पीआरएस।

केस स्टडी: ओड़िशा के राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण

राज्य सरकारें अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए विभिन्न स्रोतों से उधार ले सकती हैं। इन स्रोतों में खुले बाज़ार से उधारकेंद्र सरकार से ऋणवित्तीय संस्थानों से ऋण और सार्वजनिक खाते शामिल हैं। अधिकांश राज्यों के लिए अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए बाजार उधार सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। 2021-22 में राज्यों ने कुल मिलाकर अपने सकल राजकोषीय घाटे का 68% खुले बाजार की उधारियों (संशोधित अनुमान के अनुसार) से वित्तपोषित किया। हालांकि ओड़िशा ने 2021-22 और 2022-23 में खुले बाजार से उधार का सहारा नहीं लिया।[62]  इसके बजाय राज्य ने ओड़िशा खनिज बीयरिंग क्षेत्र विकास निगम और राज्य प्रतिपूरक वनरोपण निधि से ऋण लिया।[63]  राज्य सरकार इन समर्पित निधियों में उपलब्ध अधिशेष राशि का 60% तक उधार ले सकती हैऔर उधार ली गई राशि खुले बाजार उधार की तुलना में कम ब्याज दर पर उपलब्ध है।63  इससे पहले ओड़िशा ने उच्च ब्याज दरों पर स्वैप और प्री-पेड ऋण चुकाए हैं।[64]  इससे वैकल्पिक स्रोतों से घाटे को पूरा करने के साथ-साथराज्य को अपने ब्याज भुगतान को कम करने में मदद मिलती है। 2023-24 के बजट अनुमान के अनुसारराज्य सरकार बाजार ऋण के माध्यम से 11,303 करोड़ रुपए जुटाएगी।62  

राज्य सरकारों की बकाया गारंटी

राज्यों की बकाया देनदारियों में कुछ अन्य देनदारियां शामिल नहीं होती हैं जो प्रकृति में आकस्मिक हैं और जिन्हें राज्यों को कुछ मामलों में चुकाना पड़ सकता है। राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (एसपीएसई) वित्तीय संस्थानों से जो उधारी लेते हैं, उनकी गारंटी राज्य सरकारें देती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इन उद्यमों की क्रेडिट प्रोफ़ाइल खराब हो सकती है और सरकारी गारंटी से उनके लिए ऋण प्राप्त करना आसान हो सकता है। 2021-22 के अंत में 27 राज्यों द्वारा दी गई गारंटी उनकी कुल जीएसडीपी का 4% थी। अपेक्षाकृत उच्च गारंटी स्तर वाले राज्यों में आंध्र प्रदेशमेघालयसिक्किमतेलंगाना और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।

रेखाचित्र 24: 31 मार्च 2022 तक बकाया गारंटी (जीएसडीपी के % के रूप में)

स्रोत: संबंधित राज्यों के 2021-22 के वित्त खातेकैगराज्य बजट दस्तावेज़; पीआरएस।

कई राज्यों में सरकारी गारंटी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी बिजली क्षेत्र की थी। औसतन 27 राज्यों में कुल गारंटी में बिजली क्षेत्र की हिस्सेदारी 44% थी। गुजरातकर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों के लिए सिंचाई क्षेत्र में सबसे अधिक गारंटी दी गई थी। आंध्र प्रदेश ने कृषि और जल आपूर्तिस्वच्छताआवास और शहरी विकास के क्षेत्रों को काफी ज्यादा गारंटी दी है। छत्तीसगढ़ की 75% गारंटी सहकारी क्षेत्र को दी गईजबकि मध्य प्रदेश की 77% बकाया गारंटी राज्य के खाद्यनागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग को दी गई।

रेखाचित्र 25: 31 मार्च, 2022 तक कुल गारंटी के हिस्से के रूप में बिजली क्षेत्र की गारंटी

स्रोत: संबंधित राज्यों के 2021-22 के वित्त खातेकैगराज्य बजट दस्तावेज़पीआरएस। 

बजट अनुमानों की विश्वसनीयता

राज्य के बजट में तीन प्रकार के आंकड़े होते हैं: (i) बजट अनुमान: आगामी वित्तीय वर्ष के लिए एक अनुमान, (ii) संशोधित अनुमान: चालू वित्तीय वर्ष के लिए बजट अनुमान में संशोधनऔर (iii) वास्तविक: पिछले वर्ष की अंतिम लेखापरीक्षित राशि। राज्य विधानमंडल बजट अनुमानों के आधार पर आगामी वर्ष के लिए बजट को मंजूरी देता है। संशोधित अनुमान चालू वर्ष में सरकार के वित्त की अधिक यथार्थवादी तस्वीर प्रदान कर सकते हैं क्योंकि वे उसी वर्ष में दर्ज किए गए वास्तविक लेनदेन के संदर्भ में बनाए जाते हैं। वास्तविक आंकड़े बजट अनुमान से कम या अधिक हो सकते हैंऔर यह तुलना प्रस्तावित बजट की विश्वसनीयता को समझने में मदद करती है। इस खंड में 2020-21 के आंकड़े शामिल हैं, जब राज्य के राजस्व और व्यय कोविड-19 के कारण किए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन से प्रभावित थे। उल्लेखनीय है कि 2020-21 में बजट अनुमान की तुलना में वास्तविक राजस्व व्यय और पूंजी परिव्यय में कमी 2019-20 के स्तरों के समान थी जोकि आर्थिक मंदी से प्रभावित थी। हालांकि राज्यों की वास्तविक राजस्व प्राप्तियां 2020-21 में बजट से 22% कम थींजो अन्य वर्षों की तुलना में काफी कम थी।

