स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के दो विभाग हैं : (i) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, और (ii) स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग।   

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग निम्नलिखित कार्यों के लिए उत्तरदायी है (i) स्वास्थ्य योजनाओं का कार्यान्वयन, और (ii) मेडिकल शिक्षा और प्रशिक्षण को रेगुलेट करना। स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग व्यापक रूप से मेडिकल अनुसंधान करने के लिए उत्तरदायी है।

यह नोट स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए वित्तीय आबंटनों की प्रवृत्तियों और मुख्य मुद्दों का विश्लेषण करता है।

वित्तीय विवरण

2018-19 में मंत्रालय को 54,600 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया। यह 2017-18 के संशोधित अनुमानों (53,294 करोड़ रुपए) से 2% अधिक है।[1] 

मंत्रालय के अंतर्गत, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के लिए 97% का आबंटन किया गया जोकि 52,800 करोड़ रुपए है। इसके बाद स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के लिए 1,800 करोड़ रुपए (3%) का आबंटन किया गया। तालिका 1 में मंत्रालय के अंतर्गत दोनों विभागों का विवरण प्रस्तुत है।  

तालिका 1: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए बजट आबंटन (करोड़ रुपए में)

मद

वास्तविक 2016-17

संअ 2017-18

बअ 2018-19

% परिवर्तन (संअ से बअ)

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण

37,671

51,551

52,800

2%

स्वास्थ्य अनुसंधान

1,324

1,743

1,800

3%

कुल

38,995

53,294

54,600

2%

           

Note: BE Budget Estimate; RE Revised Estimates.

Source: Demand Nos. 42 & 43, Ministry of Health and Family Welfare, Union Budget 2018-19, PRS.

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग का 2017-18 का संशोधित अनुमान, उस वर्ष के बजट अनुमान से 4,198 करोड़ रुपए से अधिक रहा। इसी प्रकार स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के संशोधित अनुमान भी बजट अनुमान से 243 करोड़ अधिक रहे।

तालिका 2 में 2018-19 में मंत्रालय के आबंटनों का विभाजन प्रस्तुत किया गया है। 

तालिका 2: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुख्य व्यय की मदें (2018-19) (% में)

व्यय की मद

आबंटन (%)

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

55%

स्वायत्त निकाय

13%

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना

7%

राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी नियंत्रण कार्यक्रम

4%

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना

4%

परिवार कल्याण योजनाएं

1%

अन्य

16%

कुल

100%

SourceDemand Nos. 42 & 43, Ministry of Health and Family Welfare, Union Budget 2018-19, PRS.

Note: Autonomous Bodies include the All India Institute of Medical Science and Post Graduate Institute of Medical Education and Research, Chandigarh.

आबंटन की मुख्य प्रवृत्तियां निम्न हैं (देखें तालिका 3):

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए सर्वाधिक आबंटन, 30,130 करोड़ रुपए किया गया और यह मंत्रालय के कुल बजट का 55% है। यह 2017-18 के संशोधित अनुमान से 2% कम है। एनएचएम के अंतर्गत ग्रामीण घटक, यानी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के लिए 24,280 करोड़ रुपए आबंटित किए गए, जिसमें 2017-18 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 5% की गिरावट है। राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम) के लिए 875 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है जिसमें 34% की वृद्धि है। उल्लेखनीय है कि 2018-19 में एनएचएम के अंतर्गत एनयूएचएम के लिए 2.9% का आबंटन किया गया है।
  • 2017-18 के संशोधित अनुमानों की तुलना में राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए सर्वाधिक 325% की वृद्धि (2,000 करोड़ रुपए) हुई है।
  • प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के लिए सर्वाधिक 3,825 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है (20% की वृद्धि)। इसके केंद्र में सस्ती और विश्वसनीय तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रगत असंतुलन को कम करना है।
  • 2017-18 के संशोधित अनुमान की तुलना में परिवार कल्याण योजनाओं और राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी नियंत्रण कार्यक्रम में क्रमशः 2% और 3% की गिरावट है। उल्लेखनीय है कि इन दोनों योजनाओं ने पिछले वर्ष के बजट अनुमानों से अधिक खर्च किया।
  • स्वायत्त संस्थानों (13%), जैसे एम्स, के आबंटनों में 2017-18 के संशोधित अनुमान से 1% कम होकर 6,900 करोड़ रुपए पर आ गए।

तालिका 3 : स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत मुख्य व्यय मदों के लिए आबंटन (करोड़ रु. में)

मुख्य मदें

वास्तविक 2016-17

संअ 2017-18

बअ 2018-19

%परिवर्तन (संअ से बअ)

एनएचएम (कुल)

22,454

30,802

30,130

-2%

-एनआरएचएम

19,826

25,459

24,280

-5%

-एनयूएचएम

491

652

875

34%

-अन्य

2,137

4,691

4,975

6%

स्वायत्त निकाय (एम्स, पीजीआईएमईआर इत्यादि)

 5,467

 6,971

 6,900

 -1%

पीएमएसएसवाई

 1,953

 3,175

 3,825

 20%

राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी नियंत्रण कार्यक्रम

 1,749

 2,163

 2,100

 -3%

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना

 466

 471

 2,000

325%

परिवार कल्याण योजनाएं

 575

 788

 770

 -2%

अन्य

6,331

8,924

8,875

-1%

कुल

38,995

53,294

54,600

2%

Note: BE - Budget Estimate; RE - Revised Estimates; NHM- National Health Mission; NRHM- National Rural Health Mission; NUHM- National Urban Health Mission; PMSSY- Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Yojana.

Source: Demand No. 42 & 43, Ministry of Health and Family Welfare, Union Budget 2018-19, PRS.

केंद्रीय बजट 2018-19 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए प्रस्ताव

·   राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना को लगभग 50 करोड़ लाभार्थियों (गरीब और कमजोर तबके के परिवार) के लिए शुरू किया जाएगा, ताकि उन्हें द्वतीयक और तृतीयक स्तर की स्वास्थ्य देखभाल हेतु अस्पताल में भर्ती होने की सुविधा प्रदान की  सके (आयुष्मान भारत कार्यक्रम के अंग के रूप में)।

·   व्यापक स्वास्थ्य देखभाल (गैर संचारी रोग, और मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य सेवाएं सहित) प्रदान करने के लिए 1.5 लाख स्वास्थ्य एवं वेलनेस केंद्र। ये केंद्र मुफ्त अनिवार्य दवाएं और डायग्नॉस्टिक सेवाएं भी प्रदान करेंगे (आयुष्मान भारत कार्यक्रम के अंग के रूप में)।

·   ट्यूबरक्लोसिस के मरीजों को उपचार की अवधि में पोषण सहायता देने के उद्देश्य से 500 रुपए प्रति माह प्रदान किए जाएंगे, इसके लिए 600 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि का प्रस्ताव रखा गया है।

·   मौजूदा जिला अस्पतालों को अपग्रेड करके 24 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पतालों की स्थापना।

 आबंटन और व्यय की प्रवृत्तियां

जैसा कि रेखाचित्र 1 में स्पष्ट किया गया है, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग का आबंटन 2006-07 में 11,366 करोड़ रुपए से बढ़कर 2018-19 में 52,800 करोड़ रुपए हो गया। 2006-18 के दौरान संचयी वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) 13% रही। सीएजीआर एक निश्चित समयावधि में वार्षिक वृद्धि दर होती है। 

रेखाचित्र 1: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के लिए आबंटन (2006-18) (करोड़ रुपए में)

 Note: % change in allocation is BE (2018-19) over RE (2017-18) for 2018-19. Source: Union Budgets, 2006-07 to 2018-19; PRS.

तालिका 4 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के वास्तविक व्यय की तुलना, उस वर्ष (2010-17) के बजट अनुमान से की गई है। पिछले तीन वर्षों में उपयोग की दर शत प्रतिशत से अधिक रही है।

तालिका 4: बजट अनुमानों और वास्तविक व्यय के बीच तुलना (2010-17) (करोड़ रुपए में)

वर्ष

बअ

वास्तविक

वास्तविक/बअ

2010-11

23,530

22,765

82%

2011-12

26,897

24,355

82%

2012-13

30,702

25,133

82%

2013-14

33,278

27,145

82%

2014-15

35,163

30,626

87%

2015-16

29,653

30,626

103%

2016-17

37,066

37,671

102%

2017-18

48,853

53,294*

109%

Note: BE Budget Estimates; *Revised Estimates.

Sources: Union Budgets, 2010-18; PRS.

सरकारी स्वास्थ्य व्यय

2008-09 और 2015-16 के दौरान सरकारी स्वास्थ्य व्यय (केंद्र और राज्य का कुल व्यय) जीडीपी के 1.3% पर रहा और 2016-17 में 1.4% के साथ इसमें मामूली वृद्धि देखी गई।[2],[3]  उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 में सरकारी स्वास्थ्य व्यय को 2025 तक जीडीपी का 2.5% करने का प्रस्ताव रखा गया।[4] 

अगर निजी क्षेत्र को शामिल किया जाए तो स्वास्थ्य संबंधी कुल व्यय जीडीपी का 4.0% अनुमानित है।[5] अगर भारत में सरकारी व्यय का हिस्सा 1.3% है तो 2.7% निजी क्षेत्र द्वारा खर्च किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर एक तिहाई व्यय किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी (2014) के अनुसार, अन्य विकासशील देशों से तुलना की जाए तो भारत में स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय बहुत कम है। ब्राजील (46%), चीन (56%) और इंडोनेशिया (39%) इत्यादि में सरकारी व्यय अपेक्षाकृत अधिक है।[6]  विकसित देशों में युनाइटेड किंगडम में स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी व्यय 83% और युनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में 48% है। स्वास्थ्य पर सरकारी-निजी व्यय का विभाजन निम्नलिखित रेखाचित्र 2 में दिया गया है।

रेखाचित्र 2: स्वास्थ्य पर कुल व्यय में सरकारी और निजी क्षेत्र का विभाजन (% में)

SourceWorld Development Indicators: Health systems, World Bank, 2014; PRS.

