कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय दो विभागों में बंटा हुआ है: (i) कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण, जोकि किसान कल्याण से संबंधित नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करता है और कृषि इनपुट्स का प्रबंधन करता है, और (ii) कृषि अनुसंधान और शिक्षा जोकि कृषि अनुसंधान का समन्वय और संवर्धन करता है।[1] यह नोट मंत्रालय के बजट आबंटनों और व्यय की समीक्षा एवं कृषि क्षेत्र से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करता है।
वित्तीय स्थिति
मंत्रालय को 2023-24 में 1,25,036 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2022-23 के संशोधित अनुमान से 5% अधिक है।[2],[3] कुल केंद्रीय बजट में कृषि मंत्रालय का हिस्सा 2.8% है। यह वृद्धि कुछ योजनाओं, जैसे संशोधित ब्याज अनुदान योजना (5%) और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (10%) के आवंटन में मामूली वृद्धि के कारण हुई है।
तालिका 1: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के लिए बजट आवंटन (करोड़ रुपए में)
|
21-22 वास्तविक |
संअ 22-23 |
बअ |
परिवर्तन का % (संअ से बअ) |
किसान कल्याण |
1,14,468 |
1,10,255 |
1,15,532 |
5% |
कृषि अनुसंधान |
8,368 |
8,659 |
9,504 |
10% |
मंत्रालय |
1,22,836 |
1,18,913 |
1,25,036 |
5% |
स्रोत: अनुदान मांग 2023-24, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय; पीआरएस।
मंत्रालय के अनुमानित व्यय का 77% तीन योजनाओं के लिए आवंटित किया गया है (तालिका 2 देखें)। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) के लिए आवंटन, जो मंत्रालय के तहत सबसे बड़ी योजना है, 2022-23 के संशोधित अनुमानों के समान ही 60,000 करोड़ रुपए है। 2021-22 के वास्तविक व्यय और 2022-23 के बजटीय व्यय से आवंटन घटा है।
तालिका 2: प्रमुख योजनाओं के लिए आवंटन (करोड़ रुपए में)
21-22 वास्तविक |
संअ 22-23 |
बअ |
परिवर्तन का % (संअ से बअ) |
|
पीएम किसान |
66,825 |
60,000 |
60,000 |
0% |
ब्याज सबसिडी * |
21,477 |
22,000 |
23,000 |
5% |
फसल बीमा |
13,549 |
12,376 |
13,625 |
10% |
नोट: किसान योजना के अल्पावधि ऋण के लिए ब्याज सबसिडी को 2022 में संशोधित ब्याज अनुदान योजना में पुनर्गठित किया गया था।
स्रोत: अनुदान मांग 2023-24, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय; पीआरएस।
बजट भाषण में नीतिगत प्रस्ताव अपने 2023-24 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कृषि क्षेत्र से संबंधित निम्नलिखित प्रस्ताव पेश किए:
|
धनराशि का उपयोग
पिछले 10 वर्षों में मंत्रालय का धनराशि उपयोग 70% से अधिक रहा है। मंत्रालय 2016-17 में आवंटित धन का 100% उपयोग करने में सक्षम था। पीएम-किसान के कारण 2019-20 में मंत्रालय के आवंटन में 141% की वृद्धि हुई। 2023-24 में मंत्रालय का 48% आवंटन पीएम-किसान के लिए है। हालांकि 2018-19 में धनराशि का उपयोग 93% से घटकर 2019-20 में 73% हो गया। 2021-22 में 93% उपयोग किया गया था।
रेखाचित्र 1: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा धनराशि का उपयोग (करोड़ रुपए में)
स्रोत: विभिन्न वर्षों के लिए व्यय बजट; पीआरएस।
कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए 2007 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) शुरू की गई थी।[4] यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो राज्यों को उनकी योजनाओं के अनुसार कृषि विकास गतिविधियों को चुनने में सक्षम बनाती है।4 प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना-प्रति बूंद अधिक फसल, परंपरागत कृषि विकास योजना, मृदा और स्वास्थ्य उर्वरता पर राष्ट्रीय परियोजना, वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास और जलवायु परिवर्तन, फसल अवशेषों के प्रबंधन सहित कृषि यंत्रीकरण उप-मिशन जैसी अन्य योजनाओं को शामिल करने के लिए 2022-23 के बजट के तहत इसका पुनर्गठन किया गया था।[5] 2023-24 में आरकेवीवाई के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को हस्तांतरित करने के लिए 7,150 रुपए आवंटित किए गए हैं। 2023-24 के लिए आवंटन 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 2% अधिक है। योजना के तहत 2019-20 और 2021-22 के बीच 18 राज्यों में 518 करोड़ रुपए की परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है।[6]
विचारणीय मुद्दे
कृषि क्षेत्र कई समस्याओं का सामना करता है जैसे कम विकास, किसानों का बड़ी संख्या में ऋणग्रस्त होना, कच्चे माल की उच्च लागत, भूजोत का खंडित होना और कृषि क्षेत्र में पूंजी निवेश की कमी। 2016-17 के केंद्रीय बजट में सरकार ने घोषणा की कि किसानों की आय 2015-16 के स्तर से 2022-23 तक दोगुनी हो जाएगी।[7]
किसानों की दोगुनी आय
इस लक्ष्य को प्राप्त करने की रणनीतियां का सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया गया था जिसने सितंबर 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।[8] उसने सुझाव दिया कि केवल कृषि उत्पादन बढ़ाने की नीतियां न बनाई जाएं क्योंकि उत्पादन में वृद्धि से हमेशा किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो सकती है। उसने कहा था कि इनपुट मूल्य, उपयोग किए गए इनपुट का स्तर और आउटपुट की कीमत का भी किसानों की आय पर प्रभाव पड़ता है।[9] इसलिए उसने सुझाव दिया था कि उत्पादन के स्तर में वृद्धि के साथ, उत्पादन की लागत को कम किया जाना चाहिए, कृषि उपज के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए, और टिकाऊ प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिए।9 मंत्रालय के पास किसानों को आय सहायता प्रदान करने के लिए पीएम-किसान जैसी कई योजनाएं हैं। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जो फसल बीमा प्रदान करती है, और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, जो सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देती है। कृषि ऋण तक पहुंच में सुधार करने और डिजिटलीकरण, अनुबंध खेती की शुरुआत और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को बढ़ावा देने के माध्यम से कृषि बाजारों में सुधार के प्रयास किए गए हैं।
हाल के आंकड़ों के अभाव में यह स्पष्ट नहीं है कि 2022-23 में किसानों की आय दोगुनी हुई है या नहीं। उल्लेखनीय है कि किसान आय से संबंधित नए आंकड़े 2018-19 के अनुसार है (तालिका 3 देखें)। एक कृषि परिवार की औसत मासिक आय 2015-16 में 8,059 रुपए थी, जो 2018-19 में बढ़कर 10,218 रुपए हो गई।9,[10]
तालिका 3: कृषि परिवारों की औसत मासिक आय
वर्ष |
प्रति कृषक परिवार औसत मासिक आय |
2002-03 |
2,115 |
2012-13 |
6,426 |
2015-16 |
8,059 |
2018-19 |
10,218 |
2022-23 |
उपलब्ध नहीं |
नोट: किसानों की दोगुनी आय से संबंधित कमिटी द्वारा दर्ज वार्षिक आय (मौजूदा मूल्यों पर) से 2015-16 की आय निकाली गई है।
स्रोत: एमओएसपीआई; किसानों की दोगुनी आय से संबंधित कमिटी, 2017; पीआरएस।
आंकड़ों के अभाव में आय वृद्धि को समझने के लिए कृषि जीडीपी की समीक्षा की जा सकती है। कृषि जीडीपी कृषि वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन से उत्पन्न कुल आय को दर्शाती है। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि जीडीपी भी दोगुनी होनी चाहिए, बशर्ते किसानों की संख्या वही रहे।
2015-16 और 2022-23 के बीच, मौजूदा कीमतों (यानी, मुद्रास्फीति सहित) पर कृषि सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) 25 लाख करोड़ रुपए से दोगुना होकर 51 लाख करोड़ रुपए (11% वृद्धि) हो गया।[11] उल्लेखनीय है कि कृषि जीवीए (मौजूदा मूल्यों पर) पिछले 30 वर्षों में हर आठ वर्ष में दोगुनी हुआ है।11 वास्तविक रूप में, यानी मुद्रास्फीति को समायोजित करते हुए कृषि जीवीए में 1.3 गुना की वृद्धि हुई। कृषि विकास वास्तविक रूप से अस्थिर रहा है और 2021-22 में 4% की तुलना में 2022-23 में इस क्षेत्र के 3% बढ़ने का अनुमान है।
रेखाचित्र 2: कृषि विकास (स्थिर कीमतों पर) अस्थिर
नोट: * तीसरा संशोधित अनुमान; ** दूसरा संशोधित अनुमान; # पहला संशोधित अनुमान; $अनंतिम अनुमान; ^ अग्रिम अनुमान। विकास में कृषि, वानिकी, मत्स्य और खनन एवं उत्खनन शामिल हैं।
स्रोत: भारत का आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23; पीआरएस।
न्यूनतम समर्थन मूल्य
सरकार ने कृषि मार्केटिंग में सुधार और किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए हैं। इनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कुछ फसलों की खरीद शामिल है। किसी मौसम के लिए एमएसपी निर्धारित करने के लिए उत्पादन की लागत, मूल्य रुझान और उत्पादन लागत पर 50% मार्जिन सुनिश्चित करने जैसे कारकों का उपयोग किया जाता है। 2023-24 के लिए गेहूं की एमएसपी 2,125 रुपए प्रति क्विंटल तय की गई है।[12] गेहूं की साल भर की खेती की लागत 1,065 रुपए है। 2022-23 के लिए धान की एमएसपी 2,040 रुपए प्रति क्विंटल तय की गई है और उसकी खेती की लागत 1,360 रुपए है।[13]
रेखाचित्र 3: धान और गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि
स्रोत: कृषि लागत और मूल्य आयोग; पीआरएस।
किसानों पर राष्ट्रीय आयोग (2006) ने सुझाव दिया था कि एमएसपी उत्पादन की भारित लागत से कम से कम 50% अधिक होनी चाहिए। मंत्रालय ने 2018-19 में उस सुझाव को मंजूर किया और सभी खरीफ और रबी फसलों के लिए एमएसपी को बढ़ाया गया ताकि कम से कम 50% उत्पादन लागत की वापसी हो सके।[14] मंत्रालय चीनी मिलों द्वारा गन्ने की खरीद के लिए उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) भी तय करता है। 2022-23 के लिए एफआरपी 305 रुपए प्रति क्विंटल तय किया गया था।[15]