राज्यों ने 2015-16 और 2021-22 के बीच बजट से 11% कम राजस्व जुटाया

2015-16 और 2021-22 के बीचराज्यों ने कुल मिलाकर अपने बजट अनुमान से 11% कम राजस्व जुटाया। जिन राज्यों के राजस्व में अपेक्षाकृत अधिक कमी देखी गई, उनमें तेलंगाना (22%)आंध्र प्रदेश (21%)असम (21%)मेघालय (20%) और त्रिपुरा (20%) शामिल हैं। राज्य अधिक उधार लेकर राजस्व प्राप्तियों में कमी की भरपाई कर सकते हैं। हालांकि कोई राज्य कितना उधार ले सकता है, यह उनके एफआरबीएम कानूनों और केंद्र द्वारा तय की गई वार्षिक उधार सीमा के जरिए सीमित है। अगर राजस्व प्राप्तियों में कमी की भरपाई के लिए उधार पर्याप्त नहीं हैतो राज्यों को व्यय कम करना पड़ सकता है।

रेखाचित्र 26: 2015-16 और 2021-22 के बीच राज्यों की राजस्व प्राप्तियों में कमी


 

स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

राज्यों ने 2015-16 और 2021-22 के बीच बजट से 10% कम खर्च किया

राज्यों ने 2015-16 और 2021-22 के बीच औसतन अपने बजट अनुमान से 10% कम खर्च, यानी अंडरस्पेंडिंग की। जैसा कि ऊपर चर्चा की गई हैइसका एक कारण यह है कि कम राजस्व जुटाया जा सका। गोवा (23%)मणिपुर (20%)असम (19%)और त्रिपुरा (19%) जैसे राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत ज्यादा अंडरस्पेंडिंग की। दूसरी ओरकर्नाटकमिजोरम और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बजट और वास्तविक आंकड़ों के बीच सबसे कम अंतर देखा गया।

रेखाचित्र 27: 2015-16 और 2021-22 के बीच राज्यों की तरफ से अंडरस्पेंडिंग
 
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

इस अवधि के दौरान राजस्व व्यय के मामले में औसत अंडरस्पेंडिंग 8% थीजबकि पूंजीगत परिव्यय के मामले में 19% थी। ऐसा इसलिए है क्योंकि राजस्व व्यय के एक बड़े हिस्से की प्रकृति प्रतिबद्ध व्यय की है। इस प्रकार इसे अल्पावधि में रैशनलाइज नहीं किया जा सकता है। कम राजस्व प्राप्तियों की भरपाई के लिएराज्य अपने पूंजी परिव्यय में बड़े अनुपात में कटौती कर सकते हैं। गोवा (55%), त्रिपुरा (42%), और पंजाब (39%) में पूंजीगत परिव्यय में अपेक्षाकृत ज्यादा अंडरस्पेंडिंग देखी गई।

रेखाचित्र 28: 2015-16 और 2021-22 के बीच पूंजीगत परिव्यय में अंडरस्पेंडिंग
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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

2023-24 में विभिन्न क्षेत्रों का परिव्यय 

हम यहां बता रहे हैं कि राज्यों ने 2023-24 के बजट अनुमानों के अनुसार प्रमुख क्षेत्रों के लिए कितना आवंटन किया। किसी विशेष क्षेत्र पर व्यय का हिस्सा राज्य के बजट में उस क्षेत्र की हिस्सेदारी को दर्शाता है। किसी क्षेत्र पर व्यय उस क्षेत्र के राजस्व व्यय और पूंजी परिव्यय का योग होता है। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं और अन्य केंद्रीय अनुदानों के रूप में केंद्र जो अनुदान देता है, उसके कारण भी क्षेत्र के व्यय पर असर हो सकता है। दिल्ली में क्षेत्रीय व्यय अन्य राज्यों से भिन्न हो सकता है क्योंकि यहां की पुलिस केंद्र सरकार के तहत आती है और राज्य के पास ग्रामीण या कृषि क्षेत्र न के बराबर है। राज्य विभिन्न क्षेत्रों में एक जैसी मदों का आवंटन कर सकते हैं। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के स्कूलों पर जो खर्च किया जाता है, उस व्यय को इन वर्गों के कल्याण संबंधी व्यय के रूप में वर्गीकृत करते हैं न कि शिक्षा के तहत; पंजाब अपने यहां के किसानों को बिजली सबसिडी देता है और उस खर्च को कृषि संबंधी व्यय में गिनता है, ऊर्जा संबंधी व्यय में नहीं। 2023-24 में राज्यों ने निम्नलिखित क्षेत्रों पर कुल 67% व्यय किया है।

शिक्षा

रेखाचित्र 29: राज्यों द्वारा अपने बजट का 14.7% शिक्षा पर खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

सामाजिक कल्याण और पोषण

रेखाचित्र 30: राज्यों द्वारा अपने बजट का 6.6% सामाजिक कल्याण और पोषण पर खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

रेखाचित्र 31: राज्यों द्वारा अपने बजट का 6.2% स्वास्थ्य पर खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

