पिछले दो वर्षों में कोविड-19 महामारी और उसके प्रभाव ने व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के महत्व को उजागर किया है। भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का प्रबंधन करना राज्यों की मुख्य जिम्मेदारी है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय स्वास्थ्य क्षेत्र की समूची नीति और रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को निर्धारित करता है। वह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और देश की स्वास्थ्य प्रणाली के सभी स्तरों से संबंधित योजनाओं को लागू भी करता है। 

पिछले वर्ष केंद्रीय बजट में जिन क्षेत्रों पर अधिक जोर दिया गया था, उनमें से एक स्वास्थ्य और कल्याण (वेल बीइंग) था। यह प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना में तब्दील हो गया। यह योजना प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तरों की स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार करने का प्रयास करती है; कोविड-19 वैक्सीनेशन कार्यक्रम के लिए 35,000 करोड़ रुपए आबंटित करती हैऔर राज्यों को स्वास्थ्य, जल और सैनिटेशन के लिए अतिरिक्त अनुदानों का आबंटन करती है।  

हालांकि इन कार्यक्रमों और योजनाओं ने देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिति में सुधार किया है, लेकिन फिर भी अभी काफी कुछ करना बाकी है। भारत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में सबसे कम निवेश करने वाले देशों में से एक है। विशेष रूप से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य प्रणालियों का भौतिक इंफ्रास्ट्रक्चर काफी खराब है। मानव संसाधनों (डॉक्टरों और सपोर्ट स्टाफ) की कमी है। लोगों को लगातार अपनी जेब से बड़ी राशि चुकानी पड़ती है जिसका मतलब यह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच, उसकी क्वालिटी और बीमा कवरेज में सुधार करने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल (2020) में यह स्वीकार किया गया है कि जिन मुख्य तरीकों से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज हासिल किया जा सकता है, उनमें से एक स्वास्थ्य वित्तपोषण (हेल्थ फाइनांसिंग) है, जोकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के लक्ष्यों में से एक है।[1]  अगर स्वास्थ्य वित्तपोषण उचित होगा तो स्वास्थ्य सेवा के लिए पर्याप्त धनराशि सुनिश्चित होगी, सभी जनसंख्या समूहों को एक समान सुविधा उपलब्ध होगी और स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग की दिशा में अवरोध कम होंगे। 

इस नोट में हम स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के वित्तीय आबंटनों की प्रवृत्तियों, स्वास्थ्य वित्तपोषण के मुद्दों और स्वास्थ्य क्षेत्र के मुख्य मुद्दों का विश्लेषण कर रहे हैं।

वित्तीय विवरण

2022-23 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को 86,201 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं।[2]  यह 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 0.2की मामूली वृद्धि है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को मंत्रालय के आबंटन का 96हिस्सा मिला है जोकि 83,000 करोड़ रुपए है, जबकि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को 3.201 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं (4आबंटन)।

बजट भाषण 2022-23 की झलकियां

राष्ट्रीय डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम के लिए ओपन प्लेटफॉर्म बनाया जाएगा। इसमें स्वास्थ्य प्रदाताओं और स्वास्थ्य केंद्रों की डिजिटल रजिस्ट्रीज़, यूनीक हेल्थ आइडेंटिटी, कंसेंट फ्रेमवर्क और स्वास्थ्य केंद्रों का यूनिवर्सल एक्सेस शामिल होगा।

मेंटल हेल्थ की उत्तम दर्जे की काउंसिलिंग और केयर सर्विसेज़ की सुविधा में सुधार के लिए एक नेशनल टेली-मेंटल हेल्थ प्रोग्राम शुरू किया जाएगा। इसमें 23 टेली-मेंटल हेल्थ सेंटर्स का नेटवर्क शामिल होगा। निमहांस इसका नोडल सेंटर होगा और बेंगलुरू का इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी तकनीकी सहयोग प्रदान करेगा। 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग निम्नलिखित के लिए व्यापक रूप से जिम्मेदार है: (i) स्वास्थ्य योजनाओं को लागू करना, और (ii) मेडिकल शिक्षा और प्रशिक्षण को रेगुलेट करना। स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग व्यापक रूप से मेडिकल अनुसंधान के लिए जिम्मेदार है। 

तालिका 1स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का बजटीय आबंटन (करोड़ रुपए में)

मद

2020-21
 
वास्तविक

2021-22
 
संअ

2022-23
 
बअ

 (संअ 2021-22 से बअ 2022-23) परिवर्तन का %

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

77,569

82,921

83,000

0.1%

स्वास्थ्य अनुसंधान

3,125

3,080

3,201

3.9%

कुल

80,694

86,001

86,201

0.2%

नोट: बअ- बजट अनुमान, संअ- संशोधित अनुमान

स्रोतमांग संख्या 46 और 47, एक्सपेंडिचर बजट 2022-23; पीआरएस।

कोविड-19 संबंधी व्यय2022-23 में इस मंत्रालय के अंतर्गत कोविड-19 से संघर्ष करने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स की बीमा योजना के लिए 226 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। इसके अतिरिक्त वित्त मंत्रालय ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के लिए 5,000 करोड़ रुपए का आबंटन किया है। 

2021-22 के संशोधित अनुमानों के अनुसार, कोविड-19 संबंधी व्यय के लिए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को 16,545 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। इसमें कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज के दूसरे चरण के लिए 14,567 करोड़ रुपए का आबंटन, और पहले चरण (भारतीय मेडिकल अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को टेस्टिंग किट, उपकरणों आदि की खरीद के लिए आबंटित 526 करोड़ रुपए सहित) के लिए 1,165 करोड़ रुपए का आबंटन शामिल है। 2021-22 में वित्त मंत्रालय ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के लिए 35,000 करोड़ रुपए के व्यय का अनुमान लगाया था। 2021-22 के संशोधित अनुमानों के अनुसार, इस राशि के 39,000 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है।

2020-21 में मंत्रालय ने कोविड-19 पर 11,941 करोड़ रुपए (वास्तविक) खर्च किए जिसमें आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज पर किया गया खर्च (10,529 करोड़ रुपए), आईसीएमआर को किया गया आबंटन (1,275 करोड़ रुपए) और हेल्थकेयर वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स के वैक्सीनेशन पर किया गया खर्च (137 करोड़ रुपए) शामिल है। तालिका 2 में 2022-23 में मंत्रालय के व्यय की मुख्य मदों का विवरण दिया गया है।

तालिका 2व्यय की मुख्य मदें (करोड़ रुपए में) 

मुख्य मदें

2020-21
 
वास्तविक

2021-22
 
संअ

2022-23
 
बअ

(संअ 2021-22 से बअ 2022-23) परिवर्तन का %

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (कुल)

37,080

34,447

37,000

7.4%

एम्स, आईसीएमआर, सीजीएचएस औऱ अन्य स्वायत्त एवं वैधानिक निकाय

12,197

13,979

15,200

9%

बीएमएसएसवाई

6,840

7,400

10,000

35.1%

पीएमजेएवाई

2,681

3,199

6,412

100.4%

पीएम एबीएचआईएम

 

1,040

5,846

462.0%

राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी नियंत्रण कार्यक्रम

2,815

2,350

2,623

11.6%

परिवार कल्याण योजनाएं

462

306

484

58.2%

कोविड-19

11,941

16,545

226

-98.6%

अन्य

6,679

6,735

8,409

25%

कुल

80,694

86,001

86,201

0.2%

नोट: कोविड पर व्यय में कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया के दोनों चरणों के आबंटन, हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स का वैक्सीनेशन, स्वास्थ्यकर्मियों का बीमा और कोविड-19 टेस्टिंग किट्स की खरीद शामिल हैबअ- बजट अनुमानसंअ- संशोधित अनुमानएम्स- अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (नई दिल्ली); सीजीएचएस- सीजीएचएस पेंशनधारकों का मेडिकल उपचार; पीएमजेएवाई- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना; पीएमएसएसवाईप्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना; पीएम एबीएचआईएम- प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन।

स्रोतएक्सपेंडिचर बजट 2022-23; पीआरएस। 

विचारणीय मुद्दे 

सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेश कम रहा है 

2020-21 में भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय (केंद्र और राज्य) जीडीपी का 1.8था।[3] यह पिछले दशक के चलन के मुकाबले ज्यादा है, जब सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय जीडीपी के 1.1%-1.5% के बीच था।[4],[5]  हालांकि अन्य देशों की तुलना में यह आबंटन बहुत कम है।4,[6],[7],[8] आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि सरकारी बजट में स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने वाले 189 देशों में भारत की रैंकिंग 179वीं है।4  राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 का लक्ष्य 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को बढ़ाकर जीडीपी का 2.5% करना है।1  

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में कहा गया है कि जबकि टैक्सेशन स्वास्थ्य सेवा को वित्तपोषित करने का सबसे बड़ा जरिया बना रहेगा, लेकिन सरकार कुछ खास वस्तुओं जैसे तंबाकू, शराब और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्यों को टैक्स करने और उत्खनन उद्योगों पर कर एवं प्रदूषण सेस लगाने पर विचार कर सकती है।1  गरीब और ग्रामीण परिवारों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए 2018-19 में केंद्र सरकार ने इनकम टैक्स और कॉरपोरेशन टैक्स पर 3शिक्षा सेस की जगह 4स्वास्थ्य और शिक्षा सेस की घोषणा की थी।[9]  2022-23 में स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेस के जरिए 53,846 करोड़ रुपए जमा होने की उम्मीद है जिसमें 2021-22 (संशोधित अनुमान) में जमा राशि की तुलना में 14की बढ़ोतरी है।[10]

2020-21 में केंद्र सरकार ने 5स्वास्थ्य सेस शुरू किया जोकि कुछ मेडिकल उपकरणों पर कस्टम्स ड्यूटी के तौर पर लगाया जाता है।[11] इससे अर्जित धनराशि को आकांक्षी जिलों में स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं को वित्तपोषित करने के लिए उपयोग किया जाता है। 2020-23 में इस स्वास्थ्य सेस (कस्टम्स) से 870 करोड़ रुपए जमा होने का अनुमान है जिसमें 2021-22 (संशोधित अनुमान) में जमा हुई राशि के मुकाबले 12की वृद्धि है।10 