हस्तांतरण के माध्यम से आय समर्थन
किसानों की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें आय हस्तांतरण की सुविधा प्रदान की जा रही है। पीएम-किसान एक प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना है जिसे फरवरी 2019 में शुरू किया गया था।[16] इसके तहत भूमिहीन किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपए (2,000 रुपए की तीन किस्तों में) की आय सहायता प्रदान की जाती है।[17] 2023-24 में योजना के लिए 60,000 रुपए आवंटित किए गए थे जो पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों के समान थे। इस योजना को मंत्रालय से उच्चतम आवंटन (48%) प्राप्त होता है।
बढ़ती ग्रामीण मुद्रास्फीति के साथ निरंतर आय हस्तांतरण: पीएम-किसान को दिसंबर 2018 में चालू किया गया था और इसका उद्देश्य किसानों को फसल की सेहत और उपज सुनिश्चित करने के लिए इनपुट की खरीद में सक्षम बनाना है।17 वर्तमान में सभी भूमिधारक किसान परिवार इसके दायरे में आते हैं, चाहे भूजोत का आकार कुछ भी हो। 2019-20 और 2021-22 के बीच प्रत्येक परिवार को वितरित की जाने वाली राशि स्थिर (6,000 रुपए) रही है। हालांकि इस अवधि के दौरान ग्रामीण मुद्रास्फीति 4-6% के बीच थी।[18] ग्रामीण मुद्रास्फीति में सब्जियों, आवास और परिवहन की कीमतें शामिल हैं।
रेखाचित्र 4: पीएम-किसान के तहत हस्तांतरण (रुपए में) और ग्रामीण मुद्रास्फीति (% में)
स्रोत: भारतीय अर्थव्यवस्था पर डेटाबेस, भारतीय रिजर्व बैंक; परिचालन दिशानिर्देश, पीएम-किसान; पीआरएस।
2021-22 में पीएम-किसान पर 66,825 करोड़ रुपए खर्च किए गए। 2022-23 के संशोधित अनुमानों के अनुसार, योजना पर केवल 60,000 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है जो वर्ष के बजट अनुमान 68,000 करोड़ रुपए से कम है। तालिका 4 योजना की स्थापना के बाद से इस पर व्यय को दर्शाती है।
तालिका 4: लाभार्थी और पीएम-किसान के तहत जारी की गई राशि
अवधि |
लाभार्थियों की संख्या (लाख में) |
वास्तविक व्यय (करोड़ में) |
दिसंबर 2018 - मार्च 2019 |
316 |
6,322 |
अप्रैल 2019 - जुलाई 2019 |
600 |
|
अगस्त 2019 - नवंबर 2019 |
766 |
48,723 |
दिसंबर 2019 - मार्च 2020 |
820 |
|
अप्रैल 2020 - जुलाई 2020 |
927 |
|
अगस्त 2020 - नवंबर 2020 |
972 |
61,927 |
दिसंबर 2020 - मार्च 2021 |
985 |
|
अप्रैल 2021 - जुलाई 2021 |
998 |
67,032 |
अगस्त 2021 - नवंबर 2021 |
1,034 |
|
दिसंबर 2021 - मार्च 2022 |
1,041 |
स्रोत: लोकसभा अतारांकित प्रश्न संख्या 1054 और 1150, पीआरएस।
हस्तांतरण के लिए अपात्र खेतिहर मजदूर: पीएम-किसान योजना के लाभार्थियों में केवल वे किसान शामिल हैं जिनके पास खेती योग्य भूमि है। इस योजना में कृषि मजदूरों को शामिल नहीं किया गया है जो देश में कृषि श्रमिकों का 55% हिस्सा हैं।[19] खेतिहर मजदूरों के पास जमीन नहीं होती है और वे दूसरे की जमीन पर काम करते हैं। वे मजदूरी या फसल में हिस्से के माध्यम से आय अर्जित करते हैं।[20] खेतिहर मजदूरों में किसान और मजदूर शामिल हैं। कुल कृषि श्रमिकों में भूमिहीन खेतिहर मजदूरों की हिस्सेदारी 1951 में 28% से बढ़कर 2011 में 55% हो गई है।19 कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा कि काश्तकार किसान, जो कई राज्यों में भूमिहीन किसानों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, को आय समर्थन लाभ नहीं मिलता है।[21] उसने सरकार से राज्यों के साथ समन्वय करते हुए इस मुद्दे की समीक्षा करने का सुझाव दिया ताकि भूमिहीन किसान भी योजना के तहत लाभ प्राप्त कर सकें।
रेखाचित्र 5: कृषि मजदूरों का अनुपात बढ़ रहा है
स्रोत: कृषि सांख्यिकी एक नज़र 2021; पीआरएस।
किसान पेंशन
2019 में शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना (पीएमकेएमवाई), दो हेक्टेयर तक की खेती योग्य भूमि वाले छोटे और सीमांत किसानों को पेंशन प्रदान करने के लिए एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है।[22],[23] पात्र लाभार्थी कम से कम 3,000 रुपए की मासिक पेंशन के हकदार हैं। नवंबर 2019 तक 18.8 लाख किसानों ने योजना के तहत पंजीकरण कराया है।[24] 18-40 आयु वर्ग के किसान योजना के तहत पात्र हैं। 2023-24 में इस योजना को 2022-23 में 50 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान के मुकाबले 100 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जिसका अर्थ है 15,000 से कम किसानों का कवरेज। 2021-22 में मंत्रालय ने 40 करोड़ रुपए खर्च किए।
जलवायु परिवर्तन और कृषि
कृषि उत्पादन जलवायु में परिवर्तन से प्रभावित होता है क्योंकि उच्च तापमान फसल की पैदावार को कम करता है और कीटों के संक्रमण को बढ़ाता है।[25] वर्षा आधारित कृषि मुख्य रूप से प्रभावित होती है क्योंकि बारिश के दिन कम-ज्यादा होने से उस पर असर होता है।[26] नेशनल इनोवेशंस इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) के एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से चावल, गेहूं और मक्का जैसी फसलों की पैदावार प्रभावित होने की आशंका है।[27] चावल और गेहूं पर अध्ययन से पता चलता है कि गेहूं अधिकतम तापमान के बढ़ने और हीटवेव्स के प्रति संवेदनशील है, जबकि चावल क्षेत्र में न्यूनतम तापमान में वृद्धि के प्रति।27
रेखाचित्र 6: गेहूं का उत्पादन (मिलियन टन में)
स्रोत: कृषि एवं किसान कल्याण विभाग; पीआरएस।
2014-15 और 2021-22 के बीच देश में कुल गेहूं का उत्पादन लगातार 3% सीएजीआर की दर से बढ़ रहा है।[28] भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, मार्च 2022 में भारत के कुछ क्षेत्रों में लू का अनुभव हुआ।[29] अधिकतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस था जो सामान्य से 2 डिग्री अधिक था। यूएस फॉरेन एग्रीकल्चर सर्विस के एक अध्ययन के अनुसार मार्च 2022 में गेहूं की उपज, गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में अनुमान से 11% कम थी।[30] रिपोर्ट बताती है कि उपज पूर्वानुमान के अनुरूप नहीं थी क्योंकि गेहूं के लिए अनाज भरने (अंतिम) वाली अवधि के दौरान रिकॉर्ड उच्च तापमान देखा गया था।30 उल्लेखनीय है कि 2021-22 में गेहूं के उत्पादन में दो मिलियन टन की गिरावट आई है।[31]
इसी प्रकार अक्टूबर 2022 के पहले दो हफ्तों में भारी बारिश के कारण पांच राज्यों में धान, कपास, उड़द, सब्जियां, सोयाबीन और बाजरा जैसी फसलें प्रभावित हुईं।[32] आंध्र प्रदेश में इस अवधि के दौरान भारी बारिश के कारण 7,178 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र प्रभावित हुआ। नेशनल इनोवेशंस इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (एनआईसीआरए) फरवरी 2011 में भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला बनाने के लिए शुरू किया गया था।[33] एनआईसीआरए कृषि पर जलवायु परिवर्तन को कम करने, और तकनीक के फील्ड प्रदर्शनों पर शोध करता है।[34] 2021-22 में इस पहल के लिए 50 करोड़ रुपए का बजट दिया गया जिसमें से 47 करोड़ रुपए असल में खर्च किए गए।3
2022-23 में आवंटन घटकर 41 करोड़ रुपए रह गया। 2023-24 से एनआईसीआरए परियोजना को कृषि वानिकी अनुसंधान (एनआरएआई) सहित प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन संस्थानों के साथ मिला दिया जाएगा जो कृषि उत्पादकता, लाभप्रदता और मृदा स्वास्थ्य में गिरावट की जांच करता है।3 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (जिसमें एनआरएआई और एनआईसीआरए शामिल हैं) के लिए कुल आवंटन 2022-23 में 186 करोड़ रुपए से बढ़कर 2023-24 में 240 करोड़ रुपए (29% वृद्धि) हो गया है।
पराली जलाना कई कृषि पद्धतियां भी स्थानीय वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पराली जलाने से दिल्ली जैसे राज्यों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है।[35] रबी की फसल बोने के लिए किसान पराली जलाकर खेतों की सफाई करते हैं। 35 सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च पोर्टल के अनुसार, अक्टूबर-नवंबर 2019 के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5 के स्तर के प्रदूषण के लिए पराली 2% से 44% तक जिम्मेदार है।[36] पराली को नियंत्रित करने के लिए सरकार पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना, फसल अवशेषों के इन-सीटू प्रबंधन हेतु कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा देती है।36 पंजाब छोटे और सीमांत किसानों को बिना पराली जलाए धान के अवशेषों का प्रबंधन करने के लिए 100 रुपए प्रति क्विंटल का मुआवजा देता है। हरियाणा ने नवंबर 2019 में बिना पराली जलाए धान बेचने वाले किसानों को प्रोत्साहन के रूप में 100 रुपए प्रति क्विंटल प्रदान किया।36 |
फसल बीमा
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) और पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (आरडब्ल्यूबीसीआईएस) को 2016 में शुरू किया गया था। इससे किसानों को बुआई से पहले से लेकर कटाई के बाद के चरण तक ऐसे प्राकृतिक जोखिमों के खिलाफ सस्ता फसल बीमा प्रदान किया जाता है जिनका निवारण नहीं किया जा सकता है।[37] पीएमएफबीवाई के तहत किसान बीमित राशि का 2% तक (खरीफ फसलों के लिए), 1.5% (रबी फसलों के लिए) और 5% (बागवानी फसलों के लिए) प्रीमियम का भुगतान करते हैं। राज्य (उत्तर-पूर्वी राज्यों को छोड़कर) और केंद्र सरकार प्रीमियम को समान रूप से साझा करते हैं। इस योजना को 2020 में किसानों के लिए स्वैच्छिक बनाया गया था।