कृषि एवं संबद्ध गतिविधियां

रेखाचित्र 32: राज्यों द्वारा अपने बजट का 5.9% कृषि पर खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

ग्रामीण विकास

रेखाचित्र 33: राज्यों द्वारा अपने बजट का 5% ग्रामीण विकास पर खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

ऊर्जा

रेखाचित्र 34: राज्यों द्वारा अपने बजट का 4.7% ऊर्जा पर खर्च करने का अनुमान है

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 नोट: पुद्दूचेरी और गोवा जैसे राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में ऊर्जा पर अधिक खर्च होता है क्योंकि बिजली वितरण सरकारी विभागों द्वारा किया जाता है, न कि अधिकांश राज्यों की तरह, जहां राज्य के स्वामित्व वाले डिस्कॉम्स बिजली वितरण करते हैं। 
स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।
 

सड़कें एवं पुल

रेखाचित्र 35: राज्य अपने बजट का अनुमानित 4.6% हिस्सा सड़कों और पुलों पर खर्च करेंगे

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

पुलिस

रेखाचित्र 36: राज्यों द्वारा पुलिस पर अपने बजट का 4.2% खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों का कल्याण

रेखाचित्र 37: राज्यों द्वारा अपने बजट का 3.5% एससीएसटीओबीसी और अल्पसंख्यकों के कल्याण पर खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

शहरी विकास

रेखाचित्र 38: राज्यों द्वारा शहरी विकास पर अपने बजट का 3.4% खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण

रेखाचित्र 39: राज्यों द्वारा सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण पर अपने बजट का 3.4% खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

जलापूर्ति एवं सैनिटेशन

रेखाचित्र 40: राज्यों द्वारा अपने बजट का 2.7% जल आपूर्ति और स्वच्छता पर खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

आवास

रेखाचित्र 41: राज्यों द्वारा आवास पर अपने बजट का 1.7% खर्च करने का अनुमान है

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स्रोत: राज्य बजट दस्तावेज़; आरबीआई; पीआरएस।

अनुलग्नक 

तालिका 2: 15वें वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित हस्तांतरण उपरांत राजस्व घाटा अनुदान (करोड़ रुपए में)

राज्य

2021-22

2022-23

2023-24

2024-25

2025-26

कुल

आंध्र प्रदेश

17,257

10,549

2,691

0

0

30,497

असम

6,376

4,890

2,918

0

0

14,184

हरियाणा

132

0

0

0

0

132

हिमाचल प्रदेश

10,249

9,377

8,058

6,258

3,257

37,199

कर्नाटक

1,631

0

0

0

0

1,631

केरल

19,891

13,174

4,749

0

0

37,814

मणिपुर

2,524

2,310

2,104

1,701

1,157

9,796

मेघालय

1,279

1,033

715

110

0

3,137

मिजोरम

1,790

1,615

1,474

1,079

586

6,544

नगालैंड

4,557

4,530

4,447

4,068

3,647

21,249

पंजाब

10,081

8,274

5,618

1,995

0

25,968

राजस्थान 

9,878

4,862

0

0

0

14,740

सिक्किम

678

440

149

0

0

1,267

तमिलनाडु

2,204

0

0

0

0

2,204

त्रिपुरा

4,546

4,423

4,174

3,788

2,959

19,890

उत्तराखंड

7,772

7,137

6,223

4,916

2,099

28,147

पश्चिम बंगाल

17,607

13,587

8,353

568

0

40,115

कुल

1,18,452

86,201

51,673

24,483

13,705

2,94,514

स्रोत: 2021-26 के लिए 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट; पीआरएस।