15वें वित्त आयोग ने कहा था कि स्वास्थ्य क्षेत्रों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कम निवेश, पोषण के स्तर और भुखमरी जैसे मामलों में अंतरक्षेत्रीय भिन्नताएं, डॉक्टरों, पैरामेडिक्स, अस्पतालों की कमी और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की अपर्याप्त संख्या।[12]  आयोग ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक लाख करोड़ रुपए के शर्त रहित अनुदान का सुझाव दिया था (2021-26 की अवधि के लिए)। इसके अतिरिक्त उसने यह सुझाव भी दिया था कि 2022 तक राज्यों को अपने बजट की 8से भी अधिक राशि स्वास्थ्य पर खर्च करनी चाहिए। 2021-22 में, बजट अनुमानों के हिसाब से, राज्यों ने स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए सिर्फ 6% राशि आबंटित की है।

उच्च उपयोग के बावजूद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के लिए कम आबंटन

2006 और 2022 के बीच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का आबंटन 13की सीएजीआर से बढ़ा (सीएजीआर या चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर एक विशिष्ट समय अवधि में वार्षिक वृद्धि दर होती है)। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान विभाग जितनी राशि की मांग करता रहा है, उसे उससे कम राशि आबंटित की जाती है। यह इसके बावजूद है कि बजट का 100% या उससे ज्यादा उपयोग (2015-16 से पहले) किया जाता है। 2020-21 में विभाग ने 77,569 करोड़ रुपए खर्च किए जोकि बजट अनुमान से 19% अधिक है। 2021-22 में भी विभाग के बजट अनुमान से 16अधिक होने की उम्मीद है।

रेखाचित्र 1स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का आबंटन (2006-22) (करोड़ रुपए में)

 image 

नोट: 2021-22 के लिए आबंटन में परिवर्तन का %, बअ 2021-22 की तुलना में 2021-22 के संशोधित अनुमान में होने वाला परिवर्तन हैबअ – बजट अनुमानासंअ – संशोधित अनुमान।

स्रोतएक्सपेंडिचर बजट, 2006-07 से 2022-23; पीआरएस।

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में कमियां हैं और उसमें अधिक निवेश की जरूरत है 

देखभाल के स्तर के आधार पर भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है: प्राथमिक देखभाल (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में दी जाती है), द्वितीयक देखभाल (जिला अस्पतालों में दी जाती है) और तृतीयक देखभाल वाले संस्थान (एम्स जैसे विशेषज्ञता प्राप्त अस्पतालों में दी जाती है)। प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा स्वास्थ्यकर्मियों और आम लोगों के बीच संपर्क का पहला स्तर होती है।[13]  

व्यापक रूप से जनसंख्या और सेवाओं के प्रकार के आधार पर ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना तीन स्तरीय प्रणाली होती है। इसमें उपकेंद्र (एससीज़), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसीज़) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसीज़) शामिल होते हैं।[14]  राज्य प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों का प्रबंधन करते हैं (चूंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य राज्य का विषय है)। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की वितरण प्रणालियों में सुधार करने के लिए मंत्रालय राज्यों को तकनीकी और वित्तीय सहायता देता है। 2017-18 के केंद्रीय बजट में यह घोषणा की गई थी कि दिसंबर 2022 तक 1.5 लाख एससीज़ और पीएचसीज़ को हेल्थ और वेलनेस केंद्रों (एचडब्ल्यूसीज़) में तब्दील कर दिया जाएगा।[15]

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली: 31 मार्च, 2020 तक ग्रामीण क्षेत्रों में 1,55,404 एससीज़, 24,918 पीएचसीज़ और 5,183 सीएचसीज़ काम कर रहे थे।[16]  शहरी क्षेत्रों में 2,517 एससीज़, 5,895 पीएससीज़ और 466 सीएचसीज़ थे।16  

रेखाचित्र 2उपकेंद्रों, पीएचसी और सीएचसी की संख्या (2005 और 2020) 

image

नोट: पीएचसी- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रसीएचसीसामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र।

स्रोत: ग्रामीण स्वास्थ्य स्टैटिस्टिकिस्स 2017-19; पीआरएस।

आयुष्मान भारत- हेल्थ और वेलनेस सेंटर्स स्कीम (एबी-एचडब्ल्यूसी)एचडब्ल्यूसीज़ में मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य सेवाओं के अलावा कई तरह की दूसरी सेवाएं भी दी जाती हैं। इन सेवाओं में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) गैर संचारी रोगों के लिए देखभाल, (ii) पुनर्वास सेवा, (iii) मानसिक स्वास्थ्य सेवा, (iv) आपात स्थितियों और ट्रॉमा के लिए पहले स्तर की देखभाल, और (v) मुफ्त जरूरी दवाएं और डायनॉस्टिक सेवाएं।[17] 6 फरवरी, 2022 तक देश भर में 90,030 एचडब्ल्यूसीज़ काम कर रहे थे।[18] उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2022 तक 1.5 लाख एचब्ल्यूसीज़ बनाने का लक्ष्य है।

ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या के मानदंडों के आधार पर एससीज़, पीएचसीज़ और सीएचसीज़ की संख्या और वितरण तय होता है। हालांकि स्वास्थ्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा है कि एससीज़ में 23%, पीएचसीज़ में 28और सीएचसीज़ मे 37% की कमी है।[19]  15वें वित्त आयोग ने यह भी कहा था कि कुछ राज्यों में उपकेंद्रों, पीएचसीज़ और सीएचसीज़ तथा वेलनेस केंद्रों में काफी कमियां हैं। 31 मार्च, 2020 तक 885 पीएचसीज़ और 33, 886 एससीज़ में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था।12 

ग्रामीण स्वास्थ्य स्टैटिस्टिक्स 2019 के अनुसार, एससीज़, पीएचसीज़ और सीएचसीज़ अब भी कवरेज के लक्ष्यों को पूरा नहीं करते हैं (तालिका 3)। 

तालिका 3स्वास्थ्य केंद्र के दायरे में आने वाली औसत ग्रामीण आबादी (1 जुलाई, 2020 तक वर्ष के मध्य की आबादी के आधार पर)

स्वास्थ्य केंद्र

मानदंड

दायरे में आने वाली औसत ग्रामीण आबादी

एससी

300–5,000

5,729

पीएचसी

20,000–30,000

35,730

सीएचसी

80,000–1,20,000

1,71,779

स्रोत: ग्रामीण स्वास्थ्य स्टैटिस्टिक्स 2019; पीआरएस।

स्वास्थ्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने यह भी कहा कि कोविड-19 के प्रकोप का उचित तरह से प्रबंधन न होने की एक वजह यह थी कि कई क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर्याप्त नहीं था, दूसरी तरफ शहरी क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की संगठित प्रणाली मौजूद नहीं थी।[20] 15वें वित्त आयोग ने कहा था कि अगर स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम और शुरुआती प्रबंधन किया जाता है तो तृतीयक स्तर पर जटिल विशेषज्ञता प्राप्त देखभाल की कम जरूरत पड़ती है।12  उसने सुझाव दिया था कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं का मुख्य लक्ष्य प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना होना चाहिए। 

15वें वित्त आयोग ने कहा था कि भारत में 1,000 लोगों पर 1.4 बिस्तर हैं जोकि 2.9 बिस्तरों के विश्व औसत से काफी कम है (2017 में विश्व बैंक का अनुमान)।[21]  इनमें से 60% बिस्तर निजी क्षेत्र में हैं।12  इसकी तुलना में चीन में 1,000 लोगों पर चार से अधिक बिस्तर हैं, श्रीलंका, युनाइटेड किंगडम और युनाइटेड स्टेट्स में 1,000 लोगों पर लगभग तीन बिस्तर हैं, जबकि थाईलैंड और ब्राजील में 1,000 लोगों पर दो से अधिक बिस्तर हैं।12  राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 का लक्ष्य 1,000 लोगों पर दो बिस्तर उपलब्ध कराना है। इसके लिए 2025 तक 3,000 से 5,000 अस्पताल बनाने होंगे जिनमें से प्रत्येक में 200 बिस्तर हों।12    

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के अंतर्गत राज्यों को प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवा में वृद्धि करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके दो घटक हैं, ग्रामीण उप मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और शहरी उप मिशन, राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम)। एनएचएम के मुख्य कार्यक्रम घटकों में ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य प्रणाली की वृद्धि, प्रजनन-मातृत्व-नवजात-बाल और किशोर स्वास्थ्य (आरएमएनसीएच+), और संचारी एवं गैर संचारी रोग शामिल हैं। राज्यों के पास अपने व्यापक राष्ट्रीय मानदंडों और प्राथमिकताओं के भीतर विशिष्ट कार्य योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें लागू करने की फ्लेक्सिबिलिटी होती है। उन्हें इन योजनाओं के आधार पर तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, जोकि संसाधनों की उपलब्धता के अधीन होता है। 

2022-23 में एनएचएम को 37,000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। इसमें आरसीएच और स्वास्थ्य प्रणाली में वृद्धि के लिए फ्लेक्सिबल पूल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम और एनयूएचएम के लिए 22,317 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर के रखरखाव के लिए 6,343 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। 2022-23 में एनएचएम का आबंटन 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 7.4अधिक है।

प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (पीएम एबीएचआईएम)पीएम एबीएचआईएम को अक्टूबर 2021 में शुरू किया गया था (बजट 2021 में घोषित प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना को नया नाम दिया गया है)।[22] यह एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है (केंद्रीय क्षेत्र के कुछ घटक के साथ), जिसकी अवधि 2021-22 से 2025-26 है। मिशन प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तरों पर स्वास्थ्य प्रणालियों और संस्थानों की क्षमताओं को विकसित करने पर केंद्रित है ताकि मौजूदा और संभावित महामारियों के मद्देनजर स्वास्थ्य प्रणालियों को तैयार किया जा सके। 

इनमें से एक घटक एचडब्ल्यूसीज़ के जरिए शुरुआत में बीमारियों का पता लगाने का प्रयास करता है। इन केंद्रों में निशुल्क मेडिकल सलाह, टेस्ट की सुविधाएं और दवाएं प्रदान की जाती हैं। इसके अतिरिक्त 600 जिलों में 35,000 नए क्रिटिकल केयर बेड्स जोड़े जाएंगे और 125 जिलों में रेफरल सुविधाएं (मरीजों को एक स्वास्थ्य केंद्र से दूसरे में ट्रांसफर करना) प्रदान की जाएंगी। 

