रक्षा मंत्रालय सुरक्षा से संबंधित मामलों पर नीतियां बनाता है और रक्षा सेवाओं (थलसेना, नौसेना और वायुसेना) द्वारा उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है। इसके अलावा यह सार्वजनिक क्षेत्र के रक्षा उपक्रमों जैसी निर्माण इकाइयों, अनुसंधान एवं विकास संगठनों और सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं जैसी सहायक सेवाओं के लिए जिम्मेदार है। यह नोट मंत्रालय के बजटीय आवंटन और व्यय की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करता है। नोट में कुछ मुद्दों पर भी चर्चा की गई है जैसे जीडीपी के प्रतिशत के रूप में रक्षा पर व्यय में कमी, अत्यधिक मात्रा में पेंशन, रक्षा उपकरणों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर निरंतर निर्भरता और नियमित कैडर की तुलना में अग्निपथ रंगरूटों का अल्पावधि का कार्यकाल।

वित्तीय स्थिति

रक्षा मंत्रालय के बजट में अनुसंधान एवं विकास और सीमांत सड़कों पर व्यय के साथ-साथ तीनों रक्षा सेवाओं के लिए आवंटन भी शामिल है। 2024-25 में मंत्रालय को 6,21,941 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। इसमें सशस्त्र बलों और नागरिकों के वेतन, पेंशन, सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण, निर्माण प्रतिष्ठानों, रखरखाव और अनुसंधान एवं विकास संगठनों पर व्यय शामिल है। मंत्रालय का आवंटन सभी मंत्रालयों में सबसे अधिक है और केंद्र सरकार के कुल व्यय का 13% है।

भारत विश्व स्तर पर उन देशों में शीर्ष पर है, जो सबसे ज्यादा सैन्य व्यय करते हैं लेकिन बजट में उसका हिस्सा कम हुआ है

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसआईपीआरआई) के अनुसार, 2023 में भारत का सैन्य व्यय चौथा सबसे अधिक था।[1] एसआईपीआरआई द्वारा बनाए गए डेटाबेस में अर्धसैनिक बलों पर खर्च भी शामिल है। 2023 में शीर्ष पांच देशों में भारत का सैन्य खर्च जीडीपी के हिस्से के रूप में केवल चीन से अधिक था। हालांकि चीन की बड़ी अर्थव्यवस्था का अर्थ यह है कि वह अपनी सेना पर कुल मिलाकर भारत की तुलना में 3.5 गुना अधिक खर्च करता है।

तालिका 1: 2023 में सबसे अधिक व्यय करने वाले देश और पाकिस्तान

देश

व्यय  (USD बिलियन)

व्यय (जीडीपी का %)

यूएस

916

3.4%

चीन

296

1.7%

रूस

109

5.9%

भारत

84

2.4%

सऊदी अरब

76

7.1%

पाकिस्तान

9

2.8%

नोट: भारत के सैन्य खर्च में अर्धसैनिक बलों पर खर्च शामिल है।
स्रोत: एसआईपीआरआई
सैन्य व्यय डेटाबेस; पीआरएस।

हाल के वर्षों में रक्षा पर केंद्र सरकार का खर्च उसके कुल खर्च के हिस्से के रूप में कम हो गया है।  2014-15 में केंद्र ने अपने कुल खर्च का 17.1% रक्षा क्षेत्र पर खर्च किया। 2016-17 में यह बढ़कर 17.8% हो गया। हालांकि तब से केंद्र सरकार के कुल व्यय में रक्षा क्षेत्र के हिस्से में लगातार कमी आई है। 2024-25 में केंद्र द्वारा रक्षा पर अपने कुल व्यय का 12.9% खर्च करने का अनुमान है, जबकि 2023-24 के संशोधित अनुमान चरण में यह 13.9% था। रक्षा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2023) ने कहा था कि भारत की अधिकांश रक्षा खरीद का लेनदेन डॉलर में किया जाता है।[2]  इसलिए उसने सुझाव दिया था कि रक्षा सेवाओं के लिए धन आवंटित करते समय डॉलर के मुकाबले रुपए के मूल्यह्रास और मुद्रास्फीति दर पर विचार किया जाना चाहिए।2

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