तालिका 3: राज्यों के गारंटीशुदा राजस्व और वास्तविक एसजीएसटी राजस्व के बीच अंतर

राज्य

2018-19

2019-20

2020-21

2021-22

आंध्र प्रदेश

-4.1%

13.2%

28.8%

20.1%

अरुणाचल प्रदेश

-58.2%

-85.6%

-72.9%

-101.9%

असम

5.3%

13.3%

26.7%

19.0%

बिहार

18.2%

25.8%

34.7%

30.1%

छत्तीसगढ़

24.6%

36.2%

44.9%

40.7%

दिल्ली

21.8%

29.9%

51.2%

36.7%

गोवा

20.9%

32.6%

54.5%

40.4%

गुजरात

14.1%

26.3%

41.8%

23.7%

हरियाणा

15.6%

24.3%

34.3%

25.0%

हिमाचल प्रदेश

36.2%

40.8%

48.5%

41.7%

जम्मू और कश्मीर

27.2%

40.8%

48.0%

35.4%

झारखंड

13.7%

22.2%

37.2%

31.0%

कर्नाटक

19.9%

28.5%

41.8%

31.7%

केरल

15.3%

29.3%

41.9%

35.0%

मध्य प्रदेश

14.3%

25.1%

38.3%

32.3%

महाराष्ट्र

4.2%

16.4%

36.0%

20.3%

मणिपुर

-35.1%

-45.5%

-28.5%

-48.2%

मेघालय

14.6%

15.3%

33.0%

18.6%

मिजोरम

-62.3%

-66.8%

-47.6%

-75.6%

नगालैंड

-23.7%

-41.6%

-33.7%

-48.1%

ओड़िशा

24.3%

27.9%

37.0%

28.7%

पुद्दूचेरी

43.3%

57.4%

64.7%

60.2%

पंजाब

36.7%

47.4%

57.7%

48.8%

राजस्थान 

8.2%

23.0%

36.0%

24.2%

सिक्किम

-12.0%

-16.2%

9.2%

-20.5%

तमिलनाडु

5.4%

17.8%

34.8%

25.2%

तेलंगाना

-0.7%

11.5%

24.7%

13.8%

त्रिपुरा

16.3%

22.9%

32.2%

25.8%

उत्तर प्रदेश

5.6%

15.3%

32.3%

23.1%

उत्तराखंड

33.6%

40.3%

52.4%

43.4%

पश्चिम बंगाल

8.0%

18.4%

33.9%

27.0%

अखिल भारतीय औसत

12.3%

23.0%

37.9%

27.2%

 नोट: नकारात्मक आंकड़े दर्शाते हैं कि एसजीएसटी राजस्व गारंटीशुदा राजस्व से अधिक है। गारंटीशुदा राजस्व का मतलब है कि जीएसटी के तहत राज्यों को 14% राजस्व वृद्धि की गारंटी दी गई थी।
स्रोत: जीएसटी परिषद; पीआरएस।
 

तालिका 4: राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों का लाभ और घाटा (करोड़ रुपए में)

राज्य/यूटी

2017-18

2018-19

2019-20

2020-21

2021-22

आंध्र प्रदेश

-546

-16,831

1,103

-6,894

-2,595

अरुणाचल प्रदेश

-429

-420

0

0

-503

असम

302

311

1,141

-107

357

बिहार

-1,872

-1,845

-2,913

-3,051

-2,635

छत्तीसगढ़

-726

-814

-571

-713

-807

गोवा

26

-121

-276

-104

-264

गुजरात

426

184

314

429

373

हरियाणा

412

281

331

637

849

हिमाचल प्रदेश

-44

132

43

-154

-141

झारखंड

-212

-730

-1,111

-2,556

-1,772

कर्नाटक

-2,003

-1,825

-2,594

-5,135

2,076

केरल

-784

-135

-270

-475

736

मध्य प्रदेश

-5,191

-9,390

-5,034

-9,884

-2,159

महाराष्ट्र

1,620

3,046

2,992

-2,906

1,885

मणिपुर

-8

-42

-15

-15

-11

मेघालय

-287

-202

-443

-101

-153

मिजोरम

87

-260

-291

-357

-343

नगालैंड

-62

-94

-477

-528

-519

पुद्दूचेरी

5

-39

-306

-11

73

पंजाब

-2,618

363

-975

49

1,680

राजस्थान 

686

-524

-2,551

-5,994

2,374

सिक्किम

-29

-3

-179

-34

0

तमिलनाडु

-7,761

-12,623

-11,965

-13,407

-11,955

तेलंगाना

-6,387

-9,525

-6,966

-6,686

-831

त्रिपुरा

28

38

-104

-4

-109

उत्तर प्रदेश

-5,002

-5,902

-3,866

-10,660

-6,492

उत्तराखंड

-229

-553

-577

-152

-21

पश्चिम बंगाल

72

60

511

-199

-205

कुल

-30,526

-57,463

-35,049

-69,012

-21,112

नोट: ओड़िशा के डिस्कॉम का निजीकरण 2020-21 में किया गया थाइसलिए इसे बाहर रखा गया है। दिल्ली ने भी अपने डिस्कॉम का निजीकरण कर दिया है। निजी डिस्कॉम गुजरातमहाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी काम कर रहे हैं। 2021-22 के लिए जम्मू-कश्मीर का डेटा उपलब्ध नहीं है। तालिका प्राप्त सबसिडी के आधार पर लाभ और हानि दर्शाती है।|
स्रोत: विद्युत वित्त निगम की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।
 

तालिका 5: राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों के वित्तीय संकेतक

राज्य

एटीएंडसी घाटे (% में)*

एसीएस-एआरआर अंतर # (रुपए में)