दूसरे घटक के अंतर्गत 730 जिलों में एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाएं बनाई जाएंगी। 3,000 ब्लॉक्स में सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयां बनाई जाएंगी। रोग नियंत्रण के लिए पांच क्षेत्रीय केंद्रों, 20 महानगरीय इकाइयों और 15 बायो-सेफ्टी स्तरीय लैब्स के जरिए डायग्नॉस्टिक केंद्रों का नेटवर्क मजबूत किया जाएगा।  

2022-23 में मिशन के लिए 5,846 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। 2020-21 (संशोधित अनुमान) में मिशन को 1,040 करोड़ रुपए दिए गए थे।  

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में कम निवेश

मंत्रालय के कुल बजट में करीब आधा आबंटन एनएचएम और पीएम एबीएचआईएम के लिए किया गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में सुझाव दिया गया है कि प्राथमिक स्तर की स्वास्थ्य देखभाल के लिए बजट का दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा आबंटित किया जाए, इसके बाद द्वितीयक और तृतीयक स्तर की देखभाल के लिए आबंटन हो। 15वें वित्त आयोग ने यह सुझाव भी दिया था कि 2022 तक कुल स्वास्थ्य व्यय का दो तिहाई हिस्सा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर किया जाना चाहिए।  

सार्वजनिक स्वास्थ्य में कम निवेश से सरकार की प्राथमिक स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने, मानव संसाधन की उपलब्धता बढ़ाने और सभी नागरिकों के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सुनिश्चित करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसका एक नतीजा यह होता है कि नागरिक सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की बजाय निजी केंद्रों में जाना पसंद करते हैं और बुनियादी स्वास्थ्य सेवा पर अपनी हद से ज्यादा खर्च करते हैं।

75वें एनएसएस सर्वेक्षण (जुलाई 2017 और जून 2018) के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में 33% और शहरी क्षेत्रों में 26% बीमरियों का इलाज सरकारी अस्पतालों में किया जाता था।[23]  बाकी का इलाज निजी अस्पतालों (ग्रामीण क्षेत्रों में 21%, शहरी क्षेत्रों में 27%), या निजी डॉक्टरों/क्लिनिक्स (ग्रामीण क्षेत्रों मे 41%, शहरी क्षेत्रों में 44%), और शेष का अनौपचारिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और धर्मार्थ अस्पतालों में किया जाता है।24  यह स्थिति सरकारी अस्पतालों (331 रुपए) की तुलना में निजी अस्पतालों (1,062 रुपए) में इलाज (भर्ती किए बिना) के उच्च औसत व्यय के बावजूद है।[24] 15वें वित्त आयोग ने कहा था कि भारत में निजी स्वास्थ्य देखभाल महंगी है, और वहां प्रशिक्षित और दक्ष श्रमशक्ति का भी अभाव है।

15वें वित्त आयोग ने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने के लिए स्थानीय सरकारों के माध्यम से पांच वर्ष की अवधि (2021-26) में 70,051 करोड़ रुपए के अनुदान का सुझाव दिया था। ये अनुदान निम्नलिखित के लिए प्रदान किए जाएंगे: (i) ग्रामीण एससीज़ और पीएचसीज़ को एचडब्ल्यूसीज़ में बदलना, (ii) प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा संबंधी गतिविधियों के लिए डायग्नॉस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर में सहयोग, और (iii) शहरी एचडब्ल्यूसीज़, एससीज़, पीएचसीज़ और ब्लॉक स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयों को सहयोग। आयोग ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य क्षेत्र की केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) को इतना फ्लेक्सिबल होना चाहिए कि राज्य उन्हें अपने अनुकूल बना सकें और उसमें नए प्रयोग कर सकें, और इन योजनाओं को इनपुट्स की बजाय आउटकम्स पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उसने स्थानीय सरकारों को संसाधनों, स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर और क्षमता निर्माण के लिहाज से मजबूत करने का सुझाव भी दिया है जिससे वे खास तौर से संकट के समय में स्वास्थ्य सेवा वितरण में बेहतर भूमिका निभा सकें।

लोगों की तरफ से आउट ऑफ पॉकेट खर्च

सार्वजनिक व्यय के कम होने और सार्वजनिक स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की खराब स्थिति के कारण लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है। आउट ऑफ पॉकेट खर्च में वह भुगतान शामिल होता है जिसे व्यक्ति सेवा के उस चरण में करता है जब स्वास्थ्य सेवा की पूरी लागत किसी वित्तीय संरक्षण योजना के दायरे में आती। आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि दुनिया में जिन देशों में आउट ऑफ पॉकेट खर्च सबसे अधिक है, भारत भी उनमें से एक है।4  

नेशनल हेल्थ एकाउंट्स के अनुमानों के अनुसार, 2017-18 में देश में कुल स्वास्थ्य व्यय के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर आउट ऑफ पॉकेट खर्च 48.8% था।[25] यह 2004-05 में 69.4% था।26  कई मामलों में इसकी वजह से उधार लेना पड़ता है। भारत में स्वास्थ्य संबंधी एनएसएस सर्वे (2018) के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल में भर्ती होने के 13.4मामलों को व्यक्तिगत उधारियों के जरिए वित्तपोषित किया गया। शहरी क्षेत्रों में यह हिस्सा 8.5था।[26] ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 3-4लोगों को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मदद की जरूरत पड़ी।27 2017-18 में निजी क्षेत्र का स्वास्थ्य व्यय कुल स्वास्थ्य व्यय का 5.8था। सरकारी स्वास्थ्य व्यय (केंद्र और राज्य, दोनों का) जिसमें पूंजीगत व्यय शामिल है, कुल स्वास्थ्य व्यय का 40.8% था।

मंत्रालय ने गरीब और कमजोर परिवारों के स्वास्थ्य बीमा कवरेज के लिए आयुष्मान भारत- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) को शुरू किया। योजना के अंतर्गत एम्पैनल्ड सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा केंद्रों के जरिए वे द्वितीयक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सेवों का लाभ उठा सकते हैं।[27] जबकि पीएमजेएवाई द्वितीयक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सेवा कवरेज प्रदान करती है, 2017-18 में प्राथमिक स्तर की स्वास्थ्य सेवा पर व्यय 47%, द्वितीयक पर 34% और तृतीयक पर 14था (शेष गवर्नेंस और सुपरविजन पर था)।26  

15वें वित्त आयोग ने कहा था कि स्वास्थ्य पर आउट ऑफ पॉकेट भुगतान के कारण हर साल लगभग 60 मिलियन भारतीय गरीबी की गर्त में गिर जाते हैं। इसका यह अर्थ है कि स्वास्थ्य बीमा या किसी भी प्रकार के वित्तीय संरक्षण उपायों में सभी स्तरों की स्वास्थ्य सेवाओं का खर्च शामिल होना चाहिए। आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि अगर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च को जीडीपी के 1% से बढ़ाकर 2.5-3कर दिया जाए तो आउट ऑफ पॉकेट खर्च 60से घटकर 30% होने में मदद मिलेगी।3,4 इसमें कहा गया है कि जिन राज्यों में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति व्यय अधिक है, वहां आउट ऑफ पॉकेट व्यय का स्तर कम है, और यह विश्व स्तर पर भी सच है।

आउट ऑफ पॉकेट खर्च को कम करने के लिए बीमा योजनाएं 

पीएमजेएवाई के अंतर्गत लगभग 10.74 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों को हर साल प्रति परिवार पांच लाख रुपए तक का बीमा कवर मिलता है। इन परिवारों की पात्रता सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना (2011) के आधार पर निर्धारित की गई है।28 बीमाकृत परिवार एम्पैनल्ड सार्वजनिक और निजी केंद्रों के जरिए द्वितीयक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य सेवाएं हासिल कर सकते हैं। इस योजना में केंद्रीय स्तर की दो योजनाओं- राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) और वरिष्ठ नागरिक स्वास्थ्य बीमा योजना को समाहित किया गया है। योजना के अंतर्गत 1,573 प्रक्रियाओं, तथा अस्पताल में भर्ती होने से पहले और उसके बाद के खर्चों को कवर किया जाता है।

आबंटन: 2022-23 में पीएमजेएवाई को 6,412 करोड़ रुपए आबंटित किए गए जोकि 2021-22 के संशोधित अनुमानों का दोगुना है (3,199 करोड़ रुपए)। विशेषज्ञों का कहना है कि यह राशि पीएमजेएवाई के जरूरी व्यय को देखते हुए कम हो सकती है। 

आयुष्मान भारत पर 15वें वित्त आयोग के एक अध्ययन (2019) में अगले पांच वर्षों के लिए पीएमजेएवाई की मांग और व्यय का अनुमान लगाया गया था।20 उसमें कहा गया था कि 2019 के लिए पीएमजेएवाई की कुल लागत (केंद्र और राज्यों की) 28,000 करोड़ से 74,000 करोड़ रुपए हो सकती है। यह अनुमान निम्नलिखित पर आधारित है: (i) कि सभी लक्षित लाभार्थियों को कवर किया जाएगा (लगभग 50 करोड़ लोग), (ii) समय के साथ अस्पताल में भर्ती होने की दर, और (iii) अस्पताल में भर्ती होने पर औसत खर्च। 2023 में यह लागत 66,000 करोड़ रुपए से 1,60,089 करोड़ रुपए तक बढ़ सकती है (मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए)।

कार्यान्वयनआर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि पीएमजेएवाई ने स्वास्थ्य बीमा कवरेज को बढ़ाया है। जिन राज्यों ने पीएमजेएवाई को लागू किया है, उनमें स्वास्थ्य बीमाकृत परिवारों का अनुपात 54% बढ़ा है, जबकि जिन राज्यों ने योजना को लागू नहीं किया, वहां इसमें 10की गिरावट आई है।4  