2023-24 में योजना को 13,625 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2021-22 में किए गए वास्तविक व्यय से 0.5% अधिक है। 2022-23 में योजना के लिए 15,500 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था, हालांकि संशोधित अनुमानों में अनुमानित व्यय (20% तक) घटकर 12,376 करोड़ रुपए रह गया।
तालिका 5: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए आवंटन (करोड़ रुपए में)
वास्तविक 21-22 |
बअ |
संअ |
बअ |
परिवर्तन का % (संअ 22-23 की तुलना में बअ 23-24) |
13,549 |
15,500 |
12,376 |
13,625 |
10% |
स्रोत: मांग संख्या 1, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय; पीआरएस।
2018 और 2022 के बीच योजना के तहत आने वाले किसानों की संख्या में 9% की कमी आई है। इसी तरह बीमित राशि और क्षेत्र में भी 7% और 5% की कमी आई है।
रेखाचित्र 7: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत क्षेत्र और बीमा राशि (2018-2022)
स्रोत: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना डैशबोर्ड; पीआरएस।
योजना को लागू करने से संबंधित मुख्य चुनौतियों में से एक भुगतान में विलंब है।[38] मंत्रालय ने कहा कि दावों के निपटान में देरी निम्नलिखित के कारण होती है: (i) सबसिडी में राज्य के हिस्से को जारी करने में देरी, और (ii) राज्यों द्वारा बीमा कंपनियों को उपज संबंधी आंकड़े देने में देरी।[39] कमिटी ने कहा कि बीमा कंपनियों और राज्यों के बीच उपज से संबंधित विवादों और किसानों के खाते के विवरण प्राप्त न होने के कारण भी देरी हो सकती है।38 उसने बीमा कंपनियों द्वारा दावों के निपटान के लिए एक समय सीमा लागू करने का सुझाव दिया। 2016 से 2020 के बीच राज्य की कुल 4,602 करोड़ रुपए की सबसिडी बकाया थी और उससे संबंधित 3,008 करोड़ रुपए के दावे भी लंबित थे।
कमिटी ने यह भी कहा कि योजना में संशोधन के कारण राज्य सरकारें इससे पीछे हट सकती हैं। उसने उन संशोधनों में भी परिवर्तन का सुझाव दिया जोकि: (i) उन राज्यों की भागीदारी को प्रतिबंधित करते हैं जो सबसिडी जारी करने में देरी करते हैं, और (ii) राज्य सरकारों के लिए उन फसलों पर पूरी सबसिडी देना अनिवार्य करते हैं, जिनका प्रीमियम निर्दिष्ट दर से अधिक है। मंत्रालय ने कहा कि प्रीमियम सबसिडी के अपने हिस्से का भुगतान न कर पाने के कारण कई राज्यों ने योजना से बाहर होने का विकल्प चुना है।
कुछ राज्यों की अपनी फसल बीमा योजनाएं हैं। उदाहरण के लिए झारखंड में एक फसल राहत योजना है, जहां फसल क्षति के मामले में बीमा प्रीमियम घटक के बिना वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।[40] पश्चिम बंगाल की अपनी फसल बीमा योजना भी है जो सभी किसानों को कवर करती है। राज्य 90% तक की क्षतिपूर्ति के साथ कुछ निर्दिष्ट फसलों जैसे गेहूं, मक्का, मूंग, गन्ना और धान का बीमा करता है। [41]
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र के संवेदनशील होने की आशंका जताई है और कहा है कि पीएमएफबीवाईएस में आवश्यक बदलाव किए जा सकते हैं।[42]
अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष भारत में मोटा अनाज मुख्य रूप से एक खरीफ फसल है जिसमें अन्य फसलों की तुलना में कम पानी और इनपुट्स की जरूरत होती है। 2021-22 में मोटे अनाज का कुल उत्पादन 107 मिलियन टन था, जबकि गेहूं का 118 मिलियन टन।31 संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मोटे अनाज के उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने के लिए 2023 को ‘मोटा अनाज वर्ष’ घोषित किया।[43] भारत ने मोटे अनाज के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए उसने अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के लिए एफएओ को पांच लाख USD का योगदान दिया।[44] मोटे अनाज की घरेलू खपत और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उत्पादों और स्टार्टअप्स को सहयोग दिया जा रहा है।44 मार्च 2021 में खाद्य प्रोसेसिंग उद्योग के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव स्कीम शुरू की गई थी।[45] रेडी टू ईट फूड्स के लिए मैन्यूफैक्चरिंग संबंधी प्रोत्साहन सहित इसका परिव्यय 10,900 करोड़ रुपए है। इन खाद्य पदार्थों में मोटा अनाज आधारित उत्पाद, समुद्री उत्पाद और प्रोसेस्ड फल और सब्जियां शामिल हैं।[46] रेखाचित्र 8: मोटे अनाज और गेहूं का उत्पादन (मिलियन टन में)
*चौथा अग्रिम अनुमान। |
भूजोत का खंडित होना
भूजोत के टुकड़े टुकड़े होने और खेतिहर मजदूरों की संख्या बढ़ने से कृषि उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। भारत के कृषि क्षेत्र में सीमांत और छोटी भूजोतों की संख्या बहुत अधिक है।[47] पिछले कई दशकों में कृषि जोत की संख्या में वृद्धि हुई है जबकि खेती के तहत क्षेत्र में कमी आई है। इससे जोत के औसत आकार में कमी आई है।[48] गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए उसके इस्तेमाल के कारण खेती के तहत आने वाले क्षेत्र में कमी आई है।47
भूजोत के खंडित होने से कृषि विकास प्रभावित हो सकता है क्योंकि इसका मतलब यह है कि कृषि पर कम पूंजीगत व्यय होता है। छोटे किसानों को नलकूपों, ड्रिप सिंचाई, थोक कच्चे माल या उपज के स्टोरेज के लिए निवेश करने में कठिनाई होती है।21 जमीन के कंसॉलिडेशन से कृषि उत्पादकता में सुधार किया जा सकता है। 2005-06 और 2015-16 के बीच सीमांत और छोटी जोत का हिस्सा बढ़ा है, जबकि मध्यम और बड़ी जोत का अनुपात कम हुआ है (रेखाचित्र 9 देखें)। सीमांत जोतों का क्षेत्रफल एक हेक्टेयर से कम होता है। 1951 और 2011 के बीच खेतिहर मजदूरों की संख्या में 1.7% की वृद्धि हुई।19 किसानों की दोगुनी आय से संबंधित समिति (2017) ने सुझाव दिया था कि कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए खेतिहर मजदूरों का कृषि क्षेत्र से बाहर जाना जरूरी है।
रेखाचित्र 9: भूमि जोत का श्रेणी-वार हिस्सा (2005-06 से 2015-16)
स्रोतः पॉकेटबुक ऑफ एग्रीकल्चरल स्टैटिस्टिक्स 2020; पीआरएस।
भूमि सुधार राज्य कृषि संबंधों और भूमि सुधार में अधूरा कार्य (2017) संबंधित समिति ने कहा था कि संविधान के तहत पुनर्वितरित न्याय और समानता प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है और इसीलिए भूमि सुधार जरूरी हैं।[49] उसने यह भी कहा था कि छोटे खेत भूमि के उपयोग में अधिक कुशल होते हैं, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और ग्रामीण रोजगार प्रदान करते हैं। उसने सुझाव दिया था कि भूमि की सीमा को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू किया जाना चाहिए, और अधिक से अधिक दो एकड़ गीली भूमि और पांच एकड़ सूखी भूमि आवंटित की जानी चाहिए। किसानों पर राष्ट्रीय आयोग (2004) (अध्यक्ष: एम.एस. स्वामीनाथन) ने कहा था कि कृषि में भूमि एक सिकुड़ता हुआ संसाधन है। अनाज, फल और सब्जियों के उत्पादन में सुधार के लिए कृषि योग्य भूमि की प्रति इकाई उत्पादकता में सुधार होना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि सीलिंग अधिशेष भूमि का पुनर्वितरण किया जाना चाहिए और मुख्य कृषि भूमि को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए कॉरपोरेट क्षेत्र को नहीं दिया जाना चाहिए। उसने भूमि की मात्रा, प्रस्तावित उपयोग की प्रकृति और खरीदार की श्रेणी के आधार पर कृषि भूमि की बिक्री को रेगुलेट करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने का भी सुझाव दिया था। |
सकल पूंजी निर्माण संपत्ति निर्माण में निवेश के स्तर को दर्शाता है। कृषि उत्पादन में सकल पूंजी निर्माण की हिस्सेदारी 2011-12 में 18% से घटकर 2020-21 में 14% हो गई है। निजी निवेश का हिस्सा सार्वजनिक निवेश के हिस्से से कहीं अधिक रहा है (रेखाचित्र 10 देखें)।
रेखाचित्र 10: कृषि जीवीए में सकल पूंजी निर्माण का हिस्सा (मौजूदा मूल्यों पर)
*तीसरा संशोधित अनुमान ** दूसरा संशोधित अनुमान # पहला संशोधित अनुमान।
स्रोत: कृषि सांख्यिकी एक नज़र 2021; पीआरएस।
कृषि ऋण
लाभदायक खेती के लिए पर्याप्त, समय पर और कम लागत वाले ऋण की उपलब्धता और पहुंच आवश्यक है।[50] पिछले कुछ वर्षों में किसानों को उपलब्ध संस्थागत ऋण की मात्रा में वृद्धि हुई है। हालांकि ग्रामीण ऋणग्रस्तता में वृद्धि हुई है और ऋण को मुख्य रूप से खेती में राजस्व व्यय या आवर्ती घरेलू व्यय को पूरा करने के लिए उपयोग किया जा रहा है।
पिछले 10 वर्षों में किसानों द्वारा प्राप्त किए गए कुल संस्थागत ऋण में सीएजीआर 7.8% की वृद्धि हुई है।19 2021-22 में मंत्रालय ने किसानों को 16.5 लाख करोड़ रुपए का ऋण प्रदान करने का लक्ष्य रखा था।[51] यह अपने लक्ष्य से 13% अधिक है। इसका लक्ष्य 2022-23 में कृषि ऋण के रूप में 18.5 लाख करोड़ रुपए प्रदान करना है। चूंकि ऋण तक पहुंच बढ़ी है, 2012-13 से अल्पावधि ऋण का अनुपात कम हो रहा है (रेखाचित्र 11 देखें)। हालांकि यह 2020-21 में 57% से बढ़कर 2021-22 (दिसंबर 2022 तक) में 60% हो गया। अल्पकालिक ऋण का एक उच्च हिस्सा दर्शाता है कि किसान लंबी अवधि के निवेश के वित्तपोषण के बजाय अपनी आवर्ती व्यय की जरूरतों को पूरा करने के लिए उधार ले रहे हैं।
रेखाचित्र 11: कृषि क्षेत्र द्वारा प्राप्त संस्थागत ऋण का प्रवाह (लाख करोड़ रुपए में)
*12 दिसंबर, 2021 तक
स्रोत: कृषि सांख्यिकी एक नज़र में (2021); पीआरएस।
