परिचय
भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और साफ-सफाई की जिम्मेदारी राज्यों की होती है। इसमें सरकारी अस्पताल और क्लिनिक शामिल हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी व्यापक सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियां बनाता है। इसके दो विभाग हैं: (i) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और (ii) स्वास्थ्य अनुसंधान। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को वित्त पोषित करता है। इस योजना के तहत, राज्यों को स्वास्थ्य परिणाम संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए वित्त पोषित किया जाता है, जैसे मातृ स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करना और शिशु मृत्यु दर को कम करना। विभाग चिकित्सा शिक्षा को भी रेगुलेट करता है, और एम्स जैसे कुछ मेडिकल कॉलेजों को वित्त पोषित करता है। यह स्वास्थ्य क्षेत्र में मानव संसाधन में सुधार के लिए पहल भी करता है। स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग चिकित्सा अनुसंधान को वित्त पोषित करता है।
2019-20 में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च देश में कुल स्वास्थ्य व्यय का 41% था।[1] 2013-14 में यह 29% था। कुल स्वास्थ्य व्यय में दवाओं, बीमा, अस्पताल में भर्ती, परामर्श और स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च शामिल है।
यह नोट 2024-25 में मंत्रालय के आवंटन और पिछले वर्षों में इसके व्यय के पैटर्न की समीक्षा करता है। यह स्वास्थ्य क्षेत्र के मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है।
वित्तीय स्थिति
2024-25 में मंत्रालय को 90,659 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।[2] यह 2023-24 के संशोधित अनुमान से 13% अधिक है। 2024-25 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग को मंत्रालय के आवंटन का 97% हिस्सा मिला है। विभाग का आवंटन 2023-24 में उसके अनुमानित व्यय से 13% अधिक है।
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को 3,002 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं, जो 2023-24 में इसके अनुमानित व्यय से 4% अधिक है।
तालिका 1: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का व्यय (करोड़ रुपए में)
2022-23 |
2023-24 (संअ) |
2024-25 (बअ) |
संअ से बअ में परिवर्तन का % |
|
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण |
73,308 |
77,625 |
87,657 |
13% |
स्वास्थ्य अनुसंधान |
2,423 |
2,893 |
3,002 |
4% |
कुल |
75,731 |
80,518 |
90,659 |
13% |
नोट: बअ- बजट अनुमान; संअ- संशोधित अनुमान।
स्रोत: मांग संख्या 46 एवं 47, व्यय बजट 2024-24; पीआरएस।
2012-13 से 2022-23 के बीच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के खर्च में सालाना औसतन 11% की वृद्धि हुई। इस दौरान विभाग का खर्च केंद्र सरकार के कुल खर्च के 2.5% से भी कम था। केंद्रीय बजट में विभाग की हिस्सेदारी 2014-15 में 1.8% से बढ़कर 2017-18 में 2.4% हो गई। हालांकि तब से इसमें कमी आई है।
रेखाचित्र 1: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का व्यय (करोड़ रुपए में) और केंद्रीय व्यय में उसका हिस्सा (% में)
स्रोत: मांग संख्या 46 एवं 47, व्यय बजट 2024-24; पीआरएस।
2024-25 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के लिए आवंटन मंत्रालय के बजट का 40% था। इसमें मुख्य रूप से मिशन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राज्यों को हस्तांतरण शामिल है। 2024-25 में आवंटन 36,000 करोड़ रुपए है, जो 2023-24 में संशोधित अनुमान से 14% अधिक है।
कुछ केंद्र संचालित चिकित्सा संस्थानों, जैसे एम्स (दिल्ली) को हस्तांतरण और नए एम्स के लिए स्थापना व्यय 2024-25 में मंत्रालय के आवंटन का 20% था। यह 2023-24 में अनुमानित खर्च से 4% अधिक है।
2024-25 में पीएम- आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन के लिए आवंटन, 2023-24 के संशोधित अनुमान की तुलना में 63% अधिक है। यह योजना प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के इंफ्रास्ट्रक्चर और रोग निगरानी को मजबूत करने पर केंद्रित है।[3]
तालिका 2: मंत्रालय के व्यय की मुख्य मदें (करोड़ रुपए में)
मद |
2022-23 |
2023-24 (संअ) |
2024-25 (बअ) |
संअ से बअ में परिवर्तन का % |
मंत्रालय के बजट में हिस्सेदारी |
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन |
31,279 |
31,551 |
36,000 |
14.1% |
40% |
स्वायत्त निकाय |
10,073 |
17,251 |
18,014 |
4.4% |
20% |
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना |
6,186 |
6,800 |
7,300 |
7.4% |
8% |
स्वास्थ्य और चिकित्सा शिक्षा के लिए मानव संसाधन |
1,975 |
1,520 |
1,275 |
-16.1% |
1% |
केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना |
4,631 |
4,296 |
5,384 |
25.3% |
6% |
पीएम एबीएचआईएम |
1,542 |
2,300 |
3,757 |
63.3% |
4% |
एड्स एवं एसटीडी नियंत्रण |
2,143 |
2,421 |
3,049 |
26% |
3% |
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद |
2,047 |
2,295 |
2,879 |
19% |
3% |
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना |
7,518 |
1,900 |
2,200 |
15.8% |
3% |
अन्य |
8,338 |
3,449 |
4,148 |
20.3% |
5% |
कुल |
75,731 |
80,518 |
90,659 |
13% |
नोट: स्वायत्त निकायों पर व्यय में एम्स, दिल्ली और एनआईएमएचएएनएस, बेंगलुरू जैसे संस्थानों को हस्तांतरण और नए एम्स की स्थापना पर व्यय शामिल है।
स्रोत: मांग संख्या 46 और 47, व्यय बजट 2024-25; पीआरएस।
विचारणीय मुद्दे
नीतिगत लक्ष्यों की तुलना में आवंटन कम
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 सरकारी स्वास्थ्य व्यय (राज्य और केंद्र संयुक्त) को जीडीपी का 2.5% करने का सुझाव देती है।[4] 2019-20 में सरकारी स्वास्थ्य व्यय जीडीपी का 1.4% होने का अनुमान लगाया गया था।1 यह कुछ देशों की तुलना में काफी कम था (रेखाचित्र 2 देखें)।[5] 2022-23 में भारत में सरकारी स्वास्थ्य व्यय जीडीपी का 2% होने की उम्मीद है।[6]
रेखाचित्र 2: कुछ देशों में सरकारी स्वास्थ्य व्यय (% में) (2019)
स्रोत: सामान्य सरकारी स्वास्थ्य व्यय जीडीपी का %, विश्व बैंक; पीआरएस।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति भी राज्यों को अपने बजट का 8% से अधिक स्वास्थ्य पर खर्च करने का सुझाव देती है।4 2023-24 में राज्यों ने औसतन अपने बजट का 6.2% स्वास्थ्य के लिए आवंटित किया। सबसे कम आवंटन वाले राज्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) पंजाब (4.2%), महाराष्ट्र (4.6%), कर्नाटक (4.9%), और तेलंगाना (5%)।