हालांकि योजना के अंतर्गत आबंटित राशि का उपयोग भी कम रहा है। 2018-19 में आबंटित राशि का 83%, 2019-20 में 50और 2020-21 में 42का उपयोग किया गया था। 2021-22 में योजना का आबंटन संशोधित चरण में आधा कर दिया गया। यह योजना के कार्यान्वयन में अंतराल की तरफ इशारा देता है। 

तालिका 4 में पीएमजेएवाई तथा स्वास्थ्य और वेलनेस केंद्रों सहित आयुष्मान भारत कार्यक्रम के कार्यान्वयन से संबंधित विवरण दिए गए हैं।

तालिका 4पीएमजेएवाई के कार्यान्वयन की स्थिति (1 अप्रैल 2021 से 28 नवंबर, 2021) 

संकेतक

अखिल भारतीय

ग्राहकों की कुल संख्या

82.6 करोड़*

आयुष्मान कार्ड जारी

17.2 करोड़

राज्यों/यूटी को कार्यान्वयन के लिए वितरित धनराशि 

2,544 करोड़ रुपए

अस्पताल में कुल अधिकृत भर्तियां 

74.7 लाख

अस्पताल में अधिकृत भर्तियों (कोविड-19 और गैर कोविड-19 इलाज) पर दावों का भुगतान 

2,450 करोड़ रुपए*

कोविड-19 इलाज के लिए अधिकृत भर्तियों पर दावों का भुगतान

1,056 करोड़ रुपए*

स्वास्थ्य और वेलनेस केंद्र  

90,030*

नोट: *6 फरवरी, 2022 तक। 

स्रोतलोकसभा तारांकित प्रश्न संख्या 95, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, 3 दिसंबर, 2021 को उत्तर दिया गयाएचडब्ल्यूसी पोर्टलआयुष्मान भारतपीआरएस। 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा है कि पीएमजेएवाई को कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।[28] मुख्य समस्याओं में से एक है, लाभार्थियों को चिन्हित करना। योजना के अंतर्गत केवल उन्हीं लोगों को बीमा लाभ मिलता है, जोकि एसईसीसी 2011 में शामिल हैं। यह डेटाबेस एक दशक पुराना है और इसलिए यह संभव है कि इसमें वे सभी लोग शामिल न हों जिन्हें इस बीमा की जरूरत है। स्वास्थ्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने सुझाव दिया था कि मंत्रालय को पीएमजेएवाई के अंतर्गत लाभार्थियों की सूची को व्यापक बनाना चाहिए।19 कमिटी (2021) ने यह भी कहा था कि कोविड-19 के कारण भी पीएमजेएवाई के उपयोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2018) और 15वें वित्त आयोग के अध्ययन (2019) में कहा गया था कि पीएमजेएवाई सिर्फ आरएसबीवाई का विस्तार है। आरएसबीवाई प्रति वर्ष प्रति परिवार को 30,000 रुपए का कवरेज प्रदान करती है।20,[29]  इसलिए योजना का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए आरएसबीवाई की असफलताओं और कमियों का विश्लेषण किया जाना चाहिए। यह देखा जाएगा कि: (i) आरएसबीवाई सभी संभावित लाभार्थियों को कवर करती है, (ii) योजना के अंतर्गत अस्पताल में भर्ती होने की दर बढ़ी है, और (iii) योजना के अंतर्गत बीमा कंपनियां लाभपरक थीं। आरएसबीवाई के कार्यान्वयन की निम्नलिखित मुख्य चुनौतियां चिन्हित की गईं: (i) लाभार्थियों के नामांकन की निम्न दर, (ii) ‘आउट ऑफ पॉकेट’ खर्च में बढ़ोतरी, और (iii) स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के एम्पैनलमेंट में समस्याएं।[30]  

मानव संसाधनों में कमी 

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया था कि स्वास्थ्यकर्मियों का कुल घनत्व 10,000 की आबादी पर 23 के करीब है, जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित सीमा से कम है।4  डब्ल्यूएचओ ने 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने के लिए 10,000 की आबादी पर 44.5 स्वास्थ्यकर्मियों के घनत्व का सुझाव दिया है, और यह इससे काफी कम है। 2019 तक 1,511 लोगों पर एक डॉक्टर है, जोकि डब्ल्यूएचओ के स्टैंडर्ड से कम है। संगठन का स्टैंडर्ड 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर का है।12 इसी तरह 670 लोगों पर एक नर्स है जोकि 300 लोगों पर एक नर्स के डब्ल्यूएचओ स्टैंडर्ड से कम है।12 दिसंबर 2021 में डॉक्टरों की कमी से संबंधित एक प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने जवाब दिया था कि नवंबर 2021 तक देश में डॉक्टरजनसंख्या अनुपात 1:834 है।[31] यानी 80पंजीकृत एलोपैथिक डॉक्टर्स और 5.65 लाख आयुष डॉक्टर्स उपलब्ध हैं। 

31 मार्च, 2020 तक महिला स्वास्थ्यकर्मियों/एएनएम के स्वीकृत पदों पर 2की कमी (नियमों के अनुसार न्यूनतम जरूरत के आधार पर) और पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों/एएनएम (एससीज़ और पीएचसीज़) की 65.5कमी थी।16  पीएचसीज़ में एलोपैथिक डॉक्टरों के संबंध में मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कुल जरूरत के हिसाब से 6.8की कमी थी।16 इसके अतिरिक्त इन स्वीकृत पदों पर भी रिक्तियां थीं। महिला स्वास्थ्यकर्मियों/एएनएम की रिक्तियां 14.1%, पुरुष स्वास्थ्यकर्मियों/एएनएम की रिक्तियां 37% (एससीज़ और पीएचसीज़ में) और पीएचसीज़ में डॉक्टरों की 24.1% थीं।16 

15वें वित्त आयोग ने कहा कि डॉक्टरों की उपलब्धता में क्षेत्रीय और राज्यवार भिन्नताएं हैं। उसने सुझाव दिया था कि अखिल भारतीय सेवा एक्ट, 1951 के अंतर्गत अखिल भारतीय चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा का गठन किया जाना चाहिए। 

मेडिकल और संबद्ध स्वास्थ्य सेवा शिक्षापिछले तीन वर्षों के दौरान संसद ने ऐसे कई कानून पारित किए जोकि भारत में मेडिकल शिक्षा और पेशे का रेगुलेशन करने का प्रयास करते हैं। राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन एक्ट, 2019 एनएमसी की स्थापना करता है और भारतीय मेडिकल काउंसिल (एमसीआई) का स्थान लेता है।[32] एनएमसी भारत में मेडिकल शिक्षा और प्रैक्टिस का निरीक्षण करेगी। राष्ट्रीय एलाइड और हेल्थकेयर प्रोफेशंस आयोग एक्ट, 2021 एलाइड और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स की शिक्षा और प्रैक्टिस को रेगुलेट और मानकीकृत करने का प्रयास करता है।[33]  

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई): पीएमएसएसवाई को 2003 में प्रस्तावित किया गया था जिसके निम्नलिखित लक्ष्य हैं: (i) सस्ती और भरोसेमंद तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को सही करना, और (ii) देश में अच्छी मेडिकल शिक्षा की सुविधाओं को बढ़ाना।[34]  इसमें एम्स जैसे संस्थान स्थापित करना और राज्य सरकारों के कुछ अस्पतालों को अपग्रेड करना शामिल है। योजना के दायरे में 20 नए एम्स औऱ 71 राज्य सरकारी अस्पताल आते हैं।35

2018 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने कहा था कि सभी नए एम्स की स्थापना तय समय से करीब पांच साल पीछे चल रही है।[35]  ऐसा विलंब राज्यों के सरकारी अस्पतालों के अपग्रेडेशन में भी देखा गया है। इसके अतिरिक्त यह पाया गया है कि मंत्रालय ने चरण 1 में छह नए एम्स की स्थापना के लिए प्रति संस्थान 332 करोड़ रुपए की पूंजीगत लागत का अनुमान लगाया था। चार वर्ष बाद योजना की कमियों के कारण और जरूरतों का आकलन करने पर यह लागत प्रति संस्थान 820 करोड़ रुपए है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2017 और 2018) का कहना है कि इससे समय और लागत के खराब आकलन का संकेत मिलता है, जिसके कारण आबंटित धनराशि का उपयोग नहीं हो पाया।30,[36]  

रेखाचित्र 3पीएमएसएसएवाई को वार्षिक आबंटन (2010-22) (करोड़ रुपए में) 

image

नोट: 2021-22 और 2022-23 के आंकड़े क्रमशः संशोधित अनुमान और बजट अनुमान हैं।

स्रोतकेंद्रीय बजट 2010-11 से 2022-23; पीआरएस।

2022-23 में पीएमएसएसवाई को 10,000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए। यह 2021-22 के संशोधित अनुमानों (7,400 करोड़ रुपए) की तुलना में 35की वृद्धि है। केंद्र सरकार नई दिल्ली के एम्स, चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च और पुद्दूचेरी के जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रैजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च जैसे स्वायत्त निकायो को अनुदान भी देती है। 2022-23 में इन स्वायत्त निकायों को 10,002 करोड़ रुपए आबंटित किए गए जिसमें 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 14की वृद्धि है।

मुख्य स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार है लेकिन नागरिकों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करना बाकी है

जबकि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य वित्तपोषण यह समझने का अच्छा मैट्रिक है कि कोई देश अपने स्वास्थ्य संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर में कितना निवेश करता है, फिर भी विभिन्न संकेतकों का प्रदर्शन दर्शाता है कि देश की आबादी कितनी स्वस्थ है और क्या स्वास्थ्य सेवाएं सभी नागरिकों के लिए सुगम हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) (2019-20) के नतीजों से संकेत मिलता है कि एनएचएफएस-4 (2015-16) की तुलना में स्वास्थ्य संकेतकों में कई सुधार हुए हैं।[37] इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) शिशु मृत्यु दर में कमी, (ii) टीकाकरण कवरेज में सुधार, (iii) सैनिटेशन की सुविधा में सुधार तथा खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन वाले परिवारों में वृद्धि, और (iv) संस्थागत प्रसव में वृद्धि।39

तालिका 5 में एनएचएम फ्रेमवर्क के अंतर्गत कुछ मुख्य लक्ष्यों की स्थिति को प्रदर्शित किया गया है।

तालिका 5एनएचएम के कुछ मुख्य लक्ष्यों की स्थिति 

संकेतक

लक्ष्य (2012-20)