संस्थागत ऋण वाणिज्यिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, बीमा कंपनियों, नियोक्ताओं या गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों से लिए गए ऋणों को कहा जाता है।[52] गैर-संस्थागत ऋण जमींदारों, कृषि साहूकारों, मित्रों और परिवार, या पेशेवर साहूकारों से लिए गए ऋण को कहा जाता है। कुल ऋण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा परिसंपत्ति निर्माण में खर्च नहीं किया जा रहा है। दिसंबर 2019 तक संस्थागत ऋण का 25% हिस्सा कृषि व्यवसाय में राजस्व व्यय को पूरा करने के लिए उपयोग किया गया था, जबकि 20% पूंजीगत व्यय के लिए उपयोग किया गया था।[53] 31% गैर-संस्थागत ऋण का उपयोग घरेलू खर्च को पूरा करने के लिए किया गया, इसके बाद आवास के लिए ऋण (17%) का स्थान रहा।53
रेखाचित्र 12: कृषि ऋण का उद्देश्य
स्रोत: अखिल भारतीय ऋण और निवेश सर्वेक्षण 2019; पीआरएस।
कम ब्याज वाले संस्थागत ऋण की उपलब्धता में वृद्धि के बावजूद, 2003 की तुलना में कृषि ऋणग्रस्तता में वृद्धि हुई है।53 दिसंबर 2019 तक सभी कृषि परिवारों में से आधे कर्जदार हैं जिनका औसत बकाया ऋण 74,121 रुपए है।
तालिका 6: कृषक परिवारों में ऋणग्रस्तता के मामले
वर्ष |
संख्या (लाख में) |
ऋणग्रस्तता का % |
औसत बकाया ऋण राशि |
2003 |
894 |
49% |
12,585 |
2013 |
902 |
52% |
47,000 |
2019 |
930 |
50% |
74,121 |
स्रोत: विभिन्न वर्षों के लिए स्थिति आकलन सर्वेक्षण; पीआरएस।
कृषि ऋण योजनाएं
सरकार ने कृषि और संबद्ध गतिविधियों में शामिल किसानों के लिए 7% की वार्षिक ब्याज दर पर तीन लाख तक का अल्पावधि कृषि ऋण प्रदान करने के लिए 2006-07 में ब्याज सबवेंशन योजना शुरू की।[54] ऋणों के शीघ्र और समय पर पुनर्भुगतान के लिए अतिरिक्त 3% सबवेंशन भी प्रदान किया जाता है। योजना को 2022 में संशोधित किया गया था।[55] संशोधित योजना के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों या सहकारी बैंकों जैसे ऋण देने वाले संस्थानों को 2022-23 से 2024-25 तक 1.5% ब्याज सबवेंशन प्रदान किया जाता है।
तालिका 7: कृषि ऋण योजनाओं के लिए आवंटन (करोड़ रुपए में)
वास्तविक 21-22 |
संअ 22-23 |
बअ 23-24 |
परिवर्तन का % (संअ की तुलना में बअ) |
|
ब्याज सबसिडी* |
21,477 |
22,000 |
23,000 |
5% |
नोट: किसान योजना के अल्पावधि ऋण के लिए ब्याज सबसिडी को 2022 में संशोधित ब्याज अनुदान योजना में पुनर्गठित किया गया था।
स्रोत: अनुदान मांग 2023-23, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय; पीआरएस।
2015 में भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के तहत वित्तीय समावेशन पर मध्यम-अवधि मार्ग समिति ने कहा था कि यह योजना अल्पकालिक फसली ऋणों के लिए है और इसलिए यह दीर्घकालिक ऋण प्रदान नहीं करती, और भेदभाव करती है।[56] अल्पावधि के फसल ऋण का उपयोग कटाई पूर्व गतिविधियों जैसे निराई, छंटाई, कटाई और परिवहन के लिए किया जाता है। कृषि मशीनरी और उपकरण, या सिंचाई में निवेश करने के लिए लंबी अवधि के ऋण लिए जाते हैं। कमिटी ने कहा कि यह योजना दीर्घकालिक पूंजी निर्माण को प्रोत्साहित नहीं करती है, जो कि क्षेत्र में उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है।
तालिका 8: ब्याज सबवेंशन योजना के तहत आवंटित और जारी की गई धनराशि (करोड़ रुपए में)
वर्ष |
आवंटित |
जारी |
जारी की गई धनराशि का % |
2016-17 |
15,000 |
13,397 |
89% |
2017-18 |
15,000 |
13,046 |
87% |
2018-19 |
15,000 |
11,496 |
77% |
2019-20 |
18,000 |
16,219 |
90% |
2020-21 |
21,175 |
17,790 |
84% |
2021-22* |
19,468 |
8,223 |
42% |
* 20 जनवरी, 2022 तक। स्रोत: विभिन्न वर्षों का व्यय बजट; पीआरएस।
किसानों की आय दोगुनी करने से संबंधित समिति (2017) ने सुझाव दिया था कि केंद्र और राज्य सरकारों को किसानों, विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों द्वारा लिए गए दीर्घकालिक या निवेश ऋण पर ब्याज सबसिडी प्रदान करनी चाहिए।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना 1998 में शुरू की गई थी ताकि किसानों को बीज, उर्वरक या कीटनाशक जैसे कृषि इनपुट खरीदने में मदद दी जा सके।[57] संबद्ध और गैर-कृषि गतिविधियों में भी किसानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए इसे 2004 में बढ़ाया गया था। संशोधित किसान क्रेडिट कार्ड योजना (2020) निम्नलिखित जरूरतों को पूरा करने के लिए सिंगल विंडो के जरिए बैंकिंग ऋण प्रदान करने का प्रयास करती है: (i) फसलों की खेती के लिए अल्पावधि ऋण की आवश्यकता, (ii) फसल कटाई के बाद का खर्च, (iii) उपज मार्केटिंग ऋण, (iv) कृषि परिसंपत्तियों के रखरखाव के लिए कार्यशील पूंजी, और (v) किसान परिवार की खपत संबंधी आवश्यकताएं।
छोटे और सीमांत किसान, बटाईदार, काश्तकार किसान और स्वयं सहायता समूह योजना के लाभार्थियों के रूप में पात्र हैं। 2022-23 में, 11 नवंबर, 2022 तक 4 लाख करोड़ रुपए की ऋण सीमा के साथ 377 लाख आवेदन स्वीकृत किए गए हैं।[58]
तालिका 9: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत लाभार्थियों की संख्या
वर्ष |
जारी किए गए कार्ड्स की संख्या (लाख में) |
मंजूर राशि (करोड़ में) |
2019-20 |
109 |
36,350 |
2020-21 |
82 |
2,34,420 |
2021-22 |
75 |
3,19,751 |
2022-23 |
48 |
2,17,710 |
नोट: 2019-20 की राशि में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के आंकड़े शामिल नहीं है क्योंकि उस समय आंकड़ों का रखरखाव नहीं किया गया था। 2022-23 का आंकड़ा सितंबर 2022 तक का है।
स्रोत: लोकसभा अतारांकित प्रश्न संख्या 1051, 13 दिसंबर, 2022 को उत्तर दिया गया; पीआरएस।
उत्पादन के लिए कच्चा माल
उर्वरक सबसिडी और मृदा स्वास्थ्य
रसायन और उर्वरक मंत्रालय उर्वरकों के उत्पादन, वितरण और मूल्य निर्धारण के लिए जिम्मेदार है। हालांकि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इसकी आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए जिम्मेदार है।[59] कृषि मंत्रालय उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भी जिम्मेदार है, अर्थात यह सुनिश्चित करना कि विभिन्न पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उचित संयोजन में उपयोग किया जाता है। उर्वरकों में उपयोग किए जाने वाले तीन प्रमुख पोषक तत्वों में नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटाश (के) शामिल हैं।
उर्वरक सबसिडी: उर्वरकों को यूरिया सबसिडी (जिसमें नाइट्रोजन होता है) और पी और के उर्वरकों के लिए पोषक तत्व आधारित सबसिडी के माध्यम से सबसिडी दी जाती है। उर्वरक निर्माताओं और आयातकों को सबसिडी प्रदान की जाती है ताकि किसान उन्हें सबसिडी दरों पर सीधे खरीद सकें।59 2023-24 में उर्वरक सबसिडी के लिए 1,75,103 करोड़ रुपए का बजट 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 22% कम था। हालांकि 2023-24 के लिए सबसिडी 2022-23 के बजट अनुमान से 66% अधिक है।
2022-23 में उर्वरक सबसिडी के लिए 1,05,222 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था, जो संशोधित स्तर पर बढ़कर 2,25,222 करोड़ रुपए (114% वृद्धि) हो गया। नवंबर 2022 में केंद्र सरकार ने रबी मौसम 2022-23 (1 अक्टूबर, 2022 से 31 मार्च, 2023) के लिए पोषक तत्व आधारित उर्वरकों की सबसिडी दरों में वृद्धि की। वृद्धि मुख्य रूप से स्वदेशी यूरिया के लिए बढ़ी हुई सबसिडी के कारण थी जो उर्वरकों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप थी।
तालिका 10: उर्वरक सबसिडी के लिए आवंटन (करोड़ रुपए में)
सबसिडी |
बअ 22-23 |
संअ 22-23 |
बअ 23-24 |
परिवर्तन का % (संअ 22-23 की तुलना में बअ 23-24) |
यूरिया सबसिडी |
63,222 |
1,54,098 |
1,31,100 |
-15% |
पोषण आधारित सबसिडी |
42,000 |
71,122 |
44,000 |
-38% |
कुल सबसिडी |
1,05,222 |
2,25,222 |
1,75,103 |
-22% |
इनमें आयात |
37,390 |
67,927 |
49,500 |
73% |
स्रोत: अनुदान मांग 2023-24, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय; पीआरएस।
उर्वरक आयात: रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने कहा था कि कच्चे माल और उर्वरकों की अंतरराष्ट्रीय कीमतें पिछले डेढ़ साल से बढ़ रही हैं जिससे आयात महंगा हो गया है।[60] वार्षिक लगभग 25-30% यूरिया आयात किया जाता है।[61] जनवरी 2021 और दिसंबर 2021 के बीच रूस पर प्रतिबंधों और चीन द्वारा निर्यात प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति में व्यवधान हुआ और यूरिया की अंतरराष्ट्रीय कीमत 300 USD प्रति मीट्रिक टन से बढ़कर 1,000 USD प्रति मीट्रिक टन हो गई।61,[62] परिणामस्वरूप उतनी ही मात्रा में उर्वरकों के आयात पर काफी धनराशि खर्च की जा रही है जिसके कारण उर्वरक सबसिडी में बढ़ोतरी हुई है।
रेखाचित्र 13: यूरिया का आयात (2019-20 से 2022-23)
नोट: 2022-23 के आंकड़े दिसंबर 2022 तक के हैं।
स्रोत: लोकसभा अतारांकित प्रश्न 439; पीआरएस।
तालिका 11: रबी मौसम के लिए स्वीकृत सबसिडी दरें (अक्टूबर 2022 - मार्च 2023)
पोषण |
सबसिडी (रुपए/किलो में) |
% परिवर्तन |
|
2021-22 |
2022-23 |
||
नाइट्रोजन |
18.79 |
98.02 |
422% |
फॉसफोरस |
45.32 |
66.93 |
48% |
पोटाश |
10.11 |
23.65 |
134% |
सल्फर |
2.37 |
6.12 |
158% |
स्रोत: प्रेस सूचना ब्यूरो; पीआरएस।
आयात निर्भरता: रसायन और उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि 25% यूरिया, 90% फॉस्फेटिक उर्वरक और 100% पोटाश उर्वरकों का आयात किया जाता है।[63] संसाधनों की अनुपलब्धता या दुर्लभ उपलब्धता के कारण भारत विभिन्न उर्वरकों के आयात पर निर्भर है। अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रभावों को कम करने के लिए कमिटी ने मंत्रालय को निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) पीएसयू के माध्यम से दीर्घकालिक समझौतों पर हस्ताक्षर करके आयात स्रोतों में विविधता लाएं, और (ii) अंतरराष्ट्रीय कीमतों की निगरानी करें और अचानक उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने के लिए बफर स्टॉक बनाएं।61