2018-19 में आय पर 4% स्वास्थ्य और शिक्षा सेस लगाया गया था।[7] 2021-22 में स्वास्थ्य पर सेस कलेक्शन हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा निधि (पीएमएसएसएन) का गठन किया गया था।7 2020 में वित्त मंत्रालय ने घोषणा की कि सेस कलेक्शन का 25% स्वास्थ्य के लिए उपयोग किया जाएगा।7 2023-24 और 2024-25 में स्वास्थ्य क्षेत्र के हस्तांतरण में और कमी होने का अनुमान है।
तालिका 3: स्वास्थ्य के लिए सेस कलेक्शन और हस्तांतरण (करोड़ रुपए में)
सेस कलेक्शन |
पीएमएसएसएन में हस्तांतरण |
हस्तांतरण का % |
|
2021-22 |
52,732 |
- |
0% |
2022-23 |
61,809 |
18,339 |
30% |
2023-24 (संअ) |
73,000 |
9,870* |
14% |
2024-25 (बअ) |
83,000 |
14,758 |
18% |
नोट: बअ- बजट अनुमान; संअ- संशोधित अनुमान।
स्रोत: प्राप्ति बजट और व्यय बजट 2023-24 और 2024-24; पीआरएस।
प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का इंफ्रास्ट्रक्चर अब भी कमजोर
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 प्रति 1,000 व्यक्तियों पर दो बिस्तरों की क्षमता का सुझाव देती है।4 2021 तक भारत में प्रति 1,000 व्यक्तियों पर 0.6 बिस्तर हैं।[8]
भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा तीन स्तरीय प्रणाली में बंटी हुई है। इसमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) उप केंद्र, (ii) प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और (iii) सामुदायिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र (सीएचसी)।[9] प्रत्येक इकाई एक विशिष्ट कार्य करती है। उदाहरण के लिए उप केंद्र समुदाय में व्यवहारिक परिवर्तन लाने का प्रयास करते हैं और मातृ स्वास्थ्य, परिवार कल्याण और टीकाकरण जैसे क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करने का प्रयास करते हैं। पीएचसी बुनियादी निवारक और उपचारात्मक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करते हैं। सीएचसी विशेषज्ञ सेवाएं प्रदान करते हैं।9
भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रत्येक स्तर पर जनसंख्या कवरेज के लिए मानदंड प्रदान करते हैं (तालिका 4)। 2021-22 तक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का प्रत्येक स्तर अनुशंसित से अधिक आबादी को कवर करता है।9 2019-20 के बाद से पीएचसी का कवरेज खराब हो गया है।
तालिका 4: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा के तहत आने वाली जनसंख्या
मानक |
2019-20 |
2020-21 |
2021-22 |
|
उप केंद्र |
300-5,000 |
5,729 |
5,734 |
5,691 |
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) |
20,000-30,000 |
35,730 |
35,602 |
36,049 |
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी |
80,000-1,20,000 |
1,71,779 |
1,63,298 |
1,64,027 |
स्रोत: ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा सांख्यिकी; पीआरएस।
आईपीएचएस प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की प्रत्येक इकाई के लिए कर्मचारियों और इंफ्रास्ट्रक्चर के मानदंड भी प्रदान करता है। हम इस स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं।
पीएचसी: प्रत्येक पीएचसी में चार से छह बिस्तर होने आवश्यक हैं। 2021-22 तक 74% पीएचसी में न्यूनतम चार बिस्तर थे।9 हालांकि कुछ राज्यों में पीएचसी लक्ष्य से काफी कम थे। इनमें निम्नलिखित राज्य शामिल हैं: ओड़िशा (कम से कम चार बिस्तरों वाले 10% पीएचसी), असम (37%), बिहार (41%)। 2005 में मंत्रालय ने 2010 तक 50% पीएचसी को 24 घंटे खुले रखने का लक्ष्य रखा था।9 2021-22 तक केवल 45% पीएचसी 24 घंटे खुलते थे। हिमाचल प्रदेश (सिर्फ 5% पीएचसी 24 घंटे खुले), महाराष्ट्र (13%), उत्तराखंड (11%) और पश्चिम बंगाल (25%) लक्ष्य से काफी पीछे रह गए।9
सीएचसी: प्रत्येक सीएचसी में चार प्रकार के विशेषज्ञों का होना आवश्यक है।9 ये हैं: (i) सर्जन, (ii) फिजिशियन, (iii) प्रसूति रोग विशेषज्ञ और (iv) बाल रोग विशेषज्ञ। 2021-22 तक केवल 10% सीएचसी में सभी चार विशेषज्ञ मौजूद थे।9 नीति आयोग (2021) के अनुसार, सभी अस्पताल बिस्तरों में से 72% शहरी क्षेत्रों में स्थित थे।[10]
आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स
2015 में व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल रोलआउट पर टास्क फोर्स ने पाया कि पीएचसी ने सीमित सेवाएं प्रदान कीं जो गर्भावस्था, बाल स्वास्थ्य और कुछ रोगों तक ही सीमित थीं।[11] 2018 में व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र (एचडब्ल्यूसीज़) शुरू किए गए थे। प्रत्येक एचडब्ल्यूसी के दायरे में 3,000-5,000 लोग शामिल हैं और वह निम्नलिखित सेवाएं प्रदान करता है: (i) गर्भावस्था और प्रसव से संबंधित देखभाल, (ii) बाल्यावस्था एवं किशोर स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं, और (iii) मानसिक बीमारियों और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं की स्क्रीनिंग और मूलभूत प्रबंधन।12
जून, 2024 तक 1.6 लाख एसएचसी और पीएचसी को एचडब्ल्यूसी (बदला हुआ नाम आयुष्मान आरोग्य मंदिर) में अपग्रेड किया गया है।[12] दिसंबर 2023 तक एचडब्ल्यूसी ने निम्नलिखित बीमारियों की जांच की है: (i) उच्च रक्तचाप (56 करोड़ स्क्रीनिंग), (ii) डायबिटीज़ (48 करोड़), (iii) ओरल कैंसर (33 करोड़), और (iv) सर्वाइकल कैंसर (10) करोड़)।[13]
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन (पीएम एबीएचआईएम)
पीएम एबीएचआईएम को अक्टूबर 2021 में शुरू किया गया था (प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना का नाम बदलकर जिसे बजट 2021 में घोषित किया गया था)।[14] यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है (कुछ केंद्रीय क्षेत्र के घटकों के साथ) जो 2021-22 से 2025-26 तक पांच वर्षों में विस्तारित है।14 मिशन स्वास्थ्य सेवा के प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्तर पर स्वास्थ्य प्रणालियों की क्षमताओं को विकसित करने पर केंद्रित है ताकि मौजूदा और भविष्य की महामारियों पर उचित पहल करने के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों को तैयार किया जा सके।
केंद्र प्रायोजित घटक के तहत पीएम-एबीएचआईएम 10 राज्यों में 17,788 एचडब्ल्यूसी और सभी राज्यों के शहरी क्षेत्रों में 11,024 एचडब्ल्यूसी बनाने का प्रयास करता है।[15] यह घटक निम्नलिखित के निर्माण में भी सहयोग देता है: (i) पांच लाख से अधिक लोगों वाले जिलों में 602 क्रिटिकल केयर अस्पताल ब्लॉक, (ii) 3,000 ब्लॉक में सार्वजनिक स्वास्थ्य इकाइयां और 730 जिलों में एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाएं।
