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पीडीएफ

चुनावी प्रक्रिया के विशिष्ट पहलू और उनमें सुधार

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश 

  • कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री सुशील कुमार मोदी) ने 4 अगस्त, 2023 को “चुनावी प्रक्रिया के विशिष्ट पहलू और उनमें सुधार” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने निर्वाचन प्रक्रिया से संबंधित तीन मुद्दों की पहचान की: (i) सामान्य मतदाता सूची की स्थिति, (ii) चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करते समय झूठी घोषणाएं, और (iii) मतदान करने और चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु। भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) ने एक सामान्य मतदाता सूची बनाने का प्रस्ताव रखा था। सामान्य मतदाता सूची का उद्देश्य मतदाताओं की जानकारी वाली एक केंद्रीकृत रेपोजिटरी के रूप में काम करना है, जिसका एक्सेस ईसीआई और राज्य चुनाव आयोगों सहित सभी संबंधित अधिकारी कर सकें। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • सामान्य मतदाता सूची: कमिटी ने कहा कि सामान्य मतदाता सूची का उद्देश्य संसाधनों को सुव्यवस्थित करना तथा मेहनत और खर्चों को कम करना है। हालांकि उसे इसके कार्यान्वयन से संबंधित दो मुद्दों की पहचान की: (i) वर्तमान कानूनी ढांचा, और (ii) ईसीई द्वारा मतदाता सूची के निर्माण का मार्गदर्शन करने वाले संवैधानिक नियम। कमिटी ने राज्य की शक्तियों पर संभावित प्रभाव के बारे में चिंता व्यक्त की, क्योंकि पंचायत चुनाव और नगरपालिका चुनाव राज्य चुनाव आयोगों के अधिकार में आते हैं। प्रत्येक स्थानीय चुनाव से पहले राज्य सरकारों और राज्य चुनाव आयोगों द्वारा स्थानीय वार्डों और पंचायतों का परिसीमन अनिवार्य किया जाता है। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, स्थानीय चुनाव राज्य का विषय हैं। ईसीआई के पास राज्य चुनाव आयोगों को निर्देश देने का अधिकार नहीं है। इसलिए कमिटी ने सुझाव दिया कि ईसीआई को सामान्य मतदाता सूची तैयार करने से पहले संवैधानिक प्रावधानों पर विचार करना चाहिए।

  • इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि केंद्र सरकार और ईसीआई द्वारा प्रस्तावित सामान्य मतदाता सूची का कार्यान्वयन संविधान के अनुच्छेद 325 के दायरे से बाहर है। कमिटी के अनुसार, अनुच्छेद 325 संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए अलग-अलग मतदाता सूचियों के उपयोग को अनिवार्य बनाता है। कमिटी ने केंद्र सरकार को कोई भी कार्रवाई करने से पहले संभावित परिणामों का सावधानीपूर्वक आकलन करने की सलाह दी।

  • चुनाव लड़ने की आयु: कमिटी ने कहा कि चुनाव में उम्मीदवारी के लिए न्यूनतम आयु की अनिवार्यता को कम करने से युवाओं को लोकतंत्र में शामिल होने के समान अवसर मिलेंगे। उसने कहा कि यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे संसदीय लोकतंत्रों में राष्ट्रीय चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है। उसने राज्य विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारी के लिए न्यूनतम आयु की अनिवार्यता को कम करने का सुझाव दिया। इसके अलावा कमिटी ने सुझाव दिया कि ईसीआई और केंद्र सरकार, दोनों युवाओं को राजनीतिक भागीदारी के लिए तैयार करने हेतु व्यापक नागरिक शिक्षा कार्यक्रमों को प्राथमिकता दें।

  • आधार लिंकिंग: कमिटी ने सुझाव दिया कि जब सामान्य मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी) के साथ आधार की लिंकिंग की बात आती है तो नागरिकों को अधिक पारदर्शिता बरतनी चाहिए। उसने इस बात पर जोर दिया कि आधार को लिंक करना स्वैच्छिक है और नागरिकों को जागरूक किया जाना चाहिए कि वे आधार लिंक के बिना वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि गैर-नागरिकों के आधार को गैर-नागरिकों के ईपीआईसी के साथ जोड़ा गया था। उसने सुझाव दिया कि ईसीआई को यह सुनिश्चित करने के लिए एक कानूनी प्रावधान या वैकल्पिक तंत्र स्थापित करना चाहिए कि आधार वाले गैर-नागरिकों को सामान्य मतदाता सूची में शामिल नहीं किया जाए।

  • झूठी घोषणाएं: कमिटी ने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए मतदाताओं को सटीक जानकारी प्रदान की जानी चाहिए। उसने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को शपथ पत्रों (एफीडेविट्स) के सत्यापन के लिए एक प्रक्रिया तैयार करनी चाहिए जिनके जरिए ईसीआई को किसी भी गलत डेटा की सूचना मिल सके। इसके अतिरिक्त उसने चुनावी शपथ पत्रों की रेगुलेशन की प्रक्रिया में हितधारकों को शामिल करने के महत्व पर जोर दिया।

  • इसके अतिरिक्त कमिटी ने जन प्रतिनिधित्व एक्ट, 1951 में बदलाव का सुझाव दिया। उसने सुझाव दिया कि झूठी घोषणाओं/शपथपत्रों की स्पष्ट परिभाषा और दंड होने चाहिए जोकि किए गए कृत्य की गंभीरता पर आधारित हो। इन दंडों को एक अलग प्रावधान के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि झूठी घोषणाओं/शपथपत्रों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए जनता की बजाय ईसीआई को जिम्मेदार होना चाहिए।

  • कमिटी ने कहा कि झूठी घोषणा करने पर छह महीने की कैद का मौजूदा दंड अपर्याप्त है और इसे बढ़ाया जाना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि झूठी घोषणा के लिए दंड को बढ़ाकर दो वर्ष तक की कैद और जुर्माना किया जाना चाहिए। दंड केवल असाधारण मामलों में ही दिया जाना चाहिए, छोटी-मोटी त्रुटियों के लिए नहीं।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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