इसके अतिरिक्त अन्य विकासशील देशों की तुलना में भारत का प्रति व्यक्ति सरकारी स्वास्थ्य व्यय (23 डॉलर) अत्यंत कम है। इंडोशिया में यह 38 डॉलर, श्रीलंका में 71 डॉलर और थाईलैंड में 177 डॉलर है।[7] 

अनुमान है कि भारत में 68% स्वास्थ्य व्यय उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है।[8]  घरेलू स्वास्थ्य व्यय वह व्यय होता है जो परिवारों द्वारा स्वास्थ्य देखभाल में खर्च किया जाता है और उसमें आउट ऑफ पॉकेट खर्च और पूर्वभुगतान (जैसे बीमा) शामिल होता है। आउट ऑफ पॉकेट व्यय वह भुगतान होता है जो किसी व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष रूप से सेवा प्रदान करने के स्थान पर चुकाया जाता है। इसमें स्वास्थ्य संबंधी उत्पाद या सेवा की पूरी लागत किसी वित्तीय संरक्षण योजना में कवर नहीं होती। भारत में ऐसा व्यय आम तौर पर स्वयं परिवार द्वारा वित्त पोषित किया जाता है (71%) (देखें रेखाचित्र 3)। कुल स्वास्थ्य व्यय में आउट ऑफ पॉकेट व्यय का अनुपात केवल नौ देशों (192 में से) में भारत से अधिक है।19

आउट ऑफ पॉकेट व्यय में सबसे अधिक खर्च दवाओं  (52%) पर किया गया।8  इसके बाद निजी अस्पतालों (22%), मेडिकल और डायग्नॉस्टिक लैब्स (10%) और मरीजों को अस्पताल पहुंचाने-वापस लाने और आपात स्थिति में बचाव (6%) पर खर्च किया गया।

स्वास्थ्य पर अत्यधिक आउट ऑफ पॉकेट व्यय के कारण प्रत्येक वर्ष 7% जनसंख्या गरीबी की रेखा के नीचे पहुंच जाती है।11 

रेखाचित्र 3: मौजूदा स्वास्थ्य व्यय के लिए वित्त पोषण के स्रोत

Source:  National Health Accounts, 2014-15; PRS.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना

केंद्रीय बजट 2018-19 में एक नई बीमा योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना प्रस्तावत की गई।[9]  यह योजना के अंतर्गत द्वितीयक और तृतीयक स्तर की देखभाल हेतु अस्पताल में भर्ती होने पर 10 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों को प्रति परिवार प्रति वर्ष अधिकतम 5,00,000 रुपए प्रदान किए जाएंगे। हालांकि इस योजना का वित्त पोषण बजट में स्पष्ट नहीं किया गया है।

केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित दो मुख्य बीमा योजनाएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) और केंद्रीय सरकारी स्वास्थ्य योजना (सीजीएचएस) हैं। उल्लेखनीय है कि 2017-18 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 2018-19 में आरएसबीवाई के बजट आबंटन में सबसे अधिक 325% (2,000 करोड़ रुपए) की वृद्धि की गई है।

बीमा और सार्वजनिक स्वास्थ्य कवरेज

स्वास्थ्य बीमा में कवर होने वाले कुल लोगों में तीन चौथाई सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में कवर हैं और बाकी एक चौथाई जनरल और स्वास्थ्य बीमाकर्ताओं की पॉलिसीज़ में कवर हैं।[10]  उल्लेखनीय है कि 86% ग्रामीण और 82% शहरी जनसंख्या स्वास्थ्य व्यय सहयोग की किसी योजना में अब भी कवर नहीं है।[11]   

सरकार द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा के लिहाज से, नेट इंकर्ड क्लेम्स रेशियो (आईसीआर) 2012-13 में 87% से बढ़कर 2016-17 में 122% हो गया।10  नेट आईसीआर अधिक होने का अर्थ यह है कि जमा किए गए प्रीमियम्स की तुलना में दावों का भुगतान अधिक किया गया है जिसके परिणामस्वरूप नुकसान होगा। दूसरी ओर अन्य निजी बीमा प्रदाताओं के नेट आईसीआर में उत्तरोत्तर गिरावट हो रही है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना को 2008 में निम्नलिखित उद्देश्य से शुरू किया गया (i) स्वास्थ्य की उच्च लागत को देखते हुए वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना, और (ii) गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों के लिए स्वास्थ्य सुविधा में सुधार करना।[12]  आरएसबीवाई के अंतर्गत लाभार्थी फैमिली फ्लोटर बेसिस पर (यानी पूरे परिवार को) उन अधिकतर बीमारियों के लिए प्रति वर्ष 30,000 रुपए तक के हॉस्पिटलाइजेशन कवरेज के लिए अधिकृत हैं जिनके लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत होती है। इसके लिए लाभार्थियों को वार्षिक 30 रुपए का पंजीकरण शुल्क चुकाना होता है। लक्षित जनसंख्या में से केवल 12% शहरी और 13% ग्रामीण जनसंख्या आरएसबीवाई जैसी योजनाओं या सरकार द्वारा प्रायोजित किसी अन्य योजना द्वारा कवर थी।12

रेखाचित्र 4: आरएसबीवाई के लिए आबंटन (2009-18) (करोड़ रुपए में)

 Notes: Values for 2017-18 and 2018-19 are revised estimates and budget estimates respectivelyAll other values are actuals. Sources: Union Budget 2011-12 to 2018-19; PRS.

रेखाचित्र 4 में 2009 से आरएसबीवाई के लिए किए गए आबंटनों को प्रदर्शित किया गया है। 2018-19 में योजना के लिए कुल 2,000 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है जोकि 2017-18 के संशोधित अनुमान से 325% अधिक है। 2009-18 के बीच आरएसबीवाई आबंटन के लिए सीएजीआर 22% रहा।

केंद्रीय सरकारी स्वास्थ्य योजना

केंद्रीय सरकारी स्वास्थ्य योजना के लिए 2018-19 में 1,305 करोड़ रुपए (जोकि 2017-18 के संशोधित अनुमान से 5% अधिक है) का आबंटन किया गया। यह योजना केंद्र सरकार के कर्मचारियों, संसद सदस्यों इत्यादि को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती है। 

स्टैंडिंग कमिटी ने सीजीएचएस द्वारा वित्तीय संसाधनों के उपयोग की कम क्षमता पर टिप्पणी की।19 उदाहरण के लिए सीजीएचएस के अंतर्गत केवल 60% फंड्स का उपयोग किया गया और फिर भी 2017-18 में आबंटन में वृद्धि की मांग की गई।19 इसके अतिरिक्त यह टिप्पणी की गई कि सरकार से अपने देय का निपटान न होने के कारण बहुत से अस्पताल सीजीएचएस के पैनल से बाहर हो गए।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज

स्वास्थ्य बीमा के संदर्भ में, हाई लेवल एक्सपर्ट ग्रुप (2011) ने सुझाव दिया कि सभी प्रकार के सरकारी फंडेड बीमा को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) में एकीकृत किया जाना चाहिए।[13]  इसके अतिरिक्त सभी हेल्थ इंश्योरेंस कार्ड्स को राष्ट्रीय स्वास्थ्य एनटाइटिलमेंट कार्ड से रिप्लेस किया जाना चाहिए।

यूएचसी में सभी भारतीय नागरिकों को भरोसेमंद क्वालिटी की सस्ती और उपयुक्त स्वास्थ्य सेवाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है। यह सार्वभौमिक कवेरज उपभोक्ताओं की भुगतान क्षमता से जुड़ा हुआ नहीं है।13  वित्त मंत्री ने अपने 2018-19 के बजट भाषण में कहा था कि भारत यूएचसी की दिशा में आगे बढ़ रहा है।9  

यूएचसी इंडेक्स के अनुसार, विश्व बैंक चुने हुए देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र की प्रगति का मूल्यांकन करता है। इस इंडेक्स में स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति व्यय के लिहाज से 190 देशों में भारत की रैंकिंग 143 है।[14],[15]  

विशेषज्ञों के अनुसार, इस संबंध में फैसला लिया जाना चाहिए कि मौजूदा सेवाओं का कन्सॉलिडेशन किया जाए या यूएचसी के अंतर्गत मौजूदा सेवाओं के समानांतर नए पैकेज को प्रस्तावित किया जाए।[16]  यह अनुमान लगाया गया है कि यूएचसी को हासिल करने के लिए स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय को 2017 तक जीडीपी के कम से कम 2.5% पर 2022 तक कम से कम 3% पर लाया जाना चाहिए।13 इसके अतिरिक्त यह अनुमान है कि अगर सरकार सेवाओं के बड़े पैकेज की अकेली प्रदाता होगी तो उसे प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति व्यय को बढ़ाकर 1,160 रुपए करना होगा।16

वित्तीय आबंटनों के परिणाम

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के दो उप मिशन हैं, 2005 में प्रारंभ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) (जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी पहल शामिल है) और 2013 में प्रारंभ राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (जिसमें शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य संबंधी पहल शामिल हैं)।