मिशन को 2024-25 में 3,757 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2023-24 के संशोधित अनुमान से 63% अधिक है। केंद्र प्रायोजित घटक के तहत धनराशि का उपयोग कम रहा है (देखें रेखाचित्र 3)।
रेखाचित्र 3: पीएम-एबीएचआईएम- सीएसएस घटक के लिए आवंटन और उपयोग (करोड़ रुपए में)
स्रोत: मांग संख्या 46, व्यय बजट 2024-25, केंद्रीय बजट; पीआरएस।
स्वास्थ्य परिणामों के लक्ष्य पूरे नहीं हुए
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने स्वास्थ्य परिणाम संबंधी लक्ष्य निर्धारित किए हैं जिन्हें 2019-2025 प्राप्त करना है।4,[16] इनमें मातृ, शिशु और नवजात शिशु मृत्यु दर, दृष्टिहीनता, संचारी और गैर-संचारी रोगों को कम करना शामिल है। कुछ लक्ष्य पूर्णतः पूरे नहीं हो सके हैं। इन पर नीचे चर्चा की गई है:
मातृ मृत्यु
मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) 1,00,000 जन्मों के अनुपात में गर्भावस्था या प्रसव संबंधी जटिलताओं के कारण गर्भवती माताओं की मृत्यु को मापता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 का लक्ष्य 2020 तक मातृ मृत्यु दर को 100 तक करना था।4
2018-20 में भारत में एमएमआर घटकर 97 रह गई।[17] हरियाणा, पंजाब और पश्चिम बंगाल में 2016-18 से एमएमआर में वृद्धि हुई है। असम (195) और मध्य प्रदेश (173) में एमएमआर राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।
रेखाचित्र 4: भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (प्रति 1,00,000 जन्म पर)[*]
स्रोत: राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल 2022, केंद्रीय स्वास्थ्य खुफिया ब्यूरो; पीआरएस।
शिशु मृत्यु
शिशु मृत्यु अनुपात (आईएमआर) 1,000 जन्मों के अनुपात के रूप में बच्चों के जन्म के एक वर्ष के भीतर उनकी मृत्यु को मापता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने आईएमआर को प्रति 1,000 जन्म पर 25 तक करने का लक्ष्य रखा।16 2020 तक भारत में आईएमआर 28 था। यह ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक था (रेखाचित्र 5)।17 राष्ट्रीय औसत से अधिक आईएमआर वाले 17 राज्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) छत्तीसगढ़ (38), (ii) उत्तर प्रदेश (38), (iii) असम (36) और (iv) ओड़िशा (36) (अनुलग्नक में तालिका 7 देखें)।17
रेखाचित्र 5: शिशु मृत्यु अनुपात (प्रति 1000 जन्म)
स्रोत: राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल 2022, केंद्रीय स्वास्थ्य खुफिया ब्यूरो; पीआरएस।
महिलाओं में एनीमिया
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का लक्ष्य 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता को कम करना है।16 2015-16 से 2019-21 के बीच गैर-गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता 53% से बढ़कर 57% हो गई और गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता 50% से 52% तक बढ़ गई।[18]
गैर संचारी रोग
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का लक्ष्य गैर-संचारी रोगों का बोझ कम करना है।4,16 इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) हृदय रोग, (ii) स्ट्रोक, (iii) उच्च रक्तचाप और (iv) पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियां। 2010 में एक राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार की गई थी जिसका लक्ष्य 2025 तक ऐसी बीमारियों के कारण होने वाली मृत्यु दर को 25% तक कम करना था।[19]
1990 और 2016 के बीच कुल मौतों में गैर-संचारी रोगों के कारण होने वाली मौतों का हिस्सा 38% से बढ़कर 62% हो गया।[20] 2016 में 40 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की 70% से अधिक मौतें गैर-संचारी रोगों के कारण हुईं।20 गैर-संचारी रोगों में हृदय रोग मौतों का प्रमुख कारण थे (28%)।20 गैर-संचारी रोगों का रोग बोझ भी 1990 और 2016 के बीच 31% से बढ़कर 55% हो गया।20
2016 में कुल रोगों के दबाव में इस्कीमिक हृदय रोग का हिस्सा सबसे बड़ा था।20 2016 में इस्कीमिक हृदय रोग के कारण खोए गए स्वस्थ जीवन वर्षों की संख्या में 104% की वृद्धि हुई थी।20
तालिका 5: 2016 में कुल बीमारियों में कुछ गैर-संचारी रोगों का हिस्सा (% में)
1990 |
2016 |
|
इस्कीमिक हृदय रोग |
3.7% |
8.7% |
क्रॉनिक ऑबस्ट्रकटिव पलमोनरी डिज़ीज़ |
3.1% |
4.8% |
डायबिटीज़ |
0.7% |
2.2% |
स्रोत: भारत: देश के राज्यों का स्वास्थ्य, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद; पीआरएस।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन गैर-संचारी रोगों की जांच और समाधान के लिए प्राथमिक देखभाल सेवाओं को मजबूत करने पर जोर देता है।16
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल को मजबूत करने और कुछ स्वास्थ्य परिणामों को पूरा करने में राज्यों की मदद करता है। इनमें शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करना, आउट-ऑफ-पॉकेट खर्च, संचारी और गैर-संचारी रोगों से मृत्यु दर और तपेदिक को कम करना शामिल है।16 राज्यों के पास योजना के दिशानिर्देशों के तहत व्यय क्षेत्रों को चुनने का लचीलापन है।
एनएचएम में दो उप-मिशन शामिल हैं- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम)।[21] योजना के तहत निम्नलिखित घटकों पर व्यय किया जाता है: (i) स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करना, (ii) इंफ्रास्ट्रक्चर का रखरखाव, (iii) संचारी और गैर-संचारी रोग, और (iv) प्रजनन, मातृ, नवजात शिशु, बाल स्वास्थ्य और किशोर (आरएमएनसीएच+ए) सेवाएं।
मिशन के तहत केंद्रीय हस्तांतरण 2019-20 से स्थिर है (रेखाचित्र 6)। योजना के तहत कुल व्यय में इसकी हिस्सेदारी भी लगातार कम हुई है। 2022-23 में राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को 30,908 करोड़ रुपए जारी किए गए। 2024-25 में एनएचएम के तहत कुल आवंटन 36,000 करोड़ रुपए है (इसमें राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को जारी धनराशि भी शामिल है)। यह 2023-24 में संशोधित खर्च से 14% अधिक है।
रेखाचित्र 6: राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत व्यय (करोड़ रुपए में)
नोट: कुल व्यय में केंद्र और राज्य द्वारा जारी धनराशि और खर्च न की गई शेष राशि शामिल है।