2019-20

2020-21

2021-22

2019-20

2020-21

2021-22

आंध्र प्रदेश

11%

28%

11%

0.0

0.0

0.4

अरुणाचल प्रदेश

40%

52%

49%

0.0

-

6.0

असम

23%

19%

17%

-1.1

0.3

-0.4

बिहार

40%

33%

32%

1.3

1.1

0.7

छत्तीसगढ़

19%

20%

18%

0.4

0.1

0.4

गोवा

15%

13%

13%

0.7

0.3

0.7

गुजरात

12%

12%

10%

-0.1

-0.1

-0.1

हरियाणा

18%

17%

14%

-0.1

-0.2

-0.2

हिमाचल प्रदेश

14%

14%

13%

-0.0

0.2

0.1

जम्मू एवं कश्मीर

60%

59%

उपलब्ध नहीं

4.1

4.2

उपलब्ध नहीं

झारखंड

37%

43%

34%

1.2

2.7

2.2

कर्नाटक

17%

16%

11%

0.3

0.8

0.4

केरल

13%

8%

8%

0.1

0.2

-0.3

मध्य प्रदेश

30%

41%

23%

0.3

0.7

0.5

महाराष्ट्र

19%

27%

15%

0.6

0.5

0.1

मणिपुर

23%

20%

24%

0.1

0.1

0.3

मेघालय

32%

29%

27%

2.4

0.5

0.8

मिजोरम

37%

29%

36%

4.0

6.9

6.2

नगालैंड

52%

45%

41%

13.5

13.1

11.7

पुद्दूचेरी

18%

20%

11%

1.1

0.0

-0.3

पंजाब

15%

19%

12%

0.2

-0.3

-0.2

राजस्थान 

30%

26%

17%

1.0

0.3

0.1

सिक्किम

29%

26%

31%

2.1

0.3

0.0

तमिलनाडु

14%

12%

13%

2.1

2.4

2.1

तेलंगाना

22%

13%

11%

1.1

1.2

0.1

त्रिपुरा

36%

37%

33%

0.2

-0.1

0.4

उत्तर प्रदेश

30%

27%

31%

0.4

1.2

0.7

उत्तराखंड

20%

15%

14%

0.2

0.1

0.0

पश्चिम बंगाल

20%

21%

17%

0.5

1.2

-0.2

राष्ट्रीय औसत

21%

23%

17%

0.6

0.7

0.4

नोट: * ट्रांसमिशन के दौरान बिजली की हानि और गलत मीटरिंग और बिजली चोरी के कारण वाणिज्यिक हानि।

# बिजली आपूर्ति की औसत लागत और इसकी बिक्री से प्राप्त औसत राजस्व के बीच प्रति यूनिट अंतर को संदर्भित करता है। अंतर को बेची गई ऊर्जा के आधार पर मापा जाता है।

ओड़िशा के डिस्कॉम का 2020-21 में निजीकरण किया गया थाइसलिए इसे बाहर रखा गया है। 2021-22 के लिए जम्मू-कश्मीर का डेटा उपलब्ध नहीं है। स्रोत: विद्युत वित्त निगम की विभिन्न वर्षों की रिपोर्ट्स; पीआरएस।

तालिका 6: पूंजीगत व्यय/निवेश के लिए राज्यों को विशेष सहायता योजना के तहत जारी ऋण (करोड़ रुपए में)

राज्य

2020-21

2021-22

2022-23

आंध्र प्रदेश

688

502

6,106

अरुणाचल प्रदेश

233

371

1,564

असम

450

600

4,300

बिहार

843

1,247

8,456

छत्तीसगढ़

286

423

2,942

गोवा

98

111

573

गुजरात

285

432

4,046

हरियाणा

91

135

1,267

हिमाचल प्रदेश

533

800

651

झारखंड

277

246

2,964

कर्नाटक

305

452

3,399

केरल

82

239

1,903

मध्य प्रदेश

1,320

1,512

7,360

महाराष्ट्र

514

772

6,744

मणिपुर

317

213

467

मेघालय

200

281

1,049

मिजोरम

200

300

298

नगालैंड

200

300

504

ओड़िशा

472

517

75

पंजाब

297

224

798

राजस्थान

1,002

692

5,596

सिक्किम

200

300

551

तमिलनाडु

0

506

4,011

तेलंगाना

358

214

2,501

त्रिपुरा

300

119

350

उत्तर प्रदेश

976

1,483

7,941

उत्तराखंड

675

264

1,124

पश्चिम बंगाल

630

933

3,656

कुल

11,830

14,186

81,195

स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 1737, वित्त मंत्रालयलोकसभा; पीआरएस।

तालिका 7: 2021-22 और 2022-23 में राज्यों द्वारा ली गई बजटेतर उधारी (करोड़ रुपए में)

राज्य

2021-22

2022-23 (अनुमानित)

आंध्र प्रदेश

6,288

1,301

असम

239

1,000

छत्तीसगढ़

297

2,763

गोवा

77

0

हरियाणा

21

22

कर्नाटक

2,500

1,997

केरल

14,313

2,770

मध्य प्रदेश

576

1,784

मणिपुर

185

82

मेघालय

0

13

पंजाब

798

1,052

सिक्किम

454

121

तमिलनाडु

595

746

तेलंगाना

35,258

800

उत्तर प्रदेश

3,951

4,049

पश्चिम बंगाल

1,089

0

कुल

66,640

18,499

स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 528, वित्त मंत्रालयराज्यसभा; पीआरएस।

पारिभाषिक शब्द

प्राप्तियों का अर्थ हैसरकार को प्राप्त धनराशि। इसमें निम्नलिखित शामिल होते हैं: (i) सरकार द्वारा अर्जित धनराशि, (ii) प्राप्त अनुदान (मुख्य रूप से केंद्र से प्राप्त)और (iii) उधारियों या ऋण की अदायगी के रूप में प्राप्त होने वाली धनराशि।

पूंजीगत प्राप्तियों में वे प्राप्तियां शामिल होती हैं जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में गिरावट या देनदारियों में बढ़ोतरी होती है। इनमें निम्नलिखित शामिल होते हैं: (iपरिसंपत्तियों की बिक्रीजैसे सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों की बिक्री से प्राप्त होने वाली राशिऔर (iiउधारियों के रूप में या ऋण की अदायगी के रूप में प्राप्त होने वाली राशि।

राजस्व प्राप्तियां ऐसी प्राप्तियां होती हैं जिनका सरकार की परिसंपत्तियों और देनदारियों पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं होता। इनमें सरकार द्वारा कर और गैर कर स्रोतों (जैसे लाभांश से प्राप्त होने वाली आय और केंद्र सरकार के अनुदान) से अर्जित धनराशि शामिल होती है।