एनएचएम के घटक

एनएचएम के विभिन्न घटक हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) प्रजनन, मातृत्व, नवजात और बाल स्वास्थ्य सेवाएं (आरसीएच फ्लेक्सी पूल), (ii) स्वास्थ्य संसाधन प्रणालियों, नवाचार और सूचना को मजबूती देने के लिए एनआरएचएम मिशन फ्लेक्सी पूल, (iii) टीकाकरण जिसमें पल्स पोलियो कार्यक्रम शामिल है, (iv) इंफ्रास्ट्रक्चर मेनटेनेंस, और (v) राष्ट्रीय रोग नियंत्रण कार्यक्रम।

एनएचएम का वित्त पोषण

2018-19 में एनएचएम के लिए जो आबंटन किया गया (30,130 करोड़ रुपए), उसमें 2017-18 के संशोधित अनुमान की तुलना में 2% की गिरावट हुई।

कुल बजट में एमएचएम का हिस्सा 2006-07 में 73% से घटकर 2018-19 में 55% हो गया। 14वें वित्त आयोग के सुझावों के बाद राज्यों को अधिक संसाधनों के वितरण के कारण ऐसा हो सकता है। 2014-17 के दौरान एनएचएम में केंद्र और राज्यों की फंडिंग का ब्रेकअप तालिका 5 में प्रस्तुत है।   

तालिका 5: एनएचएम के लिए वित्त पोषण (2014-17) (करोड़ रुपए में)

वर्ष

केंद्रीय संशोधित अनुमान

इसमें राज्य का हिस्सा

कुल परिव्यय

2014-15

17,628

5,167

22,795

2015-16

18,295

9,952

28,247

2016–17

20,000

10,103

30,103

2017–18*

21,941

12,084

34,025

Source: Unstarred Question No. 1080, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, July 21, 2017.

*For 2017-18, outlay is as per Budget Estimate

एनएचएम की फंडिंग फ्लेक्सिबल पूल्स, जैसे एनआरएचएम-आरसीएच फ्लेक्सिबल पूल और संचारी रोगों के फ्लेक्सिबल पूल के जरिए होती है। फ्लेक्सिबल पूल्स को बनाने का पीछे यह तर्क है कि इससे अधिक वित्तीय फ्लेक्सिबिलिटी मिलती है और अपेक्षित स्वास्थ्य परिणाम हासिल करने के लिए फंड्स का प्रभावी रूप से वितरण होता है।

उल्लेखनीय है कि 2018-19 में सभी फ्लेक्सिबल पूल्स में गैर संचारी रोगों के फंड्स का पूल 5% बढ़कर 1,005 करोड़ रुपए हो गया। संचारी रोगों और टीकाकरण के लिए फंडिंग पूल का आबंटन घटकर क्रमशः 27% और 30% हो गया। 2004-06 और 2010-13 के बीच संचारी रोगों के कारण होने वाली मौतों के प्रतिशत (27.7%) में अन्य सभी कारणों से होने वाली मौतों की तुलना में सबसे अधिक गिरावट हुई। इन बीमारियों में बुखार, डायरिया और सांस संबंधी गंभीर संक्रमण शामिल हैं। दूसरी ओर गैर संचारी रोगों के कारण होने वाली मौतों के प्रतिशत (49.2%) में बढ़ोतरी हुई है।[17]  इन रोगों में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां, कैंसर, डायबिटीज और हाइपरटेंशन शामिल है। स्टैंडिंग कमिटी ने इस बात पर जोर दिया था कि देश में गैर संचारी रोगों के बढ़ते दबाव को देखते हुए, फंड्स की कमी रोगों के दबाव के बढ़ने का कारण नहीं होना चाहिए।19 उल्लेखनीय है कि संचारी रोगों के समाप्त होने के बाद आम तौर पर गैर संचारी रोगों की चुनौती उत्पन्न होती है। गैर संचारी रोग जीवन शैली से संबंधित होते हैं और प्रमोटिव व क्यूरेटिव स्वास्थ्य के लिए बड़े निवेश की जरूरत होती है।[18]

राज्य स्तरीय व्यय

14 वें वित्त आयोग के सुझावों के बाद 2015-16 में टैक्सों के केंद्रीय पूल में राज्यों की हिस्सेदारी 32% से बढ़कर 42% हो गई। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार के शेयर को कम करने के लिए कुछ योजनाओं का फंड शेयरिंग पैटर्न बदल दिया गया। ऐसा राज्यों को अधिक स्वायत्तता और अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार खर्च करने की फ्लेक्सिलिबिलिटी देने के लिए किया गया। 

2017 में यह गौर किया गया कि केंद्रीय करों में हिस्सा बढ़ने के बावजूद सभी राज्यों ने 2016-17 में अपने स्वास्थ्य बजट को नहीं बढ़ाया और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में व्यय अधिक विकसित राज्यों में बढ़ा है (अधिक जानकारी के लिए परिशिष्ट देखें)।[19],[20]  वास्तव में, कुछ राज्यों का स्वास्थ्य बजट 2015-16 की तुलना में कम हुआ। उदाहरण के लिए असम (-7%), चंडीगढ़ (-3%), दमन और दीव (-15%) और कर्नाटक (2%)।19

भारत के सामने संचारी रोगों को नियंत्रित करने की चुनौती कायम है, इसके बावजूद कि देश गैर संचारी रोगों के बढ़ते खतरे पर ध्यान केंद्रित करने का प्रयास कर रहा है। यह चुनौती विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न है, चूंकि अमीर राज्यों में गैर संचारी रोगों (जैसे हाइपर टेंशन और डायबिटीज) के मामले बढ़ रहे हैं। उदाहरण के लिए 14 वें वित्त आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य राज्यों की तुलना में तुलनात्मक रूप से बेहतर विकसित राज्यों जैसे केरल और तमिलनाडु में बेहतर स्वास्थ्य परिणाम देखने को मिले हैं।18 हालांकि ये राज्य अन्य प्रकार के स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं। इससे गैर संचारी रोगों से निपटने का अतिरिक्त वित्तीय दबाव बन रहा है। 

इसके अतिरिक्त अनेक राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं की भिन्न-भिन्न लागत ने राज्यों के बीच और उनके भीतर स्वास्थ्य संबंधी विषमताओं को बढ़ाया है।  

फंड्स जारी करना और उनका उपभोग

एनएचएम के अंतर्गत अक्सर फंड्स जारी करने में विलंब होता है। उदाहरण के लिए प्रजनन और बाल स्वास्थ्य सेवा, और एनएचएम के घटक को मजबूत करने वाली स्वास्थ्य प्रणालियों के अंतर्गत 2016 में कुल 8,242 करोड़ रुपए जारी किए गए पर इसमें से 7,460 करोड़ रुपए विलंब से दिए गए।[21]   

फंड्स जारी करने में विलंब के बावजूद एनएचएम के मामले में फंड्स का प्रभावी रूप से इस्तेमाल किया गया। इस मिशन के लिए 98% फंड्स जारी किए गए। स्टैंडिंग कमिटी ने गौर किया कि फंड्स हस्तांतरित करने में समय का बहुत महत्व है क्योंकि फंड्स जारी करने में विलंब से उसके उपयोग पर असर होता है। इसमें रुकावट आती है। इस संबंध में एनएचएम के फंड्स जारी करने की मौजूदा प्रणाली की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि फंड्स को बेहतर तरीके से हस्तांतरित किया जा सके।21

तालिका 6: एनएचएम फ्रेमवर्क के अनुसार कार्यान्वयन के लक्ष्य

लक्ष्य (2012-17)

स्थिति (मार्च, 2017 तक)

आईएमआर को 25 तक करना

2015 में आईएमआर कम होकर 37 हो गई

1,00,000 जीवित प्रसव पर एमएमआर को घटाकर 100 करना

2011-13 में एमएमआर घटकर 167 हो गई

टीएफआर को घटाकर 2.1 करना

2014 में टीएफआर घटकर 2.3 हो गई

एक वर्ष में मलेरिया के मामले <1/1000   करना

2016 में मलेरिया के वार्षिक मामले 0.67* हैं

सभी जिलों में माइक्रोफिलेरिया के मामले 1 %  से कम करना

2016 तक महामारी की प्रबलता वाले 256 जिलों में से 222 में 1 %   से कम मामले पाए गए

2015 तक काला-आजार का उन्मूलन, सभी ब्लॉकों में 10,000 लोगों पर <1 मामले

2016 तक महामारी की प्रबलता वाले 628 जिलों में से 492 जिलों (78%) में यह बीमारी समाप्त हो गई

SourceUnstarred Question No. 2667, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, March 17, 2017; PRS.

Note: IMR-Infant Mortality Rate; MMR-Maternal Mortality Rate; TFR-Total Fertility Rate.