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 1086, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, लोकसभा, 8 दिसंबर, 2023; पीआरएस।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने कहा था कि योजना के तहत उच्च उपयोग के बावजूद एनएचएम को बजटीय आवंटन इसके लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है।51 राष्ट्रीय स्वास्थ्य खाता, 2019-20 के अनुसार, सरकारी स्वास्थ्य व्यय का 56% प्राथमिक स्वास्थ्य पर खर्च किया गया था।1 राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 प्राथमिक देखभाल के लिए बजट का दो-तिहाई या अधिक आवंटन करने का सुझाव देती है, इसके बाद माध्यमिक और तृतीयक देखभाल पर।4 15वें वित्त आयोग ने भी सुझाव दिया है कि 2022 तक स्वास्थ्य व्यय का दो तिहाई हिस्सा प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च किया जाना चाहिए।[22]
निजी स्वास्थ्य केंद्रों पर अधिक निर्भरता, जो अधिक महंगी होते हैं
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (2017-18) के अनुसार, भारत में अस्पताल में भर्ती होने के 55% मामले (प्रसव को छोड़कर) निजी अस्पतालों के हैं।[23] सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने के 42% मामले हुए (रेखाचित्र 7)। सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने वाले मामलों की हिस्सेदारी निम्नलिखित राज्यों में कम थी: (i) तेलंगाना (21%), (ii) महाराष्ट्र (22%), (iii) उत्तर प्रदेश (27%), और (iv) पंजाब (29%) (अनुलग्नक में तालिका 8 देखें)।23
रेखाचित्र 7: अस्पताल में भर्ती होने वाले मामले (2017-18)
स्रोत: भारत में सामाजिक उपभोग के प्रमुख संकेतक: स्वास्थ्य, एनएसएस 75वां दौर, जुलाई 2017 - जून 2018; पीआरएस।
बाह्य रोगी देखभाल (आउट पेशेंट केयर) के मामलों में निजी अस्पतालों और क्लीनिकों की हिस्सेदारी और भी अधिक थी। इसका मतलब यह है कि अस्पताल में भर्ती न होने वाले व्यक्तियों को परामर्श और उपचार जैसी सेवाओं से है।[24] यहां, ऐसे सभी मामलों में से 66% मामले निजी अस्पतालों और क्लीनिकों में हैं। 23
एनएफएचएस-5 (2019-21) के अनुसार, 50% लोगों (सर्वेक्षण में शामिल) ने आमतौर पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधा का उपयोग नहीं किया।[25] यह प्रवृत्ति इन राज्यों में अधिक थी: (i) बिहार (80%), (ii) उत्तर प्रदेश (75%) और (iii तेलंगाना (64%)।25 इसके प्रमुख कारणों में देखभाल की खराब क्वालिटी, लंबे समय तक इंतजार करना और सुविधाओं का आस-पास उपलब्ध न होना है (तालिका 6)।
तालिका 6: सरकारी स्वास्थ्य केंद्र का लाभ न उठाने के कारण (% में)
कारण |
उत्तर (% में) |
देखभाल की खराब स्थिति |
48% |
लंबे समय तक इंतजार |
46% |
स्वास्थ्य केंद्र का दूर स्थित होना |
40% |
स्वास्थ्य केंद्र का समय असुविधाजनक |
25% |
स्वास्थ्य कर्मचारी का अनुपस्थित होना |
15% |
स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21); पीआरएस।
निजी स्वास्थ्य सेवा अधिक महंगी होती है। 2017-18 तक निजी स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती होना सरकारी केंद्र की तुलना में सात गुना अधिक महंगा था (रेखाचित्र 8)।
रेखाचित्र 8: अस्पताल में भर्ती होने की लागत (रुपए में) (2017-18)
स्रोत: भारत में सामाजिक उपभोग के प्रमुख संकेतक: स्वास्थ्य, एनएसएस 75वां दौर, जुलाई 2017, जून 2018-; पीआरएस।
सभी स्वास्थ्य सेवा व्यय का लगभग आधा हिस्सा सीधे परिवारों द्वारा वहन किया जाता है
आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय (ओओपीई) का अर्थ है, स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के लिए परिवारों द्वारा किया गया प्रत्यक्ष स्वास्थ्य व्यय।27 एक उच्च ओओपीई का मतलब है, कम बीमा कवरेज और निजी स्वास्थ्य देखभाल का उच्च उपयोग।
वर्तमान स्वास्थ्य व्यय के अनुपात के रूप में 2021 में भारत में ओओपीई 50% के करीब था।[26] यह 2010 में 65% से कम हो गया है।26 वर्तमान स्वास्थ्य व्यय में स्वास्थ्य बीमा, अस्पताल में भर्ती होना, दवाएं, परामर्श और बार-बार किया जाने वाला चिकित्सा व्यय शामिल हैं।[27] हालांकि भारत में ओओपीई कई अन्य देशों की तुलना में काफी अधिक है (रेखाचित्र 9)।
रेखाचित्र 9: आउट-ऑफ-पॉकेट व्यय (मौजूदा स्वास्थ्य व्यय के % के तौर पर) (2021)
नोट: ओईसीडी, निम्न आय और निम्न मध्यम आय वाले देश समूह हैं।
स्रोत: आउट-ऑफ-पॉकेट स्वास्थ्य व्यय (वर्तमान स्वास्थ्य व्यय का %); विश्व बैंक; पीआरएस।
बीमा कवरेज या रियायती स्वास्थ्य देखभाल का विस्तार करके ओओपीई को कम किया जा सकता है। भारत में बीमा कवरेज कम है। एनएसओ (2017-18) के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 86% और शहरी क्षेत्रों में 81% व्यक्ति बीमा में कवर नहीं थे।23 एनएफएचएस-5 (2019-21) के अनुसार, 41% परिवारों का एक सदस्य स्वास्थ्य बीमा या वित्त पोषण योजना के दायरे में आता है।[28] यह 2015-16 (एनएफएचएस-4) में 29% के आंकड़े से अधिक था।
2019-20 तक वर्तमान स्वास्थ्य देखभाल व्यय का 14% (83,604 करोड़ रुपए) बीमा योजनाओं के माध्यम से वित्त पोषित किया गया था।27 इनमें से आधे से अधिक निजी बीमा थे। 2017-18 में 13% ग्रामीण और 9% शहरी परिवारों ने उधार के माध्यम से अस्पताल में भर्ती मामलों को वित्त पोषित किया।23
नीति आयोग (2021) के अनुसार, देश की लगभग 30% आबादी सरकारी या कई प्रकार के निजी बीमा के लिए पात्र नहीं है।[29] अपात्र आबादी में मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्व-रोज़गार वाले किसान और शहरी क्षेत्रों में दुकान कर्मचारी या शिल्प श्रमिक शामिल हैं।
भारत में बीमा योजनाओं का कवरेज सीमित है। वे बड़े पैमाने पर आउट पेशेंट केयर को कवर नहीं करतीं।29 राष्ट्रीय स्वास्थ्य खाता (2019-20) के अनुसार, आउट पेशेंट केयर वर्तमान स्वास्थ्य व्यय का 45% है।27 नीति आयोग (2021) के अनुसार, विनाशकारी रूप से प्रभावित 80-85% परिवार आउट पेशेंट केयर पर होने वाले खर्चों से प्रभावित हुए थे।29 एक परिवार विनाशकारी रूप से तब प्रभावित होता है, जब उसके कुल खर्चे में स्वास्थ्य संबंधी खर्चा पूर्व निर्धारित सीमा से अधिक होता है।
आयुष्मान भारत- पीएम जन आरोग्य योजना
यह योजना किसी भी सूचीबद्ध अस्पताल में भर्ती होने पर प्रति परिवार प्रति वर्ष पांच लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज प्रदान करती है।[30] योजना के तहत पात्रता सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना, 2011 (एसईसीसी) में वंचित आबादी के मानदंडों पर आधारित है।[31] इसमें व्यवसाय, आश्रय और पृष्ठभूमि से जुड़े अभाव शामिल हैं।