स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने भी पिछले कुछ वर्षों में उर्वरक सबसिडी पर खर्च में वृद्धि पर गौर किया।[64] कमिटी ने कहा कि सबसिडी प्रदान करना आवश्यक है, फिर भी सरकार की जिम्मेदारी है कि वह कीमतों में वृद्धि किए बिना नए तरीकों को अपनाकर इस खर्च को नियंत्रित करे।64 कमिटी ने सुझाव दिया था कि सरकार को सबसिडी पर अपने खर्च को कम करने के लिए हर संभव कदम उठाने चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित किया जा सकता है: (i) उर्वरक मैन्यूफैक्चरिंग संयंत्रों का आधुनिकीकरण, (ii) मैन्यूफैक्चरिंग की सर्वोत्तम पद्धतियों और सख्त ऊर्जा मानदंडों को अपनाना, और (iii) मैन्यूफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी को लगातार उन्नत करने के लिए एक मजबूत अनुसंधान और विकास आधार का निर्माण करना, ताकि मैन्यूफैक्चरिंग लागत को कम किया जा सके।64
मृदा स्वास्थ्य: उर्वरक सबसिडी की व्यवस्था की समीक्षा करते हुए रसायन एवं उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा कि उर्वरक सबसिडी के कारण कृषि उत्पादकता में जबरदस्त वृद्धि हुई है, और इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद मिली है।64 हालांकि बड़ी मात्रा में सबसिडी के कारण नकारात्मक प्रभाव पड़ा है जैसे कि अधिक उपयोग और असंतुलित उपयोग, जिसके परिणामस्वरूप मिट्टी का क्षरण होता है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना किसानों को मिट्टी की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए 2015 में शुरू की गई थी।[65] कार्ड किसानों को मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता में सुधार के लिए उपयुक्त पोषक तत्वों की खुराक पर सुझाव प्रदान करते हैं।[66]
इस योजना को अब राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में शामिल कर दिया गया है जो कृषि में समग्र विकास सुनिश्चित करने के लिए एक अंब्रेला योजना है।2 रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अनुसार, उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग की आशंका आमतौर पर तब उत्पन्न होती है जब इसे निम्नलिखित के उचित मूल्यांकन के बिना लागू किया जाता है: (i) फसल की पोषण संबंधी जरूरतें, (ii) मिट्टी और अन्य स्रोतों से पोषक तत्वों का योगदान, (iii) उर्वरकों की पोषक उपयोग दक्षता, और (iv) उसके प्रयोग का तरीका, और समय। मृदा परीक्षण व्यवस्था पर राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद (2017) के एक अध्ययन के अनुसार, मृदा स्वास्थ्य कार्ड के सुझावों के आधार पर उर्वरकों के सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग करने से फसल की उपज में 8-10% की बचत और कुल मिलाकर 5-6% की वृद्धि हुई है।[67]
उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग को रोकने के लिए रसायन एवं उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने सुझाव दिया था कि किसानों को उर्वरक सबसिडी उनके बैंक खातों में सीधी दी जाए।64 उसने कहा था कि मैन्यूफैक्चरिंग संयंत्र पुरानी तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे अकुशलता आ रही है। इन अकुशलताओं की लागत की भरपाई सरकार सबसिडी के जरिए करती है। कमिटी ने सुझाव दिया था कि सबसिडी के प्रत्यक्ष अंतरण से ऐसी व्यवस्था कायम होगी जिसमें उर्वरकों की मैन्यूफैक्चरिंग और आयात बाजार की ताकत के जरिए किए जाएंगे।64 अक्टूबर 2016 में उर्वरक विभाग ने उर्वरक सबसिडी भुगतान के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) परियोजना लागू की है। उर्वरक डीबीटी प्रणाली के तहत, खुदरा विक्रेताओं द्वारा लाभार्थियों को वास्तविक बिक्री के आधार पर उर्वरक कंपनियों को विभिन्न उर्वरक ग्रेड पर 100% सबसिडी जारी की जाती है।[68] जून 2020 में एक नोडल कमिटी बनाई गई जो किसानों को उर्वरक सबसिडी के प्रत्यक्ष नकद अंतरण को लागू करने हेतु नीति बनाएगी। 2020 में इसकी दो बैठकें हुईं।68
सिंचाई
भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा वर्षा पर निर्भर है। नलकूपों और नहरों जैसे सिंचाई के मौजूदा स्रोतों से पानी की बर्बादी होती है। इसके अलावा जल की कमी वाले क्षेत्रों में गन्ने जैसी जल सघन फसलें उगाई जा रही हैं। मंत्रालय ने सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शुरू की है।
2018-19 तक देश के शुद्ध बुवाई क्षेत्र का 51% सिंचाई के अधीन था।19 2018-19 तक प्रमुख सिंचाई स्रोतों में नलकूप (49%) और अन्य कुएं (15%), और नहरें (23%) शामिल हैं। नहर और नलकूप जैसे स्रोत बाढ़ सिंचाई तकनीक का उपयोग करते हैं, जहां पानी को खेत में बहने और मिट्टी में रिसने दिया जाता है। इससे पानी की बर्बादी होती है क्योंकि अतिरिक्त पानी मिट्टी में रिस जाता है या बिना उपयोग किए सतह से बह जाता है। यह सुझाव दिया गया है कि किसान जल संरक्षण के लिए बाढ़ सिंचाई से सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली (ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली) की ओर बढ़ें।
सिंचाई के तहत क्षेत्र के कवरेज को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना 2015 में शुरू की गई थी। मंत्रालय ने सूक्ष्म सिंचाई और दूसरे पहल के जरिए जल दक्षता को बढ़ाने के लिए 2021-22 तक 'प्रति बूंद अधिक फसल' घटक को लागू किया। 2022-23 के लिए योजना का घटक राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत जारी है जोकि किसान कल्याण की एक अंब्रेला योजना है। 2013 से 2021 के बीच 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के तहत कवर किया गया है।
धान और गन्ना जैसी कई फसलें उन जिलों में उगाई जाती हैं जहां पानी की कमी होती है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र (जो चीनी के उच्चतम उत्पादकों में से एक है) भूजल की कमी का शिकार है, और यहां सिंचाई के बारहमासी स्रोतों का अभाव है।[69],[70] चीनी का उत्पादन करने वाले कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे अन्य राज्यों में उचित सिंचाई स्रोतों की कमी है। इन राज्यों में गन्ने की खेती उन जिलों में होती है जहां भूजल स्तर अर्ध-संकटपूर्ण श्रेणी में आता है। किसानों पर स्वामीनाथन आयोग ने कहा है कि भूमि-उपयोग को इस तरह से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि उच्च मूल्य वाली फसलों को, जिनके लिए कम पानी की जरूरत हो, पानी की कमी वाले इलाकों में लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
खेती में इस्तेमाल के लिए बिजली सबसिडी गन्ने और धान जैसी जल गहन फसलों को पंप सिंचाई की जरूरत होती है। सिंचाई लागत को कम करने के लिए देश के कई हिस्सों में बिजली सबसिडी दी जाती है। कुछ राज्यों में कृषि के लिए बिजली की आपूर्ति, खपत सीमा के बिना पूरी तरह से मुफ्त है। जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि सबसिडी वाली बिजली ने किसानों को पानी की कमी वाले क्षेत्रों में अधिक पानी वाली फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किया।[71] उदाहरण के लिए पंजाब में 73% रिचार्जेबल भूजल क्षेत्र को अति-दोहित (2022) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।[72],[73] उल्लेखनीय है कि पंजाब ने 2022-23 में बिजली सबसिडी पर खर्च के रूप में 6,395 करोड़ रुपए का बजट रखा था ।[74] इस तरह की सबसिडी सरकारी वित्त को भी प्रभावित करती है। बिजली सबसिडी विभिन्न तरीकों से प्रदान की जाती है: (i) सरकार से वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को सीधे फंड ट्रांसफर करना और (ii) कुछ उपभोक्ताओं से आपूर्ति की लागत से अधिक (क्रॉस सबसिडी) चार्ज करना। पिछले कुछ वर्षों में डिस्कॉम ने लगातार घाटा दर्ज किया है और राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा उनका वहन किया गया है। 2017-18 और 2020-21 के बीच उन्हें तीन लाख करोड़ रुपए का घाटा हुआ। डिस्कॉम को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय), तरलता संचार योजना (2020) और पुनर्गठित वितरण क्षेत्र योजना (2022) जैसी योजनाएं शुरू की गईं। अपर्याप्त मीटरिंग, सरकारी सबसिडी प्राप्त करने में देरी, निर्धारित लागतों की अपर्याप्त वसूली और उच्च क्रॉस सबसिडी जैसे कारणों से नुकसान हो सकता है। डिस्कॉम्स को प्रत्यक्ष अंतरण ने 2020-21 में डिस्कॉम के राजस्व में 20% का योगदान दिया।[75] हालांकि इस तरह की सबसिडी जारी करने में देरी हुई है। बिजली वितरण में प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने के लिए बिजली एक्ट, 2003 निर्दिष्ट करता है कि क्रॉस सबसिडी एक निर्दिष्ट सीमा के भीतर होनी चाहिए, और इसे कुछ वर्षों में कम किया जाना चाहिए।[76] किसानों के लिए सस्ती बिजली और लागत को दर्शाने वाले मूल्य निर्धारण तंत्र की समस्या को हल करने के लिए सबसिडी का प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) प्रस्तावित किया गया है।[77] डीबीटी लक्ष्यीकरण और संवितरण संबंधी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करता है। डीबीटी मॉडल के तहत किसानों को अपनी बिजली खपत के लिए भुगतान करना होगा, और एक आनुपातिक सबसिडी उनके बैंक खातों में हस्तांतरित की जाएगी। |
कृषि मार्केटिंग