स्वास्थ्य सेवाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर

देखभाल के आधार पर देश में स्वास्थ्य संस्थानों को व्यापक रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। इस वर्गीकरण में प्राथमिक देखभाल (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में प्रदान की जाने वाली), द्वितीयक देखभाल (जिला अस्पतालो में प्रदान की जाने वाली) और तृतीयक देखभाल संस्थान (विशेषज्ञ अस्पतालों, जैसे एम्स, में प्रदान की जाने वाली)। प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्र स्वास्थ्यकर्मियों और आम लोगों के बीच संपर्क का पहला स्तर होते हैं।[22]  एचएलईजी (2011) ने गौर किया था कि स्वास्थ्य समस्याओं की रोकथाम और शुरुआती प्रबंधन पर ध्यान देने से तृतीयक स्तर पर प्रदान की जाने वाली जटिल विशेषज्ञ देखभाल की जरूरत कम की जा सकती है।13 यह सुझाव भी दिया गया कि देश में स्वास्थ्य सेवा संबंधी प्रावधान के केंद्र में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल होनी चाहिए।13

जनसंख्या और प्रदान की जाने वाली सेवा के आधार पर व्यापक रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को तीन स्तरीय व्यवस्था में बांटा गया है। इसमें उपकेंद्र (एससीज़), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसीज़) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसीज़) शामिल हैं।[23] ऐसा सेटअप शहरी क्षेत्रों में भी काम करता है।[24]  2005 और 2016 में क्रमशः एससीज़, पीएससीज़ और सीएचसीज़ की संख्या रेखाचित्र 5 में दी गई है। 

रेखाचित्र 5: उप केंद्रों, पीएचसीज़ और सीएचसीज़ की संख्या (2005 और 2016)

Source:  Health and Family Welfare Statistics in India, 2015; PRS.

2015 तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, भारत में 20,306 सरकारी अस्पताल हैं (जिनमें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं), इनमें 82.8% ग्रामीण अस्पताल हैं और 17.2% शहरी अस्पताल।[25]  तालिका 7 में ग्रामीण एससीज़, पीएचसीज़ और सीएचसीज़ के मानदंड, स्थितियों और कमियों को प्रदर्शित किया गया है (2010-14 के बीच)। स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के विभिन्न स्तरों में कमियां पाई गई। 2016 तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, एससीज़ की संख्या में 20%पीएचसीज़ में 22% और सीएचसीज़ में 30% की कमी है।23  यह भी कहा गया कि मौजूदा केंद्रों में सुविधाओं की कमी है और कई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का बुनियादी सुविधाएं पर्याप्त नहीं है, कई उपकेंद्र एक कमरे में चलाए जा रहे हैं, जबकि कई फूस वाली झोपड़ियों में।[26]  

तालिका 7: ग्रामीण स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति

इंफ्रास्ट्रक्चर का प्रकार

अपेक्षित संख्या

स्थिति  (2015 तक)

 

कमी का %

उप-केंद्र

1,79,240

1,55,069

20%

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र

29,337

25,354

22%

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र

7,322

5,510

30%

Sources: Rural Health Statistics 2016, Ministry of Health and Family Welfare, and Rural Health Infrastructure, Ministry of Statistics and Programme Implementation; PRS.

उल्लेखनीय है कि एनआरएचएम के अंतर्गत राज्यों को जरूरत के हिसाब से स्वास्थ्य केंद्र स्थापित करने की अनुमति है। हालांकि बहुत से राज्य फंड्स की कमी के कारण ऐसा नहीं कर पाते। इसके अतिरिक्त वे प्रशासनिक अवरोधों के कारण मौजूदा केंद्रों (जिनका उपयोग नहीं किया जा रहा) को बंद नहीं कर पाते। इसलिए नए केंद्र स्थापित करना मुश्किल होता है।26  

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने गौर किया कि 1,50,000 स्वास्थ्य उपकेंद्रों को स्वास्थ्य एवं वेलनेस केंद्र में परिवर्तित करने के प्रस्ताव (बजट अभिभाषण 2017-18 में घोषित) को लागू नहीं किया गया है और अब तक इसके लिए कोई ‘ठोस रोडमैप’ भी तैयार नहीं किया गया है।[27]

इसके अतिरिक्त एचएलईजी (2011) ने सुझाव दिया कि द्वितीयक और तृतीयक देखभाल की गारंटी के लिए फंक्शनल बेड्स की समान उपलब्धता भी प्रदान की जानी चाहिए।13 विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी के अनुसार, इस संबंध में प्रति 1000 जनसंख्या पर 0.9 बेड्स के साथ भारत का रैंक बहुत नीचे है, जबकि विश्वव्यापी औसत प्रति 1000 जनसंख्या पर 2.9 बेड्स का है। एक्सपर्ट ग्रुप ने सुझाव दिया कि 2022 तक फंक्शनल बेड की क्षमता प्रति 1000 जनसंख्या पर 2 बेड तक बढ़ाई जानी चाहिए।13 

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना

2003 से प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) को निम्नलिखित उद्देश्य के साथ लागू किया जा रहा है : (i) सस्ती और भरोसेमंद तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में क्षेत्रीय असंतुलन को सही करना, और (ii) देश में अच्छी मेडिकल शिक्षा की सुविधाओं को बढ़ाना। इसमें एम्स जैसे संस्थानों को स्थापित करना और राज्यों में कुछ सरकारी अस्पतालों को अपग्रेड करना शामिल है। 

योजना के चरण I के अंतर्गत प्रस्तावित छह एम्स का काम अभी चल रहा है और वे स्थापना के विभिन्न चरणों में हैं। उन्हें पूरी तरह से फंक्शनल होने में अभी समय लगेगा। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2017) के अनुसार, इससे समय और लागत के खराब आकलन का संकेत मिलता है, जिसके कारण आबंटित फंड्स का उपयोग नहीं हुआ।19

रेखाचित्र 6पीएमएसएसवाई के आबंटन में परिवर्तन (2009-18) (करोड़ रुपए में)

NotesValues for 2017-18 and 2018-19 are revised estimates and budget estimates respectively

Sources: Union Budget 2008-09 to 2018-19; PRS.

2018-19 में पीएमएसएसवाई के लिए 3,825 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है जोकि 2017-18 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 20% अधिक है (देखें रेखाचितर 6)। उल्लेखनीय है कि 2018-19 के बजट भाषण में यह उल्लेख किया गया था कि मौजूदा जिला अस्पतालों को अपग्रेड करके 24 नए सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल बनाए जाएंगे।9

निजी स्वास्थ्य सेवाओं का रेगुलेशन

राष्ट्रीय सैंपल सर्वे 2015 के अनुसार, अस्पताल में भर्ती करने के अधिकार मामले निजी अस्पतालों में देखे गए (शहरी क्षेत्रों में 68% और ग्रामीण क्षेत्रों में 58%)।[28] इसके अतिरिक्त सरकारी अस्पतालों (6,120 रुपए) की अपेक्षा निजी अस्पतालों (25,850 रुपए) में इलाज का खर्चा चार गुना अधिक था।28

एचएलईजी ने गौर किया कि सरकारी और निजी अस्पतालों के रेगुलेटरी मानदंड पर्याप्त रूप से स्पष्ट नहीं किए जाते और उनका पालन भी पूरी तरह से नहीं होता। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता सरकारी और निजी क्षेत्र में बहुत अलग-अलग होती है।[29]  यह भी गौर किया गया कि निजी क्षेत्र के बहुत से प्रैक्टीशनर क्वालिफाइड डॉक्टर नहीं हैं।29 

14वें वित्त आयोग के स्टडी ग्रुप ने यह गौर किया कि निजी क्षेत्र की अनरेगुलेटरी प्रकृति उन तमाम समस्याओं में से एक है जिसके कारण परिवारों पर भारी वित्तीय दबाव पड़ता है (जिसका देखभाल की गुणवत्ता से कोई ताल्लुक नहीं है)।[30]  यह सुझाव दिया गया कि निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को रेगुलेट करने के लिए नीतिगत उपाय किया जाना चाहिए।

स्वास्थ्य में मानव संसाधन

2008 और 2016 के बीच पंजीकृत डॉक्टरों की संख्या 7,61,429 से बढ़कर 10,05,281 हो गई (32% की वृद्धि)।[31] इस बढ़ोतरी के बावजूद डॉक्टर्स, स्पेशलिस्ट्स और सर्जन्स की कमी भी तेजी से बढ़ी है। उदाहरण के लिए 2015 में सर्जन्स की 83.4%, आब्स्टट्रिशन्स और गायनाकोलॉजिस्ट्स की 76.3%, फिजिशियन्स की 83.0% और पीडियाट्रिशन्स की 82.1% कमी थी।25 तालिका 8 भारत में हेल्थ प्रोफेशनलों की संख्या का विवरण प्रस्तुत करती है। 2016 में विभिन्न राज्यों के पीएचसीज़ में डॉक्टरों और सीएचसीज़ एवं पीएचसीज़ में नर्सिंग कर्मचारियों की कमी (प्रतिशत में) का अंत में परिशिष्ट में दिया गया है।

तालिका 8: भारत में सार्वजनिक हेल्थ प्रोफेशनलों की संख्या (2016)

पेशा

प्रोफेशनलों की संख्या

एक प्रोफेशनल कितनी औसत जनसंख्या को सेवाएं उपलब्ध कराता है

एलोपैथिक डॉक्टर

1,13,328

11,097

आयुष डॉक्टर**

7,71,468

1,630

नर्स और फार्मासिस्ट

35,19,796

357

Notes: **includes Ayurveda, Unani, Siddha, Naturopathy, and Homeopathy

Source: Human Resources in Health Sector, National Health Profile, 2017, Ministry of Health and Family Welfare, PRS.