मानदंडों के आधार पर 11 करोड़ परिवार (लगभग 50 करोड़ व्यक्ति) योजना के तहत कवर होने के पात्र हैं।[32] जून 2024 तक 34.6 करोड़ आयुष्मान भारत कार्ड जारी किए जा चुके हैं।[33] लगभग 50% कार्ड महिलाओं को जारी किए गए हैं।33
15 जनवरी, 2024 तक 79,174 करोड़ रुपए मूल्य के भर्ती वाले 6.2 करोड़ मामलों को मंजूरी दी गई है।[34] लगभग 6.2 करोड़ दावे प्रस्तुत किए गए हैं, और इनमें से 5.8 करोड़ (93%) का निपटान किया जा चुका है। 34
आवंटन: 2024-25 में इस योजना के लिए 7,300 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने कहा कि योजना के लिए 6,000-7,000 करोड़ रुपए का आवंटन 33 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए पर्याप्त नहीं है।35 2019-20 से 2022-23 के बीच, योजना के तहत आवंटित धनराशि का 69% उपयोग किया गया। धनराशि उपयोग 2020-21 में 41% से बढ़कर 2022-23 में 86% हो गया है।
सीमित कवरेज: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने कहा कि उपचार और लाभार्थियों के लिहाज से योजना का कवरेज सीमित था।[35] कमिटी ने योजना के दायरे में आउट पेशेंट सेवाओं को शामिल करने का सुझाव दिया। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि योजना का विस्तार किया जाए ताकि अनौपचारिक क्षेत्र सहित गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले ऐसे व्यक्तियों को इस योजना में शामिल किया जा सके, जिनका बीमा नहीं है।35
सीमित एमपैनलमेंट: जुलाई 2024 तक 30,174 अस्पतालों को सूचीबद्ध (एमपैनल) किया गया है, जिनमें से लगभग 56% सरकारी अस्पताल हैं।30 सूचीबद्ध अस्पतालों की औसत बिस्तर क्षमता 48 है।36 स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैडिंग कमिटी (2023) ने यह भी कहा था कि अस्पताल बड़े पैमाने पर 2-टियर और टियर-3 शहरों में केंद्रित हैं, और पूरे देश में एक बराबर संख्या में भी नहीं हैं।35 नियंत्रक महालेखा परीक्षक (2023) ने कहा था कि कई सूचीबद्ध स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के पास अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं है।[36]
स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में पर्याप्त चिकित्साकर्मियों का अभाव
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) प्रति 10,000 व्यक्तियों पर 44.5 चिकित्सकों, नर्सों और दाइयों का सुझाव देता है।[37] 2020 तक, भारत में प्रति 10,000 व्यक्तियों पर 32.3 कर्मचारी हैं।[38] चिकित्साकर्मियों की कमी से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 2005 और 2022 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में सर्जन जैसे विशेषज्ञों की कमी 46% से बढ़कर 79% हो गई।9
भारत में मेडिकल पाठ्यक्रमों में सीटों की मांग उपलब्धता से अधिक है (रेखाचित्र 10)। 2023 तक, राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा- यूजी (नीट-यूजी) के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवार उपलब्ध एमबीबीएस सीटों से 19 गुना अधिक थे।[39] परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अभ्यर्थी उपलब्ध सीटों से 11 गुना अधिक थे। पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में भी इसी तरह का अंतर देखा गया।
रेखाचित्र 10: मेडिकल अभ्यर्थी उपलब्ध सीटों से कहीं अधिक (2023 में)
स्रोत: रिपोर्ट संख्या 157, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी; पीआरएस।
राज्यों में सीटें भी असमान रूप से उपलब्ध हैं। 2020 तक समान जनसंख्या स्तर के बावजूद, राजस्थान में तमिलनाडु की आधी मेडिकल सीटें थीं। इसी तरह महाराष्ट्र की तुलना में बिहार में 30% मेडिकल सीटें थीं।39 अगस्त 2023 तक पांच राज्यों में देश की सभी एमबीबीएस सीटों का 48% और पीजी सीटों का 47% हिस्सा मौजूद था।39 ये राज्य हैं: (i) कर्नाटक, (ii) तमिलनाडु, (iii) महाराष्ट्र, (iv) उत्तर प्रदेश और (v) तेलंगाना (अनुलग्नक में तालिका 9 देखें)।[40]
मेडिकल सीटों की कमी को दूर करने के लिए, स्टैंडिंग कमिटी (2024) ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) मेडिकल पाठ्यक्रमों में अधिकतम प्रवेश बढ़ाना, और (ii) शिक्षण अस्पतालों के लिए बिस्तर क्षमता और ऑक्यूपेंसी पर न्यूनतम मानदंडों में ढिलाई देना।39 वर्तमान में नए मेडिकल कॉलेजों के लिए वार्षिक प्रवेश क्षमता 50-150 सीटों तक सीमित है। कमिटी ने फैकेल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर के आधार पर इसे 250 सीटों तक बढ़ाने का सुझाव दिया। वर्तमान में शिक्षण अस्पतालों में प्रवेश के आधार पर न्यूनतम बिस्तर क्षमता 220-900 होनी चाहिए।[41] उन्हें 80% की ऑक्यूपेंसी दर भी बनाए रखनी होती है। कमिटी ने भौगोलिक विशिष्टताओं के लिए इन मानदंडों को समायोजित करने का सुझाव दिया।
कमिटी ने अगले 20-25 वर्षों में भारत की स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मेडिकल सीटें बढ़ाने का भी सुझाव दिया।39 इसमें भविष्य में भारत को किस तरह के विशेषज्ञों की आवश्यकता होगी, इसकी पहचान करना शामिल होगा।
राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) भारत में स्नातक (यूजी) और स्नातकोत्तर (पीजी) चिकित्सा और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए एक एकल सामान्य प्रवेश परीक्षा है। परीक्षा राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) द्वारा कई भाषाओं में आयोजित की जाती है। 2024 में लगभग 23 लाख विद्यार्थी नीट (यूजी) के लिए उपस्थित हुए।[42] जून 2024 में शिक्षा मंत्रालय ने नीट (यूजी) 2024 में दर्ज कथित कदाचार के मामलों की सीबीआई जांच शुरू की।[43] कदाचार का हवाला देते हुए नीट (पीजी) को भी स्थगित कर दिया गया।[44] जून 2024 में 1,563 विद्यार्थियों के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित की गई, जिनमें से 861 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी।[45] नीट (यूजी) की दोबारा परीक्षा कराने की मांग को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी।[46] जुलाई 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने दोबारा परीक्षा की याचिका खारिज कर दी। [47] |
स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा के लिए मानव संसाधन
इस मद के तहत निम्नलिखित क्षेत्रों में खर्च किया जाता है: (i) जिला रेफरल अस्पतालों के साथ नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना, और (ii) एमबीबीएस और पीजी सीटें बढ़ाने के लिए राज्य मेडिकल कॉलेजों को अपग्रेड करना।15 2024-25 में इसके लिए 1,275 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।2 यह 2023-24 के संशोधित अनुमान से 16% कम है।
