रक्षा मंत्रालय रक्षा और सुरक्षा से संबंधित मामलों पर नीतियां बनाता है और रक्षा सेवाओं (थलसेना, नौसेना और वायु सेना) द्वारा इनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है। इसके अलावा यह सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों जैसी निर्माण इकाइयों, अनुसंधान एवं विकास संगठनों और सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं जैसी सहायक सेवाओं के लिए जिम्मेदार है। यह नोट मंत्रालय के बजटीय आवंटन और व्यय की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करता है। नोट में कुछ मुद्दों पर भी चर्चा की गई है जैसे जीडीपी के प्रतिशत के रूप में रक्षा पर व्यय में कमी, अत्यधिक मात्रा में पेंशन, रक्षा उपकरणों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निरंतर निर्भरता और रक्षा उपकरणों के स्वदेशी विकास में देरी।
वित्तीय स्थिति
रक्षा मंत्रालय के बजट में अनुसंधान और विकास तथा सीमा सड़कों पर व्यय के साथ-साथ तीन रक्षा सेवाओं के लिए आवंटन भी शामिल है। 2025-26 में मंत्रालय को 6,81,210 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इसमें सशस्त्र बलों और सिविलियन कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण, निर्माण प्रतिष्ठानों, रखरखाव और अनुसंधान एवं विकास संगठनों पर व्यय शामिल है। मंत्रालय का आवंटन सभी मंत्रालयों में सबसे अधिक है और केंद्र सरकार के कुल व्यय का 13% है।
भारत का रक्षा व्यय केंद्र के बजट और जीडीपी, दोनों के हिस्से के रूप में घट गया है
केंद्र सरकार अपने बजट का सबसे बड़ा हिस्सा रक्षा मंत्रालय को आवंटित करती है। हालांकि केंद्रीय बजट में रक्षा संबंधी व्यय का हिस्सा पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है। 2014-15 में केंद्र ने अपने कुल बजट का 17% रक्षा पर खर्च किया जबकि 2025-26 के बजट अनुमानों के अनुसार इसमें 13% की गिरावट आई है। 2013-14 और 2025-26 के बीच रक्षा खर्च में 9% की वार्षिक वृद्धि की तुलना में केंद्र सरकार का कुल व्यय 10% की वार्षिक दर से बढ़ा।
2023 में रक्षा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने कहा था कि भारत की अधिकांश रक्षा खरीद का लेनदेन डॉलर में किया जाता है।[i] उसने सुझाव दिया था कि रक्षा सेवाओं के लिए धन आवंटित करते समय डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्यह्रास और मुद्रास्फीति दर पर विचार किया जाना चाहिए।1 1 जनवरी, 2024 और 27 जनवरी, 2025 के बीच अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए में लगभग 4% की गिरावट आई है।