अधिकांश राज्यों में कृषि बाजारों को राज्य सरकारों द्वारा स्थापित कृषि उत्पाद मार्केटिंग समितियों (एपीएमसी) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। खरीदारों और विक्रेताओं के बीच उचित व्यापार सुनिश्चित करने के लिए एपीएमसी स्थापित की गई थीं ताकि किसानों की उपज के प्रभावी मूल्य की खोज की जा सके। एपीएमसी निम्नलिखित कर सकती हैं: (i) खरीदारों, कमीशन एजेंटों और निजी बाजारों को लाइसेंस प्रदान करके किसानों की उपज के व्यापार को रेगुलेट करना, (ii) बाजार शुल्क या व्यापार पर कोई अन्य शुल्क लगाना और (iii) अपने बाजारों के भीतर आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना, जिससे व्यापार करना आसान हो।[78] कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2019) ने एपीएमसी कानूनों के कार्यान्वयन से संबंधित समस्याओं पर गौर किया था और कहा था कि उनमें तत्काल सुधार जरूरी हैं।78 कमिटी ने जिन समस्याओं को चिन्हित किया था, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) अधिकांश एपीएमसी में सीमित संख्या में व्यापारी काम कर रहे हैं, जिससे कार्टेलाइजेशन होता है और प्रतिस्पर्धा कम होती है, और (ii) कमीशन शुल्क और बाजार शुल्क के रूप में अनुचित कटौतियां होती हैं। व्यापारी और कमीशन एजेंट खुद को संघों में संगठित करते हैं, जो नए व्यक्तियों को बाजार में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देता और प्रतिस्पर्धा कम होती है।78
संसद ने सितंबर 2020 में तीन कानून बनाए जिनके निम्नलिखित उद्देश्य थे: (i) विभिन्न राज्य एपीएमसी कानूनों के तहत अधिसूचित बाजारों के बाहर किसानों की उपज के बाधा मुक्त व्यापार की सुविधा, (ii) अनुबंध खेती के लिए एक रूपरेखा को परिभाषित करना, और (iii) खुदरा कीमतों में तेज बढ़ोतरी होने की स्थिति में कृषि उपज की स्टॉक सीमा लागू करना।[79],[80],[81] किसानों के बड़े विरोध और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लागू किए गए स्थगन के बाद कृषि कानून रिपील बिल, 2021 के जरिए कानूनों को निरस्त कर दिया गया।[82]
इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाजार पारदर्शी ऑनलाइन प्रतिस्पर्धी बोली प्रणाली के माध्यम से किसानों को उनकी उपज हेतु लाभकारी मूल्य प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय कृषि बाजार (e-NAM) योजना 2015 में शुरू की गई थी।[83] e-NAM की परिकल्पना कृषि वस्तुओं के लिए एक एकीकृत बाजार बनाने के लिए एक राष्ट्रीय व्यापार पोर्टल के रूप में की गई है। जो राज्य अपनी मंडियों को e-NAM के साथ एकीकृत करना चाहते हैं, उन्हें अपने एपीएमसी कानूनों में सुधार करना होगा ताकि: (i) राज्य भर में एकल व्यापार लाइसेंस की अनुमति दी जा सके, (ii) बाजार मूल्य शुल्क की सिंगल प्वाइंट वसूली की जा सके और (iii) मूल्य खोज के एक तरीके के रूप में e-auction और e-trading का प्रावधान किया जा सके। e-NAM को लघु किसान कृषि व्यवसाय कंसोर्टियम के जरिए लागू किया जाएगा।[84] e-NAM पोर्टल देश भर के बाजारों को एकीकृत करने का प्रयास करता है और खरीदारों और विक्रेताओं को अधिक विकल्प प्रदान करता है। किसानों और विक्रेताओं का पंजीकरण, तौल, गुणवत्ता जांच, नीलामी और लेन-देन ऑनलाइन होगा। कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि क्या सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को e-NAM प्लेटफॉर्म के साथ एकीकृत किया जा सकता है, और मंत्रालय को उनके एकीकरण को सुविधाजनक बनाने का सुझाव दिया।[85] 30 नवंबर, 2022 तक 25 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की 1,260 मंडियों को पोर्टल के साथ एकीकृत कर दिया गया है।[86] सरकार पोर्टल का उपयोग करने के लिए किसानों, व्यापारियों और एपीएमसी अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान करती है। सफाई, छंटाई और पैकेजिंग का इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के लिए सरकार प्रत्येक मंडी को 75 लाख रुपए तक की सहायता देती है।[87] कर्नाटक की 10 मंडियों की फील्ड स्टडी के अनुसार, सप्ताह के चुनिंदा दिनों में केवल चुनिंदा वस्तुओं का ही प्लेटफॉर्म पर कारोबार किया जाता है।[88] कमीशन एजेंट व्यापारियों के रूप में पंजीकृत हैं और कई बार बिजली कटौती हुई है। अध्ययन में कहा गया है कि बाजार का एकीकरण नहीं हुआ है क्योंकि राष्ट्रीय व्यापार लाइसेंस होने के बावजूद एक व्यापारी को वस्तुओं के भंडारण और परिवहन की व्यवस्था करनी होती है। छोटे किसान गुणवत्ता जांच के लिए अपनी उपज देने से हिचकिचाते हैं।88 हालांकि यह कहा गया कि e-NAM पोर्टल ने व्यापार को पारदर्शी बना दिया है और किसानों के समय की बचत की है। |
कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2019) ने कहा कि किसानों के लिए लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिए एक पारदर्शी, आसानी से सुलभ और कुशल मार्केटिंग प्लेटफॉर्म की उपलब्धता पहले से जरूरी है। छोटे और सीमांत किसानों (जिनके पास देश में अधिकांश कृषि भूमि है) को एपीएमसी बाजारों में अपनी उपज बेचने में विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे मार्केटिंग के लिए पर्याप्त अधिशेष न होना, निकटतम एपीएमसी बाजारों की लंबी दूरी और परिवहन सुविधाओं की कमी। एपीएमसी में सुधार के लिए कई सुझाव हैं। इनमें मार्केटिंग प्रक्रिया का डिजिटलीकरण, अनुबंध खेती और वायदा बाजार को बढ़ावा देना शामिल है।
केंद्र सरकार ने अप्रैल 2017 में मॉडल कृषि उपज और पशुधन मार्केटिंग (संवर्धन और सुविधा) एक्ट, 2017 जारी किया था।[89] मॉडल एक्ट किसानों को एपीएमसी के अलावा मार्केटिंग के दूसरे तरीके प्रदान करने का प्रयास करता है। एपीएमसी को निम्नलिखित के लिए जिम्मेदार बनाया जाएगा: (i) उसी दिन किसानों को भुगतान सुनिश्चित करना, (ii) बिक्री के लिए बाजार क्षेत्र में लाए गए कृषि उत्पादों की दरों का प्रचार करना, और (iii) कृषि बाजारों के प्रबंधन के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी स्थापित करना। इसके अतिरिक्त इसमें अधिसूचित बाजार की बजाय कृषि उपज को सीधे बेचने का प्रावधान है। नवंबर 2019 में अरुणाचल प्रदेश ने इस मॉडल एक्ट को अपनाया, जबकि उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पंजाब ने एक्ट के कई प्रावधानों को अपनाया।[90] अध्ययनों से पता चला है कि अनुबंध खेती उपज, कीमतों और आय के मामले में लाभ प्रदान कर सकती है। हालांकि यह छोटे किसानों को बाहर कर सकती है क्योंकि अनुबंध करने वाले कॉरपोरेट्स भूमि के बड़े हिस्से की मांग करते हैं। हरियाणा के एपीएमसी एक्ट के तहत, अनुबंधित मूल्य पिछले वर्ष के एमएसपी से कम नहीं हो सकता है, जो व्यवस्था द्वारा प्रस्तावित मूल्य खोज को प्रभावित करता है।[91],[92]
वेयरहाउस रसीद प्रणाली द्वारा समर्थित कृषि उपज एक्सचेंज से कृषि मार्केटिंग की दक्षता में सुधार की उम्मीद है। नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) एक कृषि डेरिवेटिव एक्सचेंज है, जिसे 2003 में निगमित किया गया था।[93] एनसीडीईएक्स पर सोया तेल, चना, जूट, रबर और हल्दी जैसी वस्तुओं का कारोबार होता है। खाद्य, उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण (2010) संबंधी स्टैंडिंग कमिटी के अनुसार, वायदा बाजार मौसमी मूल्य भिन्नताओं को कम करता है और किसान को फसल के समय बेहतर कीमत प्राप्त करने में मदद करता है।[94] इससे किसान अपने उत्पाद की बिक्री को स्थगित कर सकते हैं और यह बाजार में आवक को संतुलित करता है। 2021-22 में एनसीडीईएक्स ने 4.72 लाख टन जिंसों की डिलीवरी की और इसमें 4 लाख किसानों ने कारोबार किया।[95]
कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड: इस योजना को जुलाई 2020 में मंजूरी दी गई थी और यह पैदावार बाद का प्रबंधन इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए मध्यम से दीर्घकालिक ऋण वित्तपोषण की सुविधा प्रदान करती है। फंड का आकार एक लाख करोड़ रुपए है, और दो करोड़ रुपए तक के ऋण पर 3% (सात साल तक) का वार्षिक ब्याज अनुदान प्राप्त होगा।[96]
इस योजना के तहत पात्र लाभार्थियों में शुरू में प्राथमिक कृषि ऋण समितियां, मार्केटिंग विपणन सहकारी समितियां और किसान उत्पादक संगठन शामिल थे। पात्रता को 2021 में राज्य एजेंसियों/एपीएमसी, सहकारी समितियों के राष्ट्रीय और राज्य परिसंघों, किसान उत्पादक संगठनों के परिसंघों और स्वयं सहायता समूहों के परिसंघों तक बढ़ाया गया था।
इस योजना को 2023-24 में 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2022-23 के संशोधित अनुमान से 233% अधिक है। 2022-23 में भी इस योजना के लिए 500 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। जनवरी 2023 तक फंड में 59,144 पंजीकृत लाभार्थी हैं। 16,000 परियोजनाओं को अगस्त 2020 से अब तक 10,082 करोड़ रुपए वितरित किए जा चुके हैं।
स्टैंडिंग कमिटी (2019) ने कहा है कि ग्रामीण हाट (छोटे ग्रामीण बाजार) कृषि मार्केटिंग के लिए एक व्यावहारिक विकल्प के रूप में उभर सकती हैं, अगर उन्हें पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।78 उसने सुझाव दिया था कि ग्रामीण कृषि बाजार योजना (जिसका उद्देश्य पूरे भारत में 22,000 ग्रामीण हाटों में बुनियादी ढांचे और जन सुविधाओं में सुधार करना है) को पूरी तरह से केंद्र द्वारा वित्त पोषित योजना बनाया जाना चाहिए और देश की प्रत्येक पंचायत में एक हाट की मौजूदगी सुनिश्चित की जाए। केंद्र सरकार ने सुझाव दिया कि मनरेगा के जरिए ग्रामीण हाटों में बुनियादी ढांचे और कृषि मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के जरिए मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जाए। अप्रैल 2022 तक मनरेगा के तहत 1,351 ग्रामीण हाटों में बुनियादी ढांचा विकसित किया गया है।[97] इसके बाद इन हाटों को e-NAM प्लेटफॉर्म से जोड़ा जाएगा।
[1] Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, as accessed on February 7, 2023, https://agricoop.nic.in/#gsc.tab=0.