इस मद में धनराशि का कम उपयोग किया गया है। 2022-23 में इस मद में आवंटन का केवल 26% खर्च किया गया था।2 2023-24 में 23% उपयोग होने का अनुमान है।2
नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना: 2014 और 2019 के बीच 157 नए मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी दी गई। फरवरी 2024 तक इसमें से 108 कार्यरत हैं।[48]
एमबीबीएस और पीजी सीटों में वृद्धि: सरकार का लक्ष्य 10,000 एमबीबीएस सीटें और 8,058 पीजी सीटें जोड़ने का है।15 फरवरी 2024 तक 4,977 एमबीबीएस सीटें स्वीकृत की गई हैं।48 मार्च 2023 तक 7,916 पीजी सीटें भी स्वीकृत की गईं।15
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई)
इस योजना के दो घटक हैं: (i) नए एम्स की स्थापना और (ii) तृतीयक देखभाल केंद्रों के निर्माण के लिए सरकारी मेडिकल कॉलेजों को अपग्रेड करना।[49]
पीएमएसएसवाई को 2,200 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। 2024-25 में नए एम्स की स्थापना के लिए 6,800 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। यह राशि 9,000 करोड़ रुपए है, जो 2023-24 के संशोधित अनुमान से 4% अधिक है।
योजना के तहत 22 नए एम्स को मंजूरी दी गई है। जुलाई 2023 तक, छह एम्स पूरी तरह कार्यात्मक हैं, जबकि तीन एम्स का निर्माण शुरू नहीं हुआ है।49
अगस्त 2023 तक एम्स में 39% शिक्षण और 42% गैर-शिक्षण पद खाली हैं।[50] निम्नलिखित परिसरों में शिक्षण रिक्तियां अधिक हैं: (i) मदुरै (77%), (ii) जम्मू (61%), और (iii) राजकोट (61%)।
स्वास्थ्य अनुसंधान में निवेश की कमी
2024-25 में स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को 3,002 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।2 यह वर्ष के लिए मंत्रालय के बजटीय आवंटन का 4% है। 2023-24 के संशोधित अनुमान के मुकाबले विभाग के आवंटन में 4% की वृद्धि हुई है। 2013-14 से 2022-23 के बीच विभाग का खर्च सालाना 12% बढ़ा।
इस अवधि में विभाग ने आवंटित धनराशि का 102% उपयोग किया। उपयोगिता 2020-21 में चरम पर थी, जब आवंटित धनराशि का 149% उपयोग किया गया था। हालांकि 2022-23 में यह गिरकर 76% हो गया।
रेखाचित्र 11: स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग द्वारा धन का व्यय और उपयोग
नोट: बअ- बजट अनुमान; संअ- संशोधित अनुमान।
स्रोत: विभिन्न वर्षों के केंद्रीय बजट दस्तावेज़; पीआरएस।
जीडीपी के हिस्से के रूप में भारत में स्वास्थ्य अनुसंधान पर खर्च कुछ अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने कहा कि 2021-22 में, भारत में स्वास्थ्य अनुसंधान पर कुल खर्च जीडीपी का 0.02% था।[51] 2017 में युनाइडेट स्टेट्स और युनाइटेड किंगडम ने अपनी जीडीपी का क्रमशः 0.65% और 0.44% स्वास्थ्य अनुसंधान पर खर्च किया।51 कमिटी ने स्वास्थ्य अनुसंधान खर्च को जीडीपी के 0.1% तक बढ़ाने का सुझाव दिया।51
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का खर्च विभाग के खर्च का सबसे बड़ा हिस्सा है। 2024-25 में आईसीएमआर को विभाग के बजट का 73% यानी 2,732 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। हालांकि 2020-21 में आईसीएमआर द्वारा अनुसंधान व्यय केंद्र के सभी अनुसंधान व्यय का केवल 3% था।[52] स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने कहा कि आईसीएमआर द्वारा वर्तमान अनुसंधान खर्च एनीमिया, कैंसर और उच्च रक्तचाप जैसी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान का इंफ्रास्ट्रक्चर
विभाग निम्नलिखित इंफ्रास्क्चर पर खर्च करता है: (i) महामारी और आपदाओं के प्रबंधन के लिए प्रयोगशालाएं, (ii) महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए उपकरण, और (iii) स्वास्थ्य अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर।2
2018-19 से 2022-23 के बीच अनुसंधान इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आवंटन लगातार बढ़ा। तब से इसमें कमी आई है (रेखाचित्र 12)। यह मुख्य रूप से महामारी प्रबंधन और रोकथाम के लिए कम आवंटन और व्यय के कारण है। 2021 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने कहा था कि वायरस की समय पर पहचान करने और उस दिशा में काम करने के लिए एक फुल-प्रूफ निगरानी प्रणाली की जरूरत है।[53]
रेखाचित्र 12: स्वास्थ्य संबंधी रिसर्च इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए आवंटन और व्यय
नोट: 2023-24 के वास्तविक आंकड़े व्यय का संशोधित अनुमान हैं।
स्रोत: स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, व्यय बजट 2024-25; पीआरएस।
अनुलग्नक
तालिका 7: शिशु मृत्यु दर (प्रति 1,000 जीवित जन्म पर) और 15-49 वर्ष के बीच की महिलाओं में एनीमिया (% में)
राज्य/यूटी |
आईएमआर (2020) |
एनीमिया (2019-21) |
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह |
7 |
58% |
आंध्र प्रदेश |
24 |
59% |
अरुणाचल प्रदेश |
21 |
40% |
असम |
36 |
66% |
बिहार |
27 |
64% |
चंडीगढ़ |
8 |
60% |
छत्तीसगढ़ |
38 |
61% |
दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव |
16 |
63% |
दिल्ली |
12 |
50% |
गोवा |
5 |
39% |
गुजरात |
23 |
65% |
हरियाणा |
28 |
60% |
हिमाचल प्रदेश |
17 |
53% |
जम्मू एवं कश्मीर |
17 |
66% |
झारखंड |
25 |
65% |
कर्नाटक |
19 |
48% |
केरल |
6 |
36% |
लद्दाख |
16 |
93% |
राज्य/यूटी |
आईएमआर (2020) |
एनीमिया (2019-21) |
लक्षद्वीप |
9 |
26% |
मध्य प्रदेश |
43 |
55% |
महाराष्ट्र |
16 |
54% |
मणिपुर |
6 |
29% |
मेघालय |
29 |
54% |
मिजोरम |
3 |
35% |
नगालैंड |
4 |
29% |
ओड़िशा |
36 |
64% |
पुद्दूचेरी |
6 |
55% |
पंजाब |
18 |
59% |
राजस्थान |
32 |
54% |
सिक्किम |
5 |
42% |
तमिलनाडु |
13 |
53% |
तेलंगाना |
21 |
58% |
त्रिपुरा |
18 |
67% |
उत्तर प्रदेश |
38 |
50% |
उत्तराखंड |
24 |
43% |
पश्चिम बंगाल |
19 |
71% |
भारत |
28 |
57% |
स्रोत: राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल 2022, एनएफएचएस-5 (2019-21); पीआरएस।
तालिका 8: अस्पताल के प्रकार के आधार पर उसमें भर्ती होने वाले मामले (प्रसव को छोड़कर) (% में)
सरकारी |
निजी |
धर्मार्थ/एनजीओ |
|
भारत |
42% |
55% |
3% |
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह |
83% |
17% |
0% |
आंध्र प्रदेश |
28% |
69% |
3% |
अरुणाचल प्रदेश |
92% |
7% |
2% |
असम |
71% |
27% |
2% |
बिहार |
38% |
60% |
2% |
चंडीगढ़ |
67% |
33% |
1% |
छत्तीसगढ़ |
54% |
42% |
4% |
दादरा एवं नगर हवेली |
66% |
34% |
0% |
दमन एवं दीव |
19% |