मेडिकल प्रैक्टिस से संबंधित मुद्दे

सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की कमी के कई कारण हैं जिनमें निम्नलिखित शामिल है: (i) काम करने का खराब माहौल, (ii) कम तनख्वाह, जिससे दूसरे देश जाना या निजी अस्पताल में काम करना अधिक आकर्षक प्रतीत होता है, और (iii) भर्ती में प्रक्रियागत विलंब और पदों को समय पर भरने के लिए पहले से योजना न बनाना। यह अनुमान लगाया गया है कि 16 राज्यों में मानव संसाधन के अंतराल को भरने के लिए जीडीपी के 0.6% के बराबर परिव्यय की जरूरत होगी।13

हेल्थ प्रोफेशनल्स के संबंध में एचएलईजी (2011) ने सुझाव दिया कि स्वास्थ्य प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों और कर्मचारियों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित की जानी चाहिए।13    

मेडिकल शिक्षा से संबंधित मुद्दे

एक्सपर्ट कमिटियों ने भारत में मेडिकल शिक्षा से संबंधित मुद्दों की पड़ताल की है। कमिटियों के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:[32],[33]

  • शिक्षा की गुणवत्ता से अधिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान केंद्रित करना : मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करते समय केवल इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरतों को पूरा किया जाता है। इसका यह अर्थ होता है कि मेडिकल शिक्षा के अन्य मानदंडों का अपर्याप्त रूप से मूल्यांकन किया जाता है।
  • पोस्ट-ग्रैजुएशन क्वालिफिकेशन: वर्तमान में, पोस्ट-ग्रैजुएशन सर्टिफिकेशन की दो प्रणालियां हैं, डिप्लोमैट ऑफ नेशनल बोर्ड और एमडी/एमएस (मास्टर डिग्री)। पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी ने सुझाव दिया कि पोस्ट-ग्रैजुएट भर्ती की मौजूदा प्रणाली को राष्ट्रीय क्वालिफिकेशन में एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • मेडिकल कॉलेज स्थापित करने के लिए ‘लाभकारी संगठन: वर्तमान में केवल अलाभकारी संगठनों को मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की अनुमति है। यह गौर किया गया कि अनेक निजी उच्च शिक्षा संस्थान बहुत अधिक शुल्क लेते हैं। ऐसे विश्वविद्यालयों द्वारा ऊंची फीस वसूलने की एक वजह सुस्पष्ट नियम का न होना है।[34] 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि निजी गैर सहायता शैक्षणिक संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फीस को रेगुलेट किया जा सकता है।[35] इसके अतिरिक्त कैपिटेशन फीस (ट्यूशन फीस से अधिक फीस) को प्रतिबंधित करते हुए न्यायालय ने संस्थानों को ऐसी फीस लेने की अनुमति दी जो तर्कसंगत हो। नीति आयोग ने सुझाव दिया कि मेडिकल शिक्षा के आपूर्ति अंतराल को समाप्त करने के लिए इस क्षेत्र को लाभकारी संगठनों को भी खोल देना चाहिए।32 
  • एक्रेडिटेशन: मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को मेडिकल संस्थानों को स्थापित करने के साथ-सथ उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कमिटियों ने गौर किया कि एमसीआई के इन कार्यों से हितों का टकराव हो सकता है। इसलिए एक स्वतंत्र और स्वायत्त एक्रेडिटेशन निकाय को गठित किया जाना चाहिए जोकि शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होगा।

राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2017

मेडिकल रेगुलेटरी अथॉरिटी से संबंधित एक कानून संसद में लंबित है जोकि मेडिकल शिक्षा और प्रैक्टिस का निरीक्षण करेगा। इस राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन बिल, 2017 को 29 दिसंबर, 2017 को लोकसभा में पेश किया गया। बिल भारतीय मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 को रद्द करता है और मौजूदा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) को भंग करता है। मेडिकल शिक्षा के समान मानदंडों को स्थापित और उसकी प्रैक्टिस को रेगुलेट करने के लिए एमसीआई की स्थापना 1956 के एक्ट के अंतर्गत की गई थी।

बिल ऐसी मेडिकल शिक्षा प्रणाली का प्रावधान करता है जो निम्नलिखित सुनिश्चित करे : (i) पर्याप्त और उच्च क्वालिटी वाले मेडिकल प्रोफेशनलों की उपलब्धता, (ii) मेडिकल प्रोफेशनलों द्वारा नवीनतम मेडिकल अनुसंधानों का उपयोग (iii) मेडिकल संस्थानों का नियत समय पर आकलन और (iv) एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली।

स्वास्थ्य अनुसंधान

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी ने कहा कि फंड्स की प्रस्तावित मांग और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के वास्तविक आबंटन में बड़ा और निरंतर अंतर है।[36]  2018-19 में विभाग के लिए 1,800 करोड़ रुपए का आबंटन किया गया जोकि 2017-18 के संशोधित अनुमान से 3% अधिक है। कमिटी ने यह भी कहा कि विभाग में फंड्स का पूरी तरह से उपयोग न करने की जानकारी मिली थी, इसके बावजूद विभाग ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए अधिक राशि की मांग की।36

मांग और आबंटित फंड्स के बीच तालमेल न होने का असर कई तरह से नजर आ रहा है। नई प्रयोगशालाओं की मंजूरी, चालू परियोजनाओं को निश्चित समय पर अनुदान देने और स्वास्थ्य अनुसंधान के इंफ्रास्ट्रक्चर के अपग्रेडेशन में बाधाएं आ रही हैं।36 इससे मेडिकल अनुसंधान के परिणामों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ रहा है। उदाहरण के लिए 2015 और 2016 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा केवल 1,685 रिसर्च पेपर प्रकाशित किए गए हैं और फाइल किए गए 45 पेंटेंट्स में से केवल 3 पेटेंट प्रदान किए गए हैं।36 

दवाओं का रेगुलेशन

दवाओं का रेगुलेशन करने वाली केंद्रीय और राज्य स्तरीय एजेंसियां दवा एवं कॉस्मैटिक्स एक्ट, 1940 (डीसीए) द्वारा अभिशासित हैं। डीसीए दवाओं के आयात, मैन्यूफैक्चरिंग एवं बिक्री और वितरण का रेगुलेशन करता है। डीसीए एक केंद्रीय कानून है और राज्यों द्वारा इसे लागू किया जाता है।

पिछले कुछ वर्षो के दौरान, विभिन्न कमिटियों ने दवाओं के रेगुलेशन से संबंधित मामलों की जांच की है। 

माशेलकर कमिटी की रिपोर्ट (2003) में दवाओं की रेगुलेटरी व्यवस्था से संबंधित निम्नलिखित चुनौतियों को प्रस्तुत किया : (i) केंद्र और राज्य स्तरों पर प्रशिक्षित और दक्ष कर्मचारियों की कमी, (ii) रेलुगेशनों को लागू करने में एकरूपता की कमी और उनमें भिन्नताएं और (iii) राज्य और केंद्रीय स्तर पर दवा नियंत्रण का अपर्याप्त और कमजोर ढांचा।[37]

एक्सपर्ट कमिटियों ने देश में दवाओं के रेगुलेशन से संबंधित इन समस्याओं को हल करने के लिए अनेक कदम उठाने का सुझाव दिया है।37,[38],[39]  इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) एक नई स्वतंत्र और पेशेवर रेगुलेटरी निकाय, केंद्रीय दवा प्रशासन की स्थापना, जोकि प्रत्यक्षत: एमओएचएफडब्ल्यू को रिपोर्ट करे, (ii) राज्यों को उद्योग के विस्तार (मैन्यूफैक्चरिंग और बिक्री) के आधार पर उन्हें श्रेणीबद्ध करना और उसी के आधार पर उनके रेगुलेशन में निवेश करना, (iii) दवाओं के एप्लीकेशन, क्लिनिक ट्रायल्स और आयातित दवाओं एवं विदेशी मैन्यूफैक्चररों के पंजीकरण में संशोधन करना और उनका शुल्क बढ़ाना, और (iv) नई दवाओं को मंजूरी देने के लिए तकनीकी एक्सपर्ट कमिटियों की स्थापना करना। 

दवाओं की गुणवत्ता

संसद की स्टैंडिंग कमिटी (2013) ने पाया कि जहां सब स्टैंडर्ड दवाओं की संख्या मिलावटी दवाओं से अधिक है, वहां खराब क्वालिटी की दवाएं लगभग 7-8% हैं।[40]

तालिका 9: ‘नॉन स्टैंडर्ड क्वालिटीऔर मिलावटी’ दवाओं की स्थिति (2013-15)

वर्ष

जांचे गए सैंपल

नॉन स्टैंडर्ड क्वालिटी वाले सैंपल

मिलावटी घोषित किए गए सैंपल

2013-14

72,717

4.16%

0.16%

2014-15

74,199

4.98%

0.11%

2015-16

74,586

4.96%

0.31%

Source: Unstarred Question No. 719, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, Answered on February 7, 2017; PRSNote: ‘Standard qualitymeans that a drug which complies with the standards set out in the Second Schedule of the DCA; A drug shall be deemed to be spuriousif:  (i) it is manufactured under a name which belongs to another drug, (ii) if it is an imitation of another drug, (iii) if it has been substituted wholly or partly by another drug, and (iv) if it wrongly claims to be the product of another manufacturer.[41]

 

2013 और 2015 के बीच देश व्यापी सर्वेक्षण में नॉन स्टैंडर्ड क्वालिटी वाली दवाओं की मौजूदगी 4.16% से 4.96% के बीच थी (देखें तालिका 9)।[42] इसी अवधि में मिलावटी दवाओं की मौजूदगी 0.11% से 0.31%  के बीच थी (देखें तालिका 9)।42

जहां तक दवाओं की क्वालिटी का सवाल है, माशेलकर कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए थे : (i) राज्यों को मैन्यूफैक्चर होने वाली और बाजार में बिकने वाली दवाओं की गुणवत्ता की जांच करने के लिए अधिक सैंपल इकट्ठे करने चाहिए, (ii) राज्य को पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनरों द्वारा स्टॉक की जाने वाली दवाओं की खरीद के स्रोतों और उनकी क्वालिटी का निरीक्षण करना चाहिए, और (iii) दवा इंस्पेक्टरों की संख्या और निरीक्षण के उनके काम के दबाव के मद्देनजर उनकी दक्षता बढ़ाई जानी चाहिए।37   

यह पाया गया कि दवाओं की क्वालिटी को लेकर जितने मामले दायर किए गए, उसमें उन मामलों की संख्या कम थी, जिन पर फैसला लिया गया। तालिका 10 में मिलावटी दवाओं के मामलों की तुलना उन मामलों से की गई है, जिनमें फैसले हुए। 

तालिका 10: मिलावटी दवाओं से जुड़े अभियोग के मामले और फैसला होने वाले मामले

वर्ष

मामलों की संख्या

फैसला होने वाले मामलों की संख्या

2012-13

214

6

2013-14

237

44

2014-15

152

10

Source: Unstarred Question No. 640, Lok Sabha, Ministry of Health and Family Welfare, Answered on February 26, 2016; PRS.