हालिया स्थिति 

आईएमआर

25

35 (2019-21)

एमएमआर

1,00,000 जीवित जन्म पर 100

113 (2016-18)

टीएफआर

2.1

2.0 (2019-21)

मलेरिया की वार्षिक घटनाएं

< .001

0.02 (2019)

तपेदिक की वार्षिक मौजूदगी और मृत्यु दर

आधा करना

घटनाएं 1990 में एक लाख पर 300 से घटकर 2017 में एक लाख पर 204 

नोट: आईएमआर- शिशु मृत्यु दरएमएमआर- मातृत्व मृत्यु दरटीएफआर-कुल प्रजनन दर। 

स्रोतस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण स्टैटिस्टिक्स 2019-20; भारत में मातृत्व मृत्यु दर पर स्पेशल बुलेटिन 2016-18; राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 (2019-21); अतारांकित प्रश्न संख्या 711, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, लोकसभा, 23 जुलाई, 2021पीआरएस।

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया था कि सूचना विषमता (इनफॉरमेशन एसिमिट्री) उन मुख्य कारणों में से एक है जिसके चलते स्वास्थ्य क्षेत्र बाजार की विफलता का शिकार हो सकता है। उसमें कहा गया है कि भारत में मरीज स्वास्थ्य क्षेत्र में मिलने वाली सूचना का महत्व शायद ही समझते हैं। उदाहरण के लिए कई मेडिकल सेवाओं, जैसे रोकथामकारी देखभाल (प्रिवेंटिव केयर) या मानसिक स्वास्थ्य के मामले में, संभव है कि मरीज उन सेवाओं की गुणवत्ता के बारे में कभी नहीं जान पाएं जो उन्हें मिलती है। सर्वेक्षण में निम्नलिखित के लिए क्षेत्रगत रेगुलेटर्स (निजी स्वास्थ्य सेवा) के गठन का सुझाव दिया गया: (i) स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के निरीक्षण और रेगुलेशन के लिए, (ii) क्षेत्र में सूचना विषमता के निवारण के लिए। इसके अतिरिक्त सर्वेक्षण में कहा गया था कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सूचना विषमता को कम करने से बीमा प्रीमियम कम करने और लोगों के कल्याण में मदद मिलेगी। 

स्वास्थ्य अनुसंधान अभी पिछड़ा हुआ है

2021-22 में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को 3,201 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं, जिसमें 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 4और 2020-21 में वास्तविक व्यय की तुलना में 2की वृद्धि है। 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा था कि स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए जितनी धनराशि की जरूरत है, उसके मुकाबले विभाग का आबंटन कम है।[38]  उसने सुझाव दिया था कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का कम से कम 10बजट स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए निर्धारित होना चाहिए। हालांकि 2021 में कमिटी ने सुझाव दिया था कि मंत्रालय के कुल व्यय का 5स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए आबंटित किया जाना चाहिए।[39]  2022-23 के बजट अनुमानों के अनुसार, स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग का आबंटन, मंत्रालय के कुल आबंटन का 4है।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (नवंबर 2020) ने कहा था कि 2019-20 में वैज्ञानिक अनुसंधान में शामिल अन्य विभागों के आबंटन की तुलना में जिन विभागों का आबंटन सबसे कम था, उनमें से एक स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग भी था (1,861 करोड़ रुपए)।21  कमिटी ने स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के बजट आउटकम्स को बढ़ाने के सुझावों को दोहराया था। कमिटी ने कहा था कि धनराशि की कमी का प्रतिकूल असर नई वायरल रिसर्च एंड डायग्नॉस्टिक लेबोरेट्रीज़, कॉलेजों में मल्टी डिस्पिलिनरी रिसर्च यूनिट्स और राज्यों में मॉडल ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसंधान इकाइयों की स्थापना पर पड़ सकता है।  

इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा था कि सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुसंधान में निवेश अपर्याप्त है क्योंकि भारत अपने विभिन्न क्षेत्रों की अनुसंधान और विकास संबंधी गतिविधियों पर जीडीपी का सिर्फ 0.65निवेश करता है।21  उसने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को दो वर्षों में स्वास्थ्य अनुसंधान पर अपने व्यय को बढ़ाकर जीडीपी के कम से कम 1.72% के विश्व औसत पर लाना चाहिए।

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2017, 2018, 2021) ने स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग की धनराशि की अनुमानित मांग और वास्तविक व्यय के बीच लगातार बेमेलपन पाया था।40,[40],[41] कमिटी (2018) ने यह भी गौर किया था कि विभाग परियोजनाओं के कार्यान्वयन में धनराशि की कमी की जानकारी देता था, और दूसरी तरफ जारी की गई धनराशि का पूरा उपयोग नहीं किया गया था।

मांग और आबंटन के बीच मेल न होने से कई तरह के असर हुए, जैसे नए लैब्स को मंजूरी देने, जारी परियोजनाओं के लिए अनुदान देने, और स्वास्थ्य अनुसंधान इंफ्रास्ट्रक्चर के अपग्रेडेशन आदि में रुकावट आई।41 इससे मेडिकल अनुसंधान के नतीजों पर भी असर हुआ। उदाहरण के लिए 2019 में आईसीएमआर ने सिर्फ 799 रिसर्च पेपर्स छापे और 25 पेटेंट्स फाइल किए गए।40  

पीएम एबीएचआईएम के अंतर्गत वन हेल्थ का एक राष्ट्रीय संस्थान, चार नए नेशनल इंस्टीट्यूट्स फॉर विरोलॉजी, डब्ल्यूएचओ साउथ ईस्ट एशिया क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय रिसर्च प्लेटफॉर्म, नौ बायोसेफ्टी लेवल III लेबोरेट्रीज़ और पांच नए रोग नियंत्रण क्षेत्रीय राष्ट्रीय केंद्र स्थापित किए जाएंगे।[42] इसके अतिरिक्त सभी जिलों में एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य लैब्स बनाए जाएंगे।

डिजिटल हेल्थ इकोसिस्टम

राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में डिजिटल हेल्थ को रेगुलेट, विकसित और तैनात करने के लिए राष्ट्रीय डिजिटल हेल्थ अथॉरिटी (एनडीएचए) के गठन का प्रस्ताव था। नीति में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की कार्य कुशलता और परिणामों में सुधार करने के लिए व्यापक रूप से डिजिटल उपायों के इस्तेमाल का सुझाव दिया गया था। उसमें ऐसी एकीकृत स्वास्थ्य सूचना प्रणाली का प्रस्ताव है जोकि सभी हितधारकों की जरूरतों को पूरा करती है और कार्यकुशलता, पारदर्शिता और नागरिकों के अनुभवों में सुधार करती है। 

आयुष्मान भारत डिजिटल मिशनसितंबर 2021 में इस मिशन को शुरू किया गया था।[43] यह व्यक्तिगत स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स का सिस्टम बनाता है और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान में राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी सुनिश्चित करता है। मिशन के अंतर्गत हर नागरिक को डिजिटल हेल्थ आइडेंटिटी दी जाएगी। नागरिकों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड खोए नहीं, इसलिए उन्हें डिजिटल तरीके से स्टोर किया जाएगा। नागरिकों के पास यह विकल्प होगा कि वे मेडिकल प्रैक्टीशनर्स के साथ अपने स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स को साझा करने पर सहमति दें।  

जुलाई 2021 में राष्ट्रीय हेल्थ अथॉरिटी (एनएचए) ने युनिफाइड हेल्थ इंटरफेस (यूएचआई) की डिजाइन और कार्यक्षमता पर टिप्पणियां आमंत्रित करने के लिए एक परामर्श पत्र प्रकाशित किया।[44]  यूएचआई को राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (एनडीएचएम) की आधारभूत सतह के रूप में प्रस्तावित किया गया है और इसमें ओपन प्रोटोकॉल के जरिए भारत में स्वास्थ्य सेवा की इंटरऑपरेबिलिटी को विस्तार देने की परिकल्पना की गई है। यूएचआई का लक्ष्य ऐसी सेवाओं को एनेबल करने वाले टेक्नोलॉजी पाथवेज़ के जरिए डिजिटल स्वास्थ्य सेवा के अनुभवों को सुव्यवस्थित करना है।

2022-23 में राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन को 200 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं। 2021-22 के संशोधित अनुमानों के अनुसार, मिशन को 75 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे।

कोविड-19अतिरिक्त व्यय का वित्तपोषण और वैक्सीनेशन

कोविड-19 के प्रबंधन हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास

अप्रैल 2020 में केंद्र सरकार ने कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज के रूप में 15,000 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की।[45] देश की स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने के लिए अगले चार वर्षों में इस धनराशि का उपयोग किया जाएगा। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) डायग्नॉस्टिक लेबोरेट्रीज़ की स्थापना, (ii) मौजूदा स्वास्थ्य केंद्रों को बढ़ाना (जैसे अस्पताल), और (iii) स्वास्थ्यकर्मियों का कल्याण (जैसे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बीमा)।

3 फरवरी, 2022 तक 3,249 ऑपरेशनल लेबोरेट्रीज़ (1,411 सरकारी और 1,838 निजी) आईसीएमआर को रिपोर्ट कर रही हैं।[46]  यह मार्च 2020 (79) के मुकाबले काफी अधिक है।[47] आईसीएमआर ने कोविड-19 टेस्टिंग के लिए आवेदन करने वाली लैब्स की मंजूरी प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए 12 मेंटर इंस्टीट्यूट्स को स्थापित किया है।[48] केंद्र सरकार ने जीनोम सीक्वेंसिंग और सार्स-कोवि-2 के वेरिएंट स्ट्रेंन्स के विकास की ट्रैकिंग के लिए इंडियन सार्स-कोवि-2 जीनोम सर्विलांस कंसोर्टियम (इन्साकॉग) की भी स्थापना की।[49]  21 दिसंबर, 2021 तक देश में इन्साकॉग की 38 जीनोम सीक्वेंसिंग लेबोरेट्रीज़ हैं।50  