पूंजीगत व्यय परिसंपत्तियों के सृजन या देनदारियों को कम करने के लिए किया जाता है। इसमें: (iसड़क और अस्पतालों जैसी परिसंपत्तियों के सृजन के लिए सरकार द्वारा इस्तेमाल धनराशिऔर (iiसरकार द्वारा उधारी चुकाने के लिए दी गई धनराशि शामिल है। 

राजस्व व्यय सरकार का वह व्यय होता है जिसका उसकी परिसंपत्तियों या देनदारियों पर कोई असर नहीं होता। उदाहरण के लिए उसमें वेतन, ब्याज भुगतान, पेंशन, प्रशासनिक खर्च और सबसिडी शामिल होती है।

केंद्रीय करों के हस्तांतरण का अर्थ है कि केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय करों, जैसे कॉरपोरेशन टैक्स, इनकम टैक्स, केंद्रीय जीएसटी, कस्टम्स और केंद्रीय उत्पाद शुल्क में राज्यों को हिस्सा देना। वित्त आयोग द्वारा प्रस्तावित मानदंडों के आधार पर राज्यों को धनराशि का हस्तांतरण किया जाता है। 

सहायतानुदान को केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को हस्तांतरित किया जाता है और वे टाइड प्रकृति के होते हैं यानी उन्हें विशिष्ट योजनाओं और व्यय की मदों पर ही खर्च करना होता है, जैसे स्वच्छ भारत मिशन और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन।

बकाया ऋण का अर्थ है, पिछले कुछ वर्षों में सरकारों द्वारा उधार ली गई वह राशि, जोकि मौजूदा सरकार पर देय है। किसी वित्तीय वर्ष के आंकड़ों से यह संकेत मिलता है कि वर्ष के अंत में सरकार पर कितना ऋण बकाया है।

राजकोषीय घाटासरकार की व्यय संबंधी जरूरतों और उसकी प्राप्तियों के बीच का अंतर होता है। किसी एक वर्ष में सरकार को कितनी राशि उधार लेनी होगी, यह उसके बराबर होता है। अगर प्राप्तियां व्यय से अधिक होती हैं तो अधिशेष उत्पन्न होता है।

राजस्व घाटा प्राप्तियों के राजस्व घटक और व्यय, यानी राजस्व संवितरण और राजस्व प्राप्तियों के बीच का अंतर होता है। इसका अर्थ यह है कि सरकार को गैर पूंजीगत घटकों (जिनसे परिसंपत्तियों का सृजन नहीं होगा) पर व्यय के लिए कितना उधार लेना होगा।

प्राथमिक घाटा राजकोषीय घाटे और ब्याज भुगतान के बीच का अंतर होता है। यह सरकार की व्यय संबंधी जरूरतों और उसकी प्राप्तियों के बीच के अंतर का संकेत देता है लेकिन इसमें इसकी गणना नहीं की जाती कि पिछले वर्षों के दौरान ऋण के ब्याज भुगतानों पर कितना खर्च किया गया।

राज्य का समेकित कोष वह कोष या लेखा होता है जिसमें राज्य सरकार की सभी प्राप्तियों को जमा किया जाता है और उसे सरकार के व्यय के वित्त पोषण के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

प्रभारित (चार्ज) व्यय में वह व्यय शामिल होता है जिस पर विधानसभा में मतदान नहीं होता और उसे समेकित कोष से सीधा खर्च किया जाता है। ऐसे व्यय पर विधानसभा में चर्चा की जा सकती है। उदाहरणों में ब्याज भुगतान और राज्यपाल तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन और भत्ते शामिल हैं।

मतदान (वोटेड) व्यय में प्रभारित व्यय के अतिरिक्त सभी दूसरे व्यय शामिल होते हैं। ऐसे व्यय के लिए अनुदान मांगों के रूप में विधानसभा में मतदान किया जाता है।

राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन संरचना वित्तीय अनुशासन के संस्थापन के लिए राज्यों द्वारा पारित कानूनों से संबंधित होती है। यह संरचना राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे और बकाया ऋण के लक्ष्यों का प्रावधान करती है जिन्हें राज्यों को निर्धारित समयावधि में पूरा करना होता है। राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे अधिक पारदर्शिता लाने के लिए राजकोषीय नीति पर वक्तव्य जारी करें।

 

[1] Chapter 9: Revised Roadmap for Fiscal Consolidation, Volume I, 13th Finance Commission, December 2009, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/oldcommission_html/fincom13/tfc/13fcreng.pdf.   