दवाओं का मूल्य

राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल प्राइजिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) देश में दवाओं की उपलब्धता और उनके मूल्यों का निरीक्षण करती है। एनपीपीओ अनिवार्य दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलईएम) के अंतर्गत अधिसूचित होने के बाद औषधि (मूल्य नियंत्रण) आदेश (डीपीसीओ), 2013 की पहली अनुसूचित में शामिल दवाओं/डिवाइज़ेज़ के मूल्य निर्धारित करती है। एनएलईएम, 2015 में कुल मिलाकर 375 दवाएं शामिल हैं (इनमें 23 मेडिकल डिवाइज़ भी शामिल हैं)। इसके अतिरिक्त गैर अधिसूचित दवाओं/डिवाइज़ेज़ के संबंध में भी, अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) में वार्षिक वृद्धि 10% से अधिक नहीं की जा सकती। जहां भी मैन्यूफैक्चररों/आयातकों द्वारा एनपीपीए द्वारा निर्धारित मूल्यों से अधिक कीमतें वसूले जाने के मामले दर्ज किए गए हैं, इन मामलों की विस्तार से जांच की गई है। 1997 में स्थापना के बाद से 2012 तक, एनपीपीए ने फार्मास्यूटिकल कंपनियों को अधिकतम कीमत से अधिक पर मरीजों को दवाएं बेचने पर 1,664 डिमांड नोटिस जारी किए हैं।[43] 5,778 करोड़ रुपए की राशि के डिमांड नोटिस जारी किए गए हैं और 3,454 करोड़ रुपए की राशि मुकदमेबाजी के अधीन है।[44]

परिशिष्ट

केंद्रीय बजट, 2018-19

तालिका 1: 2018-19 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को आबंटन (करोड़ रुपए में)

मुख्य मदें

2016-17 वास्तविक

2017-18 बअ

2017-18 संअ

2018-19 बअ

% परिवर्तन संअ (2017-18)/वास्तविक (2016-17)

संअ 2017-18 और बअ 2018-19 के बीच परिवर्तन

स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग

1,324

1,500

1,743

1,800

32%

3%

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग

37,671

47,353

51,551

52,800

37%

2%

प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना

1,953

3,975

3,175

3,825

63%

20%

परिवार कल्याण योजनाएं

575

755

788

770

37%

-2%

राष्ट्रीय एड्स और एसटीडी नियंत्रण कार्यक्रम

1,749

2,000

2,163

2,100

24%

-3%

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

22,454

26,691

30,802

30,130

37%

-2%

-राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन

19,826

21,189

25,459

24,280

28%

-5%

-राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन

491

752

652

875

33%

34%

-राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम

34

35

45

50

32%

11%

-स्वास्थ्य और मेडिकल शिक्षा के लिए मानव संसाधन 

1,497

4,025

4,025

4,225

169%

5%

स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकास

76

104

127

138

67%

9%

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना

466

1,000

471

2,000

1%

325%

स्वायत्त निकाय

5,467

6,088

6,971

6,900

28%

-1%

अन्य

6,254

8,240

8,799

8,737

41%

-1%

कुल

38,995

48,853

53,294

54,600

37%

2%

SourcesDemand for Grants, Ministry of Health and Family Welfare, Union Budget, 2018-19; PRS.

स्वास्थ्य क्षेत्र में विभिन्न राज्यों और देशों के आंकड़े

तालिका 2: स्वास्थ्य पर औसत व्यय (2012-13) (शहरी और ग्रामीण, रुपए में)

राज्य

स्वास्थ्य पर औसत व्यय (ग्रामीण)

स्वास्थ्य पर औसत व्यय (शहरी)

आंध्र प्रदेश

         13,227

         31,242

अरुणाचल प्रदेश

           5,678

           8,926

असम

           6,966

         47,064

बिहार

         11,432

         25,004

छत्तीसगढ़

         12,149

         22,647

दिल्ली

         30,613

         34,730

गोवा

         29,954

         23,165

गुजरात

         14,298

         20,155

हरियाणा

         18,341

         32,370

हिमाचल प्रदेश

         18,860

         28,590

जम्मू और कश्मीर

           8,442

         13,948

झारखंड

         10,351

         13,151

कर्नाटक

         14,091

         22,190

केरल

         17,642

         15,465

मध्य प्रदेश

         13,090

         23,993

महाराष्ट्र

         20,475

         29,493

मणिपुर

           6,061

         10,215

मेघालय

           2,075

         18,786

मिजोरम

           8,744

         13,461

नागालैंड

           5,628

         15,788

ओड़िशा

         10,240

         19,750

पंजाब

         27,718

         29,971

राजस्थान

         12,855

         16,731

सिक्किम

           8,035

           9,939

तमिलनाडु

         11,842

         23,757

तेलंगाना

         19,664

         20,617

त्रिपुरा

           5,694

         11,638

उत्तर प्रदेश

         18,693

         31,653

उत्तराखंड

           9,162

         25,703

पश्चिम बंगाल

         11,327

         24,875

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह

           3,373

           8,389

चंडीगढ़

         16,389

         35,158

दादरा और नगर हवेली

           4,219

           7,749

दमन और दीव

         10,223

           6,930

लक्षद्वीप

         10,418

           8,604

पुद्दूचेरी

           7,965

         14,076

भारत

         14,935

         24,436

Sources: District Level Household and Facility Survey -4 (2012-13); PRS.

तालिका 3: विभिन्न राज्यों में पीएससीज़ में डॉक्टरों और सीएचसीज़ और पीएचसीज़ में नर्सिंग कर्मचारियों की कमी (%) (2016)

राज्य

पीएचसीज़ में डॉक्टर

पीएचसीज़ और सीएचसीज़ में नर्सिंग स्टाफ

आंध्र प्रदेश

**

**

अरुणाचल प्रदेश

15%

16%

असम

8%

**

बिहार

1%

34%

छत्तीसगढ़

56%

21%

गोवा

**

**

गुजरात

16%

24%

हरियाणा

**

**

हिमाचल प्रदेश

18%

38%

जम्मू और कश्मीर

**

**

झारखंड

17%

36%

कर्नाटक

9%

13%

केरल

**

**

मध्य प्रदेश

19%

1%

महाराष्ट्र

**

44%

मणिपुर

**

**

मेघालय

4%

**

मिजोरम

**

**

नागालैंड

5%

**

ओड़िशा

27%

64%

पंजाब

**

**

राजस्थान

**

**

सिक्किम

**

**

तमिलनाडु

**

**

त्रिपुरा

**

**

उत्तर प्रदेश

16%

48%

उत्तराखंड

36%

50%

पश्चिम बंगाल

21%

**

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह

**

**

चंडीगढ़

33%

**

दादरा और नगर हवेली

0%

**

दमन और दीव

**

11%

दिल्ली

**

**

लक्षद्वीप

**

**

पुद्दूचेरी

**

**

भारत

13%

21%

SourceRural Health Statistics 2015, Ministry of Health and Family Welfare; PRS.

Note: Norm for nursing staffOne per Primary Health Centre and seven per Community Health Centre; for doctorsOne allopathic doctor per Primary Health Centre; ** : surplus human resources exceeding the norms.

 

तालिका 4: सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग न करने के कारण (2012-13) (% में)

राज्य

सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का आम तौर पर उपयोग न करने वाले परिवारों का %

सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का आम तौर पर उपयोग न करने वाले परिवारों द्वारा सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग न करने के कारण

 