गृह मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा था कि सार्वजनिक और निजी अस्पतालों के इंफ्रास्ट्रक्चर और सेवाओं में बहुत अंतर हैं।[50]  इसमें सार्वजनिक और निजी, दोनों अस्पतालों में आईसीयू बेड्स की गैर अनुपातिक उपलब्धता शामिल है। यह भी कहा गया कि महामारी के दौरान सरकारी अस्पतालों पर अधिक दबाव था क्योंकि निजी अस्पताल या तो पहुंच से दूर थे, या सभी के लिए वहन करने योग्य नहीं थे। कमिटी ने सुझाव दिया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए सार्वजनिक अस्पतालों को अधिक धनराशि आबंटित की जानी चाहिए। इससे सार्वजनिक अस्पतालों को भविष्य में ऐसी महामारियों के लिए उचित तैयार करने में मदद मिलेगी। 

कोविड-19 महामारी के प्रकोप और उसके प्रबंधन पर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा था कि राज्यों द्वारा संचालित अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की कमी है।21  इसके अतिरिक्त उसने कहा था कि भारत के अनेक अस्पताल और मेडिकल कॉलेज फैकेल्टी की स्वीकृत संख्या से कम पर काम कर रहे हैं और स्पैशिएलिटी विभाग जरूरी फैकेल्टी की कमी के कारण काम नहीं कर रहे। कमिटी ने जल्द से जल्द फैकेल्टी को भरने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को सुझाव दिया है।

तालिका 6कोविड-19 संबंधी व्यय के लिए आबंटन

मुख्य मदें

2020-21 वास्तविक

2021-22 संअ

2022-23 बअ

कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज 

13,079

1,691

 

कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज (चरण-II)

 

14,567

 

पीएम गरीब कल्याण पैकेज – कोविड-19 से संघर्ष करने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए बीमा योजना

 

814

226

हेल्थकेयर वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए कोविड-19 वैक्सीनेशन

137

   

कोविड-19 वैक्सीनेशन के लिए सहयोग *

 

39,000

5,000

नोट: *वित्त मंत्रालय की मांग संख्या 42 के अंतर्गत आबंटन (राज्यों को हस्तांतरण)। 

स्रोतमांग संख्या 42, 46, 47, एक्सपेंडिचर बजट 2022-23; पीआरएस। 

कोविड-19 वैक्सीनेशन

वर्तमान में भारत में तीन वैक्सीन्स लगाई जा रही हैं– (i) भारतीय सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित कोविशील्ड, (ii) भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सीन, और (iii) डॉक्टर रेड्डीज़ लेबोरेट्रीज़ और स्पूतनिक एलएलसी द्वारा विकसित स्पूतनिक वी। दिसंबर 2021 में 12-18 वर्ष के बच्चों के लिए कोवैक्सीन को इमरजेंसी यूज़ ऑथराइजेशन दिया गया और 3 जनवरी, 2022 से इसे 15-18 वर्ष के आयु वर्ग बच्चों को लगाया जा रहा है।[51],[52],[53],[54] इसके अतिरिक्त प्राथमिकता वाले समूहों जिन्हें वैक्सीन्स की दो डोज़ लग चुकी है, को 10 जनवरी, 2022 से ऐहतियाती डोज़ दी जाएगी। ईयूए का अर्थ है: (iअस्वीकृत चिकित्सा उत्पादों के उपयोग को मंजूरी देनाया (iiसार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों (जैसे कि कोविड-19 महामारी) के दौरान अनुमोदित चिकित्सा उत्पादों का अस्वीकृत उपयोग।52 5 फरवरी, 2022 तक करीब 95 करोड़ लोगों को वैक्सीन की पहली डोज़ मिली चुकी है, जिनमें से 73 करोड़ लोग पूरी तरह से वैक्सीनेटेड हैं।[55] 1.47 करोड़ लोगों को ऐहतियाती डोज़ मिल गई है।  

भारतीय ड्रग कंट्रोलर जनरल (डीसीजीआई) ने भारत में प्रतिबंधित इमरेंजसी उपयोग के लिए कई दूसरी वैक्सीन्स को मंजूरी दी है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मॉडर्ना कोविड-19 वैक्सीन, (ii) जेनसेन (जॉनसन एंड जॉनसन द्वारा विकसित), (iii) जायकोवि-ड (जायडस कैडिला द्वारा विकसित, (iv) कोरबेवैक्स (बायोलॉजिकल ई द्वारा विकसित), और (v) भारतीय सीरम इंस्टीट्यूट और आईसीएमआर द्वारा विकसित कोवोवैक्स।[56],[57],[58],[59]  इन सभी वैक्सीन्स को 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों को लगाया जा सकता है। जायकोवि-ड को 12 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों को लगाया जा सकता है।59 दिसंबर 2021 में डीसीजीआई ने एंटी वायरल दवा मोलनुपिराविर को इमरजेंसी यूज़ ऑथराइजेशन दे दिया है।

तालिका 7वैक्सीनेशन अभियान के चरण (जनवरी 2022)[60] 

तारीख

समूह

 
 

16 जनवरी, 2021

प्राथमिकता वाले समूह में हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स शामिल हैं

 

1 मार्च, 2021

(i) 60 वर्ष से अधिक के व्यक्ति, और (ii) (ii) को-मॉरबिडिटी* वाले 45 वर्ष से अधिक के लोग*

 

1 अप्रैल, 2021

45 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति

 

1 मई, 2021

18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति

 

3 जनवरी, 2022

15 से 18 वर्ष के बीच के बच्चेप्राथमिकता वाले समूहों के लिए ऐहतियाती डोज़

 

नोट: *को-मॉरबिडिटी में दिल का दौरासांस संबंधी बीमारियां और लिम्फोमा शामिल हैं। 

स्रोतस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालयपीआरएस।

वैक्सीन्स लगानाकेंद्र सरकार ने अगस्त 2020 में कोविड-19 वैक्सीन पर राष्ट्रीय एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया था जोकि भारत में कोविड-19 वैक्सीन के विकास और वितरण की रणनीतियों के संबंध में सुझाव देगा।[61]   यह ग्रुप निम्नलिखित मामलों पर सरकार को सलाह देता है: (i) वैक्सीनेशन के लिए जनसंख्या समूहों को प्राथमिकता, (ii) वैक्सीन उम्मीदवारों का चयन, (iii) इनवेंटरी मैनेजमेंट और डिलिवरी, (iv) वैक्सीन मैन्यूफैक्चरिंग, और (v) कोल्ड चेन स्टोरेज और संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर।62 

वैक्सीन कुशलता से, और पारदर्शी तरीके से लगाई जा सके, इसके लिए सरकार ने (i) हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स का डेटाबेस बनाया, (ii) कोल्ड चेन्स को बढ़ाया, और (iii) सिरिंज और नीडल खरीदीं।[62]   इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने वैक्सीन एडमिनिस्ट्रेशन और वितरण के लिए राज्य और जिला स्तरीय प्रशासन के सहयोग से कोविड-19 वैक्सीन इनफॉरमेशन नेटवर्क को-विन नाम से एक डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया।63 

वैक्सीन्स का उत्पादन, खरीद और मूल्य निर्धारणजनवरी 2021 में सरकार ने कोविशील्ड और कोवैक्सीन के निर्माताओं (भारतीय सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक) से वैक्सीन्स खरीदनी शुरू कीं।[63]  केंद्र सरकार ने निम्नलिखित को मुफ्त में वैक्सीनेट करने के लिए 50वैक्सीन्स खरीदीं: (i) हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स, और (ii) 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोग।[64]  सरकार ने कुछ मानदंडों के आधार (जैसे मामलों की संख्या और वैक्सीन की वेस्टेज) पर अपने हिस्से से राज्यों को वैक्सीन्स आबंटित कीं। बाकी 50डोज़ राज्य सरकारों द्वारा और ओपन मार्केट में खरीदी जा सकती थीं (प्रत्येक के हिस्से में 25%)। मई 2021 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने घोषणा की कि मई-जुलाई 2021 के बीच 51 करोड़ वैक्सीन डोज़ खरीदी जाएंगी।[65]  

21 जून, 2021 को नई नीति लागू की गई, जिसके अंतर्गत वैक्सीन्स की केंद्रीकृत खरीद का प्रावधान किया गया।[66]  संशोधित नीति के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा 75खरीद की गई और शेष 25% निजी क्षेत्र के लिए खुली है (अधिकतम मूल्य निर्धारण के साथ)।[67]   सरकार मैन्यूफैक्चरर्स के साथ खरीद मूल्य पर लगातार बातचीत करती है। राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा मुफ्त में वैक्सीन्स दी जाती हैं। निजी अस्पताल वैक्सीन की कीमत पर 150 रुपए तक चार्ज कर सकते हैं।67 उल्लेखनीय है कि युनाइटेड स्टेट्स और युनाइटेड किंगडम में सभी वैक्सीन्स को मुफ्त लगाया गया है।[68],[69]

2021-22 में वित्त मंत्रालय ने कोविड-19 वैक्सीनेशन पर 35,000 करोड़ रुपए के व्यय का अनुमान लगाया था। 2021-22 के संशोधित अनुमानों के हिसाब से इस राशि के बढ़कर 39,000 करोड़ रुपए होने का अनुमान है। 2022-23 में मंत्रालय ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के लिए 5,000 करोड़ रुपए आबंटित किए हैं। रसायन एवं उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (मार्च 2021) का कहना था कि भारत में सभी वयस्कों को वैक्सीनेट करने के लिए 276 करोड़ डोज़ की जरूरत होगी।[70]  उसने अनुमान लगाया था कि इस पर लगभग 68,310 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।

9 दिसंबर, 2021 तक केंद्र सरकार ने कोविड-19 वैक्सीन्स खरीदने पर 19,675 करोड़ रुपए खर्च किए थे ताकि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को उनकी मुफ्त में सप्लाई की जा सके।[71]

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2020) ने कहा था कि भारत में इतने बड़े वैक्सीनेशन कार्यक्रम के लिए जरूरी कोल्ड चेन स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। उसने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को सुझाव दिया था कि देश में वैक्सीन्स के आसान वितरण के लिए वह कोल्ड चेन स्टोरेज सिस्टम को अपग्रेड करे।[72]  इसके अतिरिक्त उसने केंद्र सरकार को सुझाव दिया था कि वह देश के कोल्ड स्टोरेज इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को सुनिश्चित करे जिससे वैक्सीन्स क उचित प्रबंधन सुनिश्चित हो।