[2] Chapter 14: Fiscal Environment and Fiscal Consolidation Roadmap, Volume I, 14th Finance Commission, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/oldcommission_html/fincom14/others/14thFCReport.pdf

[3] Chapter 10: Performance-based Incentives and Grants, Volume I, 15th Finance Commission, October 2020, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf

[5] Chapter 3: Setting the Context: Analysis of the Past, Volume-I, Main Report, 15th Finance Commission, October 2020, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf

[6] State Finances: A Study of Budgets of 2022-23, Reserve Bank of India, January 2023, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/0STATEFINANCE2022233E17F212337844888755EFDBCC661812.PDF

[7] Minutes of the 45th Meeting of the GST Council, GST Council, September 17, 2021, https://gstcouncil.gov.in/sites/default/files/Minutes/45TH_MEETING.pdf

[8] Chapter 5: Resource Mobilisation, Volume-I, Main Report, 15th Finance Commission, October 2020, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf

[9] Report of the Revenue Neutral Rate and Structure of Rates for the Goods and Services Tax (GST), GST Council, December 4, 2015, https://gstcouncil.gov.in/sites/default/files/CEA-rpt-rnr.pdf

[10] State Finances: A Study of Budgets of 2019-20, September 2019, Reserve Bank of India, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/STATEFINANCE201920E15C4A9A916D4F4B8BF01608933FF0BB.PDF

[11] Recommendations of the 47th GST Council Meeting, Press Information Bureau, Ministry of Finance, June 29, 2022, https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1838020

[12] Subsidies, merit goods, and fiscal space – I, Ideas for India, September 3, 2020, https://www.ideasforindia.in/topics/macroeconomics/subsidies-merit-goods-and-fiscal-space.html

[13] Financial Stability Report Issue No. 26, Reserve Bank of India, December 2022, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs//PublicationReport/Pdfs/0FSRDECEMBER2022F93A2F188A394ACDB2FDDC2FCC0D07F0.PDF

[14] Energy Subsidy Reform: Lessons and Implications, International Monetary Fund, January 28, 2013, https://www.imf.org/en/Publications/Policy-Papers/Issues/2016/12/31/Energy-Subsidy-Reform-Lessons-and-Implications-PP4741

[15] Budgetary Subsidies in India: Subsidising Social and Economic Services, National Institute of Public Finance and Policy, March 2003, https://www.nipfp.org.in/media/medialibrary/2013/08/Budgetary_Subsidies_in_India.pdf

[16] Report of the High Level Committee on Reorienting the Role and Restructuring of Food Corporation of India, January 2015, https://fci.gov.in/app2/webroot/upload/News/Report%20of%20the%20High%20Level%20Committee%20on%20Reorienting%20the%20Role%20and%20Restructuring%20of%20FCI_English.pdf.  

[17] Turning Around the Power Distribution Sector: Learnings and Best Practices from Reforms, NITI Aayog, August 2021, https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2021-08/Electricity-Distribution-Report_030821.pdf

[18] Annual Financial Statement of Punjab for 2023-24, https://finance.punjab.gov.in/uploads/10Mar2023/AFS_Budget_Book.pdf

[20] Chapter 20: Punjab, Volume IV, Report of the 15th Finance Commission for 2021-26, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XV-FC-Volume%20IV-The%20States.pdf

[21] Chapter 7: State Finances: Assessment of Revenue and Expenditure and Structural Reforms, Volume I, Report of the 13th Finance Commission for 2010 to 2015, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/oldcommission_html/fincom13/tfc/Chapter7.pdf.   

[22] Chapter 1: Introduction, Volume I, Report of the 15th Finance Commission for 2021-26, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf

[23] Report on Performance of Power Utilities 2021-22, Power Finance Corporation, May 2023, https://www.pfcindia.com/DocumentRepository/ckfinder/files/Operations/Performance_Reports_of_State_Power_Utilities/Report%20on%20Performance%20of%20Power%20Utilities%20-%202021-22%20%20updated%20up%20to%20May%202023.pdf.  

[24] “Government of India launches Revamped Distribution Sector Scheme (RDSS) to reduce the Aggregate Technical & Commercial (AT&C) losses to pan-India levels”, Press Information Bureau, Ministry of Power, February 9, 2023, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1897764#:~:text=The%20Scheme%20aims%20to%20reduce,to%20zero%20by%202024%2D25

[25] ‘Centre Provides Financial Incentives to States to accelerate Power Sector Reforms’, Press Information Bureau, Ministry of Finance, June 28, 2023, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1935826.  

[26] National Level AT&C Losses in Power Network down from 22.3% in 2020-21 to 16.4% in 2021-22”, Press Information Bureau, Ministry of Power, August 11, 2023, https://pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1947709#:~:text=Under%20RDSS%2C%20financial%20assistance%20would,other%20schemes%20like%20PM%20KUSUM

[27] “Centre approves Rs. 56,415 crore to 16 States for Capital Investment under ‘Special Assistance to States for Capital Investment 2023-24’ Scheme for giving timely boost to capital spending by States”, Press Information Bureau, Ministry of Finance, June 26, 2023, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1935378#:~:text=Under%20the%20scheme%2C%20special%20assistance,1%20lakh%20crore

[28] Budget Speech 2022-23, February 1, 2022, https://www.indiabudget.gov.in/budget2022-23/doc/Budget_Speech.pdf

[29] Chapter 12: Fiscal Consolidation Roadmap, Volume-I, Report of the 15th Finance Commission for 2021-22, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf

[30] Unstarred Question No. 1810, Ministry of Finance, Rajya Sabha, August 2, 2022, https://rsdebate.nic.in/bitstream/123456789/731377/1/PQ_257_02082022_U1810_p188_p189.pdf

[32] Monthly Summary Report of June 2022, Department of Expenditure, Ministry of Finance, https://doe.gov.in/sites/default/files/Monthly%20Summary%20Report%20of%20DoE%20%20for%20%20June%2C%2C2022%20.pdf

[33] Unstarred Question No. 528, Rajya Sabha, February 7, 2023, https://sansad.in/getFile/annex/259/AU528.pdf?source=pqars