81% |
0% |
दिल्ली |
62% |
37% |
1% |
गोवा |
66% |
34% |
0% |
गुजरात |
31% |
62% |
7% |
हरियाणा |
31% |
67% |
2% |
हिमाचल प्रदेश |
77% |
21% |
2% |
जम्मू एवं कश्मीर |
91% |
8% |
1% |
झारखंड |
41% |
54% |
6% |
कर्नाटक |
27% |
71% |
2% |
केरल |
38% |
58% |
4% |
लक्षद्वीप |
70% |
26% |
4% |
मध्य प्रदेश |
48% |
49% |
3% |
महाराष्ट्र |
22% |
74% |
4% |
मणिपुर |
80% |
20% |
1% |
मेघालय |
85% |
15% |
1% |
मिजोरम |
80% |
16% |
5% |
नगालैंड |
73% |
27% |
0% |
ओड़िशा |
72% |
27% |
1% |
पुद्दूचेरी |
69% |
31% |
0% |
पंजाब |
29% |
66% |
5% |
राजस्थान |
51% |
48% |
1% |
सिक्किम |
80% |
20% |
0% |
तमिलनाडु |
50% |
48% |
2% |
तेलंगाना |
21% |
78% |
1% |
त्रिपुरा |
95% |
4% |
1% |
उत्तराखंड |
36% |
63% |
1% |
उत्तर प्रदेश |
27% |
70% |
2% |
पश्चिम बंगाल |
69% |
29% |
2% |
स्रोत: भारत में सामाजिक उपभोग के प्रमुख संकेतक: स्वास्थ्य - जुलाई 2017 से जून 2018, एनएसओ; पीआरएस।
तालिका 9: राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मेडिकल सीट (अगस्त 2023 तक)
राज्य/यूटी |
यूजी |
पीजी |
अंडमान निकोबार |
114 |
1 |
आंध्र प्रदेश |
6,435 |
3,523 |
असम |
1,550 |
738 |
बिहार |
2,665 |
1,212 |
चंडीगढ़ |
150 |
584 |
छत्तीसगढ़ |
2,005 |
579 |
दादरा एवं नगर हवेली |
177 |
- |
दिल्ली |
1,497 |
2,950 |
गोवा |
180 |
135 |
गुजरात |
6,900 |
2,875 |
हरियाणा |
2,185 |
886 |
हिमाचल प्रदेश |
920 |
356 |
जम्मू एवं कश्मीर |
1,347 |
656 |
झारखंड |
980 |
270 |
कर्नाटक |
11,695 |
6,402 |
केरल |
4,655 |
1,917 |
मध्य प्रदेश |
4,650 |
2,352 |
महाराष्ट्र |
10,475 |
6,043 |
मणिपुर |
525 |
255 |
मेघालय |
50 |
37 |
मिजोरम |
100 |
- |
ओड़िशा |
2,525 |
1,234 |
पुद्दूचेरी |
1,830 |
1,017 |
पंजाब |
1,800 |
788 |
राजस्थान |
5,575 |
1,867 |
सिक्किम |
150 |
34 |
तमिलनाडु |
11,600 |
5,082 |
तेलंगाना |
8,540 |
2,976 |
त्रिपुरा |
225 |
91 |
उत्तर प्रदेश |
9,703 |
4,169 |
उत्तराखंड |
1,150 |
1,827 |
पश्चिम बंगाल |
5,175 |
2,080 |
कुल |
1,07,528 |
52,936 |
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 2605, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, लोकसभा, 4 अगस्त, 2023; पीआरएस।
[*] 1 अगस्त, 2024 को संशोधित
[1] National Health Accounts 2019-20, Ministry of Health and Family Welfare, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/5NHA_19-20_dt%2019%20April%202023_web_version_1.pdf.
[2] Demand No. 46 and 47, Expenditure Budget 2024-25, Union Budget, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/allsbe.pdf.
[3] “Operational Guidelines for PM Ayushman Bharat Health Infrastructure Mission”, Ministry of Health and Family Welfare, October 2021, https://nhsrcindia.org/sites/default/files/OGls%20PM%20Ayushman%20Bharat%20Health%20Infrastructure%20Mission.pdf.
[4] National Health Policy, 2017, Ministry of Health and Family Welfare, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/9147562941489753121.pdf.
[5] Domestic general government expenditure as a % of GDP, World Health Organisation, https://www.who.int/data/gho/data/indicators/indicator-details/GHO/domestic-general-government-health-expenditure-(gghe-d)-as-percentage-of-gross-domestic-product-(gdp)-(-).
[6] “Share Of Government Health Expenditure in Total Health Expenditure Increases from 28.6 Per Cent In FY14 to 40.6 Per Cent In FY19”, Ministry of Finance”, Press Information Bureau, January 31, 2023, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1894902#:~:text=In%20keeping%20with%20this%20objective,1.6%20per%20cent%20in%20FY21.
[7] Report No. 31 of 2022, Comptroller Auditor General of India, December 21, 2022, https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2022/DSC-Report-No.-31-of-2022_UGFA-English-PDF-A-063a2f3ee1c14a7.01369268.pdf.
[8] Unstarred Question No. 3683, Ministry of Health and Family Welfare, March 25, 2022. https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/178/AU3683.pdf?source=pqals.
[9] Rural Health Statistics 2021-22, Ministry of Health and Family Welfare, Rural Health Statistics, 2021-22, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/RHS%202021%2022.pdf.
[10] “Study on the Not-for-Profit Hospital Model in India”, NITI Aayog, June 2021, https://www.niti.gov.in/sites/default/files/2023-03/Study-on-Not-for-Profit-Hospital-model-in-India.pdf.
[11] “Report of the Task Force on Comprehensive Primary Healthcare Rollout”, Ministry of Health and Family Welfare, https://nhsrcindia.org/sites/default/files/2021-03/Report%20of%20Task%20Force%20on%20Comprehensive%20PHC%20Rollout.pdf.
[12] “Ayushman Bharat - Health and Wellness Centres Report Card”, Ayushman Bharat - Health and Wellness Centre, Ministry of Health and Family Welfare, accessed June 20, 2024, https://ab-hwc.nhp.gov.in/#about.
[13] “Ministry of Health and Family Welfare Initiatives and Achievements - 2023”, Ministry of Health and Family Welfare, Press Information Bureau, December 27, 2023, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=1990674.
[14] “PM Ayushman Bharat Health Infrastructure Mission”, Press Information Bureau, Ministry of Health and Family Welfare, October 26, 2021.
[15] Report No. 143, Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, March 20, 2023, https://sansad.in/getFile/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/168/143_2023_3_15.pdf?source=rajyasabha.
[16] National Health Mission, Ministry of Health and Family Welfare, https://nhm.gov.in/images/pdf/NHM/NHM_more_information.pdf.
[17] National Health Profile 2022, Central Bureau of Health Intelligence, https://cbhidghs.mohfw.gov.in/WriteReadData/l892s/94203846761680514146.pdf.
[18] National Family Health Survey -5: India Fact sheet, Ministry of Health and Family Welfare, https://rchiips.org/nfhs/NFHS-5_FCTS/India.pdf.