स्वास्थ्य सुविधा आस-पास उपलब्ध नहीं है

स्वास्थ्य केंद्र का समय सुविधाजनक नहीं है

स्वास्थ्यकर्मी अक्सर अनुपस्थित रहते हैं

प्रतीक्षा में बहुत समय लगता है

स्वास्थ्य देखभाल की क्वालिटी खराब है

अन्य कारण

आंध्र प्रदेश

74.3

49.2

18.1

12.8

23.4

63.3

3.2

असम

34.8

48.9

6.6

6.1

11.2

39.4

7.3

बिहार

93.3

44.9

8.4

21.4

14.2

83.7

2.1

छत्तीसगढ़

63.7

56.4

9.2

6.3

19.0

41.3

9.1

गुजरात

72.5

45.0

16.0

6.9

31.6

42.6

5.8

हरियाणा

72.3

42.1

12.9

7.4

25.2

54.9

5.2

झारखंड

77.7

55.3

8.5

9.7

6.5

56.4

7.5

कर्नाटक

64.0

45.1

25.1

14.3

31.8

50.8

5.2

केरल

50.0

47.7

20.5

14.5

25.8

34.2

9.8

मध्य प्रदेश

62.6

50.8

10.0

7.7

26.4

62.9

1.6

महाराष्ट्र

70.3

37.5

16.1

5.3

30.1

56.4

2.9

ओड़िशा

24.0

61.0

6.9

7.7

9.7

38.9

5.6

पंजाब

80.8

42.2

18.1

8.8

22.7

52.3

7.9

राजस्थान

29.8

35.3

9.1

6.7

17.2

62.9

2.1

तमिलनाडु

47.0

28.3

23.0

3.0

32.3

55.4

3.4

उत्तर प्रदेश

84.7

53.5

4.6

7.4

20.4

65.1

2.5

पश्चिम बंगाल

71.2

54.3

14.8

4.3

35.2

41.4

4.7

अरुणाचल प्रदेश

17.5

50.1

24.4

7.0

18.3

36.7

6.5

दिल्ली

70.7

37.2

18.4

2.3

57.4

36.3

1.8

गोवा

70.4

41.8

14.4

4.4

27.8

29.4

11.2

हिमाचल प्रदेश

17.3

34.1

11.9

5.6

31.3

43.1

5.0

जम्मू और कश्मीर

37.1

33.2

9.3

5.9

22.4

55.3

7.3

मणिपुर

21.0

29.8

20.2

11.2

19.4

46.4

10.6

मेघालय

35.2

33.4

17.2

14.1

21.7

33.3

8.6

मिजोरम

9.4

26.4

7.2

2.2

23.2

42.5

8.6

नागालैंड

47.9

54.1

14.7

8.3

14.6

29.8

8.3

सिक्किम

8.2

8.4

22.0

4.7

50.7

47.7

5.5

त्रिपुरा

20.1

29.4

20.4

6.6

23.8

47.1

9.0

उत्तराखंड

55.6

49.2

14.7

14.4

37.4

64.1

2.6

भारत

65.6

46.8

13.1

9.2

24.8

57.7

3.9

                 

Sources: District Level Household and Facility Survey -4 (2012-13); PRS.

तालिका 5: विभिन्न देशों में स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े

देश

जनसंख्या (मिलियन में) 2013

अशोधित (क्रूड) जन्म 2013

कुल प्रजनन दर 2013

5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 2013

शिशु मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्म) 2013

अंडरवेट बच्चे (% में) (2009-13)

जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (वर्ष में) 2013

मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) 2015

भारत

1252.1

20.0

2.5

53

41

44

66

174

अफगानिस्तान

30.6

34

4.9

97

70

33

61

396

बांग्लादेश

156.6

20

2.2

41

33

37

71

176

चीन

1385.6

13

1.7

13

11

3

75

27

उत्तर कोरिया

24.9

14

2.0

27

22

15

70

82

इंडोनेशिया

249.9

19

2.3

29

25

20

71

126

ईरान

77.4

19

1.9

17

14

4

74

25

जापान

127.1

8

1.4

3

2

-

84

5

मलयेशिया

29.7

18

2.0

9

7

13

75

40

म्यांमार

53.3

17

1.9

51

40

23

65

178

नेपाल

27.8

21

2.3

40

32

29

68

258

पाकिस्तान

182.1

25

3.2

86

69

32

67

178

फिलीपींस

98.4

24

3.0

30

24

20

69

114

दक्षिण कोरिया

49.3

10

1.3

4

3

1

82

11

सिंगापुर

5.4

10

1.3

3

2

3

82

10

श्रीलंका

21.3

18

2.3

10

8

26

74

30

थाईलैंड

67.0

10

1.4

13

11

9

74

20

वियतनाम

91.7

16

1.7

24

19

12

76

54

बोत्सवाना

2.0

24

2.6

47

36

11

48

129

कंबोडिया

15.1

26

2.9

38

33

29

72

161

कांगो

4.4

38

5.0

49

36

12

59

442

ग्वाटेमाला

15.5

31

3.8

31

26

13

72

88

दक्षिण अफ्रीका

52.8

21

2.4

44

33

9

57

138

जिम्बाब्वे

14.2

31

3.5

89

55

10

60

443

ऑस्ट्रेलिया

23.3

13

1.9

4

3

-

82

6

फ्रांस

64.3

12

2.0

4

4

-

82

8

जर्मनी

82.7

8

1.4

4

3

1

81

6

यूके

63.1

12

1.9

5

4

-

81

9

यूएसए

320.1

13

2.0

7

6

1

79

14

Sources: Health and Family Welfare Statistics, 2015 (Rural); PRS.

तालिका 6: बच्चों में कुपोषण के मुख्य संकेतक

मानक

एनएफएचएस3 (2005-06)

एनएफएचएस4 (2015-16)

6-23 महीने के कुल बच्चे, जिन्हें पर्याप्त आहार मिल रहा है

उपलब्ध नहीं

9.6%

5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, जिनका कद उनकी उम्र के हिसाब से कम है (स्टंटेड)

48.0%

38.4%

5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, जिनका वजन उनके कद के हिसाब से कम है (वेस्टेड)

19.8%

21.0%

5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, जिनका वजन उनके कद के हिसाब से अत्यधिक कम है (गंभीर रूप से वेस्टेड)

6.4%

7.5%

5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, जिनका वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है (अंडरवेट)

42.5%

35.7%

6-59 महीने के बच्चे जो एनिमिक हैं

69.4%

58.4%

3 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, जिन्हें जन्म के बाद शुरुआती एक घंटे के भीतर स्तनपान कराया गया है

23.4%

41.6%

Source: National Family Health Survey 3 & 4; PRS.

तालिका 7: वयस्कों में कुपोषण के मुख्य संकेतक

मानक

एनएफएचएस3 (2005-06)

एनएफएचएस4 (2015-16)

महिलाएं जिनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) सामान्य से कम है (बीएमआई < 18.5 किग्रा/मी2)

35.5%

22.9%

पुरुष जिनका बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) सामान्य से कम है (बीएमआई < 18.5 किग्रा/मी2)

34.2%

20.2%

महिलाएं जो अधिक वजन वाली या मोटापे से ग्रस्त हैं (बीएमआई ≥ 25.0 किग्रा/मी2)

12.6%

20.7%

पुरुष जो अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं (बीएमआई ≥ 25.0 किग्रा/मी2)

9.3%

18.6%

Source: National Family Health Survey 3 & 4; PRS.

तालिका 8 : विभिन्न राज्यों में स्टंटिंग, वेस्टिंग और अंडरवेट बच्चों (5 वर्ष से कम) का प्रतिशत (2015-16)

राज्य/यूटी

स्टंटेड

वेस्टेड

अंडरवेट

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह

17.1%

19.1%

15.9%

आंध्र प्रदेश

28.3%

15.5%

28.4%

अरुणाचल प्रदेश

24.0%

11.4%

13.8%

असम

22.3%

13.2%

21.4%

बिहार

39.8%

21.3%

37.5%

चंडीगढ़

27.6%

11.4%

25.1%

छत्तीसगढ़

31.6%

20.6%

30.2%

दिल्ली

32.4%

17.2%

27.3%

दादरा और नगर हवेली

35.8%

21.4%

27.4%

दमन और दीव

21.9%

23.8%

27.2%

गोवा

18.3%

27.7%

25.3%

गुजरात

31.7%

23.4%

32.0%

हरियाणा

33.4%

21.0%

28.5%

हिमाचल प्रदेश

21.4%

19.1%

17.1%

जम्मू और कश्मीर

23.0%

16.1%

17.0%

झारखंड

33.7%

26.8%

39.3%

कर्नाटक

32.6%

24.8%

31.5%

केरल

19.8%

16.0%

15.5%

लक्षद्वीप

27.1%

13.2%

22.6%

मध्य प्रदेश

37.5%

22.0%

36.5%

महाराष्ट्र

29.3%

24.9%

30.7%

मणिपुर

24.1%

6.4%

13.1%

मेघालय

36.5%

13.7%

22.9%

मिजोरम

22.7%

4.5%

8.5%

नागालैंड

22.5%

10.1%

13.6%

ओड़िशा

27.2%

17.0%

26.2%

पंजाब

27.6%

15.0%

22.4%

पुद्दूचेरी

24.7%

26.1%

23.3%

राजस्थान

33.0%

21.6%

30.7%

सिक्किम

22.9%

13.2%

12.0%

तमिलनाडु

25.5%

19.0%

21.5%

तेलंगाना

20.9%

14.6%

22.2%

त्रिपुरा

17.2%

13.4%

21.7%

उत्तर प्रदेश

37.9%

18.0%

33.7%

उत्तराखंड

32.5%

18.6%

25.6%

पश्चिम बंगाल

28.5%

16.7%

26.2%

भारत

38.4%

21.0%

35.7%

Source: National Family Health Survey 4; PRS.

स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित मुख्य आंकड़ों का रेखाचित्रीय विवरण

रेखाचित्र 1: रोगों के अनुसार मौत का प्रतिशत (पूरे देश में)

SourceCauses of death, 2010-13, Office of the Registrar General & Census Commissioner; PRS.

NoteDeaths caused by diseases in India can be attributed to four main causes: (i) communicable, perinatal, and nutritional conditionsincludes diarrhoeal diseases, respiratory infections, and tuberculosis, (ii) non-communicable diseasesincludes diabetes, cardiovascular diseases, and congenital anomalies, (iii) injuriesincludes unintentional injuries (for example, caused by motor vehicles) and intentional injuries (for example, caused by suicide), and (ivsymptoms, signs, and ill-defined conditionsincludes abnormal clinical findings
रेखाचित्र 2: रोगों के अनुसार मौत का प्रतिशत (राज्यों के आंकड़े) (2010-13)

Note: EAG states include Bihar, Chhattisgarh, Jharkhand, Madhya Pradesh, Orissa, Rajasthan, Uttaranchal, and Uttar Pradesh.