[2] Demand No. 1, Department of Agriculture and Farmers’ Welfare, Expenditure Budget, Union Budget 2023-24, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe1.pdf.
[3] Demand No. 2, Department of Agriculture and Farmers’ Welfare, Expenditure Budget, Union Budget 2023-24, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe2.pdf.
[4] Rashtriya Krishi Vikas Yojana, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, https://rkvy.nic.in/.
[5] Demand No.1, Department of Agriculture and Farmers’ Welfare, Expenditure Budget, Union Budget 2023-24, https://www.indiabudget.gov.in/budget2022-23/doc/eb/sbe1.pdf.
[6] Unstarred Question No. 2243, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 20, 2022, https://pqals.nic.in/annex/1710/AU2243.pdf.
[7] Budget Speech, Union Budget 2016-17, February 1, 2016, https://www.indiabudget.gov.in/budget2016-2017/ub2016-17/bs/bs.pdf.
[8] “Progress in Doubling Farmers Income”, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, July 19, 2022, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1842783.
[9] “Status of Farmers’ Income: Strategies for Accelerated Growth”, Report of the Committee on Doubling Farmers’ Income, Ministry of Agriculture and Farmers Welfare, August 2017, http://farmer.gov.in/imagedefault/DFI/DFI%20Volume%202.pdf.
[10] Situation Assessment of Agricultural Households and Land and Livestock Holdings in Rural India, 2019, Ministry of Statistics and Programme Implementation, September 2021.
[11] Statistical Appendix, Economic Survey of India 2022-23, Ministry of Finance, https://www.indiabudget.gov.in/economicsurvey/index.php.
[12] “Cabinet approved Minimum Support Prices for all Rabi Crops for Marketing Season 2023-24”, Press Information Bureau, Cabinet Committee on Economic Affairs, October 18, 2022, https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1868760.
[13] “CCEA approves Minimum Support Prices (MSP) for Kharif Crops for Marketing Season 2022-23”, Press Information Bureau, Cabinet Committee on Economic Affairs, June 8, 2022, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1832172.
[14] “Implementation of Swaminathan Committee Report”, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 12, 2018, https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1555575.
[15] Price Policy for Sugarcane 2022-23 Sugar Season, Commission for Agricultural Costs and Prices, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 2021, http://cacp.dacnet.nic.in/ViewQuestionare.aspx?Input=2&DocId=1&PageId=41&KeyId=808.
[16] “PM Kisan Samman Nidhi Yojana”, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, February 24, 2022, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1800851.
[17] Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi (PM-KISAN), as accessed February 8, 2023, https://pmkisan.gov.in/.
[18] Database on Indian Economy, Reserve Bank of India, as accessed on February 5, 2023, https://dbie.rbi.org.in/BOE/OpenDocument/1608101727/OpenDocument/opendoc/openDocument.faces?logonSuccessful=true&shareId=0.
[19] Agricultural Statistics at a Glance 2021, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, May 2022, https://eands.dacnet.nic.in/PDF/Agricultural%20Statistics%20at%20a%20Glance%20-%202021%20(English%20version).pdf.
[20] Statistical Profile on Women, Population – Census Data, Labour Bureau, Ministry of Labour and Employment, http://labourbureau.gov.in/WL%202K5-6%20Chap%201.htm.
[21] Report no. 9, ‘Demand for Grants (2020-21), Standing Committee on Agriculture and Farmers’ Welfare’, Lok Sabha, March 3, 2020, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Agriculture,%20Animal%20Husbandry%20and%20Food%20Processing/17_Agriculture_9.pdf.
[22] Pradhan Mantri Kisan Maandhan Yojana, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, https://pmkmy.gov.in/.
[23] “Year End Review 2019 – Ministry of Agriculture, Cooperation and Farmers Welfare”, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, January 7, 2020, https://pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1598628.
[24] Unstarred Question No. 2358, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 3, 2019, https://pqals.nic.in/annex/172/AU2358.pdf.
[25] Climate Change and Indian Agriculture: Impacts, Coping Strategies, Programmes and Policy, Indian Council of Agricultural Research, Ministry of Environment, Forestry and Climate Change, December 31, 2019, https://naarm.org.in/wp-content/uploads/2020/06/ICAR-NAARM-Policy-on-Climate-Change-and-Agriculture_compressed.pdf.
[26] Climate Change and Agriculture in India, Department of Science and Technology, Ministry of Science and Technology, January 2016, https://dst.gov.in/sites/default/files/Report_DST_CC_Agriculture.pdf.
[27] Climate Change – Agriculture and Policy in India, , United States Department of Agriculture, May 26, 2021, https://apps.fas.usda.gov/newgainapi/api/Report/DownloadReportByFileName?fileName=Climate%20Change%20-%20Agriculture%20and%20Policy%20in%20India_New%20Delhi_India_05-25-2021.pdf.
[28] Fourth Advance Estimates of Production of Foodgrains for 2021-22, Ministry of Agriculture and Farmers Welfare, https://agricoop.nic.in/Documents/Time%20Series%20%28English%29%20PDF.pdf.
[29] Monthly Weather and Climate Summary for the month of March 2022, India Meteorological Department, April 2, 2022, https://internal.imd.gov.in/press_release/20220402_pr_1551.pdf.
[30] India – Extreme Temperatures Scorch Indian Wheat Production, United States Department of Agriculture, May 25, 2022, https://apps.fas.usda.gov/newgainapi/api/Report/DownloadReportByFileName?fileName=India%20-%20Extreme%20Temperatures%20Scorch%20Indian%20Wheat%20Production_New%20Delhi_India_IN2022-0045.pdf.
[31] First Advance Estimates of Production of Foodgrains for 2022-23, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, September 21, 2022, https://eands.dacnet.nic.in/Advance_Estimate/Time%20Series%201%20AE%202022-23%20(English).pdf.
[32] Crop Weather Watch Group, Directorate of Economics and Statistics, Department of Agriculture and Farmers’ Welfare, October 14, 2022, https://agricoop.nic.in/sites/default/files/CWWG%20Report%20as%20on%2014.10.2022.pdf.
[33] About NICRA, National Innovations in Climate Resilient Agriculture, http://www.nicra-icar.in/nicrarevised/index.php/home1#:~:text=National%20Innovations%20on%20Climate%20Resilient,)%20launched%20in%20February%2C%202011..
[34] ‘National Innovation on Climate Resilient Agriculture’, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers Welfare, August 6 2021, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1743354
[35] Unstarred Question No. 1018, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 13, 2022, https://pqals.nic.in/annex/1710/AU1018.pdf.
[36] Unstarred Question No. 4521, Lok Sabha, Ministry of Environment, Forest and Climate Change, March 20, 2020, https://pqals.nic.in/annex/173/AU4521.pdf.
[37] “Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana (PMFBY), Ministry of Agriculture, https://pmfby.gov.in/pdf/Revamped%20Operational%20Guidelines_17th%20August%202020.pdf.
[38] Report no. 35, Standing Committee on Agriculture: ‘Demand for Grants (2017-18), Department of Agriculture, Cooperation and Farmers’ Welfare’, Lok Sabha, March 2017, http://164.100.47.193/lsscommittee/Agriculture/16_Agriculture_35.pdf.
[39] Report No. 43, Standing Committee on Agriculture (2022-23), ‘Action Taken by the Government on the Observation/Recommendations contained in the Twenty-Ninth Report of the Standing Committee on Agriculture (2020-21)’, Lok Sabha, December 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Agriculture,%20Animal%20Husbandry%20and%20Food%20Processing/17_Agriculture_Animal_Husbandry_and_Food_Processing_43.pdf.