[19] NCD Global Monitoring Framework, World Health Organisation, https://cdn.who.int/media/docs/default-source/ncds/ncd-surveillance/global-ncds-surveillance-monitoring-framework24c84b44-7924-412d-ab83-2dfb88a45169.pdf?sfvrsn=f0d5925_3&download=true .
[20] India: Health of the Nation’s States: The India State-level Disease Burden Initiative, Indian Council of Medical Research, November 14, 2017, https://main.icmr.nic.in/sites/default/files/reports/2017_India_State_Level_Disease_Burden_Initiative_Full_Report.pdf.
[21] “Chapter 02: National Health Mission”, Annual Report 2018-19, Ministry of Health and Family Welfare, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/02%20ChapterAN2018-19.pdf.
[22] “Finance Commission in COVID times: Report for 2021-2026”, 15th Finance Commission, October, 2020, https://fincomindia.nic.in/asset/doc/commission-reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf.
[23] “Key Indicators of Social Consumption in India: Health” July 2017- June 2018, National Statistical Office, https://www.mospi.gov.in/sites/default/files/publication_reports/KI_Health_75th_Final.pdf.
[24] “Number of outpatient care facilities”, World Health Organisation, https://www.who.int/data/gho/indicator-metadata-registry/imr-details/1348.
[25] National Family Health Survey – 5 (NFHS -50 2019-2021: India Report, Ministry of Health and Family Welfare, March 2022,
[26] Out of Pocket Health Expenditure (% of Current Health Expenditure), World Bank, https://data.worldbank.org/indicator/SH.XPD.OOPC.CH.ZS.
[27] National Health Accounts 2019-20, Ministry of Health and Family Welfare, 2023, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/5NHA_19-20_dt%2019%20April%202023_web_version_1.pdf.
[28] Compendium of Factsheets: India and 14 States/UTs (Phase II), National Family Health Survey 5, Ministry of Health and Family Welfare, https://main.mohfw.gov.in/sites/default/files/NFHS-5_Phase-II_0.pdf.
[29] Health Insurance for India’s Missing Middle, NITI Aayog, October 2021, HealthInsurance-forIndiasMissingMiddle_28-10-2021.pdf (niti.gov.in).
[30] “About Ayushman Bharat”, Ministry of Health and Family Welfare, accessed on December 15, 2023, https://nha.gov.in/PM-JAY#.
[31] “Coverage under PM-JAY”, Ministry of Health and Family Welfare, accessed on December 15, 2023, https://nha.gov.in/PM-JAY#.
[32] “Ministry of Health and Family Welfare, accessed on December 15, 2023, https://pib.gov.in/Pressreleaseshare.aspx?PRID=1546948.
[33] “Ayushman Bharat Pradhan Mantri Jan Aarogya Yojana”, Ministry of Health and Family Welfare, accessed on June 20, 2024, https://dashboard.pmjay.gov.in/pmj/#/.
[34] Starred Question No. 423, Rajya Sabha, Ministry of Health and Family Welfare, February 6, 2024, https://sansad.in/getFile/annex/263/AU423.pdf?source=pqars.
[35] Report No. 151, Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, December 19, 2023, https://sansad.in/getFile/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/187/151_2023_12_19.pdf?source=rajyasabha.
[36] Report No. 11 of 2023- Performance Audit of Ayushman Bharat-Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana, Comptroller and Auditor General of India, August 8 2023, https://cag.gov.in/en/audit-report/details/119060.
[37] “Global Strategy for Human Resources on Health”: Workforce 2030, World Health Organisation, https://iris.who.int/bitstream/handle/10665/250368/9789241511131-eng.pdf?sequence=1.
[38] “Key Statistics” National Health Workforce Accounts Portal, accessed on July 14, 2024, NHWA Web portal (who.int).
[39] Report No. 157, Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, February 9, 2024, https://sansad.in/getFile/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/187/157_2024_2_19.pdf?source=rajyasabha.
[40] Unstarred Question No. 2605, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, August 4, 2023, https://eparlib.nic.in/bitstream/123456789/2501010/1/AU2605.pdf.
[41] “Guidelines for Under Graduate Courses under Establishment of New Medical Institutions, Starting of New Medical Courses, Increase of Seats for Existing Courses & Assessment and Rating Regulations, 2023", National Medical Commission, August 16, 2023, https://www.nmc.org.in/rules-regulations/national-medical-commission-minimum-standard-requirments-for-establishment-of-new-medical-college-increase-of-seats-in-mbbs-course-guidelines-2023-reg/.
[42] Writ Petition (Civil) No.335/2024, Vanshika Yadav vs. Union of India, Supreme Court, July 8, 2024, https://webapi.sci.gov.in/supremecourt/2024/22797/22797_2024_1_31_53517_Order_08-Jul-2024.pdf.
[43] “Ministry of Education entrusts the matter of alleged irregularities in NEET (UG) Examination 2024 to CBI for comprehensive investigation”, Ministry of Education, June 22, 2024, https://pib.gov.in/PressReleseDetail.aspx?PRID=2028065#:~:text=Ministry%20of%20Education%20entrusts%20the,to%20CBI%20for%20comprehensive%20investigation&text=National%20Testing%20Agency%20(NTA)%20conducted,(Pen%20and%20paper)%20mode.
[44] “NEET-PG Entrance Examination, conducted by National Board of Examination postponed”, Ministry of Health and Family Welfare, June 22, 2024, https://pib.gov.in/PressReleaseIframePage.aspx?PRID=2028027.
[45] “Publishing the result of NEET(UG)-2024 State/ City/ Centre-wise”, National Testing Agency, July 20, 2024, https://exams.nta.ac.in/NEET/images/Public_Notice_on_20.07.2024.pdf.
[46] Writ Petition (Civil) No.335/2024, Vanshika Yadav vs. Union of India, Supreme Court, July 8, 2024, https://webapi.sci.gov.in/supremecourt/2024/22797/22797_2024_1_31_53517_Order_08-Jul-2024.pdf.
[47] Writ Petition (Civil) No.335/2024, Vanshika Yadav vs. Union of India, Supreme Court, July 23, 2024, https://api.sci.gov.in/supremecourt/2024/22797/22797_2024_1_21_53928_Order_23-Jul-2024.pdf
[48] Unstarred Question No. 7, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, February 2, 2024, https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/1715/AS7.pdf?source=pqals#:~:text=Further%20during%20last%20five%20years,to%2064059%20in%202022%2D23.
[49] “Update on PMSSY”, Ministry of Health and Family, Press Information Bureau, July 28, 2023, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1943659#:~:text=The%20Scheme%20has%20two%20components,the%20Scheme%20in%20various%20phases.
[50] Unstarred Question No. 1086, Ministry of Health and Family Welfare, December 08, 2023, Lok Sabha, https://sansad.in/getFile/loksabhaquestions/annex/1714/AU1086.pdf?source=pqals.
[51] Report No. 144, Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, March 15, 2023, https://sansad.in/getFile/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/168/144_2023_12_17.pdf?source=rajyasabha.
[52] Research and Development Statistics at a Glance, 2022-23, Ministry of Science and Technology, https://dst.gov.in/sites/default/files/R%26D%20Statistics%20at%20a%20Glance%2C%202022-23.pdf
[53] Report No. 127, Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, March 8, 2021, https://sansad.in/getFile/rsnew/Committee_site/Committee_File/ReportFile/14/142/127_2021_7_11.pdf?source=rajyasabha.
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