तालिका 8सरकारी खरीद और निजी प्रशासन के लिए वैक्सीन्स की कीमत 

नाम

कोविशील्ड

कोवैक्सीन

स्पूतनिक वी

सरकारी खरीद के लिए कीमत/डोज़

200

250***

995

निजी अस्पतालों के लिए मूल्य

मैन्यूफैक्चरर द्वारा घोषित  कीमत/डोज़

600

1,200

948

जीएसटी और सेवा शुल्क **

180

210

197

वैक्सीन की अधिकतम कीमत

780

1,410

1,415

नोट: *न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, कई महीनों के दौरान सरकारी खरीद की कीमत बदलती रही है।[73],[74] यहां कीमत/डोज़ जनवरी 2021 के दिशानिर्देशों पर आधारित हैं।

** इसमें 5% जीएसटी और अधिकतम 150 रुपए का सेवा शुल्क शामिल हैं जिसे निजी अस्पताल वैक्सीन लगाने के लिए वसूल सकते हैं। 

*** उल्लेखनीय है कि कोवैक्सीन के निर्माता भारत बायोटेक ने जनवरी 2021 मे केंद्र सरकार को 16.5 लाख डोज़ मुफ्त दी थीं। 

स्रोतपत्र संख्या 2079203/2021/टीकाकरणस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, 8 जून, 2021; प्रेस इनफॉरमेशन ब्यूरोपीआरएस।

अनुलग्नक

तालिका 92022-23 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आबंटन (करोड़ रुपए में) 

मुख्य मदें

2020-21 वास्तविक

2021-22 बअ

2021-22 संअ

2022-23 बअ

2021-22 संअ और 2022-23 बअ के बीच परिवर्तन का %

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग

77,569

71,269

82,921

83,000

0.1%

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग

3,125

2,663

3,080

3,201

3.9%

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) 

6,840

7,000

7,400

10,000

35.1%

राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी नियंत्रण कार्यक्रम

2,815

2,900

2,350

2,623

11.6%

परिवार कल्याण योजनाएं

462

387

306

484

58.2%

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

37,080

36,577

34,447

37,000

7.4%

 राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन 

30,329

30,100

27,850

 

 

 राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन

950

1,000

500

 

 

 आरसीएच और स्वास्थ्य प्रणाली की मजबूती  के लिए फ्लेक्सिबल पूल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन 

 

 

 

22,317

 

 इंफ्रास्ट्रक्चर का रखरखाव

 

 

 

6,343

 

 एनआरएचएम के राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रबंधन को मजबूती

 

 

 

200

 

तृतीयक देखभाल कार्यक्रम

301

501

431

501

16.1%

राज्य ड्रग रेगुलेटरी सिस्टम की मजबूती

115

175

65

100

53.8%

स्वास्थ्य एवं मेडिकल शिक्षा के लिए मानव संसाधन  

5,386

4,800

5,600

7,500

33.9%

स्वायत्त निकाय (एम्स, आईसीएमआर सहित) 

9,177

10,924

10,916

12,220

11.9%

आयुष्मान भारत -प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई) 

3,200

6,400

3,100

6,400

41%

प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (पीएम एबीएचआईएम) 

 

 

1,040

5,846

462.1%

सीजीएचएस पेंशनधारियों का मेडिकल इलाज (पीओआरबी) 

2,794

2,300

2,750

2,645

-3.8%

वैधानिक और रेगुलेटरी निकाय

226

316

314

335

6.9%

स्वास्थ्य अनुसंधान इंफ्रास्ट्रक्चर विकास 

148

 

177

0

9%

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) 

0

1

1

45

4400%

अन्य

6,011

7,127

6,654

8,377

26%

कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज

11,804

 

1,165

   

कोविड-19 आपातकालीन प्रतिक्रिया और स्वास्थ्य प्रणाली तैयारी पैकेज (चरण-II) 

 

 

14,567

 

 

पीएम गरीब कल्याण पैकेज – कोविड-19 से संघर्ष करने वाले हेल्थकेयर वर्कर्स के लिए बीमा योजना

 

 

814

226

-72.2%

हेल्थकेयर वर्कर्स और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए कोविड-19 वैक्सीनेशन

137

       

कुल

80,694

73,932

86,001

86,201

0.2%

स्रोत: मांग संख्या 46 और 47, अनुदान मांगस्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालयकेंद्रीय बजट, 2022-23; पीआरएस।

स्वास्थ्य क्षेत्र पर राज्यवार आंकड़े

तालिका 10राज्यों में मुख्य संकेतकों की तुलना

राज्य

 

जनसंख्या (मिलियन में) 2011

अशोधित (क्रूड) जन्म 2017

कुल प्रजनन दर 2019-21

5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर  2010-15

शिशु मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्म) 2020

अंडरवेट बच्चे (% में) (%) 2015-16

जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (वर्ष) 2014-18

मातृत्व मृत्यु दर    
 2016-18    

 

प्रति 1,000 पर जीवित जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या

कोई महिला अपने पूरे जीवन काल में जितने बच्चों को जन्म देती है

प्रति 1,000 जीवित जन्म पर 0-5 आयु वर्ग के बीच के बच्चों की मृत्यु की औसत संख्या

प्रति 1,000 जीवित जन्म पर, एक वर्ष पूर्ण करने से पहले मृत बच्चों की संख्या

स्टंटिंग और वेस्टिंग का संयुक्त सूचकांक

मौजूदा मृत्यु दर को देखते हुए शिशु कितना लंबा जीवन जी सकता है

प्रति 1,00,000 जीवित जन्म पर माताओं की मृत्यु की संख्या

आंध्र प्रदेश

49

16

1.7

41

30.3

32%

70

65

असम

31

21

1.9

57

31.9

30%

67

215

बिहार

104

26

3.0

58

46.8

44%

69

149

छत्तीसगढ़

26

23

1.8

64

44.3

38%

65

159

गुजरात

60

20

1.9

44

31.2

39%

70

75

हरियाणा

25

21

1.9

41

33.3

29%

70

91

झारखंड

33

23

2.3

54

37.9

48%

69

71

कर्नाटक

61

17

1.7

32

25.4

35%

69

92

केरल

33

14

1.8

7

4.4

16%

75

43

मध्य प्रदेश

73

25

2.0

65

41.3

43%

67

173

महाराष्ट्र

112

16

1.7

29

23.2

36%

73

46

ओड़िशा

42

18

1.8

48

36.3

34%

69

150

पंजाब

28

15

1.6

33

20

22%

73

129

राजस्थान

69

24

2.0

51

30.3

37%

69

164

तमिलनाडु

72

15

1.8

27

18.6

19%

72

60

तेलंगाना

35

17

1.8

32

26.4

29%

70

63

उत्तर प्रदेश

200

26

2.4

78

50.4

40%

65

197

पश्चिम बंगाल

91

15

1.6

32

22

32%

72

98

अरुणाचल प्रदेश

1

18

1.8

33

12.9

19%

   

दिल्ली

17

15

1.6

42

24.5

27%

74

 

गोवा

1

13

1.3

13

5.6

24%

   

हिमाचल प्रदेश

7

16

1.7

38

25.6

21%

73

 

जम्मू और कश्मीर

13

15

1.4

38

16.3

17%

74

 

मणिपुर

3

15

2.2

26

25

14%

   

मेघालय

3

23

2.9

40

32.3

29%

   

मिजोरम

1

15

1.9

46

21.3

12%

   

नागालैंड

2

14

1.7

37

23.4

17%

   

सिक्किम

1

16

1.1

32

11.2

14%

   

त्रिपुरा

4

13

1.7

33

37.6

24%

   

उत्तराखंड

10

17

1.9

47

39.1

27%

71

99

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह

0

11

1.3

13

20.6

22%

   

चंडीगढ़

1

14

1.4

38

NA

25%

   

दादरा और नगर हवेली 

0

24

1.8

42

31.8

39%

   

दमन और दीव

0

20

1.8

34

31.8

27%

   

लक्षद्वीप

0

15

1.4

30

0

23%

   

पुद्दूचेरी

1

13

1.5

16

2.9

22%

   

भारत

1,211

20

2.0

50

35.2

36%

69

113

स्रोत: जनसंख्या 2011; सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम 2019; स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण स्टैटिस्टिक्स 2017; भारत में मातृत्व मृत्यु दर पर स्पेशल बुलेटिन 2016-18; राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 (2019-21); पीआरएस।

[1] National Health Policy, 2017, Ministry of Health and Family Welfare, https://www.nhp.gov.in/nhpfiles/national_health_policy_2017.pdf.

[2] Demand No. 46, Department of Health and Family Welfare, Ministry of Health and Family Welfare, Union Budget 2022-23, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe46.pdf; Demand No. 47, Department of Health Research, Ministry of Health and Family Welfare, Union Budget 2022-23, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe47.pdf

[3] Chapter 10, Social Infrastructure, Employment and Human Development, Economic Survey 2020-21, Volume II, Ministry of Finance, https://www.indiabudget.gov.in/budget2021-22/economicsurvey/doc/vol2chapter/echap10_vol2.pdf

[4] Chapter 5, “Healthcare takes centre stage, finally!”, Economic Survey 2020-21 Volume I, Ministry of Finance, https://www.indiabudget.gov.in/budget2021-22/economicsurvey/doc/vol1chapter/echap05_vol1.pdf.  

[5] National Health Profile 2020, Ministry of Health and Family Welfare.  

[6] Economic Survey, 2015-16, Ministry of Finance, http://indiabudget.nic.in/budget2016-2017/es2014-15/echapter-vol1.pdf. 