[40] Jharkhand Rajya Fasal Rahat Yojana, as accessed on February 12, 2023, https://jrfry.jharkhand.gov.in/en/.
[41] 1256 – (Nab)/AG/O/Cropins/7C-06/2022, Department of Agriculture, Government of West Bengal, September 26, 2022, https://banglashasyabima.net/new_rabi23_nab.
[42] “Union Agriculture Ministry is open to taking pro-farmer changes in PMFBY in response to the recent climate crisis and rapid technological advances”, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, Press Information Bureau, November 24, 2022, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1878434.
[43] “International Year of Millets (IYM) 2023 kick starts with Focussed Activities being undertaken by Central Ministries, State Governments and Indian Embassies”, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, Press Information Bureau, January 1, 2023, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1887847#:~:text=Spearheaded%20by%20the%20Prime%20Minister,forefront%20in%20celebrating%20the%20IYM.
[44] Implementation of Budget Announcements 2022-23, Ministry of Finance, February 1, 2023, https://www.indiabudget.gov.in/doc/impbud2022-23.pdf.
[45] “Ministry of Food Processing Industries issues guidelines for ‘Production Linked Incentive Scheme for the Food Processing Industry’”, Ministry of Food Processing Industries, Press Information Bureau, May 3, 3021, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1715737.
[46] Production Linked Incentive Scheme for Food Processing Industry, Ministry of Food Processing Industries, https://www.mofpi.gov.in/PLISFPI/central-sector-scheme-production-linked-incentive-scheme-food-processing-industry-plisfpi.
[47] Status of Farmers’ Income: Strategies for Accelerated Growth, Committee on Doubling Farmers’ Income, August 2017, https://agricoop.nic.in/Documents/DFI%20Volume%202.pdf.
[48] Indian Agriculture: Achievements and Challenges, Reserve Bank of India, January 17, 2022, https://www.rbi.org.in/Scripts/BS_ViewBulletin.aspx?Id=20750.
[49] Report of the Committee on State Agrarian Relations and the Unfinished Task in Land Reforms, Ministry of Rural Development, https://dolr.gov.in/sites/default/files/Committee%20Report.pdf.
[50] State of Indian Agriculture 2017, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, June 22, 2018, https://eands.dacnet.nic.in/PDF/State_of_Indian_Agriculture,2017.pdf.
[51] Economic Survey of India 2022-23, https://www.indiabudget.gov.in/economicsurvey/doc/eschapter/echap08.pdf.
[52] Report of the Committee on Medium-term Path on Financial Inclusion, Reserve Bank of India, December 2015, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/PublicationReport/Pdfs/FFIRA27 F4530706A41A0BC394D01CB4892CC.PDF.
[53] All India Debt and Investment Survey 2019, Ministry of Statistics and Programme Implementation, September 2021.
[54] “Cabinet approves Interest subvention of 1.5% per annum on Short Term Agriculture Loan upto Rupees Three lakh”, Cabinet, Press Information Bureau, August 17, 2022, https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=1852523.
[55] “Cabinet approves Interest subvention of 1.5% per annum on Short Term Agriculture Loan upto Rupees Three lakh”, Cabinet, Press Information Bureau, August 2022, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1852523.
[56] Report of the Committee on Medium-term Path on Financial Inclusion, Reserve Bank of India, December 2015, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/PublicationReport/Pdfs/FFIRA27F4530706A41A0BC394D01CB4892CC.PDF.
[57] “Kisan Credit Card”, Ministry of Agriculture and Farmers Welfare, Press Information Bureau, January 17, 2022, https://pib.gov.in/FactsheetDetails.aspx?Id=148600.
[58] Unstarred question no. 1015, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 13, 2022, https://pqals.nic.in/annex/1710/AU1015.pdf.
[59] Report No. 32, ‘Demands for Grants 2022-23’, Standing Committee on Chemicals and Fertilizers, Lok Sabha, March 17 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Chemicals%20&%20Fertilizers/17_Chemicals_And_Fertilizers_32.pdf.
[60] Unstarred Question Number 439, Lok Sabha, Ministry of Chemicals and Fertilizers, February 3, 2023, https://pqals.nic.in/annex/1711/AU439.pdf.
[61] Report No. 32, ‘Demand for Grants 2022-23’, Standing Committee on Chemicals and Fertilizers, Lok Sabha, March 21, 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Chemicals%20&%20Fertilizers/17_Chemicals_And_Fertilizers_32.pdf.
[62] “Fertiliser Prices expected to remain higher for longer”, World Bank Data Blog, May 11, 2022, https://blogs.worldbank.org/opendata/fertilizer-prices-expected-remain-higher-longer.
[63] Report No. 20, ‘Demands for Grants 2021-22’, Standing Committee on Chemicals and Fertilisers, Lok Sabha, March 17, 2021, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Chemicals%20&%20Fertilizers/17_Chemicals_And_Fertilizers_20.pdf.
[64] Report No. 5, ‘Study of System of Fertiliser Subsidy’, Standing Committee on Chemicals and Fertilizers, Lok Sabha, March 2020, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Chemicals%20&%20Fertilizers/17_Chemicals_And_Fertilizers_5.pdf.
[65] “Soil Health Card”, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, January 17, 2022, https://pib.gov.in/FactsheetDetails.aspx?Id=148602.
[66] Unstarred Question No. 934, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 13, 2022, https://pqals.nic.in/annex/1710/AU934.pdf.
[67] Unstarred Question No. 248, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, November 30, 2021, https://pqals.nic.in/annex/177/AU248.pdf.
[68] Direct Benefit Transfer, Ministry of Chemicals and Fertilisers, as accessed on February 11, 2023, https://www.fert.nic.in/dbt.
[69] Brief Note on Sugarcane, National Food Security Mission, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, https://www.nfsm.gov.in/BriefNote/BN_Sugarcane.pdf.
[70] 12th Five Year Plan, Planning Commission, 2013 http://planningcommission.gov.in/plans/planrel/fiveyr/12th/pdf/12fyp_vol1.pdf.
[71] Report No. 18, ‘Action Taken by the Government on the Observations/Recommendations contained in the Fifteenth Report of the Standing Committee on Water Resources’, Standing Committee on Water Resources, December 20, 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Water%20Resources/17_Water_Resources_18.pdf.
[72] Block wise Ground Water Resources Assessment 2022, Central Ground Water Board, https://cgwb.gov.in/GW-Assessment/Categorization%20of%20Asssessment%20Units-GWRA2022.pdf.
[73] Dynamic Ground Water Resources Assessment of India – 2022, Central Ground Water Board, October 2022, https://cgwb.gov.in/documents/2022-11-11-GWRA%202022.pdf.
[74] Demands for Grants 2022-23, Department of Finance, https://finance.punjab.gov.in/uploads/05Jul2022/72d0aa79-6050-4a24-bdd4-66c92ad81389_20220705152332.pdf.
[75] State of State Finances 2022-23, https://prsindia.org/files/policy/policy_analytical_reports/State%20of%20State%20Finances%202022-23.pdf.
[76] Electricity Act, 2003, https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/2058/1/a2003-36.pdf.
[77] The Draft Electricity (Amendment) Bill, 2020, Ministry of Power, April 17, 2020, https://prsindia.org/billtrack/draft-electricityamendment-bill-2020.
[78] Report No. 62, Standing Committee on Agriculture (2018-19): ‘Agriculture Marketing and Role of Weekly Gramin Haats’, Lok Sabha, January 3, 2019, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Agriculture,%20Animal%20Husbandry%20and%20Food%20Processing/16_Agriculture_62.pdf.
[79] The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Bill, 2020, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2020/Farmers%20(Empowerment%20and%20protection)%20bill,%202020.pdf.
[80] The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2020/Farmers'%20Produce%20Trade%20and%20Commerce%20bill,%202020.pdf.
[81] The Essential Commodities (Amendment) Act, 2020, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2020/Essential%20Commodities%20(Amendment)%20Act,%202020.pdf.
[82] The Farm Laws Repeal Bill, 2021, https://prsindia.org/files/bills_acts/bills_parliament/2021/Farm%20Laws%20Repeal%20Bill,2021.pdf.
[83] Operational Guidelines for Promotion of National Agriculture Market through Agri-Tech Infrastructure Fund, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, September 2016, https://enam.gov.in/web/docs/namguidelines.pdf/
[84] Frequently Asked Questions, e-NAM, as accessed on February 11, 2023, https://enam.gov.in/web/resources/FAQs-of-eNam/.
[85] Report No. 37, ‘Demands for Grants 2022-23’, Standing Committee on Agriculture, Animal Husbandry and Food Processing, Lok Sabha, March 24, 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Agriculture,%20Animal%20Husbandry%20and%20Food%20Processing/17_Agriculture_Animal_Husbandry_and_Food_Processing_37.pdf.
[86] Unstarred Question No. 2099, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, December 20, 2023, https://pqals.nic.in/annex/1710/AU2099.pdf.
[87] “2177 FPOs onboard eNAM Trading Module”, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, August 2, 2022, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1847509#:~:text=Under%20the%20e%2DNAM%20scheme,packaging%20and%20compost%20unit%20etc.
[88] Indian Agricultural Markets Policy, Challenges and Alternatives, Focus on the Global South, December 2019, https://focusweb.org/wp-content/uploads/2020/03/Ag_Market_Report_Final.pdf.
[89] Salient Features of the Model Act on Agricultural Marketing, https://agricoop.nic.in/sites/default/files/apmc.pdf.
[90] Unstarred Question No. 291, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, November 19, 2019, https://loksabha.nic.in/Questions/QResult15.aspx?qref=6495&lsno=17.
[91] Punjab Agricultural Produce Markets Act, 1961, http://hsamb.org.in/sites/default/files/documents/newact.doc.
[92] Punjab Agricultural Produce Markets (General) Rules, 1962, http://hsamb.org.in/sites/default/files/documents/newrules_0.doc.
[93] NCDEX Overview, National Commodity & Derivatives Exchange Limited, https://ncdex.com/about/ncdex-overview.
[94] “Linking Farmers with Markets”, Press Information Bureau, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, February 4, 2020, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1601897.
[95] Annual Report 2021-22, National Commodities and Derivatives Exchange, https://ncdex.com/downloads/About-us/Annual-Reports/NCDEX%20-%20Annual%20Report%202021-22.pdf
[96] Unstarred Question No. 1529, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, July 26, 2022, https://pqals.nic.in/annex/179/AU1529.pdf.
[97] Starred Question No. 479, Lok Sabha, Ministry of Agriculture and Farmers’ Welfare, April 5, 2022, https://pqals.nic.in/annex/178/AS479.pdf.
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