[34] State Finances Audit Report of Telangana: 2021-22, Comptroller and Auditor General of India, 2023, https://cag.gov.in/webroot/uploads/download_audit_report/2022/English_SFAR%202020-21%20Telangana%20State-062306ff046b713.86889709.pdf

[36] General Financial Rules, 2017, Ministry of Finance, February 11, 2017, https://doe.gov.in/sites/default/files/GFR2017_0.pdf

[37] Budget Speech, Karnataka Budget 2023-24, July 7, 2023, https://finance.karnataka.gov.in/storage/pdf-files/1_BudgetSpeechJULY2023-24(Eng).pdf

[39] Budget Speech, Himachal Pradesh Budget 2023-24, https://ebudget.hp.nic.in/Aspx/Anonymous/pdf/FS_Eng_2023.pdf

[42] Chapter 7: Empowering Local Governments, Volume-I, Main report, 15th Finance Commission, October 2020, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf

[43] Order regarding RCS (Contributory Pension) Rules, 2005, Government of Rajasthan, May 19, 2022, https://finance.rajasthan.gov.in/PDFDOCS/RULES/10755.pdf

[44] No. F-2016-04-03289, Chhattisgarh Gazette, May 11, 2022, https://finance.cg.gov.in/vitt_nirdesh/year_wise/pdf_2022/11.pdf

[45] “Punjab Cabinet, Led By CM, Gives Nod to Issue Notification for Implementing the Old Pension Scheme in the State”, Directorate of Information and Public Relations, Punjab, November 18, 2022, http://diprpunjab.gov.in/?q=content/punjab-cabinet-led-cm-gives-nod-issue-notification-implementing-old-pension-scheme-state.   

[46] Restoration of Old Pension Scheme, Finance Department, Government of Jharkhand, September 5, 2022, https://finance.jharkhand.gov.in/download/circular_notifiaction/05092022_143_1.pdf

[47] No, Fin(Pen)A(3)-1/2023, Finance (Pension) Department, Government of Himachal Pradesh, April 17, 2023, https://himachal.nic.in/WriteReadData/l892s/1_l892s/fin-51313681.pdf

[49] State Finances: A Risk Analysis, Reserve Bank of India Bulletin, June 2022, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Bulletin/PDFs/6STATEFINANCESARISKANALYSIS143105EB27A744E1B9C404CF7D96909A.PDF.  

[50] Starred Question No. 50, Ministry of Finance, Lok Sabha, July 24, 2023, https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/1712/AS50.pdf?source=pqals

[51] No.1(4)/E-V/2023, Department of Expenditure, Ministry of Finance, April 6, 2023, https://doe.gov.in/sites/default/files/NPS%20Committee.pdf.  

[52] Mukhyamantri Ladli Behna Yojana, as accessed on August 9, 2023, https://cmladlibahna.mp.gov.in/

[53] Budget Speech, Karnataka Budget 2023-24, July 7, 2023, https://finance.karnataka.gov.in/storage/pdf-files/1_BudgetSpeechJULY2023-24(Eng).pdf

[54] Budget Speech, Tamil Nadu Budget 2023-24, March 20, 2023, BS_2023_24_ENG_FINAL.pdf (tn.gov.in)

[55] Starred Question No. 607, Himachal Pradesh Vidhan Sabha, April 4, 2023.

[56] No. 3399-WCD/12099/5/2021, Women and Child Development and Social welfare Department, Government of West Bengal, July 7, 2021, https://wbxpress.com/files/2022/01/3399-WCD.pdf

[57] Chapter 9: Universal Basic Income: A Conversation With and Within the Mahatma, Economic Survey 2016-17, January 2017, https://www.indiabudget.gov.in/budget2017-2018/es2016-17/echapter.pdf

[58] Chapter 9: Revised Roadmap for Fiscal Consolidation, Volume I, 13th Finance Commission, December 2009, https://smartnet.niua.org/sites/default/files/resources/13fcreng.pdf.  

[59] Unstarred Question No. 1500, Ministry of Finance, Rajya Sabha, March 14, 2023, https://sansad.in/getFile/annex/259/AU1500.pdf?source=pqars

[60] Fiscal Rules and Fiscal Councils: Recent Trends and Performance During the COVID-19 Pandemic, International Monetary Fund, January 2022, https://www.imf.org/external/datamapper/fiscalrules/Working%20Paper%20-%20Fiscal%20Rules%20and%20Fiscal%20Councils%20-%20Recent%20Trends%20and%20Performance%20during%20the%20Pandemic.pdf

[61] Chapter 13: Fiscal Architecture for Twenty-First Century India, Volume-I, Main report, 15th Finance Commission, October 2020, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf.

[62] Medium Term Fiscal Plan, Odisha Budget Documents 2023-24, February 24, 2023, https://finance.odisha.gov.in/sites/default/files/2023-02/FRBM%20fINAL_0.pdf

[63] Status Paper on Public Debt in Odisha, Finance Department, Government of Odisha, February 2023, https://finance.odisha.gov.in/sites/default/files/2023-02/Public%20Debt_0.pdf

[64] Fiscal Policy Strategy Statement, Odisha Budget Documents 2023-24, February 24, 2023, https://finance.odisha.gov.in/sites/default/files/2023-02/FRBM%20fINAL_0.pdf.

 

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