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पीडीएफ

उर्वरक क्षेत्र के पीएसयू के विनिवेश से संबंधित मामले- एक समीक्षा

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • रसायन एवं उर्वरक से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री आजाद कीर्ति झा) ने 20 अगस्त, 2025 को ‘उर्वरक क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों के विनिवेश से संबंधित मामले- एक समीक्षा’ पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। उर्वरक विभाग के अंतर्गत नौ सार्वजनिक उपक्रम आते हैं। इनमें से दो, हिंदुस्तान फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन लिमिटेड और फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड चालू नहीं हैं। 2025 तक सार्वजनिक उपक्रम देश में यूरिया उर्वरक उत्पादन में लगभग 21% और गैर-यूरिया उर्वरक उत्पादन में 11% का योगदान देते हैं। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव इस प्रकार हैं:

  • विनिवेश के लिए समयबद्ध प्रक्रिया: कमिटी ने सार्वजनिक उपक्रमों में कैबिनेट द्वारा अनुमोदित विनिवेश के क्रियान्वयन में देरी का उल्लेख किया। उदाहरण के लिए कमिटी ने राष्ट्रीय उर्वरक लिमिटेड, राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स लिमिटेड और प्रोजेक्ट्स एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड में सात या उससे अधिक वर्षों की देरी का उल्लेख किया। कमिटी ने कहा कि इस तरह की देरी सार्वजनिक उपक्रमों के संचालन में बाधा डाल सकती है और उनकी वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकती है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) निवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग और उर्वरक विभाग को मिलकर छह महीने से एक वर्ष की निर्धारित समय-सीमा के साथ एक विनिवेश कार्य योजना तैयार और प्रस्तुत करनी चाहिए और (ii) अगर विनिवेश से संबंधित कोई फैसला दो वर्ष से अधिक समय से लंबित है तो आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति को अनिवार्य रूप से उसकी दोबारा समीक्षा करनी चाहिए। मंत्रिमंडलीय समिति उर्वरक क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों से जुड़े विनिवेश निर्णयों को मंजूरी देती है।

  • विनिवेश से पहले मूल्यांकन: भारत अपनी अधिकांश उर्वरक आवश्यकताओं के लिए आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। यूरिया के मामले में आयात 20% से लेकर म्यूरेट ऑफ पोटाश के मामले में 100% तक होता है। कमिटी ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम घरेलू उर्वरक उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश से संबंधित आत्मनिर्भरता प्रभावित हो सकती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि किसी भी विनिवेश से पहले रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय को: (i) अगले 10 वर्षों में उर्वरक की मांग और आपूर्ति के बीच अपेक्षित अंतराल का अध्ययन करना चाहिए और (ii) सार्वजनिक क्षेत्र के प्रत्येक उपक्रम के रणनीतिक महत्व का मूल्यांकन करना चाहिए।

  • उर्वरक क्षेत्र के पीएसयू की वित्तीय स्थिति: कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार को देय ब्याज कई पीएसयू द्वारा देय मूल ऋण राशि से अधिक हो गया है। कमिटी ने केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि: (i) उच्च-ब्याज वाले ऋणों को इक्विटी या ब्याज-मुक्त ऋणों में परिवर्तित किया जाए, (ii) चुकाए न गए ब्याज को निरस्त किया जाए जिन्हें वास्तविक रूप से चुकाया नहीं जा सकता, (iii) उच्च ब्याज वाले अल्पकालिक ऋणों को कम ब्याज वाले दीर्घकालिक ऋणों से बदला जाए, और (iv) पीएसयू को आधुनिकीकरण और विस्तार के लिए बाजार से धन जुटाने में मदद की जाए। कमिटी ने कहा कि इन कदमों से सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों को पीएसयू को बेहतर शर्तों पर ऋण देने में भी मदद मिलेगी। कमिटी ने यह भी कहा कि कुछ पीएसयू ने अपनी वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए कदम उठाए हैं जैसे उत्पादन क्षमता बढ़ाना और अपनी उत्पाद श्रृंखला का विस्तार करना। कमिटी ने कहा कि इन प्रयासों के लिए सरकारी सहयोग की आवश्यकता हो सकती है।

  • इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाना: भारत में उर्वरक क्षेत्र के अधिकतर सार्वजनिक उपक्रम 25 वर्ष से अधिक पुराने हैं जिनमें से सात तो 50 वर्षों से भी अधिक पुराने हैं। कमिटी ने कहा कि पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर में बार-बार खराबी, ऊर्जा की अत्यधिक खपत और उच्च रखरखाव लागत का खतरा रहता है। उसने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को एक योजना शुरू करनी चाहिए। इस योजना के तहत पुराने सार्वजनिक उपक्रमों को आधुनिक, उर्जा दक्ष और पर्यावरण अनुकूल उपक्रमों में बदलने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा सकेगी। इन निवेशों को बजटीय आवंटन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) और सार्वजनिक उपक्रमों के अपने मुनाफे से वित्तपोषित किया जा सकता है।

  • उत्पादों का विविधीकरण: कमिटी ने कहा कि कृषि की ज़रूरतें तेज़ी से पर्यावरण-अनुकूल और फसल-विशिष्ट पोषक तत्वों के समाधानों की ओर बढ़ रही हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को जलवायु-अनुकूल और पोषक तत्वों की दृष्टि से कुशल समाधान विकसित करने के लिए अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिए।

  • अल्प उपयोग वाली परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण: कमिटी ने कहा कि उर्वरक क्षेत्र के कई पीएसयू के पास ऐसी जमीन हैं जो रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। अतिक्रमण, कानूनी विवादों या मूल्य के पुराने अनुमानों के कारण इन जमीनों का कम उपयोग हो रहा है। उसने सुझाव दिया कि सरकार को: (i) उर्वरक क्षेत्र के सभी पीएसयू के पास मौजूदा भूमि और संपत्तियों का राष्ट्रीय ऑडिट करना चाहिए, और (ii) धन जुटाने और लागत कम करने के लिए इस्तेमाल न होने वाली परिसंपत्तियों को पट्टे पर देना चाहिए। इसके अतिरिक्त सभी पीएसयू को अपनी भूमि और निर्मित परिसंपत्तियों के वाणिज्यिक मूल्य का स्वतंत्र मूल्यांकन करवाना चाहिए।                 

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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