SourceCauses of death, 2010-13, Office of the Registrar General & Census Commissioner; PRS.

रेखाचित्र 3: 2014-15 और 2016-17 में राज्यों द्वारा स्वास्थ्य पर व्यय (कुल व्यय के % के रूप में)

Source:  State Budgets, 2016-17, PRS.

रेखाचित्र 4: चिकित्सा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण पर व्यय (सभी राज्य)

SourcesState Finances: A Study of Budgets, RBI; PRS

NoteFigures of 2016-17 and 2015-16 are Budget Estimates and Revised Estimates respectively.

 

[1] Demand Nos. 42 & 43, Ministry of Health and Family Welfare, Union Budget 2018-19, http://www.indiabudget.gov.in/ub2018-19/eb/sbe42.pdf; http://www.indiabudget.gov.in/ub2018-19/eb/sbe43.pdf.

[2] Economic Survey, 2015-16, Ministry of Finance, http://indiabudget.nic.in/budget2016-2017/es2014-15/echapter-vol1.pdf.

[3] Economic Survey, 2016-17, Ministry of Finance, http://indiabudget.nic.in/es2016-17/echapter.pdf.

[4] National Health Policy, 2017, Ministry of Health and Family Welfare, March 16, 2017, http://mohfw.nic.in/showfile.php?lid=4275.

[5] National Health Accounts, estimates for 2013-14 Ministry of Health and Family Welfare, http://www.mohfw.nic.in/sites/default/files/89498311221471416058.pdf.

[6] Unstarred question no. 2201, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, Answered on July 29, 2016, http://164.100.47.190/loksabhaquestions/annex/9/AU2201.pdf.

[7] Unstarred Question No. 5019, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, answered on March 31, 2017, http://164.100.47.190/loksabhaquestions/annex/11/AU5019.pdf.

[8] Household Health Expenditures in India (2013-14), December 2016, Ministry of Health and Family Welfare, http://www.mohfw.nic.in/sites/default/files/38300411751489562625.pdf.

[9] Budget Speech, 2018-19, http://www.indiabudget.gov.in/ub2018-19/bs/bs.pdf.

[10]  Annual Report, 2016-17, Insurance Regulatory and Development Authority of India, https://www.irdai.gov.in/ADMINCMS/cms/frmGeneral_NoYearList.aspx?DF=AR&mid=11.1.

[11]Chapter three, Summary of Findings, Key Indicators of Social Consumption in India in Health, 71st Round, National Sample Survey (NSS), Ministry of Statistics and Programme, http://mail.mospi.gov.in/index.php/catalog/161.

[12]  “Rashtriya Swasthya Bima Yojana, Last accessed on March 8, 2016, http://www.rsby.gov.in/about_rsby.aspx.

[13]High Level Expert Group Report on Universal Health Coverage for India, Planning Commission of India, November 2011, http://planningcommission.gov.in/reports/genrep/rep_uhc0812.pdf

[14]  “Health expenditure per capita (US $)”, World Health Organisation, http://data.worldbank.org/indicator/SH.XPD.PCAP.

[15]  National Health Profile, 2016, Ministry of Health and Family Welfare, http://www.cbhidghs.nic.in/E-Book%20HTML-2016/index.html.

[16]Essential Health  Package for India:  Approach and  Costing, Institute of Economic Growth, Finance Commission, http://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom14/others/40.pdf.

[17] Causes of death, 2010-13, Office of the Registrar General & Census Commissioner, http://www.censusindia.gov.in/vital_statistics/causesofdeath.html.

[18]Inter-State Comparisons on Health Outcomes in Major States and a Framework for Resource Devolution for Health, Centre for Economic & Social Studies, Hyderabad, 14th Finance Commission, http://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom14/others/39.pdf.

[19]Report no. 99, Demands for Grants 2016-17 (Demand No. 42) of the Department of Health and Family Welfare, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 20, 2017, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/99.pdf.

[20]Central transfers to states in India rewarding performance while ensuring equity, National Institute of Public Finance and Policy and NITI Aayog, September 25, 2017, http://www.niti.gov.in/writereaddata/files/document_publication/Final%20Report_25Sept_2017.pdf.

[21] Report no. 93, Demands for Grants 2016-17 (Demand No. 42) of the Department of Health and Family Welfare, Standing Committee on Health and Family Welfare, April 27, 2016, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/93.pdf.

[22] Chapter VIII: Public Health Care System, Planning Commission of India, http://planningcommission.nic.in/aboutus/committee/strgrp/stgp_fmlywel/sgfw_ch8.pdf.

[23] Part I, Rural Health Care System in India, Rural Health Statistics, https://nrhm-mis.nic.in/RURAL%20HEALTH%20STATISTICS/(A)%20RHS%20-%202014/Rural%20Health%20Care%20System%20in%20India.pdf

[24] Framework for Implementation, National Urban Health Mission ,May, 2013, http://nrhm.gov.in/images/pdf/NUHM/Implementation_Framework_NUHM.pdf.

[25] Health and Family Welfare Statistics in India 2015, Ministry of Health and Family Welfare, October 2015, https://nrhm-mis.nic.in/Pub_FW_Statistics2015/Complete%20Book.pdf.

[26]Survey Report & Recommendations of Clinical Establishments, Ministry of Health and Family Welfare, 2013, http://clinicalestablishments.nic.in/WriteReadData/788.pdf.

[27]Report no.99: Demands for Grants 2017-18 (Demand No.42) of the Department of Health and Family Welfare, Standing Committee on Health and Family Welfare, Rajya Sabha, March 20, 2017, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/99.pdf.

[28]Chapter three, Summary of Findings, Key Indicators of Social Consumption in India in Health, 71st Round, National Sample Survey (NSS), Ministry of Statistics and Programme Implementation, June 2015, http://mospi.nic.in/Mospi_New/upload/nss_71st_ki_health_30june15.pdf.

[29] Chapter: 20, Health, Twelfth Five Year Plan (2012-17)”, Planning Commission of India, http://planningcommission.gov.in/plans/planrel/12thplan/pdf/12fyp_vol3.pdf.

[30]Essential Health Package for India Approach and Costing, Report submitted to the 14th Finance Commission, Ministry of Finance, September 2014, http://fincomindia.nic.in/writereaddata%5Chtml_en_files%5Cfincom14/others/40.pdf.

[31]  National Health Profile, 2017, Ministry of Health and Family Welfare, http://cbhidghs.nic.in/E-Book%20HTML-2017%20PART-I/files/assets/basic-html/page-1.html.   

[32]A Preliminary Report of the Committee on the Reform of the Indian Medical Council Act, 1956, NITI Aayog, August 7, 2016, http://niti.gov.in/writereaddata/files/document_publication/MCI%20Report%20.pdf.  

[33]Report no. 92 on Functioning of the Medical Council of India’”, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 8, 2016, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/92.pdf

[34]  “Report no. 236: Prohibition of Unfair Practices in Technical Educational Institutions, Medical Educational Institutions and Universities Bill, 2010, Standing Committee on Human Resource Development, May 30, 2011, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20HRD/236.pdf.

[35]  TMA Pai Foundation vs. State of Karnataka & Ors [(1994)2SCC195].

[36] Report no. 100: Demands for Grants 2017-18 (Demand No.43) of the Department of Health Research, Standing Committee on Health and Family Welfare, March 20, 2017, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/100.pdf.

[37] Report of the Expert Committee on A Comprehensive Examination of Drug Regulatory Issues, including the problem of Spurious Drugs, Ministry of Health and Family Welfare, November, 2003, http://pharmaceuticals.gov.in/sites/default/files/MashelkarCommitteeReport.pdf.

[38]Report no.59: The Functioning of the Central Drugs Standards Control Organisation (CDSCO)”, Standing Committee on Health and Family Welfare, Ministry of Health and Family Welfare, May 8, 2012, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/59.pdf.

[39] Report of the (late)Prof. Ranjit Roy Chaudhury Expert Committee to Formulate Policy and Guidelines for Approval of New Drugs, Clinical Trials and Banning of Drugs, July, 2013, http://www.cdsco.nic.in/writereaddata/Report_of_Dr_Ranjit_Roy.pdf.

[40]Report no.59: The Functioning of the Central Drugs Standards Control Organisation (CDSCO)”, Standing Committee on Health and Family Welfare, Ministry of Health and Family Welfare, May 8, 2012, http://164.100.47.5/newcommittee/reports/EnglishCommittees/Committee%20on%20Health%20and%20Family%20Welfare/59.pdf.

[41] Drugs and Cosmetics Act 2008, Ministry of Health and Family Welfare, December 5, 2008, http://www.cdsco.nic.in/writereaddata/D&C_ACT_AMENDMENT_2008_file.pdf

[42]  Unstarred Question No. 719, Ministry of Health and Family Welfare, Lok Sabha, February 7, 2017

[43] Report no.29: Report on National Pharmaceutical Pricing Authority, Standing Committee on Chemicals and Fertilizers, Ministry of Chemicals and Fertilizers, December 17, 2012,

http://164.100.47.134/lsscommittee/Chemicals%20&%20Fertilizers/15_Chemicals%20And%20Fertilizers_29.pdf.

[44] Unstarred question no. 2739, Ministry of Chemicals and Fertilizers, answered on August 1, 2017, Lok Sabha, http://164.100.47.190/loksabhaquestions/annex/12/AU2739.pdf.

 

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