[7] Economic Survey, 2016-17, Ministry of Finance, http://indiabudget.nic.in/es2016-17/echapter.pdf

[10] Receipt Budget 2022-23, Ministry of Finance, February 2022, https://www.indiabudget.gov.in/doc/rec/allrec.pdf

[13] Chapter VIII: Public Health Care System, Planning Commission of India, http://planningcommission.nic.in/aboutus/committee/strgrp/stgp_fmlywel/sgfw_ch8.pdf

[16] Rural Health Statistics 2019-20, Ministry of Health and Family Welfare, https://hmis.nhp.gov.in/downloadfile?filepath=publications/Rural-Health-Statistics/RHS%202019-20.pdf

[17] About HWC, Ayushman Bharat - Health and Wellness Centres, Ministry of Health and Family Welfare, https://ab-hwc.nhp.gov.in/#about

[18] Consolidate Report for the Week as on Date - 05-02-2022, Ayushman Bharat - Health and Wellness Centre, last accessed on February 2, 2022, https://ab-hwc.nhp.gov.in/home/Consolidated_Weekly_Report?state=0

[19] “Report no. 126: Demands for Grants 2021-22 (Demand No. 44) of the Department of Health and Family Welfare”, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 8, 2021, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/142/126_2021_7_15.pdf

[20] Report No. 123: The Outbreak of Pandemic Covid-19 and its Management, Department-Related Parliamentary Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, November 21, 2020, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/142/123_2020_11_15.pdf 

[21] Hospital beds (per 1,000 people), Work Bank Database, last accessed on February 4, 2021,  https://data.worldbank.org/indicator/SH.MED.BEDS.ZS.

[22] “PM Ayushman Bharat Health Infrastructure Mission”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, October 26, 2021.

[23] Executive Summary on Report- Health in India, NSS 75th round, Ministry of Statistics and Programme Implementation, https://mospi.gov.in/documents/213904/416362//Summary%20Analysis_Report_586_Health1600785338349.pdf/21af34ac-6c38-b39f-a82b-0152eb2ff1a8

[24] Health and Family Welfare Statistics 2019-20, Ministry of Health and Family Welfare, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/HealthandFamilyWelfarestatisticsinIndia201920.pdf

[25] National Health Accounts Estimates for India 2017-18, Ministry of Health and Family Welfare, https://nhsrcindia.org/sites/default/files/2021-11/National%20Health%20Accounts-%202017-18.pdf

[26] National Health Profile 2020, Ministry of Health and Family Welfare, https://www.cbhidghs.nic.in/showfile.php?lid=1155.   

[27] “Ayushman Bharat –Pradhan Mantri Jan AarogyaYojana (AB-PMJAY) to be launched by Prime Minister Shri Narendra Modi in Ranchi, Jharkahnd on September 23, 2018”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, September 22, 2018, https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1546948.

[28] Report no. 118: Demands for Grants 2020-21 (Demand No. 42) of the Department of Health and Family Welfare”, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 3, 2020, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/121/118_2021_12_14.pdf

[29] “Report no. 106: Demands for Grants 2018-19 (Demand No. 42) of the Department of Health and Family Welfare”, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 8, 2018, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/100/106_2019_7_10.pdf.

[30] Report No. 112, Standing Committee on Health and Family Welfare, December 28, 2018, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/113/112_2019_7_16.pdf

[31] Unstarred Question No. 2299, Lok Sabha Questions, Ministry of Health and Family Welfare, December 10, 2021, http://loksabhaph.nic.in/Questions/QResult15.aspx?qref=30726&lsno=17

[32] The National Medical Commission Act, 2019, https://egazette.nic.in/WriteReadData/2019/210357.pdf

[33] The National Commission for Allied and Healthcare Professions Act, 2021, https://egazette.nic.in/WriteReadData/2021/226213.pdf

[34] About Scheme, Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Yojana, Ministry of Health and Family Welfarehttp://pmssy-mohfw.nic.in/index1.php?lang=1&level=1&sublinkid=81&lid=127

[35]  Report No. 10, Performance Audit on Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Yojana, August 7, 2018, https://cag.gov.in/content/report-no10-2018-performance-audit-pradhan-mantri-swasthya-suraksha-yojana-ministry-health.

[36] “Report no. 99: Demands for Grants 2017-18 (Demand No. 42) of the Department of Health and Family Welfare”, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 20, 2017, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/99.pdf

[37] National Family Health Survey-5, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, December 15, 2020, http://rchiips.org/nfhs/factsheet_NFHS-5.shtml

[38] Report No. 119 – Demand for Grants of the Department of Health Research, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 3, 2020, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/121/119_2020_3_15.pdf

[39] Report No. 127 – Demand for Grants of the Department of Health Research, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 8, 2021, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/142/127_2021_7_11.pdf

[40] “Report no. 100: Demands for Grants 2017-18 (Demand No.43) of the Department of Health Research”, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 20, 2017, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/100.pdf.

[41] Report No. 107, Demand for Grants 2018-19 (Demand No. 43) of the Department of Health Research, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 2018, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/100/107_2018_6_16.pdf,

[42] Pradhan Mantri Ayushman Bharat Health Infrastructure Mission”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, November 30, 2021. 

[43] “Prime Minister of India launches countrywide Ayushman Bharat Digital Mission”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, September 27, 2021.

[44] Consultation Paper on Unified Health Interface, Ministry of Health and Family Welfare, July 23, 2021.

[45] “Government Reforms and Enablers, Major announcements and policy reforms under Aatma Nirbhar Bharat Abhiyan”, MyGov, May 17, 2020, https://blog.mygov.in/wp-content/uploads/2020/05/Aatma-Nirbhar-Bharat-Presentation-Part-5.pdf.

[46] Total Operational (initiated independent testing) Laboratories reporting to ICMR, February 3, 2022, Indian Council of Medical Research, Ministry of Health and Family Welfare, https://www.icmr.gov.in/pdf/covid/labs/archive/COVID_Testing_Labs_03022022.pdf

[47] ICMR website, Accessed on November 17, 2021, https://www.icmr.gov.in/index.html

[48] Unstarred Question No. 2659, Rajya Sabha Questions, December 21, 2021, https://pqars.nic.in/annex/255/AU2659.pdf

[49] Unstarred Question No. 2661, Rajya Sabha Questions, December 21, 2021, https://pqars.nic.in/annex/255/AU2661.pdf

[50] “Report No. 229: Management of COVID-19 Pandemic and Related Issues”, Standing Committee on Home Affairs, Rajya Sabha, December 21, 2020, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/15/143/229_2020_12_18.pdf

[51] “Press Statement by the Drugs Controller General of India (DCGI) on Restricted Emergency approval of COVID-19 virus vaccine”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, January 3, 2021. 

[52] “The National Regulator grants Permission for Restricted Use in Emergency Situations to Sputnik-V vaccine”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, April 13, 2021.

[53] Twitter, Ministry of Health and Family Welfare, March 24, 2021, last accessed on March 31, 2021, 

https://twitter.com/MoHFW_INDIA/status/1374639742499708930

[54] “Status of COVID-19 Vaccines within WHO EUL/PQ evaluation process”, World Health Organisation, last accessed December 1, 2021, https://extranet.who.int/pqweb/sites/default/files/documents/Status_COVID_VAX_11Nov2021.pdf.  

[55] “Cumulative Coverage Report of COVID-19 Vaccination”, Ministry of Health and Family Welfare, February 6, 2022, https://www.mohfw.gov.in/pdf/CummulativeCovidVaccinationReport05February2022.pdf

[56] Twitter handle of Press Information Bureau, June 29, 2021, https://twitter.com/PIB_India/status/1409843877482098688

[57] Twitter handle of the Minister of Health and Family Welfare, Government of India, August 7, 2021, https://twitter.com/mansukhmandviya/status/1423915409791 610886?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed %7Ctwterm%5E1423915409791610886%7Ctwgr%5E%7Ct.

[58] DBT-BIRAC supported ZyCoV-D developed by Zydus Cadila Receives Emergency Use Authorization”, Press Information Bureau, Ministry of Science and Technology, August 20, 2021.

[59] Twitter handle of the Minister of Health and Family Welfare, Government of India, December 28, 2021, https://twitter.com/mansukhmandviya/status/1475699946544570372

[60] “Cumulative Coverage Report of COVID-19 Vaccination”, Ministry of Health and Family Welfare, July 24, 2021, https://www.mohfw.gov.in/pdf/CummulativeCovidVaccinationReport23july2021.pdf

[61] National Expert Group on Vaccine Administration for COVID-19 deliberates on strategy to ensure COVID-19 vaccines’ availability and its delivery mechanism, Ministry of Health and Family Welfare, Press Information Bureau, August 12, 2021. 

[62] COVID-19 Vaccines: Operational Guidelines, Ministry of Health and Family Welfare, December 28, 2020, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/COVID19VaccineOG111Chapter16.pdf.

[63] “54,72,000 doses of vaccine received till 4 PM today, SII to provide 1.1 lakh vaccines at Rs 200/dose, BBIL to provide 55 lakh vaccines at Rs 206/dose: Health Secretary”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, January 12, 2021. 

[64] “Covid Vaccination Beneficiaries”, Ministry of Health and Family Welfare, Press Information Bureau, March 19, 2021.

[65] “Vaccine availability to witness exponential rise in the coming months: Dr. Harsh Vardhan”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, May 21, 2021. 

[66] “Government of India to provide free vaccine to all Indian citizens above 18 years of age”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, June 7, 2021. 

[68] COVID-19 Vaccines Are Free to the Public, Centers for Disease Control and Prevention, November 3, 2021, https://www.cdc.gov/coronavirus/2019-ncov/vaccines/no-cost.html

[69] FAQs – Vaccine Knowledge Project, accessed on December 7, 2021, https://vk.ovg.ox.ac.uk/vk/COVID19-FAQs#Q9

[70] Report No. 17, Review of Pradhan Mantri Bhartiya Janaushadhi Pariyojana (PMBJP), Standing Committee on Chemicals and Fertilizers, March 2021, http://164.100.47.193/lsscommittee/Chemicals%20&%20Fertilizers/17_Chemicals_And_Fertilizers_17.pdf

[71] Unstarred Question No. 2682, Rajya Sabha Questions, December 21, 2021, https://pqars.nic.in/annex/255/AU2682.pdf

[72] Report No. 123: The Outbreak of Pandemic Covid-19 and its Management, Department-Related Parliamentary Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, November 21, 2020, https://rajyasabha.nic.in/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/142/123_2020_11_15.pdf

[74] “Govt to procure 66 crore more doses of Covishield, Covaxin at revised rates”, The Hindu, July 17, 2021, https://www.thehindu.com/news/national/govt-to-procure-66-crore-more-doses-of-covishield-covaxin-at-revised-rates/article35378303.ece

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